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अनुयोगचन्द्रिका टीका २९ भावाय पर्याय निरुपण
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जीवकर्म संबन्धापना - यथार्थप्रथिनोहये पि क्षेत्रधन दिसम्बन्धिकं चिरकालिक मपि विवाद न्यायाध्यक्ष दृष्टो व्यायो रुपनयति तथैवावश्यकमपि जीवकर्मणे - नादिकालमा सम्बन्धमपनवतीति-श्य मपि व्याय इत्युच्यते ॥६॥ आराधना=मेज़ाराधना हेतुत्वाद। श्यकम् आना || मार्गः - तथा मार्गो नगरं प्रापयति, तथैवावश्यकमपि मे क्षं प्र पयतीति मोक्षरूपपुरप्रापकत्वात् आवश्यक मार्गः इति ॥८॥
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सम्प्रति-यावश्यकपदस्य शब्दाः सूत्रकारः पयमेव प्रदर्शयति- 'समणेणं इत्यादि । श्रमणेन साधुना आणि चारस्योपलात् श्रमणा श्राविया च य-मत् अहर्निशम्य = अहोरात्रस्य अन्ते असा दिवसान्ते रुधन्ते चे लीन संबन्धक यह दूर कर देता है जिस प्रकार वादि प्रतिवादी के बहुत समय का भी क्षेत्र, धन आदि संवन्धी विद न्यायाध्यक्ष न्याय के चल पर दूर कर देता है - भी जीन और कर्म के अनादिकालीन आश्रयाश्रयिनाव दूर कर देता है उसका नाम भीन्य है। मोक्षकी आगवाह हेतु है । इसलिये उसका नाम आराधना है। जिस प्रकार मार्ग पविकको नगर में पहुंचा देता है उसी प्रकार आवश्यक भी सोक्ष रूपनगर से अपने रधिपहुंचाता है इसलिये इसका नाम - मागं है। है - इस arah अब सूत्रकार प्रकट करते हैं
प्रकार
शब्द
क्या
के के द्वारा यह (जम्हा)
11.
जिस कारण से ( अहोसिस अंने) दिवसाल और निशान्त में (अर्थ हो.) आय करणीय होता है (तम्हा) (सकारण से आवासयं नाम ) इसका તેનું છઠ્ઠું નામ “ન્યાય” અથવા-જેવી રીતે ન્યારા વાદી અને પ્રતિવાદીના જર, જમીન આ।િ વિવાદને ન્યાયને આધારે દૂર કરી નાખે છે, એજ પ્રમાણે આવશ્યક પણ જીવ અને કર્માંના અનાદિ કાલન આશ્રયાશ્રયી ભાવરૂપ સબ ધને દૂર કરી નાખે છે. તેથી આવશ્યકનું છઠ્ઠું નામ ‘ન્યાય છે.
(૭) ‘આરાધના’–મેક્ષની આરાધના કરવામાં આવશ્યક હેતુપ (સાધનરૂપ) थ डे छे, तेथी तेनु' मानभु नाम 'आराधना' है.
(८) 'भाग-भेदी ते भार्ग पथिउने गाडी हे हे, ये प्रभा આવશ્યક પણ તેના આરાધક જીવને મેક્ષ રૂપ નગરમાં પહાંચાડી દે છે, તેથી તેનું આઠમુ' નામ માર્ગ છે. આવશ્યક શબ્દના શા અન્ય છે, તે હવે સૂત્રકાર પ્રકટ કરે छे (सवणेण सात्रएं य) श्रम ने श्रा द्वारा ते (जम्हा) र (अहो निसरस अंते) हिवसने अन्ते भने रात्रिने भन्ते (अवरस वायव्यं होइ) अवस्य