Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 777
________________ ७६४ प्रज्ञापनासूत्रे गौतम ! नानासंस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम्, एकेन्द्रियतैजसशरीरं खलु भदन्त ! किं संस्थितं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! नानासंस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम्, पृथिवी का थिकै केन्द्रियतैजसशरीरं खलु भदन्त ! किं संस्थितं प्रज्ञप्तम् १ गौतम ! मसूरचन्द्र संस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम्, एवम् औदारिकसंस्थानानुसारेण भणितव्यं यावच्चतुरिन्द्रियाणामपि नैरयिकाणां भदन्त । तैजसशरीरं किं संस्थितं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! यथा वैक्रियशरीरम्, पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां मनुष्याणां यथा एतेषाञ्चैव औदारिकाणामिति, देवानां भदन्त । किं संस्थितं तैजसशरीरं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! यथा वैक्रियस्य यावद् अनुत्तरौपपातिकानामिति ॥ ८ ॥ सरीरे भेओ भणिओ तहा भाणियव्वो) देवों के जैसे वैक्रियशरीर के भेद कहे हैं। इसी प्रकार तैजसशरीर के भेद भी समझलेने चाहिए (जाव सव्वद्धसिद्ध देवत्ति) सर्वार्थसिद्ध के देवों तक (तेयगसरीरे णं भते । किंसठिए पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! तैजसशरीर किस आकार का कहा है ? (गोयमा ! नाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते) हे गौतम! अनेक संस्थानों वाला कहा है (एगिंदिय तेयगसरीरे णं भते । किं संठिए पण्णते ?) हे भगवन् ! एकेन्द्रिय का तैजसशरीर किस आकार वाला कहा है ? (गोयमा ! णाणा संठाणसंठिए पण्णत्ते) हे गौतम ! नाना संस्थानों वाला कहा है ( पुढवि. काइयएगिंदियतेयगसरीरे णं भते । किंसंठिए पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! पृथ्वी कायिक एकेन्द्रिय का तैजसशरीर किस आकार को कहा है ? (गोयमा ! मसूर चंद ठाणसंठिए पण्णत्ते) हे गौतम! मसूर के दाल के आकार का कहा गया है और यहां चन्द्र का अर्थ दाल है ( एवं ओरालियसंठाणानुसारेण भाणियव्वं) इस प्रकार औदारिकशरीर के संस्थान के अनुसार कहना चाहिए (जाव चउरिंदियाण वि) यावत् चौइन्द्रियों का भी । (नेरइया णं भते ! तेयगसरीरे किं संठिए पण्णत्ते ?) हे भगवन् ? नारकों के (तेयगसरीरेणं भंते! किं संठिए पण्णत्ते) भगवन् ! तै सशरीर वा मारनां छे ? (गोयमा ! नाणा संठाणसं ठिए पण्णत्ते) गौतम ! भने संस्थानावाना उद्यां छे (एगिंदिय तेयगसरीरेण भंते ! किं संठिए पण्णत्ते) हे भगवन् ! येडेन्द्रियना तैनसशरीर हैवा भाठारवाणा ह्यां छे ? ( गोयमा ! णाणास 'ठाणस ठिए पण्णत्ते) गौतम ! नाना संस्थान वाजा ह्यछे (पुढविकाइय एगिंदिय तेयगसरीरेण भंते कि संठिए पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! पृथ्वीभयिष्ठ मेहेन्द्रियना ते सशरीर वा मारना ४ छे ? (गोयमा ! मसूरचं दस ठाणसंठिए पण्णत्ते) गौतम ! भसूरनी होजना आधारना ह्यां हे भने साहीं यन्द्रनो अर्थ हाज छे ( एवं ओरालिय संठाणाणुसारेण भाणियव्वं ) मे प्रहारे मोहारि शरीरना संस्थानना अनुसार डेवु लेहध्ये (जाव चउरिंदियाण वि) यावत् तुरिन्द्रियोना शु (नेरइयाणं भंते! तेयगसरीरे किं संठिए पण्णत्ते १) हे भगवन् ! नारना तैनसशरीरना श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४

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