________________
१८६
अनुयोगडारी द्रव्यमिति कृत्वा, गमन्य खलु एकोऽनुपयुक्त आगमत एकं श्रुतं यावत् कस्मात् ? यदि ज्ञायकः अनुपयुक्तो न भवति । तदेतदागमतो द्रव्य श्रुतम् ।सू०३४॥
टीका--'से कि त आगमओ दव्यसुयं इत्यादि । व्याख्या पूर्ववत् ।।२०३४॥ उम.मागमती द्रव्यश्रुतम् । अथ मो आगमतो द्रव्युतमाह
मूलस्-से कि त नो आगमओ दध्वसुय ? नो आगमओ दव्वसुयः तिषिह पण्णतं, त जहा-जाणयसरीरदव्वसुया, भविय. सरीरदब्यसुयं, जाणयसरीर-भवियसरीरवइरित्तं दध्वसुयं ।सू०३५।
उत्तर:-(आगमओ दव्वसुयं) आगम या आश्रय कर के द्रव्यश्रुत कास्वरूप इस प्रकार से है-(जस्सणं सुएति पयं सिविखयं ठियं जियं जान णो अशुप्पेहाए) जिस साधु आदि को श्रुतपद शिक्षित है स्थित है जित है। या-त्पद से मित है, परिजित है नामसम है, धषसम है, अहीनाक्षर है, अनरक्षर है,अव्याविद्धाक्षर (उलट पुलट पनेसे रहित) है, अस्खलित है, अमिलित है, अव्यत्यानेडित है, परिपूर्ण घोषवाला है, २ण्ठो ठविप्रमुक्त है. और गुरुवाचनोपगत है। इसतरह वह साधु आदि वाचना से पृच्छनासे परिवर्तना (आवृत्ति)से और धर्मकथा से उसमें वर्तमान हैं परन्तु उपयोग से वर्तमान नहीं हैं, अतः उपयोग से रहित हं ने के कारण वह साधु आगम को आश्रित कर के द्रव्यश्रुत माना गया है । (कम्हा) क्योंकि (अणुवओगो दवमिति कटु) ऐसा आगम का वचन हैं कि जो उपयोग से रहित होता है वह द्रव्य माना जाता है। इसकी माख्या १४ वें सूत्र के समान जाननी चाहिये । सूत्र ॥ ३४ ॥
उत्तर-(आगमओ दव्वसुय) भागमन माश्रय शने द्रव्यश्रत मा
२१३५ -
(जम्म णं सुएत्ति पय सिक्खि पं ठिय जिय जाव णो अणुप्पेहाप) रे 'साधु महिने त५६ शिक्षित छ, स्थित छ, लित . भित थे, ५२लित छ, નામસમ છે, ઘોષસમ છે. અહીનાક્ષર છે, અનત્યક્ષર છે, અન્યાવિદ્ધાક્ષર અખલિત
છે, અમિલિત છે, અવ્યત્યા એડિત છે, પરિવણઘેષયુકત છે, કઠોઠ વિપ્રમુક્ત છે, છે અને ગુરુવારાને પગત છે, આ રીતે તે સાધુ આદિ વાચનાથી, પરિવર્તનાથી પૃચ્છ નથી, પરિવર્તનથી અને ધર્મકથાથી તેમાં વર્તમાન છે, પરંતુ ઉપયોગ પરિણામથી તેમાં વર્તમાન પ્રવૃત્ત) નથી, અને તેથી ઉપયોગથી રહિત હેવાને કારણે તે સાધુને
मागमानी अपेक्षाये द्रव्यश्रुत मानपामा पाने छ; (कम्हा) ४२५ 3 (अणुवओगो | दवमिति क१) मनु मे वयन छ , २ ६५५योगयी २हित य छ
અનુપયુકત પરિણામવાળો હોય છે તેને દ્રવ્યરૂપ માનવો જોઈએ. આ ત્રમાં વપરાયેલાં પદોને ભાવાર્થ ૧૪ માં સૂત્રમાં આપ્યા પ્રરાણે સમજો. . ૦ ૩૪