Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 765
________________ ७५२ m प्रज्ञापनासूत्रे युष्ककर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरम्, आहारकशरीरं खलु भदन्त ! किं संस्थितं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! समचतुरस्र संस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम्, आहारकशरीरस्य खलु भदन्त ! कि महालया शरीरावगाइना प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येन देशोनारत्निः उत्कृष्टेन परिपूर्णा रनिः॥ टीका-पूर्व वैक्रियशरीरस्य भेदसंस्थानावगाहना स्वरूपाणि प्ररूपितानि, सम्प्रति आहारकशरीरस्य भेदसंस्थानावगाहनामानानि प्ररूपयितुमाह-'आहारगसरीरेणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते !" हे भदन्त ! आहारकशरीरं खलु कतिविधं प्रज्ञप्तम् ? भगवानाह-'गोयमा !' हे गौतम ! 'एगागारे पण्णत्ते' आहारकशरीरम् एकाकारम्-एकप्रकारं प्रज्ञप्तम्, गौतमः पृच्छति'जइ एगागारे किं मणूस भाहारगसरीरे अमणूस आहारगसरीरे ?' हे भदन्त ! यदि एकाकारम्-एकप्रकारमेव आहारकशरीरं भवति तदा तत् किं मनुष्याहारकशरीरं भवति ? किंवा अमनुष्याहारकशरीरं भवति ? भगवानाह-'गोयमा!' हे गौतम ! 'मणूसआहारगसरीरे नो दिट्ठी पज्जत्तग संखेज्जवासा अकम्मभूमगगम्भवक्कंत्तिय मणस आहारग सरीरनु अनुसंद्धि प्राप्त प्रमत्त संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यातवर्ष की आयवाले कर्मभूमिज गर्भव्युत्कात्तिक मणुष्यका आहारकशरीर नहीं होता (आहारगसरीरे णं भंते ! किंसंठिए पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! आहारकशरीर किस संस्थान वाला कहा गया है ! (गोयमा ! समचउरंस संठाण संठिए पण्णत्ते) हे गौतम ! समचतुरस्रसंस्थान वाला कहा गया है (आहारगसरीरस्स णं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णता?) हे भगवन् आहारकशरीर की अवगाहना कितनी विशाल कही गई है ? (गोयमा ! जहण्णेणं देसूणा रयणी) हे गौतम ! जघन्य कुछ कम एक हाथ की (उक्कोसेणं पडिपुण्णा) उत्कृष्ट से पूरे एक हाथ की टीकार्थ-इससे पूर्व वैक्रियशरीर के भेद, अवगाहना और संस्थान का प्ररूपण किया गया है, अब आहारकशरीर के भेद, संस्थान और अवगाहना पत्तपमत्तसंजय सम्मदिवी पज्जत्तग सखेज्जवासाउय कम्मभूमग गब्भवतिय मणूस आहारगसरीरे ) वृद्धि प्राप्त प्रमत्त सयत सभ्यष्टि पर्याप्त सध्यात वषनी मायुष्य पणा કર્મ ભૂમિના ગર્ભવ્યુત્ક્રાંતિક મનુષ્ય ષ્યના આહારક શરીર નથી હોતાં (आहारगसरीरेणं भंते ! कि संठिए पण्णत्ते) हे मावन् ! मा २४शरीर या संस्थानपाni ४ा छ ? (गोयमा ! समचउरंसस ठाणसं ठिए पण्णत्ते) गौतम ! समयतु२ख सस्थानવાળાં કહેલાં છે (आहारगसरीरस्सणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ?) भगवन् ! माइ।२४शरीरनी माना दी qिue seeी छे ? (गोयमा ! जहण्णेणं देसूणा रयणी) गौतम ! धन्य । माछा मे४ ४ायनी (उक्कोसेणं पडिपुण्णा) कृष्ट पुरा मे लायनी ટીકાર્યું–આનાથી પહેલાં વેકિયશરીરના ભેદ, અવગાહના અને સંસ્થાનનું પ્રરૂપણ श्री. प्रशान। सूत्र:४

Loading...

Page Navigation
1 ... 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841