Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका पद १८ सू० १ जीवादिकायस्थिति निरूपणम्
३३३ भवति ? गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम् उत्कृष्टेन त्रीणि पल्योपमानि अतर्मुहूोंनानि, एवं तिर्यग्योनिकी पर्याप्तिकाऽपि, एवं मनुष्योऽपि, मनुष्यपि, एक्श्चैव, देवपर्याप्तको यथा नैरयिकप्रर्याप्तकः, देवी पर्याप्तिका खलु भदन्त ! देवीपर्याप्तिका इति कालतः कियचिरं भवति ? गौतम ! जघन्येन दशवर्ष पहस्राणि अन्तमहत्तों नानि, उत्कृष्टेन पञ्च पञ्चाशत् पल्योपमानि अन्तमुहौनानि ॥ द्वारम् ॥०१॥
टीका-अथ प्रथम सामान्यरूपेण पर्यायेण प्रतिपादितस्य जीवस्याव्यवच्छेदेन भवनरूपउत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तेतीस सागरोपम तक (तिरिक्वजोणिय पज्जत्तए णं भंते ! तिरिक्ख जोणियपज्जत्तए त्तिकालओ केवच्चिरं होइ ?) हे भगवन् ! पर्याप्त तियग्योनिक कितने काल तक पर्याप्त तिर्यग्योनिक रहता है ? (गोयमा ! जह
नेणं अंतोमुहुतं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं अंतोमुहुत्तणाई) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम तक (एवं तिरिक्खजोणिणि पत्तिया वि) इसी प्रकार तिर्यचनी पर्याप्त भी (एवं मणुस्से वि) इसी प्रकार मनुष्य भी (मणुस्सी वि) मनुष्यनी भी (एवं चेय) इसी प्रकार (देवपज्जत्तए जहा नेरइयपज्जत्तए) देव पर्याप्तक जैसा नारक पर्याप्तक (देवीपज्जत्तिया णं भंते ! देवी पजत्तियत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ?) हे भगवन् ! पर्याप्त देवी पर्याप्त देवी पनेमें कितने काल तक रहती है ? (गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई) हे गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष तक (उकासेणं पणयन्नं पलिओवमाइं अंतोमुत्तूणाई) उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पचपन पल्योपम तक द्वार २।।
टोकार्थ-अब सब से पहले सामान्य पर्याय रूप में प्रतिपादित जीव की काय माछ। तेत्रीय सागरा५म सुधा (तिरिक्खजोणिय पज्जत्तएणं भंते ! तरिक्खजोणिय पज्जत्तएत्ति काल भो केवच्चिरहोइ) डे मवान् ! पति तिययोनि खाण सुधी परत तिय योनि २९ छ ? (गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं अंतोमुहु तणाई) 3 गौतम ! धन्य मन्तभुडून सुधी, कृष्ट मन्तभुडूत मेछ। ३ पक्ष्योपम सुधी (एवं तिरिक्खजोणिणि पज्जत्तिया वि) से ४२ तिय"यनी पस्ति ५९ (एवं मणुस्से वि) मे रे मनुष्य ५९१ मणुस्सी वि) भनुष्यनी ५९५ (एवं चेव) मे ५२ (देव पज्जत्तए जहा नेरइयपज्जत्तए) हे पति को ना२४ पास्त (देवी पञ्जत्तिया णं भंते ! देवी पज्जत्तियत्ति कालओ केवच्चिर होई) हे भगवन् ! पति या पर्याप्त वीपाया ३८९॥ ॥ सुधी र छ ? (गोयमा ! जहण्णेण दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई) हे गौतम ! vधन्य मन्तभुत माछा ४श २ वर्ष सुधी (उकोसेणं पणपलिओवमाई अंतोमुहुतणाई) Gre सन्तति मोछ। ५यापन पक्ष्यो५म सुधा बा२. २
श्री. प्रशानसूत्र:४