Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयोधिनी टोका पद १८ सू० १६ अंतक्रियापदनिरूपणम्
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त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिया नो अनन्तरागता अन्तक्रियां प्रकुर्वन्ति, परम्परागता अन्तक्रियां प्रकुर्वन्ति, शेषा अनन्तरागता अपि अन्तक्रियां प्रकुर्वन्ति परम्परागता अपि अन्तक्रियां प्रकुर्वन्ति । सू० १ ॥
टीका - अथान्तक्रियां प्ररूपयितुमाह- 'जीवेणं भंते ! अंत किरियं करेज्जा ?" हे भदन्त ! जीवः खलु किम् अन्तक्रियाम् - अन्तस्व-अवसानस्य - कर्मणां पर्यवसानस्येत्यर्थः क्रियाकरणम् अन्तक्रिया-कर्मान्तकरणम् - मोक्ष इतिभावः, तथा चोक्तम्- ' कृत्स्नकर्मक्षयान्मोक्षः' इति, ताम्-अन्तक्रियां कुर्यात् ? भगवानाह - 'गोयमा !' हे गौतम ! 'अत्थेगइए करेज्जा, अत्थे णो करेना' अस्त्येकः कश्विज्जीवः अन्तक्रियां कुर्यात्, अस्त्येकः कश्चिद् अन्तक्रियां नो कुर्यात्, तथा च यस्तथाविध भव्यत्वपरिपाकवशात् मनुष्यत्वादिरूपाम् सम्पूर्णां सामग्रीमुपलभ्य तत्सामर्थ्याभिव्यक्तातिप्रबलवीर्योल्लासवशेन क्षपकश्रणी समारोहणेन केवअन्तक्रिया करते हैं (तेउ वाउ बेइंदियतेइंदिय चउरिंदिया णो अनंतरागया अंतकिरिये पकरेति, परंपरागया अंतकिरियं पकरेंति) : तेजस्कायिक, वायुकायिक, दीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रि अनन्तरागत अन्तक्रिया नहीं करते, परम्परागत अन्तक्रिया करते हैं (सेसा अनंतरागया वि अंतकिरियं पकरेति, परंपरागया वि अंत किरियं पकरेति शेष अनन्तरागत भी अन्तक्रिया करते हैं, परम्परागत भी अन्तक्रिया करते हैं
अब अन्तक्रिया का निरूपण किया जाता है
टीकार्थ- गौतमस्वामी - हे भगवन् ! क्या जीव अन्तक्रिया करता है ? यहां अन्तक्रिया का अर्थ है-कर्मों का अन्त करना अर्थात् मुक्ति प्राप्त करना । कहा भी है समस्त कर्मों के क्षय से मोक्ष होता है ।
भगवान् उत्तर देते हैं- हे गौतम ! कोई जीव अन्तक्रिया करता है, कोई नहीं करता है। जो जीव भव्यस्व भाव के परिपाक से मनुष्यत्व आदि सम्पूर्ण पर ंपरागत पशु अन्तड़िया रे छे (तेउवाउ बेइंदिय तेइंदिय चउरिंदिया णोअनंतरागया अंतकिरियं पकरेति परंपरागया अंत किरियं पकरे ति) ते०४२हायि, वायुप्रायिष्ठ, द्वीन्द्रिय, ત્રીન્દ્રિય, ચતુરિન્દ્રિય, અનન્તરાગત, અન્તક્રિયા નથી કરતા, પર’પરાગત અન્ત્રક્રિયા કરે છે ( सेसा अनंतरागया अंतरियं पकरेंति, परंपरागया वि अंतकिरियं पकरेति ) शेष मनન્તરાગત પણ અતક્રિયા કરે છે, પરંપરાગત પણ અન્તક્રિયા કરે છે.
ટીકા-અન્તક્રિયાનું નિરૂપણ કરાય છે—
શ્રી ગૌતમસ્વામી-હે ભગવન્ ! શું જીવ અન્તક્રિયા કરે છે? અહીં અન્તક્રિયાને અ છે-કર્મીના અંત કરવા અર્થાત્ મુક્તિ પ્રાપ્ત કરવી, કહ્યું પણ છે
સમસ્ત કર્મના ક્ષયથી મેક્ષ થાય છે.’
શ્રી ભગવાન્-ઉત્તર આપે છે... ગૌતમ ! કોઇ જીવ અન્તક્રિયાં કરે છે, કોઇ નથી કરતા, જે જીવ ભવ્યત્વ ભાવના પરિપાકથી મનુષ્યત્વ આદિ સપૂર્ણ સામગ્રી પ્રાપ્ત કરીને
श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४