Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका पद १८ १० १० शानद्वारनिकरणम् सपर्यत्रसितः स जघन्येन अन्तमुहर्तम, उत्कृष्टे र अनन्तं कालम्, अनन्ता उत्सपिण्यवसापिण्य: कालतः क्षेत्रतोऽपार्द्ध पद्गलपरिवतों देशोनः, विभङ्गज्ञानी खलु भदन्त ! पृच्छा, गौतम ! जघन्येन एक समयम, उत्कृष्टेन त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाणि देशोन पूर्वकोटयभ्यधिकानि, द्वारम् १० ॥ सू०१० ॥ __टीका-पूर्व सम्यक्त्वद्वारं प्ररूपितम् अथ दशमं ज्ञानद्वार प्ररूपयितमाह-'णाणी णं भंते ! णाणि त्ति कालओ केचिरं होइ ?' हे भदन्त ! ज्ञानी खलु 'ज्ञानी' इति-ज्ञ नित्वपर्या विशिष्टः सन् कालत:-कालापेक्षया कियचिरं-कियत्कालपर्यन्तम् अव्यवच्छेदेन भवति-आतिष्ठते ? भगवानाह-'गोयमा !' हे गौतम ! 'णाणी दुविहे पण्णत्ते' ज्ञानी द्विविधः वसिए) और सादि सान्त (तत्थ णं जे से सादीए सपज्जवसिए) उनमें जो सादि सान्त है (से ) वह (जहण्णेणं अंतोमुहत्तं) जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक (उक्कोसेणं अणं तं कालं) उत्कृष्ट अनन्त काल तक (अणंताओ उस्सप्पिणि ओसप्पिणीओ) अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणियां (कालओ) काल से (खेत्तओ अवडूढं पोग्गलपरिय8 देसूर्ण) क्षेत्र से देशोन अपार्ध पुदलपरिवर्तन (विभंगनाणी णं भंते ! पुच्छा?) विभंगज्ञानी केविषय में भगवन् पृच्छा ? (गोयमा! जहण्णेगं एगं समय) हे गौतम ! जघन्य एक समय (उकोसेगं तेत्तीसं सागरोवमाई) उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम (देसूणाए पुब्धकोडीए अन्भहियाई) देशोन करोड पूर्व अधिक द्वार १०
टीकाथ-इससे पूर्व सम्परत्व द्वार की प्ररूपणा की गई, अब ऋम के अनु. सार दस वें ज्ञानद्वार की प्ररूपणा की जाती हैं।
गौतमस्वामी- हे भगवन् ! ज्ञानी जीव कितने काल तक ज्ञानी बना रहता है
भगवान्-हे गौतम! ज्ञानी जीव दो प्रकार के कहे हैं वे इस प्रकार हैं-सादि अपर्यवसित और सादि सपर्यवसित । जिप्स जीव को सम्यग्ज्ञान उत्पन्न होने (सादीए वा सपज्जवसिए) भने साहिसान्त (तत्थणं जे से सादीए सपज्जवसिए) तारे साहसान्त छ (से) ते (जहण्णेणं अंतोमुहुतं) ४३न्य मन्तभुत सुधी (उक्कोसेणं अणतं कालं) 6ष्ट मन-18 सुधी (अणंताओ उस्स प्पिणिओ सप्पिणि भो) 1 Grallel १. सपिया (कालओ) ४थी (खेत्तओ अवडूढ पोग्गलपरियह देसूणं) क्षेत्रकी शान साधना ५२वत (विभंगनाणीगं भंते ! पुच्छा ')
विज्ञानी साथी भगवन् ! छ। ? (गोयमा ! जहण्णेणं एगं समय) भीम ! न्य से समय (उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई) १e तीस साग।५म (देसूणाए पुव्वकोडीए अमहियाई) शान ४२.३५१ म४ि. (द्वा२ १०)
ટીકાર્ય–આનાથી પહેલાં સમ્યક વદ્વારની પ્રરૂપણ કરાઈ, હવે ક્રમાનુસાર દશમા જ્ઞાનદ્વારની પ્રરૂપણ કરાય છે
શ્રી ગૌતમસ્વામી–હે ભગવન ! જ્ઞાની જવ કેટલા કાળ સુધી જ્ઞાની પણામાં બની રહે છે?
શ્રી ભગવાન-હે ગૌતમ! જ્ઞાની છવ બે પ્રકારના કહ્યા છે, તે આ પ્રકારે છે. સાદિ અપર્યાવસિત અને સાદિ સપર્યવસિત જે જીવને સમ્ય જ્ઞાન ઉત્પનન થયા પછી તે
श्री. प्रशान। सूत्र:४