Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
२२६
प्रज्ञापनास्त्रे वा रक्तकणवीर इति वा रक्तबन्धुजीव इति वा, भवेद् एताद्पा ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, तेजोलेश्या खलु इतः इष्टतरिकाचैव यावद् मन आमतरिकाचैव वर्णेन प्रज्ञप्ता, पद्मलेश्या खलु भदन्त ! कीदृशी वर्णेन प्रज्ञप्ता ? गौतम ! तद्यथा-नाम चम्पक इति वा चम्पकवक इति वा चम्पकभेद इति वा हरिद्रा इति वा हरिद्रागुटिका इति वा हरिद्राभेद इति वा हरिताल इति वा हरितालगुटिका इति वा हरितालभेद इति वा चिकुर इति वा चिकुराग इति वा सुवर्णशुक्तिका इति वा वरकनक निकष इति वा वरपुरुषवसनमिति वा अल्लकीकुसुममिति वा चम्पककुसुममिति वा कर्णिकाकुसुममिति वा कूष्माण्डिकाकुसुममिति वा सुवर्णयूथिकाकुसुमनहीं (तेउलेस्सा णं एत्तो इट्टतरिया चेव जाच मणामतरिया चेच) तेजोलेश्या इससे भी अधिक इष्ट यावत् अधिक मनोज्ञ होती है ?
(पम्हलेस्सा णं भंते ! केरिसिया वन्नेणं पण्णता ?) हे भगवन् ! पद्मः लेझ्या वर्ण से कैसी कही है ? (गोयमा ! से जहानामए) हे गौतम ! जैसे कोई (चंपेइ या) चम्पा (चंपय छल्लीइ वा) चम्पक की छाल (चंपयभेदेइ वा) चम्पक का भेद टुकडा (हालिद्दाइ वा) हलदो (हालिद्दगुलियाइ वा) हलदी की गुटिका (हालिद्दभेदेइ चा) हलदी का भेद-टुकडा (हरियालेइ वा) हडताल (हरियाल. गुलियाइ वा) हडताल की गुटिका (हरियाल भेदेइ था) हडताल का भेद (चिउरेइ या) चिकुर नामक पीत वस्तु (चिउररागेइ वा) चिकुर-राग (सुवण्णसिप्पीइ वा) स्वर्ण की शुक्ति (वरकणगनिह सेई वा) उत्तम सुवर्ण निकष-कसौटी पर बनी स्वर्णरेखा (वरपुरिसवसणेइ वा) वासुदेव का वस्त्र (अल्लइकुसुमेइ वा) अल्लकी का कुसुम (चंपयकुसुमेई वा) चम्पा का फूल (कणियारकुसुमेइ वा) कणेर का mus (रत्तकणवीरएइ वा) ८४२४ (रत्तबंधुयजीवएइ वा) खास माधु०७४ (भवेया रूवे ?) सेवा ३५वाणी डाय छ ?
(गोयमा ! णो इणद्वे समटे) हे गोतम ! ॥ अथ समय नथी. (तेउलेस्साणं एत्तो इतरिया चेव जाव मणामतरिया चेव) तनवेश्या तेनाथी ५४५ मधिर एट यावत् અધિક મનહર હોય છે.
(पम्हलेस्साणं भंते ! केरिसिया वन्नेणं पण्णत्ता) मापन् ! पद्मवेश्या १ थी पी ही ? (गोयमा ! से जहानामए) 3 गौतम ! म ४ (चंपेइवा) या (चंपयछल्लीइ वा)
पानी छा (चंपयभेदेइ वा) पाने ले-टु४। (हलिद्दाइ वा) ॥६२ (हालिदगुलिया इवा) हरनी गोरी (हालिद्दभेदेइ वा) हरने मे-टु४। (हरियालेइ वा) उतारा (हरियालगुलियाइ वा) तानी गुटि (हरियालभेदेइ वा ) बना ले (चिउरेइ या) यि नामनी पीजी १२तु (विउररागेइ वा) वि२-२ (सुवन्नसिप्पिइ चा) सोनानी छी५ (वरकणगनिहसेइ वा) उत्तम सुवर्ण निष-सोटी ५२ मनी सुपरेमा (वरपुरिसवसणेइ या) वासुदृवना पर (अल्लइकुसुमेइ वा) मसीन०५ (चंपयकुसुमे इवा) यानु मुख (कण्णियारकुसुमेइ वा) ४२२५ (पीजी)ना ५०५ (कुहंडयकुसुमेइ वा) मा
श्री प्रशान॥ सूत्र :४