Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 670
________________ प्रमेयबाधिनी टीका पद २१ सू० ४ वैक्रियशरीरभेदनिरूपणम् प्रज्ञप्ता, संमुच्छिमाणं जहणेणं उक्कोसेणं अंगुलस्त असंखेज्जइभाग' संमूच्छिमानां मनुष्याणां जघन्येन उत्कृष्टेन चालस्यासंख्येयभागमात्रम् औदारिकशरीरावगाहनाऽवसेया, 'गम्भवक्कंतियाण पज्जत्ताण य जहणेणं अंगुलस्त असंखेइभागं, उकोसेणं तिण्णि गाउयाई' गर्भव्युत्क्रान्तिकानां तत् पर्यापानाञ्च मनुष्याणामौदारिकशरीरावगाहना जघन्येन अङ्गुलस्या संख्येयभागमात्रम्, उत्कृष्टेन त्रीणि गव्यूतानि अब सेया,” || सू० ३ ॥ ॥ वैक्रियशरीरवक्तव्यता ॥ मूलम्-वेउव्वियसरीरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-एगिदियवेउब्धियसरीरे य पंचिंदियवेउव्वियसरीरे य, जइ एगिदिय वे उव्वियसरीरे किं वाउकाइय एगिदिय वेउब्वियसरीरे, अवाउकाइयएगिदियवेब्वियसरीरे ? गोयमा ! वाउकाइयएगिदिय वेउब्वियसरीरे नो अबाउकाइया एिंदियवेउब्बियसरीरे, जइ वाउकाइय वेउव्वियसरीरे किं सुहुमवाउक्काइय वेउव्वियसरीरे, बायरवाउक्काइय वेउव्वियसरीरे ? गोयमा ! नो सुहुम वाउकाइयएगिदियवेउव्वियसरीरे बायरवाउक्काइयएगिदिय वेउव्वियसरीरे, जइ बायरवाउकाइय एगिदिय वेउव्वियसरीरे किं पजत्तगबायरवाउकाइय एगिदिय वेउव्वियसरीरे, अपज्जत्तगबायरवाउकाइय एगिदिय वेउब्वियप्तरोरे ? गोयमा ! पजत्तगबायरवाउकाइय एगिदियवेउब्वियसरीरे, नो अपज्जत्तगबायरवाउक्काइय एगिदिय वेउव्वियसरीरे, जइ पंचिंदियवेउव्वियसरीरे किं नेरइय पंचिदिय वेउब्वियसरीरे ? जाब किं देवपंचिंदियवेउव्वियसरीरे गोयमा ! अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग की समझनी चाहिए। संमूर्छिम मनुष्यां के औदारिकशरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यात भाग की होती है। गर्भज मनुष्यों के तथा पर्याप्त गर्भज मनुष्यों के औदारिक शरीर की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट तीन गव्यूति की समझनी चाहिए ॥सू०३।। અંગુલના અસંખ્યાતમા ભાગની સમજવી જોઇએ. મૂછિમ મનુષ્યના ઔદારિક શરીરની અવગાહના જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ અંગુલના અસંખ્યાતમા ભાગની હોય છે. ગર્ભજ મનુષ્યના તથા પર્યાપ્ત ગર્ભજ મનુષ્યના ઔદારિક શરીરની જઘન્ય અવગાહના અંગુલના અસંખ્યાતમા ભાગની અને ઉત્કૃષ્ટ ત્રણ ગભૂતિની સમજવી જોઈએ. પ્રસૂ૦૩ प्र० ८३ श्री प्रशान॥ सूत्र :४

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