Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 785
________________ ७७२ प्रज्ञापनासूत्रे तस्मिन् भवे औदारिकशरीरानुसारेण वैक्रियशरीरानुसारेण च जीवप्रदेशानां संस्थानं भवति तदेव संस्थानं तैनसशरीरस्यापि भवतीति, तैजसशरीराणं पूर्वोक्त द्वित्रिचतुरिन्द्रिय पञ्चन्द्रि यतिर्यग्योनिकमनुष्यगतमौदारिकशरीर संस्थानं नैरयिकगतं देवगतश्च वैक्रियशरीरसंस्थान व्यपदिष्टमिति भावः ॥ सू० ८॥ ॥ तैजसशरीरावगाहनवक्तव्यता ।। ___ मूलम्-जीवस्स णं भंते ! मारणंतिय समुग्घाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! सरीरपमाणमेत्ता विक्खंभवाहल्लेणं आयामेणं अंगुलस्स असंखेज्जइमागं उक्कोसेणं लोगंताओ लोगंते, एगिदियस्त णं भंते ! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहयस्स तेया सरीरस्त के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा! एवं चेव जाव पुढविकाइयस्स आउकाइयस्स तेउकाइयस्स वाउकाइयस्स वणप्फइकाइयस्स, बेइंदियस्स णं भंते ! मारणंतिय समुग्घाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स के महालिया सरीरोगाहणा पण्णता ? गोयमा ! सरीरप्पमाणमेत्ता विक्खंभबाहल्लेणं आयामेणं जहपणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं तिरियलोगाओ लोगंते, एवं जाव चउरिदियस्स, नेरइयस्त णं भंते! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! सरीरप्पमाणमेत्ता विक्खंभवाहल्लेणं आयामेणं जहण्णेणं सातिरेगं जोयणएव जिस भव में जिस जीव के औदारिक अथवा वैक्रियशरीर के अनुसार आत्मप्रदेशों का जैसा आकार होता है वैसा ही उन जीवों के तैजसशरीर का आहार होता है। एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय तिर्यंचों तथा मनुष्यों का तैजसशरीर औदारिक शरीर के अनुसार तथा देवों और नारकों का तैजसशरीर उनके वैक्रियशरोर के अनुसार संस्थान वाला समझना चाहिए ॥सू० ८॥ ભવમાં જે જીવના દારિક અથવા વૈક્રિશરીરના અનુસાર આત્મ પ્રદેશોને જે આકાર હોય છે, તે જ તે ના તેજસશરીરનો આકાર હોય છે. એકેન્દ્રિય, દ્વાદ્રિય, ત્રીન્દ્રિય, ચતુરિન્દ્રિય અને પંચેન્દ્રિય તિર્યંચોના તથા મનુષ્યના તેજસશરીર ઔદારિક શરીરના અનુસાર તથા દે અને નારકના તૈજસશરીર વૈક્રિયશરીરના અનુસાર સંસ્થાનવાળાં સમજવાં જોઈએ, સૂ૦ ૮ श्री. प्रशानसूत्र:४

Loading...

Page Navigation
1 ... 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841