Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 774
________________ ७६१ प्रमेयबोधिनी टीका पद २१ सू० ७ आहारकशरीरनिरूपणम् पृच्छति-'आहारगसरीरे णं भंते ! कि संठिए पण त्ते ?' हे भदन्त ! आहारकशरीरं खलु कि संस्थितं-किमाकारं प्रज्ञप्तम् ? भगवानाह-'गोयमा ! हे गौतम ! 'समचउरंससंठाणसंठिए पणते' समचतुरस्रसंस्थानसंस्थितम्-समं चतुरस्रम्-चतस्रोऽस्रयो यस्य तत् समचतुरस्रं तव तत् संस्थानचेति समचतुरस्रसंस्थानम् तेन संस्थितम्-व्यवस्थित प्रज्ञप्तम्, गौतमः पृच्छति'आहारगसरीरस्स भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ?' हे भदन्त ! आहारकशरीरस्य खल किं महालया-कियद् विस्तारा शरीरावगाहना प्रज्ञप्ता ? भगवानाह-'गोयमा!' हे गौतम ! 'जहण्णेणं देसूणा रयणी, उकोसेणं पडिपुण्णा रयणी' जघन्येन देशोनारत्नि:किश्चिन्यूनहस्तः, उत्कृष्टेन परिपूर्णारत्निः-एकोहम्तः शरीरावगाहना प्रज्ञप्तेतिभावः।।.७॥ ॥ तैजसशरीरवक्तव्यता ॥ मूलम्-तेयगसरीरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-एगिदिय तेयगसरीरे जाव पंचिदिय तेयगसरीरे एगिदिय तेयगसरीरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-पुढविकाइय एगिदिय तेयगसरीरे जाव वणस्सइकाइय एगिदिय तेयगसरीरे, एवं जहा ओरालियसरीरस्स भेदो भणियो तहा तेयगस्स वि जाव चउरिदियाणं, पंबिंदियतेयगसरीरेणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-नेरइय तेयगसरीरे जाव देवतेयगसरीरे, नेरइयाणं दुग पो भेदो भाणियव्वो, जहा वेउन्वियः भूमि के गर्भज मनुष्य का आहार कशरीर नहीं होता। श्री गौतमस्वामी-हे भगवन् ! आहारकशरीर किस आकार का कहा हैं? भगवान्-हे गौतम ! आहारकशरीर समचतुरस्र संस्थान वाला कहा गया है। अ गौतमस्वामी-हे भगवन् ! आहारकशरीर की अवगाहना कितनी बडी की कही गई है? भगवान्-हे गौतम ! आहारकशरीर की अवगाहना जघन्य कुछ कम एक हाथ की और उत्कृष्ट पूरे एक हाथ की कही गई है।सू० ७॥ શ્રીગૌતમ સ્વામી-હે ભગવન્આહારકશરીર કેવા આકારના કહ્યા છે? શ્રીભગવન–હે ગૌતમ ! આહારકશરીર સમચતુરસ સંસ્થાનવાળાં કહેલાં છે. શ્રીગૌતમ સ્વામી–હે ભગવન્! આહારકશરીરની અવગાહના કેટલી મેટી કહેવાયેલી છે? શ્રી ભગવાન હે ગૌતમ! આહારકશરીરની અવગાહના જઘન્ય કાંઈક એાછા એક હાથની અને ઉત્કૃષ્ટ પૂરા એક હાથની કહી છે, જે સૂવે છે ! प्र०९६ श्री प्रापन सूत्र:४

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