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अनुयोगद्वारसूत्रे
नास्ति द्रव्यावश् यकत्वमिति चेदुच्यते - 'भूतस्य भाविनो वा' इत्याद्येव द्रव्यलक्षणं नास्ति, किन्तु - 'अप्पाहणे वि दव्वसहोत्थि अप्राधान्येऽपि द्रव्यशब्दोऽस्ति - इति वचनात् अप्रधानरूपेऽर्थेऽपि द्रव् - शब्दां वर्तते । मुख गनादौ मोक्षप्राप्तेरप्राधान्यं च मोक्षकारणभूतभावावश्यक ापेक्षया बोध्यम् । यतो मोक्षस्य कारणं तु भावा वश्यकमेव नतु द्रव्यावश्यकम् अतोऽत्र मुखधावनादेरप्राधान्यमिति । ततश्च द्रव्यभूतानि - अप्रधानभूतानि - आवश्यकानि द्रव्यावश्यकानीत्यर्थः, एवं च संसारकारणानां राजेश्वरादि मुखधावनादीनामस्त्येव द्रव्यावश्यकत्वम् इति नास्ति दोपावसरः । मुखकार्यों में नहीं. आसकने से उनमें आवश्यक पर्याय के प्रति कारणता नहीं बन सकती है । इस कारणता के अभाव में उनमें द्रव्यावश्यकता नहीं आसकती है ? उत्तर - शंकाकार को जो इस प्रकार की शंका उत्पन्न हुई है। उसका कारण "भूतस्य भाविनो बा" इत्यादि पद्योक्त द्रव्य का लक्षण है कि इसपर यह कहना है कि द्रव्य का लक्षण इनना ही नहीं है किन्तु "अप्पहाणे विदव्वसहोत्थि" अप्राधान्य अर्थ में भी द्रव्य शब्द है "इसकथन के अनुसार अवधान अर्थ में भी द्रव्य शब्द का प्रयोग हुआ है । न मुखानादि लौकिक कृत्यों में मोक्षप्राप्ति की अप्रधानता मोक्ष के कारण भूत भावावश्यक की अपेक्षा से कहा गया है । क्योंकि मोक्ष का कारण तो भावाश्यकही होता है, नहि कि व्यावशक इसलिए यहाँ मुखधावनादि की अप्रधानता है । इसकारण द्रव्यभूत- अप्रघानभूत जो हैं वे द्रव्यावश्यक हैं ऐसा अर्थ द्रव्यावश्यक का लभ्य हो जाता है । इस तरह राजेश्वर आदि के संसारकारणभूत मुखधावनादि कार्यों में द्रव्यावश्यकता घटित हो जाती है । इन मुखधावनादि कृत्यों में लोकप्रसिद्धि से भी आगमरूपता नहीं हैं-अतः उनमें आम वा अभाव होने से नो ઢાવાથી) તે ક્રિયાએ આવશ્યકપર્યાયના કારણરૂપ બની શકતી નથી. આ કારણુતાના અભાવને લીધે તે ક્રિયાઓમાં દ્રવ્યાવશ્યકતાના સદૂભાવ સંભવી શકતા નથી,
आवश्यक
उत्त२—२४| ४२नारे मा. अारनी ने शंका उरी छे तेनु र "भूतस्य भाविनो वा" धत्याहि सुत्रधार द्वारा द्रव्यनुं में सक्ष अट खाभां भाव्यु छे, તે લક્ષણવાળા પાને જ દ્રવ્ય માનવુ જોઇએ, એવી જ તેની માન્યતા છે. આ પ્રકારની માન્યતાને કારણે જ આ શકા ઉદ્દભવી છે. તે તેની શંકાના જવાબરૂપે भारेट वान हे द्रव्यनुं सक्षा भेटसु ? नशी, परन्तु "अप्पहाणे वि दव्वसहोत्थि" "अप्रधान्यभां वा द्रव्य श६ छे, ” या उथन अनुसार अप्रधान અથ માં પણ દ્રવ્ય શબ્દના પ્રયાગ થયા છે. તે મુખધાવન આદિ લૌકિક નૃત્યામાં જે અપ્રધાનતા (પ્રધાનતાથી રહિતપણુ) કહી છે તે મેાક્ષના કારણભૂત ભાષાવશ્યકની અપેક્ષાએ કહેવામાં આવી છે, તેથી દ્રવ્યભૃત-અપ્રધાનરૂપ જે આવશ્યક છે. તેમને