Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका पद २० सू० ७ तीर्थंकरोत्पादनिरूपणम्
५५१ गौतम ! नायमर्थः समयः, केवलिप्रज्ञप्तं धर्म लभेत श्रवणतया, एवं वायुकायिकोऽपि, वनस्पतिकायिकः खलु पृच्छा, गौतम ! नायमर्थः समर्थः, अन्तक्रिया पुनः कुर्यात्, द्वीन्द्रियत्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियः खलु पृच्छा, गौतम ! नायमर्थः समर्थः, मनःपर्यवज्ञानमुत्पादयेत्, पञ्चे न्द्रियतिर्यग्यो निक मनुष्य वानव्यन्तर ज्योतिष्काः खलु पृच्छा, गौतम ! नायमर्थः समर्थः, अन्तक्रि गं पुनःकुर्यात्, सौधमगदेवः खलु भदन्त ! अनन्तरं व्यवं च्युस्खा तीर्थ करत्वं लभेत ? होता है (तित्थगरतं लभेजा ?) तीर्थकरत्व प्राप्त करता है ? (णो इणटूठे समठे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं हैं (केवलि पण्णत्तं धम्मं लभेजा मवणयाए।) केवली द्वारा प्ररूपित धर्म का श्रवण प्राप्त करता है (एवं वाउकाइए वि) इसी प्रकार वायुकायिक भी (वणस्सइकाइए णं पुच्छा ?) वनस्पतिकायिक संबंधी पश्न (गोयमा ! णो इणटूठे समठे) हे गोतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं (अंतकिरियं पुण करेजा) किन्तु अन्तक्रिया करता है (बेइंदिय तेइंदिय चउरिदिए णं पुच्छा १) हीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय संबंधी प्रश्न ? (गोयमा ! णो इणहे समढे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं (मणपज्जवनाणं उप्पाडेजा) मनःपर्यवज्ञान प्राप्त करता है। _ (पंचिंदियतिरिक्वजोणियमणूसवाणमंतरजोइमिए गं पुच्छा ?) पंचेन्द्रिय तिर्यच, मनुष्य, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क संबंधी प्रश्न ? (गोयमा । णो इण: समढे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं (अंतकिरियं पुण करेजा) अन्तक्रिया तो करता है।
(सोहम्मगदेवेणं भंते ! अणंतरं चयं चइत्ता) हे भगवन ! सौधर्म कल्प का देन अनन्तर चय करके (तिस्थगरत्तं लभेजा) तीर्थकरत्व का लाभ करता है? (गोयमा ! अत्थेगइए लभेजा, अत्थेगइए नो लभेजा) हे गौतम ! कोई लाभ ती ४२ वम प्रात ४२ छ ? (णो इण सम ) हे गौतम ! स मय समय नया (केलिपग्णत्तं धम्मं लभेज्जा सबणयाए) वणी द्वारा प्र३५त भनु श्रप प्रात रे छ (एवं वाउकाइए वि) मे०४ ४ारे वायुय: ५ (वणस्सइकाइएणं पुच्छा ?) वनस्पति
43 समधी प्रश्न ? (गोयमा ! णो इणटे समटे) 3 गौतम ! 24t Aथ साथ नथी (मणपज्जवनाणं उप्पाडेज्जा) भन:५वज्ञान प्रात ४२ छ
(पंचिंदियतिरिक्खजोणिय मणूस वाणमंतरजोइसिए णं पुच्छा ?) पयन्द्रिय तिय"य, भनुष्य, पानयन्त२, ज्योति सधी प्रश्न १ (गोयमा ! णो इणटे समढे) 3 गौतम ! २॥ अर्थ समर्थ नथी (अंतकिरिय पुण करेज्जा) सन्ततिा ४२ छे
(सोहम्मगदेवेणं भंते ! अणंतर चयं चइत्ता) भावन् ! सोध'५ना व अनन्तर यय ४२ (तित्थगरत्तं लभेज्जा) ती ४२त्वन मास ४२ छ १ (गोयमा ! अत्थेगइए लभेज्जा अत्थेगइए नो लभेज्जा) गौतम ! | दाम ४२ छ, 5 साल नयी ७२ता (एवं जहा
श्री. प्रशान। सूत्र:४