Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका पद १८ सू० ३ कायद्वारनिरूपणम् पृथक्त्यम्-सातिरेकम्, पृथिवीकायिकः पर्याप्तकः पृच्छा ? गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम् उत्कृष्टेन संख्येयानि वर्षसहस्राणि, एवम् अप्कायिकोऽपि, तेजस्कायिकः पर्याप्तकः पृच्छा ? गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन संख्येयानि रात्रिन्दिवानि, वायुकायिकः पर्याप्तः खल पृच्छा ? गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन संख्येयानि वर्षसहस्राणि, वनस्पतिकायिकः पर्याप्तकः पृच्छा ? गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन संख्येयानि वर्षसहस्राणि, त्रसकायिकः पर्याप्तकः पृच्छा ? गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन साग रोपमशतपृथक्त्वं सातिरेकम्, द्वारम् ४ ॥ सू० ३॥ ____टीका-पूर्वम् इन्द्रियद्वारमधिकृत्य कायस्थितिः प्ररूपिता, अथ सम्प्रति चतुर्थ कायद्वारमधिकृत्य कायस्थिति प्ररूपयितुमाह-'सकाइएणं भंते ! सकाइएत्ति काल भो केवच्चिरं होइ !'
(पुढविकाइए पज्जत्तए पुच्छा ?) पृथ्वीकायिक पर्याप्तक संबंधी प्रश्न ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं वाससहस्साई) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्ष (एवं आउए वि) इसी प्रकार अप्कायिक भी (तेउकाइए पज्जत्तए पुच्छा ?) तेजस्कायिक पर्याप्तक के विषयमें प्रश्न ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त (उक्कोसेणं संखेज्जाई वाससहस्साई) उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्ष (वणस्सइकाइय पज्जत्तए पुच्छा ?) वनस्पतिकायिक पर्याप्त के संबंध में प्रश्न ? (गोयमा! जहण्णेणं अंतो मुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाई चाससहस्साई) जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्ष (तसकाइयपज्जत्तए पुच्छा ?) त्रसकायिक पर्याप्त संबंधी प्रश्न ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहतं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं सातिरेगं) हे गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त, उत्कृष्ट पृथक्त्व सौ सागरोपम से कुछ अधिक द्वार ४ ___टीकार्थ-इससे पहले इन्द्रिय द्वार को लेकर कायस्थिति की प्ररूपणा की गई
(पुढवीकाइए पज्जत्तए पुच्छा ?) पृथ्वीय४ पर्याप्त समधी प्रश्न (गोयमा ! जपणेण अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं संखेज्जाई वाससहस्साइं) गौतम! धन्यथी मतभुत भने उत्कृष्ट संज्यात १२ वर्ष (एवं आउएवि) मे ते याना प्रभारी २५५४५४ना स भा ५९ समनपु. (तेउकाइए पज्जत्तए पुच्छा ?) पर्याप्त समयमा प्रश्न (गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्त) हे गौतम ! धन्यथी मतभुडूत (उक्कोसेणं संखेज्जाई वाससहस्साई) अष्टथी सभ्यात २ वर्ष (वणस्सइकाइय पज्जत्तए पुच्छा ?) पन२५तिथि पन्त समधी प्रश्न छ. (गोयमा ! जपणेणं अंतोमुहुत्तं छक्कोसेणं संखेज्जाई वाससहस्साई) : गौतम ! धन्यथी मतभुत मने उत्कृष्टया सभ्यात १२ वर्ष (तसकाइय पज्जत्तए पुच्छा ?) १४५४ पति समधी प्रश्न छे. (गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहुत्तं सातिरेग) है गौतम ! धन्यथा અન્તર્મુહૂર્ત અને ઉત્કૃષ્ટ સાગરેપમ શતપૃથફત્વથી કંઈક વધારે. (દ્વાર ૪)
ટીકાર્ય–આનાથી પહેલાં ઈન્દ્રિયકારને લઈને કાયસ્થિતિની પ્રરૂપણ કરવામાં આવેલ
श्री प्रज्ञापन। सूत्र:४