Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका पद २१ सू० ८ तैजसशरीरनिरूपणम्
७६३ औदारिकशरीरस्य भेदो भणितस्तथा तै उसस्यापि यावचतुरिन्द्रियाणाम्, पञ्चेन्द्रियतेजसशरीरं खलु भदन्त ! कतिविधं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! (श्वेन्द्रियतैजसशरीरं चतुर्विधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथानैरयिकतैजसशरीरं यावद् देवतै नसशरीरम्, नैरयिकाणां द्विगतो भेदो भणितव्यः, यथा वैक्रियशरीरे, पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां मनुष्याणाञ्च यथा औदारिकशरीरे भेदो भणितस्तथाभणितष्यो यावत् सर्वार्थसिद्धदेव इति, तैजसशरीरं खलु भदन्त ! किं संस्थितं प्रज्ञप्तम् ? कहा है ? (गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते) हे गौतम ! पांच प्रकार का कहा है (तं जहा पुढविकाइयएनिदियतेयगसरीरे जाव वणस्सइ काइयएगिदियतेयगसरीरे) वह इस प्रकार-पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय तैजस शरीर यावतू वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय तैजसशरीर (एवं जहा ओरालियसरीरस्स भेदो भणिओ) इस प्रकार जैसे औदारिकशरीर के भेद कहे हैं (तहा तेयगस्स वि) उसी प्रकार तैजस के भेद भी कहना चाहिए (जाव चरिंदिया णं) चौइन्द्रियों तक
(पंचिंदियतेयगसरीरे ण भंते ! काविहे पण्णत्ते?) हे भगवन् ! पंचेन्द्रिय तेजसशरीर कितने प्रकार का कहा है ? (गोयमा ! चउविहे पण्णत्ते) हे गौतम! चार प्रकार का कहा है (तं जहा-नेरइयतेयगसरीरे जाव देवतेयगसरीरे) वह इस प्रकार-नरयिक तैजसशरीर यावतू देवतैजसशरीर (नेरझ्याणं दुगओ भेदो भाणि यवो) नारकों के दो भेद कहना चाहिए (जहा वे उब्वियसरीरे) जैसा वैक्रियशरीर (पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं) पंचेन्द्रिय तिर्यचों का (मणुस्साण य) और मनुष्यों का (जहा ओरालियसरीरे) जैसे औदारिकशरीर का (भेदो भणिओ) भेद कहा है (तहा भाणिययो) इसी प्रकार कहना चाहिए (देवाणं जहा वेउव्यियः આ પ્રકારે–પૃથ્વીકાયિક એકેન્દ્રિય તૈજસશરીર યાવતુ વનસ્પતિ કાયિક એકેન્દ્રિય તૈજસશરીર (एवं जहा ओरालियसरीरस्स भेदो भणिओ) में प्रा२ २१॥ मोहोशिशेरन से छ (तहा तेयगस्स) मे १२ ते/सन से ५४] ४२ मे (जाव चरिंदियाणं) यतुरि%િ સુધી
(पंचिंदिय तेयगसरीरेणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते) मापन् ! ५येन्द्रिय तसशNR प्राR Bा छ ? (गोयमा ! चउठिबहे पण्णत्ते) गौतम ! बार R ai छ ? (तं जहा नेरइयतेयगसरीरे जाव देवयतेयगसरीरे) रे ॥ ॥२-२५४ तेसशरी२ यावत् है तेसरी२ (नेरइयाणं दुगओ भेदो भाणियव्वो) नारनामे ४ ४ नये (जहा वेउ. व्वियसरीरे) र यिशरी२ (पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं) ५यन्द्रिय तिय याना (मणू. साणय) मने मनुष्योना (जहा ओरालियसरीरे) २१ मोहा२ि४शरीरना (भेदो भणिओ) ले या छे (तहा भाणियव्वो) से प्रारना डन (देवाणं जहा वेउब्वियसरीरे भेओ भणिो तहा भाणियव्वो) हेवाना वैठियशरीना नेह छ, से सारे तेसशरीरना ले समय मेन (जाव सबसिद्ध देवत्ति) साथ सिद्धन हे सुधी
श्री. प्रशान। सूत्र:४