Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका पद १७ स० १६ लेश्यापरिणमन निरूपणम्
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तया भूयो भूयः परिणमति, हन्त, गौतम ! कृष्णलेश्या नीललेश्यां प्राप्य यावत् शुक्ललेश्यां प्राप्य तद्रूपतया तद्गन्धतया तत्स्पर्शतया भूयो भूयः परिणमति, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते - कृष्णलेश्या नीललेश्यां यावत् शुक्ललेश्यां प्राप्य तद्रूपतया यावक भूयो भूयः परिणमति ? गौतम ! तद् यथा नाम वैडूर्यमणिः स्यात् कृष्णसूत्रे वा' नोलख या लोहितसूत्रे वा हारिद्रसूत्रे वा शुक्लसूत्रे वा आगते सति तद्रूपतया यावद् भूयो भूषः
मइ) तद्रूप, तद्वर्ण, तद्गंध, तद्रस, तत्स्पर्श रूप में बार-बार परिणत होती है ? (हंता गोयमा !) हां गौतम ! (कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प) कृष्णलेइया नीललेश्या को प्राप्त होकर (जाव सुक्कलेस्सं पप्प) यावत् शुक्ललेश्या को प्राप्त करके (ता रूयत्ताए ता वण्णत्ताए ता गंधत्ताए ता फासत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणम इ) उसी के रूप, उसी के वर्ण उसी के गंध, उसी के स्पर्श के स्वरूप में बार-बार परिणत होती है।
(सेकेणट्टे भंते ! एवं बुच्चइ) हे भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है (hurलेस्सा नीललेस्सं जाव सुक्कलेस्सं पप्प) कृष्णलेश्या नीललेश्या को यावत् शुक्ललेश्या को प्राप्त होकर (ता रूवत्ताए जाव भुज्जो भुज्जो परिणमइ ?) उसी के रूप में यावत् बार-बार परिणत होती है ? (गोयमा ! से जहा णामए वेरुलिय मणी) हे गौतम! जैसे कोई वैडूर्यमणी (सिया किण्हसुत्तए वा कदाचित् काल सूत में (नीलसुत्तर वा) या नील सूत में (लोहियसुत्तए वा) या लाल सूत में ( हालि सुत्तर वा ) या पीले सूत में (सुकिल्लसुत्तए वा) या इवेत सूत में (आइस समाणे ) पिरोने पर (ता रूवत्ताए) उसी के रूप में (जाव) यावत् (भुज्जो भुज्जो शुसोश्याने प्राप्त पुरीने (ता रुवत्ताए, ता वग्णत्ताए ता गंधत्ताए ता रसत्ताए ता फासताए भुज्जो भुजो परिणम ) ते ३५, तहूवर्णा तद्गंध, तद्दूरस तत्स्पर्श उपमां वारंवार परिशुल थाय छे ? ( हंता गोयमा ! ) डा, गौतम ! ( कण्हलेस्स | नीललेस्स पप्प) प्णुसेश्या नीससेश्याने प्राप्त थन (जाच सुक्कलेस्स पप्प) यावत् शुम्सलेश्याने प्राप्त उरीने (ता रुवत्ताए, ता वण्णत्ताए (ता गंध / ए ता फासत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमइ) तेना ३यो, तेना वर्षा, तेना गंध, तेना સ્પના રૂપમાં વારંવાર પરિણત થાય છે.
(सेकेणणं भंते! एवं वच्चइ) हे अगवन् ! शा हेतुथी ये उपाय छे (कण्हलेस्सा नीललेस्सं जाव सुकलेस्सं पप्प) कृष्णुलेश्या नीससेश्याने यावत् शुभ्झसेश्य (तारूपवाए जान जो गुज्जो परेजमइ ?) ४३ श्रवत् वार' छे ? (गोयमा ! से जहानामर वेरुलियमणी ) हे गोतम ! मेरा अर्थ वैडूर्य सुत्तए वा) हायि अणा सूत्रभां (नीलमुत्तए वा ) अगर नीझ सूत्रभ अथवा सात सूत्रमां (हालिदसुत्तए वा ) अगर योगा सूत्रभां (सुवि श्वे सूत्रम (आइए समाणे) परोपवाथी (ता रूवाए) तेना ३५भा (
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प्र० २०
श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४