Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका पद १८ सू० १६ अंतक्रियापदनिरूपणम्
४८५ कुर्यात् ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, नैरयिकाः खलु भदन्त ! असुरकुमारेषु अन्तक्रियां कुयुः ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, एवं यावद् वैमानिकेषु, नवरं मनुष्येषु अन्तक्रिया कयु. रिति पृच्छा, गौतम ! अस्त्ये के कुर्युः, अस्त्ये के नो कुर्युः, एवम् असुरकुमारा यावद् वैमानिकाः, एवमेव चतुर्विंशति श्चतुर्विशतिर्दण्डका भवन्ति, नैरपिकाः खलु भदन्त ! किम् अन
अन्तक्रियादि वक्तव्यता शब्दार्थ-(जीवेणं भंते ! अंतकिरियं करेजा ?) हे भगवन् ! क्या जीव अन्तक्रिया करता है ? (गोयमा !) हे गौतम ! (अत्थेगईए) कोई (करेजा) करता है (अत्थेगइए णो करेज्जा) कोई नहीं करता है (एवं नेरइए जाव वेमाणिए) इसी प्रकार नारक यावत वैमानिक। __(नेरइए णं भंते ! नेरइएसु अंतकिरियं करेजा?) हे भगवन् ! नारक क्या नारकों में-नरकति में रहता हआ-अन्तक्रिया करता है ? (गोयमा! नो इणढे समडे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है (नेरइया ण भंते ! असुरकुमारेसु अंतकिरियं करेजा ?) हे भगवन् ! क्या नारक असुरकुमारों में अन्तक्रिया करते हैं ? (गोयमा णो इणढे सम?) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है (एवं जाव येमा. णिए) इसी प्रकार यावत् वैमानिक (नवरं) विशेष (मणूसेसु अंतकिरियं करेजत्ति पुच्छा?) मनुष्यों में अन्तक्रिया होती है, ऐसा प्रश्न ? (गोयमा! अत्थेगतिए करेजा, अत्थेगतिए णो करेजा) हे गौतम ! कोई करता है, कोई नहीं करता (एवं असुरकुमारा जाव वेमाणिए) इसी प्रकार असुरकुमार यावत् वैमानिक (एवमेव चवीसं चउवीसं) इसी प्रकार चौवीस-चौवीस (दंडगा भवंति) दंडक होते हैं।
અન્તક્રિયાદિ વક્તવ્યતા शहाथ-(जीवेणं भंते ! अंतकिरियं करेज्जा ?) , मावन् ! शु. ७५ अन्तयिा रे छ ? (गोयमा !) हे गौतम ! (अत्थेगइए) । (करेज्जा) ४३ छ (अत्थेगइए णो करेजा) । नथी ४२ता (एवं नेरइए जाव वेमाणिए) से प्रारे ना२४ यावत् वैमानि४.
(नेरइए णं भंते ! नरइएसु अंतकिरियं करेज्जा १) हे सन् ! ना२४ शुनामांन।२४ गतिमा २हीने-मन्तयिा ७३ छ ? (गोयमा ! णो इणटे समद्वे) हे गौतम ! म मथ समथ नथी (नेरइया णं भो ! असुनकुमारेसु, अन्तकिरियं करेज्जा ?) 3 मापन शु ना२४ मसुमारामा मठिया 3रे छे ? (गोयमा ! णो इणद्वे समडे) हे गौतम ! समय नथी (एवं जाव वेमाणिए) से प्रारे यावत् वैमानि (नवरं) विशेष (मणूसेसु अंतकिरियं करेज्जति पुच्छा ?) भनुध्यामा सन्तठिया थाय छे मेवे। प्रश्न ? (गोयमा ! अत्थेगइए करेज्जा अत्थेगइर णो करेज्जा) गौतम ! १७ ४२ छ, । नथी ४२ता (एवं असुरकुमारा जाव वेमाणिए) मे रे ससु२४भा२ यावत् वैमानि४ (एवमेव चउवीसं चउवीसं) मे म योगी-योवीस (दंडगा भवंति) 33 थाय छे.
श्री प्रशाधना सूत्र:४