Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका पद २० सू० ५ पृथ्वीकायायुद्वर्तननिरूपणम्
५२९ धर्म लभेत श्रवणतथा ? गौतम ! अस्त्येको लभेत, अस्त्येको नो लभेत, यः खलु भदन्त ! केवलिप्रज्ञप्तं धर्म लभेत श्रवणतया स खलु कैवलिकी बोधि बुध्येत ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, मनुष्यवानव्यन्तरज्योतिष्कवैमानिकेषु पृच्छा, गौतम ! नायमर्थः समर्थः, एवं यथैव तेजस्कायिको निरन्तरम् एवं वायुकायिकोऽपि ॥ सू० ५॥
टीका-अथ पृथिवी कायिकादीन नैरयिकादि चतुर्विंशति दण्डकक्रमेण प्ररूपयितुमाहजोणिएसु उववज्जेजा?) पंचेन्द्रिय तिर्थचों में उत्पन्न होता है, (गोयमा ! अत्थेगइए उववज्जेज्जा, अत्थेगइए णो उववज्जेजा) हे गौतम! कोई-कोई उत्पन्न होता है, कोई-कोई नहीं उत्पन्न होता (जे णं भंते ! उववज्जेजा) हे भगवन् ! जो उत्पन्न होता है (से णं केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेजा सवणयाए) वह केवलिप्ररूपित धर्म का श्रमण प्राप्त करता है ? (गोयमा! अत्थेगहए लभेजा, णोलभेजा) हे गौतम ! कोई प्राप्त करता है, कोई प्राप्त नहीं करता ? (जे णं भंते केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेजा सबणयाए) हे भगवन् ! जो केवलिपरूपित धर्म का श्रवण प्राप्त करता है (से णं केवलिं बाहिं बुज्झेजा ?) वह क्या केवली- बाधि को बूझता है ? (गोयमा! णो इणढे समठे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं
(मणुस्सवाणमंतर जोइसियवेमाणिएसु पुच्छा?) मनुष्य, वानव्यन्तर, ज्योति एक और वैमानिकों संबंधी पृच्छा ? (गोयमा ! णो इणटूटे समठे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं (एवं जहेव तेउकाईए निरंतरं एवं वाउकाइए वि) इस प्रकार जैसा तेजस्कायिक कहा, निरन्तर वैसा ही वायुकायिक भी कहलेना चाहिए।
टीकार्थ-अब पृथ्वीकाय आदि की चौवीस दण्डकों के क्रम से प्ररूपणा की जोणिएसु उत्रज्जेज्जा) येन्द्रिय तिय यामा अत्पन्न थाय छ ? (गोयमा ! अत्थेगहए उबवज्जेज्जा, अत्थेगइए णो उववज्जेज्जा) गौतम ! -4-थाय है, नथी उत्पन्न यता (से णं केवलि पण्णतं धम्मं लभेज्जा सवणयाए) ते ३ala ५३पित धमनु श्रव प्राप्त ४२ छ ? (गोयमा ! अत्थेगइयए लभेज्जा, अत्थेगइए नो लभेज्जा) है गौतम! 15 प्राप्त ४२ छ, प्रात नथी ४२॥ १ (जेणं भंते ! केवलिपण्णत्तं धम्म सवणयाए लभेज्जा) ३ मावन् ! २३ प्र३पित यमन श्रव प्राप्त ४२ छे (से णं केवलि बोहिं बुज्झेज्जा ?) ते शु सी माधिन त छ (गोयमा ! णो इणढे समट्टे) गौतम ! આ અર્થ સમર્થ નથી.
(मणुस्स वाणमंतरजोइसिय वेमाणिएसु पुच्छा ?) मनुष्य, पानव्यन्त२, न्याति भने मानिछ। समन्धी २७॥ ? (गोयमा ! णो इणद्वे समढे) गौतम! 0 मय समय नथी (एवं जहेव तेउस्काइए मिरंतरं एवं वाउकाइए वि) 2०४ ॥२ ते य रेवा નિરન્તર તેવા જ વાયુકાયિક કહેવા જોઈએ.
ટીકાથ-હવે પૃથ્વીકાય આદ્ધિની દેવીસ દંડના કમથી પ્રરૂપણ કરાય છેप्र०६७
श्री प्रशाना सूत्र:४