Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रमेयबोधिनी टीका पद १८ सू० ४ सूक्ष्मकायादिनिरूपणम् तम् उत्कृष्टेन सागरोपमशतपृथक्त्वं सातिरेकम्, बादरपृथिवीकायिकपर्याप्तकः खलु भदन्त ! बादरपृथिवीकायिकपर्याप्त इति पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहर्तम्, उत्कृष्टेन संख्येयानि वर्षसहस्राणि, एवमकायिकोऽपि, तेजस्कायिकपर्याप्तकः खलु भदन्त ! तेजस्कायिकपर्याप्त इति पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहुर्तम्, उत्कृष्टेन संख्येयानि रात्रिन्द्रियानि, वायुमुहुत्त) हे गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त (उकोसेणं सत्तरि सागरोवम कोडाकोडीओ) उत्कृष्ट सत्तर कोडा कोडी सागरोपम
(बादर तसकाइया णं भंते ! बादतसकाइय त्ति कालओ केवच्चिरं होई ?) हे भगवन् ! बादर त्रसकायिक कितने काल तक बादर त्रसकायिक रहता है ? (गोयमा जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त (उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साई संखेज्जवासमन्भहियाई) उत्कृष्ट संख्यात वर्ष अधिक दो हजार सागरोपम (एतेसिं चेव अपज्जत्तगा सव्वे वि जहण्णेणं उक्कोसेणं अंतो. मुहत्त) इनके अपर्याप्तक सभी जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहत तक __ (बादरपज्जते णं भंते ! बादरपज्जतत्ति पुच्छा) हे भगवन् ! बादर पर्याप्त कितने काल तक यादर पर्याप्त रहता है (ऐसी पृच्छा (गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्त)हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त (उक्कोसेणं सागरोवमसतपुहुत सातिरेगं) उत्कृष्ट कुछ अधिक सौ सागरोपम पृथक्त्व _(बादरपुढविकाइयपज्जत्तए णं भंते ! बादरपुढविकायपज्जत्तए त्ति पुच्छा?) है भगवन् ! बादर पृथ्वीकायिक पर्याप्त कितने काल तक बादर पृथ्वीकायिक पर्याप्त पनेसें रहता है, ऐसी पृच्छा ? (गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्त) हे गौतम! मन्तडूत (उक्कोसेणं सत्तरि सागरोबम कोडाकोडी भो) अकृष्ट सत्तर 31313151 स३१५म.
(बादरतसकाइयाणं भंते ! बादरत सकाइयत्ति कालओ केवच्चिरं होइ') ३ सयन् । मा२43 21 समय सुधी मा४२५Al4: २४ छ ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्त)
न्य मन्तभुत (उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साई संखेज्जवासमब्भहियाई) उत्कृष्ट सन्यात 4ष गधि मे १२ १३१५म (एएसिं चेव अपज्जत्तगा सव्वे वि जहण्णेणं उक्कोसेणं अंतोमुहुत) तमना मयत मा धन्य भने उत्कृष्ट मन्तभुत सुधी.
(बादरपज्जत्तेणं भंते ! बायरपज्जत्तेत्ति पुच्छा ?) माय ! मा६२ ५यात या सुधी मा४२५यात ५९मा २९ छ, मेवी छ। १ (गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं) हे गौतम ! अन्य मन्तभुत (उक्कोसेणं सागरोवम सतपुहुत्तं सातिरेगं) कृष्ट siss मपि सो સાગરોપમ પૃથક.
(बादरपुढविकाइए पज्जत्तएणं भंते ! बादरपुढविकायपज्जत्तएत्ति पुच्छा ?) है भगवन् ! બાદરપૃધીકાયિક પર્યાપ્ત કેટલા કાળ સુધી બાદરપૃથ્વી કાયિક પણામાં રહે છે, એવી પૃચ્છા? (गोयमा ! जहाणे गं अंतोमुत्त) ३ गौतम ! ४५न्य मन्तभुडूत (उक्कोसेणं संखिज्जाई वास
श्री. प्रशान। सूत्र:४