Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासत्र
१४६ महर्टिका वा ? गौतम ! यथा जीवानाम् , एतेषां खलु भदन्त ! एकेन्द्रियतियग्योनिकानां कृष्णले श्यानां यावत् तेजोलेश्यानाश्च कतरे कतरेभ्योऽल्पर्धिका वा महर्दिका वा ? गौतम ! कृष्णलेश्येभ्य एकेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्यो नीलले श्यास्तिर्यग्योनिका एकेन्द्रिया महर्दिकाः, नीललेश्येभ्य एकेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्यः कापोतलेश्या एकेन्द्रियतिर्यग्योनिका महर्दिकाः:, कापोतलेश्येभ्य एकेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य स्तेजोलेश्या महर्दिकाः, सर्वाल्पर्धिका एकेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः कृष्णलेश्याः, सर्वपहदिका स्तेजोलेश्याः, एवं पृथिवीकायिकानामपि, एवम् हे भगवन् ! इन कृष्णलेश्या वाले यावत् शुक्ललेश्या वाले तिर्यग्योनिको में (कयरे कयरेहिंतो) कौन किससे (अप्पडिया वा महड्डिया वा ?) अल्प ऋद्धिवाले या महान् ऋद्धि वाले हैं ? (गोयमा ! जहा जीवाणं) हे गौतम ! जैसे जीवों का
(एएसिणं भंते ! एगिदियतिरिक्खजोणियाणं कण्ह लेस्साण य जाव तेउ. लेस्साण य) हे भगवन् ! इन कृष्णलेश्या यावत् तेजोलेश्या वाले एकेन्द्रिय तिथंच जीवों में (कयरे कयरेहितो) कौन किससे (अप्पड्रिया वा महडिया वा?) अल्पर्धिक अथवा महर्धिक हैं ? (गोयमा ! कण्हलेस्सहिंतो एगिदियतिरिक्ख जोणिएहितो नीललेस्सा महडिया) हे गौतम ! कृष्णालेश्या वाले एकेन्द्रिय तिर्यंचों की अपेक्षा नीललेश्या वाले महर्धिक हैं (नीललेस्सेहितो तिरिक्ख. जोणिएहितो काउलेस्सा महडिया) नीललेझ्यावाले तिर्यंच एकेन्द्रियों से कापोतलेश्यायाले महर्धिक हैं (काउलेस्सेहितो तेउलेस्सा महडिया) कापोतलेश्या वालों से तेजोलेश्या वाले महधिक हैं (सव्वप्पड्डिया एगिदया तिरिक्खजोणिया कण्हलेस्सा) सब से कम ऋद्धि वाले एकेन्द्रिय तिर्यंच कृष्णलेश्या वाले हैं (सव्वमहडिआवेश्यावा याय शुसवेश्यावातिय योनिमा (कयरे कयरेहितो) । जोनाथी (अप्पढिया वा महड्ढिया वा) मा मा२ महाद्विवाणा छ (गोयमा ! जहा जीवाण) हे गौतम ! २१॥ वन.
(एएसिणं भंते ! एगि दियतिरिक्खजोणियाणं कण्हलेस्साण य जाव तेउलेस्साण य) : सन ! भावेश्या यावत् तेवेश्यावा मेहेन्द्रिय तिय य म (कयरे कयरहितो) ए नाथी (अप्पढिया वा महड्ढिया वा) ६५* अथवा मह छ ? (गोयमा ! कण्हलेस्सेहि'तो एगि दियतिरिक्खजोणिएहिं तो नीललेस्सा महडढिया) गौतम ! वेश्यापायन्द्रिय तिय यानी अपेक्षा नीसवेश्यावा भइछि (नीललेस्सेहिंतो तिरिक्खजोणिएहिंतो काउलेस्सा महडढिया) नोवेश्यावतिय य मेहेन्द्रियोथी पातश्या भघि छ (काउलेस्सेहितो तेउलेस्सा महड्डिया) पातवेश्याजासाथी तसेश्या भधि छ (सव्वप्पढिया एगि दियतिरिक्खजोणिया कण्हलेस्सा) माथी माछी ऋद्धि भन्द्रिय तिय य ३०५ वेश्या छ (सव्व महइढिया तेउलेरसा) माथी महाद्विपाणा
श्री. प्रशाना सूत्र:४