Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
३३२
प्रज्ञापनास्त्रे भदन्त ! देवी इति कालतः कियचिरं भवति ? गौतम ! जयन्येन दशवर्षसहस्राणि उत्कृष्टेन पश्च पञ्चाशत् पल्योपमानि, सिद्धः खलु भदन्त ! सिद्ध इति कालतः कियच्चिरं भवति ? गौतम ! सादिकः अपर्यकसितः, नैरयिकः खलु भदन्त ! नैरयिकापर्याप्तक इति कालतः किय. चिरं भवति ? गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहृतम्, एवं यावद् देवी अपर्याप्तिका, नैरयिकपर्याप्तकः खलु भदन्त ! नैरयिकपर्याप्तक इतिः कालतः कियच्चिरं भवति ? गौतम ! नधन्येन दशवर्षसहस्राणि अन्तर्मुहत्तीनानि, उत्कृष्टेन त्रयस्त्रिंशत् सागारोपमाणि अन्तर्मुहत्तोंनानि, तिर्यग्योनिकपर्याप्तकः खलु भदन्त ! तिर्यग्योनिक पर्याप्तक इति कालतः किच्चिर भंते ! देवित्ति काल भो केवच्चिरं होइ ?) हे भगवन ! देवी कितने काल तक देवी रहती है? (गोयमा! जहण्णेणं दसवाससहस्साणि) हे गौतम! जघन्य दस हजार वर्ष तक (उकोसेणं पणपन्नं पलिओवमाई) उत्कृष्ट पचपन पल्योपन तक
(सिद्धे णं भंते ! सिद्धे त्ति कालओ केवच्चिरं होइ ?) हे भगवन् ! सिद्ध कितने काल तक सिद्ध रहते हैं ? (गोयमा! सादिए अपज्जयसिए) हे गौतम! सादि अनन्त काल तक (नेरइए णं भंते ! नेरइय अपज्जत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ?) हे भगवन् । नारक अपर्याप्त नारक पने में कितने काल तक रहता है ? (गोयमा ! जहणणेण विउकोसेण वि अंतोमुहुत्त) हे गौतम ! जघन्य से भी, उत्कृष्ट भी अन्तमुहर्त तक (एवं जाव देवी अपजत्तिया) इसी प्रकार यावत् अपर्याप्त देवी (नेरइयपज्जत्तर णं मते ! नेरइयपजत्तए त्ति कालओ केवच्चिरं होइ ?) हे भगवन् पर्याप्त नारक कितने काल तक पर्याप्त नारक रहता है ? (गोषमा! जहण्णेणं दसवाससहस्माइं अंतोमुहुनणाई) हे गौतम ! जघन्य अन्त मुहूर्त कम दस हजार वर्ष तक (उक्को सेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्त गाई) केचच्चिर होइ) 3 भावन् ! यी डेटा सुधी हवी हे छ ? (गोयमा! जहण्णेणं दस पाससहस्साणि) हे गौतम! ४५-५ ६A M२ ५५ सुधा (उक्कोसेणं पणपन्नं पलिओवमाई) ઉત્કૃષ્ટ પંચાવન પલ્યોપમ સુધી.
(सिद्धणं भंते ! सिद्धेत्ति कालओ केवच्चिर होइ ?) हे साप ! सिद्धट सुधी सिद्ध छ ? (गोयमा ! सादिए अपज्जवसिए) हे गौतम ! Ale मन-dsti सुधी.
(नेरइएणं भंते ! नेरइयअपज्जत्तएत्ति कालओ केवच्चिर होइ) हेलावन् ! न॥२४ अ५यात ना२४५९मा मण सुधी रहे छ ? (गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) . गौतम ! धन्यथा ५, Savथी ५ मन्तभुत सुधी (एवं जाव देवी अपज्जत्तिया) यस प्रारं यावत् पर्याप्त हेवी (नेरइए पजत्तएणं भंते ! नेरइए पज्जत्तएत्ति कालओ केवच्चिर होइ ?) हे समपन् ! पर्याप्त ना२४५५ मा ८॥ ॥ सुधी पर्याप्त ना२४ रहे छ ? (गोयमा ! जहण्णेण दम वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तणाई) 3 गौतम ! धन्य मन्तभुत माछ। ६A १ सुधी (उस्कोसेणं तेत्तीस सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तणाई) Grge मन्तत
श्री. प्रशानसूत्र:४