Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रमेयबोधिनी टीका पद १७ स्.०१६ लेश्यापरिणमनिरूपणम्
२११
टीका - अथ सर्वप्रथमं परिणामलक्षणमभिधातुं यासां परिणामोऽभिधित्सित स्ता एव लेश्याः प्ररूपयति- 'कणं भंते ! लेस्साओ पण्णत्ताओ' हे भदन्त ! कति खलु लेश्याः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह - 'गोयमा !" हे गौतम ! 'छल्लेस्साओ पण्णत्ताओ' पडूलेश्याः प्रज्ञप्ताः, 'तं जहाकण्हलेस्सा जाव सुकलेस्सा' तद्यथा - कृष्णलेश्या यावत् नीललेश्या कापोतलेश्या तेजोलेश्या पद्मलेश्या शुक्ललेश्या अत्रेदं बोध्यम् लेश्यायाः पूर्व मुक्तत्वेऽपि परिणामाद्यर्थं प्ररूपणार्थ पुनरुपन्यास इति गौतमः पृच्छति - से नूणं भंते ! कण्हलेस्से नीललेस्सं पप्प ता रूवत्ताए तावण्णत्ता ता गंधत्ताए ता रसत्ताए ता फासत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमइ ?' हे भदन्त !
(से नूणं भंते ! सुक्कलेस्सा) क्या भगवन् ! शुक्ललेश्या (किण्हलेस्सं नीललेस्सं काउलेस्सं तेउलेस्सं पम्हलेस्सं पप्प) कृष्ण, नील, कापोत, तेजो या पद्मलेश्या को प्राप्त होकर (जाव भुज्जो २ परिणमइ ?) यावत् बार-बार परिणत होती है ? (हंता गोयमा ! तं चेच) हां गौतम ! वही वक्तव्यता ॥ सू० १६ ॥
टीकार्थ- अब सर्वप्रथम परिणाम अर्थात् परिणमन (परिवर्तन) का निरूपण किया जाता है, किन्तु जिनके परिणाम का निरूपण करता है, पहले उन लेइयाओं का कथन करते हैं
www
गौतमस्वामी - हे भगवन् ! लेश्याएं कितनी गही गई है ?
भगवान् - हे गौतम! लेश्याएं छह प्रकार की कही गई है, वे इस प्रकार - कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या, तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या । यद्यपि लेश्याओं का निर्देश पहले किया जा चुका है, तथापि परिणाम आदि की प्ररूपणा करने के लिए फिर से उनका निर्देश किया गया है ।
गौतमस्वामी - हे भगवन् ! क्या कृष्णलेश्या, नीललेश्या को प्राप्त होकर अर्थात् परस्पर अवयवों के स्पर्श को पाकर नीललेश्या के स्वरूप में पुनः पुनः
( से नूगं भंते ! सुकलेस्सा) शुडे लगवन् ! शुभ्ससेश्या (किण्हलेस्स नीललेस्स' काउलेस्स उस्स' पम्हलेस पप्प) डूष्णु, नीस, अपोत, तेन अगर पहूभोश्याने प्राप्त थाने (जाव भुज्जो भुज्जो परिणमइ १) यावत् वारंवार परित थाय छे ? (हंता गोयमा ! तंचेव ) हो, गौतम ! तेवतव्यता ॥ सू० १६॥
ટીકા”—હવે સર્વાં પ્રથમ પરિણામ અર્થાત્ પરિણમન્ (પરિવતન)નું નિરૂપણ કરાય છે, પણ જેના પરિણામનું નિરૂપણુ કરવુ છે, પહેલા તે લેશ્યાઓનુ` કથન કરે છે
શ્રી ગૌતમસ્વામી-હે ભગવન્ ! લેશ્યાએ કેટલી કહેલી છે?
श्री भगवान् हे गौतम! उसी छे, ते या प्रकारे - कृष्णुसेश्या, नीससेश्या, आयातલેશ્યા, તેજલેશ્યા, પદ્મમલેશ્યા અને શુકલલેશ્યા યદ્યપિ લેશ્યાએના નિર્દેશ પહેલા કરાઈ ગયેલ છે, છતાં પણ પરિણામ આદિની પ્રરૂપણા કરવા માટે ફરીથી તેમના નિર્દેશ કરેલા છે. શ્રી ગૌતમસ્વામી-હે ભગવન્ ! શુ કૃષ્ણલેશ્યા, નીલલેશ્યાને પ્રાપ્ત થઈને અર્થાત્
श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४