Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 766
________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद २१ सू० ७ आहारकशरीरनिरूपणम् ७५३ अमणूस आहारगसरीरे' मनुष्याहारकशरीरं भवति नो अमनुष्याहारकशरीरं भवति, गौतमः पृच्छति - 'जइ मणूस आहारगसरीरे किं संमुच्छिममणूस आहारगसरीरे, गन्मवकंतियमणूसआहारगसरीरे ? यदि मनुष्याहारकशरीरं भवति तत् किं संमूच्छिममनुष्याहार कशरीरं भवति ? किंवा गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरं भवति ? भगवानाह - 'गोयमा !' हे गौतम ! 'नो संमुच्छिममणूस आहारगसरीरे, गन्भवकंतिय मणूस आहारगसरीरे' नो संमूच्छिममनुव्याहारशरीरं भवति, अपितु गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरं भवति, गौतमः पृच्छतिका निरूपण किया जाता है श्री गौतमस्वामी - हे भगवन् ! आहारकशरीर कितने प्रकार का कहा है ? भगवान् हे गौतम! आहारकशरीर एक ही प्रकार का कहा गया है । श्री गौतमस्वामी - हे भगवन् ! यदि एक ही प्रकार का है तो वह क्या मनुष्य का आहार कशरीर होता है अथवा अमनुष्य अर्थात् मनुष्येतर जीवों का आहार कशरीर होता है, भगवान - हे गौतम! मनुष्य का ओहारकशरीर होता है, मनुष्येतर का आहारकशरीर नहीं होता ! श्रीस्वामी - हे भगवन् ! यदि मनुष्य का आहारकशरीर होता है तो क्यासंमूर्छिम मनुष्य का आहारकशरीर होता हैं या गर्भज मनुष्य का आहारक शरीर होता है ? भगवान हे गौतम! मूर्छिम मनुष्य का आहारकशरीर नहीं होता किन्तु गर्भज मनुष्य का आहारकशरीर होता है । श्रीगौतमस्वामी - भगवन् ! यदि गर्भज मनुष्य का आहारकशरीर होता है। तो क्या कर्मभूमि के गर्भज मनुष्य का होता है, या अकर्मभूमि के गर्भज मनुष्य का होता है अथवा अन्तरद्वीप के गर्भज मनुष्य का होता है ? કરેલુ છે. હવે આહારકશરીરના ભેદ, સસ્થાન અને અવગાહનાનુ નિરૂપણ કરાય છેશ્રીગૌતમસ્વામી-હે ભગવન્ ! આહારકશરીર કેટલા પ્રકારના કહ્યાં છે ? શ્રીભગવત્ હે ગૌતમ ! આહારશરીર એકજ પ્રકારના કહ્યાં છે. શ્રીગૌતમસ્વામી-હે ભગવન્ ! જો એકજ પ્રકારના છે તે તે શું મનુષ્યના આહારકશરીર હાય છે અથવા અમનુષ્ય અર્થાત્ મનુષ્યેતર જીવાના આહારકશરીર હાય છે ? શ્રીભગવાન-હે ગૌતમ ! મનુષ્યના આહારકશરીર હાય છે, મનુષ્યેતરના આહારક શરીર નથી હેતાં. શ્રીગૌતમસ્વામી-હે ભગવન્! જો મનુ'યના અહારકશરીર હાય છે તે સમૂમિ મનુષ્યના આહારશરીર હાય છે અગર ગજ મનુષ્યના આહારશરીર હાય છે ? શ્રી ભગવાન્-ઢે ગૌતમ! સમૂમિ મનુષ્યના આહારશરીર નથી હાતા, કિન્તુ ગજ મનુષ્યના આહારકશરીર હાય છે. प्र० ९५ श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४

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