Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 801
________________ ७८८ प्रज्ञापनास्त्रे प्रतिपादिता तथा पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकस्यापि तैजसशरीस्यावमाहना विष्कम्भबाहल्येन शरीरप्रमाणमाश, आयामतस्तु जघन्येन अड् गुलस्यासंख्येयभागमाश, उत्कृष्टेन पुनस्तिर्यग्लोकाद अधोलोकान्तम् ऊर्श्वलोकान्तं वा यात तावत्प्रमाणा असे येति भावः पश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकस्यैकेन्द्रियेषु उत्पादसंभवात्, गौतमः पृच्छति-'मणुस्सस्स णं भंते ! मारणंतियसमुग्धाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स के महालिया सरीरोगाहणा पण्ण ता?' हे भदन्त ! मनुध्यस्य खलु मारणान्तिकसमुद्घातेन वक्ष्यमाणलक्षणेन समवइतस्य सतः तैजसशरीरस्य किं महालया-कियद् विस्तारा शरीरावगाहना प्रज्ञता ? भगवानाह-'गोयमा!' हे गौतम ! 'समयखेचाओ लोगंतो' उत्कृष्टेन समयक्षेत्रात्-मनुष्यक्षेत्रात् यावद् लोकान्तम्-अयोलोकान्तम् ऊर्ध्वलोकान्तं वा तावत्प्रमागा मनुष्यतैजसशरीरावगाहना अवसेया, मनुष्यस्यापि एकेन्द्रियेषु समुत्पादसंभवात्, अत्र समयक्षेत्रपदोपादानेन समयक्षेत्रादन्यत्र मनुष्यजन्मनः संहरणस्य चा संभवेनातिरिक्ताया अवगाहनाया असंभवात्, समयप्रधानं क्षेत्रं समयक्षेत्रमिति मध्यमपदलोपि चाहिए । अर्थात् विष्कंभ और पाहल्य की अपेक्षा शरीरप्रमाण है, लम्बाई की अपेक्षा जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट तिर्यकलोक से अधोलोक तक था ऊर्ध्वलोक तक की अवगाहना कही गई है, क्यों कि पंचेन्द्रिय तिर्यच का उत्पाद एकेन्द्रिय के समान नहीं होता है। श्रीगौतमस्वामी-हे भगवन् ! मारणान्तिक समुदघात से समवहत मनुष्य के तैजसशरीर की अवगाहना कितनी बडी कही गई है? भगवान्-हे गौतम ! उत्कृष्ट समयक्षेत्र अर्थात् मनुष्यक्षेत्र से अधोलोक या ऊर्ध्वलोक के अन्त तक मनुष्य के तैजसशरीर की अवगाहना जानना चाहिए। क्योंकि मनुष्य का भी एकेन्द्रिय के रूप में उत्पाद का संभव है। यहां समयक्षेत्र का ग्रहण करने से, समय क्षेत्र से भी अन्यत्र मनुष्य का जन्म अथवा संहरण संभव नहीं है, अतः इससे अधिक अवगाहना नहीं हो सकती, यह सूचित किया અને બાહલ્યની અપેક્ષાએ શરીર પ્રમાણ છે, લંબાઈની અપેક્ષા એ જઘન્ય અંગુલને અસંખ્યાત ભાગ અને ઉત્કૃષ્ટ તિર્યકૂલેકથી અલેક સુધી અગર ઊર્વિલક સુધીની અવગાહના કહેલી છે, કેમ કે પંચેન્દ્રિય તિર્યંચના ઉત્પાદ એકેન્દ્રિયના સમાન નથી હોતા. શ્રીગૌતમસ્વામી–હે ભગવન્! મારણાનિક સમુદ્રઘાતથી સમવહત મનુષ્યના તૈજસશરીરની અવગાહના કેટલી મોટી કહેલી છે? શ્રીભગવાન-હે ગૌતમ! ઉત્કૃષ્ટ સમય ક્ષેત્ર અર્થાત્ મનુષ્ય ક્ષેત્રથી અલોક અગર ઊર્વલેકના અન્ત સુધી મનુષ્યના તેજસશરીરની અવગાહના જાણવી જોઈએ. કેમ કે મનુધ્યને પણ એકેન્દ્રિયના રૂપમાં ઉત્પાદ સર્વત્ર છે. અહીં સમયક્ષેત્રનું ગ્રહણ કરવાથી સમય ક્ષેત્રથી અન્યત્ર-મનુષ્યને જન્મ અથવા સંહરણ સંભવિત નથી. તેથી એનાથી અધિક અવગાહના નથી હઈ શકતી, એ સૂચિત કરેલું છે. સમય श्री. प्रापन। सूत्र:४

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