Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रज्ञापनास्त्रे कोटिम्, अनाहारकः खलु भदन्त ! अनाक्षारक इति कालतः कियच्चिरं भवति ? गौतम ! अनाहारको द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-छद्मस्थानाहारकश्च केवल्यनाहारकश्व, छद्मस्थानाहारकः खलु भदन्त ! पृच्छा, गौतम ! जघन्येन एकं समयम्, उत्कृष्टेन द्वौ समयौ, केवल्यनाहारक: खलु भदन्त ! केवल्यनाहारक इति कालतः क्रियच्चिरं भवति ? गौतम ! केवल्यनाहारको द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-सिद्धकेवल्यनाहारकश्च भवस्थकेवल्यनाहारकश्च, सिद्धकेवल्यनाहारक: खलु पृच्छा, गौतम ! सादिकोऽपर्यवसितः, भवस्थ केवल्य नाहारकः खलु भदन्त ! पृच्छा, हे भगवन् ! केवली आहारक कितने काल तक केवली आहारकपने में रहता है ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोलेणं देखणं पुव्व कोडि) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट देशोन करोड पूर्व तक (अणाहारए गंभंते ! अगाहारए त्ति कालओ केवच्चिरं होह ?) हे भगवन् ! अनाहारक कितने काल तक अनाहारक पने में रहता है ? (गोयमा ! अणाहारए दुविहे पण्णत्ते, त्तं जहा छ उमत्थ अणाहारए य केवलि अणाहारए य) हे गौतम ! अनाहारक दो प्रकार के कहे हैं, वे इस प्रकार छमस्थ अनाहारक और केवली अनाहारक (छ उमस्थ अगाहारए णं भंते ! पुच्छा ?) हेभगवन् ! छद्मस्थ अनाहारकके विषयमें-पृच्छा ? (गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं) हे गौतम! जघन्य एक समय तक (उक्कोसेणं दो समया) उत्कृष्ट दो समय तक (केवलि अणाहारए गं भंते ! केवलि अणाहारए त्ति कालओ केवच्चिरं होइ ?) हे भगवन् ! केवली अनाहारक कितने काल तक केवली अनाहारक रहता है ? (गोयमा ! केवलि अणाहारए दुविहे पण्णत्ते) हे गौतम ! केवली अनाहारक दो प्रकार के हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (सिद्ध केवलि अणाहारए य भवत्थ केवलि अणाहारए य) सिद्ध केवली-अनाहारक और भवस्थ केवली अनाहारक (सिद्ध मा २४ ४८॥ ४॥ सुधा मी मा २४ ५४ामा २३ ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देसूणं पुवकोडिं) 3 गौतम धन्य २. तभुत, कृbe शान ४२।७पूर्व सुधा.
(अणाहारएणं भंते ! अणाहारएत्ति कालओ केवचिरं होइ ?) मावन् ! मना।२४७१ ३८॥ ४॥ सुधी भना२४५४थी युत २ छ ? (गोयमा ! अाहारए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-- छउमत्थ अणाहारए, य केवलि अणाहारए य) गौतम ! सना।२४ मे प्रारना ४ा छ, ते ! प्रहारे छम२५ मना२४ मन डेवली मनाह.२४ (छउमत्थ अणाहारए णं भंते ! पुच्छा ?) भगवन् ! ७५२५ मनाडा२४ वि-२७॥ ? (जहण्णेणं एगं समय) धन्य ४ समय सुधा (उक्कोसेणं दो समया) Gree में समय सुधी (केवलि अणाहारए णं भंते ! केवली अणाहारएत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ?) 3 लन् ! उal मना ४ खाण सुधी उसी मनाहा२४ पयामा २९ छ ? (गोयमा ! केवली अनाहारए दुविहे पण्णत्ते) 3 गौतम ! इसी मनाडा२४ मे प्र४२॥ ४॥ छ (तं जहा)-नेम । प्रारे (सिद्ध केवली अणाहारए य भवत्थ केवलि अणाहारए य) सिद्ध-पक्षी-मनाडा२४ मने मस्थ पक्षी मनाहा२४ (सिद्ध केवली
श्री. प्रापन। सूत्र:४