Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 743
________________ ७३० - -- % CELE - - - -- प्रज्ञापनाचे भवधारणीया शरीरावगाहना भवति सा जघन्येन अङ्गुलस्यासंख्येयभागमात्रम् उत्कृष्टेन सप्त रत्नयोऽवसेया, 'तत्थ णं जा सा उत्तरवेउब्बिया सा जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उकोसेणं जोयणसयप्तहस्सं तत्र खलु-भवधारणीयोत्तरक्रियामध्येयाऽसौ उत्तरवैक्रिया शरीरावगाहना उक्ता सा जघन्येन अङ्गुलस्य संख्येयभागमात्रम्, उत्कृष्टेन योजनशतसहस्रं-लक्षयोजनम् यावद् अवगन्तव्या, 'एवं जाव थणियकुमारागं' एवम्-अनुरकुमारोक्तरीत्या यावत्नागकुमारसुवर्णकाराग्निकुमार विद्युत्कुमारोदधिकुमारद्वीपकुमार दिक्कुमार पानकुमारस्त नितकुमाराणामपि भवधारणीया, उत्तरवैक्रिया च शरीरावगाहना प्रज्ञप्ता, तत्र भवधारणीया शरीरावगाहना जघन्येन अङ्गुलस्यासंख्येयभागमात्रम्, उत्कृष्टेन सप्तरत्नयः, उत्तरवैक्रिया तु जघन्येन अगुलस्य संख्येयभागमात्रम्, उत्कृष्टेन योजनशतसहस्रम् अवसे येति भावः, 'एवं ओहियाणं वाणमंतराण' एवम्-असुरकुमारादीनामिव औधिकानाम्-समुच्चयानां वानव्यन्तराणामपिभवधारणीया उत्तरवैक्रियां च शरीरावगाहना प्रज्ञप्ता तत्र भवधारणीया जघन्येन अङ्गुलस्या संख्येयभागमात्रम्, उत्कृष्टेन सप्तरत्नयः, उत्तरवैक्रिया शरीरावगाहना तु जघन्येन अङ्गुलस्यअसंख्यातवे भाग की है और उत्कृष्ट सात हाथ की होती है। और जो उत्तरवैक्रिय अवगाहना है, वह जघन्य अंगुल के संख्यातवे भाग की तथा उत्कृष्ट एक लाख योजन की कही गई है। इसी प्रकार नागकुमार, सुवर्णकुमार, अग्निकुमार, विद्युत्कुमार, उदधिकुमार, द्वीपकुमार, दिक्कुमार, पवनकुमार और स्तनित कुमार भवनवासी देवों की भी भवधारणीय और उत्तर वैक्रिय शरीरावगाहना कही गई है। उनमें से अवधारणीय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्याकवे भाग की और उस्कृष्ट सात हाथ की होती है । उत्तरवैक्रिय अवगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट एक लाख योजन की जाननी चाहिए। असुरकुमार अदि के समान समुच्चय वानव्यन्तरों की भी-अवगाहना दो प्रकार की है-भवधारणीय और उत्तर वैक्रिय । इनमें जो भवधारणीय अवगाहना है, वह जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट सात हाथ હાથની હોય છે. અને જે ઉત્તરક્રિય અવગાહના છે, તે જઘન્ય આંગળના સંખ્યામાં ભાગની તથા ઉત્કૃષ્ટ એક લાખ જનની કહેલી છે. એ જ પ્રકારે નાગકુમાર, સુવર્ણકુમાર, અગ્નિકુમાર, વિઘુકુમાર, ઉદધિકુમાર, દ્વીપકુમાર દિકુમાર, પવનકુમાર, અને સ્વનિતકુમાર, ભવનવાસી દેવેની પણ ભવધારણીય અને ઉત્તરકિય શરીરવગાહના કહેલી છે. તેઓમાંથી ભવધારણીય શરીરવગાહના જઘન્ય આંગળના અસંખ્યાતમા ભાગની અને ઉકષ્ટ સાત હાથની હોય છે. ઉત્તરક્રિય અવગાહના જઘન્ય આંગળના સંખ્યામાં ભાગની અને ઉત્કૃષ્ટ એકલાખ જનની જાગવી જોઈએ. અસુરકુમાર આદિના સમાન સમુચ્ચય વાનચન્તરની પણ-અવગાહના બે પ્રકારની છે-ભવધારણીય અને ઉત્તવૈક્રિય. તેમાં જે ભવધારણીય અવગાહના છે, તે જઘન્ય આંગ श्री. प्रशान। सूत्र:४

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