Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका पद २१ सू० ६ वैक्रियशरीरसंस्थाननिरूपणम्
७०९ शरीरावगाहना प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्ये नागुलस्य संख्येयभागम्, उत्कृष्टेन योजनशत पृथक्त्वम्, मनुष्यपश्चेन्द्रियधैक्रियशरीरस्य खलु भदन्त ! किं महालया शरीरावगाहना प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जयन्येन अन्गुस्य संख्येयभागम, उत्कृष्टेन सातिरेक योजनशतसहस्त्रम्, असुरकुमारभवनवासिदेवपश्चन्द्रियवैक्रियशरीरस्य खलु भदन्त ! किं महालया शरीरावगाहला प्रज्ञप्ता ? गौतम ! असुरकुमारःणां देवानां द्विविधा शरीरावगाना प्राप्ता, तद्यथा-भवधारणीया
(तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय वेउब्धिय सरीरस्स णं भंते ! के महालिया सरीरोगाहण पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! तिर्यग्योनिक पंचेन्द्रियों के क्रियशरीर की अवगाहना कितनी बडी होती है ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स संखेजइभाग) हे गौतम ! जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग (उकोसेणं जोयणसयपुहुतं) उत्कृष्ट सौ पृथक्त्व योजन की (मणुस्स पंचिंदियवेब्धियसरीरस्स णं मंते ! के महा. लिया सरीरोगाहणा पण्णता ?) हे भगवन् ! मनुष्य पंचेन्द्रिय के वैक्रियशरीर की अवगाहना कितनी बडी कही हे ? (गोयमा ! जहणणेणं अंगुलस्स संखेजाभार्ग) हे गौतम ! जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग (उकोसेणं सातिरेगं जोअणसयसहस्स) उत्कृष्ट कुछ अधिक एक लाख योजन (असुरकुमारभवणवासि देव पंचिंदिय वेउब्वियसरीरस्सणं भंते! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णता) हे भगवन् ! असुरकुमार भवनवासी देव पंचेन्द्रिय के वैक्रियशरीर की अवगाहना कितनी बडी कही है ? (गोयमा ! असुरकुमाराणं देवाणं दुविहा सरीरोगाहणा पण्णत्ता ?) हे गौतम ! असुर कुमार देवों की शरीरावगहना दो प्रकार की कही है (तं जहा-अवधारणिजा य उत्तरवेषियाय) वह इस प्रकार-भवधारणीय
(तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय वेउब्धियसरीरस्सणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णता?) હે ભગવન્! તિયાનિક પંચેન્દ્રિના કિયશરીરની અવગાહના કેટલી મોટી હોય છે? (गोषमा ! जहण्णेणं अंगुलास सखेज्जइभाग) 8 गौतम ! ४५न्य शुसन सभ्यातमाला (उक्कोसेणं जोयण सयपुहुत्तं) कृष्ट से। ३४.१ याननी.
(मणुस्स पंचिंदिय वेउव्वियसरीरस्स णं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ?) भगवन् ! मनुष्य ५यन्द्रियना वैयि।२।२नी अाउन टी मोटी ४ी छ ? (गोयमा ! जहणेणं अंगुलास सखेज्जइभाग) 3 गौतम ! ४३न्य २५ गुबनी सध्यातमीमा (उक्कोसेणं सातिरेग जोयणसयसहस्स) कृष्ट ४४४ मवि ५ योन.
(असुरकुमार भवणवासीदेवपंचिंदिय वेउब्बियसरीरस्स णं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ?) भगवन् ! असुरमा२ सपनवासी ४५ पयन्द्रियना वैठियशरीरनी अपनाना सी मोटी छ ? (गोयमा ! असुरकुमाराणं देवाणं दुविहा सरीरोगाहण। पण्णता) है गौतम ! असु२४मा२ हेयोनी शरीरानी में प्रा२नी दीछे (तं जहा-भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य) ते ॥ ४ारे अधारणीय भने उत्तर यि (तत्थणं जा सा भवधार
श्री प्रशापन। सूत्र:४