Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 03
Author(s): Lakshminarayan Dixit
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Catalog link: https://jainqq.org/explore/003392/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन गन्यमाला के प्रधान सम्पादक - पद्मश्री मुनि जिन विजय, पुरातत्त्वाचार्य [सम्मान्य सञ्चालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर] ग्रन्थाङ्क ५३ राजस्थानी-साहित्य-संग्रह भाग ३ ( पांच राजस्थानी प्रेमवार्ताओं का सङ्कलिन: प्रकाशक राजस्थान राज्य संस्थापित राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर (राजस्थान) RAJASTHAN ORIENTAL RESEARCH INSTITUTE, JODHPUR Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन यत्यमाला प्रधान सम्पादक-पद्मश्री मुनि जिनविजय, पुरातत्त्वाचार्य এ সময় সম্বল, বক্ষস্থান মাফিয়া মস্তিন, জীঃ ] ग्रन्थाङ्क ५३ राजस्थानी साहित्य-संग्रह भाग ३ ( पांच राजस्थानी प्रेमवार्तामों का सङ्कलन) प्रकाशक राजस्थान राज्य संस्थापित राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान BASTHAN ORIENTAL RESEARCH INSTITUTE, JODHPUR. जोधपुर ( राजस्थान) १९६६ ई. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला राजस्थान राज्य द्वारा प्रकाशित सामान्यतः अखिलभारतीय तथा विशेषतः राजस्थानदेशीय पुरातनकालीन संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, राजस्थानी, हिन्दी आदि भाषानिबद्ध विविधवाङ्मयप्रकाशिनी विशिष्ट-ग्रन्थावली प्रधान सम्पादक पद्मश्री मुनि जिनविजय, पुरातत्त्वाचार्य सम्मान्य संचालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर; मॉनरेरि मेम्बर ऑफ जर्मन ओरिएन्टल सोसाइटी, जर्मनी; निवृत्त सम्मान्य नियामक ( प्रॉनरेरि डायरेक्टर ), भारतीय विद्याभवन, बम्बई; प्रधान सम्पादक, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, इत्यादि ग्रन्थाङ्क ५३ राजस्थानी-साहित्य-संग्रह भाग ३ ( पांच राजस्थानी प्रेमवार्तात्रों का सङ्कलन ) प्रकाशक राजस्थान राज्याज्ञानुसार सञ्चालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर ( राजस्थान ) १९६६ ई. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थानी-साहित्य-संग्रह भाग ३ पांच राजस्थानी प्रेमवार्ताओं का सङ्कलन ( विस्तृत भूमिका एवं परिशिष्टादि सहित ) सम्पादक गोस्वामिश्रीलक्ष्मीनारायण दीक्षित कैटलॉगिङ्ग एसिस्टेन्ट राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर भूमिका-लेखक डॉ. नारायणसिंह भाटी, एम.ए., (पी-एच.डी.), एल-एल. बी. सञ्चालक, राजस्थानी शोध संस्थान, जोधपुर प्रकाशनकर्ता राजस्थान राज्याज्ञानुसार सञ्चालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर ( राजस्थान ) विक्रमाब्द २०२२ ) प्रथमावृत्ति १०००) भारतराष्ट्रीय शकाब्द १८५७ (ख्रिस्ताब्द १९६६ । मूल्य- ५.५० मुद्रक- हरिप्रसाद पारीक, साधना प्रेस, जोधपुर Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ २ ३ ४ ५ सञ्चालकीय वक्तव्य भूमिका सम्पादकीय वार्तागत विषयानुक्रम बात बगसीराम प्रोहित-हीरांकी रोसालूरी वारता बात नागजी - नागवन्तोरी बात दरजी मयारामकी राजा चंद- प्रेमलालछीरी वात १ रिसालू की बात के रूपान्तर २ पचानुक्रमणिका - अनुक्रम (क) रीसालूकुमरनी वार्ता (गुजराती) (ख) रिसालूरा दूहा ३ वार्तागत सूक्तियाँ वार्ताएं परिशिष्ट (क) बात बगसीरामजी प्रोहित-होरांकी (ख) बात रीसालूरी (ग) नागजी ने नागवंतीरी बात (घ) बात दरजी मयारांमरी ३८ ५५ - १ - ५० ५१ - १४४ १४५ १६३ १६४ - १८५ १८६ - १९६ १६७ - २१० २११ - २१४ २१५ - २२४ २२४ - २३६ २३८ २३७ २३६ - २४२ २४३ - - २५ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संचालकीय वक्तव्य राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान की ओर से राजस्थान पुरातन ग्रंथ-माला' के अन्तर्गत "राजस्थानी साहित्य-संग्रह-श्रेणी" में राजस्थानी भाषा की प्रतिनिधि स्वरूप उत्तम प्रकार की कृतियों को यथायोग्य प्रकाशित करने का हमारा संकल्प ग्रंथमाला प्रारम्भ करने के समय से ही बना हुआ है। तदनुसार राजस्थानी साहित्य-संग्रह के दो भाग पहले प्रकाशित हो चुके हैं । राजस्थानी साहित्य-संग्रह, भाग १ का प्रकाशन १९५७ ई० में हुआ, जिसका सम्पादन राजस्थानी भाषा और साहित्य के सुप्रसिद्ध विद्वान् प्रो० नरोत्तमदास स्वामी, एम० ए०, विद्यामहोदधि ने किया। इस संकलन में : १-खींची गंगेव नींबावतरो दो-पहरो, २-रामदास वैरावतरी आखड़ीरी वात और ३-राजान राउतरो वात-वणाव नामक तीन राजस्थानी वर्णनात्मक वार्ताओं का प्रकाशन हुमा । इसी भाग के प्रारम्भ में राजस्थानी गद्य के विषय में श्री अगरचन्द नाहटा के दो निबन्ध प्रकाशित किये गये हैं जिनसे पाठकों को राजस्थानी कथासाहित्य और राजस्थानी गद्यात्मक रचनाओं के वैशिष्टय का परिचय प्राप्त होता है। - राजस्थानी साहित्य-संग्रह, भाग २ का प्रकाशन १९६० ई० में हुआ जिसका सम्पादन प्रतिष्ठान के प्रवर शोध-सहायक डॉ. पुरुषोत्तमलाल मेनारिया, एम०ए०, साहित्यरत्न ने किया है। इस पुस्तक में वीरतासंबंधी तीन राजस्थानी कथाएँ हैं : १-देवजी बगड़ावतारी वात , २-प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात और ३-वीरमदे सोनीगरारी वात । तीनों ही वार्ताओं के साथ सम्पादक ने शब्दार्थ और टिप्पणियां दी हैं जिनसे पाठकों को वार्तामों के अर्थग्रहण में सुविधा रहती है। साथ ही, सम्पादकीय भूमिका और परिशिष्ट में परिश्रमपूर्वक प्राचीन भारतीय कथा-साहित्य, राजस्थानी कथा-साहित्य और प्रत्येक वार्ता से संबंधित ऐतिहासिक और साहित्यिक-सौन्दर्य को प्रकट कर राजस्थानी कथा-साहित्यविषयक जानकारी को अग्रेसृत किया गया गया है। उक्त दोनों ही प्रकाशनों में राजस्थानी भाषा की प्राचीन कथानों और गद्य के उत्कृष्ट उदाहरण संकलित हैं। ___ इसी श्रृंखला में प्रस्तुत राजस्थानी साहित्य-संग्रह, भाग ३, ग्रंथमाला के ५३वें ग्रंथ के रूप में पाठकों को प्रस्तुत किया जा रहा है। इसमें पांच राजस्थानी Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रेमाख्यानों का संकलन है । इसका सम्पादच प्रतिष्ठान के कैटलॉगिंग सहायक पोस्वामिश्रीलक्ष्मीनारायण दीक्षित ने किया है। इन वार्ताओं का गद्य प्रसंगानुसार पर्चाशों से अनुप्रारिणत है। राजस्थानी कथाएँ बड़े परिमाण में कही, सुनी और लिखी जाती रही हैं। ऐसी अवस्था में कथा कहने वाले और लिपिकर्ता इन कथाओं में अपनी रुचि के अनुसार परिवर्तन कर गद्यांश में पद्य जोड़ते रहे हैं। इस प्रकार राजस्थानी गद्य-कथाओं का परिकार और विस्तार होता ही रहा है । इस संकलन की कथाओं में ऐतिहासिक पुट देने का भी प्रयत्न किया गया है किन्तु ऐतिहासिक तिथिक्रम की कसौटी पर वे तथ्य पूरे खरे नहीं उतरते हैं। सम्पादकीय वक्तव्य में अनेक तथ्यों का अध्ययनपूर्वक उद्घाटन किया गया है। इस पुस्तक को अधिकाधिक उपयोगी बनाने का प्रयत्त किया गया है। इस प्रकार पुस्तक को उत्तमतया सम्पादित करने के लिये श्रीगोस्वामीजी बधाई के पात्र हैं । राजस्थानी शोध संस्थान, जोधपुर के संचालक डॉ. नारायणसिंह भाटी ने अपनी विद्वत्तापूर्ण भूमिका में राजस्थानी गद्य की प्राचीनता, राजस्थानी गद्य के विभिन्न रूप, राजस्थानी कथानों का वर्गीकरण, प्रेम-कथाओं की सामान्य विशेषताएं पोर वार्तागत विषयों का याथातथ्य निरूपण किया है जिससे इस प्रकाशन की उपादेयता अध्ययनार्थियों के लिये संवद्धित हो गई है। तदर्थ हम डॉ० भाटी को हार्दिक धन्यवाद देते हैं। साथ ही रिसालू की वार्ता से सम्बद्ध "रिसाळ री औरत" शीर्षक चित्र उपलब्ध करने के लिये भी हम उनके प्राभारी हैं। इस पुस्तक के प्रकाशन-व्यय का एक अंश "आधुनिक भारतीय भाषा विकास योजना (राजस्थानी)" के अन्तर्गत शिक्षा-मंत्रालय केन्द्रीय सरकार, दिल्ली से प्राप्त हुआ है। इस सहयोग के लिये हम प्रतिष्ठान की ओर से उक्त मंत्रालय के प्रति हार्दिक आभार प्रदर्शित करते हैं । प्राशा है कि इतः पूर्व प्रकाशित इस प्रकार के साहित्य-संग्रह के दो भागों के समान यह तीसरा भाग भी विद्वानों को पठनीय एवं उपयुक्त प्रतीत होगा । राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, शाखा कार्यालय, चित्तौड़गा दिनांक १-१-६६ मुनि जिनविजय सम्मान्य संचालक Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थानी गद्य की प्राचीनता प्राचीन राजस्थानी साहित्य गद्य एवं पद्य दोनों ही दृष्टियों से समृद्ध है । राजस्थानी पद्य की विपुलता एवं उसकी विशेषता सर्वत्र ज्ञात है । परन्तु राजस्थानी गद्य की अपनी विशेषता और उसकी प्राचीनता के सम्बन्ध में बहुत कम जानकारी अभी प्रकाश में आ पाई है। राजस्थान की विभिन्न साहित्यिक संस्थानों के संग्रह तथा अधुनातन शोध कार्य के आधार पर यह कहा जा सकता है कि राजस्थानी भाषा में जो प्राचीनतम गद्य मिलता है वह 'असमिया' श्रादि एक दो भारतीय भाषाओं को छोड़ कर अन्य भाषात्रों में नहीं मिलता । राजस्थानी गद्य के प्राचीनतम उदाहरण स्फुट रूप में ही प्राप्त होते हैं परन्तु उनसे गद्य की बनावट और भाषा के रूप का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है । इस प्रकार के स्फुट उदाहरण शिलालेखों व ताम्रपत्रों में देखे जा सकते हैं । राजस्थानी गद्य का प्राचीनतम उदाहरण बीकानेर के नाथूसर गाँव के एक शिलालेख में अंकित है जिसका समय सं० १२८० दिया गया है । अतः १३वीं शताब्दी में राजस्थानी पद्य के साथ-साथ गद्य का निर्माण भी प्रारंभ हो गया था, यद्यपि उस पर अपभ्रंश की छाप विद्यमान है । भूमिका १३वीं शताब्दी के पश्चात गद्य का निरन्तर विकास होता रहा है । संग्रामसिंह द्वारा रचित बालशिक्षा व्याकरण में प्राप्य राजस्थानी गद्य के उदाहरणों को देख कर यह कहा जा सकता है कि आचार्यों का ध्यान भी राजस्थानी गद्य की ओर १४वीं शताब्दी में आकृष्ट होने लग गया था । प्राचीन गद्य के निर्माण में जैनविद्वानों का विशेष योग हमें निःसंकोच भाव से स्वीकार करना होगा, क्योंकि १ २ • वरदा, वर्ष ४, अंक ३, पृ० ३ । इस ग्रंथ का रचनाकाल १३३६ है । Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २ ] उन्होंने न केवल स्वतन्त्र रूप में वरन् बालावबोध, टब्बा तथा टीकाओं आदि के रूप में भी राजस्थानी गद्य को अपनाया है तथा उसको पनपाने की चेष्टा की है। इस दृष्टि से तरुणप्रभसूरि द्वारा सं० १४११ में लिखित षडावश्यक बालावबोध यहां उल्लेखनीय है। १५ वीं शताब्दी के अंतिम चरण तक आते आते राजस्थानी गद्य में काफी निखार आ गया था और अपने साहित्यिक रूप में उसकी स्थापना हो चुकी थी जिसके प्रमाण में माणिक्यसुंदरसूरि द्वारा सं० १४७८ में रचित वाग्विलास के गद्यांशों को देखा जा सकता है, जिनमें गद्य के परिमार्जन के साथसाथ लयात्मकता, अनुप्रास एवं वर्णन-कौशल की खूबी परिलक्षित होती है। __ भाषा के क्रमिक विकास की दृष्टि से १५ वीं शताब्दी की रचनाओं में अपभ्रंश का प्रभाव विद्यमान है क्योंकि उनमें 'अउ' तथा 'प्राइ' के प्रयोग प्रायः सर्वत्र मिलते हैं। इस समय की जैनेतर गद्य रचना अचलदास खीची री वचनिका में भी इस प्रकार के उदाहरण देखे जा सकते हैं। शिवदास गाडण रचित यह रचना गागरोन के खीची शासक अचलदास तथा मांडण के बादशाह के युद्ध को लेकर लिखी गई है जिसमें राजस्थानी गद्य का प्रयोग बहुलता के साथ हुआ है। उसकी अभिव्यक्तिगत विशिष्टता के आधार पर डा० टेसीटरी ने उसे प्राचीन राजस्थानी का एक क्लासिकल मॉडल कह कर उसके महत्त्व को प्रदर्शित किया है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि मुस्लिम सभ्यता के संपर्क के कारण राजस्थानी में अरबी और फारसी के शब्दों का आगमन भी इस समय हो गया था। राजस्थानी गद्य के क्रमिक विकास का इतिहास प्रस्तुत करना यहां अपेक्षित नहीं है । अतः यहां केवल यह बताना पर्याप्त होगा कि १५ वीं शताब्दी के अंत तक आते-आते राजस्थानी गद्य का परिमार्जन एक सीमा तक हो गया था और १६ वीं शताब्दी में तो वह अनेक साहित्यिक विधाओं का माध्यम बनने लगा। १७ वीं और १८ वीं शताब्दी में गद्य रचनाओं का निर्माण ज्ञात तथा अज्ञात लेखकों द्वारा विपुल परिमाण में हुआ है जिसका अधिकांश भाग प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों में प्राज भी सुरक्षित है । गद्य के विभिन्न रूप राजस्थानी गद्य का यह विकसित रूप बात, ख्यात, पीढी, वंशावली, वचनिका आदि अनेकानेक रूपों में प्रयुक्त हुआ है। इनके अतिरिक्त राजस्थानी गद्य के माध्यम से अनुवादों की परंपरा भी कोई १४ वीं शताब्दी से प्रारम्भ हो गई थी और जिनमें जैन-विद्वानों का ही विशिष्ट हाथ रहा है। अनुवाद तथा टीकायें अनेक रूपों में उपलब्ध होती हैं। इन टीकाओं के मुख्य रूप टब्बा, Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालावबोध, वार्तिक आदि हैं। आगे चल कर अरबी फारसी आदि भाषाओं के महत्त्वपूर्ण ग्रंथों का उल्था भी राजस्थानी गद्य में किया गया है, जिसको सामग्री हस्तलिखित ग्रंथों में हजारों पृष्ठों में लिपिबद्ध हुई है। यह कहने की आवश्यकता नहीं कि रामायण, महाभारत, पुराण, हितोपदेश आदि को पूर्ण रूप में अथवा प्रांशिक रूप में इस भाषा के माध्यम से जनता तक पहुंचाने का सफल प्रयास भी अनेक विद्वानों ने किया है। स्थानीय रियासतों के प्राचीन राजकीय रेकार्डो को देखने से यह प्रमाणित होता है कि बड़े लंबे अर्से तक इस प्रकार के कामकाज राजस्थानी भाषा में ही होते थे। अत: समाज की व्यावहारिक भाषा राजस्थानी ही थी। कथानों का वर्गीकरण उपरोक्त गद्य के विभिन्न रूपों में वात और ख्यात का विशिष्ट महत्त्व है। मुंहता नैणसी, दयालदास तथा बांकोदास की ख्यातें बहुचर्चित हैं. परन्तु इन ख्यातों के अतिरिक्त राठोड़ों, भाटियों, कछवाहों, चौहानों आदि को ख्यातें भी उपलब्ध हैं, जिनका महत्त्व जितना साहित्यिक दृष्टि से नहीं है, उतना ऐतिहासिक दृष्टि से है। साहित्यिक दृष्टि से वात-साहित्य एक ऐसी विधा है जिस पर सही माने में राजस्थानी भाषा गौरव का अनुभव कर सकती है। अन्य भारतीय भाषाओं में इतना विषय-वैविध्य तथा कलात्मकता से परिपूर्ण कथासाहित्य उपलब्ध होना कठिन है। इस कथासाहित्य को मोटे तौर पर पांच भागों में विभक्त किया जा सकता है १. ऐतिहासिक २. अर्ध ऐतिहासिक ३. पौराणिक ४. धार्मिक ५. सामाजिक ऐतिहासिक कथायें प्रायः ख्यातों के प्रांशिक रूप में तथा स्फुट रूप में उपलब्ध होती हैं, जो कि प्राचीन शासकों, योद्धाओं तथा विशिष्ट प्रकार के चरित्रनायकों को लेकर लिखी गई हैं । अर्ध ऐतिहासिक कथाओं में कल्पना तथा जनश्रुतियों का बाहुल्य है, परन्तु वे ऐतिहासिक कथाओं के अपेक्षा अधिक कलात्मक हैं । इस प्रकार की कथाओं की बहुलता का मुख्य कारण मुगलकाल में यहाँ घटित होने वाली अनेकानेक घटनाएँ हैं जिनमें यहाँ के शासक वर्ग के शौर्य तथा कर्तव्यपरायणता व स्वामीभक्ति आदि गुणों का बखान किया गया है । प्रत्येक साहित्य प्राचीन सामाजिक-परम्पराओं एवं मान्यताओं से प्रभावित ही नहीं होता, अपितु अपने पूर्वजों की थाती के रूप में बहुत कुछ उनसे ग्रहण करने और उस पर मनन करने को लालायित रहता है । अतः अनेक पौराणिक प्रसंग Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४ ] सहज ही में राजस्थानी कथा - साहित्य की निधि बन गये हैं । हमारी संस्कृति में धर्म का स्थान सर्वोपरि रहता श्राया है, वह केवल देवालय तक ही सीमित न रह कर हमारे श्राचार-विचार और दैनिक नित्य कर्म को बराबर प्रभावित करता रहा है । ऐसी स्थिति में धर्म की शिक्षा-दीक्षा तथा उसके अनुकूल प्राच रण की प्रवृति डालने के उद्देश्य से विभिन्न धार्मिक सम्प्रदायों ने अनेकानेक कथाओं का प्रचलन हमारे समाज में किया । जिनमें एकादशी, शिवमहात्म्य, शनिश्चरजी, सत्यनारायणजी आदि की कथायें प्रमुख हैं । इनके अतिरिक्त प्रायः प्रत्येक धार्मिक पर्व से सम्बन्धित कथायें आज भी सुनने को मिल सकती हैं । सामाजिक कथाओं के अंतर्गत नीति, प्रेम और आदर्श-परक कथाओं को रखा जा सकता है । प्राचीनकाल में जब शिक्षा-दीक्षा का प्रबन्ध आधुनिक ढंग का-सा संभव नहीं था, तब इस प्रकार की कथायें ज्ञान-वर्द्धन तथा समाज की व्यावहारिक जानकारी का महत्त्वपूर्ण साधन थीं। इनमें प्रेम-कथाओं की संख्या सबसे अधिक है जो कई उद्देश्यों से लिखी जाती रही हैं । इन कथाओं पर सर्वांगीण रूप से विचार करने पर यह प्रतीत होता है कि इनमें अनेक तत्त्व विभिन्न रूपों में गुम्फित होकर मानव-भावनाओं तथा तत्कालीन समाज की मनोदशाओं के अंकन के साथ-साथ उनकी मान्यताओं पर सुन्दर प्रकाश डालते हैं । कथाओं के विकास एवं प्रचार की प्रक्रिया -- कथाों की विविधरूपता के साथ-साथ उनके विकास एवं प्रचार में समाज के कुछ वर्गों का विशिष्ट योगदान रहा हैं जिसकी चर्चा यहाँ करना इसलिए आवश्यक है कि उसे जाने बिना इन कथाओं के उद्देश्य एवं मर्म को समझना सहज नहीं है । इस दृष्टि से जैन विद्वानों, राजघरानों और चारण व भाटों का योग यहाँ उल्लेखनीय है । जैन - जैन- विद्वानों द्वारा रचित अधिकांश कथा - साहित्य धार्मिक है । वह जैन यतियों और श्रावकों द्वारा विकसित एवं प्रचारित होकर उनके धर्मावलंबियों में विशेष प्रतिष्ठित हुआ । कई विद्वानों ने धर्मनिर्पेक्ष कथानों का भी सर्जन किया । कुछ कथाओंों में लौकिक पक्ष की प्रमुखता है परन्तु उन्होंने अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए उस पर धर्म का प्रावरण चढ़ा दिया है । कथाओं के निर्माण की दृष्टि से ही नहीं अपितु उनकी सुरक्षा की दृष्टि से भी जैनियों की सेवायें अविस्मरणीय हैं । उनके नित्यकर्म में स्वाध्याय एवं लेखन आदि नियमित रूप से चलता रहा है जिसके कारण कथाओं के प्रचार एवं उनकी सुरक्षा की तरफ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५ ] उनका ध्यान निरन्तर बना रहा। आज भी बड़े-बड़े मंदिरों और उपाश्रयों में इस प्रकार के ग्रंथ बहुत बड़ी संख्या में संग्रहीत हैं। राजघराने-जिस काल में प्रेम, नीति तथा ऐतिहासिक तत्वों को लेकर अधिकांश कथाओं का निर्माण हुआ है, वह काल मुगलसत्ता और संस्कृति से आच्छादित रहा है। आए दिन भू और भामिनी के अतिरिक्त मंदिर और गायों के प्रश्न को लेकर युद्ध होना साधारण बात थी । अपने मान और गौरव की रक्षा के लिए वीर पुरुषों की कथानों का निर्माण एवं प्रचलन कर उत्सर्ग की प्रेरणा प्राप्त करना स्वाभाविक ही था। परन्तु इस प्रकार के युद्धों की क्लान्ति और सघर्षमय जीवन में रस का संचार करना भी प्रावश्यक था जिसकी पूर्ति के लिए अनेकानेक प्रेम-कथाएं बनती रहीं और अवकाश के क्षणों में वे उनके लिए मनोरंजन के साधन का काम देने में सफल हुईं। राठोड़ पृथ्वीराज की तरह अनेक राजा जहाँ युद्ध कला व काव्यकला दोनों में निपुण थे, वहाँ महाराजा मानसिंह तथा बहादुरसिंह जैसे शासकों ने इन दो कलाओं के अतिरिक्त कथा-निर्माण की कला भी प्राप्त की थी। वैसे शासकों का निजी योगदान उतना नहीं है जितना उनके आश्रय में रहने वाले साहित्यकारों का है। इस प्रकार की रोमान्टिक कथाओं के प्रचलन के पीछे एक सामाजिक प्रक्रिया भी थी। एक राजघराने से उपहार के रूप में लिपिबद्ध बातों की सुन्दर पोथियां दूसरे राजघरानों व विद्वानों को पहुँच जाया करती थीं। एक घराने की लड़की जब दूसरी जगह ब्याही जाती तो वह अपने साथ अपनी मन पसंद कई पोथियें ले जाती थी। इस प्रकार यहाँ के रजवाड़ों में इनका आदान-प्रदान होता रहता था। आज भी अनेक ठिकानों में दूसरे स्थानों की लिखी हई पोथियें उपलब्ध हो जाती है । कहना न होगा कि इस प्रकार के आदान-प्रदान में कथानों के प्रचार के साथ-साथ उनकी भाषा में भी परिमार्जन हुमा है। चारण व भाट-चारण तथा भाटों का सम्बन्ध यहाँ के शासक वर्ग के साथ तो घनिष्ठ रूप में रहा ही है परन्तु समाज में भी उनकी मान्यता व स्थान सदा से रहता चला आया है। उनके द्वारा राजस्थान में साहित्य-रचना भी बड़े परिमाण में हुई। राज्याश्रय के अतिरिक्त स्वतंत्र रूप से भी वे अन्य साहित्य को तरह कथाओं का निर्माण भी करते थे। उनका सम्पर्क प्रायः साधारण जनता से अधिक रहता था इसलिए जनता में इस प्रकार की कथाओं के प्रचलन का श्रेय भी इन लोगों को ही है। दिन भर के कार्य से थक कर शाम के समय मनोरंजन के लिए जब लोग हथाई पर बैठते थे तो प्रायः कई नो कोई बारहठजी Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ६ ] या रावजी बीच में ना जमते और लोगों के थोड़ेसे प्राग्रह पर बात की भूमिका बननी प्रारम्भ हो जाती थी । इन बातों को कहने की भी एक विशिष्ट कला है जो स्वयं कथाओं से कम रोचक नहीं है। श्रोताओं का ध्यान आकृष्ट करने के लिए भूमिका बाँधी जाती है जिसमें प्रायः बात से सम्बन्धित भौगोलिक वर्णन अथवा देश विशेष की विशेषताओं का वर्णन रहता है । बात में हुंकारे का बड़ा महत्त्व है । बात कहने वाला पहले से ही श्रोताओं को सतर्क रहने तथा बात में दिलचस्पी लेने को यह कह कर आगाह करता है कि 'बात में हुंकारो ओर फोज में नगारों' । सब की जिज्ञासा को अपनी ओर केंद्रित कर फिर वह मूल बात पर यह कहता हुआ आता है - तो रामजी भला दिन दे, एक समय री बात, फलां नगर में फलां राजा राज करतो हो । प्रादि २ । प्रेम गाथानों की सामान्य विशेषतायें - यह उल्लेख हम पहले कर आये हैं कि कथा - साहित्य में शृंगारपरक कथाओं का विशेष महत्त्व है । यहाँ सम्पादित बातों पर प्रकाश डालने के पहिले इस प्रकार की प्रेम-विषयक वार्ताओं की सामान्य विशेषतानों की ओर संकेत कर देना अनुचित न होगा । इन कथाओं में प्रेमिका के सौन्दर्य का वर्णन अनेक उपमानों, रूपकों और उत्प्रेक्षानों के सहारे किया जाता है । वेश-भूषा तथा हावभाव का चित्रण भी कथाकारों ने पूर्ण रस लेकर के क्रिया है । जहाँ नायिका की कोमलता, प्रेम-लालसा व अलौकिक सौंदर्य का वर्णन किया गया है, वहाँ नायक के शौर्य, शारीरिक गठन, घुड़ सवारी श्रादि का भी बखान किया गया है । उसे यथा-स्थान छैल-छबीला व रसिक - शिरोमणि भी सिद्ध किया गया है। श्रृंगार का सजीव चित्रण प्रायः प्रकृति व महलों की साजसज्जा की पृष्ठभूमि में किया गया है । वियोग और संयोग दोनों अवस्थाओं में नायिका के भावोद्वेलन का वर्णन कहीं-कहीं षट्ऋतुओं के प्रभाव के साथ-साथ हुआ है तो कहीं वमन्त और वर्षा के सहारे । बाग-बगीचे व उद्यानादि उनके मिलन केंद्र के रूप में वर्णित हैं । कहीं-कहीं प्रकृति के उपकरणों पर प्रेमातुर क्षणों में मनुष्यों से भी अधिक विश्वास कर उन्हें प्रेम की सचाई के लिए साक्षी रूप में स्वीकार किया गया है । प्रेम-सन्देशों के श्रादान-प्रदान के लिए जहाँ डावड़ियों तथा दूतियों आदि का सहयोग उन्हें मिलता रहा है वहाँ मालिन, तम्बोलिन व धोबन आदि ने भी पूरा जोखम उठा कर बड़ी चतुराई के साथ उनका काम कर दिया है । उनके शुभचिंतकों की संख्या यहाँ तक ही सीमित नहीं है, पाले हुए मृग, सुग्गे व कबूतर भी अपने कर्त्तव्य से विमुख होना नहीं जानते । अश्व व ऊंट आदि Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७ ] ने नायक को निश्चित स्थान व समय पर उसकी प्रेमिका से उसे मिलाया हो नहीं, अपितु सब की प्रांख में धूल झोंककर सुरक्षित स्थान पर भी पहुंचा दिया। स्वजातीय प्रेमी-प्रेमिका के बीच में जहां घरेलू व्यवधान, प्रेम-तत्त्व को प्रगाढ़ता प्रदान करते हैं वहाँ विजातीय नायक-नायिका के बीच समाज का व्यवधान चित्रित किया गया है। परंतु सच्चे प्रेम के सामने दोनों ही प्रकार के व्यवधान अन्ततः बालू की दीवार की तरह ढह पड़ते हैं । नायक-नायिका का मिलन चाहे विधिवत् रूप से विवाह मंडप के नीचे न हो, अथवा कुसुम शैया पर निश्चित रूप से पौ फट जाने तक संभोग का आनन्द लेने का अवसर उन्हें भले ही न मिला हो, परन्तु श्मसान की भूमि में आकर उनके चिरमिलन में संसार की कोई भी ताकत व्यवधान नहीं बन सकी। यह अलग बात है कि शिव-पार्वती की किसी प्रेमी-युग्म पर कृपा हो जाय और वे पुनर्जीवित होकर सामाजिक नियमों की पराजय से निर्मित गौरव महल में फिर से प्रेम-क्रीड़ा करने लगे। नायक-नायिका के प्रेम को चरम सीमा तक पहुंचाने के लिए अनेक प्रकार के व्यवधानों का वर्णन तो किया ही गया है परन्तु इसके साथ-साथ नायिका के प्रेम को औचित्य प्रदान करने के लिए जहाँ च्युत नायक के बुद्धपन तथा कुरूपता, कायरता आदि का हास्यास्पद वर्णन किया गया है वहाँ शौर्य आदि का उत्कर्ष न केवल नायक तक ही सीमित रहा है, वह नायिका के चरित्र में भी प्रकट किया गया है । कुसुमादपि कोमल सुकुमारी अपने प्रेमी से मिलने के लिए मेघों से आच्छादित तिमिराच्छन्न रात्रि में अपने घर से बाहर निकल पड़ना साधारण सी बात समझती है और रास्ते में आने वाले किसी वन्य पशु व दुश्मन की हत्या करने में तनिक भी नहीं हिचकिचाती है । - प्रेम करना कोई हंसी-खेल नहीं है । इसमें जितने साहस की आवश्यकता है उतनी चतुराई की भी। अनेकों बार ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं जिनमें नायक-नायिका का बातचीत करना संभव नहीं होता, तब संकेतों के सहारे हृदय की मूक-भाषा में संवाद संपन्न होते हैं । कहीं परिस्थिति कुछ अनुकूल-सी लगी तो लाक्षणिक काव्य-पद्धति उन्हें सहयोग दे जाती है। अधिकांश प्रेम-चित्र यौवन के उद्दाम क्षितिज पर चित्रित हैं। जिनमें काम की लालिमा पर सुखद संभोग के अनेक इन्द्रधनुष तैरते हुये दिखाई देते हैं। त्रिया में धूर्ततापूर्ण चरित्रों को चित्रित करने की दृष्टि से लिखी गई कथाओं में प्राय: जादू, टोना, निम्न कोटि की सिद्धियां, भूत-प्रेतों व पाखण्डी Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ८ ] सन्यासियों का वर्णन बड़ी चतुराई के साथ किया गया है जो लंबी कथा में प्रायः प्रोत्सुक्य का निर्वाह करने में भी सहायक सिद्ध होता है। प्रेम-गाथानों में पत्र-लेखन का बड़ा महत्त्व है । अपनी विरह-वेदना का सागर प्रायः प्रेमपाती पर अंकित दोहों की गागर में भरकर भेजने में प्रेमी को बड़ा संतोष होता है । इन पत्रों में प्रायः नायिका अपने प्रेम-विह्वल हृदय की बात ही नहीं करती अपितु अपने हृदय को ही प्रेमी तक पहुंचाने को लालायित रहती है। निश्चित अवधि पर मिलन न होने की स्थिति में प्राणों का मोह छोड़ देने की धमकी उसका अमोघ अस्त्र है, उसका उपयोग भी पूर्ण विश्वास के साथ वह करती है। ___ यद्यपि नायिका की विभिन्न अवस्थानों और हाव-भाव का वर्णन इन कथानों में मिलता है परन्तु वह हिन्दी के रीतिकालीन प्रेमाख्यानों से अलग किस्म का है। शृंगारिक उपकरणों व उसकी अभिव्यक्ति में परिपाटीबद्धता अवश्य लक्षित होती है परन्तु रीतियुक्त नायक-नायिकाओं के सुनिश्चित क्रिया-कलापों के केटलाग से वह सर्वथा भिन्न है। रीतिबद्ध प्रेम को जहाँ शास्त्र ने अपने नियमों में जकड़ लिया है वहां इन गाथाओं का प्रेम सर्वथा मुक्त है। रीतिकाल के अनेकानेक प्रेम-चित्र जहां वासना-जन्य भावनाओं से उत्पन्न कवियों की कल्पना के उपहार हैं वहां इन कथाओं का प्रेम जीवन की वास्तविकताओं के बीच क्रीड़ा करता हुआ दिखाई देता हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि इस प्रकार का कथा साहित्य तत्कालीन समाज के राग-द्वेष, सौन्दर्य और प्रेम के मापदण्ड, जातीय-व्यवस्था, जीवनआदर्श, यौन सम्बन्ध, मनोविनोद व राजा तथा प्रजा के सम्बन्धों की जानकारी का बड़ा ही उपयोगी साधन है। इन कथाओं में प्रयुक्त काव्यांश कहीं-कहीं उत्कृष्ट कोटि की काव्यकला अपने में लिये हुये है। गद्य और पद्य का यह सुन्दर समन्वय तत्कालीन जीवन की यथार्थता और प्रेमानुरंजित कल्पना के सम्मिश्रण के अनुकूल है, जिसकी व्याप्ति कथाकारों ने इस लोक में ही नहीं, जन्म-जन्मान्तर तक में कर देने का प्रयत्न अपनी कुशल लेखन-शैली के बल पर किया है। अब यहां सम्पादित प्रत्येक कथा को लेकर संक्षेप में कुछ आवश्यक विचार प्रस्तुत किये जा रहे हैं। १. वात बगसीराम पुरोहित : हीरां की कथा सारांश प्रकृति और मानव-सौन्दर्य की सुषमा के आगार उदयपुर पर राणा भीम (१८३४-१८८५) राज्य करता था। उसके राज्य में अनेक कलाओं में Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निपुण गुणिजन और धनी सेठ-साहूकार रहते थे जिनमें कोड़िधज लखमोचन्द का नाम प्रसिद्ध था। उसके घर हीरां नाम को रूपवती पुत्री ने जन्म लिया। शनैः शनैः समय के साथ अपनी सखियों के बीच गुड्डा गुड्डी का खेल खेलती हुई बचपन की देहली को लांघ, वह यौवन के क्षेत्र में ज्यों ही प्रविष्ट हुई, उसके अंगों में नया निखार, मुख पर भोली लज्जा की अरुणिमा और प्रांखों में चंचलता व्याप्त हो उठी। योवन का चांचल्य बातों में व्यक्त होने लगा और अधरों की बातें नजरों तक आने लगीं, तब माता-पिता ने उसका विवाह अहमदाबाद के धनी सेठ कपूरचन्द के सुपुत्र माणकचन्द के साथ कर दिया। हीरा यौवन की सुख-लालसा का स्वप्न लेकर माणकचन्द के साथ चली गई, परन्तु उस सुन्दरी की इच्छा के अनुकूल वर प्राप्त न होने से वह बड़ी दुःखित रहने लगी और वापिस उदयपुर चली आई। उन्हीं दिनों निवाई' (जयपुर राज्य) में बगसीराम पुरोहित निवास करता था जो युद्ध और प्रेम दोनों ही कलाओं में समान रूप से प्रवीण था। वह अपने ससुराल बूंदी में आखेट आदि अनेक प्रकार के मनोविनोद करता हुअा सावरण को तीज का आनंद लूट रहा था । इतने में किसी ने उदयपुर की गणगौर को प्रशंसा करते हुये उसे देखने का प्रस्ताव रखा। बगसीराम वहां से अपने साथियों सहित उदयपुर आ पहुँचा और सहेलियों की बाड़ी में डेरा डाल दिया। पीछोला तालाब पर 'गवर' की सवारी देखने के लिये जनता को भीड़ एकत्र हुई तो बगसीराम भी अपने घोड़े पर सवार हो वहां जा पहुंचा। उसके सौन्दर्य और तड़क-भड़क ने सभी को अपनी ओर आकर्षित कर लिया । उधर होरां की नजर इस पर पड़ी तो उसने फौरन अपनी चतुर दासी केसरी को संकेत कर उसके पास भेजा और परिचय प्राप्त करने के बाद उसने हीरां की अभिलाषा प्रकट की। पहले तो बगसीराम ने स्वीकृति नहीं दी परन्तु जब उसने हीरां की मनोदशा का, उसके अलौकिक सौन्दर्य का वर्णन किया तो बगसीराम का उन्मत्त यौवन भी उस सुन्दरी को भोगने के लिये लालायित हो उठा। संकेत के अनुसार निश्चित समय पर बगसीराम अपने घोड़े पर सवार हो रात के समय हीरां के महल में जा पहुंचा। महल को शोभा, साज-सज्जा और उसमें सोलह शृंगार कर बैठी हुई काम भावना की साक्षात् मूर्ति, अप्सरा सी सुन्दरी हीरा ने एकाएक उसे अपनी ओर खींच लिया। रात भर रति-विलास करने के पश्चात् जब पुरोहित रवाना होने लगा तो हीरां के लिये विदाई के वे १ - कथा में पुरोहित का निवास स्थान कहीं निवाई और कहीं नरवर मिलता है। Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १० ] क्षण असह्य हो उठे। दूसरे ही दिन राणा भीम को ज्यों ही पता लगा कि कोई विलक्षण व्यक्ति अपने दलबल सहित सहेलियों की बाड़ी में ठहरा हुआ है, तो उन्होंने मिलने की इच्छा प्रगट की। जगमंदिर में दोनों का मिलना हा । राणा ने जब नमस्कार किया तो पुरोहित ने केवल राम राम कह दिया और आशीर्वाद आदि न दिया। राणा ने क्रुद्ध होकर इसका कारण पूछा तो उसने बताया कि मैं अनमी हूं और रघुवंश तथा नरवर के शासकों के अलावा किसी को नमन नहीं करता । महाराणा ने उसके अनमीपने के औचित्य को स्वीकार किया परन्तु जब उसने साधारण ब्राह्मण न होकर तलवार के बल पर खेलने वाला योद्धा अपने आपने को कहा और इसी संदर्भ में परशुराम के द्वारा २१ बार क्षत्रियों का विध्वंस करने की बात आई तो फिर बात बढ़ गई। राणा ने उसके दल-बल को देख लेने की चुनौती तक दे दी। पुरोहित ने अपने डेरे पर लौट कर शिवलाल धाभाई को सारी बात कही। धाभाई ने किसी प्रकार की परवाह न करने को कहा और अपनी सहायता के लिये फौरन अपने पगड़ी बदल भाई सिवाने के राव बहादुर को चुने हुए योद्धाओं के साथ सहायतार्थ पाने के लिये लिखा। राव बहादुर आ पहुंचा। ज्योंही तीज का त्यौहार आया, पुरोहित अपने साथियों सहित अफीम आदि का सेवन कर तीज का उत्सव देखने पीछोले पर एकत्रित हो गए। उधर हीरां भी अपनी सहेलियों के साथ बन ठन कर वहाँ आ पहुंची। सुनिश्चित योजना के अनुसार देखते ही देखते बगसीराम ने हीरां को अपने घोड़े पर बिठाया और वहां से निकल पड़ा। मेले में भगदड़ मच गई और शहर में शोरगुल हो गया। राणा भीम ने पता लगते ही अपनी फौज भेजी। दोनों पक्षों में घमासान युद्ध हुआ । पुरोहित ने हीरां और उसकी दासी केसर को पहाड़ी को प्रोट में घोड़े से उतार दिया और स्वयं विपक्षियों पर टूट पड़ा। काफी समय तक युद्ध होने पर दोनों पक्षों के अनेक योद्धा मारे गये परन्तु विपक्षियों की क्षति अधिक हुई। पुरोहित हीरां को लेकर अपने निवास स्थान लौट गया। अपने सहयोगियों का प्राभार प्रकट किया और हीरां के सौन्दर्य का निश्शंक होकर उपभोग करने लगा। छहों ऋतुओं में विभिन्न त्यौहारों का आनन्द लूटते हुये अनेकानेक प्रकार की प्रेमक्रीड़ाओं में रत होकर समय व्यतीत करने लगा। कथा का वैशिष्ट्य यह कथा अनमेल विवाह के दुष्परिणामों को प्रकाश में लाने की दृष्टि से लिखी गई है। हमारे देश में अनमेल विवाह की प्रथा काफी लंबे समय से Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ११ ] प्रचलित रही है। राज्य सत्ता, धन सत्ता अथवा घराने के बड़प्पन की होड़ को लेकर प्राय: अनमेल विवाह होते रहे हैं। मुगलों में भी यह प्रथा प्रचलित रही है और उसके दुष्परिणाम भी उन्हें भोगने पड़े हैं। जलाल और बूबना की बात इसका उदाहरण है । हीरां जैसी सुन्दरी का विवाह माणिकचन्द जैसे कुरूप व्यक्ति के साथ कर देने से ही हीरां का मन उसके उपयुक्त प्रेमी ढूंढ़ने के लिये विकल हो उठता है और संयोग से बगसीराम जैसे सुन्दर और साहसी नवयुवक के संपर्क में आकर उसे अपना जीवन अर्पण कर देती है । कथा को रोचक बनाने के लिये लेखक ने स्थान-स्थान पर गद्य व पद्य में बड़े ही सुन्दर वर्णन किये हैं। इस दृष्टि से उदयपुर नगर, बूंदी, सहेलियों की बाड़ी, हीरां का सौंदर्य व शृंगार, उसके महल की साज-सज्जा, बगसीराम व उसके साथियों का ठाट-बाट तथा प्रेमी युग्म की क्रीड़ानों का वर्णन द्रष्टव्य | कहीं कहीं उक्ति वैचित्र्य भी देखते ही बनता है । प्रेम की रात प्रेमियों के लिये प्रायः बहुत छोटी हो जाया करती है। प्रथम मिलन की रात ढलने को हुई है उस समय हीरां की मनोवृत्ति का वर्णन लेखक ने सुन्दर संवादात्मक शैली में किया है । यथा बगसीराम कहै छै - परभात हूवो, मंदर झालर घंटा बजायो । - हीरां कहै छै प्रोहित है छै हीरां कहै छे प्रोहित कहै छै हीरां कहै छै प्रोहित कहै छै हीरां कहै छै प्रोहित कहै छै हीरां कहै छै Narend बालम, परभात नहीं, बधाई बाजै छै । अऊत घर पुत्र जायो । प्यारी, प्रभात हुई, मुरगी बोल रही छे । कुकड़ा मिलाप नहीं छे । प्यारी, प्रभात हुवौ, चड़ियां बोलै छै । बालम, प्रभाति नहीं, यांका माळा में सरप डोल छ । - प्यारी, प्रभात हुवी, चकई चुपकी रही छै । बालम, बोल बोल थाकी भई छै । दीपग की जोति मंदी भई छ । तेल को पूर नहीं है । - सहर को लोग जाग्यो छै । ― - - हीरां कहे छे - कोईक सहर में चोर लाग्यो छ : प्यारो कहे छे प्यारी, हठ न कीज्ये, अब बहुत कर डेरानै हुकम दीज्ये । (पृष्ठ २६ ) संपूर्ण बात में गद्य का प्रयोग बड़ी काव्यात्मक शैली के साथ किया गया है । उसमें लय के साथ साथ तुकान्तता भी है, जिससे उसे पढ़ते समय काव्य कासा आनंद आता है । इस द्रष्टि से एक उदाहरण यहां दिया जाता है Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १२ । 'होरां की सहेलियां हंसा को डार । अदभुत कंवळ वदन सोभा अपार । यु कवळ की पांषडीयां एक बरोबर सोहै । वां सहेलियां में हीरांपरगुरूपी मन मोहै। कीरतियां को झूमको तारा मंडल की शोभा । आफू की क्यारी पोसाष मन लोभा। केसरियां कसुमल घनंबर पाटंबर नवरंग पोसाष राज छै । अतर फुलेल केसरि कसतुरी सुगंध छाजै छ ।' (पृ० १५) लेखक व्यंग का प्रयोग करने में भी बड़ा प्रवीण है । व्यंग के सहारे दूल्हा और दुलहिन की अनमेल जोड़ी का चित्रण बड़ी ही खूबी के साथ किया गया है; जिसे पढ़ते ही पाठक की सहानुभूति हीरां के साथ हुए बिना नहीं रहती । हीरां के मन की बात हीरां के मुख से सुनिये _ 'सुणि केसरी, असो षांवंद पायौ छै । कपूर को भोजन काग नै करायौ छै । गधेड़ा रै अंग पर चंदन चढ़ायौ छै । अन्ध के प्रागै दरपण दीषायो छ । गंगे के आगे रंगराग करायो छै । नागरवेल को पान पसु नै चबायो छै ।' (पृ. ५) लेखक ने जहाँ एक ओर परिमार्जित गद्य का प्रयोग किया है वहाँ कविता को भी सुन्दर सष्टि की है। उसने स्थान-स्थान पर दूहा, सोरठा, गाथा, कुंड. लिया, पद्धरी, झमाल, उधोर, चंद्रायणा, भुजंगप्रयात, छप्पय, त्रोटक, गीत अर्धाली आदि अनेक छंदों का सफल प्रयोग किया है । काव्यकला की दृष्टि से कुछ पद्यांश यहाँ उल्लेखनीय हैं । हीरां की मनोदशा हीरां मन आकुल भई, मायो लेष अनय । चात्र हीरां चंदसी, केत राहासो कंथ ॥ ३१ ।। फीकै मन फेरा लिया, अंतर भई उदास । आष मीच रोगी अवस, पीवत नीम प्रकास ॥ ३२ ॥ हीरां मद मातुर हुई, चित पीतम की चाह । विषधर ज्यूं चंदन बिना, दिल की मिट न दाह ॥ ४२ ॥ प्यारी पीव प्रजंक पर, कलही उर अवलूंब । मानुं चंदन बृच्छ मिल, झुको क नागणि झूब ।। २१४ ॥ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिकार वर्णन - ताता अपार प्राकृम तुरंग, कृदंत छवि जावत कूरंग । चढि चले प्रोहित रांग चंग, अत बलबीर जोधार अंग || बरण सुभट घाट हैमर बरगाये, प्राषेट रमण कीनौ उपाये । घमसारण चले घरण थाट घेर, बाजंत घाव नीसारण भर || चमकत सेल पाखर प्रचंड, दमकंत ढाल नीसारण दंड । धमकंत घोड़ पुर धरण धज, रमकंत गगन मग चढ़ीये रज ॥ X हलकार प्रोहित कोप कीन, ललकार म्यांन तरवार लीन। पेष्यो क गज धरै अनंड पष, घायो क बाज चीडकली यधक ॥ X युद्ध वर्णम [ १३ ] अति जोम पीरोहत कर अपार दमकंत तड़त बाई दुधार । कयो क शीस केहरि कराल, फटयों के मांनु तरबूज फाल ॥ ६९ ॥ ( पृष्ठ ६ ) चहूवांण इतै झालो अचल, ऊत राव प्रोहित ऊरड़े । वीर हाक-घमच विषम, भुके बंदूकां सो कड (डै ) ।।२६३ ॥ हरणण मांच हैमरांग गरगरण घोषा रवै हूगर । षरगण बाजया ज पाषरां घुज घूरताल धरणधर । orn बंदूकां ठोर गोलियां गिररण गिरण गनगत, रणरण धनस टंकार भरणरण पर तीर भरणंकत || सिंधवां राग समागमरण गरगरण भेर 'बक बज्ये । चीर घाट परचा पड़, विषमं थाट भारथ बजे ॥ २६४ ॥ इस रचना का लेखक अज्ञात है । परन्तु यह घटना रांगा भीम के समय की है, इसलिए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इसकी रचना १९ वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हुई है । उदयपुर को प्रकृतिसुषमा, सहेलियों की बाड़ी तथा राणा भीम के ठाट-बाट का वर्णन कवि ने विशेष रस लेकर किया है जिससे वह स्वयं उदयपुर का निवासी हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं, परन्तु उसने पुरोहित बगसीराम के ऐश्वर्य, शौर्य आदि का वर्णन भी उतनी ही दिलचस्पी के साथ किया है और युद्ध में राणा भीम की राजकीय सेना को उससे हारता हुआ बताया है जिससे यह सम्भावना ( पृ० ३६) Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १४ ] अधिक वजन रखती है कि वह बगसीराम के साथियों की मण्डली में से ही उसका आश्रित कोई कवि रहा होगा । २. राजा रीसालू री बात कथा सारांश एक समय श्रीपुर नगर में शालिवाहन राजा राज्य करता था। उसके स्वर्गवास होने पर समस्तकुमार गद्दी पर बैठा। उसके सात रानियां थीं, किन्तु पुत्र एक के भी नहीं था। इस कारण राजा चिन्तित रहता था। ___ एक बार वह सूअर की शिकार खेलने के लिए निकला। शिकार का पीछा करते करते रात पड़ गई । उसने वहीं जंगल में ही ठहरने का निश्चय किया। वहां से कुछ दूर एक पहाड़ी पर प्राग जलती हुई दिखाई दी। राजा ने इसका पता लगाने को कहा, तब अन्य लोगों की तो हिम्मत नहीं पड़ी किन्तु एक गडरिये ने हिम्मत की और वह पता लगा कर पाया कि वहां कोई सन्यासी तपस्या कर रहा है। जब राजा स्वयं वहां पहुंचा तो उसने देखा कि गुरु गोरखनाथ अांखें बंद किये समाधि में लीन हैं। राजा बहुत देर तक एक पैर पर हाथ जोड़ कर खड़ा रहा, गुरु गोरखनाथ की कृपा हुई। वर मांगने को कहा । राजा ने पुत्र मांगा । गोरखनाथ ने अपनी गुलाब की छड़ी उसे दो और उसे फेंक कर प्राम प्राप्त करने को कहा तथा वह आम किसी रानी को खिला देने से उसके पुत्र पैदा होगा, जिसका नाम रिसालू रखा जाये ऐसा आदेश देकर राजा को विदा किया। राजा ने ऐसा ही किया। कुंवर तो उत्पन्न हो गया परन्तु ज्योतिषियों ने एक प्राशंका खड़ी करदी। उन्होंने अपनी विद्या के आधार पर पुत्र का जन्म माता-पिता के लिए घातक बताया जिसके निदान-स्वरूप बारह वर्ष तक पुत्र का मुंह वे न देखें, इस प्रकार की व्यवस्था की गई। राजकुमार अलग से धाय मां के द्वारा पाला पोसा जाने लगा। समय बीतता गया। जब वह ग्यारह वर्ष का हुवा तो आनंदपुर के राजा मान और उज्जैनी के राजा भोज की ओर से कुंवर के शादी के नारियल पाये। कुंवर अभी एक साल तक बाहर नहीं निकल सकता था और नारियल वापिस करना उनकी प्रतिष्ठा के प्रतिकूल था। इसलिये कुंवर का खांडा मंगा कर नारियल स्वीकार किये गये और राजकुमारियों का विवाह खांडे के साथ कर दिया गया। Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १५ ] राजकुमार ने जब धाय मां की लड़की से बाहर निकलने के प्रतिबंध की जानकारी चाही तो उसने सच्ची - सच्ची बात कह दी । वह बड़ा दुःखित व कुपित हुआ तथा राजा की अनुपस्थिति में दरीखाने में आ बैठा । ज्योतिषी महाराज से उसकी झड़प होना स्वाभाविक ही था । राजा को पता लगते ही राजकुमार को देश निकाला मिल गया । वह काले घोड़े पर सवार होकर वहां से विदा हुआ। अनेक प्रकार की बाधाओं को झेलता हुआ वह एक नदी किनारे पहुंचा तो उसने अनेकों मुंड पड़े हुये देखे । उन्हें हँसता देख कर वह और भी चकित हो गया । जब उसने इसका भेद जानना चाहा तो उसे पता लगा कि यहां के अगरजीत नामक राजा की राजकुमारी को प्राप्त करने के लोभ में इनकी यह गति हुई है। वह स्वयं अगरजीत के महल तक जा पहुंचा और बाजी खेलने का प्रस्ताव रखा | चौपड़ बिछाई गई। पहले तो राजकुमार हारता गया, उसने अपनी सारी वस्तुयें खो दी । आखरी दांव सिर को बाजी पर लगा देने का था । दोनों में निश्चित लिखा पढ़ी हुई । कुंवर ने इस बार अपनी लघु लाघवी विद्या के सहारे गोरखनाथजी के पासे वहां प्रस्तुत कर दिये । कुंवर जीत गया । राजा सिर देने के पहिले बड़ा दुःखित होकर रानियों से मिलने गया तो राणियों ने राजा को बचाने की युक्ति से राजकुमारी का विवाह रिसालू के साथ कर देने का प्रस्ताव रखा । रिसालू ने उदारतापूर्वक प्रस्ताव को स्वीकार किया; किन्तु जिस लड़की की मनोकामना के फलस्वरूप अनेक राजकुमारों के मुंड धराशायी गये थे, उसे पापिनी समझ कर उसके साथ विवाह करने से इन्कार कर दिया । दूसरी लड़की केवल दस माह की थी परन्तु रिसालू उसके साथ विवाह करने को राजी हो गया। विवाह के पश्चात् लड़की को अपने साथ ले वहां से विदा हुआ । लघु लाघवी कला से उसने एक हिरण और सुग्गा-सुग्गी के जोड़े को अपनी परिचर्या के लिये पकड़ लिया । वहां से ज्यों ही एक नगर में पहुंचा तो पता लगा कि नगर उजाड़ पड़ा है । किसी राक्षस के प्रातंक से वह नगर खाली हो गया था। रिसालू ने उसे पुनः आबाद करने की दृष्टि से उस राक्षस का वध करने की ठानी । गोरखनाथजी से प्राप्त तलवार से उसने राक्षस को खत्म कर दिया । वहां से भागे हुये लोग पुनः आकर बस गये । नगर पुनः श्राबाद हो गया । समय बीतते-बीतते राजकुमारी ग्यारह वर्ष की हुई । रिसालू का हिरण बाग में चरने का बड़ा शौकीन था । जलाल पाटण के बादशाह हठमल का बाग पास ही पड़ता था। वहां वह प्रायः रात को पहुंच Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १६ ] जाता था। जब हठमल को उसका पता लगा तो वह स्वयं एक रात उसको शिकार करने के लिये वहां पाया । हठमल उसका पीछा करता-करता रिसाल के महल के पास वाले बगीचे तक आ पहुंचा। रात अधिक हो जाने के कारण वह वहीं सो रहा । उधर जब बहुत देर तक हिरण वापिस नहीं आया तो रिसालू स्वयं उसकी खोज में बाहर निकल पड़ा। रानी ने प्रभात में जब महल से बाहर झांका तो बड़े निश्चित ढंग से हठमल अपने दाढ़ी के बाल संवारता हुआ, अलसायी हुई आँखों से झरोके की तरफ देख रहा था। राणी ने भी निश्चिन्तता, साहस और मदभरी अांखें देखी तो वह उस पर आसक्त हो गई। रिसाल तो बाहर गया हुआ था ही, रानी के संकेत पर हठमल महलों में पहुंच गया और दोनों प्रेम-क्रीड़ा करने लगे : सुग्गा-सुग्गी को यह असह्य हुआ तो उन्होंने उसे टोक कर अपना कर्तव्य पूरा करना चाहा । परन्तु उनकी इस गुस्ताखी की सजा रानी ने सुग्गी के पर नोंच कर उसी समय दे दो । सुग्गा फौरन उड़ कर सभी बातों की खबर राजा को दे पाया। राजा पहुंचा तब तक हठमल वहां से रवाना हो चुका था। राजा ने रानो के सब रंग ढंग देखे तो उसे संशय हुए बिना न रहा । दूसरे दिन राजा सुग्गे को साथ ले घूमने निकला। कुछ दूर जाने पर सुग्गा उड़ कर पुनः महल पर पाया । उस समय हठमल रानो के साथ प्रेम-क्रीड़ा कर रहा था। सुग्गे ने फौरन इसकी सूचना राजा को दे दी और फिर महल पर आकर व्यंगात्मक ढंग से उन्हें कुकर्म करने की सजा मिलने का संकेत किया । हठमल ने आने वाले खतरे को भांप लिया और काम में उन्मत्त रानी से बड़ी कठिनाई के साथ विदा लेकर घोड़े पर वहां से निकला। रास्ते में ही हठमल और राजा में मुठभेड़ हो गई। हठमल राजा के भाले से मारा गया। रानी से दुश्चरित्र का बदला लेने के लिये वह हठमल का कलेजा उसके पास ले गया और उसे शिकार का मांस बता कर, पका कर खाने को कहा। रानी ने ऐसा ही किया। रानी राजा की नजरों से गिर ही चुकी थी। संयोग से एक योगी अपनी स्त्री को खो चुकने के बाद दूसरी स्त्री की मनोकामना लेकर राजा के पास उपस्थित हुआ। राजा ने अपनी रानी उसे देदी । योगो के साथ रानो रवाना तो हो गई परन्तु उसके मन में अनेक प्रकार के संकल्प-विकल्प उठ रहे थे। आगे जाकर उसने देखा तो हठमल रास्ते में मरा पड़ा था। उसे कौए नोंच रहे थे। मन ही मन रानी अपने प्रेमी की यह दशा देख कर विलाप करने लगी। जोगी को कह कर उसे जलाने के लिए चिता बनवाई, और जोगी को पानी लाने के बहाने तालाब पर भेज कर पीछे से हठमल की देह के साथ जल मरो। Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १७ ] अब राजा ने उस नगर में रहना उचित न समझ कर वहां से राजा मान की नगरी पाणंदपुर को कूच किया। वहां जाकर तालाब पर स्नानादि करने लगा। अनेक सहेलियों के साथ राजकुमारी भी वहां पानी भरने आई थी। उसने इस सुन्दर युवक की ओर कटाक्ष किया, तथा दोनों में सांकेतिक ढंग से एक दूसरे के प्रति अनुराग व्यक्त हुआ। रिसालू वहां से सीधा मालिन के घर पहुंचा जिसने जवाई के आने की खबर राजा के दरबार में पहुंचाई। राज-लोक में बड़ी खुशियां मनाई जाने लगीं। रिसालू का स्वागत किया गया। वह राजमहलों में ठहरा । रात पड़ने पर राजकुमारी सोलह शृंगार कर अपने पति से मिलने आई तो महल का दरवाजा बंद था। उसने दरवाजा खटखटाया। अनेक प्रकार के प्रेम-भरे उलाहने कोमल शब्दों में देने लगी, पर दरवाजा न खुला। इतने में वर्षा प्रारंभ हो गई । राजकुमारी ने दरवाजा खुलवाने का यह कह कर प्रयत्न किया कि मेरा श्रृंगार भीग रहा है, अब तो यह मजाक छोड़ो। दरवाजा फिर भी न खुला, तब उसने अपनी दासी से कहा-इसे तो थकावट के कारण नींद आगई है। मैं अपने प्रेमी का वायदा तो निभा आऊं। रिसालू तो नींद का बहाना करके सोया हुआ था। उसने सभी बातें सुनली । राजकुमारी जब महलों से नीचे उतरी तो वह उसके पीछे हो लिया । राजकुमारी सीधी प्राणनाथ सुनार के यहाँ गई । बरसती हुई रात में दरवाजा खुलवा कर अंदर गई तो प्राणनाथ ने उसे देर से आने पर बुरी तरह डांटा। राजकुमारी ने बड़ी विनम्रता के साथ माफी. मांगते हुए अपने दुष्ट पति के आ जाने की बात कही। तब तो सुनार और भी बिगड़ा और कहने लगा-तब तो तू इसी तरह टालमटोल करती रहेगी। तब राजकुमारी ने उसी विनम्र भाव से उसे आश्वासन दिया कि चाहे जितनी देर हो जाय किन्तु मैं आपकी हाजरी अवश्य बजाऊंगी। रिसालू यह सब कुछ दरवाजे के पास बैठा हुआ चुपके से देख रहा था। उसने उनके संभोग की उन्मुक्त क्रीड़ायें भी देखीं। प्रभात हो गया। राजा राणी से पहले अपने महल में आकर सो गया। कोई पहचान न ले, इसलिए राणी भी पुरुष का वेश धारण कर महलों में पहुंची। राजा को जगाया तो वह बनावटी निद्रा से आलस मरोड़ता हुआ उठा। राणी ने रात को दरवाजा न खोलने के लिए बड़े मान और प्रेम भरे वाक्य राजा को सुनाये । कुछ समय पश्चात् राजा ने कहा कि उसे कुछ सोने का काम करवाना है अतः सुनार को बुलवाया गया। राणी भी वहीं उपस्थित थी। राजा ने सूनार से बातचीत प्रारंभ की। उसने देखा कि सुनार और राणी की प्रेमभरी नजरें बार-बार आपस में टकरा रही हैं। उसने उपयुक्त अवसर देख कर पानी को Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १८ ] झारी मंगवाई और अंजली में संकल्प लेकर 'श्रीकृष्णारपुन्य छै' कहकर रानी का हाथ सुनार के हाथ में दे दिया। राज-परिवार ने रिसालू को बड़ा उलहना दिया, परन्तु उसने यह कह कर वहां से विदा ली कि मैंने तुम्हारी लड़की को उसी प्रकार तज दिया है जिस प्रकार सांप केंचुली को छोड़ता है । ___ रिसालू को अब केवल भोज की लड़की से मिलना था। वह सीधा उज्जैन पहुंचा । उसके संकेत के अनुसार जब बगीचे में ग्राम का झूमका गिर पड़ा, तो भोज की लड़की ने समझा कि रिसालू पा जाना चाहिए था परन्तु निश्चित अवधि तक वह नहीं आया । इसलिए अब प्राण त्याग देना ही उचित होगा । नदी के किनारे उसके लिए चिता बन चुकी थी। रिसालू आकर वहीं बाग में ठहरा । लड़की जलने के लिए चिता के पास पहुंची तब रिसाल ने वहां पहुंच कर अपने आने की सूचना दी। लड़की को जलने से रोक दिया गया और यह निश्चय होने पर कि लड़की का पति रिसालू यही है, दोनों सुख के साथ राजमहलों में प्रानंद भोगने लगे। रिसाल को विश्वास हो गया कि संसार में पतिव्रता और सती नारियां भी हैं । वहां से फिर अपनो रानी सहित अपने माता-पिता से मिलने चला। महादेवजी की कृपा से उसका फौज-बल भी बढ़ गया था। शहर के बाहर तालाब पर उसने फौज सहित पड़ाव डाला। राजा समस्तजीत किसी प्रबल शत्रु को आया जान, पहले तो भयभीत हुआ, परन्तु जब पता चला कि बारह वर्ष का वनवास भोगने के बाद यह उसका पुत्र ही पाया है तो उसके हर्ष का ठिकाना न रहा। पूरे शहर में खुशियां मनाई गई और रिसाल को बड़े स्वागत के साथ राजमहलों में लाया गया । कथा-वैशिष्ट्य कथाकार का उद्देश्य राजस्थानी कथा साहित्य में राजा भोज, विक्रमादित्य, रिसालू आदि प्रसिद्ध व्यक्तियों को लेकर अनेक प्रकार की कथायें बनी हैं। उनमें त्रिया-चरित्र को प्रगट करने वाली कथाओं का अपना महत्व है। इस प्रकार की घटनायें वास्तव में इन महापुरुषों के जीवन में घटी या नहीं, यह कहना बड़ा कठिन है। परन्तु यह स्वीकार किया जा सकता है कि इन विभूतियों का व्यक्तित्व इतना महान् था कि जिसे महत्तर बनाने के लिए ये मानव को अनेकानेक प्रवृत्तियों को जानने के जिज्ञासु निरन्तर बने रहे और अपने ज्ञान की पिपासा को शान्त करने के लिए अनेक प्रकार की कठिनाइयां भी इन्होंने झेली । Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १६ ] सौन्दर्य से अोतप्रोत सुकुमार नारी मनुष्य की काम-पिपासा को शान्त करने का साधन सृष्टि के प्रारंभ से ही रही है । इसलिए उसके सौन्दर्य और व्यक्तिगत विशिष्ट गुणों की असंख्य कल्पनायें अलग-अलग युगों में होती रही हैं । एक ओर मनुष्य नारी की सम्मोहन-शक्ति से जहां अभिभूत होता रहा है वहां वह उस पर पूर्ण अधिकार रखने के लिए हो सचेष्ट रहता आया है। अपना पूर्ण अधिकार खो देने की कल्पना उसे भयभीत भी करती रही है जिसके कारण वह अपनी अत्यन्त प्रिय वस्तु को संशय की दृष्टि से भी देखता आया है। दूसरी ओर, नारी अपना सब कुछ पुरुष को अर्पण कर सन्तोष और सुख का अनुभव करती रही है, वहां वह मनुष्य के कृत्रिम अधिकारों से बुने हुए सामाजिक नियमों के जाल में दम घुट जाने के कारण मनोवैज्ञानिक विवशताओं की विशेष परिस्थितियों में उस जाल को तोड़ कर सब के सम्मुख आ खड़ी हुई है । इस प्रकार की कथानों के नारी-चरित्रों को देखने से नारी और पुरुष के अधिकारों की असमानता तथा दाम्पत्य जीवन की विशृंखलता का अनुमान लगाने के साथ-साथ उस काल के मानव का नारी के प्रति दृष्टिकोण भी किसी अंश तक समझ में आता है । राजा रिसाल जब अगरजी की नगरी के पास पहुंचा तो उसे पता लगा कि एक सुन्दर राजकुमारी को पाने के लिये कितने ही लोग अपनी जान गंवा बैठे हैं, फिर भला वह क्यों पीछे रहता यद्यपि कुछ ही समय पहले उसकी शादी राजा भोज और राजा मान की लड़की से हो चुकी थी । चौपड़ के खेल में अगरजी से जीत जाने पर अगरजी का शिर न कटवाने के बनिस्पत उसकी बड़ी लड़को के साथ शादी करने का प्रस्ताव उसके सामने रखा गया परन्तु अनेक मनुष्यों का वध उसके कारण हुआ था, इसलिये उसने यह रिश्ता अस्वीकार कर दिया। वस्तुस्थिति तो यह थी कि लोंगों के प्राण लेने का खेल उसका पिता खेलता था, लड़की का भला इसमें क्या दोष ? एक ओर पिता के कुकृत्यों के कारण उसे पापिनी घोषित होना पड़ा और दूसरी ओर उसका भविष्य भी अनिश्चित हो गया। मनुष्य का नारी के प्रति मोह बड़ा अजीब होता है। रिसाल ने राजा की दस माह की कन्या के साथ शादी करली और उसे लेकर वहां से रवाना भी हो गया। अनेक प्रकार की कठिनाइयों को झेलने के बाद लड़की ग्यारह साल की हुई और उसका प्रेम-सम्बन्ध अचानक ही हठमल के साथ हो गया । रिसालू का उसके प्रति कुपित होना स्वाभाविक ही था, क्योंकि वह उसको परिणीता थो। परन्तु मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यदि देखा जाय तो जो Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २० ] लड़की एक पुरुष द्वारा शिशु-अवस्था से ही पाल पोष कर बड़ी की गई हो, उसके प्रति पिता का सा आदर और अनुराग की भावना का होना स्वाभाविक ही है। उसे अपना प्रेमी बना लेने की कल्पना बहुत कठिन है। ऐसी स्थिति में प्रेमातुर पिपासा के वशीभूत वह अपना नवविकसित यौवन हठमल को अर्पित कर देती है। उसका प्रेम वास्तव में सच्चा है, इसीलिये वह योगी के साथ न जाकर हठमल की चिता में जल मरती है। राजा मान की लड़की के साथ रिसालू की शादी कोई ११-१२ वर्ष पहिले हो चुकी थी। क्योंकि रिसाल को देश निकाला मिल चुका था और उसका निश्चित पता भी मालूम नहीं था, ऐसी अवस्था में सुनार के लड़के से उसका प्रेम हो गया। सुनार जैसे साधारण व्यक्ति से एक राजकुमारी का प्रेम होना चौंका देने वाली बात अवश्य है, किन्तु इसके पीछे संपर्क की सुविधा विशेष कारण प्रतीत होती है क्योंकि सुनार लोग प्राय: रनिवास में गहने आदि बनाने के संबंध में बातचीत करने पहुंच जाया करते होंगे । रिसाल को जब उनके प्रेमसंबंध का पता लग गया तो उसने सुनार को ही राजकुमारी देदी और वह उसे अपने घर ले गया। इससे एक ओर जहां रिसाल की उदारता प्रकट होती है वहां राजा मान की घरेलू व्यवस्था का भी पता चलता है। राजकुमारी के चरित्र के बारे में घर वालों को सब कुछ मालूम हो जाने पर भी वे राजकुमारी को उसी समय किसी प्रकार का उलाहना या दण्ड नहीं देते अपितु रिसाल से ही प्रार्थना करते हैं कि वे इतनी सुन्दर राजकुमारी का परित्याग इस प्रकार को घटना के कारण न करें और सारी बात को वहीं पर दबा कर उनके घर की प्रतिष्ठा को बचाने में सहयोग दें। रिसालू का कोई भी बात नहीं मानना स्वाभाविक है क्योंकि कोई भी व्यक्ति, दुश्चरित्र नारी को जान-बूझ कर पत्नी के रूप में स्वीकार करना नहीं चाहता। राजा रिसाल के जीवन में इस प्रकार की घटनाओं के घटने से नारी-जाति के प्रति उसका विश्वास उठ-सा गया था। फिर भी वह अपनी एक और विवाहिता रानी राजा भोज की राजकुमारी को भी परख लेना चाहता था । निश्चित अवधि समाप्त हो जाने पर वह अपने वायदे के अनुसार उज्जैनी नगरी पहुंच गया। न मालूम इस बीच में कितनी उलटी-सीधी कल्पनायें राजा भोज की लड़की के संबंध में की होंगी। परन्तु ज्यों ही वह वहां पहुंचा, उसने देखा कि अवधि के समाप्त हो जाने के कारण राजकुमारी चिता में जल कर भस्म हो जाने को तैयार है । तब उसे विश्वास हुआ कि सभी स्त्रियां एक सी नहीं होती। Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २१ ] स्त्री या पुरुष का चरित्र संस्कारों से ही बनता और बिगड़ता है। बात की ऊपरी घटनाओं को देखने से तो नारी-जाति के प्रति अविश्वास का भाव जगता है परन्तु उनकी गहराई में जाकर विचार करने से कथाकार का उद्देश्य यही मालूम देता है कि परिस्थितियों की छाप मनुष्य के मनोभाव पर पड़े बिना नहीं रहती। सामाजिक परिस्थितियां व मान्यतायें राजकुमारी का पानी भरने सखियों के साथ तालाब पर जाना, स्वयं खाना आदि पकाना, जल-क्रीड़ा करने सहेलियों के साथ जाना आदि कथा में वरिणत है। इससे पता चलता है कि आभिजात्य-वर्ग के लोगों का सीधा सम्पर्क जनता से था। ___ जूमा आदि खेलना और उसमें अपने प्राणों की बाजी लगा देना तथा उसके दुष्परिणामों के कारण दुःखद घटनाओं का होना भी महाभारत-काल की तरह उस समय में भी मौजूद था। जैसा कि प्रायः राजस्थानी लोक कथाओं में मिलता है । पशु-पक्षियों को इन्सान की तरह पढ़ा लिखा कर चतुर बताया गया है। हरिण व सुग्गे-सुग्गी राजा रिसाल के विश्वासपात्र मित्र की तरह उसका काम करते हैं और उसकी अनुपस्थिति में उसके महलों की निगरानी भी रखते हैं। मौका पाने पर स्वामिभक्त नौकर को तरह प्राणों का मोह छोड़ कर अपने कर्तव्य को पूरा करते हैं। अनेक प्रकार के अवतारों व उनकी सिद्धियों आदि से नायक को अचानक सहायता मिल जाने के कारण कथा में अप्रत्याशित परिवर्तन आ गये हैं। गोरखनाथ की सिद्धि तथा लघु-लाघवी विद्या के बल पर ही रिसाल बड़ी से बड़ी कठिनाइयों में से पार होता हुआ आगे बढ़ता है और अन्त में महादेवजी की कृपा से वह बहुत बड़ी फौज का मालिक भी बन जाता है। ____ कई घटनाओं को घटित कराने के लिये ज्योतिष का भी सहारा ले लिया गया है। ___ ये सभी तत्व तत्कालीन समाज की मान्यताओं और रूढ़ियों को हमें अवगत कराते हैं। वर्णन एवं शैली कथा में स्थान-स्थान पर नारी-सौन्दर्य के अतिरिक्त सुन्दर प्रकृति-वर्णन भी किया गया है। प्रकृति-वर्णन प्रायः पारम्पर्य रूप से ही हुआ है। परन्तु उससे वातावरण की सुन्दर सृष्टि अवश्य हो गई है। यहां वर्षा का वर्णन उल्लेखनीय Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २२ ] "इतरा माहे वरषा काळ रो मास छ। श्रावण रो महिनो छ । तठे उतराधरा पमी (गी, गा) री चाली थकी घटा पाई छै । मोर, पपीया, कोइला कह का कीया छ । डैडरिया डरूं डरूं कर रहया छै। धरती हरीयों कांचं पहरण रो पास धरी छै । (पृ० ११५) __ पद्यांशों में भी कुछ पद्यों में प्रकृति के उद्दीपक रूप की सुन्दर अभिव्यंजना क गई है : "वरषा रित पावस करे. नदीयां प (ष) लके नीर । तिण विरीयां सूकलीणीयां, धरणीयांस्यां परचौ सीर ॥ २२६ ।। परवाई झोणी फूरे, रीछी परवत जाय । . तिण विरीयां सूंकलीणीयां, रहती पीव-गल लाय ॥ २२७ ।। (पृ० ११५) जहां सक शैली आदि का प्रश्न है, इसमें गद्य और पद्य का प्रचुर प्रयोग हुआ है, परन्तु कथा को रोचक बनाने के लिए तथा उसे गति प्रदान करने के लिए संवादात्मक शैली को प्रधानता दी गई है। कुछ एक संवाद तो बड़े ही प्रभावोत्पादक बन पड़े हैं जिससे लेखक के कलात्मक सृजन का अनुमान लगाया जा सकता है। पद्यांशों के अन्त में 'बे' अक्षर का प्रयोग प्रायः सर्वत्र मिलता है, जो कि शायद इसी कथा के आधार पर प्रचलित खयालों की शैली के प्रभाव के कारण है। जहां तक भाषा का प्रश्न है उस पर पंजाबी का प्रभाव भी दृष्टिगोचर होता है । कथा-भिन्नता राजस्थानी भाषा में लिपिबद्ध कथाओं के विभिन्न रूपान्तर भी प्रायः मिलते हैं । मूमल, सोरठ, ऊजळी जेठवा आदि कुछ बातें राजस्थानी और गुजराती दोनों में ही प्रचलित रही हैं । राजा रिसालू की बात भी गुजराती भाषा में भी उपलब्ध होती है जो इस ग्रन्थ के परिशिष्ट १ (क) में प्रकाशित की गई है। दोनों को कथा-वस्तु में तथा स्थानों प्रादि में भी अन्तर है। उदाहरणार्थ कुछ एक भिन्नतायें इस प्रकार हैं :राजस्थानी गुजराती १ शालिवाहन का पौत्र समस्तकुमार १ शालिवाहन का पुत्र रिसालू । का पुत्र रिसालू । २ राजा भोज एवं राजा मान की २ राजा भोज की पुत्री का नाम पुत्रियों का नाम नहीं। सांमलदे और धारा नगरी के मान कछवाहा को पुत्री का नाम धारा। Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २३ ] ३ अगरजी की नगरी का नाम नहीं। ३ अगरजी की नगरी का नाम विराट है। ४ अगरजी की छोटी पुत्री का नाम ४ छोटी पुत्री का नाम फूलवती है। नहीं । ५ राक्षस द्वारा उजाड़े गये नगर का ५ सीधडी गांव । नाम द्वारका । ६ जलाल पाटन का बादशाह हठमल। ६ हठीयो बणझारो, जाति का राज पूत, गढ गांगल का चहुवाण राजपूत, सोरठ में नवलरक गांव बसा कर रहा। ७ योगी की पत्नी का किसी ने हरण ७ योगी के साथ सुन्दरो के त्रियाकर लिया। चरित्र का ऐन्द्रजालिक वर्णन । ८ फूलवतो का हठमल के साथ सती ८ फूलवती का झरोखे से कूद कर होना। आत्महत्या करना। ६ प्राणनाथ सुनार । ६ कुमतीओ सुनार । परिशिष्ट १ (ख) में प्रकाशित रिसालू के दोहों में भी कुछ भिन्नता है । कथा का मूल लेखक कौन रहा होगा? इसका पता बात से नहीं लगता परन्तु कथा के अन्त में पाए हुए एक पद्यांश में नर्वद नामक चारण का उल्लेख अवश्य पाया है जिसने कि प्रचलित बात में दोहे आदि जोड़ कर उसे वर्तमान रूप दिया है। Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २४ ] बात नागजी नागवन्ती री कथा-सारांश कच्छ के स्वामी जाखड़े अहीर के राज्य में दो तीन वर्ष तक निरन्तर अकाल पड़ा । जब कोई व्यवस्था वहां न बैठ सकी, तब वे बागड़ प्रदेश के राजा धोलवाड़ा के वहां पहुंचे । दोनों में अच्छी मेल-मुलाकात हो गई तथा वे दोनों पगड़ीबदल भाई हो गये । धोलवाड़ा के नागजी नाम का पुत्र था । नौकर-चाकर जब चारों ओर काम में लग जाते तब वह स्वयं एक खेत की रखवाली किया करता था । उसको भावज परमलदे उसका खाना खेत में ही दे पाया करती थी। एक बार वह जाखड़े अहीर की लड़की नागवंती को भी साथ ले गई। रास्ते में परमलदे ने नागवंती से जिद्द किया कि नागजी जब स्नान करके प्रभात में सूर्य को जल चढ़ाते हैं तो उनके पैरों के चिन्ह कुंकुम से अंकित हो जाते हैं। नागवंती ने इस पर बड़ा आश्चर्य व्यक्त किया और कहा कि यदि ऐसी बात है तो मैं नागजी से शादी कर लूंगी । बात सही निकली। नागजी भी नागवंती के सौन्दर्य को देख कर मुग्ध हो गये। उनके विवाह में एक अड़चन यह थी कि दोनों के पिता आपस में पगड़ी-बदल भाई बने हुये थे। इसलिये बिना किसी को मालूम हुये उन्होंने खेत में ही विवाह कर लिया। अब वे खेत में ही आनंद से रहने लगे। परन्तु जब खेत काट लिया गया तो सभी को अपने-अपने घर वापिस जाना पड़ा । नागजी आम के वृक्ष के नीचे घोड़े पर सवार होकर विदा होने के लिए तैयार हुए तब नागवंती ने आमः को साक्षी बना कर अपना प्रेम व्यक्त किया तथा प्रेम का निर्वाह करने को दोनों ने अपने हृदय में दृढ़ प्रतिज्ञा की । नागजो को चेष्टाओं को देखकर उसके पिता को संदेह हो गया। अतः वह नागजी को घर से निकलने की इजाजत तक नहीं देता था। विरह की व्याकुलता में नागजो क्षीणकाय होकर बीमार रहने लगे। वैद्य बुलाये गये, परन्तु बीमारी का कुछ भी पता नहीं लगा। नागजी ने एक दोहे में अपने हृदय की बात कहते हुए कीमती मूदड़ी उस वैद्य को दी। तब वैद्य को बात समझ में आई । उधर से नागवंती ने भी अपना कीमती हार उसी वैद्य को दिया। वैद्य ने नागजी की चारपाई वहां से हटवा कर अलग कमरे में लगवा दी जिससे नागवंती मौका निकाल कर नागजी से मिल सके। होली के दिन नागवंती गैहर देखने के बहाने से गढ़ में नागजी से मिलने आई, परन्तु नागजी कहीं दिखाई न दिये । तब एक दासी की सहायता से वह Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २५ ] नागजी के पास महल में पहुंची। संयोग से इन दोनों को पलंग पर सोता हुआ नागजो के पिता ने देख लिया। क्रुद्ध होकर ज्योंही उसने अपनी तलवार निकाली, नागवंती का पिता जाखड़ा अहीर भी पा पहुंचा और उसने उसका हाथ पकड़ लिया । दूसरे दिन नागजी को देश-निकाला दे दिया। नागवंती की सगाई हाकड़े परिहार से की हुई थी, अतः उसे फौरन प्राकर नागवंती से शादी कर लेने की सूचना दी। रवाना होते समय नागजी अपनी भावज से मिले। तब भावज ने उससे कहा कि तीन दिन तक वह बाहर वाले बगीचे में ही ठहरे। उसने दोनों का मिलान कराने का वायदा भी किया। हाकड़ा सूचना मिलते हो फौरन आ पहुंचा। दोनों तरफ विवाह को तैयारियां होने लगों । नागवंतो ने जब परमलदे को मिलने के लिए बुलाया तो वह अपने साथ स्त्री के वेश में नागजो को भी ले आई, यद्यपि सभी लोग चौकस थे कि कहीं वेश बदल कर नागजी यहां न आ जाय । नागजी किसी तरह से नागवंती के पास पहुंच गये । नागवंती ने भी इन्हें पहिचान लिया और हथलेवे के बाद रात को बाग में आकर मिलने का वायदा किया। नागजी अपने स्थान पर लौट गए और रात पड़ने पर बगीचे में नागवंती का इंतजार करने लगे। हथलेवे के बाद नागवंती सिर में दर्द होने का बहाना बना कर एकान्त में चली गई और वहां से चुपचाप बगोचे की ओर निकल पड़ी । नागजी काफी देर तक बड़ी उत्सुकता से नागवंती का इन्तजार करते रहे, परन्तु जब नागवंती नहीं पहुंची तो विरह के दारुण दुःख ने उन्हें कटारी खाकर चिर निन्द्रा में सो जाने को मजबूर कर दिया । अनेक विघ्न और बाधाओं को पार करतो हुई, वर्षा में भीगती हुई नागवंती जब नियत स्थान पर पहुंची तो नागजी अपना दुपट्टा अोढ़ कर सोये हुए थे। पहले तो नागवंती ने समझा कि ये रूठ कर सो गये हैं, परन्तु उसने जब नागजी को मरा हुआ पाया तो वह अत्यन्त दुःखित होकर विलाप करने लगी। इतने में नागजी का पिता वहां आ पहुंचा और यह सारा दृश्य देख कर जाखड़ा अहीर को भी बुलाया । बड़े ही मार्मिक और करुणाजनक परिस्थितियों में लोकलज्जा-वश नागवंती को घर लाया गया । प्रभात होने पर बरात रवाना हुई और ज्योंही तालाब के पास पहुंची तो नागजी को चिता जल रही थी । नागवंती ने जब उस दृश्य को देखा तो उसका हृदय उसके वश में न रहा और वह अपने हाथ में नारियल लेकर सती होने के Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २६ ] लिए रथ से उतर पड़ी। देखते-देखते नागजी और नागवंती का अग्निदेव की गोद में चिर मिलन हो गया । सच्चे प्रेमियों का यह करुणापूर्ण जोवन-उत्सर्ग देख कर महादेव व पार्वती तुष्टमान हुए और उन्होंने उन दोनों को पुनर्जीवित कर दिया। अब दोनों आनंद और उल्लास के साथ जीवन-सुख भोगने लगे । कथा-वैशिष्ट्य राजस्थानी प्रेम-गाथाओं में नागजी और नागवंती की प्रेम-गाथा का विशिष्ट स्थान है क्योंकि इनकी प्रेम-कहानी इस प्रकार की घटनाओं के साथ गुंफित है जिसमें कि प्रेम, करुणा, सामाजिक व्यवधान और इन्सान को मजबूरी का अद्भुत सम्मिश्रण हमें देखने को मिलता है । नागजी के साथ नागवंती का प्रेम, नागजी के विशिष्ट गुण के कारण परमलदे के माध्यम से होता है और नागवंती अपने नैसर्गिक सौन्दर्य के कारण नागजी को पूर्ण रूप से अपने में आसक्त कर लेती है। परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि सामाजिक रीति-रिवाजों और बंधनों से एकाएक ऊपर उठना उनके वश की बात नहीं है। इसलिए वे अपना विवाह भी चुपके से खेत में ही कर लेते हैं। विवाह के पश्चात् वे एकान्त में ही पानंद का उपभोग करते हैं और संशय हो जाने पर समाज का मुकाबला न कर चुप्पी साध लेते हैं। दोनों पात्रों में इतना घनिष्ठ प्रेम होने के बावजूद भी उनका इस प्रकार का व्यवहार उनके हृदय की कमजोरी को ही व्यक्त करता है। लड़को और लड़के के पिता दोनों ही अपनो सन्तान को प्रिय समझते हैं परन्तु यह जानते हुए भी कि नागजी और नागवंती में बहुत गहरा प्रेम है, वे समाज के भय से विचलित होकर उन्हें सहायता पहुंचाने के बजाय व्यवधान ही बनते हैं । अन्त में नागजी की मृत्यु के पश्चात् नागवंतो हाकड़े परिहार के साथ विदा होती है तो नागजी का पिता उस पर व्यंग करके नारी की दुर्बलता पर पुरुष के क्रूर पौरुष का आघात करता हुआ पुत्र-हानि से होने वाले विह्वल हृदय को प्रात्मतोष प्रदान करना चाहता है । यह विडम्बना तत्कालीन समाज में नारी और पुरुष के सम्बन्धों को व्यक्त करती है । व्यंग्यात्मक दोहा इस प्रकार है : ऊंड पड़वै पैस, पिवसु पंजां मारती । सु माणसीया एह, घूघे लागा धोलउत ।।७४ ॥ पृ० १६२ इसमें कोई संदेह नहीं कि सभी पात्र समाज के बंधन से ऊपर उठने में असमर्थ रहे हैं। परन्तु अन्त में नागवंती ने नागजी के साथ सतो होकर अपने हृदय की कमजोरी पर ही विजय नहीं पाई, वरन् नागजी तक के प्रेम को उसने Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २७ ] चुनौती दे दी। इसी प्रकार नारी का सच्चा प्रेम पुरुष के प्रति कथा में प्रकट किया गया है। ___कथा के अन्तिम भाग में करुणा और प्रेम का बड़ा ही अद्भुत मिश्रण हुआ है और वह भी नागवंती का विवाह अन्य पुरुष के साथ होने की पृष्ठभूमि में । यद्यपि नायक और नायिका का प्रेम बड़ी ही भावुकतापूर्ण शैली में व्यक्त किया गया है तथापि यह प्रेम करुणा की रागिनी से ओतप्रोत है। अत: विवाह अथवा अन्य किसी शुभ कार्य के अवसर पर इस गीत का गाना अशुभ माना जाता है। नागजी, भत हरि आदि के गीत और दोहे सुन कर लोगों के हृदय में अन्ततः एक प्रकार के वैराग्य की भावना उत्पन्न हो जाती है। ___कथा में जहां तक उस काल की सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों का प्रश्न है, ऐसा प्रतीत होता है कि दुष्काल पड़ने पर शासक-वर्ग प्रजा को सहायता पहुंचाना अपना फर्ज समझता था। इतना ही नहीं अपितु प्रजा की भलाई के लिये वे स्वयं उसके साथ दूसरे देश में जाकर वहां के शासक से जान-पहिचान करते और अपनी प्रजा के लिये समुचित व्यवस्था करवाते थे। प्रजा और राजा का यह घनिष्ठ संबंध यहां तक ही सीमित नहीं था, चोर लटेरों को दलित करने के लिये उनके पुत्र स्वयं जोखिम उठा कर उनका पीछा किया करते थे। धोलवाड़ा के राज्य का आतंक उसके पुत्र स्वयं नागजी ने समाप्त किया था। नागजी का स्वयं खेत में जाकर पहरा देना और उनकी भावज परमलदे का उनके लिये खाना लेकर जाना आदि इस बात को प्रमाणित करता है कि उस काल का शासक-वर्ग कितना कर्मठ और समाज के साथ घुला-मिला था। भाषा-शैली कथा की भाषा का जहां तक प्रश्न हैं वह प्रसाद-गुणयुक्त और सरल है तथा बोलचाल की भाषा के अधिक समीप होते हुये भी उसमें साहित्यिक सौन्दर्य का अच्छा निर्वाह हुया है । ठेट राजस्थानी के शब्दों के प्रयोग से सामाजिक वातावरण बनाने में कथाकार को अच्छी सफलता मिली है। काव्य-सौंदर्य को दृष्टि से कुछ दोहे राजस्थानी साहित्य को अमूल्य निधि कहे जा सकते हैं क्योंकि उनमें भाव-गरिमा के साथ-साथ हृदय की तड़फन और व्यंग्यात्मकता का सन्दर सम्मिश्रण हुआ है । उदाहरणार्थ कुछ दोहे इस प्रकार हैं सज्जन दुरजन हुय जले, सयणा सीख करेह । धरण विलपंती यु कहै, प्रांबा साख भरेह ॥ १६ ॥ नागजी नगर गयांह, मन-मेलू मिळीया नहीं । मिळीया अवर घणांह, ज्यासु मन मिळीया नहीं ॥ १७ ॥ पृ० १५१ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २८ ] सांमा मिळीया सैण, सेरी में सांमा भला। उवे तुमीणा वैण, नहचै निरवाया नहीं ।। ३० ।। पृ० १५४ नागड़ा निरखू देस. एरंड थाणी थपीयो। हंसा गया विदेस, बुगला ही सूं बोलणी ।। ३७ ।। पृ० भामण भूल न बोल, भंवरो केतकीयां रमै । जांण मजीठा चोळ, रंग न छोड़े राजीयो ॥ ३८॥ वण्यो त्रिया को वेस, आवत दीठो कुंवरजी। जातो दुनीया देख, नाटक कर गयो नागजी ॥ ४० ॥ पृ० १५७ नागड़ा सूतो खूटी ताण, बतळायां बोल नहीं । कदेक पड़सी काम, नोहरा करस्यो नागजी ॥ ५८ ।। पृ० १६० कळ मैं को कुंभार, माटी रो मेळो करै। चाक चढ़ावरणहार, कोई नवौ निपावै नागजी ॥ ७७ ॥ पृ० १६२ वात मयाराम दरजी री - कथा-सारांश आबू पर्वत पर गुरु और चेला तपस्या करते थे। गुरु का नाम गंगेव ऋष और चेले का नाम चतुर रिष। तपस्या करते-करते उन्हें तीन युग व्यतीत हो गये। ऐसे तपस्वियों की सेवा-शुश्रुषा करने और ज्ञान-चर्चा सुनने इन्द्राणी स्वयं आठ अप्सराओं सहित प्रस्तुत हुआ करती थी और कलियुग में गरु-चेले की मंसा वहां रह कर तपस्या करने की नहीं थी। अत: उन्होंने वहां से विदा लेने के पहले इन्द्राणी और अप्सराओं से वर मांगने को कहा, क्योंकि उनकी सेवा से वे अत्यधिक प्रसन्न थे । इन्द्राणी ऐसे पहुंचे हुए ऋषि का पीछा छोड़ने वाली कब थी। उसने यही वर मांगा कि नरपुर में जन्म लेकर आप मुझसे विवाह करें और हम दोनों आनंद का उपभोग करें। वचनों में आबद्ध ऋषि को भांड्यावास ग्राम में दुलहे दरजी के घर मयाराम के रूप में जन्म लेना पड़ा और अलबल (र) नगर में शिवलाल कायस्थ के घर इन्द्राणी ने जसां के रूप में अवतार लिया । पाठों अप्सरायें जसां के पास दासियों के रूप में पहुंच गईं। __ जब जसां पन्द्रह वर्ष की हुई तो रामबगस सुग्गे के रूप में चेला चतुर ऋष उसके पास पहुंच गया। वह वेदों का ज्ञाता तथा आगे-पीछे की जानने वाला था। शिवलाल कायस्थ सुग्गे की प्रतिभा से बहुत अभिभूत था इसलिए उसने जसां के वर ढूंढ़ने तथा विवाह करने की जिम्मेवारी भी उसी पर छोड़ दी और वह Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २६ ] स्वयं परदेश चला गया। अब विलंब किस बात का था। जसां से प्रेम-पत्र लिखवा कर वह फौरन भांडियावास मयाराम के पास पहुंचा और मयाराम की स्वीकृति तथा हाथ की मूंदड़ी लेकर जसां के पास लौटा। मयाराम जसां से विवाह करने के लिये बड़ी सजधज के साथ अलवल (र) नगर पहुंचा। बरात में घोड़ों और बरातियों को साज-सज्जा देखते ही बनती थी। बधाईदार ने ज्योंही जसां को जाकर बधाई दी तो उसे ५०० मोहरें मिलीं। मालकी दासी को जसां ने बरात के सामने भेजा, तथा साथ ही मयाराम के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए उसे पहिचानने के लक्षण बताये । फिर मालकी मयाराम के पास पहुंच कर उसे तोरण पर लातो है । उसके स्वागत में कोई ५०० वेश्यायें, भगतों व ढोलनियें गाती हुई उसका स्वागत करती हैं । मयाराम का ठाट-बाट उस समय इन्द्र से कम प्रतीत नहीं होता है। उसका रूप तो कामदेव को भी मात करता है। सभी सखियों ने मयाराम के सौन्दर्य और साज-सज्जा की मुक्त-कंठ से प्रशंसा की। बड़े ही ठाट-बाट के साथ विवाह-संस्कार सम्पन्न हा । दूसरे दिन जसां जब मयाराम के डेरे की ओर चली तो मदमस्त हाथी की सी चाल और उसके श्रृंगार की अनुपम छबि लोग देखते ही रह गये । आधी रात होने पर दोनों रति-क्रीडा का आनंद लेने लगे। बीच-बीच में दासियां ठिठोली करने लगीं । दूसरे दिन जब मयाराम वहां से प्रस्थान करने का विचार करने लगे तो जसां के लिए मयाराम का विछोह असह्य हो गया। इतने सुन्दर वर को वह आसानी से किस प्रकार जाने देती । उसने अपनी दासियों की सहायता से शराब के प्यालों की मनुहार ही मनुहार में युवक वर को मदमस्त बना कर उसका जाना स्थगित करवा दिया, फिर भला वर्षा ऋतु में जाना संभव कैसे हो, क्यों कि सामने ही सावण को तीज भी तो पा रही थी, जिसका ललित चित्र मयाराम के सामने जसां ने प्रस्तुत कर आनन्द का उपभोग और अनुकूल मौसम का लोभ देकर उसे भरमा लिया। शराब की मनुहारें निरंतर चलती रहीं। प्रेम की इन मदमस्त घड़ियों में जब लज्जा और संकोच का निवारण हो गया तो बातों ही बातों में अपने-अपने देश की बड़ाई करते समय दूल्हे-दुल्हन में खटपट हो गई। मयाराम यह कह कर कि ऐसी कई मुंदरियां मुझे उपलब्ध हो सकती हैं, वहां से विदा लेने को तैयार हुअा तब परिस्थिति को बिगड़ते हुए देख कर मालू दासी ने जसां के राशि-राशि सौन्दर्य का वर्णन कलात्मक ढंग से करते हुए 'ऐसी सुन्दरी को त्यागना बुद्धिमानी नहीं है' कहकर प्रेमी युग्म को Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३० ] पुनः भावात्मक सहजता के सूत्र में बांधा । जसां ने भी गुस्से ही गुस्से में कटु वचन कहने के लिए क्षमा मांगो । कथा-वैशिष्ट्य युद्धवीरों, दानवीरों और धर्मवीरों को लेकर यहां के कवियों ने पुष्कल परिमाण में साहित्य-सृजन किया है । इन प्रमुख विषयों के अतिरिक्त कुछ चारण कवियों ने संभ्रान्त परिवार के नायकों को छोड़ कर साधारण व्यक्तियों का नाम अमर करने की मनोकामना से भी साहित्य-निर्माण किया है। ये व्यक्ति किसी न किसी कारण से कवियों के कृपापात्र बन गये थे और उनको सेवाओं का पुरस्कार उन्होंने उन्हें संबोधित कर साहित्य रचना के द्वारा किया है । राजिया, किसनिया, ईलिया, चकरिया आदि को संबोधित करके को गई रचनाओं के पीछे इसी प्रकार की कुछ बातें हैं। उन्नीसवीं शताब्दी से इस प्रकार को रचनाओं के निर्माण की परम्परा विशेष रूप से राजस्थानी-काव्य में गतिशील दिखाई देती है। __ मयाराम दरजी की वात भी इसी कोटि की रचना है। ऐसी किंवदन्ती प्रसिद्ध है कि भांडियावास (मारवाड़) के प्रसिद्ध कवि मोडजी पासिया जब एक बार लंबे अर्से तक बीमार रहे तब उन्हीं के गांव के दर्जी मयाराम ने उनकी बड़ी सेवा की थी। अत: कवि ने प्रसन्न होकर इस बात की रचना उसे नायक बना कर की। जहां तक बात की कथावस्तु का संबंध है उसमें दैविक अवतार से कथा प्रारंभ होकर नायक-नायिका के उद्दाम यौवन में झुलती हई काम-क्रीड़ा और प्रेमी-युग्म की अनेकानेक चेष्टाओं को व्यक्त करती हुई समाप्त होती है। कथा में जहां एक ओर अत्युक्तिपूर्ण वर्णनों का प्राधिक्य है, वहां कामुकता और नग्न शृंगार का भी कवि ने बड़ी उदारता के साथ रस लेकर वर्णन किया है । राजस्थानी में प्रेमपाती लिखने की विशेष परम्परा रही है। प्रायः प्रेयसी भावुकतापूर्ण अलंकृत शैली में अपने प्रिय को अनेक प्रकार को उपमाओं से विभूषित करती हुई उसे पत्र लिखती है । इस बात में भी रामबगस सुग्गे के साथ जसां अपने प्रिय मयाराम को पत्र लिखती है, जिममें जसां के प्रेम-प्रदर्शन के साथ-साथ राजस्थानी संस्कृति के भो दर्शन होते हैं । ___ 'सिध श्री भांडीयावास वाली वाट मुहगी दसै, प्रातम का आधार मयारांम जी वस, अलवल (र) थी लषावतुं जसांको मुझरौ अवधारसी। रामबगस राज नषै आयो छ, जीको कुरब वधारसी। अठा लायक काम बिंदगी लषावसी। Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३१ ] ठी साकी आप गाढी बुसीयां रखावसी । षांनपांनकी, पिंडांको जाबतो रषावसी । जाबतो तो बलदेवजी करसी पण ताबादार तो लषावसी । भरोसादार भला मनंष जीव-जोग साथै लीजो। इंद्र राजाकी तरैका वींद राजा (हो) वीजो। आपकी वाट भाळी छां । श्रौ दवस कदीयां ऊगै, जसीको भाग जागै, अलवल (र) आप प्राय पूगै ।" मोडी प्रासिया बांकीदासजी के वंशजों में प्रसिद्ध कवि हो गये हैं जिनकी रचना पाबू प्रकाश विख्यात है । उन्होंने इस कथा के निर्माण में कुछ स्थलों पर अपनी विद्वत्ता और भाषा की विस्तृत जानकारी का सुन्दर परिचय दिया है । वास्तव में ये स्थल ही कथा को साहित्यक महत्व प्रदान करते हैं । दो स्थल इस दृष्टि से यहां उल्लेखनीय हैं :घोड़ों का वर्णन '— 'पवन का परवांह 'गुलाब की मूठ' सघराजको गोटको, तारेकी तूट । प्रातसकी भभको, चक्रीकी चाल, चपलाको चमंको, चातीका ढाल । सींचाण की झडप, हींडैकी लूंब, षगराजका वच, षेतुमें खूब ऐहड़ा - ऐहड़ा पांच हजार घोड़ा सोनेरी सांकतां सज कीधा । " जसां का सौन्दर्य-वर्णन - 'जसीया कसोयक छै आपने भी उधारे जसीयक छै । पतीयासीको कमल, गंगासी विमळ । भूभलीया नैणांकी, अमरतसा वैणांकी । ममौलौ, वादलांकी, बीज, होलीकी भाळ, सामणकी तोज । केळकौ गरभ, सोनेको षंभ, सीळकी सती, रूपकी रंभ। ताठी मरग, मगराकी मौर, पाबासर को हंस, मनकी चौर । जीवकी जड़ी, होयाको हार, अमीको ठाहौ, रूपकी अवतार । कांजांलीकी सांठी, गूंजालीको भळको, गैलाको कबण, हीडाको कलको । मुगलरो मींमचौ, वषायतरो झाली, सघरी गाटको प्रेमरी प्याली । सोलैमो सोनो, राजहंसरो वची, बावनौ चंदण, रेसमरी गचौ । करतीयांरौ भूबको, मोतीयांरी लूंब, हीरांरो लछौ, सरगरी भूंब । सनेहरी पालषी, हेतरी थाणी, नैणांरौ नरषणौ, प्रेमरी कमठांणी । सरदरी पूनम चंद, आसाढ़रो भांण, जसोयांकी तारीफ, बुधँका वाषांण । मदवीको मछौळो, हाथकी हाल, तीजणीयांकौ तुररी, रूपकी ससाल | कांषको लाडू, मोतीयांको गजरो, जलालीयाको धको, जसीयां को मुजरौ । कलपत्रच (छ) री डाळ, पारसरी टोळ, मेहरो महर, दरीयावरी छौल । तावड़ेरी छांह, अंधारैरो 1 १ पृ० १६६ पृ० १६७ a Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३२ ] दीयो, सीयाळारो ताप, जका जसा घणा जुग जीवौ । हरषरौ हीडो, उदेगरी भेट, जीवरो जतन, इन्द्ररी भेट । किस्तूरीरो माफौ, केसररी क्यारी, रूपरो रूषड़ो, रच (स) ना होनारी। भमरांरो भणणांट, डीलारी दोली, दीपमाळारा दौर, भाषररी होळी । गुलाल सही गढ़ी, आषांरी पाणी, होरांरो हार । ग्रहणांको भललाटौ, तजको अंबार, जसीयांको जीवणो वा संसार को सार । दांतारो पाणी, कड़ीयांरो केहरो, हालरो हंस, भूरी भमर, कुरजरी नस । अलकारी नागण, पलकारी कुरंग, कंठारी कोयल, सोनेरी अंग । अणीयाळां नैणांमें काजळकी रेषां, अमरतरा ठांसा चंदामें पेषौ । सोंदूर की बींदो भालूमें भळकै, काळीसी कांठळमें चंदो कन चळकै । असोभतां ऊतारे, सोभतां धारे । वाल वाल मोताहल पोया, जांणे नवलाष नषत्र एकठा होया । बाजणां जांझर पैराया, घूघरांका सुर गैरीया। अण भांतकी जसीयां, जकाक चो(छो)डो चौ (छो) रसीया। मांणोनी म्यारांम जी, थांन दीनी छै रामजी। लो नी लाडीका लावा, पीचै (छै) करसौ पच(छ) तावा । जावणकी वातां जांणां छां, मतवाळी कुं नहीं माणां छां। वरसाळाका वादळ ज्यूं ढाळका जल ज्यू, भाषरका पांणी ज्यू, वाटका वांणो ज्यू, चे(छ)ह मती चा (छा) डौ, थोड़ी सो मन करो गाडौ । झाली वागां षड़ो, थोड़ा रही झलीया । पिण थांमै किसो दोस, थां के संगी पलीया ।" बहत ही साधारण स्थिति के नायक को लेकर लेखक ने इसे ऋषि का अवतार और जसां को इंद्राणी का अवतार बताया है तथा उनकी साज-सज्जा और ऐश्वर्य का वर्णन भी बहुत ऊंचे दर्जे का चित्रित किया है, जिससे उसका अत्युक्तिपूर्ण वर्णन उस समय के साहित्यकारों को भाया नहीं, इसलिए बात की सुन्दरता को स्वीकार करते हुए भी नायक के औचित्य का किसी कवि ने व्यंग्यात्मक ढंग से उपहास किया है : दर्जी कौड़ी दोढ़ रो, बणी लाख री वात । हाथी री पाखर हुती, दी गधे पर घात । राजा चंद प्रेमलालछी री वात कथा-सारांश राजपुर गांव में रुद्रदेव नामक एक राजपूत रहता था । उसके दो औरतें थी दोनों ही मंत्रसिद्धि में निष्णात थीं, परन्तु पति इससे अनभिज्ञ था। एक बार जब दोनों औरतें पानी भरने जाने लगी तो छोटी ने रुद्रदेव से कहा-मेरा लड़का पालने में सो रहा है सो तुम उसका ख्याल रखना । बड़ी बहू ने कहा ' पृ० १०२ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३३ ] गायों के आने का समय हो गया है । बछड़ा कहीं चूंग न जाय, इसका तुम ध्यान रखना। थोड़ी देर में बच्चा रोने लगा तो रुद्रदेव ने बच्चे को खिलाना शुरू किया किन्तु इतने में गायें आ गईं। अतः बच्चे को पालने में छोड़ कर बछड़े को बांधने लगा। उसी समय दोनों बहुवें पानी भर कर आ गईं। छोटी बह ने देखा कि बच्चा पालने में रो रहा है, और वह बड़ी के काम में संलग्न है। ईर्ष्या के वशीभूत उसने ऐसे पति को मार देने का निश्चय कर अपनी इंदुरी उसकी ओर फेंकी जिससे वह सांप बन कर रुद्रदेव को डसने के लिये भागा। बड़ी बहू यह देखते ही सारी बात भांप गई। उसने अपने हाथ की लोटी सांप पर फैकी, . सो लोटी नौलिया बन गई और उसने सांप को मार डाला। यह देख कर भोला राजपूत बड़ा भयभीत हुआ और मन ही मन वहां से निकल भागने की तरकीब सोचने लगा। औरतें इससे ज्यादा होशियार थीं, इसलिए उन्होंने आपस में विचार किया-अब यह अपने कब्जे में रहने वाला नहीं है इसलिये इसे गधा बना कर रखा जाय। रुद्रदेव अपनी स्त्रियों से पिंड छुड़ाने के लिये विदेश में कमाई के लिये जाने को उनसे कहता, किन्तु वे नहीं मानतीं। अन्त में उन्होंने प्रसन्न होकर, भाता साथ में देकर सीख दी। रुद्रदेव मन ही मन बड़ा खुश हुआ और बड़ी तेजी के साथ वहां से चला । करीब दस कोस पर पहुंचा तो उसे एक तालाब दिखाई दिया। वहां हाथ-मुंह धोकर कलेवा करने का विचार कर ही रहा था कि इतने में एक ढोली वहां आ पहुंचा और उसकी याचना पर अपने कलेवे में से एक लड्डू उस ढोली को दे दिया । ढोली बहुत भूखा था, इसलिये फौरन ही वह लड्डू खा गया। लड्डू खाते ही वह गधे के रूप में परिवर्तित हो गया और तत्काल रेंकता हुआ उलटे पैरों रुद्रदेव के घर जा पहुंचा। इधर जब रुद्रदेव ने यह करामात देखी तो स्त्रियां कहीं पीछे न आ पहुंचें, इस भाव से आतंकित तीनों लड्डू जल में फैक कर, वह भाग खड़ा हुआ। स्त्रियों ने जब गधे को पुरुष बनाया तो वह ढोली निकला। अपनी योजना की विफलता ज्यों ही उनके समझ में आई वे घोड़ियां बन कर वहां से रुद्रदेव के पीछे भागीं। रुद्रदेव देवगढ़ नगर में पहुंचा ही था कि दोनों घोड़ियें उसके समीप मा पहुंची । जान बचाने के लिये वह बेचारा एक अहीरन के घर जा पहुंचा। पहले तो अहीरन ने उसे डांटा, परन्तु जब उसने सारी बात सच-सच बताई तो अहीरन बड़ी प्रसन्न हुई और उसने रुद्रदेव से वचन मांगा कि वह उसके घर में रहेगा। रुद्रदेव ने स्वीकार किया । अहीरन नाहरी बन कर घोड़ियों पर झपटी और उन्हें बहुत दूर तक भगा दिया। Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३४ ] रुद्रदेव ने देखा कि छोटी आफत से छुटकारा पाने के लिये बड़ी आफत में श्रा फंसे। वह किसी प्रकार रात को वहां से भी भाग निकला और चंदराजा की प्राभोनगरी में आ पहुंचा । वहां राजा की लड़की का स्वयंवर था। कौतूहलवश वह भी वहां जा पहुंचा। संयोग से राजा की लड़की ने वरमाला इसके गले में डाल दी। आनन्द और विलास के साथ वह राजमहलों में रहने लगा। इतना हो जाने पर भी दोनों स्त्रियों ने उसका पीछा नहीं छोड़ा। वे चीलें बन कर वहां आ पहुंची और एक दिन रुद्रदेव जब झरोखे में बैठा था तो उसकी आंखें नोंचने के लिये वे उस पर झपटीं। रुद्रदेव भयभीत होकर महल के अन्दर लुढ़क गया। राजकुमारी ने एकाएक इस प्रकार की घबराहट हो जाने का कारण पूछा। पहले तो रुद्रदेव बात छिपाता रहा, परन्तु राजकुमारी के अत्यधिक आग्रह पर उसने सारी बात कह दी। राजकुमारी ने इसका निदान फौरन निकाल लिया। उसने अपने नूपुर उतार कर मंत्र पढ़ा और उन्हें झरोखे में से ऊपर फेंका तो नूपुरों ने बाज का रूप धारण कर दोनों चीलों को मार डाला। रुद्रदेव ने देखा कि इस माया का कहीं अन्त नहीं है। ये औरतें मेरी जान लेकर छोड़ेंगी। अत: बेचारा अपनी जान बचाने के लिये वहाँ से भी रात को भागा । चंद राजा को जब दामाद के चले जाने की खबर मिली तो उसने फौरन सिपाही पीछे भेजे । सिपाहियों से जब रुद्रदेव वापिस नहीं लौटा तो राजा चंद स्वयं मनाने के लिये पहुंचे और इस प्रकार बिना सीख लिये ही रवाना होने का कारण पूछा । रुद्रदेव बेचारा क्या कहता ? परन्तु राजा ने जब अधिक हठ किया तो उसने सारी बात कह सुनाई । इस पर राजा चंद ने कहा-'जब तक हमारे दिन अच्छे हैं, तब तक हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता, और फिर बीती बात कहने लगा "मेरी माता और पटरानी प्रभावती इसी प्रकार की मंत्र-विद्या में प्रवीण थीं । वे अपनी विद्या के बल पर मुझे अघोर निद्रा में सुला कर रात्रि को गिरनार के राजा के पास क्रीड़ा करने के लिये पहुंच जाया करती थीं । एक बार मुझे संशय हुआ, तो जिस वट - वृक्ष पर बैठ कर वे जाया करती थीं, उस वट-वृक्ष की खोह में पहले से ही मैं छिप गया और उनके साथ गिरनार जा पहुंचा तथा वहां के रंग-ढंग देख कर बड़ा आश्चर्यचकित हुआ। कुछ दिन बाद ही गिरनार के राजा की लड़की प्रेमलालछी का विवाह होने वाला था। उसमें इन दोनों को भी आमन्त्रित किया गया था। अतः विवाह की रात को मैं इनके साथ गिरनार पहुंचा। बरात बड़ी साज-सज्जा से आई थी। किन्तु दूल्हा बड़ा कुरूप था। अतः उन्होंने यह युक्ति निकाली कि Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३५ ] दूसरे किसी खुबसूरत प्रादमी को फिलहाल दूल्हा बना कर भेज दिया जाय श्रीर शादी के बाद में लड़की को अपने ही ले जायेंगे । संयोग से दूल्हा बनने के लिये में ही उन्हें मिला । जब में तोरण पर पहुंचा तो मेरी पटरानी ने मुझे पहचान लिया । मैंने शादी के समय तांबूल से दुलहन की चूनड़ी पर यह दूहा लिखा प्रभो नगरी चंद राजा, गिर नगरी प्रेमलालछी । संजोगे - संजोग परणिया, मेळो दैव रे हाथ ॥ वहां से मैं उसी रात अपनी नगरी तो पहुंच गया परन्तु सास-बहू ने मिल कर मुझे सुग्गा बना दिया । दिन भर पिंजरे में बंद रहता और रात को पुन: चंद बन जाता । उधर कुरूप पतिदेव प्रेमलालछी के रंगमहलों में सुहाग-रात मनाने पहुंचे तो उनकी बड़ी दुर्गति हुई । बरात बिना दुलहिन के वापिस पहुंची। प्रेमलालछी बड़ी दुःखित रहने लगी। परन्तु जब एक वर्ष बाद सावण की तीज के दिन उसने अपने विवाह के कपड़े पहने तो चुनड़ी की कोर पर लिखा हुआ दोहा उसके ध्यान में आया। उसने सारी बात का अनुमान लगाकर अपने पिता से सहायता ली और मेरी नगरी में श्रा पहुंची। उसकी चतुर दासियों ने अपनी जासूसी के द्वारा मेरा हाल चाल मालूम कर लिया और एक दिन दावत के बहाने जब वह स्वयं महलों को देखने ऊपर पहुंची तो उसकी एक चतुर दासी ने मेरे पिंजरे के स्थान पर तोते सहित दूसरा पिंजरा आले में रख दिया और मुझे वहां से मुक्ति दिलाई। सास-बहू ने शाम को जब सुग्गे को संभाला तो सुग्गा दूसरा था । अतः वे चीलें बनकर मेरी प्रांखें फोड़ने को डेरे पर आई, उस . समय मैंने तीर से उन दोनों को मार गिराया ।" अपना अनुभव सुनाने के बाद चंद ने रुद्रदेव से कहा कि त्रिया चरित्र का कोई पार नहीं होता है परन्तु मैंने तुमको प्रेमलालछी की पुत्री ब्याही है । वह तुम्हारा कभी बुरा नहीं चाहेगी । इसलिये तुम आश्वस्त रहो । कथा - वैशिष्ट्य इस बात की कथा - वस्तु पूर्णतः त्रिया चरित्र पर ही आधारित है । छोटीसी बात में अनेक स्त्रियों के चरित्र का उल्लेख हुआ है । राजा रिसालू की बात में भी स्त्रियों के कुटिल चरित्रों पर प्रकाश डाला गया है । परन्तु इन दोनों कथाओं के निर्माण व घटनाक्रम में बड़ा अन्तर है । रिसालू की वार्ता में प्रत्येक Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३६ ] नारी पात्र के जीवन की पृष्ठभूमि बांधने का प्रयत्न किया गया है जिससे उन नारी पात्रों के चरित्र में उत्पन्न होने वाले यौन विकारों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन किसी हद तक संभव हो सकता है । इस कहानी में जादू-टोने व मंत्रसिद्धियों के आधार पर अनहोनी घटनाओंों को घटित कराते हुये नारी की योनपिपासा के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाली अनेकानेक घटनायें वर्णित हैं । जादू-टोने का सहारा लेने के कारण कथा में किसी भी नारी पात्र का चारित्रिक विकास नहीं हो पाया है, जिससे कहानी केवल काल्पनिक स्तर पर ही न रह कर तिलस्मी बन गई है । इस कहानी को पढ़ने से सामाजिक तथ्यों की ओर हमारा ध्यान अवश्य ही आकर्षित होता है । कथाकार ने रुद्रदेव जैसे साधारण नायक से बात प्रारंभ कर के चंद राजा और उसके परिवार पर कथा को समाप्त किया है । अतः निम्न स्तर के समाज से लेकर राज्य-परिवार तक में व्याप्त दुष्चरित्रता तथा यौन कुण्ठानों पर करारा व्यंग हमें देखने को मिलता है । इसके अतिरिक्त यह बताया गया है कि एक ओर नारी को स्वयंवर के माध्यम से अपना पति चुनने का पूर्ण अधिकार है तो वहां किसी सुन्दरी को छल के साथ प्राप्त करने के लिए असली दूल्हे के स्थान पर दूसरे दूल्हे को तोरण पर भेज दिया जाता है क्यों कि असली दूल्हा कुरूप था। इस प्रकार जहां एक ओर नारी की बड़ी दीन स्थिति बताई गई है, वहां दूसरी ओर पुरुष उसके सामने बड़ा निरीह चित्रित किया गया है । क्यों कि वे अपनी चतुराई तथा काम पिपासा में उन्मत्त पुरुषों के विभ्रम के कारण उन पर शासन ही नहीं करतीं अपितु उनको मूर्ख और अपनी लालसाओं का खिलौना तक बना देती है । लेखक ने जहां एक ओर दुष्चरित्रता का पूरा वर्णन किया है वहां दन्तकथा की मुख्य नायिका प्रेमलालछी के चरित्र को निष्कलंक बताया है तथा उसकी चतुराई का भी बड़ा बखान किया है । कथाकार ने मनुष्य के भाग्य को सर्वत्र प्रधानता दी है परन्तु दुष्चरित्रता में लिप्त पात्रों का अन्त भी बुरा बताया है। अतः कथा का वास्तविक उद्देश्य दुष्चरित्रता के दुष्परिणामों की ओर इंगित करना कहा जा सकता है । भाषा-शैली पूरी कथा गद्य के माध्यम से ही कही गई है जिसमें केवल एक दोहे का प्रयोग मिलता है। जहां तक कथा की भाषा का प्रश्न है वहां सरल, प्रसाद-गुण Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३७ ] युक्त बोल-चाल की भाषा है । स्थान-स्थान पर अरबी व फारसी के शब्दों का प्रयोग भी मिलता है । कथा की शैली में सबसे बड़ी खूबी राजस्थानी के ठेट मुहावरों का सफल प्रयोग है । अतः कुछ मुहावरे यहां द्रष्टव्य हैं : "भलो नहीं प्रापने, तिको दीजे काळा सांप ने । एस साख पतळी हुई ने घर माहे उंडो तेह नहीं। जाडो जीमतां पतली जीमस्यां । चोपड़ी जीमतो लूखी जीमस्यां । बोहर पालूं । वात धुरा मूल सूं कही। मोसूं लाल पाल करणो। जीमण सू देखणो भलो। बुरो चाहे तो भलो होवे नहीं। उपसंहार प्रस्तुत संग्रह की पांचों बातें मूलतः प्रेमविषयक होते हुए भी अनेक प्रकार की विभिन्नतायें लिए हुए हैं। अतः न केवल साहित्यिक दृष्टि से अपितु समाजशास्त्र व भाषाविज्ञान की दृष्टि से भी इनका बड़ा महत्व है। राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर के मान्य अधिकारी-गण इस प्रकार के साहित्य-संग्रह प्रकाशित कर राजस्थानी-साहित्य की अमूल्य निधियों को प्रकाश में लाने का प्रशंसनीय कार्य कर रहे हैं उसके लिये वे बधाई के पात्र हैं। मेरे प्रिय मित्र श्रीलक्ष्मीनारायणजी गोस्वामी ने इन कथाओं को संपादित करने में बड़ा श्रम किया है। अनेक प्रतियों के पाठान्तर तथा विस्तृत परिशिष्ट दे कर पुस्तक को साधारण पाठक व विद्वद्वर्ग, दोनों के लिए उपयोगी बना दिया है। उनकी इस साहित्य-साधना के लिये बधाई तथा मुझे इस पुस्तक की भूमिका लिखने का अवसर प्रदान करने के लिये धन्यवाद । नारायणसिंह भाटी संचालक राजस्थानी शोध संस्थान, जोधपुर जोधपुर. बसंत पंचमी, १९६५ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय आज जिस प्रान्त को राजस्थान कहा जाता है उसका यह नामकरण अधिक प्राचीन नहीं है । बहुत प्राचीन काल में इस भूभाग के नाम मरुप्रदेश, मरुभूमि तथा मरुस्थल आदि मिलते हैं जिसका प्राशय मुख्यतया वर्तमान पश्चिमी राजस्थान की मरुभूमि से ही रहा होगा। वैसे राजस्थान शब्द प्राचीन ख्यातों व वातों आदि में प्रयुक्त हुआ है परन्तु उसका अर्थ वहाँ राजधानी अथवा किसी राजा के आधिपत्य के दस्तूर आदि से है। संस्कृत-व्युत्पत्ति 'राज्ञः स्थानम्' से भी यही अर्थ प्रकट होता है । 'यथा नाम तथा गुणः' के अनुसार संस्कृत की विशेष व्युत्पत्ति इस नामकरण के औचित्य को और भी बढा देती है :-'राजन्ते शौय्यो दार्यादिगुणैर्देदीप्यन्ते ये (नराः)ते राजानस्तेषां स्थानं - आवासभूमिः राजस्थानम् ।' अर्थात् जो मनुष्य शौर्य-प्रौदार्यादि गुणों से सर्वाधिक सुशोभित हों, उन मनुष्यों के रहने का स्थान ‘राजस्थान' है । प्रान्त के वर्तमान नामकरण के रूप में संभवतः इस शब्द का प्रयोग सबसे पहिले प्रख्यात इतिहासकार कर्नल टॉड ने किया है जैसा कि उसकी पुस्तक 'एनल्स एण्ड एन्टिक्विटीज ऑफ राजस्थान' से प्रकट होता है। जब कि इससे पूर्व यहाँ की रियासतों के समूह के लिए 'राजपूताना' शब्द प्रचलित रहा है क्यों कि अंग्रेजों के ऐतिहासिक वत्तान्तों में यहाँ की रियासतों के लिये 'राजपूताना स्टेट्स' जैसे प्रयोग मिलते हैं। यहाँ की रियासतों और इस भूभाग के लिए राजस्थान शब्द कब से प्रयोग में पाने लगा, यह इतना महत्त्वपूर्ण नहीं है जितना कि भारतवर्ष के इस भूखण्ड में आर्यसंस्कृति को जो सांस्कृतिक और साहित्यिक देन इस प्रांत ने अपने नाम के अनुरूप दी है, उसका है। राजस्थान वीरों का देश कहा गया है। यहां के निवासियों ने शताब्दियों से विदेशियों और विधर्मियों का सामना हर कीमत पर करना अपना धर्म और अन्तिम ध्येय समझा है। इतिहास साक्षी है कि धर्म और धरती के लिये जितना बलिदान यहां के वीरों ने किया है, वह भारत के इतिहास में ही नहीं अपि तु विश्व के इतिहास में अप्रतिम है। बलिदान और तप से ओत-प्रोत यहाँ का इतिहास राजस्थान शब्द की पृष्ठभूमि में होने से राजस्थान शब्द के साथ 'वीर' शब्द का सान्निध्य सहज हो हो जाता है। भारतीय संस्कृति में वीरों का असाधारण महत्व समझकर उनका गुण Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३६ ] गान अनेक रूपों में हुआ है। वैसे वीर शब्द का उल्लेख अतिप्राचीन काल में ऋग्वेदसंहिता (१.१८.४; १.१४४.८; ४.२६.२, ५.२०.४; ५.६१.५), अथर्ववेद (२.२६.४ ; ३.५.८), पाश्वलायनादि - श्रौतसूत्र, पञ्चविंशब्राह्मण (१६.१.४), बृहदारण्यकोपनिषद् (५.१३.१ ; ६.४.२८), छांदोग्योपनिषद् (३.१३.६), शरभोपनिषद् (११), नीलरुद्रोपनिषद् (२३), नसिंहपूर्वतापिनी (२.३; २.४), नृसिंहोत्तरतापिन्युपनिषद् (२,४,५,६) आदि में तेज, पराक्रम और शौर्यादि अर्थों में मिलता है। इससे हमारी संस्कृति में वीरों की विशिष्ट परम्परा ही लक्षित नहीं होती अपि तु संस्कृत-साहित्य में आदर्श नायक के गुणों में वीरत्व एक अनिवार्य गुण के रूप में कवियों द्वारा अपनाया गया है । राजस्थान के इतिहास में युद्धों की अधिकता के कारण सहस्रों युद्धवीरों का उल्लेख हमें अनेक रूपों में मिलता है परन्तु युद्धवीरों के अतिरिक्त धर्मवीरों, दानवीरों और दयावीरों को भी यहाँ कमी नहीं रही। वस्तुतः युद्धवीर के उदात्त चरित्र के साथ अन्य वीरात्मक भावनाओं का गुंफन भी किसी न किसी रूप में हमें दृष्टिगोचर हो ही जाता है। वैसे उत्साह को वीररस का स्थायीभाव रसशास्त्रियों ने माना हो है परन्तु त्याग और संयम की जो गरिमा चारों प्रकार के वीरों में देखने को मिलती है वह भी इन वीरों के दृष्टिकोण की एकता को ही प्रतिपादित करती है । अत: इन वीरों ने हमारी संस्कृति और धर्म को जो महत्त्वपूर्ण देन दी है उसका न केवल यशोगान ही अपि तु दार्शनिक लेखा-जोखा भी राजस्थानी साहित्य में अनेक रूपों में मिलता है । पद्यात्मक शैली में इन विषयों को लेकर, संकड़ों कवियों ने जहाँ अनेकों महाकाव्य, खण्डकाव्य, मुक्तक-काव्य लिखकर अमरत्व प्राप्त किया है वहाँ राजस्थानी भाषा की विशाल गद्य-परम्परा में वातों, ख्यातों, वनिकायों में इस प्रकार की घटनायें भी अनेक प्रसंगों को लेकर वणित की हैं । साहित्यिक दृष्टि से यह वात-साहित्य अत्यधिक महत्वपूर्ण है । 'वात' शब्द वार्ता का अपभ्रंश रूप है। भारतीय वाङ्मय में वार्ता का प्रयोग ठेठ सीतोपनिषद् (३१), सागरहस्योपनिषद् (२५०,११), आश्रमोपनिषद् (२), आदि में उपलब्ध होता है । प्रतीत होता है कि इससे पहले वार्ता के लिये 'कथा' शब्द ही प्रचलित रहा है क्यों कि 'ऐतरेय-ब्राह्मण (५.३.३), जैमिनीयब्राह्मण (६), जैमिनीयोपनिषद्ब्राह्मण (४.६.१.२), विष्णुधर्मसूत्र (२०.२५) आश्वलायन-गृह्यसूत्र (४.६.६), छान्दोग्योपनिषद् (१.८.१), नारदपरिव्राजकोपनिषद् (४.३), आदि में इस शब्द का प्रयोग वार्ता के अर्थ में मिलता है। - वार्ता का चाहे जो रूप प्राचीन वाङ्मय में रहा हो किन्तु राजस्थानी- साहित्य में यह शब्द विशेष अलंकृत और सुव्यवस्थित साहित्यिक शैली में लिखी Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४. ] गई कहानियों के लिए वात के रूप में प्रचलित रहा है और इस साहित्य का अपना विशिष्ट स्थान भी है। यहाँ की ऐतिहासिक व सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप प्राचीन राजस्थानी का अधिकांश साहित्य वीररसात्मक है परन्तु अन्य रसों के साहित्य की भी इसमें कमी नहीं है। यदि हम वातों को ही लें तो वीर-चरित्रों को लेकर लिखी गई वातों के अतिरिक्त शृंगार, भक्ति, धर्म, नीति और उपदेश आदि विविध विषयों को लेकर अनेक कथाओं का निर्माण हा है। यहाँ की वीरगाथाओं और कहानियों ने द्विजेन्द्रलाल राय तथा रवीन्द्रनाथ ठक्कुर जैसे महान् साहित्यकारों को भी प्रभावित किया है तथा उनका महत्व सर्वविदित है ही। परन्तु शृंगारात्मक वातों की जो विशिष्ट देन यहाँ के साहित्य को है उस पोर अद्यावधि अन्य प्रांतों के साहित्यकारों का ध्यान बहुत कम प्राकषित हो पाया है। अतः इस बहुमूल्य साहित्य का परिचय साहित्यानुरागियों को देने की दृष्टि से ही प्रस्तुत पुस्तक में ५ वातों का संकलन किया गया है । पांचों ही वातें प्रेमविषयक हैं, परन्तु प्रेमसम्बन्धो कथाओं में भी जो वैशिष्टय यहाँ देखने को मिलता है उसको ध्यान में रख कर वे विविध प्रकार की प्रतिनिधि प्रेमकथाएं यहाँ प्रस्तुत की गई हैं जिनमें कहीं स्वकीया नायिका का निश्छल प्रेम है तो कहीं परकीया की कामातुरता, कहीं नारी के कुटिल चरित्र की अनेकरूपता है तो कहीं नारी व पुरुष की काम-भावनाओं का गूढ चित्रण यहाँ की सामाजिक पृष्ठभूमि में देखने को मिलता है। नागजी - नागवन्ती की वात में जहाँ पुरुष और नारी का एकनिष्ठ प्रेम मार्मिकता के साथ चित्रित है वहाँ बगसीराम और हीरां की वात में अनमेल विवाह पर करारा व्यंग्य है । मयाराम दर्जी की बात में जहाँ पूर्व संस्कारों को मान्यता देते हए अतिशयोक्तिपूर्ण शृंगार का वर्णन है तो रिसालू री वात में राजा रिसालू जैसे ऐतिहासिक व्यक्ति के साथ नारी के विभिन्न रूपों और यौन सम्बन्धों का अजीब चित्रण है। प्रेमलालछी की बात में नारी के कुटिल-चरित्रों का सूक्ष्म दिग्दर्शन ही नहीं अपि तु पुरुष की काम-पिपासा को नारी-सौन्दर्य द्वारा तप्त करने के विकल्प भी वर्णित हैं। इन सभी कथाओं में एक और नारीपात्रों की सुन्दरता और चतुराई दिखाई गई है तो दूसरी ओर पुरुष की विवशता तथा सामाजिक मान्यताओं एव रीति-नीति पर भी अच्छा प्रकाश डाला गया है। इस प्रकार की प्रेमकथाओं का सर्वाङ्गीण अध्ययन तो तभी संभव है जब कि हस्तलिखित ग्रन्थों में बिखरी हुई सामग्री ससम्पादित होकर प्रकाश में आ जाती है। परन्तु, इन कथाओं के आधार पर प्रेमकथात्मक-साहित्य की कुछ विशेषताओं का अनुमान तो लगाया ही जा सकता है । Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४१ ] यहाँ सम्पादित कथानों के वैशिष्टय पर डॉ० श्रीनारायणसिंहजी भाटी ने भूमिका में विस्तृत रूप से प्रकाश डाला है ; अत: इनके वैशिष्टय के बारे में चर्चा करने की आवश्यकता नहीं है। प्रसन्नता का विषय है कि सम्पादकीय लिखते समय कुछ विशेषज्ञातव्य संदर्भ भी प्राप्त हुए हैं वे यहाँ प्रस्तुत किए जा रहे हैं। 'बगसीरांम प्रोहित हीरां की बात' का रचियता 'तेण' कवि है या अन्य कोई, निश्चित रूप से नहीं कह सकते ! 'कबी तेण इण विध कहो' (पृ० ४६) से तेण का अर्थ 'कर्ता' भी माना जा सकता है और तेण का अर्थ 'उसने' भी। यहाँ 'तेण' शब्द यदि नामवाचक है तो इसे इस वार्ता का प्रणेता मान सकते हैं अन्यथा कर्ता का प्रश्न शोध का ही विषय है। प्रस्तुत पुस्तक में राजा रसालु की बात के दो संस्करण मुद्रित हैं :-१. राजस्थानी-रूप है और २. गुजराती-रूप है। इस वार्ता का एक अंग्रेजी संस्करण भी रेवरेण्ड चार्ल्स स्विन्नरटन (Rev. Charles Swynnerton) लिखित 'दी एडवंचर्स ऑफ दी पंजाब हीरो राजा रसालु' के नाम से डब्ल्यू. न्यूमेन एण्ड कम्पनी लिमिटेड, ४, डलहोजी स्क्वायर, कलकत्ता के प्रकाशक द्वारा सन् १८८४ में प्रकाशित हुआ है । चार्ल्स स्विन्नरटन उस समय रॉयल एशियाटिक सोसायटी, फोकलोर सोसायटी तथा एशियाटिक सोसायटी, बंगाल के सदस्य थे। स्विन्नरटन ने यह गीतात्मक कथा 'सरफ' नामक लोकगायक से सुनी थी। इस गायक का चित्र भी इसमें प्रकाशित है। ___आंग्लभाषा के संस्करण और इस संस्करण की कथाओं में कहीं वार्ता का तारतम्य एक-सा नज़र आता है तो कहीं बहुत ज्यादा अंतर दृष्टिगोचर होता है। अतः तुलनात्मक दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए अंग्रेजी संस्करण के १२ अध्यायों का क्रमशः संक्षिप्त रूप (अनुक्रम) यहाँ उद्धृत कर रहे हैं जिससे कि शोधविद्वान् इसका समालोचनात्मक अध्ययन कर सकें। १. रसालु का प्रारम्भिक जीवन : [ राजा सलवान और उसकी दो रानियाँ, रसालु के बड़े भाई पूरण भगत का चरित्र और उसकी भविष्यवाणी, रसालु का जन्म और बाल्यकाल, प्रतिबन्ध से मुक्ति, उसका नटखटपन और देशनिष्कासन, लूणा माता का विलाप ] २. रसालु की प्रथम विजय : [गुजरात की यात्रा, झेलम की राजकुमारी के विरुद्ध अभियान, तिला के साधु का चमत्कार, साधु की भविष्यवाणी ] Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४२ ] ३. रसालु का पुनरागमन : [ मक्का की यात्रा, हज़रत द्वारा स्वागत, मुसलमान-धर्म में परिवर्तन, सियालकोट से समाचारों का आना, दीवारों का गिरना और मनुष्यों का बलिदान, जबीरों द्वारा हज़रत को अपील, सियालकोट पर आक्रमण, नगर पर अधिकार, सलवान की मृत्यु और रसालु का राज्यारोहण ] ४. राजा रसालु और मीर शिकारी : [ रसालु की दक्षिण यात्रा, जंगल में मीर शिकारी से भेंट, मीर शिकारी का रसालु का शिष्य बन जाना, रसालु की शर्तें, मीर शिकारी और उसकी रानी, उसके द्वारा प्रतिज्ञाभंग, मृग और मृगी की कथा, मीर शिकारी की मृत्यु, मीर शिकारी की पत्नी का रसालु से दुर्व्यवहार, मीर शिकारी की मृत्यु का दोषारोपण, रसालु की मुक्ति, मीर शिकारी का अन्तिम संस्कार और स्मारक ५. राजा रसालु और हंस : [ रसालु का एक नगर में प्रवेश, रसालु द्वारा तीस मील ऊँचा बारण चलाना, दो कौवों की कथा, उनका आकाश में उड़ कर वापस आना, हंस के घोंसले में शरण लेना, नर-काक द्वारा धोखा दिया जाना, राजा भोज का न्याय, रसालु और गीदड़ की कथा, रसालु और भोज, गीदड़ की मित्रता, हंसों और कौवों को वापस बुलाना, रसालु की बुद्धिमानो ] ६. राजा रसालु और राजा भोज : [ रसालु की यात्रा विलम्बित, उसका प्रस्थान, भोज का साथ चलना, उनका वार्तालाप, रानी शोभा के बाग में पराक्रम दिखलाना, उनका श्राम्रवृक्ष के नीचे ठहरना, राजा होम का आगमन, उसकी कविता, रसालु की बुद्धिमानी, रसालु और भोज दोनों मित्रों का बिछुड़ना ] ७. राजा रसालु और गण्डगढ़ के राक्षस : [ रसालु का स्वप्न, उसका पराक्रम के लिए प्रस्थान, ऊजड़ नगर और वृद्धा, वृद्धा की विपत्ति, राक्षस का भोग, रसालु और वृद्धा का पुत्र, रसालु और थीरा, थीरा और भींवूं का पलायन, दूसरे राक्षसों से मुठभेड़, राक्षसी से टक्कर, राक्षसराज वैकलबाथ, भींवू और थीरा का दुर्भाग्य, थोरा का विलाप, गण्डगढ़ पर्वत में कैद, गण्डगढ़ की चीत्कार, रसालु के तीर ] Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८. [ ४३ ] रसालु का तिलार, नाग और काग, डोढ काग (जंगली कोवा) के साथ पराक्रम : [ रसालु का भाऊमूसे को डूबने से बचाना और अपने साथ ले चलना, उसका एक सूने महल में आगमन, चार घड़ियां, भाऊमूसे का कुण्ड में पड़ जाना, राजा का जीवन खतरे में, झाऊमूसे का काग और नाग से युद्ध, उसकी दुहरी विजय, राजा रसालु का जागरण, श्राभार -प्रदर्शन, भाऊमूसे का परामर्श, मित्रों का बिछुड़ना ] ६. राजा रसालु और राजा सिरीकप : [ रसालु और सिरीसूक, सिरीसूक का बोलना, उसका निषेध और परामर्श, रसालु की यात्रा चालू, जुलाहा और उसकी बिल्ली, दो ग्रामीण युवक, वृद्ध सैनिक और बकरा, रसालु का श्रीकोट पर श्रागमन, सिरीकप के जादू का तूफान, रसालु और किले का घण्टा, रसालु और राजकुमारी भुवाल, राजाओं का मिलन, उनका कूट प्रश्नोत्तर, उनका खेल, रसालु की हार, रसालु की बिल्ली और सिरीकप के चूहे, सिरीकप की अन्तिम पराजय, उसका भाग जाना और फिर पकड़ा जाना, राजकुमारी कोकिलान का जन्म, जादूगर सिरीकप का अन्त, रसालु की कोकिलान के साथ विदाई ] १०. रानी कोकिलान का धोखा : [ रसालु का खेड़ी मूर्ति में बस जाना, कोकिलान का बाल्यकाल, धाय की मृत्यु, रसालु की शिकार, रानी कोकिलान का शिकार में साथ जाना, उनके पराक्रम, हीरा हरिण कृष्ण मृग का अपमान और उसके द्वारा बदला, गंजा और कांना, राजा होदी का खेडीमूर्ति में आना, उसका कोकिलान से प्रेम, तोता और मैना होदी का डर कर महल छोड़ना, व्याकुल रानी, होदी का धोबी और धोबिन से मिलना, उसका अटक पहुंच जाना ] ११. रानी कोकिलान का भाग्य : [ तोते द्वारा तलाश जारी रखना, उसका हजारा में अपने स्वामी से मिलना और रानी का भेद बताना, रसालु और उसका घोड़ा, उसका घर पहुंचना, शादी को राजा होदी के पास भेजना, षड़यन्त्र, होदी का खेड़ीमूर्ति आना, द्वन्द्वयुद्ध, होदी की मृत्यु, रसालु और कोकिलान, अपराध के प्रमाण, धीरे-धीरे दुर्घटना का रहस्योद्घाटन, रानी कोकिलान का अन्त ] Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ की १२. रसाबु [ रसालु द्वारा मृत शरीरों को प्राप्त करना, उनको नदी पर ले जाना, धोबी श्रौर धोबिन से मिलना, धोबी की कहानी, राजा का उसका मित्र बन जाना, उसके दुःख और शक्ति का ह्रास अटक की बुद्धिमती स्त्रियां, राजा होदी के भाई, खेड़ीमूर्ति पर आक्रमण, धोबी का संदेश और भविष्यवाणी, खेड़ी मूर्ति का घेरा, रसालु का शाप, युद्ध, रसालु की मृत्यु, सन्देश ] [ ४४ ] मृत्यु : 'मयाराम दर्जी की बात' की एक अन्य विशिष्ट प्रति इस संस्थान में प्राप्त हुई है । उसका मन्थन करने पर ऐसा प्रतीत हुआ है कि जो वार्ता इस संस्करण में मुद्रित हुई है वह अपूर्ण है । अतः इस वार्ता का शेषांश और मुद्रित संस्करण की अपेक्षा इस प्रति में जो अधिक दोहे प्राप्त हैं, वे यहाँ पाठकों की जानकारी के लिये दिये जा रहे है : जांगण समजण वध जुगत, सषरापण सागेह | श्राडू ही दासी अबै, एक जसीयल श्राह ॥ १६ ॥ १६ के बाद ' ग्रहणा भब भबे गजब, पाग फबै सिर पेछ । उगतडौ सूरज अबै देष दबै दस देस ||३१|| ३१ के बाद तेल पटां कसीयल तरह, रसीयल लाग रहंत । वसीयल हीय असीयल वनौ, जसीयल बाट जोत ||३४|| ३३ के बाद 3 वै है | यण तरै का वीदराजा मयराम चवरीनूं आवै है, पेमरा पयाला नेत्रा सूं पावे है बिलकुल तो ग्रलवेलो गूमरांमं करतीयों रा ब्रकामै चंदौ जिम जोय जोय हेली घूम घूम रंग में कहै है। " मदरूप च (छ) क जावै है । सहेली इम गावै है ॥ ५०॥ गावे उभू गायणी, नरर्षे उभी नार । मद-चकीया म्यारांम रो, इंद्र जिसी उणीयार ॥५१॥ ४८ के बाद मां सूष यम म्यारजी, दूलहो जसीयल देह | दनकर तीन ससरम्न दष, धण धती पीउ मेह || ६४ || ५६ के बाद १. यहाँ पर सभी जगह मुद्रित संस्करण की पद्यसंख्या के बाद यह समझनी चाहिए । Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४५ ] वावल कांठल वीजळी, बुग पंकज उर चाढ । वादल काला वरसतां, आयो धुर आसाढ ॥६६॥ ६० के बाद झड लागौ धौरा झरण, मोरां लोर मिलाव । वैरल सरपाटां वहै, भालण ज्यु भांड्याव ॥६८॥ ६१ के बाद उर-वसीया में ऐकली, वसीया कदे न वाग । इण पुल जसीयाइ षनै, रसीया सांभल राग ।।७३।। ६५ के बाद म्यारौ आर्ष मालकी, रहै नहीं ऐक रीत । काछो (चो) रंग कसूभरौ, पंछो(चौ)लणरी प्रीत ॥७८।। ६६ के बाद चत्रमासौ वलवल सषर, अथ जल थल-थल आज । जिण पुल जसीयल तीजन, मांणो अलवल(र) माज ॥११७॥ १०६ के बाद मनछल छलरूपी मकर, वल-वल उठी वैल । अलवल (र) रहणौ आदरो, छोडो हल-वल छैल ॥११८॥ बीज-छटा धुर वादलां, आव घटा छ(च) हुँ और । वाव मटा दीठा वण, मीठा महकत मोर ।।१२३।। १११ के बाद लोरां जल लायो लहर, पायो थल चहुं पास। मोरां मल गायौ महक, चायो इल चत्रमास ॥१२५॥ ११२ के बाद उमड घटा उद्रीयांमणी, वीज छटा छव वाह । विस जसडी लागै बुरो, निस पावस विण नाह ॥१२७।। ११३ के बाद वरछां झूबै वेलीयां, खूबै कांठल लोर। कर-कर सौर कलाव कर, मांण रत धर मौर ।।१३०॥ ११५ के बाद कांठल आभै काजली, वल-वल षवसी बीज । म्यारा अलवल माजली, तिण पुल रमसा तीज ॥१३२।। ११६ के बाद मगज अमर मूंछां मयंद, भमर डमर भणणेत । अरज गंमर मानौ अना, नवल वना नषतत ।।१३५।। ११८ के बाद मालू आयु म्यारनै, जालू छालां झल । की हालूं-हालूं करौ, पालुं छू पल-पल ।।१५०॥ १३२ के बाद कहीया था प्रांगु कवल, रहण अठ राजांन । कर हठ क्यूं बांधौ कमर, नवल वना नादांन ।।१५२॥ , , क्यूं हठ जाली कवरजी, वाली धण वीसार । जसां-वायक -- क्यूं काळी अतरी कर, माली यूं मनूंहार ॥१५३॥ , , Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४६ ] म्यारांम-वायक - प्रण जसीयल मान अब, कहीया बोल कुबोल । यण बोलारै उपरै, जासां अलवर षोल ॥१५४॥ , , मालू आर्ष म्यारनै, हठ कर तजी हलांण । कलहलीया केकाण ज्यू, करो पलांण-पलांण ॥१५७॥ १३५ (गीत पद्य ६) के बाद म्यारा मारा मुलकमै, चोषी पांचू चीज । ही. रागां वाग हद, तीजणीयां नै तीज ॥१६२॥ १३६ के स्थान पर वात का शेषांश इस प्रकार हैवारता ॥म्यारांमजी-वायक !! अब म्यारांमजी बोलीया, दिल का पड़दा षौलीया । वचनां अमरत-वांणसी, सारां देसां सिरे सिवांणची। लणका लहरा लेवे, उमंग की छौला ए वै । सारी नदीयां तूं सिरै, कताबांमै कव तारीफ करै । जिका जमना गंगारै जोडे, तुठी थकी पाप-दालद तोडे । यण भांतको मांकी देस, जठं केलासके भौलभुलै महेस । जिकण सवांणछीका इसा भाषर छै नै इसाइ ठाकुंर छ । । कवत ॥ अकल दुरंग अण षलो वडा परबत चहुं वल, माही नदी लूणका नीर-धारा अत उजल । अन भाजा नीपज रहै सब दन प्रावासां, माता बकर षाय चढण ताता बरहासां ॥ पदमणी त्रीया उत्तम पुरष, पड अवगुण न हवै पछी, मुरधरा तणां जोतां मुलक, सिरै देस सिवीयांणछी ।। १७३ वात-मुलक देसांको सरो मारवाड, मारवाड का मुगटामण सिंवाणची का पाड। सिवांणचीको चौगौ भांडीयावास, जठे मांको रवास । जकण देसमें हमै जावसां, अलवल फेर कदेक पावसां । जसां सहथी सात ही सहेलीयांनै ले जावसां। मालू-बायक____ जद मालुडी इउं कहै छै-राज! इठ क्यूं न रहै छ ? सीत रत आवसी, वरषा रत जावसी। आभो उजल रंग धरसी, गुडलापण दुर करसी । मोर कलासून करसी, कमोदण विकससी, वादल नकससी। आ रत जद आवैला, जसील मर जावला । सूणौ नी भमर छलां, धण छोड क्यूं चालसो गैलां। Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४७ ] ॥ दूहौ ॥ देषण मुरधर देसनू, है जावणरी हाम । कर जोडे अरजी करां, मांनी नी म्यारांम ।।१७४।। वादल गल जल वीषरै, एल सीतल अधकार । केकांणां हलवल करै, इण पुल क्यूं असवार ।।१७५।। रिल चित मलीया राजसु, विलकुलीया एक वार । चलीया जसीयल चौ (छौ)डन, अलवलीया असवार ।।१७६।। वात-मालू कहै-मांकी अरज क्यूं न मांनी छौ ? इल सोतल अवदात वायव-जव-सम वलावल , डार मांण डरपती नार भीडै पीउ कावल । भुअंग भूम माय भलत भमर दाहंत वेजोगण , रूठ सगत न्ह रहत तोमडंळुम तमोगण । दाजसी वनां सीतल दहण, रहण अठ चत रीझीयै । रत पलंग छाक मांणो रमण, इण रत गमण न कीजोयै ।।१७७।। वारता-जद म्यारांम कह्यो-मांको तो मन उठे लाग रह्यो। प्रबारु तो जावाला, फेर यूं कहै तो प्रावांला । बेलीयांनूं कह्यो कमरां बांधी, सारा साज पुरणां पर सांधौ। घोडां पर साकतां मंडाणी छ, जद जसां चढणकी जाणी छ। मालुनं कह्यो-कवरजी राषीया नही रहै, अब यूं काटूं कहैं । जद मालू कह्यौ-पांक म्यारांमजी वना नही सजसी, आपां घणी करसां तौ प्रांपांन तजसी । जद जसां भी सारी त्यारी कीधी, लषां ग्रहणा-पौसाषां साथे लीधी। जांनी सिरदार दोढी पाया, कलावंत गाया। जद म्यारांम जसांनू कह्यौ-मै डेरां जावसां, सारा साज तारी करावसां। वींद-राजा घणा दनां सूं बार पाया, जानी घणा आणंद चाया। मुजरा-सलाम कोधी, हाजरी लीधी; जण दनरौ दुलहौ ऐसो नजर आयौ, नकी लीधी। अलवर की सहेलीयां देषणनु आइ छै, पापक तो मारवाड की छढाइ छ । वछायतां कीजै, की छका दीजै। आप ही पीज, जसीयांको सुहाग पर कीजै। वछायतां कराइ, दारूकी तुंगां भराइ, जसांक दोली कनात षडी कराइ । वींदराजा वराजीया, चंद-सूरज-सा छाजीया। दारूका प्याला भराया, घोडा काय कराया। पणीयारीयांका टौला आवै छ, रूप देष मस्त होय जावै छ। दुहा ।। कंचन-पंभ कलाइयां, मणधर जेही डं[ड] । गज-गत चंगी गोरडी, लांबा वैणी - डंड ।।१७।। Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४८ ] चंद्रायणी - मसतक कुंभ उपाड गहकै मोर ज्यं, परहां कहां जी, भरीया भूषण श्रंग लहकं होर ज्युं । पांणी कुंभ उपाड धरै पणीयारीयां, गज-गत चंगी चाल सुचंगी नारीयां ॥१८०॥ अलवेली यरण रीत चलती श्रोयणां, घमकै नेवर घाट विलोकं लोयणां । रस-भरीया ज्यांन नरषण राजनुं 1 लयो महोलो नेह हटको लाजनुं ॥। १८१ ॥ ॥ दुही || लोयण मोहण लागणा, सोयण दीठ सह । जोयण कण विध जांननुं, भोयण भमर भर्मह ॥१८२॥ वात- इसी पणीयारीयां जल भरवाने आवे छेइ, मुजरां की सडासड लगाइ । जसीयलने पेष छे, म्यारांमनु वेषै छै । मुधर हसै छै, आम रूप बसे छ । दुहा || दुपटा भूज पेछां दयण, परछल अंतरपट । अंग-अंग उजलती उमंग, छक मद अनंग चट ॥ १५३ ॥ ॥ छंद्रायणा ॥ इण सरवर री पाल हीडोलो बाधसां, दोवड रेसम डोर जरीतर सांधसां । कसीया भमर सूजांण हलो किण काजनै, रीसीया मारूरांण रमाडो राजनै || १८४|| लूहर लूंबा लार गुलाकं दध मांगसां, जसीहल कंठ लगाय अबोली भांगसां । जो मारूराव संजोगी छक घणां, लासा जटाधर भेष पटाकर मेवणा ।। १८५ ।। वात इण तक प्रठे सारांरी समाध्यांन कीधौ । म्यारांमजी को - हम ताकीद करो, सारा सभ उठां माथै धरौ । ढोलीयां ढाढीयांने सीष दीधी, उणारी जसवाद लोधी । सारा सिरदार प्रसवार हुआ । लारली सषीयांरा कहा दूहा - विरह विमासी वालमा, भांगण गावै भींज । इण रतमं सी श्रावसी, कवण रमासी तीज || १८६ ॥ म्यारै सारी महलसुं, जब मिल कोहा जुहार । aastis सजनां लक्या अंसूंधार ॥ १८७॥ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४ ] पी म्याराजी पोचसो, दुलहा मुरध[र] देस | लाडा थांविण लागसी, निज घर दुसमण नेस ॥ १८८ ॥ सायब प्राज सधावसो, रल-मल गावे रंज । सायब उरतीय जीयसमी, हो मारू हीय हंज ॥ १८६॥ जसां सषीयां परसीया, कमलमकरंद वरसीया । जसां मन उदास हुन, मालकी को को हौं - पित-माता परवार पष, नज भ्राता तजनेस | म्यारा व्याह विनोदसुं तजीयौ अलवर देस ॥ १८६॥ प्रो दुही सुंणीयो, पाचो म्यारांमरं षवास दूही भणीयौ । - सपने ही इण देसर्डे, प्राय न जीवयता । म्याली मांडे मोहसू, श्राया कोस किता ॥ १६०॥ I I जन सारी पडीया, जसां रथ चडीया । मिजलां - मिजलां भांडयावास श्राया, घर्णको छात्रां मद छायो । ग्रहणांकी भललाट, तेजको जललाट । आसाढरौ भांण, रसराग जोण | मगजां मदंध, वोप तेजबंध । श्रोपह दुबाह, बाषारण वाह । कांम की मूरत, रूपकी सूरत । रंगरी रली, रसरी डली । श्राणंदरी गली । माहरी चंद्रमा संजोगणी कै लेष, आसाढरौ भांण बनो जोगणी कैब पेष, तुररैरा तार तुटता, किलंगी सोभ उठता। प्रांषांमें ललायां चुटती, रसरी धारीयां वुठती। डेरांनू अवि छे, भगतण-पातर गावे छे। अलवरकी सहेलीयां देषं छे । इण तक म्यारांम तंबु दाषल हुन । जद जसां जोतसीनूं कह्यो - - जान छ (च) ढणरो तीषौ मोरथ दीजै, मनमांनी नवाजस लीजै । जद जोसी की - जतो वागमं प्रस्थांनी कीजी, परभातको दन नीको छै, सारी सूभ महुरतांको टीको छे । परभातरी दुजी मजल करावी । आज तो डेरा वागमै दरावसी । सिरदार वागनुं वलीया, जसांका मनोरथ फली [या] । वाग आणंद उतरीया, जठै ठोड-ठोड कूंड भरीया । घोडा वडलांरी साप तल बांधीया । सिरदार उतर वागमं श्राया, जाजम गदरा वछवाया । भगतण-पातर गावं छं, चछ (च) लगां मचाने छं । अलवेलीया छैलानां नर है, वयण परस नेत्रां रस वरसे है। तंबु षडा कीया, मोतीयांरा गुछा रेसमरी लड़ां दीया । वागमै मैलायत षडो हुई, इन्द्र की पुरी हुई । चा (छा ) - जाकबाणीया छूटा है, सरदरी पुनमरा चंद उग-उग उठा है। झालरी फहरें हैं, चांदणी चहरे है । कलस झगमग है, अजब जेब जग है । जण महलांमे वराज भमर प्रालीजां रो भूप, गंधरी गेंद, माणींगरांको रूप । चायलांको तुररी, चीनीको हार; प्रांष्यांरो अंजन, प्रातमारौ श्राधार । छोगालो छबीली प्राण I Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५० ] प्यारो, नैणांकों नरषणी नां है छिन न्यारो, मतवालीको मांणग, रसजीणको जांणग । जिंग वागफी छोज जेती, दीठांइ'ज वण आवै कहां केती । वसंत रत फल-फूल रही है, आणंदमइ छे । चंद्रसरोवर छे, तीर माथे घणा तरोवर छे । केतकी, चंबेली, गुलाब, चंपाकी फुलवाद | आंबाकी मंजर, भमरांकी गुंजर | बांके उपर कोयलां टहुका करै छे, सुवा नीलकंठ मैमंथ हुआ फरे छं, रस भरे छे । मौर मंमंत हुआ निरत करे है, एक-एकसु सिरे है । फुलवादीरी क्यारीयां में ध है, का करें है, गुदीमें गुचा धरे है । ॥ दूहा ॥ महकै मीठा मोर, कहकै मीठी कोयलां । आठ पहर छहुं ओर लपटांणी तरसु लता ॥१९१॥ वात - जण वागमै श्राय उतरीया । रूख सारा रसमंजरासु भरीया | जसां महेलां दाषल वीही, रात घणी श्राणंदसूं गई । दीपक जगायो, सनेह-रस पायौ । साडी जरकसी पर म्यारांमजी दुपटी ओढायौ । भमर कली लपटायौ । हीडोल बाट भूल छै, च्यारू पय डुलै छै । म्यारांम तन जागीया । जसा मन जागी । मदनमाहराजरी नौबत जोर बागी; कमल कलीयां वषसी, भमर गुंजार थागी । हमें सुरजरी भास हुआ, कमलांरी वेकास हुन । तम-दालदरी नास हुनो, जोत प्रकास हु । म्यारामजी पौढ़ी हुआ, दोढी-दस त्यार हुआ। मालूड़ी दारूरी मनुनार कीधी, दोय छक लीधी । मारवाड छा (चा) लणकी ताकीद कोधी । उठासु कसीया चंद सरोवर प्राया । गौडा जाषोडा, पाया, कमरां कसया छे, रंभाका रसीया छे । बेलीयांनू दारू पावे छे, केई जलमै नावे छे, गायणी गावे छे | जद किसतुरी अरज कीधी । जसीयाकै मडसु वधाया । हा || म्यारी लवल देसती, प्रायो जसीयल व्याह । गावत बांदी गीतड़ा, लीना कवर बधाय ॥ १६२ ॥ वात - अण तक जांन श्राइ । जांनी सीष पाइ आपो आपके घरां गया । - 1 घरा घोड़ा, श्रादमी रह्या । हमें इण तक सुष मांणे छै, इंद्र भी वषांरग छै । नित सकारां जावै छै । असवारी आवे छे । सतषणां महल आकास छाया है, श्राभां वादल भूक प्राया छै । अण देसरी चढती वेसरी पडदा छूटा है, कलाबाका बुटा छं । उग-उग उठा है। चंत्रगारी वणी, सोने में वैडुरज- मणी, कडा, कंठयां, वीटयां, पुणछ्यां सु भरचो, उनालाको प्रवो मंजरीस इ भरयो । मोतीयांको गजरी, फूलां को भारी, गाहडको गाडी रायजादो प्यारौ । दरीयाइको रेजो आछो रंग लागो । सोनेरै कडां मे हीडोल- पाट हीडै छै । इंद्र देष देष भुलै छै । छं ( चं) दणका कपाटका जडीया छै हाटका, Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५१ ] गवाष छूटा है वाटका । इण तकरा महलायत वराजे । चवं म्यारांम आसमांनरे चा ( छा) जे । कोक-कलाको प्रवीण वींदराजा सुजाण, रंग-भमर नादांन, चढती जवांन । जसीया कटाच करे है, म्यारांम रो मन हरे । णांरो सुष बषांणे, रात-दन मनछोजी लो जाँणं । म्यारामसा भोगी भमर, जमी आसमान लग भ्रमर । इती वात संपुरण | म्याराँमरी ग्रासीया बुधजीरी कही सं० १९१३ रा मती भद्रवा ब्द ७ । मुद्रित संस्करण में पृ० १६७ ' रेंबत समजै रानमै' दोहा २७; पृ० १७७ 'जेले तुरगां रेशमी' गीत और पृ० १८५, 'वन सघन लसत मनु घन वसाल' छंद पद्धरी १४० ; जो प्रकाशित हुए हैं वे इस नई प्रति में प्राप्त नहीं हैं । उक्त वार्ताओं के अतिरिक्त इसमें तीन परिशिष्ट दिये गये हैं जिनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है परिशिष्ट १ (क) में राजा रिसालू की बात का जो संक्षिप्त रूप प्राप्त हुआ है, उसे अविकल रूप से यहाँ दिया है और (ख) में इसी 'बात' के केवल जो स्वतन्त्र रूप से दोहे प्राप्त होते हैं वे ही दिये हैं। इन दोहों में राजस्थानी, गुजराती और पंजाबी भाषा के शब्दों का मिश्रण है जिनका कि भाषा - विज्ञान की दृष्टि से महत्व है । परिशिष्ट २ क. ख. ग. और घ. में विभक्त है । प्रत्येक वार्ता में प्रयुक्त दोहा, कवित्त, कुण्डलियाँ, चोपाई आदि छन्दों के वर्गीकरण के साथ अकाराद्यनुक्रम अलग-अलग दिया गया है । परिशिष्ट ३ में पांचों वातों में पद्य एवं पद्यांश के रूप में उपलब्ध कहावतें, मुहावरे और सूक्तियों का संकलन कर अकारानुक्रम से दिया गया है जो कि शोधविद्वानों के लिए उपादेय होगा । प्रति-परिचय प्रेमकथाओं की प्रतिलिपियाँ अनेक हस्तलिखित संग्रहों में और संस्थानों में बिखरी पड़ी हैं, यहाँ तक कि कई प्रसिद्ध कथाओं की बीसियों प्रतिलिपियाँ तक प्राप्त हो सकती हैं । यहाँ प्रकाशित वातों को यथासाध्य प्रामाणिक रूप देने के लिए मैंने कुछ महत्त्वपूर्ण प्रतियों का प्रयोग किया है जिनका विवरण इस प्रकार है -- १. बगसीराम प्रोहित हीरों की वात : इसका केवल एकमात्र गुटका राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर में है । ग्रन्थ-संख्या ५८६७ है । साइज - Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५२ ] सेन्टी मीटर में १६.१४२७; पत्र सं० ६५, पंक्ति १६, अक्षर १६ हैं । लेखन काल २०वीं शती है। इसमें लेखन प्रशस्ति नहीं है। २. राजा रिसालू री वात : इस बात के सम्पादन में मैंने ७ प्रतियों का प्रयोग किया है । ५ प्रतियों का मूल वार्ता में और २ प्रतियों का परिशिष्ट १. क. और ख. में । पाँचों प्रतियाँ क. ख. ग. घ. ङ. संज्ञा से अङ्कित की गई है। क. संज्ञक का पाठ आदर्श मान कर ऊपर दिया गया है और ख. ग. घ. ङ. का पाठान्तर में प्रयोग किया है। क. संज्ञक-राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर, प्र. सं. ३५५३; साइज १८४१२.३ से. मी.; पत्र सं.-१२७-१५६; पंक्ति १९; अक्षर ३६ है। गुटका है । लेखन प्रशस्ति इस प्रकार है : "संवत १८७८ रा वृष मिति माह वद ७ गुरवासरे लिखतं चूतरां [चतुरां] नागोर नगर मध्येः ॥श्री॥" ख. संज्ञक-राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर सं० १२६, साइज १३.४११ से. मी.; पत्र-७; पंक्ति १३, अक्षर ४४ है । लेखन प्रशस्ति निम्न है "संवत् १८६० ना कात्तिक विद ८ बुद्धे संपूर्ण । लिखितं मुनी गुलालकुसल । श्रीमान कुए। ग. संज्ञक-रा. प्रा. प्र., जोधपुर; ग्रन्थ संख्या ३६६०; साइज़ २६.३४११ से. मी.; पत्र १५; पंक्ति १३; अक्षर ३३ हैं । लेखन प्रशस्ति "संवत् १८६० वर्षे मती वैसाष वदि ५ दिने वार प्रादित्य दिने लि० ऋ० रामचंद ग्राम कांगणी मध्ये ॥ श्री घ. संज्ञक-राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर; गुटका नं० ३५७३ (६०); साइज २०४२.८ से.मी.; पत्र १७१-१७५; पंक्ति ४०; अक्षर ३२ हैं। लेखन अनुमानत: १८ वीं शती है। गुटका जीर्ण-शीर्ण है । ङ. संज्ञक-राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर; गुटका नं० १०७०१; साइज १६.३४ ११.८ से. मी.; पत्र सं० ६९; पंक्ति ११; अक्षर १८ है । सचित्र प्रति है । लेखन प्रशस्ति "सं० १८६२ रा मिती चैत सुद ७ अर्फवासरेः ।। मैडता नगरै ।। श्री।" परिशिष्ट १ (क)-राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर, गुटका नं० ४६०५; साइज १५.८X १२.५ से. मी.; पत्र २६; पंक्ति १४; अक्षर १८ हैं। लेखन प्रशस्ति. "लो/पं/अनोपवीजयः ग ।/संवत् १८७५ रा आसाढ सुद ३ दने ॥श्री।।" Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५३ ] परिशिष्ट १. ( ख ) - राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर, गुटका नं० ३५७३ (४५); साइज २०४२८.८ से.मी. पत्र १ (१०६ वां ) ; पंक्ति कुल ६८; अक्षर० ३२ है । लेखन प्रशस्ति नहीं है । अनुमानतः लेखन १८ वीं शती है । गुटका जीर्ण-शीर्ण है । ३. नागजी - नागवंतीरी वात: इस वात का सम्पादन दो प्रतियों के आधार पर हुआ है । क. संज्ञक आदर्श है और ख. संज्ञक के पाठान्तर दिये हैं । क. संज्ञक - राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर, ग्रं० नं० ४३२० प्रेसकापी है | कॉपी साइज में ३८ पृष्ठ हैं । यह प्रेसकॉपी श्रीनगरचन्दजी नाहटा, बीकानेर द्वारा करवा कर मंगवाई गई थी । ख. संज्ञक – राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर, गुटका नं० ११५८५; साइज १६ १०.६; से. मी. पत्र ३२; पंक्ति० ६; अक्षर० २० है लेखन - प्रशस्ति निम्न है " इति श्रीनागवंती नें नागजीरी वात संपूर्ण । संवत् १८५२ वर्षे मिति आषाढ वदि ७ भोमवारे लपिकृतं पं० केसरविजे [जये] न विकंपुर मध्ये कोचर सु लिछमणजी बैठनार्थ श्रीरस्तु कल्याणमस्तु |१| ४. वात दरजी मयारामरी : इसके सम्पादन में दो प्रेसकॉपियों का प्रयोग किया है । क. संज्ञक प्रेसकॉपी को आदर्श माना है और ख. संज्ञक प्रेसकॉपी के मैंने पाठान्तर दिये हैं । क. संज्ञक - राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, शाखा कार्यालय, जयपुर में सुरक्षित 'पुरोहित हरिनारायणजी संग्रह' की है। फूल्स्कैप साइज को यह प्रेसकॉपी दो खण्डों में विभक्त है । प्रथम खण्ड ग्रन्थ नं० १२७; पत्र १६ - २४ है । इस में वार्ता प्रारंभ से प्रकाशित पृष्ठ १६९ दोहा ४५ तक है और बाकी का अंश ग्रंथ नं० 23 पृष्ठ 8 तक में है । ख. संज्ञक - यह प्रेसकॉपी फूल्स्कैंप साइज की २४ पृष्ठ की है, राजस्थानी शोध संस्थान, जोधपुर की है। इस में 'वार्ता' का आद्यंश (४५ पद्यों तक का ) नहीं है । ५. राजा चंद प्रेमलालछी री वात : इस वार्ता की भी दो प्रतियों का मैंने उपयोग किया है । क. संज्ञक आदर्श है और ख. संज्ञक के मैंने पाठान्तर दिये हैं । क. संज्ञक—राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर, ग्रन्थ नं० १२७०६ ( ११ ) ; साइज २२.५१३.१; पत्र० ८६ - ६७ ; पंक्ति ० १५; अक्षर० ३५ हैं । लेखनकाल सं० १८२६ के आस-पास का है । लेखनप्रशस्ति नहीं है । Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ख. संज्ञक-राजस्थानी शोध संस्थान, जोधपुर के संग्रह का यह गुटका है। साइज १४,५४१२; पत्र० १४४-१५६; पंक्ति० १४; अक्षर० २१ है । लेखनप्रशस्ति इस प्रकार है : "इति श्री राजा चंदरी प्रेमलालछी रुद्रदेवरी वात संपूर्ण । संवत् १८३६ रा मती चैत्र वदि १४ चंद्रवासरेः। पंडीतचक्रचूडामणी वा० । श्री श्री श्री ७ श्रीकुशलरत्नजी तशिष्य पं० श्रीश्रीअनोपरत्नजी मुनि खुस्यालचंद लिपिकृतः। श्रीगुंदवच नगरमध्ये ।। सेवग गिरधरीरी पोथी माहे सुलखीः ।" भाभार-प्रदर्शन राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान के सम्मान्य सञ्चालक, परमादरणीय 'पद्मश्री' मुनि जिनविजयजी 'पुरातत्त्वाचार्य का मैं हृदय से अत्यन्त आभार मानता है कि जिन्होंने अपने निर्देशन में मुझे प्रस्तुत 'राजस्थानी साहित्य संग्रहभाग ३' का सम्पादन कार्य सौंप कर राजस्थानी भाषा के प्रति मेरी अभिरुचि का संवर्द्धन किया । साथ ही मैं प्रतिष्ठान के उपसंचालक, विद्यारागपरायण पं० श्रीगोपालनारायणजी बहुरा एम. ए. का अत्यन्त कृतज्ञ हूँ जिनका कि मुझे स्नेहसौजन्यपूर्ण सहयोग एवं सत्परामर्श सतत सुलभ रहा। राजस्थानी भाषा के शोधविद्वान् एवं प्रतिनिधिकवि डॉ. नारायणसिंहजी भाटी ने अपने शोध-संस्थान तथा शोधप्रबन्ध-लेखनादिक अनेक महत्त्वपूर्ण कार्यों में अत्यधिक व्यस्त रहते हुए भी मेरे स्वल्प अनुरोध से ही उक्त संग्रह की विशद भूमिका लिखने का कष्ट कर अपनी सदाशयता का परिचय दिया। एतदर्थ में इनके प्रति धन्यवाद-पुरस्सर हार्दिक आभार प्रदर्शित करना अपना कर्तव्य समझता हूं। ___ में अपने सहयोगी मित्रों, विशेषतः सुहृद्वर श्रीविनयसागरजी महोपाध्याय एवं पं० श्रीठाकुरदत्तजी जोशी साहित्याचार्य का भी आभार मानता हूँ कि जिन्होंने मुझे सामग्री-संकलनादि कार्यों में अपना अपेक्षित सहयोग प्रदान किया। आनन्द भवन, चौपासनी रोड, जोधपुर ) भाद्रपद शुक्ल ५ सं० २०२२ वि० गोस्वामी लक्ष्मीनारायण दीक्षित + Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वार्तागत-विषयानुक्रम १. वात वगसीरांमजी प्रोहित-हीरां की विषय पष्ठाङ्क ८-६ १. गणपतिध्यान, उदयपुर-वर्णन, राणा भीम तथा कोटयधीश लिषमीचंद का परिचय एवं हीरां की उत्पत्ति। २. होरां की बाल्याद्यवस्था का वर्णन, लिखमीचंद द्वारा हीरा की सगाई का टीका रामेसुर ब्राह्मण के साथ सेठ कपूरचंद के पुत्र माणकचंद के लिये अहदाबाव भिजवाना, हीरां का विवाह एवं अहमदाबाद के लिये उसकी विदाई, केसरी बडारण के समक्ष हीरां द्वारा अपना दुःखवर्णन, हीरां का पुनः उदयपुर-प्रागमन तथा अपनी सहेलियों के समक्ष विरह-दुःखवर्णन, नरवर (निवाई)निवासी बगसीराम प्रोहित का वर्णन । ३. बगसोरांम का अपने ससुराल खूबी जाना, बूंदीनगर-वर्णन, बूंदी में प्रोहित द्वारा सिंह की शिकार करना। ४. प्रोहित का उदयपुर की ओर प्रस्थान, सहेलियों की बाड़ी का वर्णन, प्रोहित एवं उसके साथी वीरों की वीरता का वर्णन । १०-१२ ५. हीरां का गौरीपूजनार्थ प्राभूषण-धारण, उदयपुर की गौरी माता की सवारी का पीछोले-प्रागमन, हीरां की सहेलियों की शोभा का वर्णन, नील विडङ्ग अश्व पर प्रारूढ प्रोहित का अपने सुभटों सहित पीछोले-प्रागमन । १३-१७ ६. प्रोहित एवं हीरां का नयन-मिलन, केसरी बडारण द्वारा लालस्यंघ से प्रोहित का परिचय प्राप्त कर हीरां को बतलाना, होरा का प्रोहित के प्रति केसरी के साथ पत्र-प्रेषण, केसरी द्वारा प्रोहित-कथित उत्तर से हीरां को अवगत कराना। १८-२० ७. सन्ध्यासमय-वर्णन, हीरां-महल-वर्णन एवं आभूषण-धारण, होरां द्वारा प्रोहित को बुलाने केसरी को भेजना, केसरी के साथ प्रोहित का महल की प्रोर गमन एवं हीरा के साथ सुख-विलास, प्रभात का वर्णन एवं प्रोहित का हीरां को अपने साथ ही रखने का वचन देकर वापस सहेलियों की बाड़ी में माना। २१-२६ ८. राणा भीम का वर्णन, राणा का बगसीरांम को मिलनार्थ निमन्त्रण तथा Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५६ ] विषय पृष्ठाङ्क उनका 'जगमन्दिर' स्थान पर मिलने का निश्चय, राणा का जगमन्दिर की ओर प्रस्थान एवं जगमन्दिर निवास का वर्णन । २७-२९ ६. प्रोहित का जग-मन्दिर की ओर गमन एवं राणा के साथ विवाद, राणा का कुपित होना, प्रोहित को राणा को 'बंध' पकड़ने की चेतावनी, 'बाड़ी' में प्रोहित की अपने साथियों से मंत्रणा, शिवलाल द्वारा सिवाणी' के राव बहादुर का शौर्य-वर्णन, प्रोहित द्वारा राव बहादुर को अपनी सहायतार्थ बुलावा भेजना, राव बहादुर का अपने सुभटों सहित उदयपुर पहुंचना। ३०-३२ १. राव बहादुर एवं प्रोहित का मिलाप, हीरां द्वारा तीज के मेले में वीरू-घाट पर मिलने का सन्देश-प्रेषण, प्रोहित एवं राव बहादुर का अपने सुभटों के साथ वीरू घाट पर पहुंचना तथा वहां से मेवाड़ी वीरों को मार कर हीरा को उठा कर पीछोल के पार जाना, हीरां के बन्ध की सूचना पाकर राणा का ऋद्ध होना। ११ राणा के वीरों के साथ प्रोहित एवं उसके सुभटों का युद्ध, राव बहादुर युद्ध महम्मदयार खां का गीत, प्रोहित-युद्ध, चांदस्यंघ वाले पोता का गीत, प्रोहितजी का गीत, प्रोहित का अपने साथियों सहित युद्ध जीत कर अपने देश निघाई' ग्राम पहुंचना, विजयोपलक्ष में राव बहादुर को गोठ देना तथा सिवाणी के लिये उसे विदा देना। १२ बगसीरांम-हीरां का विलास-वर्णन, वर्षा-शीत-वसन्तऋतु-वर्णन, हीरां का अपने देवर अभैराम तथा प्रेमी प्रोहित के साथ रंग-फाग खेलना, हीरां को महल में बुलाने निमित्त प्रोहित का सन्देश केशरी द्वारा प्राप्त होना। ४१-४४ १३ प्रोहित को केसरी द्वारा हीरा का निषेधात्मक उत्तर प्राप्त होना, मनाने पर भी हीरां की नाराजगी से क्रुद्ध प्रोहित का हीरां से वैमनस्य, केसरी द्वारा दोनों का बीच-बचाव, प्रोहित-हीरां का रस-विलास, वात का उपसंहार। ४५-५० २. रीसालूरी वारता १. श्रीपुर के अधिपति सालवाहन के पुत्र राजा समस्त का वर्णन । २. सबर की शिकार के लिये राजा समस्त का वन-गमन एवं उसे वहाँ पर श्रीगोरखनाथ का दर्शनलाभ। ३. श्रीगोरखनाथ के आशीर्वाद से रीसालूनामक पुत्र की उत्पत्ति, रीसाल का ११ वर्षपर्यन्त गुप्त स्थान में धाय द्वारा संरक्षण, राजा भोज तथा मान की राजकुमारियों के साथ रीसालू का खांडा-विवाह एवं राजकुमारियों का अपने-अपने पीहर वापस जाना। ५७-६३ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५७ ] विषय पृष्ठाङ्क ४. रोसालू को अपने गोपनीय रक्षण का कारण ज्ञात होना, उसका पण्डित पर क्रुद्ध हो कर गुरज का प्रहार करना, राजा समस्त द्वारा रीसालू को १२ वर्ष तक देश से निष्कासित करना। ६४-६८ ५. रोसालू का गोरखनाथजी के आशीर्वाद से प्राप्त पासों द्वारा जूवे में पराजित अगरजीत राजा की दश मास की (दूधमुंही) बच्ची के साथ विवाह कर विदा होना। ६९-७८ ६. रीसालू द्वारा कस्तूरी मग, सूवा तथा मैना को पकड़ना, उस का 'स्योगवास' गांव से गुजर कर द्वारका नगरी में पहुंचना तथा वहाँ राक्षस को मार कर बस जाना। ७६-८२ ७. रीसालू की रानी के साथ 'जलाल पट्टण' के पातसाह हठमल का प्रेम होना, सूवा-मैना द्वारा रानी को समझाना तथा वन में जाकर अवैध सम्बन्ध की रीसालू को जानकारी देना, रोसालू द्वारा युद्ध में हठमल का हनन करना । ८३-१०१ ८. रोसालू के समक्ष स्त्रीवियोगी एक योगी की पुकार, रीसालू द्वारा अपनी पत्नी (रानी) को उसे दान में देकर द्वारका नगरी से कूच करना तथा रानी का योगी को चकमा देकर हठमल के शव के साथ जल जाना। १०२-११० रीसालू का राजा मान की नगरी पाणंदपुर में पहुंचना, सरोवर से पानी का कलस भरती हुई राजकुमारी (पत्नी) से नोंक-झोंक होना, राजा मान से मिलाप एवं वार्तालाप, रीसालू को सुनार के साथ रानी के प्रेमसंबंध की जानकारी प्राप्त होना, रीसालू द्वारा सुनार को अपनी रानी (पत्नी) का पान कर वहाँ से प्रस्थान करना। १२७-१३४ १० रीसालू का धारा-नगर (उज्जैन) पहुंचना, राजा भोज की पतिवियुक्ता राजकुमारी का चिता में जल कर मरजाने का निश्चय करना; रीसालू द्वारा अपना सप्रमाण परिचय देकर राजकुमारी (पत्नी) के प्राण बचाना तथा पति-पत्नी द्वारा राजलोक में प्राकर हर्षोल्लास के साथ सुख-विलास करना। १२७-१३४ ११ रोसालू का उज्जेण छोड़ कर उजड़ी हुई धारावती में ५ वर्ष तक रहना, महादेवजी की कृपा से वसती को फिर से प्राबाद करना, रतनसिंह-नामक पुत्र का जन्म, रीसालू का अकलबादर दीवाण को धारावती का कार्यभार सौंप कर अपने पिता समस्त राजा की नगरी श्रीपुर की ओर अपनी सेना के साथ प्रस्थान । १३५-१३७ १२ राजा समस्त को किसी अन्य राजा के आक्रमण का सन्देह होना, प्रधान द्वारा पता लगा कर रीसालू के आने की सूचना देना, राजा समस्त द्वारा अपने पुत्र रीसालू की सज-धज के साथ अगवानी तथा पिता-पुत्र-बन्धु-बान्धवों का मिलन एवं वार्ता का उपसंहार । १३५-१३७ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५८ ] ३. वात नागजी-नागवन्ती री विषय पृष्ठाङ्क १. दुष्काल से पीडित प्रजा के साथ कच्छ के स्वामी जाखड़े अहीर का राजा .. घोलवाला के देश 'बागड़' में जाकर बसना। १४५-१४६ २. भाटियों का 'बागड़' पर आक्रमण, धोलवाला के राजकुमार नागजी द्वारा भाटियों का दमन, तथा खेत में रह कर अपनी खेती का संरक्षण एवं नागजी के लिये उसकी भाभी परिमलदे द्वारा प्रतिदिन वहाँ जाकर भोजन पहुंचाना। १४६-१४७ ३. खेत में परिमलदे द्वारा जाखड़े अहीर की राजकुमारी नागवन्ती का नागजी के साथ गान्धर्व विवाह कराना एवं नागजी का नागवन्ती से विदा लेकर पुनः गढ दाखिल होना। १४८-१५० ४, नागजी-नागवन्ती के प्रेम सम्बन्ध का धोलवाला को ज्ञात होना, विरही नागजी की अस्वस्थता का नागवन्ती के संकेत से वैद्य द्वारा उपचार करना, नागजी-नागवन्ती का एकान्त में पुनः संगम देख कर धोलवाले द्वारा नागजी का देश-निर्वासन । १५१-१५४ ५. नागजी का परिमलदे द्वारा संकेतित बाग में ३ दिन तक ठहरना, नागवन्ती को देश-निर्वासन का पता चलना, नागवन्ती का हाकड़े पड़िहार के साथ विवाह, मण्डप में नागवन्ती का परिमलदे के साथ सम्मिलित स्त्रीवेष धारी नागजी से साक्षात्कार होना तथा नागजी का बाग में पुन: प्राकर ठहरना। १५५-१५७ ६. नागवन्ती का चंवरी से उठ कर आधी रात को बाग की ओर भागना, वहाँ माले पर कटारी खाकर मरे हुए नागजी को देख कर उसका अत्यन्त विलाप करना, वहाँ से धोलवाला एवं जाखड़े द्वारा नागवन्ती को पुनः घर पर लाकर उसे हाकड़े के साथ विदा करना। १५८-१६२ ७. मार्ग में नागजी के शव को देख कर नागवन्ती का रथ से उतरना एवं नागजी को अपनी गोद में बैठा कर चिता में प्रवेश करना, बारात का गमन, महादेव और पार्वती के प्रसाद से पुनर्जीवित नागजी का नागवन्ती के साथ पुनः नगर में प्रवेश, वात का उपसंहार । ४. वात दरजी मयाराम की १. मंगलाचरणानंतर वात का उपक्रम तथा मयाराम एवं जसां को पूर्वभववर्णन के साथ वर्तमान परिचय । १६४-१५५ २. अलवर निवासी शिवलाल कायस्थ द्वारा रामबगस-नामक सूवे को खरीद कर उसे अपनी पुत्री जसा के पास रखना, सूवे द्वारा जसा के पूर्वभव का वर्णन Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५६ ] विषय पृष्ठाङ्क करना, शिवलाल का जसां के विवाह-सम्बन्धी कार्य सूवे को सौंप कर कलकत्ता जाना, सूवे का मयाराम के पास जसां का पत्र लेकर भांड्यावास जाना और वहाँ से विवाह का निश्चयपत्र लेकर वापस जसा के पास प्राना। १६६-१६७ ३. बारात का सज-धज के साथ अलवर पहुँचना, जसा द्वारा मालकी दासी को अगवानी के लिये मयाराम के पास भेजना, वार्तालाप के साथ मालकी द्वारा मयाराम को तोरण-द्वार पर लाना, बारात को सज-धज का वर्णन, जसाँ-मयाराम-विवाह, मयाराम के डेरे पर जाती हुई जसा का सौन्दर्य वर्णन, मयाराम-जसाँ-मिलन, मालू-मयाराम का हास्य-विलास । १६८-१७३ ४. लाधै ब्राह्मण द्वारा प्रेषित दुहे को पढ़ कर मयाराम की 'मुरधर' की ओर जाने की तय्यारी, मालू एवं जसा द्वारा उसे वहीं रोके रखने का प्रयास करना, मयाराम का जसा पर नाराज होना। १७४-१७५ ५. मालू एवं सहेलियों द्वारा मयाराम को मदविह्वल बना कर उसके मारवाड़ जाने का विचार स्थगित कराना तथा उसे रंग-विलास में लीन करना, वर्षाऋतुवर्णन। १७६-१८० ६. मयाराम का जां पर पुन: नाराज होना, मालू दासी का बीच-बचाव के दौरान मयाराम से वाद-विवाद, मालू द्वारा जसाँ के रूपगुण-वर्णन के साथ वर्षा तथा बाग का वर्णन, जसाँ एवं मालू का मयाराम से अलवर छोड़ कर न जाने का आग्रह । १८१-१८५ ५. राजा चंद-प्रेमलालछीरी वात १. 'राजपुर' ग्रामवासी रुद्रदेव रजपूत एवं उसकी दोनों पत्नियों का परिचय, पत्नियों के ऐन्द्रजालिक चरित्र से भीत रुद्रदेव का नौकरी के बहाने प्रामान्तरगमन विचार। १८६-१८७ २. रहस्यवित् पत्नियों द्वारा पाथेय (भाषा) के रूप में अभिमन्त्रित लड्डू देकर रुद्रदेव को विदा करना, रुद्रदेव का किसी तालाब के तट पर रुकना तथा वहां उपस्थित याचक ढोली को भोजनार्थ लड्डू-बान, लड्डू के खाते ही होली का गधा बन कर 'राजपुर गांव पहुंचना, रजपूतानियों द्वारा मंत्रबल से गधे को पुनः ढोली बनाना तथा स्वयं को घोड़ी बना कर रुद्रदेव का पीछा करना। १८मा ३. रुद्रदेव का 'देवगढ़' पहुँच कर एक अहीरणी के घर पर शरण लेना, अही रणी का नाहर-रूप देख कर रजपूतानियों का पलायन, भयचकित रुद्रदेव Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ६० ] विषय पृष्ठाङ्क का 'देवगढ़' से राजा चंद को 'अंभो नगरी' जाना, देववशात् वहां की राजकुमारी के साथ उसका विवाह होना । . १८९व सांवली (चील) रूप में प्राती हुई रजपूतानियों के भय से रुद्रदेव का मूछित होना, राजकुमारी द्वारा मूर्छा का कारण जानना तथा 'बाज' रूप नेवरों द्वारा रजपूतानियों का हनन, जादू से त्रस्त रुद्रदेव का महल से चुपचाप भाग निकलना, राजा चंच द्वारा उसकी तलाश कर उससे भय का कारण जानना। १६०वा ५. राजा चंद द्वारा रुद्रदेव के समक्ष प्राप-बीती कहानी का उपक्रम, चंद को अपनी माता एवं रानी के साथ गिरनगरी' के राजा का अवैध सम्बन्ध तथा जादुई चमत्कार का पता चलना, गिरनगरी की राजकुमारी प्रेमलाल. छी के साथ राजा चंद का असंभावित विवाह । १६१-१९२ ६. रानी (परभावती) द्वारा राजा चंद को सूबा बना कर गुप्त स्थान में रखना, प्रेमलालछी द्वारा बराती किन्तु बनावटी पति को महल से बहिष्कृत कर स्थानापन्न किन्तु असली पति (चंद) की तलाश में तीर्थ के बहाने 'अंभो नगरी' जाना। १६३-१९४ ७. नगरी की रानी एवं उसकी सास द्वारा स्वागतार्थ समाहूत प्रेमलालछी का महल में पहुंचना, चतुर दासियों द्वारा पिञ्जरवद्ध शुक (चंद) को महल से पार करना, प्रेमलालछी द्वारा शुकरूप चंद को स्वस्थ कर उसे अपना परिचय-दान, सास-बहू का चीलरूप धर कर चंद को नेत्रहीन बनाने का प्रसफल यन, प्रेमलालछो द्वारा सास-बहू का हनन, चंद का अपने दामाद रुद्रदेव को प्राश्वस्त कर उसे अपने पास यथासुख बसाना। १९५-१९६ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात बगसीरांमजी प्रोहित हीरांकी * श्रीगणेशाय नमः * अथ बात बमसीरामजी प्रोहित होरांको लिष्यते सोरठा- डसण ऐक सुंडाल, बरदायक रिधसिध-बरण । विद्या बयण बिसाल, आपीजै अषिर उकत ।। १ गाथा चोसर- डसण येक गजमुंष लंबोदर, धरणी कनकमुकट फरसीधर । पीतंबर सोभा तन वुपर, बिनायक दायेक विद्या बर ।। २ दोहा- चाहत चातुर अधिकचित, लेषत सुणत लुभात । जथा अनुक्रम सम जुगत, वरणुं अद्भुत बात ।। ३ अथ उदय्यापूरको बरनन कुंडलिय्या- उदिय्यापुरकी छब अधिक, संपति नगर समाज, घर घर परजा लषपती, राणों भीम सुराज ॥ राणों भीम सुराज, तपोबल रंगसं, सगता चुंडा साथ, लियां दल संगसु॥ उजल कोट उत्तंग, इसी बिधि वोपियां, जाण क लंकाकोट, कनकमय जोपिया ॥ ४ दरवाजा बणिया दुगम, कोना लोहकपाट । एक एकतै पागला, थटै सुभटां थाट ॥ थटै सुभटां थाट अनोषा थाहरां, नरनायेक बलबीर पछाड़े नाहरां । किरमाला जुध कीध अरिंदां कालसा, जाण क क्रोध अभंग जुटै जम जालसा ॥ ५ वजै ब्रमक धौंसर बजै, नोबति सबद निराट । मदमत षंभ ठाण मय, थX गयंदां थाट ॥ थटै गयंदां 'थाट' क फोजां थाहणा, बणे तुरंगा बाल मृगाटां बाहणां । Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ बात बगसीरांमजी शोहित होरांकी ऊट प्रचंड अनेक अग्राजें उधरें, धरणहर भादुमास के जारौं धरहरें ।। ६ चहुँ तरफ बणि चौहटां अटा वृतंग प्रखंड | घुमडे जाणें घनघटा दमक छटा छवि-डंड । दमक छटा छबिडंड पताका देषिया, पटा हाट व्यौपार जुहांरां पेषिया । प्रभुषण नर नारि ईसी बिध वोपिया, जाण क सुरपुर लोक इधक छबि जोपिया || ७ पीछोलाको पेषबो मानसरोवर मोज, पांणी भरै छै पदमणी चंदबदनी मुष चोज । चंदबदनी मुष चोज हंसगति चालबो, हाव भाव गावंत हबोलै हालबो ॥ तार जरी पोसाष बीच तन तेहड़ी, इंदपुरी उणियार बिराजै येहडी ॥ ८ बाग अनेक बावड़ी अदभुत फूल अपार, कोयल मोर चकोर पिक जपत भवर गुंजार । जपत भवर गुंजार गुलाबां जूथमें, लता फूल लपटात तरोवर लूथमैं || अंबा चंबा सुगंध बिराजै येहड़ा, जाणे क बंदरावन बसंत छबि जेहड़ा || 2 दोहा - ऊदयापुर राजें ईसो, राणों भींम सुरिंद | कोडी जिणरै कैनैं, चावो लिषमीचंद || १० लिषमीचंद किरति लीयें, दे दे दोलत दाव | भाट गुणीजन भोजिगां, पावै लाष पसाव ।। ११ चैत मास पष चांदर, सातम तिथि सकाज । र धनिसा बसपत अवर, सुक (भ) नक्षत्र पुषराज ।। १२ उण पुल कन्या अवतरी, पूरब लेष प्रताप । चित बृत लिषमीचंद, उछव घणों प्रमाप ॥ १३ छन्द पधरी - उपजी कोडीधज घरि प्राय, लषमोचंद मन उछ्व लगाय । गई निसा भईयो परभात, त दन पंचदुण बीते दिषात ॥ सेठ सबै जोतिस बुलाय, सुभ बीप्र लग्न जोये सुभाय । मिलि गावत कुलतिय. तांन मांन, Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात बगसीरांमजी प्रोहित होराको बीच प्रागण स्यंघासण बणाय, आभूषण कर त्रिये बैठ प्राय अंतर फुलल चिरचंत अग, सुभलियां किनका गोद संग । अदभुत समं मंगल भये आण, बांजंत्र बजे अनेक बांण ।। द्वज बिप्र मंत्र पाहुत दीन, किनका नाम हीरां सु कीन । चणक लेष छबि बीज चंद, बालक मरालकन रूप बंद ।। नागरी अंग सोभा नवीन, कनकनकै केल दोय पान कीन । भई सात बरसमैं बालभाव, बिधि बिधि आभूषण तन बणाव ।। अदभुत लसै छब गवर अंग, पदमरिण कोमल चंपक प्रसंग । ढुलड्यां रमैं संग सषी ढूल, दमकंत अंग जरकस दकूल ।। अग्यातजोवना भाव एम, नह जाणत जोबन आप नेम ।। १४ दोहा- सात बरसांकी समय, गोरी मुगध अग्यात । जोवननै नहै जाणियो, बरण सुणज्यौ बात ॥ १५ कुच ऊपजे काची कली, हिवडै लागौ हाथ ।। मगधा जाण्यो रोग मन, बिसर गई सब बात ॥ १६ कह्यौ आपकी धायकू, कीयो बीरांम अकाज। काल हुतै काची कली, भई सुपारी अाज ॥ १७ धाय वचन दोहा- हीरां चिंता परहरो, ऐ तो कुच ऊपजाय । देषं जाकै दूषसी, थांकै पीड न थाय ।। १८ हीरां चिता परहरी, धाये बचन उर धारि।। सुघड सहेली साथमैं, बिहरत हंस बिहार ॥ १६ बालकलीला बालपरण, बीत्यो पेलत ब्रद।। हीरां तन सूरज हरष, आयो जोबन ईंद ॥ २० १ बात- य तें हीराके सरीर ऊपर सूरजरूपी जोबन पायौ छ। हाव-भाव दरसायो छ । पाछै सूरजपांख जागी छै। मुष शोभा लागी छै । सूरजकी अरणोदै अवरमैं भ्यासी छै। जोबनको अरणोदै मुष ऊपर प्रकासी छै । सूरजकी उदै रषीसुर ध्यान करण लागा छै । जोबनकै उदै ऊर ऊत्तंग जागा छ । सरीरमैं रातिरूपी बालकपणो विलायो छै। दिनरूपी जोबन अायो छै। कवलरूपी हीरांका नेत्र फल्या छै। भव[रकवल फूल जाणकर भल्या छै। हीरां मुगधा ग्यातजोबना कहावे छै, दिल बीच चुपचतराय भावै छै। अब नोंषचोषकी बातां बणावै छै । सनेहकी चुप जगावै छ । Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात बगसीरांमजी प्रोहित हीरांको दोहा- चवदह बरसै अधिक चित, जोबन तणी जिहाज । जोवत अब टेढ़ी निजरि, गह चालत गजराज ॥ २१ मधर बचन छबि चंद मष, ऊमगे ऊरज ऊतंग । लीलंबर ढाके ललित, सुभ कंचन-गिर-शृंग ॥ २२ ऊडघन अंबर छबि अधिक, वोपत अंग अनंत । ' मानौं बदल मेघके, कंचनगिर ढाकंत ।। २३ ललित बंक छवि लोयणां, अति चंचल उझकात ।। अंजणतें अटकायिया, अब नतर उड जात ॥ २४ २ बात- अब माइतां व्यावकी होंस कोनी छ । रामेसुर ब्राह्मणनै प्राग्या दीनी छ । रामेसुर अठासुं गजरातनै ध्यायौ छै । अहमदाबाद नगरमैं प्रायौ छ। तदि कपूरचंद सेठ सुणि पायो छ । सेठ प्रापका आदमी बिनाये रामेसुरनैं बुलायौ छ । प्रोहितको घणो सिसटाचार कीनौं छ । टीको बंधाय लीनौं छै । टीको पांचैको सावो थापि दीनौं छै । ब्राह्मणसू व्यावकी ताकीदी कीनी छै । कड़ा मोती सीरोपाव बीदा दीनी छ। उदैपुर आय ब्राह्मण बधाई दीनी छ। लिषमीचंद हीरांको व्यावकी ताकीदी कीनी छै। माणिकचंदकी जान उदैपूर आई छ । कलावत भगतण्यां गावै छै । नेगदार नेग पावै छै । यौ बींदराजा तोरण प्रायो छ । हीरांनै हीरांकी भाभी कहै छै भाभी वचन दोहा- भाभी इम कहियो बयण, नणद सुणों छो नेम । मन कर देषो बींदमुष, तोरण आयो तेम ॥ २५ आभूषण झमकत ऊठी, अंग दमकत पटवोट । बांके द्रगन बिलोकतां, चमक बाणकी चोट ।। २६ पंकजमुष पर लीलपट, गवणत मनु गयंद । मानुं बदल मेघको, चालत ढाक्यौ चंद ।। २७ बनडाको देष्यौ बदन, हीरां भई बिहाल । मानुं होय गइ कुंद मन, मुरझत चंपामाल ।। २८ । दुलही बनडो देषतां, ऊलही उर बिच आग। संगम देषो साहिबो, कीनों हंस र काग ।। २६ होरां मन व्याकुल भई, आयौ लेष अलेष । कनकथालमैं छेद करि, मारी लोहां मेष ।। ३० हीरां मन वाकुल भई, पायो लेष अनंथ । चात्र हीरां चंदसी, केत-राहासो-कथ ॥ ३१ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात बगसीरामजी प्रोहित हीरांकी फीकै मन फेरा लीया, अंतर भई उदास । ग्रां मीच रोगी श्रवस, पीवत नीम प्रकास ।। ३२ ३ बात- तीसरे दिन समठुणी करि जानने विदा कीनी छे । हीरांनै रथ में बठाण केसरी बडारण साथ दीनी छै । जान अहमदाबाद आई छै । कपूरचंद घण हेतसु बधाई छै । प्रटै हीरा घणी बेषातर रहै छै । दुष-सुषकी बात केसरी बडारणिनै कहै छै । " सुणि केसरी, असो षांवेंद पायौ छै । कपूरको भोजन कागनें करायी छै । गधाड़ारै अंग पर चंदन चढायो छै । ग्रंधके आगे दरपण दीषायो छे । गूंगे के आगे रंगराग करायो छे । नागरवेलको पान पसुनें चबायो छे ।” यूं हीरां दन दूभर भरै छै । पीहर ग्राबाकी आतुर करै छै । माणिकचंद कोठी सिधायो है । पीहरयां प्राणों मेल हीरांनै ल्याया छे । सायनी सहेल्यां का झुलरा मिलबाने आया है । दोहा- मोद न हीरां कुंद मन, बदन रह्यौ बिलषात । सनमुष प्राये सहेलिया, विधि विधि पूछत बात ॥ ३३ हीरां वचन सुष-सज्या समभै नहीं, गोभु बुधि गवार । बिडरूपी मुष दुर्बचन, तिनको मुझ भरतार ॥ ३४ सहेलियां बचन दोहा - हीरां चिता परहरो, करो मतो मन कुंद । गावो मंगल गवरज्या, वा करसी आणंद ॥ ३५ ४ बात- हीरां मन में चिंता न कीज्यो । चित लाय र गौरि पूजिजे । आपके पुज्य को दूणो फल थासी । श्राप मनमें चावस्यो जीस्यौ बर प्रासी । दोहा - हीरां तणी सहेलिया, दुरस दिलासा दीन । वीसराई उण बात, नागर ग्यात नवीन ॥ ३६ 1 सी बचन पण विध सुण्यो, चिता भई निचंत । प्रति सुषदायक अंग मैं हीरां मन हुलसंत || ३७ हीरां जोवत मन हरष, मोहत तन सुकमार । गुणसागर गजराज गति, प्रदभुत रूप अपार ॥ ३८ चाहत जोबन अधिक चित, मदन भई ऊनमत । हीरां डोलत हंसगत, सुघड सहेली सथ ॥ ३६ छकी हीरां मदन छ कि, वण बुध सदन वीसेष । चंद बदन मुलकण दमक, रदन तडतकी रेष ॥ ४० ५ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात बगसोरांमजी प्रोहित हीरांकी ५ वारता- अब हीरां मदको छाकमैं छाक रही छै । मीठीसी वाणी बोल मुषम कही छ । चंदबदनीकै अंग सोभा लागी छै। आपको बदन दरपणमैं दिखावै छ । बिधि बिधि रंग पोसाषां बगावै छै । हीराकै रूपकी समोबड कुण करै । मुनियाको मन डिगै। अपछराको वालो भोलो पडै छै । जोबना छांकमै डोढी निजरी जोवै छै। चंदमुषी हीरां चकोरसषी मोवै छै । सुंदर अलबेली हीरां अतिरूप छाजै छै। कामकंदला क ऊरबसी क रंभादिक राजै छ । सषियांनके विचि हीरांको मुषारबिंद छै-जाणे तारा मंडलमैं पुन्यको चंद छै। केताकै दिन तो हीरांनै सहेलीयां बिलमाई छ । यु करतां बरषा रति पाई छ। अथ हीरांको विरहवर्नन दोहा- कामातुर हीरां कहै, रबि राह बिहरंत । चाहत चातुर अधिकचित, अातुर होत अनंत ।। ४१ हीरां मद आतुर हुई, चित प्रीतमकी चाह ।। विषधर ज्यु चंदन बिना, दिलकी मिटै न दाह ॥ ४२ हीरां चाहै छैल चित, जोबन हंदो जोर । किरणालो चाहै कमल, चाहै चंद चकोर ।। ४३ पुरुष प्रीत हीरां तलफै, दुषद हीयो दाहंत । ऐसे बुंद अाकासमैं, चात्रग मुष चाहंत ।। ४४ हीरां सूती महलमैं, सषीयां तणे समाज । बिरषा ऋति आई विषम, गगन घटा धुन गाज ।। ४५ घणहर जल वरषत घुरत, चमकत बीजल चोज । हीरां रोकी महल मैं, फिर गई सावण फोज ॥ ४६ चमकत बीज अचाणचक, झिझकत उठत जगात । हीरां डरपत महलमैं, थरर थरर थररात ॥ ४७ मदनातुर मेरो मरण, दुसतर वृषा दूसार । कर ऊंचो कर कहत है, हर हर सरजणहार ॥ ४८ सूती सहै सहैलिया, गहरी नीद गरद ।। दरद नही छै दूसरा, दुर्षे जिका दरद ॥ ४६ वरषत घणहर वीषरचौ, उजल्ल भयो प्रवास । उडुगन जुथ अकासमैं, पूरण चंद प्रकास ॥ ५० चमकण लागी चंद्रिका, दमकत षङ्ग दूधार । ऊडगन लगे अगनिसे, विष सम लगत बयार ॥ ५१ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात बगसीरांमजी मोहित हीरांकी मोर-सबद लागे विषम, कोयल बोलै कराल । चात्रग विष बाणी चवत, होरां रैन बिहाल ।। ५२ घण परकार हीरां अठै, दुभर भरै दिवस । तो लायक सषिया तबै, आसी पीवै अवस ।। ५३ चाहत हीरां छैल चित, उमगत मदन अरोड । भावै मन रसीयो भवर, जोवत अपनी जोड़ ।। ५४ अथ न[२]वरको प्रोहित बकसीरांमजी वरननं ढोला जकै समै हुवा दोहा- अठ निवाई उपरै, राजत बगसीराम । प्रोहित जग मारै प्रगट, कबियां पूरण काम ।। ५५ छंद झमाल- प्रोहित बगसीरांम भमर छै क्रीतको, बरदायक अरिजीतण बाटण वृत्तको । घोडा भड घमसाण क थाटां घेरणो, जुटै नगी समसेर अरिंदा जोरणो ॥ ५६ कुंडलिया- साथ समाजत घण सुभट, अनाजत प्राथांण, पाठे विराजत ईद सो, राजत प्रोहित रांण । राजत प्रोहित रांण, तपोबल रूपको, भड घोडा घमसांण, समोबड भपको। बगडावत बरबंक आंकण वारको, मालेम बगसीरांम चहुँ दिस मारिको ।। ५७ प्रोहित बूंदी परणियो, रसियो बगसीराम, सावण तीजां सासरै, कीनौ आवरण काम । कीनौ प्रावण कांम महोला कोडका' , जंगम षडे अपार लीया भड जोडका । देषि झरोष नारि हरष दरसावियो, आज प्रवीणो कंथ क बंदी आवियौ ॥५८ तीज तणें उछव तटै बांचौं घणौं बषाण, निरभै गढ बूंदी नगर, राजै हाडा रांण । राजै हाडा रांण अरिंदां रीसका, अहंकार दुज हणे तमोगुण ईसका। १. बूंदी नगरके पास कोडक्या नामक ग्राम है। Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात बगसीरांमजी प्रोहित हीरांकी कबियां लाष पसाव क छंदा कारणां, मरदां हंदा मरदै क दैणा मारणां ।।५६ अथ बूंदी बरणन दोहा- निरमल गढ बूंदी नगर, झुक परबत चहुँ ओर । अदभुत छबि चहुँ तरफ अति, मीठा बोलत मोर ॥ ६० छंद जाते उधोर- अति मीठा बोलत्त मोर, सुभ करत्त कोयेल सोर । बण बिबध बूंदीय बाग, लत लूंब तरवर लाग ।। छबि नंदी सागर छंद, उलसंत जल अरबिंद । वोपत नीर अथाह, गवणंत क छिव थाह । तरकंत नीर तरंग, सुर घोष दादुर संग । तट बाग छबि उत्तंग, ब्रछि बिबिधि बौरंग ।। अदभूत फूल अपार, जुथ भवर करत गुंजार । सरसंत फूल सूगंध, मिलि पवन सीतल मंद ॥ मंजरी फलं दर मोर, चलबौल करित चकोर । अत्यादि षग, धुनि अंग, प्रति फूल फूल प्रसंग ॥ बण होद सागर ब्रद, मिलि नीर मधु मकरंद । जल भरत नारीह जुह, सिंगार हार समूह ।। हालंत हंस हुलास, पद कनक नूपर पास ।। मष चंद सोभत मंज, कर फूल लोचन कंज ॥ सोहंत कनक सिंगार, पोसाष चीर अपार । वण हीर हार बिहार, रुचि निपट छबि नर नारि ।। बनखंड अबर बिराज, मिल सूर स्यंह समाज । प्रो घाट परबत अंग, उत्तंग श्रंग अभंग ॥ पलकंत झरना पाल, नीझरत जल परनाल । अदभूत गिरंद अनेक, ऊं बिचें परबत येक ॥ ६१ दोहा- उण गिरवर आयकै, केहर तंडव कीन ।। घणहर मांनु इंद्रधन, भादव जलधर मीन ॥ ६२ माणत पदमणि महलमै, रशियो बगसीराम । सुष सज्यामैं सांभली, केहर तंडव ताम ॥ ६३ सुष सज्या तंडव सुणी, मोहित घ0 प्रकार। आय बणी, रमस्यां अबै, सिंघां तणी शिकार ।। ६४ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात बगसीरामजी प्रोहित हीरांकी [९ छंद पधड़ी- भयो प्रातकाल परकास भांन, बन पंषी जन बोलत्त बांण । प्रोहित बोल्यो जब ईण प्रकार, सुरमां क थाट चढस्यां सिकार ॥ ताता अपार प्राकृम तुरंग, कूदंत छवि जावत कूरंग । चढि चले प्रौहित रांण चंग, अत बल बीर जोधार अंग ॥ बण सुभट थाट हैमर बणाये, आषेट रमण कीनी उपाये । घमसाण चले घण थाट घेर, बाजंत घाव नीसारण भेर । चमकत सेल पाषर प्रचंड, दमकत ढाल नीसाण दंड। ध्रमकत घोड षुर धरण धज, रमकंत गगन मग चढीये रज ।। बनषंड एक उद्यान बाग, बन सूर स्यंघ सांबर ब्रजाग । झुक झोम तरोवर घेरि झंड, पेषियो सिंघ प्रोहित प्रचंड ॥ ६५ सोरठा- केहर येक कराल, बनषडमै देष्यो विहद । जगमग पाष्या ज्वाल, पूछ कीया सिर ऊपरें ।। ६६ घोडा चड घमसांण, पाय थया सहै येकठा ।। बिधि बिधि बोलत बांण, बतलाईजै बाघनै ।। ६७ दोहा- केहर बतलायो कना, थट धोडा भड थाट। ___ बतलायो अब बाधनें, नांगी षाग निराट ।। ६८ छन्द पधडो- बतलायो ईम केहरि बडाल, कोप्यो क आय जमजाल काल । जग्यो क सोर ढिग अगन जोम, घडहडो धीरत घण अगन धोम ॥ दगी क तोप वुदडा दोज, विलगी क सो घणघर कडक बीज । छ ट्यौ क बांन अरजन छोह, मंडल तारा टूटयौ समोह ।। दव्यौ क पुछधार सरप हुठ, जग्यौ क नेत्र शिव जटाजुठ । जोगंद अषाडै पर जगाय, यण भांति स्यंघ सनमुष प्राय ।। हलकार प्रोहित कोप कीन, ललकार म्यांन तरवार लीन । पेष्यो क गज धरै अनंङ पष, धायो क बाज चीडकली यधक ॥ अति जोम पीरोहत कर अपार, दमकंत तडत बाई दुधार । कटयौ क शीस केहरि कराल, फटचौ क मांनु तरबूज फाल ।। ६६ दोहा- प्रोहित कीनो जग प्रगट, सिंघां तणी सिकार । बूंदी गढ़ पायो विहसि, सरणां ईसा धार ॥ ७० अतरें अदभत आबियौ, तीजा तणें तिवार । अलबेली आभूषणां, निकसी कर कर नार ।। ७१ सावण घणौं सिरावियो, रसीयो बगसीरांम। निरभ गढ़ बूंदी नगर, तीज महोला तांम ।। ७२ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० ] बात बगसोरांमजी प्रोहित होरांको कर जोडे येकण कह्यौ, रसीया प्रोहित रांण । उदिय्यापुरकी गणगवर, बाचीजै बाषाण ॥ ७३ प्रोहित वचन प्रोहित ईण बिधि पूछियौ, बेहद गवर बषांण । राय भाण चारण रसक, बोल्यौ तब यण बांण ।। ७४ चारण बचन दोहा- जगमग ग्राभूषण जडे, भांमण अति रसभीन । उदयापूरमैं रूप अति, नागर ग्यात नबीन ॥ ७५ ऐक ऐकतै आगली, निपट सलूणी नारि । उदयापुरमै सब यसी, अपछरके ऊणियार ।। ७६ चहु तरफा डगर अचल, कीनां सिखर कंगूर । बाक बिचै सागर यसो, पीछोला जलपूर ।। ७७ प्रगट महल जलतीर पर, सोहत सहर समाज । गवर अग्र मिल सुभटगण, बण ठण षेलत बाज ।। ७२ प्रोहित बचन दोहा- बोल्यो प्रोहित बेलिया, सुणज्यो सब सिरदार । ऊदयापुर चाला प्रबें, बायक कह्यौ बिचार ॥ ७६ ६ बात- प्रोहित बगसीरांमजी सु साथिकांको बचन-अब प्रोहितजीनै साथका कहै छै । ऐक अरज सुणीजै । चैन बुझाकड चांदसिंघजीनै बुझ लीजै । चैनस्बंध बुझाकड चांदस्यंघजीको वचन दोहा- चैन बुझाकड मुष बचन, प्रोहित पुछे प्रमाण । उदयापुर चालो अवस, देषांला र दीवाण ॥ ८० चांदस्यंघ बोल्यो बचन, प्रोहित सुंण प्रकार । उदयापुरकी गणगवर, परषांला नर नार ।। ८१ ऊदयापुर चढियो अवस, बिबधि निसांण बजाय । गवरयां देखण बागमैं, ऊतरीयो छै प्राय ।। ८२ वण सहेली वाडियां, बिध बिध फूल बणाय । ऊठ प्रोहित ऊतरयौ, उदयापुरमैं प्राय ॥ ८३ चन्द्रायणो- ऊदयापुरमैं पायक प्रोहित ये रसो, घण थट भडिजा सुभट समंदा घेरसो । Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात बगसीरामजी प्रोहित होरांकी भवैराईका पेच मगेज भ्रमाडिया, बिध ऊतरियो प्राय सहैली बाडियां ॥ ८४ कुंडलिया- बणी बिछायत बाडियां जाजमैं गिलम जुहार, आप दूलीचां उपर अदभुत षुलै अपार । अदभुत षुलै अपार दूलीचा वोपिया, जाणं क पचरंग फूल अपारा जोपिया । कीमषाप तकिया कसमंदा खूब है, संजीवणकी जडी क जोत सबूब है ॥ ८५ उण गदीक ऊपरै राजत बगसीरांम, मिल घण थट दोहूँ मिसल कीनां सुभट सकाम । कीनां सूभट सकाम दुसासण क्रोधका, जग जीवण.है भीम गदाधर जोधका । जबर बीर छाजंत अरिंदा जालका, किरमाला घमचाल समोबड कालका ।। ८६ राजत बगसीरांमकै अभंग सुभाट]पट येम, छक छायल भुजबलमछर जबरायेलस्यंध जेम । जबरायेलस्यंघ जेम भभका सोरका, जबरायेल कर षोज भुजंगम जोरका । भागणकी पणव्रत उपासी भांणका, मोजां [जों] मंन महरावण क रावण मारका ।। ८७ दोहा- सुभटा जसा समाजमैं, राजैस प्रोहित-रांण । बणीं सहैली बाडिया, बांबूं कर बाषांण ॥ ८८ अथ सहैलियां बाडीको बर्णन ७ बात-बिध बिध सहेली बाडियां छाजे छ । अांबा, खजूरि, केला, नारेल, राजे छ। पिसता, छ हारा, दाष, बिदामा समैकत की छै। चंपा, मरवा, मोगरा, जुही, जाये केतकी छ। बैवलसरी, नींबू, नारंगी, झंबीरी जह छ। रेशमी, गलाब, गैंद, केवड़ा, समहै छै । और लीलडंबर तरोवर पर बेलिडियां लंम रहै छै । सीतल सुगंध मंद तीन प्रकारको पोंन बहै छै । तरबेली सुगंध फूल मंजुरी फूलै छै। ज्यांक उपर भवर गुंजार सबद झुलै छै । बाग बन कुंजमै मयूर छत्र मंडै छै । नाटक निरतक ऊचै सुर तंडै छै । अंबा डाल कोयेलियां टहुका कर छ । मोहणीं सी बाणी बोल मन हरै छ । चकवा, कपोत, कीर, षग धुन सुर्णे छ। Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ ] बात बगसीरामजी मोहित होरांकी मां कांमदेवकी पोसाल बालक भरणै छै । अनेक होद, सरोवर, दादर, मीन जल भूलै छै । तापैं कमोद कवल फूलै छै । सुगंध पर सोहै छै । भमर मन मोहै छै । उण बाडी मैं अनेक महिल चत्रसाली छै । जरीका पडदा भरोषा गोष जाली छै । ऊ बाडियां मैं प्रोहित माजुम कसुंमां करै छै । साथमें दारु दुवाराका प्याला फिरै छै । दूणां श्रमल चोगणां चढावै छै । ऊगाव कर सोगुणां जोसमें आवे छे । तीरमदान बंदुकची हृदफां उतारै छै । बालबंधी कोडी पर तोर गोली मारै छै । श्रथ रजपूतांका बषारण दोहा - बल-पायक रणषेत में, बरदायक मजबूत | राजा बगसीरांमकै, पासि असा रजपूत ॥ ८६ बात- जिके रजपूत कैसा, जंगमैं मजबूत, प्रथीराजका सामंत जैसा, आकासकी बीज, कना जमराजकी षीज, आपका सीस पर बेलै, पडता आसमानकूं भेलै । केहरका प्राक्रम सोरका भभका वाराहका जोर, जलालियका धका, कालीका कलस, सतीका नारेल, सेरु का बेल, नंगी समसेर विजै जैतका प्यासी छै ती प्रावधुका अभ्यासी । जोधविद्याका सागर, रजपूतीका आागर । दातासुं दातार, भुझांसूं झुकार । कीरतका कोट रजपूत कहिये, बगसीरांमका सुभट साइ चहिये | दोहा- सोहै जेहा जेहा सुभट, तेहा तेहा सिरदार ! वीरभद्र रजपूत बिध, प्रोहित रुद्रप्रकार ।। ६० प्रथ प्रोहितजीको वरणंन ८ वात- प्रोहित पण कैसा, दातार करण जैसा करताका बीद प्रथी पर कहावै, षगांकी पैराते षावै र पलावै । भीमका धमचाल, 1 बियांका काल | अरजुनका बांण, दुरज्यौधनका माण । रसबिलासका यंद, वचनका हरचंद । समेरका भार, कूमेरका भंडार | अनेक षानदानवला घूंकला उडावै छै, उदैपुरका बागमैं वारां बजावै छै । दोहा - व सहेली बाडियां, घोडा भड घमसांग । धो उछव रमैं, राजै प्रोहित रांण ॥ ६१ उदयापुरपति ईंद सो, निरभय सुष नर नारि । अब आई है गणगवरे, उछ्व नगर अपार ॥ ६२ हीरांके प्रायो हरष, सबियां तर समाज । अलबेलि ऊचारीयो, ऊछैव करस्यां प्राज ॥ ६३ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात बगसीरांमजी प्रोहित हीरांकी [ १३ प्राभूषण करस्यां अवस, हिवड लागो हेत । गहरी पुजां गवरने, मन वच करय समेत ।। ६४' सब सोले सणगार है, मंजण पाद प्रमाण । अब हीरां आरंभियो, बांचं कर बाषाण ॥ ६५ अथ हीरां गवर पुजण आभूषण प्रारंभतेछंद भूजंगी प्रायात- पटं बैठ हीरां सनानं प्रसंग, अबीर गुलाबं धरे नीर अंग । झलै नीरकी बूंद केसं झरते, षुलै रेसमी डोर मोती पिरंते ।। ६६ किये फूल सप्पेद बेणी क रंगे, लसै नागणी दूधके फेण लंगे। बण बादलं स्याम पाटी बिचित्रं, षुलै मांग मोती क व्योमं नषत्रं ॥ ६७ पुरण मांगकी अोर सोभा प्रकारं, धसैं नीलके पबै म गंध धारं। रसीली अलष्षं बणे स्याम रंग, झुक (के) रूपकी रासि छोटे भुजंगं ॥९८ उदारं विसालं बण (ण) भाल अंगं, तटै षेल चोगान काम त्तुरंगं । विराजै गुलालं किये भाल बिंदं, चपेटी मनू रोहणी अंग चंदं ।। ६६ बरण नैण भहार भालं विचत्रं, पडै दीपको काजलं हेमपत्रं । बिचित्रं बणी भहकी रेष बंक, धरयौ कामदेवं कर(रां)मे धनंकं ।। १०० लसै लोचनं षंजनं मीन लीला, रचे पंकजं फूल सोभा रसीला । सुषं सागरं द्रग्ग पलकं सुघाट, कि● पेमके रूप लज्या कपाटं ।। १०१ दुत (तै) लोचन काजलै रीष दीनें, बरणे कामदेवं विष (पै) वाण मीनै । बणे नासिका कीर तुंड (डे) विमोयं, लसंते कि● तिष्षणी दीपलोयं ।।१०२ बिचें नासिका अग्र मोती बिराजै, मनू राजकै द्वार शुक्र(क्र) समाजै । बरण होट नीके सुरंगं बिसालं, लसै बिद्रमी कोमलं व्यंब लालं ॥ १०३ दुतं दंतकी दाडिमी हीर दांणं, बिचित्रं पकं मोहणी मंत्र बाणं । किये मंजण गोर सोभा कपोलं, उजासंत हेमंत बक (क्कं) अमोलं ।। १०४ मिण (णी) माणक हेम ताटक मंडै, चले भाण दोयं जगा जोत चंडै । लसै चंबका बिंद जाडी लपेटयौ, चितै दूजकै चंद भ्रगी बसटयौ ।। १०५ मुष(पं) मंडलं जोति सोभा बिमोहं, सुधासागरं पूरणं चंद सोहं । फबै स्वासक (का) बासनां कंज फूलै, झणंकार मत्तंगणं भ्रग झूलै ।। १०६ बणी कंठ सोभा बिसालं बसेषा, रुचै नीलकंठं कधू संषरेषा । जतं पोतकठं मणी नील झंबी, लसै मेरशृगं नदी स्यांम लूंबी ।। १०७ बलै कंठकी सोभनां कोण भासं, पिये पानको पीक लालं प्रकासं । उरज्ये प्रकासंत सोभा असंभ, विधू यम्रतंग पूरण हेमकुंभं ॥ १०८ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ ] बात बगसीरांमजी प्रोहित होरांकी कुच (चं) कंचुकी रेसमी तारकंद, गहीरं मनो कुंभ ढाक्यौ गयंदं । बरं कोमलं सोभ बाहू बिराजै, छबीले मनूं कंजके नाल छाजै ।। १०६ फबै बांहैं (ह) बाजु(जू) मिण (णी) जोति फूल, झुक्यौ चंदनी साषपै नाग झूलै। . विराजै नगं सोवनी चु(चू)डबंध, फबै मोहणी प्रांणकै काम फंदं ॥ ११० जु (जु)हारं मिणी पुंचिका हाथ जोपै, अघ(घ)पंकजं मंडलं भ्रग वोपैं। कली चंपकी आगली सोभ कीन, नषं उज्जलं चंद सोभा नवीन ॥ १११ पुनीतं नषं रंग मैंदी प्रकास, विभूषंत मानू कणं लाल भासै । किय (ये) हाथफूलं शरणंकार कीने, लै(ल)सै कामकी नोबतं जीत लीनै ।।११२ हो (हि)ये फूलमालं कीये हीरहारं, दुतं चंदनी मालसी कामद्वारं। . सुभं त्रि(त्री)वली ऊहुकै रोम संगं, तिरै नागनी अंबुधी संतरंगं ।। ११३ सुरंगं दुती नाभि गंभीर सोहै, मनू छैलको भ्रग रूपी बिमोहै । कटी कंकनी हेम झंकार कीने, लसै केहरी लंकपै बांधी लीनैं ।। ११४ जरी तार पट्ट बिराजै ज हरं, किये कोमलं जक (लज्जेकं) लंक पूरं । ... ... ... ललीतं पदं नूपुरै घोष कीनै ।। ११५ पदं कोमलं लाल य(ए)डी प्रकास, कील मोगरा अंगुली साबि कासै। सुचंगी नषाकी जगाजोत सोभा, लसै अष्टमी चंदसे प्रांण लोभा ।। ११६ विणे मोचड़ी हीर मोती बिचित्रं, पदं मोह लीनै कि● हंस-पुत्रं ।। म(ग)ती जोबनाकी चल मंद मंद, गहीरं चल्यो जोम छाक्यौ गयंदं ॥ ११७ विभषै सरीरं पढं (टं) नील बदं, घणं बादलं मेह ढाक्यो गिरंदं । प्रभा चीर सोभा जगाजोति मंडै, चमं(क)कै घटामैं क बोजू प्रचंडै ।। ११८ करै हावभावं कटाछं किलोलं, बिराजै पिकं यंम्रतं मंज बोलं। मुषं चंद्रहासं हरै प्राण मोहं, छिबं देष डोले मुनी छंद छोहं ।। ११६ चढे अत्तरं बासना अंग चोजं, मिलया(य्या)गरं चंदनं गंध मोज । किये काज हाथं चतै रूप काजं, मन(नो) मोद मांनै सहेली समाजं ॥१२० छप्प- सषियां तणे समाज ललित गहणा नीलंबर । किसतूरी केवडा डहक परमल घण डंबर । ग्यातजोबनां गहर मदन छक लहर समाजत, बणि हीरां द्रग बिकस रसक रंभादिक राजत । कुंकमकी बैंदी लिलाट कर, चंद बदन छिब अधक चित, आनंदत देषण गवर, गवणी उठ गयंद गति ।। १२१ Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात बगसीरामजी प्रोहित हीरांकी [ १५ उदयापुर त्रिय अवर बिबध मंन राग बणावत, चंदमुषी मिल चलय गवर ऊचै स्वुर गावत । जोवण कोतक जात नागरी ग्यात नवेली, जुथ जुथ जगमगत अंग सोभा अलबेली। आई समाज देषण गवर, कनकजरी भूषण करी, पीछोलाको पाल पर, यंद्रपरी सी ऊतरी ॥ १२२ दोहा- पीछोलै आई प्रगट, हीरां उच्छव हेत । बांकी द्रगनि बिलोकतां, ललता मन हर लेत ॥ १२३ अानन सषियांको अवर, आठमैं (म) तिथ(थी)उजास । बिचे बदन हीरां बिमल, पूरण चंद परकास ।। १२४ प्रथ उदयापुरकी गवर पिछोले प्रागमण दोहा- उदयापूर निकसी गवर, बिधि बिधि भूषण आण। गज वाजां सुभटां गरट. नरभय बजत निसांण ।। १२५ रछयक आये गवरके, जुथप जुथ जवांन । नर नारी घण थट नरष, चल छोड़ा चोगांन ।। १२६ नर नारी सोभत निपट, लाष लोक लेषंत । पीछोलाकै ऊपरै, दुत गवरा देपंत ।। १२७ धजा फरकत दल सघर, बाजा बजैत बिसाल । गवरयां भड हय थट गरट, पीछोलाकी पाल ॥ १२८ कोयल सुर मिल नांयका, गावत गीत गहीर । हय ध्यावत धर थरहरत, बिबध पिलावत बीर ॥१२६ है अथ बात- यण परकार गोरयां पीछोले आवै छ। नायकां बारां जुथ मिलावै छै । ऊचे स्वर गावै छै । ललिता समूहमैं हीरां मनलोभा छै । नागरवेली अलबेली अंग सोभा छै।। हीरांकी सहेलियांको वरणंन- हीरांकी सहेलियां हंसांको डार । अदभुत कवल बदन सोभा अपार । युं कवलकी पांषडीयां एक बरोबर सोहै। वां सहैलियांमै हीरां परागुरूपी मंन मोहै । कीरतियांको झूमको तारामंडलकी सोभा । आफूकी क्यारी पोसाष मन लोभा। केसरियां कसुमल घनंबर पाटंबर नवरंग पोसाष राजै छ । अतर फुलेल केसरि कसतुरी सुगंध छाजै छै । अतरंग बहरंग सषियां अपार छै । पदमणी, चत्रणी सुंदर सुकुमार छै। कनक-प्राभूषण जरी मोती हीर हार छ । यसी सहलीयांकै बिचै हीरां बिराजै छै। मांगें अपछरामैं रंभाकी सोभा। मनलोभा चंदमुषी उडगनमैं चंद्रमाकी सोभा। यण प्रकार हीरा Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ ] बात बगसीरामजी प्रोहित हीरांकी सहलियां उछ्व करै छै । गवरकै वोली दोली घुमर दे दे फिरै छै । गोरिका गीत कोयलस्वर गावँ छै, जोड़का जवांनकी संगत पाऊं प्रो वर चावै छै । हीरांको रूप देष सुरंद मनमै जा है । धन्य छ ऊ पुरुस जु इं नारिने महल में म छ । अथ पीछोले उपर प्रोहितको श्रागमण प्रोहित बचन दोहा - बोल्यो प्रोहित बागमैं, सुभटां तर समाज । उदयपुरकी गणगवर, अब देषांला प्राज ।। १३० बोल्यो प्रोहित वेलियां, बिध विध रंग बषांण । अमल करो दुणा अथग, तुरगां करो पलांण ॥। १३१ आरंभ उछ्व गवर, रसिया बगसीरांम | माजिम मलां भांग मिल, कोनौ कैफ सकांम ॥ १३२ सरस पियाला साथ में, दारू फिरै दुवार । चंकन धुत कैफा चढे, प्रदभुत सुभट अपार ॥ १३३ प्रोहितको सवारी छंद जात ऊधोर- प्रदभुत सुभट अपार, उतंग अमल उदार । ar for वध बांण, एम पनगा करत पलांण ॥ रात प्रोहित रांण, तंग भाल उदार, केसरि तिलक प्रकार || प्राजानबाहु प्रभंग, प्रोपंत कोट अलं (न) ग । चष रत वोपत चंग, पर कंमल फुल प्रसंग || भलहलत किरणां भाग, पट तार पचरंग पाग । पोसा अंग अपार, कलि रंग रंग प्रकार । कट कस्ये पेसकबज, वण षाग ढाल बिरज ॥ बंधे निषंग कंधे षण, कर लीय तीर कबांण । कमर कसंत कटार, धारंत कर चोधार ॥ परचंड उठत पैंड, वण कांन मोती बैंड । श्रथ नीलबिडंग घोडाको वरणन छंद जाते त्रोटक - तीन प्राक्रम यक तुरंगम युं, भण नांम सनील विडंगम यूं । तन पाटि कनोति तीषण यूं, लस दोय मनुं छिब देषण यूं ॥ कर सोहत कुकड कंदम यं, मषतूल रोमावल बंधम यूं । Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात बमसीरांमजी प्रोहित हीरांकी [ १७ चष सालगराम सुलछणसी, छवि पूंछ मयोर कि पुछनसी ।। तन रोम प्रभा मषतुलनसी, दरसंत मयंक दरपणसी । उर ढाल छिबंत अोराटकसी, कर षंड बिराजत फाटकसी ।। बण अंग असंभव तेज बली, नट नाच सहोदर जंत्र नली। धर पोड कठोर ध्रमंकत यूं, झल पथर आगि झिमंकत यूं ।। ऊचकत अपार उलटणकी, नटबंत क बालक नटणकी। अदभुत्त तुरंगम अंगमकै, बर जोड न नीलविडंगमकै ।। १३५ दोहा- अत बल चंचलं सबल अति, अदभुत प्राकृम अंग। __ रंग तुरंगम रणि रिसक, बणियो नीलबिडंग ।। १३६ छंद ऊधोर- भणिया किम बिडंग, अदभुत प्राक्रम अंग । पर पीठ कनक पलांण, तन तंग रेसम तांण ।। चल झुल जरकस चीर, अंतर चिरचत अबीर । ईस बिध बण्यो केकाण, अब कीयो हाजर प्रांण ।। चढि चलै प्रोहित चंग, तम अवर सभट तुरं[ग] रजपूत हैमर रज, धर पोड धड धड धुज ॥ सब चले मिल येक संग, अत्याद बीर अभंग । सब येक रंग समाज, कर गवर ऊछैवे काज ।। घण थाट हेमर घेर, भणकंत त्रंबक भेर । चमकंत बरछीये चोकुल निसांण, भट बिबध प्रावध बांण ।। रस रंग प्रोहित राव, बण बिबध रूप बणाव । बण सुमट घण थट बाज, सोभंत अधक समाज ।।१३७ राजंत बगसीरांम, किये गवर देषण काम । दोहा- असबारी छब अधिक, पीछोले सु पियार । रसिया बगसीरांमकुं, निरषत सब नर नारि ।। १३८ १०. वात- प्रोहितकी असवारी पीछोलै पाई। अलबेली नायकाकै मन भाई। अलबेलिया असवार घोडा षिलावै छ, पांच पांच बरछीका टेका दिरावै छै । प्रोहितकी असवारीको घोडो नीलबिडंग फरै छै । नाना प्रकारकी गतामैं ईगांईगां करै छै । केसरिया कसुमल लपेटा पर सोनांका तुररा लटकै छै । भवराईका पेचषवा ऊपर लटकै छै । पीछोलाकै पांणी उपर गुलाबका फूल तिरावै छै । प्रालीजा असवार घुडचडीकी बंदुकां सु हदफां लेजावे छै । रायजादा रजपूतांन ऊदैपुरको लोग घणा रंग दाजै छै, पर ऐ बातां प्रोहित ऊदैपुरमैं अमर राषै छ। Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ ] Tata बगसीरामजी प्रोहित हीरांकी प्रथ प्रोहित - हीरांको नैन मिलाप दोहा - मिणधारी छिबतें उछर, प्रोहित प्रेम प्रकास । देष्य हीरांको बदन, हरषत उमंग हुलास ।। १३६ करहुता पाछै करै, हीरां रूप निहार । देषण दो षेडा चढया, अलबेलिया प्रसवार ।। १४० छप्पै - अलेवेलिया असवार यरण बिध देषण श्राई, गजगमन गुसा गहर छोक मदन छत छाई । भाजन ग्रहणां भार पदमणी रूप प्रकासत, कुंनण तन दमकंत बिबध पोसाष बिलासत । चंदमुषी मृगलोचनी, कर कटाछे हीरां कहु, हाव-भाव करि मोहयो रसियो बगसीरांमहु ।। १४१ घोड़ा भड घमसांण पाषरा बगतर पूरा, चोधारा चमकत जबर पग ढाल जंबूरा । जबरायल जोधार छाक मन मछर छाया, अलबेलियां प्रसवार आजै पीछौल आया ॥ वा विचै पिरोहत यंद, बदन तेज अधिको वहे, सुण बडारण केसरी, करे षबरि हीरां कहै ।। १४२ हीरा बचन दोहा - सुण बडारण केसरी, हरिष हीयमैं होत । ऐ धुलो भलै ग्राबियो देषौं बहै देसोत ॥ १४३ मो मन मैं रसियो भवर, लागत प्यारो लोय | यां देष्यो आज मैं जोडी हंदो जोय ॥ १४४ करि गमण ब केसरी, पबरि ल्याव कुस्याल । कवण नाम रहै छै कठै, सांचो कोहो सवाल ।। १४५ ११. बारता - केसरी बडारंणि रूपकी सागर, गुणांकी आगर । श्राधी कह्यां सर जां, पैलाका मनकी पछां । हीरांका वचन सुणि केसरी ध्याई, बगसीरांमकी सवारीकै नजीक आई । प्रोहितने देष्यों, साष्यात कांमदेव पेष्यौं । arein सनमुख प्राय ऊभी, नीलविडंग घोड़ाकी बाग बिलूंबी । केसरी बडारण बचन दोहा - काई नाव क जातिय्या, किण देस किन गांम | ऊदयापुर मैं प्राईया, कहै दीजै किण कांम ॥ १४६ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात बगसीरामजी प्रोहित हीरांकी [१६ अथ लालस्यंघ दरोगाको बचन लाल दरोगो बोलियो, मछां कर बिमरोड । अवर देस नह छै इसो, जिण ऊप[२] सर जोड ।। १४७ वृछ सरोवर छबि बिमल, परघल झूरत पाहाड । बाग अनेक नदिया वहै, बन छै देस ढाड ।। १४८ रहै जतै उ राजवी, कोट निवाई कीध । सुजस बिजै चहूं दिस सरस, लायेक भुजवल लीध ॥ १४६ १२. बात-कमबेस घोडाको असवार लालस्यंघ दरोगो कहै छ - प्रोहित हेल हमीर ढढाडै देसमैं रहै छ। निरभयगढ़ निवाई गांम छ, देगतेग बरदायक बगसीरांम नाव छ । देस परदेसमै मारको कहावै छै, षाग त्याग अण गंज बीर(व) बजावै छ। सहलियां बाडियांमैं डेरा करवाया छ, उदैपुरकी गवर देषण आया छै। वौहा- सुणत बडारण केसरी, गमण करी गजगत । हीरांनै कहिया हरष, समाचार सरबत ।। १५० प्रोहित आयौ पेमसं, भाग तमीण भाम। जोय तमीणो जोडको, रसियो बगसीराम ॥ १५१ ऐ धलो छिब सयपत, अब देषी पाप । मन वंछित प्रो छ मदन, मन कर करो मिलाप ॥ १५२ आप जोड देष्यौ अबै, राषो प्रोहित रीत । औ बर दीनो गवरज्या, प्यारी करलै प्रीत ।। १५३ प्रालीजो छिब अंगमैं, बर जोडी बाषाण । प्रीत करीजै पदमणी, अवर नहीं अवसाण ।। १५४ प्रोहितजीन होरा कागद लषते दोहा- हीरां मनमैं अति हरष, कागद लिषो प्रबीन । समाचार बिध विध सकल, नागर हेत नबीन ॥ १५५ १३. बारता- केसरी बडारण हीरांका हाथको कागद ले गमण कीनो, राधाकृष्ण षवासका हाथमैं दीनो । केसरी भणै छ, राधाकृष्ण सुणे छ । केसरी बचन दोहा- कहैत बडारण केसरी, राधाकृष्ण सुणंत । मालुम कर माहाराजसुं, तन-मन कागद तंत ।। १५६ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० ] बात बगसीरामजी प्रोहित हीरांकी कर जोड्या राधाकृष्ण, प्रोहित अरज प्रकास । कागद नजरचा कर दीयो, हीरां हेत हुलास ।। १५७ १४. बात - राधाकृष्ण पवास अरजको हुकम लीनुं, कागद प्रोहितकै हाथ में दीनुं । बगसीरांम बांचे छै, मन मोद राचै छै। हेतको प्रकार, कागदका समाचार | दोहा - हीरां यम लषियो हरष, करस्यां पूरण कांम | बिबिध कागद बांचज्यों, रसिया बगसीरांम ॥ १५८ afणियाणी चातुर घणी, आपतणी प्राधीन । बिध बिध क्रपा कर मो घरे, आज्यो बिलंब न कीन ।। १५६ प्रोहित बचन दोहा - पर घर करां न प्रीतड़ी, प्रोहित बचन प्रकास । दाष म्है छां काच दिढ, रमां न धिय रत रास ॥। १६० बोल सुणत तब केसरी, हीरां अग्र विहार । ॥ १६१ कहियां बन मलाय का प्रोहित सुरभै प्रेमसु कर गहै मालुम कीन || १५. बात दूसरो समाचार प्रोहितनै बचायो, मदनमें छायो, कामदेव दरसायो ॥ हीरां बचन दोहा - यम फंद फसिया प्रगट, कसमसियेव सुकांम । घर बसिया आयो घरां, रसिया बगसीरांम ॥ १६२ सिरपै वारूं साहिबा, प्यारा तन मन प्रारण । मो सुगणीरा महल में, रहज्ये प्रोहित रांण ।। १६३ हसज्य कसज्यौ षेलज्यो, लीज्यो जोबन लेह । पलक न न्यारा पोढज्यौ, नाजक धणरा नेह ॥ १६४ श्राप नहीं जो आवस्यौ, हीरों कवण हवाल | महिला पदमण मांणज्यो, जोडीतणा जलाल ॥ १६५ आप नहीं जो ग्रावस्यो, रसिया प्रोहितराय । आपघात मरस्युं श्रवस, मरू कटारी षाय ।। १६६ १६. बात - यण प्रकार कागद प्रोहितने बचायो, समंचार बाचतां हरष आयो । प्रोहित मिलापको बचन कहै छै । केसरी बडारण हेतका कांन दे छै । प्रोहित बच्चन दोहा - कह दीजे तु केसरी, सांचा बचन सुणाय । हीरां हंदा महल में, प्राज्ये रंमाला प्राय ।। १६७ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात बगसीरामजी प्रोहित होरांकी केसरी बचन दोहा - हीरांसु कही केसरी, बिध बिध निसचै बात । हीरां प्रोहित हेतसुं, रंग रमासी रात ।। १६८ १७. बात - केसरी समाचार भरणै छै । हीरां हेत कर सुर छे । प्रोहितजी महलां ग्रासी, तोने रंगको राते रमासी । ईतरी बात हुई— प्रोहितकी सवारी सहलियां बाडी गई । हीरां पणि श्रापकै महल प्राप्त हुई । हीरां भरोषै बैठी छे । सहेलियां बाडी कानी जोवै छै । अबै तो सूरज्य असतंग हूवी छे । पुजारी पुजा करण मंदर परसै छै, अब तो संभया दरसै छै । श्रथ संस्या समे वरणन छप- अब सूरज्य प्राथम गहर सुनो बति गजिये, मंदर संभया समय संबधूनि सजिय । चमकत घर घर दीप मोद संजोगन मंडत, कलबलाव कोचरी तीषसुर घुघु तंडत ॥ जब कवल कुंद बिछड़े चकव, इधक चंद छवि उडगनिय । उदयापुर सागर अवर, कहर प्रफुलित कमोदनिय ॥ १६९ दोहा - इण विध सूरज प्राथयो, पुरकर चंद प्रकास । अब बरणत सोभा अधिक, हीरां महल हुलास ।। १७० अथ हीरांका महलको वरननं छंद जात पधरी - वणि महल सपतष म [ ड ] गगन वाट, कण हेम जटत चंदण कपाट । ऊतंग भरोषे बण अलंग, पट पाट जरी पड़दा प्रसंग || fant [भ] अनेक बान, बण बिबध रंग जाली बितांन । उण बीच बिछायेत नरम अंग, रेसम दुलीचा चांदणी रंग || छिब हेम रंग चित्रांम बंध, सरसंत झपट नाना सुगंध । चहु वोर महिल छिब रंग चोज, मांनु ग्रनग असमान मोज || ढोलियो मद्ध चंदण सुढाल, बिद्रमी ईस सोभा बिलास । रेसमी बणत कोमल सुरंग, प्रतिफुल गंध सज्या प्रसंग || मिसरु गलीम गदरा मसंद, सज्या कसंत विध विध सुगंध । विछयु प्रजेक सोभा विराज, सुष सागरको मानु समाज ।। १७१ दोहा- यण प्रकार सोहत महल, दमकत छवि ऊद्योत । दीपग लग प्रतिबिंब दुत, हिलमल जगमग होत ॥ १७२ [ २१ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ ] बात बगसीरामजी मोहित होरांकी मथ हीरां आभूषण प्रारंभते घोहा- आभूषण प्रारंभयो, केसर मंजण कीन । प्रोहित मलबा पेमसुं, अातुर होत अधीन ॥ १७३ मंजण नीर गुलाब मिल, केस पास मुकरात । . बैणी फूल सुगंध बर, लेषत मन लोभात ॥ १७४ तिलक तेल तंबोल मिल, द्रग अंजन ऊदार । ललित मुकत पाटी अलष, मिल सुगंध सुकमार ॥ १७५ मगत मंग सिंदूर मिल, कनक फूल छिब कीन । मंज तिलक छबि चंदमणि, पंकज बदन प्रबीण ॥ १७६ करण फूल मोती कनक, जगमग नगमणि जोत । लटकत मुकट लिलाट लै, उडगन छबि उद्योत ।। १७७ 'म्रगमद कुंकम चंद मिल, द्रग अंजन छबि दीन । नकबेसर झमकत किनक, नाग पनि मुष लीन ॥ १७८ कंज कंठ त्रैवट किनक, परस लील मणि वोत । मुकता माल बिद्र म बिमल, उजल हीर ऊदोत ।। १७९ सपत लडी कंचन सुभग, हांस हार सुहेल । नवसर कण नव रंगके, चोसर फूल चमेल ।। १८० चंद्रहार ऊपर चमक, कंचु[क] जरकस कीन । दमकत कूदण धुगधुगी, नग प्रतिबिंब नवीन ।। १८१ कामल भुज अणवट किनक, वाजुबंध बिचार । कीय चुड नग जुत किनक, कर कंकण झणकार ॥ १८२ पहुची नग बिध बिधि प्रगट, पांन फूल परकास । लालरंग महदी ललत, अदभुत नख ऊजास ।। १८३ किनक मुद्रिका बज्रकरण, दुत सोभा दमकंत । हाव भाव पोसाष हित, चपलासी चमकत ॥ १८४ ललवत किनक सहेलड़ी, विमल करत बिहार । नील जरी अंबर लुकी, करत बिबध झंकार ।। १८५ छद्र घंटका अधक छव, कटि प्रदेस दुत पुंज । पग नपुर पायेल प्रगट, गत मुराल धूनि गुंज ॥ १८६ विमल किनकके बिछये जावक पग थल जोप । लाल नषन मैंदी ललत, अरध चंद छबि वोप ॥ १८७ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात बगसीरांमजी प्रोहित हीरांकी पावपोस मोती प्रगट, गणवत मनुं गयंद | हीरां प्रोहित मिलन हित, ऊर ऊपजंत अणंद ॥ १८८ छंद पधरी - प्रभुषण तन झमकत असेष, वण अंग संग सोभा विसेष । बिबध रंग रंग पोसाक बंद, अंतर फुलेल चिरचत प्रनंद ॥ केसर कसरी मिल कपूर, निरमल तन चंदन बिरचत नूर । परमल अनेक मंजन प्रसंग, रंभादिक सोभा रूप रंग ॥ परंग सपी केसरी प्राय, दीपक जोति दरपण दिषाय । हीरां मनप्रति कीनूं हुलास, प्रोहित प्रचंड मिलवो प्रकास || मदनातुर हीरां मन मलाप, बर प्रोहितकी संगम वयाप । ललिता ज भई बस कांमलीन, केसरी बडारणन बदा कीन || Narsi hai कर बिहार, प्रोहित मिलबो मन मोद प्यार । अब कह बचन रस बस अनेक, हीरां मिलाप हित हेक हेक ॥। १८६ दोहा - अरध निसा आई अली, प्रोहित प्रेम प्रकास । हीरां मिलबा हेतकी, वातां कहत बिलास ॥ १६० het बचन प्रोहितजीसूं अरज करू चालो अब, आपतणी प्राधीन | कामातुर हीरा कहर, दुष पावै छै दीन ॥ १९१ चकोर चाहे चंदकूं, मोर चहै घण मंड | हो चाहे आपकूं, प्रोहितराये प्रचंड ॥ १६२ १८. बात - साहिब जेज न कीजै, रसिया भवर बेग पधारीजै । कोडे महोरकी राति जावै छै, हीरां पणे महलम येकली दुष पावै छै । प्रोहित बचन साथकासुं छप्पे - प्रोहित यण प्रकार साथ बात सुणाई, हीरां मिलबा हेत अरध निस दूती आई । हरषण मिलण हुलास चाहै अब अवसर चुकत, मुरछैत नारी महल मदनजुर प्रारण स मुकत || दिलको न कोई जाणे दरद, मुव्रत नहीं नारी मरद, फिर बव (च) न पाछो फरक, युं नहचे कर भुगते नरक ॥। १६३ अथ प्रोहित हीरांको महल गमण श्रारंभते दोहा - हय चढियो परघय हुकम, चाकर लियो सु चंग । मांणीगर रसियो भवर, रंग प्रोहित रंग ॥ १६४ [ २३ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ ] बात बगसीरांमजी प्रोहित हीरांकी असवारी हद वोपियो, बणियो नीलबिडंग । अधूल्यौ छबि इंद सो, रंग प्रोहित रंग ॥ १६५ कमर कटारी असी हथा, आयुध बिबंध अभंग । चकाधूत कैफां चढयौ, रंग प्रोहित रंग ॥ ६६ हीरां मदन बिलास हित, अति मनमैं ऊछरंग । बचनको बाँध्यो बहै, रंग प्रोहित रंग ॥ १६७ बहत अगाडी बीर बर, सेवो चाकर संग ।। दारण चाल्यौ चित निडर, रंग पिरोहित रंग ॥ ९८ सहर कोट आयो सिधर, ऊतंगत ऊनाड ।। दरवाजा मंगल दुगम, किलफां जडी कवाड ॥ १६६ दरवाजै प्रोहित दूगम, ऊभौ जोम अनंत । चाकर सेवो केसरी, नासकमैं निकसंत ।। २०० १६. वात- प्रोहित मनमैं बिचार करै छै। कवाड टुटै न घोडो कुदावाको दावा रै छै । प्रोहितका मनमैं दाव आयो, नीलबिडंग घोडानै कोटको सफील कुदायो । दोहा- दाबत अतबल कूदियो, तूरत सफील तुरंग । ऐल नहीं असवारजें, कुद्यो जाण कूरंग ।। २०१ वेग तुरंगम अति विहद, प्राक्रम तर भरपूर । गढ सफील झंप्यौ गिगन, लंफ्यौ जांण लगूर ॥ २०२ नीलबिडंग कुद्यौ लहर, प्रोहित मन हलसंत । कर जोडी यम केसरी, 'षमा षमा' प्रापंत ।। २०३ २०. बात- प्रोहित इण प्रकार घोडो डकायौ, हीरांका महलके झरोषै नीचे आयो । सेवै चाकर घोडाकी बाग पकड़ लीनी, केसरी बडारणि हीरांनै बधाई दीनी। हीरां केसरीनै बधाईमैं नवसर हार दीनो । केसरी मुजरो कर लीनो। रेसमका रसां प्रोहित चढि आयौ, हीरां गवर पूजबाको फल पायौ । हीरां बार बार मुंजरो कर हरष धरै छै, मोती मोहोर मुंगियासं निछरावल करैछै । हीरां बचन दोहा- रमस्यां सेजां रंग, रली, [करस्यां] पूरण काम। प्राजि भला घर आबिया, जोडीतणा जलाल २०४ आजि भलाई आबिया, रति पूरण अनुराग । दरस तमीणो देषियो, भलो अमीणो भाग ।। २०५ गहर प्रजंक सुगंध अति, प्रोहित मदन प्रकास । पोहत चितवत सदनमैं, हीरां बदन हुलास ॥ २०६ Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात बगसीरांमजी प्रोहित हीरांकी चातुर बोल्यो मुष बचन, आतुर हीरां प्राप । तिरषातुर मेटो त्रया, तनु मदनातुर ताप ॥ २०७ प्यारी वो प्रजंक पर, हाव भाव कर हेत । दंपत रत रमस्यां मदन, मन बच ऊमग समेत ।। २०८ छप्पे - सुणत गवर संक्रमी झणण, ग्राभूषण झमकत, हाव भाव मन हरत दरस तानगो ( पो ) र भ्रमंकत । मधुर मधुर मुलकंत अधर पुलकंत अरण प्रति, ललत विलोकत ललत चहत हित मंत्र अधिक चित ॥ हीरां ऊमगत मन ऊलस, कसमसर स ऊर कांमकै, ऊभी सनमुष कै, रसिया बगसीरांमकै ।। २०६ दोहा - ऊभी सनमुष प्रयेकै, हीरां मन हुलसंत । देष देष आनंद प्रति, मंद मंद मुसकंत ।। २१० प्रोहित रसक प्रजंक पर, ललित अंक भर लीन । चूबत अधर निसंक चित, डंक रदनको दीन ॥ २११ हीरां व्याकुल थरहरत, चमकत डरत चकीन । बंद करत रित मदन छिब, देष बदन हस दीन ।। २१२ दंपत दरस प्रजंक पर, संपत करत हुलास । हीरां बगसीरांम हित, कद्रप मुदत प्रकास ॥ २१३ प्यारी पीव प्रजंक पर, ऊलही उर अवलूब 1 मानुं चंदन बृच्छ मिल, झुको के नागणि भूब ।। २१४ २१. बात- - यूं रंगमै राति बितीत भई । हीरांकी अबलाषा पूरण भई । रंगमहलको समाज बणायो, प्राणपियारीनै रतिविलासको सुवाद प्रायो । बगसीरामजीको बचन बगसीरामजी कहै छै - प्राणपीयारी व डेरानै हुकम दीज्ये, प्रभातिको आगमण छँ जेजे न कीज्ये । हीरा बचन दोहा - अरज करत हीरां अधिक, बायेक प्रेम बषान । मो सुगणीने माणज्ये, रंग तणी छे रात ।। २१५ प्यारा पलकां ऊपरै, राषालां चित रीत | रात घणी छै राजवी, प्रीतम अधिकी प्रीत ॥ २१६ [ २५ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ ] बात बगसीरामजी प्रोहित हीरांकी प्रोहित बचन प्रोहित प्यारीने को, प्रितष हुवो प्रभात । पुजारी मंदर प्रगट, झालर घंट बजात ।। २१७ २२. बात - बगसीरांम कहै छै- परभात हूवो, मंदर झालर घंटा बजायो । हीरां कहै छै - बालम, परभात नहीं, बधाई बाजै छै । प्रऊत घर पुत्र जायो । प्रोहित कहै छै - प्यारी, प्रभात हुई, मुरगी बोल रही । हीरां कहै छै - कुकड़ा मिलाप नहीं छै । प्रोहित कहै छै - प्यारी, प्रभात हुवो, चडिय्यां बोलै छै । हीरां कहै छै - बालिम, प्रभाति नहीं, यांका आलांमै सरप डोलै छै । प्रोहित क छै - प्यारी, प्रभात हूवो, चकई चुपकी रही छे । हीरां कहै छै - बालम, बोल बाकी भई छै । प्रोहित कहै छै - दीपगकी जोति मंदी भई छै । हीरां कहै छै - तेल को पूर नहीं छै । बगसीरांम कहै छै - सहरको लोग जाग्यो छै । हीरां कहै छै - कोईक सहरमै चोर लाग्यो छे । प्यारो कहे छै - प्यारी, हठ न कीज्ये, अब बहूत कर डेरानै हुकम दीज्ये । दोहा - रंग रात बीती प्रसक, ग्ररुणोदय प्राभास | बन पंछी बोलत विमल, पंकज फूल प्रकास ।। २१८ अंक छोड प्रोहित उठ्यो, प्यारी रही प्रजंक । हीरां मुछित पर रही, इसी भुजंगम डंक ।। २१६ हिया पीतम परहरत, स्वातग भई सुभाय । भीर तबै कर अंक भर, प्रोहित ऊर लपटाय ॥ २२० हीरां बचन कर जोडी हीरां कहैत, अब कद मलस्यौ प्राप । एक घडी नै आवडे, तनकी मर्दै न ताप ॥ २२१ लार मोने लेवज्यौ, प्रापतणी प्राधीन । आप बना मरस्यू अवस, मरत नीर बिन मीन ॥ २२२ वैले मिलीजै बालिमां, प्यारा तन मन प्रांण । हिवडे राखूं हेतसुं, रसिया प्रोहित रांण ॥ २२३ मो मन मलियो बालमां, कहुक प्यारा कंत । दीसत यक सम दूध मैं, मानुं नीर मिलंत ॥ २२४ प्रोहित बचनं दोहरा - बिलकुल बोल्यो मुष वचन, रसियो बगसीराम | प्यारी साथ पधारस्यां, जुदी नही यक जांम ॥ २२५ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात बमसीरामजी प्रोहित हीरांकी [ २७ प्यारी कर गह प्रेमसुं, बचन दीयो मुष बांण । रहस्यां भेलारा वयण, ईसटदेवकी प्राण ।। २२६ अबै झरोष ऊतरयौ, बचन कथन बर बीर । चाकर संग तुरंग चढि, रावत मघ मन धीर ॥ २२७ बणी सहैली बाडियां, आयो बीर अभंग । बण बैठो गादी बिमल, सुभट समाजत संग ।। २२८ वात- अथ राणाभीम बगसीरांमको मिलाप आरंभते ।। राणाको बरणन दोहा- वुदयापुर राजै यधक, रांणों भीम सुरिंद। __ सुभट समाजत सूरमां, पाजत राजत ईद ॥ २२६ २३. बात- यण प्रकार रांणो भीम, कीरतिको कोम, भोजतालाबिंद, चितको समंद, प्राचारको ईद, सरणाया साधार, हींदूपति पातस्याह, यकलंकको अवतार, महिमा अपार, यसो रांणों भीम । जोकी दरगामै येक समैं बात आई, ढिंकडीये अरज गुदराई। ढिकडीयाको बचन बात- प्रतप श्रीदिवांन, येक ढूंढाड देसको प्रोहित आयो छ, सातबीसी असवार घोडां प्रांडंबर बणायौ छ। सहलियां बाडियांमै ज्यौको ऊतारौ छै, कीरतको भारौ छै, अनेकांनै रीझ मोजा करै छै. मनमै हजूरेसू मिलवाकी ऊमग धरै छ । दातारको दातार, झूझारको झुझार, हेला हमेर इंदको अवतार । बगसीरांमनावें कहावै छै, मिलयां हरिकीभी दाये आवे छ। . दिवानकोबचन जब दिवान फरमाई - म्हे भी मलस्यां, देषणां स भुलणां नही, रूप, गुण देष(षां)ला, प्रोहितनै पेषोला। रांणैजी हुकम कीयौ - प्रोहित बेग प्रावै, मिलबाकी मन भावे । यण प्रकार दीवान हुकम दीनो, छडीदारनै बदा कीनी । चोपदार सहैलियां बाडी आयौ, सुभटांका साजमै प्रोहित दरसायौ । अधुलौ प्रोहित माजम कसुमा लैछ, परगहैनै फुलमदका प्याला दैछ। विधविध षुबी कसबोई लगावै छै, अनेक प्रकार बला-धुकलां उडावै छै। बगसीरांमकी हजूरे छडीदार पायौ, मुजरो करे दीवाणको हुकम गुदरायो। ___ अथ छडीदारको बचन बात- प्रोहित साहिब, अपने श्रीदीवान याद करैछ, आपका मलवाकी मनमै । धरै छै, सुभटांन साथ लीजै, सताब असवारी कीजै । Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ ] बात बगसीरांमजी प्रोहित होरांकी प्रोहित बचन बात- प्रोहित कहै छै -- मै तो ऊदैपुरकी गवर देषण प्रायो छो, म्हाकै सासरै बूंदीमै चारण बषाण सुणायो छो । एक बार तो घरांनै जावस्यां, दीवान ईती कृपा करै छै तो फेर अावस्यां । चोपदार बचन चोपदार अरज करै छै – दीवान तो अापसुं मिलवाकी आजी धरै छै । दीवांणनै आप राजी राषस्यौ, मिलायकी दाषस्यौ । प्रोहित बचन जो दीवान मिलबाकी धारसी तो प्राजि जगमंदर पधारसो। पीछोले पेषांला, दीवांणनै भो देषांला। दोहा- जगमंदर जगनीवांसमै, जुगत आवै जो दीवांन । प्रोहितरांण मिलायकै, प्रगट कह्यौ प्रमाण ।। २३० दीवांण जगमंदार पधारवाकी असवारी बरणन छडीदार बचन छंद भुजंगी- धर(रे) बात निरधारर छडीदार ध्यायौ, अब सांनकुल दरबार आयौ। कह (हे) रांण भीम(मो) कहो बात कैसे, उचारी दुजाती सबै तु(तू) ऐसे ।। छडीदार बोल्यौ सुणी भीम बातं, दिवाणं मलापं मगेजं दुजातं । प्रथीनाथ आपे पीछोले पधारं, जग(गे)मंदरं राम रामं जुहारं ॥ राणो भीम बचन तबै भीम बोल्यौ सुणौ बेगताम, अब जेज कीज्ये नही येक जामं । जग(गे)मंदरं आज तो बेग जोहै, मन(ने)मांन दानं दुजात(ती)बिमोहै ।। तबै चोपदारं फरयौ बेगतामं, जणायो सुभट(ट्ट)चलौ जामजामं ॥ फुबै रांण भीमं फुर(रै)मांण फेरं, बज्यो दूक धूसा करं नाल भेरं । जरी तारपट(ट्ट)षले झंडचंडं, बिपंचित्र मंने षहोदं ब यंडं (यंडं)। रचे स्याम लीला गज (जै) ढाल रु डं, पटं प्राबृतं रेसमी झूल पंडं ।। सनं बीर ऊतंग ततै तुरंग, सुभं हीरहारं बनाथ (थं)सुरंगं । लसंतं नगं पाटहेमं पलानं, मन (न)मोद मान चढतै बिमांनं ।। रचे चंदनं के जट हेमं(म)रणं, म्रदू तारपट(ट्ट)लपेटत मधे । रसे रसम हेम रंजु टरावै, मनं बेगबानं धनं घोष मावै ॥ षलै जोत नंग जट(टे)हेम षासं, लसै पालकी रंग रंगं विलासं । थटै नेष नेषं छडीदार थंडं, चमंकार हेमं जटे डंड चंडं ॥ बिभूषत्त अग्रं बर(रै)दार मालं, रचै मंजघोषं नकीबं रस्यालं । Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात बगसीरांमजी प्रोहित होरांकी [ २६ हलै बेठ भीमंग जरी तार पट (ट्ट), भुकै चामरं सेत सोभा, झपट (ट्ट ) | मनुं बदं ( ६ ) लं हेमको छत्र मंड, दमंकार बज्र कणं सोभ डंडं । चल्यौ भीमरांगं समाज ( जै) बिचित्रं, नट (टे ) नाये (य) का रंगरागं निरंत्रं ॥ दहूधा बजे ताल भेरी म्रदंगं रचे श्रार भीतसिक ( का, कै) रंगरंगं । विमु (भू, मू) षत् शस्त्रं पन ( नै, ना ) जोधबं दं, करै क्रीतकी हाक भद्र कवंदं ॥ उ हैमरं पोड रज प्राषंडं, तटं व्योम भासी ढक्यो मारतंडं । थटै संग लीने सबै सेन थाटं, घुमंडे पीछोले गई बीर घाट ॥ नरिदं तबै बैठयू नीर नावं, सुभट (ट्ट) हजूर सबै संग भावें (वं ) । जग ( गै) मंदरं प्राप्त (ते ) ईद्र जैसे, प्रत (ती) सोभमानं विराजत्त ऐसे || मिलेयू चहूंगा महानीर मंड, चलै मच्छ कि ( की ) लोल लोलं प्रचंड || २३० दोहा - सगता चांडा संग सभट, यम जगमंदर प्राय । free frछायत भीमबर, बैठे सभा बनाय ।। २३१ श्रथ जगमंदर जगनिवासको बरणं जाति पधरी- उपत जगमंदर जगनिवास, पर दोहनको सोभा प्रकास । बण थंभ लाल बिक्रम बसेस, अतरंग रंग पथर असेस !! ऊतंग षंभ सोभा अतूल, द ( दी ) पंत लपट रेसम दुकूल । यदंत किरम छिब रंग रंग, सोभा बितांन जर तार संग ॥ बरण बिबध गोष जालीन बूंद, छित्र चित्र काच मकरंद बिंद । उतंग भरोषा गिगन बंक, बण छाजा तिखण धनक बंक || aण पडदा छटकत बिबध रंग I पुलकंठ जडत मोती प्रसंग, प्रतरंग रावटी छिव ऊतंग || सोमंतक वैगिरि किनक श्रंग, थित माल सुगंधन फूल थाट । कुंदन चित्र म चंदन कपाट, बण बाग तेरावर विध विधान || पर गहर सषा फल फूल पांन, जष ओमन बेली गहर झुंड । मिल पवन सुंगंधन फूल, भंकार ससट गण अंग भूल ॥ मिलकर पिक है तंडत मयोर, सुर चकव कपोतन बिबध सोर । यह बिध जगमंदर जग निवास, परस पर विमल सोभा प्रकास ।। २३१ दोहा - होद नीर चादर वहत, अरु फुलवा दिस बोय । सुष समाज सोभा सरस, जगमिंदर द्रग जोय ॥। २३२ छप्पै - जगमिंदर इंम जोप राण भीमेण बिराजत, ऊछव कर्त अनेक सुभट थट स्यंघ समाजत । Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात बगसीरांमजी प्रोहित होरांकी दाषे हूकम दीवान बगसरांम बुलायेहु, मन मानत मिलाय जेज नै बेगा जाय हूँ । जब पीछोला ऊपरें, चोपदार नावक चले, बिबध सहैली बाडियां, माहाबीर प्रोहीत मिलै ।। २३३ चोपदार सुण बचन प्रोहित ऊसस, सज पुनीत पोसाष किनक संनाह भलकस । ढाल षस षडगबंध कट खूब सुभट थट प्रावध संगम, भीमराण मेटवा तामस चढ चले तुरंगम ।। मालम अषंड नवषंड मय, अनमी धिर प्रचंड अत, मारतंड भल हरत मुष प्रलंब भुज डंडवत ।। २३४ दोहा- प्रोहित अब चाल्यौ प्रगट, सुभट लियां षण स्यंघ । बीर घाट प्रापत भये, अतबल बीर अभंग ।। २३५ चाले नाव जिहाज चढ़. परघ संग प्रचंड । जगमंदर आयौ जबै, अनमी मगज अषंड ।। २३६ दरगहै राणा की दरस, अनमी प्रोहित अंग । मांनु जुथ गयंदमै, आयो स्यंग अभंग ॥ २३७ २४. बारता- यण प्रकार राणाकी दरगामैं सुभट समाजसुं प्रोहित पायौ । जिण प्रकार सुण्यौ तिण प्रकार दरसायो। तबै राणै प्रोहितनुं नमसकार कीनो, तबै प्रोहित राम राम कीनो । तब राण रोस कीनो - बासरीवाद कुं न दीनों। प्रोहित वचन बात- प्रोहित कहै छै--अनमी डूं, रूघबंस बना ओर नरवर बना नमुं नहीं। आपका सीस पर षेलं, औरनै हाथ मांडू नही । राणा बचन तब राणो कहै छै - अनमी पणों तो माहानै चाहिज्ये। यूं आप ब्राह्मण छौ, · प्राप. क्यूं ? प्रोहित बचन आप जांरण सो ब्राह्मण नहीं । जोध विद्याको साधिक, ईसटको आराधिक छ, सही। राणा बचन जोधबद्या छित्रीबंसमैं छै, जिका महाभारथमै करवां पांडवां दिषाई। प्रोहित बचन माहाका बंसमैं द्रोणाचार्यंजी हवा, जिका वा बनां वा. किण पढाई ? Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात बगसीरामजी प्रोहित होरांकी [३१ रांणा बचन छित्रीबंसमै म्हाकै छ चक्रच (व)रती हूवा, जिका प्रथवी जीत लीनी। प्रोहित बचन माहाका बंसमै श्रीपरसरांमजी हुवा, जिका ईकईस बार प्रथी नछत्री कीनी । बगसीरांमका वचन सुण रांग भीम रोस कीनो, मनमैं अहंकार प्रांण यो जबाब दीनो। राणा बचन दोहा- क्रोध कर रांणो कह्यौ, दल बल लेऊंगा देष । ऊदय्यापुर बंधा अवस, पकड़ी जो हद पेष ।। - प्रोहित बचन प्रोहित बोल्यो दिल प्रघल, आप जतन बांधो दीवाण । ऊदय्यापुरकी बाधु अवस, पकड़ पकडूंलो प्रमाण ॥ २३८ रतनांवत दिल रोसमैं, प्रोहित चले पयांण । बचन बचन बांधी बिथा, जग्यौ अग्नि घ्रत जाण ।। २३६ चले प्रोहत नाव चढ़ि, ध्यावत क्रोध अधीर । सुभट सजोरा संगमें, बाड़ी आयो बीर ।। २४० छप्पै- चढे रीस चष चोल मुंछ मिल भ्रगट भ्रमांवत, अषाड़े पर प्राय जाणें जोगेन्द्र जगावत ।। कोप्यौ भीम कराल कनां जमजाल क्रोधकस, जगी सो(से)र ढिग ज्वाल इण बिध प्रोहित उसस । क्रोड़ बात नही चूकस्यू, सुणलीजो सांची सुभट, ऊदयापुर बंधा अवस, पकड़ाला भुजबल प्रगट ॥ २४१ _राजपुतां बचन दोहा- प्रोहित रांण प्रचंडका, सुभट बोल यक संग । बंध पकड़स्यां बीरबर, जुटस्यां षांगा जंग ।। २४२ कर जोड़ी सुभटां कह्यौ, आज असाढ अभंग। सावण स लेस्यां सही, तीजां चाढ तुरंग ।। २४३ भली बात प्रोहित भरण, तीज तण विवार । पकड़ांला बंधा प्रगट, सब देषत संसार ।। २४४ २५. बारता- इतनै प्रोहितजोन सिवलाल धाभाई कहै छ – आज तो तीजां पाड़ा पचीस दन कहै छै । माहाकी आ अरज छै – सिवांणी गावै छै । वो हूँ पाधड़ीबदल भाई छा । काम पड़यां मेहे(म्हे), वै जावां आवां छा । सो बड़ो धाड़वी Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ ] बात बगसीरांमजी मोहित हीरांकी छै। म्हाकै र ऊकै बचन गाढौ घणौ छै। ऊमै काम पड़यां तो हजाऊ, मैमै काम पड़यां वो पावै । लाषां बातां रहै नही, ऊ ईसोईज छै । ऊधारा झगडाको लेबा वालो छ । भारथको भीम, सूरमाको सीम । केबियांको काल, नगी किरमाल । नेक बषत तमाण, देषते षबरियांण । जाक समसेर दसु देख संका, पाधरां सु पधरा, बंकासुं त्रिबंका। झगड़ेकी अरदास्त, सस्वका अभ्यासत । प्राक्रमका प्रथीराज, बुधिका समाज । सोरका जोर कवारी घड़ारां यारुका यार । आड़ ते आडा, ऐसे नागर सिवाणी बज्रकी ढाल, जैजै रावै बाहाद्र षलुका नाटसाल । दोहा- कटक बिकट घण थट कियां, घोड़ा घमसांणीह। राव बाहादुर राजबी, सुर ईंद्र सिवांणींह ।। २४५ राव बाहाद्र सुभट रंग, बाच घण बाषाण ।। पर घट लै सीस पर, है झैले अस प्रांण ।। २४६ २६. वारता-यू राव बाहादरनै कागद लषीजै, हलकारानै बदा कीजै । प्रोहित राणांक ऊदैपुरमै नोष-चोष हुई, जिण बातको कागद सिवाणीने लष दीनौ, गीरधारी हलकारानै बदा कीनो। प्रोहितनैं सिवलाल कहै छै – अब तो गिरधारी हलकारो बाटां बहै छै । सो अठै ऊदैपुर आये राणां झगड़ा ऊपर आसी। लाषां बातां टलै नही । अगजीत षांगा बजासी । अब गिरधारी हलकारो सिवाणो गयो छ । प्रोहितको कागद रावनै दीयौ छ। राव कागद बांच परगहैनै सुंणायो छै । परगह बचन परगहै कहै छै बड़ो अवैसांण आयौ, रावने सूरवीर जांण कागद पढायौ। राव बचन लाषां बातां ऊदैपुर गया राहांला, मेवाड़ांका रजपुतां सु फूल धारा षेलाला। कैतो मेंवाड़ांनै चापड़े षेत मारलेस्यां, जै आपां मरस्यां तो प्रोहितजीकै अवसांण अपठ्ठरा बरस्यां । यू बात करतां दिन असतंग हुवौ । राति बृतीतमान हुई। सूरजको प्रकासमांन हुवौ। रावै कटकनै कहै छ -- ठाकुरा, जेज न कीज्ये, ऊदैपुर दूर छै मनमैं विचार लीज्ये । बलां धोकलां करीजै, घोड़ा काठी धरी लीज्ये । तब सारै साथ बणां कर लीनी। चरवादार घोड़ा काठी धर लीनी। इतै नगारची नगारै चोभ दीनी और कटकानै तो कोट तालकै कीना, सात बीसी पायर हित साथ लीना । घोड़ाकै तो सछी पाषर अवारकै बगतर, टोप, झिलम जरै च्यार अांनी दस्ताना चलित, इतरा समाजको सिलै सरब असबारांकी पा, राव चढयौ । रावका रजपूत कैसा ? वैता कालकी चालकुं पकड़े ऐसा । रावका रजपूत, जंगमैं मजबूत, प्रावधाम कड़ा जुड़, अडाभीड़का अोनांड़, पलांका बिभाड़, नाहरां पछाड़। Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात बगसीरामजी प्रोहित होरांकी रावका रजपूतका बचन दौहा- हक मल हल हुकल, धुरै नगारां घावै । गढ उदयापुरपै गवैण, रचै बाहदर राव ।। २४७ छप्पै- रचे बाहादर रावै गवणत्र वाट गरज्ये , ___ चढे कटक थट चल करण भारत स कज्ये । अड़ा भीड़ प्रावधां करी बगतरां षणकत , बेग भ्रगाटां बहत भिड़ ज फोरणाट भणकत ॥ ससत्र हजारां सु लिये, भला सजन मन भाबियो , सीवांणीपति सूरमों येम उदेपुर प्रावियो । २४८ दौहा- हलकारां मालूमै करी, प्रोहित सुणी प्रचंड । सात बीस सुभटां सहत, आयौ रावै अषंड ।। २४६ सुभटां थट सनमुष मले, प्रोहित कर अतप्रीत । रावै भला आयौ किधूं, राषण पणबृत रोत ॥ २५० २७. बारता- प्रोहित कहै छै-रावत भलां प्रायो, मोयर चाकरीरो हुकम दीज्ये । राव बचन रावै कहै छै- या चाकरी सहरै बारै गवर छै, बंधा पकड़ज्ये । प्रोहित बचन राव ठीक फूरमांइ, मेवाड़ा नै तरवारयां मार बंधा पकड़ लेस्यां। लाषां बातां चूकस्यां नहीं। रांणां भीमको ऊदैपुर तिणकी आबरू पाड़ घोड़ा ताता षड़स्यां । लारै बरां पूगसी तो वांसुं भी फूलधारा लस्यां । रावर बचन प्रोहित घणा रंग छै। आप जमाषात्रे कीजै। झगडाको काम पड़ियां म्हांकी भी हाजरी लीजै । यण प्रकार प्रोहितकै, रावै बाहादरकै बतलावण हुई। राव बाहादर चोगांनमैं डेरा दीना । प्रोहित प्रापिणी सहलियां बाड़ी छोड बाहर डेरा कोनां। चाकर घोड़ा बांधबा वास्ते मेषांपर मेषचा बजावै छै, अगाड़ी-पछाड़ी घोड़ा अटकावै छै । दोमुंही सिरदारांकी बछायेत, जाजिम चांदण्यां छटक रही छै। रसोईदार रसोईकी संजत कीनी छै। नैम स्यांमके बषत रजपूतांको मुजरो मोहलै लीनो छ । त्यूक आयौ। हीरां लषियो-राणां भीमकै, आपकै नोंष-चोष हूई छै। राज्य ! हूँ तो अब हूकमकी चाकर छु । आप मोनै कांई फरमावो छौ ? होरा कागदमैं समाचार साथै चालबा का लषिया, प्रोहित परषिया। Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ ] बात बगसीरामजी मोहित होरांकी दोहा- हुतो चाकर हूकमकी, दुषी घणी डूं दीन । लारै मोनै लेवज्यो, आप तणी आधीन ॥ २५१ धन जोबनका थे धणी, तन मन अरपं तोय ।। साथि लोज्यौ बालिमां, मति बीसरज्यो मोय ।। २५२ अरज लिषी छै बालिमां, मानज्यौ मेरी ह । साथि चालुं साहिबा, चरणांकी चेरी ह ॥ २५३ प्रोहित ममत पछाणियो, जोड़ी हंदो जोये । मत बीसरज्यौ बालमां, मर जाऊंलो मोये ॥ २५४ छप्प- मरत नीर बिन मीन आप बिन मो दुष ऐसौ । बच्छ बना बेलड़ी कहो अवलंबन कैसौ ॥ रसिया प्रोहित रांण लोयेणां अंति हित लागै , रहस्युं दासी रीत आपकी रांणी प्रागै ।। परगट मोन पकड़ज्यौ, कर लीज्यौ तन बध कस , बामि (लि)म मति बीसरज्यो, आप बना मरस्यूं अवस । २५५ प्रोहित लषियो प्रगट आज तीजां आडंबर , साघ(ध)ण कांमण सुषद अंग आभूषण अंबर । तोजां ऊंछव तांम गावै त्रिय मंगल गासी , पहर बषत पाछैलै आज पीछौलै पासी ॥ उण बषत आप सज प्रावैज्यौ, प्यारी वीरू घाट पर, प्रगट तोने पकड़स्यां, ये बातां राषण अमर ।। २५६ कर गवण केसरी चलत मंन बात हरष चित , बणियांणी उर धार ऊमग आई सनमुष अत । हीरां पुछत हरष कहो कैसी किम कीजै , कह्यौ अब केसरी किनक संगार करीजै ॥ बीरू घाट कीनो बचन, मो तो येकण संग मिल , प्यारी साथ पधारस्यां, अबलाषा पूरण असिल ।। २५७ हीरां मनमैं अति हरष बिवध पोसाष बनाई , तीज पहर तीसरै ऊमंग पीछौले आई। बीरू घाट बसेष केसरी संघ(ध) कहावत , प्यारी चाहत पीव षूटकन है जेज षटावत ॥ अछ उडीकंत प्रातूरी, अतचंचल जोवत गढी , प्रोहित प्राजि न पेषियो, तन तालाबेली चढी ।। २५८ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . बात बगसीरामजी प्रोहित होराको [ ३५ दोहा- ऊदयापूर निकसी गवर, तीज महोला तांम । अति आभूषण किनंक पट, बण बण घण छबि वान ।। २५६ प्रोहितको र रावको पोछोल प्रागमण और हीरा बांध पकड़ जुष प्रारंभते २८. बात- अब राव प्रोहित गवर देषबाकी असवारीकी तयारी कीनी । पोतदारनै अमल गलबाकी ताकीद दीनी। दोनुं सिरदार कहै छै- घोड़ा जीन कीजै, कमरयां सताव बांधे लीजै । सारै साथ मल चोगुणां अमल चढाया, ऊगाव कर सोगुणां जोस में आया। रावका, प्रोहितका चवदा बीसी असवार घोड़ा घमसांणरी छी, पाषर, बगतर, प्रावध, कडाजुड बणवाया। राव तो पवनवेग नाम घोड़े असवार, प्रोहितकै नील बिडंग प्रकार । दोनुं सिरदारांको कटक चढ चाल्यौ । मांनु श्री रामचंद्रजीको कटक लंका ऊपर हाल्यौ । राव बचन बात- राव कहै छ- बंध पकड़, झगड़ो कर पीछोलामै घोडा डकास्यां, चवदा बीसी असवारांसुं मगरो ऊतर जास्यां। यूं बातां करतां पीछोले प्राया, बीरू घाट दरसाया। दोहा- प्रोहित हीरां पेषीयो, तीष नोष छिब तोर । दूषी तिषातुर देषिया, मांनु घणहर मोज ॥ २६० । २६. वारता-अब हजारों लोग तीजका तमासगीर, विधा मैं कड़ा बीर प्रोहितकै मेवाड़ाकै धमचाल बाग्यौ, तरवार पडी सो पचास प्रादमी मेवाड़ांका काम आया। प्रोहितजीका साथमै चैन बुझाकड़क लोह लागा। हीरांनै पकड़ी। हीरानै प्रोहितजी नीलबिडंग घोड़ाकी पीठ पर विसालाका बंध आपक(क) पाछै चढाई। पर परत काली घोडीको असवार गुजरगोड़ आजारकै पाछ केसरीनै बैठाई। राब बचन बात- इतै राव बाहादर कहै छै- पीछौले घोड़ा डकावो, नहीं तो झगड़ा पर लोग जुड़ेलो। आपाने भाजवाकी प्रतंग्या छै, सो मरणो पडैलो । जेज न कोज्य, घोड़ा डकाईजै। अब चवदा बीसी असवार घोड़ा पीछौलामै डकाया । अणीरा भमर जगमंदर पाया । जगमंदरको बाग बाढयो । नंगी तरवार,यां (पा)णोंपंथ घोडा पीछौलाकै पैला पार चवदै बीसी असवारांसुं मगरो उतर गया। हीरां पकड़ी, बाग बाढयौ, ऊदैयापुरमै अनोषी कर गया। अब ऊदैयापुरमै भयानक कुक पड़ी । हलकारै रांणांनूं मालूमै करी । प्रोहित, कोडीधजकी बेटीने बंध पकड़ी। राजका सलैपोस सो-दौस तरवारयांकी धार काम आया। वै तो चवदा बीसी असवारांसुं मंगरो चढ गया । Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ ] ___ बात बगसीरांमजी प्रोहित हीरांकी छप्पै- भीम रांण सांभले कहर प्रजले कोप कर , मूंछ भ्रकुटत मिले धूत चष चोल रंग धर । कहत वचन कोपियो पिरोहत जांण व यावै , मांन मार मेवाड़ जीत पापणी जणांवै ॥ ऊमरावां ऊपर हूकम, अतराई कालि फेरिया , मेवाड़ धण थट मिले, स घाट ईण बिधी रोकिया ॥ २६१ ऊट चढ़ पाकलो यम राईको आयो , चढयौ चढयौ मष चबै बिबध निज भेद बतायो । बीर धीर बे(पैदल चढे चहूँवांण च कारंण , चढे नंगारै चोट डेल वाडै झाला डारण । प्रोहित अब पधारसी, अठै बर्णली आवैतां , चीरवो घाट अचाणचक रोक्यौ इण बिध रावतां ॥ २६२ बा बात करतां यतै पणि प्रोहित आयो , चढे घाट चीरबै दूठ जबर दरसायौ । चढे नगारै चोट दोहू चढ़े कटक है , सबल चढे सूरमां चढ़े कायेर भये चक है । चहबांण इतै झाला अचल, ऊत राव प्रोहित ऊरडै, वीर हाक-धमच विषम, झुके बंदूका सो कड (डे) ॥ २६३ हणण मांच हैमरांण गणण घोषा रवै डूंगर , षणण बाजया ज पाषरां धुज पूरताल धरणधर । ठणण बंदुकां ठोर गोलियां गिणण गिण गनगत , टणण धनस टंकार भणण पर तीर भरणंकत ।। सिंधबा राग समागमण गरगण भेर श्रमक बज्ये, चीरबै घाट परचा पड़े, विषमं थाट भारथ बजे ॥ २६४ धरण फोड धडै धड़े गहिर गडे त्रमा गल , चोल रंग लड़ चढे बीरबर रडे दोहू ह[य?] बल । पवंन मंदगत पड़ी भांण रथ षडे णभुयण , जब ऊरड़ जोगणी जुड़े नारद रण जोयंण ।। गरड़ी बंदुक धायां, गिगन तीर सो क जडतड़े , चीरबै घाट परना पड़े, जंग थाट प्रोहित जुड़े ।। २६५ अथ राव बाहादर युधबरणन छंद जाते त्रोटक- अब राव बहादर कोप कियूं, ललकारत सेल प्रभाग लियू। Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात बगसीरामजी प्रोहित हीरांकी तन भीड कडी र बगत्तर यूं करबार बाहादर राव किधूं ॥ कर जोप जग्यौ सिवनेत्र किधूं, भिड भीड भुवा रंन ऊभ रयूं । गण देषत चंडै (ड) गत (तै, तं) थन यूं, मा (म) नु कोप तै झुंड मयंदन यूं ॥ प्रति क्रोध बी (बि) रोध म अंगम यूं, जबरायल जग्यौ क भुजंगम यूँ । बधु (धू) धल जोग विकट ( टू ) ण यूं, परकोप उलट (ट्ट)ण पट ( टू ) र यूं ॥ यम राव बाहादर कोपित तै, मिल सु ( सू ) र समागम युध (द्ध) मतै । तब ऊपडे (ड़) बाग तुरंगनकी, घर हेमल योर धमंकत यूं ॥ मिल पाषर होट ठमंकत यूं रण रोष चढे मुष सूरंन के । नर भीत दिनंकर नूरंन के, चष जोल सुरंग चमंकत यूं ॥ दरसंत क आग द्रमंकत यूं 1 मिल राव बाहादर जोध मिल (ले), भिड भारथ में तरवारि भले ।। २६६ ३०. बात - ईण तरै महाभारथको झगड़ो जुड्यौ झगड़ाको भार सारो राव ऊपर पडयौ | अठ्याव को परधांन ममदयारषां षेत पड़यौ । अथ महमदय्यारषांको गीत बागी धमचाल कटक दोहू ऐ वैल कढि किरमाल कराली, प्रलैकाल भिलो उण पुलमै किलम तुरंगत काली । वाज प्रटं कुझ वलोबल बीजल बाग बिलगे, राव त प्रधान प्रघल रंण भेडंता षल दल भगे ॥ जुड़ घमसांण ग्रीधणी जोवण बीर बषांण बजाडी, रंग पठाण मेवाड़ पर रूठो बिढ (ठ) के वांण बिभाडी । पिसणां घणां तणा मद पाड़े पतद लोहां पूरां, पूगौ महमदषां ऊच पद बरेगो हूरां ।। २६७ श्रथ प्रोहित जुध बरणन छंद जाते पधरी - कोप्यो क श्रबै प्रोहित कराल, जग्यो क सोर ढिग अगन ज्वाल । छुट्यो क बांन असमान छोहै, टूटयों क घोष षण बीज तो है || जग्यौ क मांनुं योगेंद्र जोत, दग्यौ क तोप गौला उदोत । रूठ्यौ क भीम चढे जंग रीस, फूटयों के सिध जल धार कीस || जोयक जग सुग्रीव जोध, कौप्यो क अंगहन हनुवंत क्रोध । फूंकार सेस पुछटचौ फूणद्र, बिछट्यौ क सिव जटा बीर भद्र ॥ यण भांति प्रोहित कोप अंग, जबरायल सुभट मिल संग जंग । [ ३७ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ ] बात वगसीरांमजी प्रीहित होरांकी ऊपडंत बाग हैमर अपार, धजकंत कढी त [र]वार धार ॥ बलियो षांडो इम बहुत बार, कर बीज मनु घण चमटकार । मुष मार ललकार मंड, प्रकार भले प्रोहित प्रचंड || ईतरमै संसिरबाहू अमांम, राजंत प्रोहित फरसरांम । चहूवांण देव झाला सुचित, ईत राव बाहादर यंद्रजीत ॥ मिल राव प्रोहितं जुग संमेर, घण थाट सुरंगम सुभट घेर । चालंत बांगा दहूंगा प्रचंड, रण धार बीर कटै रुंड मंड ॥ बिछड़त सीस घावन बिघाटै, फरसी के अग्र तरबूज फाटै । ऊछलत भेजी मगज येम, तरलंत दहडी फाटैत एम || कुटंत सीस तरवार तंग, साहमीं के रंग छूटयो प्रसंग | घरण तुट भूजा तरवार घावै, वण राये साष पड़ बीज भावै ॥ छाती पर बरछी बहैत छेक, किचकार धार छबि र पेष । दोहू तरफ बगतर फोड दीन, मानुं तुछ कढयौ जलधार मीन ॥ तन फोड़ कारीय यार तंस, बय फोड़ि सिला ऊकसंत बंस । किरमाल धार हेमर कटंत, मनु प्रान हौय मिल घर बदंत ॥ धण षाग जोध पछड़ंत धावै, भभकंत रैत्र परंनाल भावै । जोगणी पत्र भरत्र जेम, अथांण दुहारी दूध एम ॥ मिल स्यंभु केलंत रुंडमाल, बंगु षेलंत लेवंत बाल । जोगणी वीर नाचंत जेम, अदभूत कांन गोपंग येम ॥ मिल बीर कहैत मुष मार मार, नाचत हरष नारद निहार । भूझार मरत किरमाल जंग, अपछरा माल पहरंत अंग || मानंत विवांण चढ प्राण पेष, लेषंत गवण कर यंदु लोक । झड़पड़त गिगन मग ग्रीध झुंड, मुष लेवत गुद पल रुंड मुंड || झड़पड़त घाव रत कीच भीन, मनुं त (तु) छ नीर तड़फड़त मीन । यक पोहर बजी केवांण भांरग, भारथ देष थंभ्यो क भांन ॥ अदभुत जंग मंडयौ ऊषेल, बड़ पड़े षेत चहूवांण भेल । काला पड़िया घण घेत जंघ, अब जीत्यो प्रोहित बल अभंघ ।। २६८ ई राव बाहादर बड़ी रीत, जोधार षड्यौ यण रंग जीत । छप्पे - रण केते नर रहे जिते भड़ सनमुष जुंटे, चढ झाला चहूं वांण फूलधारां तन फूटे । चम घाट चीर विषम षग भाट बजाडे, कायल भागे केते अवर घायल ऊ बारे ॥ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात बमसीरामजी प्रोहित होराको [ ३६ मेवाड़ देस प्रोहित मंडे बर गला अभंग यूं , बिजैत्र मागल बाजिया जीत्यौ यण बिध जंग यूं ।। २६६ ३१ बात- अठी प्रोहित, राव बाहादर, उठी चहवांण, झाला; येक पहर तरवारि बही । हीरां पर केसरी बडारणे परबतकी किंनरीमैं रही। राव बाहादरका सिपाही भला लड़िया, पर तीन बीसी असवार षेत पड़िया। प्रोहितका भी रजपूत भला घमचाल बागा, पचास तो काम आया, पचीसकै लोह लागा। घोड़ो नीलबिडंग काम प्रायो, प्रोहितजी गरड़ादे घोड़ी असवार हूवा रणषेत सुझायौ । अब चांदस्यंघ वाले पोतो रसालदार काम प्रायौ। चैन बुझाकड़क लोह लागा, चहूवांण झाला भागा। अथ गीत चांद स्यंघ बाल पोताका धु (धु)रेत्र माला मचायौ जंग मेवाड़ चीरवो घाट वुयो जिण , बेलां कलां नाग सौदे धीया राडा धार तीजो नयण । ज्वाला सो जगायो जेम ससंधू करालो, रूप आयो चांद स्यंघ ।। २७० बगी हाक दवा सुगो गोलियां, ऊजाले म छुठे जगै क्रोधबांन मह बोला बीर जंग। मकान दव धलासै नगी पाग षलां माथै तोप, दगी गोला जिम भेलियो तुरंग ।। २७१ चंद्रहासां षागांके प्रचंडा झुंड बीर चाल, षुलै रुंडमुंडाके प्रजाले लोही पाल । पोतरै बिहारी वालरि मांथंडाके पिछाडे, करे सुर धीरां धा(घा)वा बिहंडा कराल ।। २७२ षरे गोषालानु मार मंडे फूल धारां षैत धरैगो, बिजैत नांम झूझार सधीर। करेगो प्रतिरां पुर लोही धार छके काली बरैगौ, अपछरा वाल पोता माहावीर ।। २७३ ३२. बात- सातसै असवार झालांका भी काम आया, अर पांचसै असवार चहूवांणां भी मरवाया। यण प्रकार प्रोहित झगड़ो जीत लीनो । उदैपुरको रांग भीम माहा सोच कीनो। गीत प्रोयेतजीको घरे घण कटक चीरवै घोटे चढ़ि झाला चहूं वांण , चढ़े प्रोहित रांण बका रण चापड़े बर बीज।। षग झाट वीट्ट बेहू तरफां बाज बंदूकां गुणियण स्यंधु गाई, Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० ] बात बगसीरांमजी प्रोहित हीरांकी अरदलकै उपर रतनावत बिहद षागा बजाई ।। तांम करे केता पल तंडल मिल जोगण रत मांची , गैलां पूर पलंचर मिलं अधरण रुंड मिल सिव रांची। ऊदैयापुरमैं कीध अनोषी दारण हाथ दिषायौ , औ जोय बगसीरांम निवाई यम हीरां लै आयौ ॥ २७४ दोहा- बंध पकड़ ल्याय बिहद, कियो अनोषो काम । यम निवाई प्रावियो, रसियो बगसीराम ॥ २७५ प्रोहित बचन दोहा- आप बिना होये न असी, जीतायो मम जंग। कर जोडयां प्रोहित कैहै, राव बाहादर रंग ।। २७६ बिहद लोह बजाययो, समर रह्यौ मम संग। कैरे षता त रुलकिता, राव बाहादर रंग ॥ २७७ मै तो कागद मेलयौ, पायौ चाल अभंग । मेवाड़ा तो हथ मुवा, राव बाहादर रंग ॥ २७८ मो पणबत राषो मुदे, आयौ बीर अभंग । आप जस्यौ कुण छै अवर, राव बाहादर रंग ।। २७६ राव कहै जीती किधूं, तें मेवाड़ तमाम । किरमाला धोकल कियौ, रंग बगसीरांम ।। २८० चहवांण चढे चापड़े, ईत झाला थट थाम । भेड़ा षला दल भाजिया, रंग बगसीराम ।। २८५ चाली घाट चीरवै, झुक षाग यक जाम । बिजैत्र-मागल बाजिया, रंग बगसीराम ॥ २८२ अबै निवाई वुपरै, करो पुरण काम ।। राव गोड(8) बरणनं रची बाहादर रावन, प्रोयत गोठ प्रवीण । मिल सुभटां फुल मद, अत बंटे अफीण ।। २८३ रची गोठ यम राव मुं, मन तन करै ईत मांन । बिध बिध भुंजाई बिमल, जीमै पलक जिहांन ।। २८४ ३३. वार्ता- प्रोहित रावनै कहै छै- हूं तो आपका हकमैको आधीन छ। आपमैं काम पड्यां याद करस्यौ। काम पडयां मांथौ हाजरि छ। देही फूलधारां बरसी। रावनै बलदेव बगस घोड़ो येक गांव बीजलियो षांडो दे सिवाणी बिदा कीनौ। Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात बगसीरामजी प्रोहित हीरांकी छप्पै- अब निवाई ऊपरै हीरां दिल प्रोहित , महल रंग माणंत सुषद संमारस मोहित । कोक भेद बहू करत चिरत आसण चवरासी, रत विलास अनुराग बदन पर मदन विकासी। कर हावै भाव मन बस करत, बचन विलासत वामकै , माहा मनोरथ सिध मिल, रसिया बगसीरांमक ।। २८५ प्यारी महल प्रजंक पर सपुष सेज फूल पर, मिल सुगंध सुकमार काम लीला प्रकास कर । नव जोबन नत्यान दरस प्रतबिंब दषावत , रसकत बगसीरांम भांम मनमें अति भावत ।। यण प्रकार भुगावत अतुल, धार अधिक सुष धामना , हीरां प्रोहित हितसं, करी संपुरण कामना ।। २८६ बरषा रति बरणन अब बरषा रत घुमत घुमंड घनहर घूमत , धर बरषत जलधार ललत बादल गिर लूंबत । झमक बीज झमलत झपट पर पाय झोलत , . सागर षादर भरै बिमल दादर तट बोलत ॥ बनराय फूल दल विकस, सूर मयोर सुष सहलमैं चत्र मास प्रोहित चतुर, मांणत हीरां महलमें ।। २८७ गिगन मलत घन घोर चपला चमकारुत , सागर नदी समाज मिलत सीतल मारुत। बिस कमांन बेलड़ी मंजरा फुल सुगंध मिल , गिरवर तरवर गहर डहक डंबर ता फल । दल साधक मनो संयोगतां, चत्र मास अधिको चहैत , मिल हीरां प्रोहित महलमें, रत विलास निस दिन रहैत ।। २८८ दोहा- चत्र मास नीला चिरत, बीत्यो पेलत बाम । सीतल काल आयौ सरस, संजोगण मिल स्यांम ।। २८९ सीत रति बरणन .. छप्पै- सीतल जल थल सरस पवन सीतल ऊतर पर , संजोगण सुष स्यांम होत वृहणी-जन थरहर । नाग षां (पां)न तंबोल गरम ऊषदी मदन गुन , तपत अगन 'नापणी तेल' मरदन चंपक तन ।। Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ ] बात बगसीरामजी प्रोहित हीरांकी सुभ सीतकाल सकल, गरम ऊरज वामांगना , प्यारी प्रोहित ऊर लय करी सिध मंन कामना ॥ २६० अथ वसंत रति बरणन ऊसन धरण आकास उसन चल पवन असंभवै , जल थल व्याकुल जीव पुन मंग देत निरषिवै । प्यारी प्रीतम परस चंदन चरचित केसर मलत , ........"कपुर अवर किसतुरी अरचित । छुटत फवारा कुसमाद छबि, अति सुगंध छिडकत अवर। सुष समाज प्रोहित सरस, प्यारी हीरां महल पर ॥ २६१ दोहा- यण प्रकार प्रोहित अठ, तन काल सुष ताम । नीत नबीन प्यारी नरष, हरषित पूरण हाम ॥ २६२ रसक बृतीकी सीत रुत, हीरां परम सुहाग ।। अब बसंत आई ऊमग, फबते होरी फाग ।। २६३ तरवर पत चंदण त, वा सरवर मानसोरोर । छव रुत पतंकि यधकं छवि, यू बसंत रुत और ।। २६४ अपछरमैं और न यसी, रंभा छबि सारीष । षटरुतमैं नही पेषजे, रति बसंत सारीष ।। २६५ राजत ईधक वसंत रुत, तरवर मंजरि ताब । बहै रत पवन सुगंधवर, गहै रत फूल गुलाब ।। २६६ बन उपबन फूलत बिषम, कवल फूल जल कीन । मन मोहत फुलवाद मिल, निरमल फूल नवीन ॥ २६७ कंज प्रफुलत सोभ कर, निरमल पुजत नीर । रंजत मधुर सुगंध कच, गुंजत भवर गहीर ।। २६८ प्रांबा पोहो रत छबि अधिक, निरषत सोभ नवीन । लालत मोनत स्वर लता, कोयल षग धुन कीन ॥ २६६ मांनत फूल सुगंध मिल, सीतल मधुर समीर । वन ऊपवन पंछी बिमल, कलरव कोकल कीर ।। ३०० होली का ध्याल वरनन हीरां मनमैं अति हरष, सोहै प्रोहित संग । अभैराम देवर अवर, रमत फाग रस रंग ।। ३०१ अवर त्रिया मिल येकठी, गावत होली गांन । ऊडत गुलाल अबीर अत, अरंण भयो असमांन ॥ ३०२ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात बगसीरांमजी प्रोहित हीराको केसर होद भराय कर, प्रांगण फाग असेष । नीर पतंग गुलाब नवै, बिध बिध रंग बसेष ।। ३०३ प्रोहित प्यारी पेल पर, अति भारी छवि येम । कर धारी सोभा किनक, पिचकारी रंग पेम ॥ ३०४ कर हीरां डोली करग, भरत रंग भरपूर । रसिया बगसीरांमकै, नाषत सनमुष नूर ३०५ रंग भरत प्रोहित रसक, अदभुत हास ऊदोत । पिचकारी लागे प्रगट, हीरां थरहर होत ।। ३०६ प्यारी फाग बसंत पर, रसक तपी वर साल । लसत गुलाल सूरंगमै, लसत अंग छबि लाल ३०७ ।। बकि चितवन तन बदन, मोहत छबि सुकमार । भांमण डारत रंग भर, प्रीतम पर पिचकार ।। ३०८ चंदमुषी म्रगलोचनी, संक्रम चपल सभाव । झेली पिचकारी झुलत, डोली बाह म डाव ॥ ३०६ केसर अग्र कपूरको, मोहत कीच म काय । रंग पतंग गुलाब रुच, राती अंगण राय ।। ३१० अभैरांम हीरां अवर, लेवत झयर गुलाल । देवर भोजाई दोऊ, षेलत फाग खुस्याल । ३११ धमकत पग घुघरा तड़त दमकंत । सोभा तन कड कंकण झमकंत ।। रसक हस चमकरत दन वदन चंद्र दिक (विक)संत । घरण रमझम छबि ध्यावतं , कुमकुम जल भर कर गद्गुगत डोली फटकावत । पिचकारी यथा र पतंग, जल धिर फिर भर भर चंपलगत , भाभी देवर ईधक चित, रंग भा (फा)ग होली रमत ॥ ३१२ * दोहा- भाभी डोलत बहत भर, कर देवर पिचकार । ऊठ गुलाब धक बोल इन, धरण गिगन इकधार ।। ३१३ * [वम] धमकत पग घूघरा कर कंकरण झमकत , रसक हास चमकत रदन बदन चन्द्र विकसंत । तन सोभा दमकत तडत धरण रमझम छबि ध्यावत , कुंमकुम जल भर गड्डगत कर डोली झटकावत ।। पिचकारी यथा र पतंग, जलधिर फिर भर भर चंपलगत . भाभी देवर ईधक चित, रंग फाग होली रमत ।। ३०६ Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ बात बगसीराम प्रोहित होरांकी छुटत दड़ी गुलाब छिब, फुलकत ऊर फुर फाव । देवर मुष पर डोलचा, सटकत बहत सताव ॥ ३१४ देषत घुघट ओट दे, बंको द्रगनि बिसाल । लीन बसंत गुलालमें, लसत अंग छबि लाल ।। ३१५ अभैरांम हीरां अवर, हीरां भाभी हेत । षेलत फाग बसंत गुल, लायक फगवा लेत ।। ३१६ रमत फाग बीत्यौ रिसक, संझ्या समय प्रसंग । प्यारीनै प्रोहित कहै, रमस्यां अब रतरंग ।। ३१७ रंग ष्याल रा व्यापगत, रात वष्यात ऊमंत । चंद गिगन ऊडन चमक, संजोगण हुलसंत ॥ ३१८ सुष सज्या संझ्या समय, रंगमहल रस रीत। परमल फूल प्रजंक पर, प्रोहित बैठ पुनीत ।। ३१६ प्रोहित बचन कए बडारणि केसरी, प्यारी महल प्रजंक । रंग रु (लु) टांला राज्येकौ, आज भरे कर अंक ॥ ३२० केसरी बचन प्यारी राज पधारज्यो, हीरां ईधक हुलास । माणीजै रत रंग महिल, प्रोहित मदन प्रकास ॥ ३२१ हीरां बचन प्यारी चाहत महल पर, जिण रो ईतनो जीव । कहै तोनु किण बिधि कह्यौ, प्रगट अमीण षीव ।। ३२२ केसरी बचन चाहत बेगी इधक चित, जादा कवण जबाब । प्यारी बेगी महल य (म), स्यांमां लाब सताब ॥ ३२३ . बिध बिध कर कहियौ बयण, प्रोहित हेत प्रकार । प्यारी प्राव महल पर, अब बेगी ईण बार ॥ ३२४ बले येम कहियौ बचन, भेटांला कर भावै । महला पदमण माणस्या, ललिता वैगी लावै ।। ३२५ आप पधारीजै अब, जेजै न कीज्ये जोये । वाटा जोवै बालमां, महिला हेत समोय ।। ३२६ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४५ बात बगसीरांमजी प्रोहित होरांको हीरां वचन पिचकारी मो ऊपरै, नांष्यौ भर कर नीर।। षेलत डारयौ ष्यात कर, आष्यां बीच [अ]बीर ।। ३२७ पिचकारी झटकत प्रगट, रटकत प्रोहित राये। अटकी नहै पट ऊतट, सटकत प्रांष दुषाये ॥ ३२८ पिचकारी धारां प्रगट, षटकत आंष दुषेम । लाषां वातां महलमै, आज न आस्यां ऐम ।। ३२६ पिचकारी कत जोर पर, अत डारी भर अंग । प्राज[न] महिलां प्रावस्यां, प्रोहित सेज प्रसंग ॥ ३३० गड गड दड़ी गुलाबकी, प्रीतम जोर प्रकास । अाज नही म्हे अावस्यां, तन दूषत तन त्रास ।। ३३१ गोटत गेंद गुलाबकी, चाली फर हर चोट । पटकी लगी कपोल पर, अटकन धुंघट प्रौट ॥ ३३२ डोली झपटी डाव कर, रपटी पाप (य) गिरीन । जोये बातां अटपटी, कपटी प्रीतम कीन ।। ३३३ कहै दीज्ये तु केसरी, निरमल बात निसा[2]पे । लोभी मैं अोलष लीया, अत कपटी छौ पाप ॥ ३३४ कर गमण तब केसरी, आई महल ऊदार। मन मगेज मुलकत मली, प्रोहित हेत प्रकार ॥ ३३५ प्रोहित बचन कहै बडारण केसरी, प्यारी कठे प्रवीण । गुणसागर गजगरत, ललत काम लव लीण ॥ ३३६ केसरी बच्चन राजतणी वा रायधण, मन कर बैठी मांण । आज न महलां आवसी, रसिया प्रोहित रांण ।। ३३७ पिचकारी लग[गि] पीवकै, सीतल भयौ सरीर । षटकत लोही षेलको, प्रांष्या बीच अबीर ॥ ३३८ कहियो हीरां इम कथन, मंद मंद मुसकात । आज न महलां आवस्यां, रंग न रमस्यां रात ॥ ३३६ कह्यौ बडारण केसरी, हीरां मांण अथाह ।। आप विना नहै आवसी, नाजक घणरा नाह ॥ ३४० ऊतर आयौ प्रांगणे, ऊभो सनमुष आय । Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ ] बात बगसीरांमजी प्रोहित हीरांकी हाथ पकड़ हीरां तणो, रसियो प्रोहित राय ॥ ३४१ कर पकड़ी इम कहत है, चंद बदनी मुष चोज । प्यारी हठनै परहरो, महला कीज्ये मोज ।। ३४२ नरषो मो पर शुभ नंजरि, कर मत हठ बे काम । प्यारी चालो महल पर, तन मन अरपूं तांम ।। ३४३ अरज करू छापसुं, निपट पियारी नारि । महिलां चालो पदमणी, बाद न कीजै बार ।। ३४४ प्यारी सागर प्रेमका, मती करो हठ भा[माण । रंगमहला चालौ रमां, सुन्दर चत्र सुजाण ।। ३४५ हीरां बचन बंक भुकट बोली बयण, ऊभी हाथ ऊझाड़। आज न महलां आवस्यां, राज्ये करू ली राड़ ।। ३४६ प्रोहित बचन हीरां सुणज्यौ हेतकी, निरषत सनमुष नूर । प्यारी ऊभो हुकम पर, कर मत नैण करूर ॥ ३४७ हीरां बचन . दिल कपटी में देषिया, प्रत बल ले ऊपावै । पिचकारो मो ऊपरै, डारी भर भर डावै ।। ३४८ कोमल तन पर जोर कर, मो पिचकारी मार। पैला कीऐ पीडन, लावै नहीं लगार ।। ३४६ दाब कर बाही दड़ी, ताकत चोट सताब । अत कोमल मो अंग पर, गड गड पंष गुलाब ॥ ३५० गैंदा छटक गुलाबका, नटतां बायौ नीर । अंग चटक थरहरत अत, प्राण्यां षटक अबीर ॥ ३५१ केसरी बचन कहै बडारण केसरी, हीरां देषो हेत । पीतम बड़ो अधीन पर, मांनां बचन समेत ।। ३५२ होरां बचन लाष बात चालू नहीं, टालु नहै मंन टेक । तपसी बालक और नप, त्रिया हठ छै येक ।। ३५३ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • बात बगसीरामजी प्रोहित होरांक [ ४७ बचन अफटा बहै गया, अब झुठो अवसांण । ऊठ्या कर मन क्रोध अत, रूठ्यौ प्रोहित रांण ।। ३५४ प्रोहित बचन रुप गरबकी राजवणि, मत मेलज्यौ मांण । ज्येज नहीं अब जावस्यां, पर घर करे पयाण ॥ ३५५ सामां भेटण सासरै, हरषत मन हुलसात । गढ बूंदी करस्यां गमण, रहां नहीं इक रात ।। ३५६ रहस्यां बूंदी सासरै, अब चालांला आज । मुझ बिणा यण महलमैं, रहज्यौ नीकां राज ॥ ३५७ ऊठ चाल्यौ घर प्रांगण, रूठयौ प्रोहित रांण । नहै बोलां इण नारिसं, अब ठाकूरकी प्राण ॥ ३५८ पीतम कारण पदमणी, ऊठ गमणी प्राधीन । कर गहै फैटो कमरको, लोयण जल भर लीन ॥ ३५६ हीरां बचन मैं नु घणी विमुढ मंन, आप गरीबनिवाज । त्यागीजै तकसीरनु, रसिया बालिम राज ।। ३६० बाटौ तोनै जीभड़ी, कुटल बचन कहाय । रीस निवारो राजबी, मो पर कर मयाह ॥ ३६१ मांनै तागो बालिमा, प्रांण तण प्याराह। . कंथ निवारो कोधनै, नहै करस्यां वाराह ।। ३६२ मांनोजी रसिया भमर, जपु तिहारां जाप । प्रीतम मन हठ परहरो, अरज सुणीजो आप ॥ ३६३ लोभी देषौ लोयेणा, एमी नजरि भर ऐम । मुष बांणी बोलै मधुर, प्रीतम करि हित प्रेम ।। ३६४ लाषां बातां लाडला, मांणो महिल मनाय । हिवड़े नवसर हार ज्यूं, लेस्यां कंठ लगाय ।। ३६५ प्रोहित बचन कर फैटो तजि कमरको, लपट मती हट लोय । रीस चढी छै राजवणि, मत बतलावे मोय ॥ ३६६ हीरा बचन बतलास्यां म्हे बालमां, आप बिनां कुण वोर । प्राण अवारू पीव पर, जिदा कसंन जोर ।। ३६७ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ ] बात बगसीरामजी प्रोहित होरांकी राजकीयो छै रुसणो, ऊर मो दहत कदोत । आप न मांनो मो अरज, मरू कटारी मोत || ३६८ केसर बचन श्राप तणी प्राधीनता, हीरां हाजर होय । जोवो इण पर शुभ नजरि, करो मती हठ कोय ॥ ३६६ राजैषांवंद सरस, नाजक घणरा नेम । प्रांण दुषी प्यारी तणी, कीजै प्रति हठ केम ।। ३७० चाल विलूंबी इधक चित, वेलत रोवत चांण । लपटावो गल लाडली, रसिया प्रोहित रांण ॥। ३७१ मीठा बोलो बचन मुष, हीरां पर कर हेत । महलां जोयण माणज्यौ, सेझां पेम समेत ।। ३७२ प्रोहित बचन बडारण केसरी, कथन पुराण कहंत । लछण बाद लुगाईयां, अकलि य[प]छे ऊपजंत ॥ ३७३ - हीरां बचन करो षमो हीरां कहै, पीतम करजै प्यार । गां बिलूंमी पदमणी, आष्यां नीर अपार ॥ ३७४ प्रोहित हीरां कर पकड़, लीनी ऊर लपटाय । श्रत देषत आधीनता, मनकी रीस मिटाय || ३७५ प्रोहित बचन प्रोहित कहियो पदमणी, सुण लीज्यौ शुकमार । प्यारी थांका बचन पर, ऊपजी रीस अपार ॥ ३७६ हो बचन दोहा - आप बड़ा छो ईसवर, मैं छु बुधि गवार । ऐधुला मांणो अब, पीतम सेजां प्यार || ३७७ केसरी बचन दंपति बिलसो सुष मदन, तन की मेटो ताप । रंगमहलमै राजबी, श्रबै पधारो आप || ३७८ प्यारी पीतम त पर, चालो महिल सुचंग | रति मिंदर सुंदर सकै, औपत मनो अभंग || ३७६ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४६ बात बगसीरांमजी प्रोहित हीरांकी फुल अपार प्रजंक फब, क्रत परमल डहीकाय । रंगमहिल विलि सरसकै, ऊसत बैठो आय ॥ ३८०' हसत लसत निरषत हरष, सर दो करत सुभाय । हीरां सोभत मन हरत, ऊभी सनमुष आय ॥ ३८१ कला प्रकासत दीपकी, दूणां भासत दीप । रंभा दिषा छबि रूपकी, स्यांमा षडी समीप ॥ ३८२ कहु ता दीनो कुरब, प्रीतम हेत ऊपाय । गादी ढली गलीमकी, ऊपर बैठी प्राय ।। ३८३ मिले कसुबा माजमा, कैफ अपारी कीन । तन मन मिल दोहुं तरफ, ऊमगत पेम अधीन ।। ३८४ पीतम प्यारी सेझ पर, अति छिब प्रेम ऊदार । करत हरष अत केसरी, बारत लूण अपार ॥ ३८५ भांमण प्यारी अंक भर, पीतम परस प्रजंक । बंक सरीर बिलासमै, लसत कबुतर लंक ।। ३८६ पीतमकै उर सेझ पर, चंदमुषी चिपटत । मानु भादवै मासकी, लता ब्रछ लपटत ।। ३८७ अर्क्ली -प्रीतम प्यारी पेम पर, सरस थाहत पेम अथाग । सर[रस] लुटत रत रंगको, प्यारी पीतम सेज ॥ . चंदना नागनसीं चपर, ऊलही दुलही रेम (ज) ॥ ३८८ प्यारी छ अत प्राणकी, राष प्रीतम रीत । रंगमहिल बिलसण रमण, प्रतदन इधकी प्रीत ॥ ३८६ छप्पै- रति बिलास अनुराग करत निसदन कैतूहल , सुष सज्या सुषमादि महल मांणंत दंपत मल । समै सार सिंगार रिसकै झला मंन राजत , मास मास रुत मिलत सुष अांनंद समाजत ।। सरसंत बडारणि केसरी, रहत निरंतर प्रीत रत , हीरां प्रीत हुलासकी, चली बात प्रोहित-चिरत ।। ३६० दोहा- वात सही यण विधि बणी, जिण बिधि सुणी जणाय । कबी तेण इण बिधि कही, इण विधि हीरां प्राय ।। ३६१ कहूँ छंद चंद्रायेणा, कहुं छपै सोरठा कीन । कहुं कुंडलिया बारता, दुहा प्रगट धर दीन ।। ३६२ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० ] बात बगसीरामजी प्रोहित होरांकी राचत कहुं सिंगार रस, कहुं बीर रस कामकी। बणी बात हीरां बिमल, रसिया बगसीरांम की ।। ३६३ हीरां बगसीरांम हित, बात बणी बष्यात । सूर बीर हरषत सुणत, लेषत रसक लुभात ।। ३६४ ईति श्री बार्ता बगसीरामजी प्रोहित हीरांकी बात संपूर्णमः ॥ शुभमस्तु । यद्रसं पूस्तकं द्रष्टां तद्रसं लोषतं मया। सुद्ध प्रशुद्ध मशुद्धो पा मम दोसो न दीयते ॥ श्रीरामचंद्राय नमः ॥ श्री:॥ Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान-पुरातन-प्रन्थमाला रा० सा० सं० भा० ३ (श्री नारायणसिंह भाटी, सञ्चालक-राजस्थानी शोध संस्थान, जोधपुर के सौजन्य से ) Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रीसालूरी वारता ॥ श्री गणेशाय नमः ॥ अथ रीसालूरी' वारता लिष्यते । [दुहा- गणपत दव मनाय को, समस्त (रु) सारद माय । वात रसालू रायकी, कडू रसिक सूषदा [य] ॥ १ लेष विधाताजि लोष्या, तीमही ज भुगतै सोय । सूगरण नरां मन जाणज्यो, वात तरणो रस जोय ॥ २ वेधालू मन वीधयौ, मूरष हासो होय । जांरग सोई सूजारण नर, अवर न जांन कोय ॥ ३ कथा रसिक कविराय की, जीभा कहत वनाय । रिसाल नप विध कहू, वाचो चित्त लगाय ॥४ राग रंग रसकी कथा, प्रेम प्रीयास विलास। वात भेद स पै कहु सूंगणा पूरण पास ॥ ५ ] ४ १. अथ वारता - श्रीपूर नाम नगर, तिणरै विष राजा सालवाहन राज करै छै । [" यू ईम घणा दिन विता । तरै सालिवाहण देवगत हूंवौ । तरै प्रधान उम्रांवा भेला हुयनै वडो पूत्र समस्त कुमर नामै, तिणनै पाट वेसाणियौ। बालक-वयमै जूवानपणौ प्रायौ। तरै सारी वातमै, राज-काजरी रीतमै समझीयो । भली भांत राज करै छै। राजारो तप-तेज जोरावर बधीयो। वीण सं[म्यै] सीह, वाकरी भेला चरै छ । भोमीया, ग्रासीया साराहि पाणनै श्रीहजूररी चाकरी करै छै। दुनीया घणी सूष पावै छै । व्योपारी परदेसा(सी) घणा आवै, जावै छै । तीणरो हासल घणौ पावै छै। सारै ही सोभा राजरी घणी बधी छ । राजा समस्त देवतारा विलास ज्यूं साता रांणीतूं करै छ । १. ख. रीसालुकुमररी। ग. रीसालुकुंअररी चोपई। घ. रोसालुकुंवरकी। २. ख. घ. वात। ३. घ. में नहीं है। ४. चिन्हान्तर्गत दोहे ख. ग. घ. प्रतियों में हा हा ५. ख. ग. घ. में नहीं है। ६ ख. रे। ग. के। ७. ख. सालीवाहनरो पुत्र समस्त राजा। ग. सालिवाहनको बेटो राजा समस्त (घ. समसत राजा) । ८. कोष्ठकान्तर्गत पाठ ख. ग. घ. में निम्न रूप में मिलता है Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी दहा-षट रीत भोगी भमर ज्यू, वीलस्यै राय विलास वै। माणीगर मोजां दीये, सहुको पूरै पास वै ।। ६ २. वारता-हिवै सूष-विलास करता घणा दीवस हुवा। राजारै पीण पूत्र नहीं ] [ तीणैरो घणो सोच हुवौ। घणा देवी-देवता मानै छै, षटु दरसणनै पोषै छै, छतीस पाषंड, चोरासी चेटक घणा दाय-उपाय करै छै । पीरण पूत्र कोई नही हुवौ। तठै राजानै घणौ सोच लाग रह्यौ छ । राज तौ करै छै पीण पूत्ररी चीता प्राग क्यूई प्रावैडै नही । मनमै विचार छै-पूत्र वीना राज किण कारैम ।' दुहा२ – सिंगालौ' परि षीलणौ , जिरण कुल एक न थाय' बे। तास पूरांणी वाड ज्यू, दिन दिन माथै पाय बै॥७ पूत्र नही ईक मांहर, तद घर सूनी होय बै। ईम राजा नित चितवै, लेष विधाता जौय बै॥ ८६ ख. तीको वडो सुरवीर, दातार छ, मोटी रोधनो धणी छै। तोणरै सात अस्त्री छ, पोण पुत्र कोणहीरे नही। ग. घ. तिण (घ. तीणी) राजारै सात रांणी छ । पिण (घ. पीण) कोणहीर (ध. कुणोरै ) पुत्र नही। १. कोष्ठबद्ध वाक्यावली ख. ग. घ. में निम्न रूप में है-ख. तीणरे वास्ते राजा ऐ घणा देवी, देवता, षट् दरसण, छत्रीस पाषंड, चोरासी चेटक, बीजा ही दाय उपाय करी पूछचा, पुज्या तो पीण पुत्र नही । पुत्र वीना राजाने चीता उपनी। राजा इसो मनमे वीचारीयोपुत्र वीना राज्य कोसा कामरो। श्लोक-अपुत्रस्य गृहं सुन्यं दीससुन्यं च बंधवा । मुर्षस्य रोदयं सुन्यं सर्वसुन्य दरिद्रता ॥ १ अपुत्रस्य गंतं नास्ती स्वर्ग धर्मो च नेव च । तसमात पुत्रं मुषं दृष्टया पछात, धर्म समाचरत् ॥ २ ग. प.-राजा घणा दाय-उपाय कीधा तो पीण (घ. पीण कुणीर) पुत्र नही। राजाने चीता घणी-बेटा वीगर राज कीस्या (घ. कुंणी) कामरो नहीं। २. ख.-अथ पंजाबी । ग. घ. में ये दोनों दूहे नहीं हैं । ३. ख. सोगालो. ४. ख. अरी। ५. ख. पेलणो। ६. ख. होय । ७. ख. परांणी। ८. ख. घाव । ६. यह दूहा ख. ग. घ. प्रतियों में नहीं है। Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात सालूरी [ ५३ ३. वारता - Aईण भांतसूं सौच करतां घणा दिन हुवा। ईकदा समाजोग रै विषै एक गायांरै एवालो प्रायने पूकार घाली - जौ माहार गाया चरावा जावा, जिण रोही में सूर एक हाल्यौ छै, सू गायान दुष दैवै छै, तीणरौ जावतो कीजौ, ज्यूँ गायान सूष होवे । तर राजा सूर नै मूछा हाथ फेरै नै वट घाल नै नगारचीन को - नगारै सताब हुवें । ईसौ कैहने रजबूत सीरदार सर्व तईयार हुवा | सारा ही सीरदार मूछा हाथ घाल नै हथीयार सरवस किया । घोडा पिलांण हुवां । नगारारी धूस पडी । सूरा पूरा असवार हूवा । राजा असवार हूय नै सिकार चालीयो | A दहा - हथीयांरा पाषल जूडे, कलहलोया के कोरण बै । १६ हडवड श्राग होसता, वन दीस प्रायै दौर बँ । एवाली मारग चले, वाजे नगारां ठौर बॅ ॥ १० ४. वारता - [ इण भांत सूरनै सोधतां, चालतांन घणी वार हूई, पिण सूर ort नही। सूरज प्राथव पीण लागौ । तर रजपूतां उमरावांरा, सीरदारा सगलाइ राजाजीसूं अरजै कीधी - महाराजै ! सूरजै प्राथमो छै, तिणसूं पाछा चाल्यौ । तठे राजा सूण नै कहै छै - वडा सीरदारा ! वलै पाछा कुण आवसी ? अठे ही डैरा कर दैवी; परभातरा वलै सूरजै सोधने सिकार करस्या । ईसो वचन सू राजा कह्यौ । तठे डैरा रोही कीया । रात घडो चार पांच गई छै । तद एक प्राथूनी कांणी अलगौ थको एक भाषर उपर अगन वलतीरौ चानणौ दीठौ । तठे राजाजी चांनणौ देष नै सारा ही उमरावानी कह्यौ — जो डूगर उपर लगन बलै छै, तीणरी षबर ल्यावौ । देखा उठ काई छै ? तरै उमरावा सूण नै बोलीया - माहाराजै ! आधी रातमै वादेव षबर करणने जावा, सौ इण रोजगारमै काई मी ? तरै बलै राजाजी कहीयौ - ईण वातरी खबर ल्यावो तिनै मोटी रोझ करू' नै उणनै मोटा करूं । तरा उमरावा कह्यौ — माहाराज ! मारी तो प्रसंग कोई नई, कुत कुमरे, काई जांणा, उठे कांई चरित्र है ? ] A - A. चिन्हान्तर्गत पाठ ख. ग. घ. में इस प्रकार लिखित है ख. इसो चींतातुर थको राजा सदा ही रहे छे । होवे एकदा समयरे वीषे राजा समस्त सोकार चढीया । ग. घ. - तद ऐक सीमै ( घ. तदी एक दीन ) राजा सीकार चढो (घ. गयो ) १. २. - उक्त दोनों दूहे ख ग घ प्रतियों में नहीं मिलते हैं । [ - ]. कोष्ठकान्तर्गत पाठ ख. ग. घ. प्रतियों में निम्न रूप में वर्णित है ख. सुर वांसे घणा अलगा गया। दीन श्रस्त हुउं । तरे वनमांही ज रहीया । गोठ घरी, वल त्यार हुई । सारो साथ जीभ्या पछे रात घड़ी च्यार जातां राजाए डुगर उपर 1 Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ ] बात रीसालूरी Aतठ एक ईवाल्यो बोल्यौ-महाराज ! आपरो हुकम हूवै तो हूं षबर ल्याउ । तरै राजाजी कह्यौ-तु षबर ल्यावै तो तोन मोटौ करू IA तरै इवाल्यो भाषररै चानणे सांमो चालीयो। रायन भाषर उपर चढीयौ । प्रागै देष तौ Cबडी बडी कठफाडा बल रही छैC । केसरी, सीघ नाहर' बैठौ छै । Dश्रीगोर्षनाथजी जोगैस्वर मद्रामै तपस्यामै बैठा छच; ध्यानमै पल लगाई रह्य छै; आया-गयारी षबर नही राषै छै । ईण भातसूं एवालीयो देष नै पाछो आय नै राजाजीन सारा ही समाचार कहीया-माहाराज ! सिलामत, श्रीगोरषनाथजी तपसाम वीराजीया छ जी। सूण नै राजाजी सवा लाख रो रीझ दीवी ID प्राग बलती दीठी । तरे राजा उबरावांनु कहीयो—ा अगन बले, तीणरी ठीक ल्यावो तो तीणनै रोझ देउ, मोटो करूं, पटो वधारूं। तदी उंबरावां वीचार नै कहीयो-माहाराज ! जुध, लड़ाइ होइ तो जावां, पीण अकालमीचमे तो मे कोइ जावा नहीं। कांइ जाणां आगे कुण छ ? ___ ग. घ. घणो अलगो गयो । दीन असुर (घ. पहाडांमै दीन अस्त) हुवो। तदी वनमै (घ. उठ) रह्यो । घणी रात गयां पछै (घ. घडी ४ रात गई छै तटै) राजाऐ डुंगरी (घ. डुंगर) उपरै आग बलती दौठी। तदि राजा उमरावांने कह्यौ—अणी (घ. ईण) डुंगरी उपरै भाग (घ. अगन) बल छ, तीणरी ठीक ल्यावो; तीणनै मोटो करूं । तदी उमराव कह्यौ (घ, बोल्यौ)--कठई (घ. महाराज, कठेइ) रण, संग्राम-जुध होवै तो जावा; पिण अकालमीचतो जावां नहीं । कांई जांणां, कोइ (घ. कांई) छ ? A-A. चिन्हाङ्कित पाठ ख. ग. घ. में इस प्रकार है--- ख. तीण समे एक गोवालीयो उभो हतो । तीणनु उबरावां कहीयो-तु इण अगनरी ठीक ल्यावे तो तोनु मोटो करां। ___ ग. घ. तदी तीण समै गुंवाल उभो थो (घ. त, गुवालीयौ पीण उभौ थौ) तणने उमराव बुलावे नै कह्यौ-प्रण आगरी (घ. तणोन बुलायौ, उमरावां कह्यो-पागको) ठीक ल्यावै तो तोन मोटो करां। __B-B. ख. तदी गोवालीयो डुंगर उपर चढीयो । ग. तदी गुंवालीयो डंगरी चढ्यो। घ. तदी गुवाल डुगर उपर चढयो। C-C. ख. ग. घ. वडा वडा लाकडा (ख. लकड) वलै छ। १. ख. नाहर प्रागे । २. ग. घ. बैठा। ___D-D-चिन्हित पाठ ख. ग. घ. प्रतियों में निम्न प्रकार है-ख. श्रीगोरषनाथजी बेठा तपस्या करे छ । गोवालीयो इसो वरतंत देष नै पाछो फीरयो। प्रायनै राजाने कहीयो-माहाराज ! जोगीस्वर बेठा तपस्या करे छे । राजा इसो सुणने राजी हुआ। गोवालीयाने रीझ-मोझ दीधी। ग. गोरषनाथजी बैठा तपस्या करै छ । तदी देषी राजाजीने प्राय कह्यो। घ. तदी राजाने प्रावै कह्यौ-माहाराज ! गोरषनाथजी तपस्या करै छ । Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रसालरी [५५ Aरीझ कर नै राजाजी एकला उभराण पगा भाषर चलीया । चलताचलतां भाषर उपर चढ नै श्रीगोरखनाथजीरो दरसण कीधो। गोरषनाथ पल षोल नई। तरे राजा एक पगरै पान मंहडा प्रागै उभौ रह्यौ; दोय हाथ जोडि रहौ छ, श्री गोरषनाथजीरौ ध्यान करै छै। ईण तरै सवा पोहर तांई राजा उभौ रह्यो । त?' श्रीगोरषनाथजी पल षोली । आगै3 Bदेषे तो राजा एक पगरे पांण उभो दीठौ । त? श्रीगोरषनाथजी तुष्टमांन हुय नै बोलीयाB.-राजा ! मांग तन तूठो, चाहीजै सो मागलैBI Cइसौ राजा सुण नै सिलांम कर नै बोलीयौc-माहाराज ! आपरैः परसादकरनै' सारी वातरी दोलत छै, Dपिण ईक पूत्र कोई नही । तिणरौ मांने घणो दूष छ सो आप तूठा छौ तो पूत्र दिरावौD। [ईसो गोरषनाथजी सूणनै आपरा हाथम गुलाबरी छड़ी थी, सौ राजानी दीधी नै कहीयो-जै पाबारौ रूष छ, तिणरे एक वार छडीरी दीजै; सौ अबारी करी येक पडसी, तिका ताहारी रांणीनै षवायजै, तिणसूं ताहरै पूत्र होसी, तिण पूत्ररो नाम रीसाल दीजै; ईसौ कह्यौ। त? राजा छडी लै नै चालीयौ] A-A. चिन्हान्तर्गत पाठ ख. ग. घ. में निम्न रूप में वर्णित है___ ख. पछे राजा समसत एकलो अलवाणो डुगर उपर चढीयो। आगे देखे तो श्री गोरषनाथजी ध्यानमे बेठा छ । राजा पण उठे एक पगवरांणो सवा पोर ताई उभो रहे ने सेवा करे छ। ग. तदी राजाजी ऐकलाई डुंगरी चढया । गोरषनाथजी नै देष्या । तदी उठाईसु उभा रह्या । एक पगवरांणा सवा पोहर ताई सेवा कोधी। । घ. तदी राजा पालौ एकलौ डुगर उपर चढयौ । गोरषनाथजीने दीठा । तदी परक्रमा दे एकण पगवरांणा सवा पोहर तांई सेवा कीधी। १. ख इतरे। ग. घ. तदो। २. ख. उघाड। ग. उघाडे । घ. उघाडी। ३. ख. कर । ग. घ. नै। ___B-B. ख. देषे तो राजा उभो छ । इतरे श्रीगोरषनाथजी बोल्या-राजा। मांग मांग, हु तोनु तूठो, जे मांगे सो देउं । ग. घ. कह्यौ-राजा मांग मांग, तोने (घ. में नहीं है) तुष्टमान हुवां । C-C. ख. तर राजा हाथ जोड ने कहे। ग. घ. राजा कहै (घ. कह्यौ) ४. ख. ग. घ. आपरी। ५ ख. ग. दीधी। घ. पाथी। ६. घ. में नहीं है। ___D-D. चिन्हगभित पाठ ख. ग. घ. में यह है--ख. राज तुठा तो प्रमाण । माहरे पुत्र नहीं, सो एक पुत्र दोउं । ग. पिण ऐक मांगु छु-सो ऐक पुत्र नही । घ. पण बेटो नहीं। [-1. ख. ग. घ. प्रतियों में ऐसा पाठ मिलता है--ख. तदी जोगीस्वर एक च (छ) डी दोधी । जा, माहरे बागमे प्रांबारो गोठ छे, तीणरी इण छडीसु एक केरी पाडजे; Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ५६ ! बात रसालूरी ढाल पंजाबी दूहा - सालवाहण नृपरावका , श्रीपूरनगरक राय बे। पूत्र नही जीस कारण, सेब्या सिद्धका पांव वै ॥ ११ चाल्यौ प्रांबां पागलै, धीमा पगला धरायबे । । ५. वारता-Aईण वीधसू राजा डुगरसू'उतर नै अांबा है? आयो नै छडीरी दै नै अांबो ले नै प्रापरी फोजमै आयौ । सारा ही उमरांव 'षमा षमा' करने हकीगत पूछी। राजा हकीगत सारी कही । उमरांवां सूण नै घणा राजी हूवा । इतरे रात्र गई, परभात हुवौ । तरै उमरावां अरज कीवी-श्रीमाहाराज ! अबे सोकार मनै करावो, नेगरमे हालो; श्रीगोरषनाथजीरो प्रमाण सिध करोA I ___Bतरे राजा वात मांनी नै कुच कर नै नगरमै आया । संभा जोडि नै सवा पोहर दिन चढीया राजा राजैलोकमै गयौ । तठा पछै रांणीने बुलाय नै प्रांबो दीधो न कह्यौ-हे राणी ! राते श्रीगोरषनाथजी संतुष्ट हुवा । ते फल दीधो । प्रो थे फल षावौ, ज्यू थार पूत्र हौवै । तरै रांणी श्रीगोरषनाथजीनै दिसांग सोलांम करै नै फल आरोगीयो न तुरत प्रास्या रही। वडो हरष उपनोB | थारी पटरांणी गुणसुंदरीने षवाडजे; ज्यु एक पुत्र होसी । माहरो रसालरे नामे तीण पुत्ररो नाम कुं रसालु वोजे। ग. घ. प्रतरायकमै (घ. तदी) गोरषनाथजी कहै छै (घ. कह्यौ पा)-मांहरा हाथरी छडी ले जा, प्रांबारै देजे (घ. दीजे) कैरी एक पाडजे (घ. एक कैरी पडे जदी) रसरै नाम रसालू कुअर नाम देजे (घ. माहानांमै रीसालुरै नामें बेटारौ नाम दोज)। . १. ख. दुहो पंजाबी । ग. गोरषनाथजी वायक । घ. में नहीं है। २. ग सालीवाहन । ३. ग. नरपरावका । घ. नृपरायरा। ४. ख. श्रीपुरनगरका । घ. श्रीनगरका । ५. ख. ग. घ. राव । ६. ख. तस । ग घ, जस। ७. ख. सीध का। ग. सोधारा । घ. सिद्धांका ८. यह अर्द्धाली ख. ग घ. में नहीं है। ____A-A. ख. हीवे राजा नमस्कार कर नीचो उतरयो । प्राय सीरदारनु मील्यो । प्रभात हुओ। ग. घ. तदी राजा प्रांबो ले नै नीचो उतरयो। ___B-B. ख. घोडे असवार होय वागमे पधारया । उठासु प्रांबो ले नै नगर माहे आया । राजलोकमे जाय पटरांणीसु मील्या। राजा समस्त गुणसुंदरीनु कह्यो-प्रापणे भाग्य जाग्यो । श्रीगोरषनाथजी तुठा, एक प्रांबो दीधो छ सो थे षावो। प्रपणे पुत्र होसी । तद रांणी सात सलाम करी फल प्रारोगीया। तीण दीनथी गर्भ रह्यो। ग. नगरमै पाव्या । राजलोकांमै पधारया। तदी पटरांणीने कटो-अपणो भाग्य जाग्यौ । गोरषनाथजी तुष्टमांन हूवा, सो फल दीधो छ, पुत्र होसी, प्रो फल थे आरोगो। प्रतरायकमै पटरांणी सात सलाम करी नै फल खाधो। घ. सैहरमै आया। राजलोकांमै आया। तदी पटरांणीनै कह्यो-प्रांपणो भाग्य जाग्यौ । औ फल दोधो छ । श्रीगोरषनाथजी तुसटमांन हुवा छ, पुत्र होसी। तदी पटरांणी सात सलाम करे नै फल षाधो। Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी [ ५७ दूहा- थाल भरी वाल चांवला, लहै कटौरे होय वै । पडित पूछ वरण मछली, पूत्र सहै कीध यक बै ॥ १२A ६. वारता-(अबे गरभ पालणा करतां नव महीना हवा, साढा सात दीन गया थका पूत्र जनमीयौ। श्री गोरषनाथजीरी वाचासू रीसालू नाम दीधी। घररा प्रोहित ते डेरे गया छै)। अथ' दूहा-वाजा छत्रीस वाजीया, पली' वाज्यौ' थाल बै। राजा घर पुत्र जनमीयो , रजवटकै रषवाल बै ॥ १३ राजा मिल नाम थापीयो , कवर' रीसालनांम'' बै। घर घर रंग'२ वधावरणा, नप 3 घर मंगल गांम१४ बै१५ ॥ १४ [नांटिक छंद गुण गाजीया, गोरी गाव गीत बै। पान सूपारी बाटता, धन अजूनो प्रादीत वे ॥ १५ मांगरणहारा मंगता, दोजै त्यूंनू दांन बे। पंडित वेली ज्यौतसी, वधतो वधारो मान बे ॥ १६ होव धरे जोतसी तेडीया, वेला लेवरण धाम बे।। प्राया राजा पागले, साझे अपरणा काम बे ॥ १७ लगन लेई नै जोईयो, मोहरत रूडो न होय बे। अगम तिगण सासौ लहौ, राजानै कहै जोय बे ] ॥ १८ A-यह दूहा ख. ग. घ. प्रतियों में नहीं है। (-)कोष्ठकान्तर्गत पाठ अन्य प्रतियों में इस प्रकार है----ख. नव मास साढी सात दोन पुत्र रो जनम हुउं । गोरषनाथजी रो वचन फल्यो। ग. घ.-महीना साढा सात दीन ७ जातां (घ. महीना प्रतीपुर हुवा तदी) पुत्र हो । गोरषनाथजीरी रसालर नांमै रसालुकूवर (घ. रीसालु) नाम दीधो। घररो परोहीत (घ. प्रौहीत) बुलायो। १. ग. पडावाक । ख. ग. में नहीं है। ख. २. दुहो। ३. ख. वाजो। ४.ख. छत्री से। ५. ख. पेली। ख. वाजी। ७. ख. समस्त । ८. ख. जनमीया । ६. ख. समस्त घर पुत्र जनमीया। १०. ख. भया। ११. ख. रसालु । १२. ख. पाणंद । १३. ख. घर । १४ ख. च्यार। १५ ग. घ. प्रतियों में १३ वें और १४ वें दूहे की जगह उलट फेर से एक ही दूहा निम्न रूप में मिलता है . समस्तपुर पुत्र जनमीयो, भया रीसालू नाम बे । घर घर पाणंद वधावणा, घर घर मंगल चार बे ॥ [-] कोष्ठकान्तर्गत दूहे ख. ग. घ. प्रतियों में अनुपलब्ध हैं। Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रोसालूरी. [ ५६ सारी वीध बालकरी करतां थकां ईग्यारै वरस हूवा। त? एकदा समाजौगरै विषै राजा भौजरा घररा नै राजा मानरा घररा नालेर आया। तिणां साथें मंत्रीसर आया छै । सूं प्राय नै मीलीया, मूजरौ कीयौ, बाह पासाव कीया, ग्रामो-सामी हकीगत, कुसल पूछीया । वडी स्याली हुई। त? राजा मंत्रीसरान कहै-माहा ताई प्रावणौ हूवौ सौं कांई कारण छै ? सौ म्हानै कहौ ।] ____ Aत, प्रधान बोलीयौ-श्रीमाहाराज ! राजा भौजजी, श्रीमानजीरी बेटी ईयांरी सगाइरो नालेर ल्याया छां; आपरा कुंवर दीपावो । इण कारण पायां छां । सो आप कुवरजी ने तेडावो, ज्यं नालेर बधांवां इंसौ सून नै राजाजी मनमै वीचारीयौ- 'कुवरनै वरस इग्यारे हूवा नै इक वरस वलै घटै छ, सो बार काढणौ, मढयौ देषणौ जोग नई, नै परधान नालेर ल्याया सौ अबै ईणनै कांई जाव देउ, सौ राजा समस्त मनमै वीचारीयौ। तठे आपरा ठाव पांच सात उमरांवाने लै नै प्राधा जाय नै राजा समस्त मनमै वीचारीय उमरावाने कहेयौ-त, ईणरौ जाव काइ देवौ। तरै उमराव बोलीयौ-श्रीमाहाराजाजी, ईणरो उतर तो औ छै— अवारै तो ईरानै डेरा दीरावौ, षांणा दानारा जतन करावौ नै रात सभा माड नै उमरावा, प्रधान सारा ही भेला हुय नै मनसौबौ कर न सारो ही जाबतौ कर देस्या IA ___Bतरै राजा समस्त पाछौ प्रायनै प्रधाननू कहीयौ-पाज तो आप डेरा करावो, भोजन करावो; सूवारे जबाब सारो ही हुय नासी, इसौ कह्यौ तठ प्रधान बोलीया-जौ हूकम, आपरो कह्यौ सौ प्रमाण छै । इतरौ कह नै प्रधान उठीयो । परधान रा डेरा दीराया। षाणा-दाणारा जैतन कराया ।B [-] कोष्ठकान्तर्गत पाठ के स्थान में ग. घ. प्रतियों में निम्न पंक्तियां ही उपलब्ध हैं ख.-हीवे राजा इसो जाब सुण ने कुवर ने पांच धायां साथे महीलांमै राष्या। इम करतां वरस इग्यारे वतीत हुआ । तद उजेणीरो धणी राजा भोज तीण री बेटीरा. नालेर प्राया। फेर राजा मानरी बेटीरा पीण नालेर पाया। ग. तदी कुंअर नै च्यार धान लगाई। महीलांमै राष्ये । तदी वरस अग्यांरांरा हूवा । तदी नालेर प्रायो। घ. तदी कुंवरने ऊचा प्रवास छ, मैहलांसु अलगा छ। तठे च्यार धायां ले गई । धायांने कह्यो-मैहलांमै राषजौ । तदी वरस १२ हूवा । तदी नालेर आया। A-A. कोष्ठकगत पाठ ख. घ. में नहीं है तथा इसके स्थान में ग. में निम्न पंक्तियाँ ही उपलब्ध है-- ग. तदि राजा समस्तन कह्यौ----सगाई करो। B-B. चिन्हमध्यग पाठ ख. ग. ध प्रतियों में अनुपलब्ध है। Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रोसालूरी. [ ५६ सारी वीध बालकरी करतां थका ईग्यारै वरस हूवा। त? एकदा समाजौगरै विषै राजा भौजरा घररा नै राजा मानरा घररा नालेर आया। तिणां साथें मंत्रीसर पाया छ । सूं प्राय नै मीलीया, मूजरौ कीयौ, बाह पासाव कीया, आमी-सामी हकीगत, कुसल पूछीया । वडी स्याली हुई। तराजा मंत्रीसरानू कहै-मांहा ताई आवणौ हूवौ सौं कांई कारण छ ? सौ म्हानै कहौ । ___ Aतठे प्रधान बोलीयौ-श्रीमाहाराज ! राजा भौजजी, श्रीमानजीरी बेटी ईयारी सगाइरो नालेर ल्याया छा; आपरा कुंवर दीषावो। इण कारण पायां छां । सो आप कुवरजी ने तेडावो, ज्यूं नालेर बधांवां इंसौ सून नै राजाजी मनमै वीचारीयौ-'कुवरनै वरस इग्यारे हूवा नै इक वरस वलै घट छ, सो बार काढणौ, मढयौ देषणौ जोग नई, नै परधान नालेर ल्याया सौ अबै ईणनै कांई जाव देउ, सौ राजा समस्त मनमै वीचारीयौ। त? आपरा ठाव पांच सात उमरांवानै लै नै प्राधा जाय नै राजा समस्त मनमै वीचारीय उमरावाने कहेयौ-त, ईणरौ जाव काइ देवौ। तरै उमराव बोलीयौ-श्रीमाहाराजाजी, ईणरो उतर तो ौ छै— अवारै तो ईरानै डेरा दीरावौ, षांणा दानारा जतन करावौ नै रातै सभा माड नै उमरावा, प्रधान सारा ही भेला हुय नै मनसौबौ कर न सारो ही जाबतौ कर देस्या IA Bतरै राजा समस्त पाछौ आयनै प्रधाननू कहीयौ-पाज तो आप डेरा करावो, भोजन करावो; सूवारे जबाब सारो ही हुय नासी, इसौ कह्यौ तठ प्रधान बोलीया-जौ हकम, आपरो कह्यौ सौ प्रमाण छै । इतरौ कैह नै प्रधान उठीयो । परधान रा डेरा दीराया। षाणा-दाणारा जैतन कराया।B [-] कोष्ठकान्तर्गत पाठ के स्थान में ग. घ. प्रतियों में निम्न पंक्तियां ही उपलब्ध हैं. ख.-हीवे राजा इसो जाब सुण ने कुवर ने पांच धायां साथे महीलांमै राष्या। इम करतां वरस इग्यारे वतीत हुआ । तद उजेणीरो धणी राजा भोज तीण री बेटीरा. नालेर आया । फेर राजा मानरी बेटीरा पीण नालेर प्राया। ग. तदी कुंअर नै च्यार धान लगाई। महीलांमै राष्ये । तदी वरस अग्यारांरा हूवा । तदी नालेर प्रायो। घ. तदी कुंवरने ऊचा प्रवास छ, मैहलांसु अलगा छै। तठे च्यार धायां ले गई। धायांने कह्यौ- मैहलामै राषजौ । तदी वरस १२ हूवा । तदी नालेर पाया। A-A. कोष्ठकगत पाठ ख. प्र. में नहीं है तथा इसके स्थान में ग. में निम्न पंक्तियाँ ही उपलब्ध हैग. तदि राजा समस्तन कह्यौ---सगाई करो। B-B. चिन्हमध्यग पाठ ख. ग. ध प्रतियों में अनुपलब्ध है। Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० ] बात रीसालूरी ____A हीवं राजा समस्त रातरै पूहर सभा जोडनै सारा ही उमरांवान, प्रधाननै भेला करै नै मनसूबौ पूछीयो--अब काई कीयौ चाहीजै । तठे इक प्रधान बोलीयो-श्री माहाराजा साहिबा ! सारा ही मनसोबा जाण देवौ। हु कहु सो कोज-प्रभातरै प्रो प्रधान प्रावै तरै श्री कुमरजीरा हाथरो षडौ(षांडो) मगाय नै नालैरं वंदावो ने जांनरी तारी करो। षाडो हाथीरे होद मेलने परणाय लावास्यां । इसी राजाजी सुन नै वात मांनी । साराहीरै वात दाय बेठी। अब सभा बोहोड नै मेहला दाषल हूवा । परभात हूवौ, तठे राजाजी सभा जोडी। तठे प्रधान नालेर लेने आया। तठे राजा समस्तजी बोलीया-जादौ, उप्रावा कुवररो य(षां)डो ले प्रावौ। तठे प्रधान संन ने बोलीया-श्रीमाहाराज ! सिलामत, पांडौ मंगावौ छौ ने कुमरजीन नही तेडौ, तीनरौ कांइ कारण छ ? तठे रातवालो प्रधान वो नामै 'जालमैसीघ' तिको वोलीयौ-श्री प्रधानना साहिबा ! मांहरै घररी पा रीत छै-'वालक बारै वरसमै हवै, तठा पछै सगलै माहादेवजीरी जात करै, तठा पछै तिन बालकरौ माता-पिता महडौ देषे । सौ कुमर वरस इग्यारमै हुवो छै, एक वरस घटै छ । तिणंसू आ रीत छै-माइत मूहडौ देषै नहीं। नैताहरै मनमै कोई भरम हुवै तो थे देष प्रावौ' । त, प्रधानै बोलीयौ-म्हारै कोई भरम नहो, थे करसौ सौइ ठीक छ । तठे राजा समस्तजी कहीयौ-प्रधांनां ! राजाजीरै जैज हूवौ तौ बारे बरसरो कुंवरनै हुणनै दैवौ, पछै सगाई करज्यो । तठे प्रधान बोलीया-कोई कारण नई, आप षांडो मगावी IA B दूहा- हुकम भलो माहाराजैरी, नालेर दीधां ताम बे। जांन तयारी कीजीयो, ज्यं सीज सगलां काम बे ॥ १६ माहा[स]ज धरणी हकमथी, जैज न होवै काय वै । षासौ(डौ)वंदाबी पूजीयो, टीका अक्षत दाय बै ॥ २० A-A. चिन्हमध्यगत पाठ ख. ग. घ. प्रतियों में निम्न वाक्यावली के रूप में ही द्रष्टव्य है___ ख. तद राजा समस्त कहो--वरस बारां माहे एक वरस थाके छे, सो कुवरनु बारे तो काढ़ां नही ने षडग मेलने परणावस्यां । ___ ग. बार वरसमै वरस एक घटै छै सो बारणे काढा नही। घ. तदी राजा समसत मनमै जांणौ-बारै वरस वरसमै एक घटै छ सो तो बारणे काढां नहीं । __B-B. ख. ग. घ. प्रतियों में चिन्हान्तर्गत १६ से ३४ पर्यन्त दूहे एवं ८ वीं वार्ता के स्थान में केवल निम्न पंक्तियाँ ही समुपलब्ध हैं Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी [६१ ८. वारता-हीवै जानरी सझाई करी। वडा वडा उम्राव साथै कीया। भेला केसरीषा(या) कसूवा सीरपावै करया। भेला गेहणासं जंडाव जडीयौ छ। सौभा सूरजैरी कीरणरी जलाहल लाग रही छै । तुरंग सोनारी साष ते करी सोभैतै, वडा वडा हाथी सीणगारयौ छै। दूहा- हय गरथ सीणगारीया, गुधरैरा धमकार बे। षांडो मेघाडंबरै, बेसारथौ सूषकार बै ॥ २१ चढीया सहु जानीया घरणा, जांनी कोधां बनाव बै। मलपंता मोजो थका, देतां नगारां घाव बे ॥ २२ उजेरणीपूर अावीया, संभेला सिणगार बै। बांह पासावे सहु मील्या, सगली धरी मनवार बै ॥ २३ जाचक जै जै बोलीया, मे आगम जिम मोर बे। दांन करी राजी कीया, तोरण बांध्या तोर बे ॥ २४ राजा भोजजी .......", पूछ वात उदार बै। कवर नईको कारण, मंत्रीसर तिण वार बै॥ बात क सारा नृप सूरणी, राजी मन घर धयै [ध्यार]बै २५ हीव चवरी मंडप तणे, फैरा लीया च्यार बे। दत्त घरणा वड दायचा, दीधा राज अपार ये ॥ २६ तीहांथी मान नपत तरणी, चंवरी पूंहता जाय बै। पूरब बिध सहु जारणज्यौ, हरष मगल फूरमाय बै ॥ २७ गाव मंगल नारीयां, परण्यौ षांड्यौ नार बे। दत्त घणा नृप पापीया, कर कर बहु मनवार ॥ २८ जाचक बहु धन पोषीयो, सरीष किवी सारी जांनै बै । चलतां पाया प्रांपरणौ, नगर वधाई मान बै ॥ २६ ख. तठा पछे राजाइ जोतषीनु बोलाया। आछा लग्न जोवाडीया । ब्याव मांडीयो। राजाए पोतारा उबरावा साथे रसालुरो षांडो मेलीयो। उबरावे पांडासु रसालुजीरे दोय रांणीयां परणे लाया। ग. घ. तदी प्रापरा उमराव षांन (घ. वाषो) सुलतांण, मुंगलां, पठाण रसालुरा (घ. समसत राजा कुंवरजीरा) हाथरो षडग मोकल्यो (घ. षंजर दोघो)। परणी ल्याया (घ. जान करे हाथीरी प्रांबावाडीमै छ सो षंजरसु पर परणी ल्याया)। Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रोसालूरी हरष वधाइने प्रावीया, महिला ते दौउं नार बै। कुवर देषी मन रांजीयौ, ए अपछैर अनहार ॥ ३० कुण छ बाल वडी, सहीयां जपै ताम बे। श्रीमाहराजा कुमरजी, राजा-राणी ए धांम ॥ ३१ राजा तरणौ षडग पररगन, प्राज सूपी तुझ हाथ थे। राजा राणी ौ रांवली, विलसौ तन धन नाथ पै ।। ३२ कूमर सूरणने चीतवै, कीम षडग परण्यौ जाय बे। मूझनै बींद बरगाहये तो, न कीयौ नप कहायाय ौ ।। ३३ एहनो काइ पटंतरो, निगे लहै सू साचै । इम चीतवी हसि हस मिल्यो, थाईसू वातां राच बैB ॥ ३४ ६. [वारता-इण भांतसूं सहेलियासू वात कीवी। समोभामा हडनै रांणीयातूं राजी-वाजी हवा । घणी रांणीजी वांतां कीवी। इम करता दीन १५ तथा वीस हूवा । तठे भोज, मानरा असवार, रथ, पालषी, चकडोल प्रांणो प्रायो। वडा मंत्रीसर लेवा सारू आया । प्राय नै समस्त राजासू मील्या । बाह-पसाव हुवा । आमा-स्यामा कुसल पूंछया । घणी मानवार हुई । असल पाराईरा फूल साभा माहै फीरीया । वडी गोठ गुघरीया हुई। हीवै रातरा पोररी रांणीया कुवरजी पासै आई। घणा रग-विलासरी वांतं हूँई । तितरां मांहै कुवरजी बोलीया-थारा घरांरां प्राणा पाया छ सौ पीहर दोसा पधारो; मेह पिण वेगा प्रावस्या ।] दुहा- रांगी सूरण पीउतै भरणे, वेगा पधारण वार । विरहन पामस्यां तुम तरणौ, विछडीया नीरधार बे ॥ ३५ [-1 कोष्ठगत पाठान्तर ख. ग घ. प्रतियों में निम्न प्रकार है --- ख. हीवे कुवरजी दोय रांणीयां साथे तूष-विलास भोगवे छे । राजा भोजरी बेटी माहा रूपवंत छ । तीण सु पाप लयलीन रहे छ । इम करता दोन पचीस बतीत हुआ। तदी उजेणीसु प्राणो आयो । दुजी रांणी ने पीण प्राणो प्रायो । तदी राजा भोजरी बेटीनु कुवरजी कहे---थे थारे पीहर जावो; मे पीण वेगा आवां छां। . ग. दीन दस तथा वोस' रह्या । परणे ल्याया' पछे प्राणो प्रायो। तदी 'रीसालु' राजा भोजरी बेटोने कह्यो हुँ पिण (घ. परणवा) प्रावु छू । '-'घ. प्रति में चिन्हगत पाठ अनुपलब्ध हैं। Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी संग सूहेलो पोउ तरणौ, दुहिलो विछडवार बै। पीउ र अक्षर जीभ थी, नहीं छू टसी नार बै ॥ ३६ कुमर कहैजी गोरीया, बहली करस्या वार बै। सूगरणा सरीषो लोयरणां, वेध्यां बांम नूहार बै ॥ ३७ राजा भोजरी मांनरी, थे पूत्र गुणवंत ।। रूपवती रलीयांमरणी, सौ क्यू भूल कंत बै ॥ ३८ वेलारा साजन भणी, बीसर सोई गीवार बै। इण वोध माहोमाहैथी, कोधी वान करार बै' ॥ ३६ १०. [वार्ता-ईण वीधसू कुवरजी, रांणीया वातां कीवी। तठे कुवरजी आपरा हाथरी सवा लाषरी मूंदड़ी सहीनांण वासत रीझ दीवी - आ मूदडी हाथ थे परीहजौ । न कडिया षजुर नावा सहित रीझ कीवी सू रीझ मान बेटीनै दीजौ। कवरजी बोलीया। राजा भोजरी बेटी कहै-पापणे थाहारै प्रो सनाण छ - माहरी वाडी मांहै एक प्राबौ अमतफल नामै छै, तिणरै सात कैरीयारो झूबषो छ, तिको सदाइ कालो लागो रहै छ, (प)डियो देषो तद जाणजो जू कवरैजी पावसी। प्रो सनाण छ। तरै राजा भोजरी बेटी बोली-श्रीमाहाराज कूवार ! इण सेहनाणीरी षबर कुंकर पडसी, आबा पाठ नै उठे हुआ, जोड किसि विध लागसी ? तठे कुमरजी कहो-यो प्राबी देवांसी छै। साथै चीत सांमरौ प्रांवौ कराय देवौ झूबषा सहित सौ अठ पडसी । तरै थाहरा चितरांम मो अबषौ पडसी तरै नगै पडसी। इसौ कह्यौ त? भोजरी बेटी कहै-श्रीमाहाराज कुवार ! प्रो सेनाणे ठीक वतायो । इण भातसू परभातैरै राजा परधाननै बूलाव नै घणी भोलावण देधी नै रांणीयान सीष दीवी। सौ आप रा ठीकाणा पूहती।] १. ३६ से ३६ संख्या वाले दूहे ख. ग. घ. प्रतियों में नहीं मिलते हैं। [-] कोष्ठकान्तर्गत पाठ भेद ख. ग. घ. प्रतियों में इस प्रकार मिलता है--- ख. इम कहे ने हाथरी मुद्रडी, कररो पंजर दीधो। वले कहीयो--थारी बाडीमे एक अमृतफल नामे प्राबो छ । तीणरो सात केरी रो जुबषो एकण चोटसु पाडु तद माने डायां जांणजो। इम सुषवीलास करतां प्रभात हुओ। तद प्राणो करायो । वहु दोनु पोहर गई। ग. घ. तद 'नीसांणी दाबल' हाथरो मुंदडो दीघो। रसालु षंजर (घ. रीसालं जन) दोघो । प्रांबारी सात कैरी पडै जदी मुंनै आयो जाणजे । तदी बहू दोई पीहरां गई । '_' चिन्हित पाठ घ. में नहीं है। Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ ] बात रीसालूरी दूहा- नवल सनेह पीहर तणो, पीण सासरीयौ परधान बै। सासरीयौ जुग जुग तरणो, सूष पीहर उन मान वै ॥ ४० कुलवटनी कामरिण तणौ, सासरीयौ सीरदार बै। इश्वर गत जाणे षरी, प्रादर पुं(कु)जी नार बै ॥' ४१ ११. वारता-इण भातसूं पेम-कुसलथी पोहरै गई, माइतासू मीली । साराहीनै सूष हवौ। हिवै कोईक दिन विता । हिव कूवरजीरा मनमै पूठली वात रात-दिन मनमै लाग रही छै । इंतरा मांहै धायमानारी बेटी 'मूधमाला नांमै' तिका कुमरजी पास कि काम पाई। तर कुंमरजी तीणने पूछवा लागाजो मोने बाहिर नीकलवा नही दैवै नै षांडाने परणायौ, मोने वीद वणायतो न कीयौ, सू काई जांणीजै छै ? इण वातरी षवर वतावै तो तुंनै घणी मोटी करू, मूह माग्यौ धन देउ । ___ तठै इसा समाचार सूणन धायरो बेटी बोली-श्रीमाहाराजै कमार ! प्रापरो जनम हवो छो, तर घररो जोसो नै घररो प्रोयत तिण तो लगन देषो न कहीयौ-श्री माहाराजा ! इण बालकरो जनमै षोटी वेलारो छै, नषत्र षोटो छै, तीणसू वार वरस ताई कुमरजी नै गुपते राषज्योजो नै वार वरस तांई मा-बापरो मुडो देषे नही । ज्यौ मूडो देषै तो विगाड उपजै, मोन घात ज्यं छ, सो कवरजी न तो[मह] ला दाषल करज्यौ, इण भातसू प्रोहीतजी कहीयौ। तिणसं थांन मौलामै राषै छै नै मूंहडौ देष नही छै । इणही जै कारणथी दोय रांणी परणाइ छै। इसो जाब कुमरजी सूणनै मनैम विचारीयौर-- १. ३६ एवं ४०वां दूहा ख. ग. घ. प्रतियों में अप्राप्त है। २. इस ११वीं वारता की वाक्यावलो ख. ग. घ. प्रतियों मे निम्न रूप में वर्णित है-- ख. हीवे एक दीन कुवरजी हजुरीया चाकरनु पूछे--मांनु महीलां माहे क्यूं राष्या, बारे निकलवा न्ही दीए सो कोण वास्ते? तद सघलेइ हजुरीये अरज कीनी-माहाराज कवरजी ! प्रापर्नु करडा ग्रहांमे जनमीया। तीणथी वरस बारे सुधी महील मांहे राषे छ । प्रोहीतजी जोतसीए कहीयो छ । ग. अर रीसालु कहुपासने कह्यौ-मांन महला मैं क्युं राष्या छै, बारणे क्यु नीक- . लवा दे नही ? तदी धाय कह्यो-माहाराज ! आपरा घररो प्रोहीत वारां वरस तांई राष्या छ । घ. पर रसालुं कहा-धायनै पुछ्यौ--मांन महलांमै क्युं राष छ, बारै क्यु नीकलवा दै नही ? तदो रसालुनै धाय कह्यौ-माहाराज ! प्रापरा घर रै प्रोहितजी कहो–कुंवरनै बारै वरस ताई मैहलांमै राख्या छ । Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रोसालूरो [ ६५ दूहा- देषो छोरू(डू)मष सदा, माईत देषै मास बे। बार बरसरौ बंध करौ, राष्यौ माता निरास बै ।। ४२ एहवो माता-पिता तरणो, मोह जगतमे जांरण बे। मुझन केदतरणी बिधै, कीधो परवस प्रांरण बै ॥ ४३ सीह तणा जेवा बाछडा, किम बैधीया रहै बध बै। होणहार सो होयसी, विधना कामना अधबै ॥ ४४ पूत्र तरणी वांछा घरणी, होव जगमै जारण बै। . ईण थोडे हु जनमीयो, तो मुझ बंध्या प्रांरण बै ॥ ४५ तो इहां बंधमै सरचा, रेहवो उ जूगतो एह बे। . होणहार सौ होयसी, वूरी य भली को जेह बै॥' ४६ १२. Aवारता-ईण भातसू कुवर मनमै वीचार नै पचास मोहरांरो संकलो दीयौ न वरजै राषी-षवरदार, कठहि जाब काढजे मती। इसौ कहनै कुंवरजी उठ नै महिलां बारै आया नै चाकरान कहीयौ-जे श्रीमाहराज कठै वीराज्या छ ? तत चाकर बोलीया-कुवरजी साहबजी ! श्रीमाहाराज तो सीकार षेलण गया छै । त? इसो कुवरजी सूण नै महला हेठ उतरचा। उतर नै दरीषानै पधारया ।A Bसभा जोड तठै तिणही ज वार माहै राजाजीरौ प्रोहीत दरबार आयो । नाव अाजबादास छ । तीणनै प्रावतो देष न कुमरजी आदमीयान पूछीया-प्रो उजलायत आपण दरवारम कुण पावै छ ? तठे चाकर बोलीया-श्रीमाहाराज कुंवार ! प्रो घररो प्रोहीत छ । प्रापरी वेला लीधो तीको है । सो सूणन कुवरजी १. ४२ से ४६ तक के दोहे ख. ग. घ. प्रतियों में अप्राप्त हैं। A-A. चिन्हान्तर्गत पाठ के स्थान में ख. ग. घ. में निम्नांश ही उल्लिखित हैख. हीवे एकदा राजा समस्त सीकार चढीया। उठासु कुवरजी जाय दरीषांनो कीधो । ग. ध.-तदी रीसालुं म्हैलोमैथी उतरे बारनै दरीषांने पाया। राजा तो सीकार गया था। B-B. चिन्हित पाठान्तर ख. ग. घ. प्रतियों में निम्न प्रकार से उद्धृत है ख. एहवे राजरो प्रोहीत जोतषी छ, सो आदमी त्रीस-पेत्रीस लीयां दुरबार पावे छ । एहवे प्रोहीत पुछ्यो-जे दरोषाने डावडो कुण बेठो छ ? प्रोहीतजी ! ए माहाराजकुमार छ । तद प्रोहीत षीजने कहे--अबारुही ज डावडानु कांई उतावळी हती, बारे वरस मांहे मास ६ थाकता हता। Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी जाणोयौ-जैहि पापो उहि ज कुकरमारो करणहार छै। इतै। माहै प्रोहितजी सभाने देषने उला(ठा)पेला चाकरन पूछीयो-प्रो रे ! ओ छै(छो)करो कुण छै ? ईतरा आदमी कुं बैठाछ ? त, कुवचन सूणने चाकर बोलोया-प्रोहितजी ! श्रीमाहाराज कुवार दरीषांने पधारया छै। तटै प्रोहित वोलीयो-अरै आज कुंवर दरीषांणो कीधौ, सूं कोणरा हकमसं कोधो छै ? B - [इसो चाकरांनू सूणायनूं बडी ठसक राष नै कुवरजी कनै प्राय नै वडी रीस कीधी ने कहौ-कुवरजी ! इसा उतावला हवा सो तो मास इक घटै छै, पछ ही बारै आया हूंता । त, कुंमरजी बोलोया-प्रोहीत साहिबाजी ! थे मोन बारै बरस तांई महलांमै राषीया, ईसो कांई कारण जाणीयो ? ततौ प्रोहितजी बोलीया-जे कुमरजि ! नक्षत्र ग्रहांरी तरफंसू काम करयौ छै नै मास इक घटै छ, सौ वलै मलम राषस्यां । त, कुंवरजी बोल्या-प्रोहितजी ! इतरा दीनै रच हो सू घणी वात छै; अब पापा सारू कोई नई । तठे प्रोहीत बोलीयो-या वार तौ थाहरी कीतरीक वाता सारी वातम भोलो छ; थान पीण अबारू मला दाखल करस्या । तठ कुवरजी रीस कर न उठोया। हाथम सोनारो गुरजै हूती सौ प्रोहितजीरा माथाम दीवी ने कह्यौ-तुंम्हारै सीरायैत मारधम हुवो तो विर माहाराजरै वलै कोय नही ? पीण राजवीयांरै थाका सरोषा घणा छै । इसौ कहीयौ।] ग. घ.--तदि ईतरायकमै (घ. अतरामै) प्रोहित आदमी वीस-तीससुं प्रावै छ । तदी (घ. तदी कुंवर देष्यौ यो कुण प्रावै छै ?) उमराव कह्यौ--प्रो यापरा घररो प्रोहित छ । आपने बार बरसताई (घ. तांई मांहे) प्रणी राष्या छ। तदी प्रोहीत प्रापरा आदम्यांसु पूछयौ-नौ कुण बैठो छ ? 'तदी पादम्यां कह्यो--राजाजीरो बेटो रीसालुंजी छै ।' तदी प्रोहितजी षीज्या-छोकरांनै प्रबारू ज काई हुवो छै ? महीना पांच ‘पछ' नीकालणो। थो। -' चिन्हित वाक्य एवं शब्द घ. प्रति में अनुपलब्ध हैं। -] ख. ग. घ. प्रतियों में पाठभेद इस प्रकार है-- ख. तठा उप्रंत प्रोहीतजी प्राय (4) कुवरजीनु आसीर्वाद दीधो। तद प्रोहीतजी ने] कहे-प्रोहीतजी ! थे मांनु महीलां माहे वयं राष्या ? तद प्रोहीत बोल्यो-कुवरजी ! आपने करेडे नषोत्रे, क्रूर ग्रहे महीलांमे राष्या। तद कुवरजी कहे ना ना, मांनु तो थे राष्या छ । जदी प्रोहीत कहे -जामो, भे राष्या छ उने फेर राषसां । इसो सुण ने कुवरजीनु रीस चढी । हाथमे सोनारी गुरज हती तीणरी प्रोहीतरा माथामे दीधी। ___ ग.घ.-तदी प्रोहित 'पावी' प्रासरीवाद दोधो। अतरायकमै (घ. तदी) कुंअरजी बोल्या--क्युं प्रोहितजी ! बारा वरसां तांई 'मान' क्यं (घ. थे) राष्या था ? तदी प्रोहित कह्यौ-हुं कांई राष; नषत्र प्रमाण रह्या । तदी (घ. तदी कुंअर) कह्यौ-न, माने तो थे राण्या छ । तदी प्रोहीत कह्यौ-'ना' मै राष्या, नै फेर राष्या (घ. फर राष्या छै)। तदी कुअरजीनै रीस चढी । तदी हाथमै गुरज थी, तीणोरी माथामै पाडी (घ. तीणरी उपाडन माथाभ दीधी ।) -' चिन्हित शब्द घ. प्रति में अप्राप्त हैं। Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी A तरै प्रौयतजी डेरै थकसू डेर नाठा, सो रोही काणी नीसरयां। आगे माहाराज समस्तजी सीकार करने आंबारी छांह सरौव[र]री पांले विराजीया छै । तठे प्रोहीतजी जाय पूकार घाली-श्रीमाहाराजा ! श्रीराज ! आज कुमार महीलां बारे नीकल्यौ नै सभा जोड न बेठा छ। तठे हुजाय नै सोष देतो छो, तठे कुवरजी रोस करने माहारी आबरू गमाई नै मांहैरै माथामै सोनारा गुरजैरी दीवी। तठे राजाजी सूंणनै न रोस करनै बोलीया--देषो हो ठाकुर, अबार थको माहरा प्रोहितरौ माजनौ गमायो, इसो त ईण पूत्र वीना इ सारस ; सोनारी छ री पेटाम मारी न जाय, तो अबै कुअरनै काई करणौ। त? प्रोहीतजी बोलीया-माहाराज ! घरमै राषै सौ तो फेर कोई विघनकार हसी। इणनै नीनाणनै सीष देवो । त? राजाजी बोलीया-मांहरै इण कवररो काम नही, इणनै दसवटौ दैस्यां । देसोटा वीना कवर पाधरो हव नई । तठे उमरावां सूणनै श्रीमाहाराजनै कहैण लागाAदूहा- एवडी रोस ने कीजीये, बनै वास बहु दुष बै। बालक वयम नानडौ, देषो मती हिव मूष बै ॥ ४७ जो तुमै रीसवतां हवा, तो राषो घर माह बै। पीरण दीसोटी देवता, राजवीया नही राह बै॥ ४८ वस राज(जी)रो राषरणी, कुरण धरणी आयत होय छ । वनवास प्रती दुष घरगा, क्यां जांणां क्या जोय बे । ४६ राजा सूरणनै बोलीयो, मूष मूषती माहरौ बोल बै। नीसरधो ते साचो हसी, साचो प्रोहीजै बोलै बे॥ ५० A-A. ख. ग. घ. प्रतियों में निम्न लिखित पाठ है- ख. तद प्रोहीत जाय राजा पासे पुकार कीधी । तद राजा कहै-बारै नीकलीयां पहीले दोन घररा प्रोहीतने हाथ उपाइयो, पछे कांई करसी ? सोनारी छुरी तो पेट मारणी तो कही नही । माहरे इण बेटा सुं काम नहीं। ___ग. तदी ब्राहमण राजा नषै गयो, कह्यो-माहाराज ! रीसालु माहरै दीधी। तदी कह्यो-माहरै अण बेटासुं काम नहीं । तदी कह्यो-अणन म्हैलोमैसु नीकलतां तो वेला न हुई, दन पण को न हूवा अनै घररो प्रोहीत मारयो । अब कांई जाणां कांई करसी ? ऐसो मनमै चीतव्यो पर राजा दरबार पाया। घ. तदी ब्राह्मण संगला राजा नषै गया, पुकारया। तदी ब्राह्मण सगला बौल्या-माहाराज ! म्हांनै रसालु कुंवर मोनै मारयो । तदो राजा मनमै डरप्यौ-अब काई जाणां कोई • करसी ? इणीने महलांमै नीकलतां कौईक दोन नही हुवा, तदी घरांरा प्रोहितनै मारयौ। Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी उमरावा वरज्या घरणा, राज न मान्यौ कोय बै। वीधना लेष हवै तीकै, उ टले टलीया टलाय बै ॥ ५१ होणहार सौही ज हूवौ, स्यारणपथी क्या होय बै। राजा कोपे भी भरचौ, वरजण सकौ कोय बै॥* ५२ १३. वारता--Aईण भातसू उमरावा घणाई वरजीया, पीण रीसरै वसै राजा वाद चढीयौ थको कालो घोडो, कालो सीरपाव लै नै आपरा जीव-जोगरा आदमीयानै साथै मेलीया न वले राजांजी कहीयो--करडांवरणे करै तौ माटी पण काढेजौ कुवरनै काढसौ; तद दरवारमै आवस्यौ ।A ____B इतरौ सूगनै सीरपाव ले नै दरबार आया । प्रागै कुवरजी आदमीयानै देष न मारी जूलसाई देषी । देषनै मनम विचारीयौ--दीस छै प्रौहितरो उपगार हुवौ । इतरो वीचार करता आदीमी कुवरजी साँमा आया नै मूझरौ कीयो न बोलीया--श्रीमाहाराजरो हुकम हुवौ छै-आप औ सीरपाव कीजौ, इण घोड चडै नै वनम पधारीजै । इसा समाचार श्रीकवरजी सूंणनै सारा ही साथसू मूजरौ करी नै बोलीयौ--बाबा ठाकुरै, बाईजी साहिवारौ हुकम प्रमाण न करू तौ हरामषोर वाज; तीरणसं आबै सारे ही साथसू राम राम छै; परमेसर मीलासी तरै मीलस्यां । इतरो कन घोड असवार हवा ने सीरपावस हेत कीयो, राजारो मोह छोडीयौ । तरै प्रापरी धाय माता वलै षवास, पासवान सूनणे (णनै) दीलगीर हूवा पोंचावान साथै चलीया । सारा ही नगरमै षवर हूई । हिवै कुवरजी सारा ही साथसं सेहररे दरवाजे आया । तठे प्राबै वीछडतां आपरा सनैई कुवरजीने कहै छै B * ४७ से ५२ संख्या वाले दोहे ख. ग. घ. प्रतियों में अप्राप्त हैं। A-A. चिन्हान्तर्गत अंश का पाठान्तर ख. ग. घ. प्रतियों में निम्न रूप में वर्णित हैं ख. इसो चीतवी राजाई चाकरी साथे कालो घोडो, कालो सीरपाव, त्रीपांनीयो बीडो मेलीयो, कहीजे-राजा मां जोग नहीं। ग. अर चाकर हाथ तीन पानको बोडो मोकल्यौ । कालो घोडो, कालो सरपाव दे ने देसोटो दीधो-थे मां जोगा नहीं। घ. तदी राजा चाकरी हाथै तीन पानरौ बीडो दीधौ । तदी कालौ घोडौ, कालौ सीरपाव दे नै सीष दीधी। B-B. ख. ग. घ. प्रतियों में चिन्हित अंश इस प्रकार है Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रोसालूरी [ ६६ दूहा- सीधावौ सोध करो, पूरौ थाहरी पास थे। जतन करजी मारगा, माने कीधी नीरास बै ॥ ५३ राज विना दिन जावसी, सो इक मास समान वै । पीण थे मांन मत भूलज्यो, 2 म्हारै जीवन-प्रारण बै ॥ ५२ थांसू कटती रातड़ी, रहती मै धरणीयात बै। हिव मे परवस होयस्यां, कीरगसू करस्यां वात बै॥ ५५ ईम केहतां प्रांसू ढल्या, वीलषा सारा साथ बै। कुवरजी मील मील रोईया, सह हुवा अनाथ बे ।। ५६ साथ घिरयौ पूठो हीवै, कुवरजी मारग जाय वै । मनमै चीत धीरपै, लेष विधाता प्राय बै ॥ ५७ देषो सूषम दुष हुवौ, होणहार सौ होय बै। ही वेलारै रांणी तो कठिन छै; पिण आपरै अ(प्र)साद सारो हि जाब हुय जासी। दुहा- गोरषनाथजीरी सेवा करी, दीधा पासा हाथ बे। जाउ कुवर रीसालूवा, वेगो परण घर प्राव ५८ ख. तद चाकरे प्राय कुवरजीनु तसलीम कर बीडो नीजर कीधो। तद रसालुए जाण्यो-राजाई मानु सीष दोधी दीसे छ । एसो वीचार आप बोडो वांद ने एकलो घोड़े असवार होयने चालीया । कोणहीने कह्यो नही । तीण समीए धाय जाय कुवरजीरी माताने कहीयो- प्राज राजाजी कुवर रसालु उपर रीस कोधी, देसवटो दोधो । तद माता इसो सुणने पाणीपंथो घोडो, तोबरा दोय मोहरासु भरने दोना । रसालु मातारा महीलां नीचे होयने आगे नीकलीयो- तद माता रसालुने देषने काइ कहे छ ग. तदी रीसालुनै तो आगमच षबर पड़ी-मोनै सीष दीधी। तदी कोणहीने पुछयौ नही । एकलो असवार होवे नै चाल्या । माउनै ठीक हुई-रीसालु कंवरने देसोटो दीघो। तदी माउ ऐक पाणीपांथो घोडो दोधो । तोबरा दोन मोहरांरा भरे दीधा। रीसालु माउरा गोषडा नीचे नीकल्यौ । माता रीसालुनै कांई कहै--- घ. तदी कुणीने पुछो नही । तदी असवार होयनै एकलौ चाल्यौ। तदी माउ कणीने पुछयौ । तदी धाय कह्यो-माउजी ! कुवरजीनै देसोटी दीधौ । माउ तदी घोडो १ पांणीपंथी दीघो। तोबरा दोय मोहरांका दीधा । तदी रसालु मारा मैहलां नीचे नीकल्यौ । रसालुने मांउ काइ कहै A. ख. ग. घ. प्रतियों में ५३ से ५८ तक के दोहों के स्थान पर गद्यपद्यात्मक अंश इम प्रकार उपलब्ध है Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० ] बात रीसालूरी ख. दुहा-पीउ रे दुध रसालु पा, रुडा रे सुकन मनाय बे। रसालु चाल्या परणवा, वेग परणी घर प्राय बे ॥ ७ रसालुवाक्यं माय वीडांणी पीता पारकां, हम ही वीडांणा जाय बे। षेवटीयाकी नाव ज्यु, कोइक संजोग मोलाय बे ॥८ तद माता मृग प्रते कांई कहे छकाला रे मृग उजाड का, रसालु पाछा फेर बे। सोवन सोग मढावसु, गले रुपारी डोर बे॥६ रसालुवाक्यं हीरण भला केहर भला, सुकन भला के सोम बे। उठो र अरजुन बाण ल्यो, सीध करे श्रीराम बे ॥ १० वारता-इतरो कहे रसालु पाघा चाल्या । वनषंड सार षडीया । प्रागे धनगहनमे जातां संध्या समीए जुगर उपर प्राग बळती दोषी । तरे रसालु घोडो तले ही बांधी, डुगर उपर पालो चढीयो । उचो चढने श्रीगोरषनाथजीनु भेट्या । तद श्री गोरषनाथजी तुष्टमांन हुआ, कहीयो-पाव बचा ! मांग मांग, हु तुठो। तदी रसालु कहे-माहाराजा साहीब ! आपरी दीधी सारी दोलत छ, पीण समुद्ररे पेले कांठे राजा अंगजीत राज करे छे, तीण अंगजीतरी बेटी परणु, सो घर द्यो। तद श्रीगोरषनाथजी अनलपंषोरी नलीरा पासा दोधा; जा बचा ! तु इण हमारा पासासु चोपड पेलजे; तु जोपसी । रसालुए तीन सलाम कर पासा उरालीधा। दुहा--गोरषनाथजी सेवा करी, लोधा पासा हाथ बे। जाज्यो कुवर रसलामा, वेगा परणी घर प्राव बे॥ ११ ग. दुहा-पीया दुध फली करो, (रोसालुवा)रूडा सुकन मनाय थे। रीसालुं चाल्यौ परणवा, वेग परण घरी प्राव बे ॥ ३ रीसालु माताने फेर पांछो कांइ कहैदूहा--माथ षोडाणी बाप बड, हम ही मांझ वडा। षेवटीयाकी नावजूं, कोईक संजोग मीलाव बे।। ४ मातावायकदूहा-काला मृग उजाडका, रीसालुं पाछा फेर बे। सोवन सीगी मढावसु, रूपाकी गल डोर बे ॥ ५ तदी रोसालुं मगनै काइ कहैदूहा-हीरण भला कैहर भला, सुकन भला कै स्याम बे। उठो उरजण बाण ल्यो, सारैगा सब काम बे।। ६ अथ बात- ईतरी वात अतरो कहै रीसालुं आघो चाल्यो । आगे दे तो रीसालुं डुगरी उपर माग बल छ । बलती दोठी तदी डुगरी चढयौ । पल मेल्यां थका गोरषनाथजी बैठा छ । पगे लागा। गोरषनाथजी कह्यो-रे बच्चा ! मांग, मांग, तुष्टमान हुवा। तदी Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७१ बात रीसासूरी [१४. वारता-ईसौ. समाचार सूणनै श्रीगोरषनाथजीरे पगे लागौ नै कुंवरजी घोड चढनै प्रभाते चालीयो । सो समुद्र तीरै गया। त, समुद्र उपर पाणीपथो घोडो चलायो सौ पार पूहंता। रीसालु कह्यो--माहाराज ! प्रापरी दीधी सारी दोलत छ, पिण एक मांगु छु–समुदरर पैले कांने राजा प्रांगजीत छ, तीणरी बेटी हूं परणु । तदी गोरषनाथजी नलीरा पासा काढने हाथ दीधा । अणी पासासू लजै । जा बचा ! जीतसी। तदी रीसालु पगे लाग नै पासा लीधा गोरषनाथजीवाक दहा---गोरषनाथजीरी सेवा कीधी, दीधा पासा हाथ बे। जा जा कुंवर रोसालुवा, वेग प[२]ण घर प्राव बे।। ७ घ. दुहा---पीया दुधा थली करौ, (रसालु) ऊठा होसुसुकनवां दीवे वे । रीसालु चाल्यौ परणवा, वेग परण घरी प्राव बे॥ तदी रीसालु माउनै काइ कहैमाय वडारण बाप वड, हम ही माह जी वडा । षेवटीया षीवै नाव ज्यु, कोइ क संजोग मीलीया ॥ ३ तदी माता मृगलानै कांइ कहैकाला मृग उजाडका, रीसालु पाछो फेर बे। सोवन सींग मढावसु, रूपाको गल डोर बे।। ४ तदी रीसालु फेर काई कहैदहा - हरण्या भला कैहरी भला, सुणी भला कै स्याम बे। . उठो राजन बांण ल्यो, सरैगा सब काम बे।। ५ अतरा बोल वचन कहै नै प्राघो चाल्यौ । प्रागै डुगर उपरै प्राग बलै छै। आग बलती दोठी तदी डुगर उपर चढयौ । तदी गौरषनाथजीने दोठा । तदी एक पगवरांणौ सवा पोहर ताई सेवा कीधी · तदी गौरषनाथजी पल उघाडी नै कह्यो रे बचा ! तु बैठ। तदी रसालु पगां लागौ । तदी गौरषनाथजी तुस्टमांन हूंवा । तदी रसालु बोल्यौ-माहाराज ! श्रापरी दीधी भारी दौलत छै, पीण एक वात नांगु छु–समुद्र तटै अपजीत राजारी बेटी हुँ परणु । तदी गौरषनाथजी नलोरा पासा करे दीधा। अणी पासासु खेलजे, जा बचा ! जीतसी । तदी गौरषनाथजीकै पगे लागौ, पासा लीधा । तदी गौरषनाथजी कोई कहै-- गोरषनाथजीवाक दुहा-गोरषनाथजीरी सेवा कीधी, दीधा पासा हाथ बे। जा बचा तुजीतसी, वेगौ जीत घर प्राव बे॥६ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ ] बात रीसालूरी दूहा- समुद्र घोडै चालीयौ, पाणीपंथौ जाय बै। नीरै प्राय न उतरयौ, नगर नणे निरषाय बै । ५९ हिवे कुवरजी हालोया, प्राया नदीया मझार बै। प्रागै अचंभम देषीयौ, चमक्यौ चित मझार(ब) ॥ ६० १५. वारता—इतरे कुवरजी नदीमै पाया। आगै देषो तो घणा रूंड-मूड मिनषारा माथा पडा देषीया । तठे कवरजीन रूड-मूड माथा हसीया। त? कुवरजी वोलीया-रे रूड-मूड ! हसीया, जिणरौ कारण वतावो । त? माथा कहैदूहा- कुण तु इहा पायो अठै, किरण ठांमें किरण ठोर बै। कीहांथी आयो कीहां जावसी, साह अछ किन चोर बै॥ ६१ इरण देसै तु प्रावोयौ, मारणसषारणौ देस बै । प्रो सोर ताहरो तूटसी, तुम हमरा कन पडसी आय बै ।। ६२ इण कारण हसोया अमे, अब तुताहारो बोल थे। मे साचा तुझनै कही, चोकस थांरी पोल बे।। ६३] [-] १४ वीं, १५ वी वारता तथा ५६ से ६३ तक के दूहों का पाठ ख. ग. घ. प्रतियों में निम्नाङ्कित है-- : ख. वारता- रसालु सलाम कर नीचो उतरचो । इतरे प्रभात हूओ। घोडे चढ प्राधो चाल्यो । चालता चालता कीतरेके दीने समुद्र प्रायो। नावमे बेसने समुद्र पार उतरया। प्रागे अगजीतरो देस प्रायो। प्रागे चालता राजा अगजीतरो सहीर प्रायो। तीण सहीर कनारे रसालु गया। दरवाजा कने मनषांरा माथा पड्या छ। तीके माथा रसालुने देष ने हसवा लागा । रसालु पूछयौ-थे क्यु हसो छो ? माथा कहे- इतरा माथांमे थारो मांथो प्रावे पडसी। मस्तकवाक्यं क्यु चाल्यो रे मानवी, माणसषाणा देस बे। प्रो सीर थारो तुटसी, पाय पडसी हम पास बे ॥ १२ ___ ग. अथ वारता- अतरायकमै रीसालु असवार होवेने चाल्या। चाल्या चाल्या समुद्र पार हवा । तदी अंगजीत राजारो सैहर आयो । प्रागे दे तो मनषारा माथा पड्या छ । जके माथा रीसालुनै देष नै हसवा लागा । तदी रीसालु कह्यो-थे क्यु हंसौ छौ ? तद मुंडीक्या कह्यौ-मांका अतरांका माथा पड्या छ, तणीमै थारो पोण माथो पडसी । तदी मुडका फेरे रीसालुनै काई कहै मुडीवाक्यं दुहा- कांहां चालो रे राजवी, माणसषाणो. गांम बे। सीर थारो पीण तुटसी, तु प्रासी माहरी ठाम बे ॥८ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी [७३ १६. [वारता-ईसा समाचार कुवरजी सूणनै माथायूँ कहै छै-हु तो अगरजी राजारी बेटी परणवा पायौ छ, राजा समस्तरो बेटौ छ। अठै माथा वढ छ, तिणरो कारण काई छ ? त? माथा कहै छै-अरे रीसालू कवर ! राजारा पोलरा मूढ प्रागै नोबत द(ड)को देवै छै, सो हार-जीत कर छै। हार, तिणरौ माथो वाढनै अठ नाष छ । सो इतरा माथा इण रीत भेला हुवा छै। सूं इतरा माहलो काई जीतो नही । सो तु पीण जीतौ कोई नई ।] त? कुवरजी माथांन कहै - दूहा- म्है राजा राजवी, म्है रावां उमराव' बै। के तो सीर द्यां प्रापरणौ, क राजारो ल्याय बै॥ ६४ म्हे मारचा किरण रांमरा, ईरण रोते ईण ठोर बै। जीतने परण्या सूदरी, राजासूं कर जोर बै ॥ ६५ १७. वारता-इसा समाचार माथान कह न चाल्या सहर तुरत । सेहरमै जाय नै किल्लैरै दरवाजे जाय ने उभा रहिया। नोबतरो डंको दीयो। एक दोय डंको देत प्रमाण राजा माहै सूण्यौ। मनमै जांणीयो-कोई क तो आजै राजा फेर आयौ छै । मनमै राजी हूवौ अबार जीत लेसू । इतर रीसालूरौ डंको सूणत प्रमाण राजा अगरजीतजी जाणीयौ कोई क तो रमवावालौ आयौ। त राजा बार नीकल नै नोबतषांन अायौ। कवरजी मुझरौ कीयौ; माहोमांह भीलीया । राजा अगरजीतं पूछीयौ-कठासू प्राया, कोणरा बेटा नै थे क्यूं आयाछौ ? तठे रीसालू बोलीयौ-माहाराज ! सेरसू आयो छ । राजा समस्तजीरौ बेटो छ । मांहरौ नाम रीसालू छ। थासू चोपड जीतवा आयां छां । ईसो कहीयो । घः तदी रसालु असवार हूई चाल्या । रसालु समुझा पंसार हुवा। तदी प्रागै अपजीत राजारो सैहर प्रायो । तदी अगजीत राजारा संहर पाषती मनुषना माथा पड्या छै। तहां रसालुन देषी ने हस्या । तदी रीसालु कहियो-थे कुं हस्या? अतरा मांका माथा पड्या छ, पणथमांको परणाथी अठ पडसो । फेर मुंडचाक्यां काई कहै.--- दुहा- काहां चाल्या वे राजवी, माणसषाणो गांम बे। सीर थारो पीण तुटसी, तुं प्रावसी ईण टांम बे। [-] कोष्ठान्तर्गत पाठ ख. ग. घ. प्रतियों में अप्राप्त है। १. ख. रसालु वाक्यं । ग. तदी रीसालुं मुंडीक्यान काई कहै। घ. तदो रोसालुंकाई कहै। २. ख. में। ग. मेह । ३. ख. में नहीं है। ग. मेह। ४. ख. उपरला राव । ग. घ. उपरलो राव। ५. यह दूहा ख. ग. घ. प्रतियों में प्रप्राप्त है । ६. १७वीं वार्ताका गद्यांश ख. ग. घ. में इस प्रकार है Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी *तठे राजा अगरजीत बिछायत कराय ने चोपड मगाई। रमवा बेठा तठे हारजीत कीवी। कुंवरजी कहै-म्हे हारा तौ पाणीपंथौ घोडौ परा देवा, थे हारो तो ईसडौ घोडो उरो लेवां । इसो कोल करनै रमवा बैठा। तठे राजा अगरजीत बोलीयौ । पछै दूजी रांमत वले मांडी। त? राजा अगरजीत बोलीयौतठे सीरपावरो साटौ कीयौ। तठे वले कंवरजो हारीया। त? तीजी गंमत मांडी। त? राजा अगरजीत बोलीयौ-अबै कोई हार-जीत करस्यौ ? जौ म्हौ हारीयौ तौ मांहरौ माथी थे लीजौ न थे हारीया तौ थाहारौ माथौ में लैस्यां । ईसी हार-जीप कीवी । तठे कुवरजी वोलीया-दूरस छै । आप कहौ सौ परमाण छै । पिण प्राव(प)तो मोटा छै । इण वातरौ लीषत करवौ, साष घालौ। तठे राजा अगरजीतजी लीषत करायौ। हार-जीत करा सू सघ लोया । त? कुवरजी लघुलाघवी कला सू गोरषनाथजीरा पासा काढ मेलीया, आगला छीपाय लीया । हिवै सायदवाला प्रायने बेठा छै । जीवततम झूठ बोल नही, झूठी साष भरे नई। इसडा आदमी षांणदानरा बेठा छ । तठे दोन ही चोपड रमतां कुवरजी श्रीगोरषनाथजीरा परतापसू जीतीया । सारा ही साष भरी। ख. रसालु इतरो कहे ने सेहर माहे गया। नोबतषांने जाय डंको दोधो। फेर दोय, तीन डंका दीधा । षेलवाकी तलासमे रहे। जद राजा अगजीत जाण्यो-आज दोय तथा तीन जणा पेलणनु प्राया दीसे छे । जद राजा अंगजीत जोमतो उठी रसालु कने प्राया, जुहार कर मील्या। __ ग. अथ' रीसालुं कह्यौ अर' प्राधा चाल्या सहरमै प्राया,६ बरबार पाव्या', नोबत नर्ष गया। कोई राजासु षेलवा प्रावै, 'ततरा डाका नगाराकै दै', जतरा जांणे ० षेलवा श्राव्या' । तदी रीसालू१२ जातां ही 3 डाका दोधा । (तदी राजा अंगजीत जाण्यो-प्राजे जणा दोन-तीन षेलवा सारूं पाया दीस छ। तदी राजा जीमतो'४ उठ्यो, रसालुं नषै प्राया। घ. १. अतरो। २. कहै राजा। ३. नहीं है। ४. प्राघो। ५. चाल्यो । ६. रसालु सहरमै प्राध्यौ । ७. गयौ। ८. दरीषांने जाय बैठो। '-'. जदी दोय तीन डाका दे। ६. तदी। १०. जाणे कोई राजासुं। ११. पायो छ। १२. रसालु । १३. जाय दोय-तीन [-] नहीं है । १४. जीमता। *-*, ख. ग. घ. प्रतियों में चिह्नित अंश निम्न रूप में प्राप्त है ख. पछे ष्याल मांडीयो । तद रसालुए पेली रांमत तो घोडो हारयो । बीजी बाजी मोरारा तोबरा दोय हारया । तीजी बाजी फेर मांडी। तद रसालुए राजारा पासा परा छीपाया । श्रीगोरषनाथजीरा दीधा पासा काढ्या । राजा अगरजीतने कहे--प्रबे कीण वातरी हार-जीप करसां ? तद रसालु कहे-माथारी हार-जीप करसां । तीजी बाजी रमतां थका रसाल जीतो। Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी [ ७५ [त, कुवरजी बोलीया-हिवै माहाराज माथो दीरावो । त, राजाजी बोलीया- म्हारो माथो परो देसू थान; पिण आप राजी हूँ वो तो राजलोकसू मीलीयात् । तकुवरजी बोलीया--दुरस छ, भलाई मीली प्रावौ । ईतरौ संणनै राजाजी मांहै गया। रांणीयासू मीलीया । सारी हकीकत कही । त? रांणी दलगीर हुई । तरै राजाजो दुहौ कहै छै]दुहा- उची मीदर मालीया, अवल सेझडली रूप बै। रिद्ध भंडार ए देसडो, तो सरसी रांणी नप बै॥' ६६ सारा विडारणा हिव हवा, जासी हमारा सीस बै ॥ सोस घरणारा डूंचीया, अब पाया मूझ चोर बै ।।२ ६७ रांणीवायक्यं किरणस्यूं राजा थे रम्या, किरणथी बाजी अनूप बैः । मैं थांनू राजा' वरजीया, मति पेलौ वाजी' भूप बै ॥ ६८ राजावायक११ होणहार सौ१२ नही मिटै' 3, लैष लिष्या छैठो१४ रात बै। भलो बरो१५ सहमांहरौ१६, करसी विधाता मात बै ॥१७६६ ग. घ. ष्याल मांड्यो (घ. दरोषांना उपर चौपड मांडी, व्याल मांड्यौ)। पहलि तो (घ. तदी पहला तो) घोडो हारयो । पछै मोहरांरा भरया दोय तोबरा हारया (घ. पर्छ तोबरा दोय मोहरांका हारचौ) तीजी (घ. पछै तोजी) बाजी मांडी। राजारा तो पासा छपाडे मेल्या (घ. छोणडे राज्या)। गोरषनाथजीरा दीधा (घ. गोरषनाथजीरा) पासा काढ्या । तदी कह्यौ-अब कांई लगावस्यां (घ. पछै ख्याल मांड्यौ। राजाजीरो माथी लगायो । रसालु कयौ हुं पीण माथो लगावसु)। तीजी बाजी रीसालुं जीता (घ. तदी रसालु वाजी जीत्या।) [----] कोष्ठवर्ती अंश ख. ग. घ. में निम्न रूप में वर्णित है.--- ख. तद राजा अगजीतने रसालु कहे--थारो माथो दीयो । राजा कहे--माथो त्यार छ, पीण थे एक बार मनु राजलोकमे जांणद्यो । रसालु कहे--भलाई पीधारो। जद अगजीत राजालोकमे जाय रांणीने कांइ कहे छ । राजा वाक्यं-- ग. घ तद राजाने कह्यौ-माथो ल्यावो (घ. ल्याव) । तदी (घ. तदी राजा) कह्योऐक वार (घ. मोनै एक वार) राजलोकांमै जावण द्यौ (घ. जावा द्यौ)। तदी रीसालुं कहो-भला (ध. में नहीं है) । तदी राजा अागजीत कह्यौ-हुं छु, राजा चाल्यो (घ. तदी राजलोकमै जाय कहै । अंगजीतवाक्यं १. २. ख. ग. घ. प्रतियोंमें उक्त दोनों दूहों के स्थान में निम्न एक ही दूहा उपलब्ध है ख. उंचा महिल'८ प्रावास हे, गया हमारा छूट १६ ब। सोर हमारा जीतीया, प्राया परपंडी२० चोर बे।।। ३. ख. रांगी वाक्यं । ग, घ. रांणी (घ. तदी राणी) कांई कहै । ४. ख. ग. घ. कोण Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ ] बात सारी समस्तसूत' रीसालूबोर, श्रीपूरनगरका राव बे । बेलत बाजी हारीयो, जीता हमारा डाव बे ।। ७० रांणीवायक 5 रांगी कहै सूरण रावजी, " म करौ चिता" काय " बै 1 सूकरणी हू बुध थी, 13 काज करेस्यू समाय बै१४ ॥ ७१ ૧ ૨ १८. वारता -- Aईसो राजाने रांणी कहीयौ । राजी राजी हूवौ । तठै राणी प्रापरी दासीने बोलाय नै कहै - समस्तरायरौ बेटे रीसालूंने जायने केहजे - श्रीकुंवरजी साहैवा ! रांगोजी कहै छै मांहरी वडकुमारपुत्री प्राप दीधी; आप परणीज ने घरे पधारो । माहाराज कुंवर ! भला ही पधारया मारो भाग जाग्यो; मार तो राजा बाला सगा छो; येक मारी कीन्या परणी । ईसौ सूणने वडारण बारे प्राय नै कुवरजीनू कहीयो — माहाराजकुंवार ! रांणीजी आपन आसीस कहिछे ने वडी बेटी ने इनात कीवी छै, सौ आप परणीजौA | 19 । ५. ख. राजद हारीया । ग. घ. राजा हारीयो । ६. ख. कोणने दीया अनुप बे ग. घ. कोण नवे दोश्रो सोस बे । ७. ख. यांने । ग. घ. तोने । ८. ख. राजींद। ६. ख. ग. ध. मत । १०. ख. ग. घ. तुम । ११. ख. ग. राजा वाक्यं । १२. ख. ग. सो (ग. तो ) रांणी । १३. ख. मोटे । ग. मटै । १४. ख. ग. लेष (ख. लेषे ) लीच्या (ग. लव्या) छठी । १५. ग. भला बुरा। १६ ग. माहरा । १७. यह दूहा घ. प्रति में नहीं है । १८. ग. घ. म्हैल । १६. ग. घ. छंट । २० ग. षंड । घ. बग । १. ख. ग. समसतसुत । २. ख. रसालुप्रा । ग. रीसालुंग्रा । ग. जीतीयो । ४. ख. उण जीत्या । ग. जीत्या । ५. ख. ग. सीस । दूहा । प्राप्त है । ७. ख. रांणीवाक्यं । ग. तदी रांणी कांई कहै ८. ख. ग. घ. राजवी । ६. ख. थे मत । ग. घ. मत । १०. ग. घ. ग. घ. राज । १२. ग. हूं सुकलीणी । घ. जौ सुकलीणी । १४. ख. तो करु तुमारो काज बे । ग. घ. करूं तुंमारा काज बे । A - A. ख. चिन्हित श्रंश ख. ग. ग. में दासीने बुलाई कहीयो - थु जाइने रसालुने करसो ? राजा श्रगजीतरी बेटी परणो । तरे ६. यह दूहा घ. में घ. में नहीं है। सोच । ११. ख. १३. ख. ग. घ. श्रसतरी । ३. ख. हारीया । इस प्रकार हैं- रांणी राजा प्रते इसो कहेने कहे- कुवरजी ! थे राजारो माथी लेने कांइ दासी प्राय रसालुने इसो जाब कह्यो । ग. राजा राणीने ऐसो कह्यौ । दासीने बुलावे कह्यौ -- रसालुं न जा कैहजे -माहाराज ! भलां पधारचा, मांहरे माथ भाग्य; श्राप पधारचा तो कन्या परणो । घ. तदी राजाने कह्यौ । कहै नं दासीने बुलाई । रसालु नर्षे जाय कहै – ज्यो राज ! भलां पधारीया, माहरे माथे भाग्य; राज ! कन्या परणौ । माहा Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी [ ७७ [कुवरजी इसौ सोणने बोलीया-थे कहो सो परमांण छै । पिण मार एण वातरी षस कोई नई ने वलै कुवरीनी मथै घणा आदमी मुंवा, सौ पा कुवरी माहा पापणी छै; सौ म्है इणरो मूढो देषा नई । इसौ सूणन दासी पाछी जायन रांणीनै हकीकत कही। तठे वले दासीन रांणी कह छै—जा, तु कवरजीन कजैश्रीमाहाराज कुवार ! परणीजो, न आप माथो लेस्यो तीणनै आपने हाथमे काई आवसी ? माहरो राज षराब हूय जासी । श्राप सगै छो, षत्रीवस छो। इतरो अरजै मांहारी मांनो । तठे कुवरजीनै दासो सारा समाचार कहीया। तठे कुवरजी बोल्या-दुरस छ, पिण ईन तो म्हे कोई परणीजा नही नै दुसरी कवरी हव तो परणाय देवो, नही तर मै परा जासा । त? दासी बोली-माराजकुवांर ! दुजी तो वेटी मास दसरी छै, सो वालक छ। तिका था परणावा कूकंर ? त? कुवरजी बोला-मानै दस मासरी डीकरी परणावोजो। म्हारे कौइ अटकाव नही । ] A तठे दासी सूणने रांणीनै कहौ। तठे रांणी मास दस री कन्यारो व्याव कीनो । घणा कोड कीया। सूसरै जमाइने घणी प्यार वध्यो। हीव कुवरजी दिन २० रह्य सीष मागी । त? राजाजी बौल्या-कूवरजी साहब ! इतरा वेगा पधारो, तिणरो काइ जाब जाणीजै ? तठ कुवरजी कहीयौ-श्रीमाहाराज धीरजै. [--] ख. ग. घ. प्रतियों में निम्नाङ्कित पाठ है - ख. तद रसालु कहे-इण हत्यारीरो नाम मत लीयो। इणरे वास्ते घणा पुरस मुना छ । सो नही परणां । तदी दासी कहे- मे तो कन्या परणावारे वासते करता हता। माथो लीयां राजरे हाथे कांइ पावसी ? अर प्रो गुनो माने बगसीस करो पर आप परणो । रसालु कहे-या तो कन्या न परणां । दुजी वे तो परणां । इसो समाचार दासी प्राय रांणीनु कह्यो। रांणी कहे-दुजी कन्या तो मास छरी छ । सो परणे तो परणावा । दासी जाय रसालुने कहो-दुजी कन्या तो मास छरी छै । तदी रसालु कहे उवाहीज परणसां। ___ ग. घ. तदी (घ. तदी रसालु) कह्यो-'कन्या तो नही परणां' ('-' घ. में नहीं है) अणहुँतसरी कन्यारो (घ. ईण हत्यारीको) नाम ल्यो मति । राजाको माथो ल्यावो। तदी (घ. तदी दासी) कह्यौ (घ. कही)-माहाराज ! माथो लीधां कांई हाथमै पावसी ? 'माने गुनो बगसो' ('-' घ. में अप्राप्त है) थे कन्या (घ. राजकोन्या) परणो। तदी (घ. तदी रींसालु) कह्यौ-या तो नही परणूं, ओर कोई होवे (घ. हुवै) तो परचूं। 'तदी रांण्या कह्यो--माहाराज ! मे तो ईणरै वास करता था' ('-' घ. में यह पाठ नहीं है)। तदी रांणी कह्यौ (घ. कयौ)-पोर तो छ मासरी छै (व. और तो मांह सरीषी छै)। . 'तदी रांणी प्रो कहो' ('-' घ. में नहीं है)। तदी रीसालूजी कह्यौ (घ. रसालु कहीयौ) वाहीज (घ. उवाहीज) परणस्यां (घ. परंणसु)। Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ ] बात रोसालूरो म्हारै बारै वरस वनवास करणौ छ। सो तौ कोया ही जा(ज)वरणसी। तीणसू मानै सीष दीराइजै, ठीक लागसी। तरै राणोजी. कहायौ-कुवरजी साहब ! वालक कुवरी छै । सौ थै लै जावो तो थाहरी सला छै अने रिण देवो तो मोटी वात छ । त, कुवरजी कहीयौ-थे कहै सो दुरस छै, पीण मेह तो लेजावस्या । दाण-पांणी छै तो मे वेगा ही मीलसा । त? टीको औझणौ करने कुवरजीने सीष दीवी । ही कुंवरजी राजाजीसं मीलनै घोडे चढीया । तरे वाइनै साथै चलाइ कुवर रीसालूजी च्याल्या जाये से । वाछेथी रांणी सोकरीने करौ-जायो, वाइने ले प्रावो, जूं वाइने धवरावा । ती वारे दासी ग्रावने कह्यौ-बाइ तो सासरै पधारीया । त, रांणी दूही कहो छैAदूहा' -जलज्यो' पासा पेलणा, जलज्यो पेलणहार बे। दस मासारी ह डीकरी , ले गयो कुवर सार' बे ॥ ७२ A-A. चिह्नित अंश की वाक्यावली ख. ग. घ. में अधोलिखित है ख. तदी राजा अगजीत पंडीतांनु बुलाया । आछा लग्न जोवाया। पाला-नीला कलस कर घणा ऊछावसं रसालुने परणाया तठे कुवरजी दीन १५ रह्या, चालवारो कह्यौ-जेउ जणो प्रांणो करबो, मॉने सीष दीयो; मारे अस्त्री मां साथे मेलो। तद राजा अगजीत कहो-बाइ नांनी छ, मोटी होसी जद मेलसां । जद रसालु कहे-प्राणो त्यार करावो, ज्यु चाला। तदी राजा अगजीत पोतारी रांणी छांने प्राणो करायो । बाइने वोदा कोधी । रसालु सारा सीरदारासुं मील, घोडे असवार होय वीदा हुआ चाल्या जाए छै। पुठाथी अगजीत राजारी रांणी दासोने कहे--- बाईनु ल्यावो, ज्यु दुध पावां धवारां । तदी दासी कहे-बाइजी तो सासरे पधारया। रांणी कहे-बाइ नांनी छ । भुष लागी होसी, मा वीगर कोम कर रेहसी ? तदी दासी कहे-काइ वीलाप करो छो ? रांणी कहे-- पेटरी उपनी छे, तीणी मोह आवे छे। ___ ग. तदी रीसालुजीने परणाव्या । घणा महोछव कीधा । दन दस रहे ने चालवा लागा तदी कह्यो-माहरी परणी मां साथै मेलो। तदी कह्यो-बाई नांनी छ, मोटी होसी जदी मेलस्यां । जदी रीसालं कह्यौ-मे तो लेई जास्यां । तदी बाईने साथ ले चाल्या। बाईने साथै दीधा । तदि रसालु मनमै चितव्यो—अगजीत राजाने उरो बुलावो, अब तो सगा हवा छां । रांणीने कह्यौ--- थारा राजाने उरो बोलावो, माहोमाहे जुहार करां, मेल करे नै मे चाला । तदी रांणी कह्यौ-मोटा छो, बहुजाण छो, राणीनां थे राजानै कहो। राजा रोसालुं माहो माहे जुहार कीधो, घणो रस रह्यो। रीसालुंजी चाल्या तदी रांणी दासीन कह्यो-बाइनै ल्यावो, धवाबु । ते दासी कह्यो-बाई सासर गया। ___घ. तदी रसालुनै प्रौछव-महोछव करेने परणायौ। दन १० तथा वी[स] २० सु चालवा लागौ तदी कहे-माहरी परणी मो साथे मेलो। तदी मा को-बाई नांनी छ, मोटी होसी जदी मेलस्यां । तदी माउ दासी कह्यौ- बाईजी तो सासर गया। तदी माउ कांइ कहै-- । १. ख. रांणी वाक्यं । २. ग. जलयो । घ. जलयो। ३. ग. घ. जलजो। ४. ख. Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी [ ७६ १९. वारता-हेव रीसाल कवर चाल्यौ । स कठइ तो वसती लाभै छ, कठैई क रोहीमै रहै छै नै राणीनै भूष लागौ तरै व्याई हीरणीने पकडनै चूंघाय देवौ । ईण रीतसू जावतां चालता ईक दिनरै समै मारगमै हालता येक कस्तूरीयो मृग केरके हेठ कुवरजी दीठौ । तरै लघू लाघवी कला करने मृगलानै पकड लीधो । कोई क गांम पायां तठे हिरण घण सीणगार करायौ। भला गुघरा गलामै राषीया । पटु गलारे बांधीयौ। सौनारा सींघ मंढाया। मषमलरी गादी मोरा उपर राषी। ईसां जतनसं हिरणनै लियां वहै छै । त? येक दिनरै समै येक रुष उपरे सूक्टो ने मेंणा बेठा कल कर छै । कोणीहीरा पढाया छ । मीनषरो भाषा बोलै छ । तठे कुवरजी लघू-लाघवी कलासू सूवा ने मेनानै पकड लीया । कीणही गावमै प्रायनै पीजरौ करावणौ तेवड्यो। इसौ विचार करता एक स्यौगवास नांव गांव पायौ। तठे कुंवरजी सूथार रो घर पूछ नै सूथाररै घरे गया। जायन सूथारने कहै छै]दूहा- रे सूथारजीरा डीकरा, पिंजरीयो घड देय वे। तास मोहर इक मोलडी, ले तु. पिंजर देव वे ।। ७३ मेरी छ मासकी कुवरी। ग. घ. छ मासकी डोकरी। ५. ख. रसालु कुमार । ग. घ. कुंअर रसाल । [-]. ख. ग. घ. प्रतियों में निम्न वाक्यावली प्राप्त है ख. एहवे समे रसालु कुमर आगे चाल्या जाए छ। जातां थकां ऐक कस्तुरीयो मृग, एक हरणी जाड नीचे उभा छ । सो रसालुए पकड्या। रांणीनु धवरावे । मृगनु पण पाली मोटो करे छ । फेर मारगे जातां एक सुबटो, एक मेनां दीठां। सो पकडीया, साथे लीधा । तेहने भणावे छे, गुणावे, षवाडे, पेलावे । मृग, हरणी, सुबटो ने मेनां इण चारांरा ही घणा जतन करे छ । ग. ऐस्यौ रांणी कह्यौ । अब रीसालुं चाल्या जाय छ। जठै राणीने भुष लागै तठे हरण्यां पकडैनै चुषावै । ईम करतां वरस ऐक हूवो । एक दीन वीषे चाल्या जाय छै। जातां थकां ऐक म्रग हरणी स्मथ झाड नीचे रसालुयै दिठा । तदि हरण, हरणी पापड्या। कसतुरीया म्रगनै तो राष्यो । हरणीने तो छोडे दीधी। सो वनमृगने तो मातो कर छ। ऐक समै रीसालु कोइक गांम गया। तठे संवो, मैनां दीठी। ती वारे रीसालुं सुवो-मैणां लोधी। घणा जतनसुं राषै छ । घ. तदी रसालु चाल्या-चल्या जायै छ । जठे भुष लागी जठे हीरणी पकडी नै चुषावै छ । ईम करतां वरस पंच। इक दीन समीयौ सौ वनमृग दीठौ । तणीने उरो पकड, नै सौ वनमगनै तो राष्यौ अर मैनांनै छोड दीधा । तदी एक गांममै आया । तठ सुवौ, मैना दीठा तणीने उरा लीधा। Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० ] बात रीसालूरो तुरत मोहर लेई करी, घडीयो पंजर घाट बे। सूवडौं मैंना बेसाडीया, जडिया बेहु कवाड बे ॥ ७४ जतन करै च्यारु जीवतरणां, एक ल्यौ कुंवर अपार बे। पाणी-पंथौ हयवरौ, च्याव्यै ज्यां तो जात वे ॥ ७५ २०. [वार्ता-इण विध सूषमै च्यारांहिरा जतन करता थकां घणा दिन हुवा छै । इतरै द्वारका नगरी पाया । प्रागै दरवाजा माहे वडीया। तठे नगरी सुंनी दीठो । त? सूवानै कुवरजी पूछीयौ-सौ काई जाणीजै । सूनी नगरी सगली दीसै छै ? त, सूवौ, मैनां कुवरजीन कहै छै–श्रीमाहाराज कुंवार ! आजसू छ महीना पहली अमै पाया छौं । सू अठै म्हारा साथरो सूवौ बैठो छौ । म्है पिण उडता आया छा । त? मील बेठा वातां कर छा। त, म्है पोण पूछीयौ-प्रो नगर सूनो क्यूं दीस छ ? तरै उण सूवौ कह्यौ-इण सेहरमै राक्षस हील्यौ छ । सौ आदमीयानै मार षाधा । घणा ज्यान कीया। तिण डरसं वले मनष्य हुता सो नासी गया। ईण तरे आ वात सुंणी छौं। सौ कुवरजी साहैबा ईसा वचन माहेना उण सूवै कह्या । ईण प्रकारै यो नगर सूनौ हुबो छ।] [त, कुवरजी कहीयौ सू सारी हकीकत सूंणनै सहरमै चालीया । हाट २ बाजार सणा पडीया छ । तेल, घीरत, मौहरा, कपडौ, चावल, दाल, दुसाला, गैहणा, मोती, मांणक, हीरा, पना, पूषराज, पीरौजा, वासन, थाली, वाटका अनेक प्रकार की वसता पडो छ । पोण कोइ धणी नई । इण भांत देषतां देषतां राजा भूवनमे गया। त? सतभूमीय प्रवासै चढीया । मेहलामै डेरो कीयो ने सवाने कुवरजी कह्यौ-हु रसोई लेनै आव छ, जीतरै जाबतौ कीजौ । इतरौ कंवरजी बजारमै आयनें कांसेटीयांरी हाटमै थाली, लोटा, चरी लीवी ने पाटो, घरत, षांड लेने पाछा पाया। रसोई जीमरण करने ज़ीमीया । ताजा हुवा । हिवं सवान कूवरजी कहीयौ-हुरांगीरे वास्तै व्यई हीरनी ल्याउं छ; थे जाबतो कीजौ। ईसौ केहन घोड चढी नै रौहीमै जावता एक तुरतरी व्याई हीरणी बच्चानै चूंधावती देषी नै वचा सूधी लघू-लाघवी कलासू राणीनै वास्तै पकड ___ *७३-७५ तक के दूहे ख. ग. घ. में अप्राप्त हैं । [--] ख. इम करतां वरस पांच हुमा। ऐक दिन कीरतां द्वारीका नगरी गया। देखें तो सर्व सुनी पड़ी छ । ग. ईम करतां घणा दोन हवा। एक दिनकै वोष धारावास नगर पाव्या। प्रागै देषे तो धारावास नगरी सुनी पड़ी छ, दैतां मारी छ । नगरी मे लोक कोई नही। घ. तदी धारावास नगरी गया। नगरी सुनी वीठी, देवतां मारी। Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात सालूरो [ ८१ लाया। रांणीने चूंघाई, हीरणीरा जतन करने प्राछी जगा राषी । षांन - पांणरो जतन मोकलोकीयो । होवें दीन प्रस्त हूवो । तठे कुवरजी सूवाने कह्यौ - थ जाबतो घणी करज्यौ; हु राक्षसरौ जाब करी ग्राऊं छ ु । तठे सूवो बौलीयौ ] - दोहा - राकस धूतारो अछे, मार्या पूरना लौक बै । आप ईकडा वाहरू, जतना करज्यौ जोग बे ।। ७६ 1 था बीना सारी वातडी, सूनी हौय सोसार बे कुवर कहै रे सुवटा, श्राइ राकस हार बे ।। ७७ मारी ने माथौ ल्यावसू, तौ प्रागल ततकाल बे । ईम कहीयो लने बारने, उभौ कुमर न उजाल बे ॥ ७८ गोरषनाथजीने ध्याईयो, मनमै साहस धीर बे । इतरै राकस श्रायौ, वरड करड कुंक्कार बे ।। ७६ दंत कटका कुदतो, पवन उडावै धूल बै I ईम चलतो पोले निकट, प्रायौ राकस मूल बै ॥ ८० कुमर चल्यो सांमो जवे, काढी षडग मूष बोल बे । बल संभाग रे भूतड़ा, मांरु वाजत ढोल नै ।। ८१ तब राकस रूप रवौ, ददुर पग धूज बे 1 हुकार वक्कर हुलसीयौ, कुंवर षडग करि पूज बे ॥ ८२ श्रीगोरनाथजीरे ध्यानसू, षडगथी काढ्यौ सीस बे । राकस वले नही चालीयौ, मारयौ विस्वा वीस बै ॥। ८३* २१. वारता - ईण भांतसुं राषसनै मारनै माथो लेन कुंवरजी सूवां कनै ग्राया । सारी हकीकत कही नै कुवरजो सूवान कहीयौ -सूवाजी ! दाणा [ - ]. कोष्ठवर्ती श्रंश ख. ग. में निम्न रूपमें वर्णित है । ख. घर, हाट, बाजार, सर्व सुना पडीया छे । रसालु राजद्वारे गया । देषे तो सर्व सझाइ पडी छे । पीण सर्व नगरी मांहे जीवमात्र इके ही नही । पछे रसालु नवषंडे महीले चढया । उठे डेरा कीधा । घोडो नीचे परो बांधोयो । रांणीरा मृग, सुवटो, हीरण, मेनारा, घोडारा जतन करे छे । रसालु रांणी ने कहे-श्रा नगरी प्रांपे वसावसां । एहवो वीचार करतां दीन तीन हु [श्रा ] । ग. तदि पैलां-पैल रोसालू श्राव्या । सुंना घर, हाट देष्या । नवषंडे मेहल चढ्या । तिठे श्राप वीसरांम लोधौ । श्रापरी सुवो, मैणा, मृग, घोडो, रांणी सूषं रहे छे। ईम करतां दिन तीन हुवा | घ. तदी राजारी पौल गयो । मैहलां चढ्यौ । रांणीनं मैहलांमै ऊतारी । घोडौ पायंगा । सुवौ, मैनां उंचा बांध्या । सुवो मैनासु घणो हेत । * ख. ग. प्रतियों में उक्त श्राठों दूहों के स्थान पर निम्न गद्यांश उपलब्ध है Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२] बात रीसालूरी रहै जासी । तठे सूबौजी कहै-श्रीमाहाराजकुवार ! पा वात जोग छ। थां करतां सारी वात प्रासीण हुसी। . हीव कुवरजी सदारा सदाई परभातरै समै घोड़े चढणे नीकलै। सौ पांच सौ पांच पांच कोस तांई सहिररे गिरदाव घोडौ फैरै । त? कोईक वटांउं निकलै तिननै ल्यावै, हवैली भौलाय देवै । धांन, द्रव्य मोकलौ वतावै । ईण भांतसू वस्ती करवा मांडी। ईण भांतसू वरस इग्यारे हुइ गया छै। थोडीसी सहरमै वसती हुई। पांचसै ५०० घररी जमीत हुई। रांणी वरस ग्यारेमे हुई ।A हिवै हिरण इकदा समाजौगै मृगलो नै कुवरजी वांता करता मृगलौ वोलीयौ-श्रीमाहाराजकुवार ! म्हारा जतन आप घणा करौ छो; षांण दाणारी कुमी कांई न छै । पिण म्हे रोहिरा जिनाव[र] छों । सो रोहिमै फिरनै चारां, पाणी छै तौ प्रा नगरी सारी पाछी वसाय देवस्यां । ज्यूं आपणौ धरतीमै नांमगौ ख. रसाल महील उपर बेठा छ । एहवे एक राषसनु रसालु पावतो दीठो। तीको राष्यस माहाक्रोधवंत, वीकराल, कूड-नेत्र. हाथमे काती छे, इसो दुष्ट राष्यस छ । तीणनु सहोरमे प्रावतो जांणी रसालु दरवाजे पाय उभा रह्या । कमाड जडया। इतरे प्राधी रात्र गयां देत्य प्रायो । कमाड तोड ने भाहे पायो । रसालुए प्रावतो देषी षडगरी दोधी । देतां थकां माथो, धड अलगो जाय पड्यो। जद रसालुए पांच अलगो समुद्रमे नांष दीधो। ग. रिसालु दैतने हल्यौ। देत जाण्यौ । अधरात्रे पाप हल्यो जांणय प्राप दरबारर दरवाजे ऊभा रहा । कमाड़ जड्या छ । रात पोहर दोय गई छ । प्रतरायकमै दैत प्रायो। रीसालुरा हाथमै षडग काढयौ छ। कमाड तोडे देत प्रायो। रीसालुयै जांण्यौ, षडगरी दोधी । माथो अलगो जाय पड्यौ । तदि रीसालु दैतनै अलगौ जाये नांष्यौ। घ. प्रति में न तो उक्त दूहे ही हैं और न इस राक्षस का वर्णन ही है। ___A-A. ख. पछे रसालु महीलां गयो। राणीनु कहै - जीण नगरी उजड कोधी हती, तीणनु आज मे मारीयो। होवे प्रा नगरी सुषे वससी। ईसो सुणीने सर्व राजी हुमा। हीवे सुषे समाधे रहे छ। कस्तुरीयो मृग सूर्य उगां पहीली चरवा जाए छ । पोहर १ दीन चढतां घरे आवे छ । पछे रसालु सीकार जाए छ। दीन पाछलो पोर एक रहे. तरे घरे आवे छ । इम सदा हो रहे । इम करतां रांणी वरस इग्यारेरी हुई। ___ ग. राजी होई राणीने प्राय कह्यो--गाम उजड कोधो छ, तिणीने तो मारचौ छ । अब गांममै बसती करावां । अस्यो मनमै वीचारयो । तदी रिसालुं पोहर दीन चढता सीकार जाये छै पोहर दोन पाछलो रहतां सीकारथी श्रावै छै । घ. रसालु कुंवर सोकार जायै । पालो पोहर रहै जदी पाछौ प्रावै। रांणी वरस पाठरी हुई। Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी तरा मन षूसी हुवै । तीणसू थे अाग्या देवै तो रोहिमे चरवा जावा । तठे कुवरजी बोलीया-हीरजी ! आ वात तो थे सा कही । पिण थान बंध षोलनै सीष देवा नै पाछा प्रावो नही तो पछै थानै कठै जोवता फिरा। त? हीरण बोलीयोश्रीमाहाराजकुवार ! आप सरीषा हेतु माणस छोड ने जाता रहु, सो पा वात कदेही जाणज्यो मती। दूहा- जो सूरज प्राथूणमै, उगै दिनमै हजार थे। प्रागन जो सीतल परण करे, तो पिरण हुँ नही बार बे॥८४ उत्तम जननी प्रीतड़ी, कोरणही क वेला होय बे। ते छोडीनै वीसरे, ते जग मरष होय बे ॥ ८५ कुवरजी छाया माहेरी, काया नानो मित बे। राज सला राजी हुवो, तो मूझ सोष द्यौ हित्य बे ॥ ८६ घरणा दीनारी प्रीतडी, कोम मुझ छांडी जाय बै। रूडा राजिद परषज्यौ, जीवू ज्यां लग काय बे॥ ८७ कुंवर कहै अहो हीरणजी, थां म्हां ईधक सनेह बे। जावो चरवा रोहीया, वहिलां प्राज्यौ तेह बे ।। ८८] ___ २२ *वारता- इण भांतसूकूवरजी होरणने सीष दीवी। हिवे सदाई रोहिमै चर-पी पावै । एकदा समाजोगन द्वारकासू सात कोस उपर जलालपटन नगर छ । तठे हठमल पातसाह राज करै छ । उण राकसरा भयसू घणा पीरान पूजतां ने राकसने मारीयो सूणीयौ ने नगर वसावांनी नाम सूणीयौ । तरे पातसा घणो राजी हवौ । घणी सीरणी-वधाइ वेटी। तिको हठमल पातसा आपरा नगरसू कोस दोय उपर द्वारका सहमी नदी मीठा पाणोरी हती, तीण माथै वाग लगावांनी सला थी, सू राकसरा भयसू हुवो नही। ने(ते) भय मिट्यो जांण ने नदी उपरै वाग लगायौ छै । माहौवला फूल हुवै छै। घणी वेलां, घणी वेलडीया, गी(नी)लोतरी ची भडा, परबूजा, नीला गोह, साल, दाल घणी नीपजै छै । इसडो वाग छै ।* [-]. ग. घ. में कोष्ठकगत पाठ अप्राप्त है तथा ख. प्रति में केवल इतना ही अंश प्राप्त है-तदी रांणी मृग, सूंबटा, मेनारी जाबता करे। व्याल, वीनोद, हास्य रांमण करे । इसी तरेसु दीन गुदार करे। *-* चिह्नगत पाठ ग. घ. प्रति में अप्राप्त है तथा ख. प्रति का पाठ निम्न प्रकार है-पाषतो एक सहीर छ। तठे पातसाह हठमल राज करे छ। तीणरे नवलषो वाग छ । Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी [सौ येकदा समाजोगमे ही रणजी मजलसां करतां कोस पांच तांई जाय निसरया । तठे आगै वाग आयौ । देषनै माहै ऐठा मल फल-फूल षाया; पिण वागमै जाबतो घणो दीठो । त? तौ पिण हीरण वीचारीयो- जौ आ जागा भली छ, मांरो चारौ पिण मौकलौ छ, पिण दिनरा तो वेत लागे नही, अवै रातरो चरवानै आवस्यां। इसौ विचारन हीरण पाछो वल्यौ । सू कमरजीने प्रायन कह्यौ । तठे कुवरजी बोलीया-पाज तो हीरणजी मोडा कु प्रावीया ? तठे हीरणजी सारी हकीकत कही। त? कुवरजी सूणनै हीरणीने कहै--- दूहा- भौम पराई विगाडीया, वांगां हंदा फूल वे। रषयमा जडीमै पडौ, तौ हुयसी सहु धूल बै ।। ८९ हिरणवाक्यां थांह सरीषा म्हारा वांहरू, सो क्यू डरपां जाय वे । षांसा म्है फल-फूलडा, नीलडा मांहरे दाय वे ॥ ६०] - २३. Aवारता-ईसौ सूणत प्रांण कुवरजी मूछा हाथ घालनै राजी हुयनै कहीयो-हिरणजो ! हिबै हु थांहरै पूठीरषौ छ । प्राप नित्य सदाई हंगाम करौ । ही हीरण संझयां पडीया जावै सौ प्राधि रातरौ पाछौ• पावै। यू करतां घणा दीन हुवा । अब तिण वागवाला रषवाला माली पातसाहरौ निजरांनै फल-फूल लागा दीसै । ईण भांतसू दातरां सेहनांण देषनें पातसाह बोलीयोअरै वनमालो ! अाज काल फल-फूल ईसा सेहनाण सहोत ने थोडा पावै; सो कांई जांणीजै ? त, माली बोलीयौ-माहाराज ! आज काल कोई क जानवर हील्यौ छ । सौ दीनरां जावतां घणी करां छां, पीण रातरा वीगाड कर जावै छ। तपातसाह रीस करनै बोलीयो-'अब गुलाम काफर, ईतनै रौज हमकु षबर क्यु कही नही ? मरदुद अपना माल षराब हुवौ छै, सो तु(ह)मारे ताई सोच नही छ, पीरण आज तोने गुण माफ कीया । पिण आज वागमै हम प्रावगें; बीच अछी जगा बनवाय रषणी हम आवंगौ, उस जनावर की सीकार करेगे 1A [-]. कोष्ठगत गद्य एवं पद्य ख. ग. घ. प्रतियों में अनुपलब्ध हैं। A-A. ख. ग. घ. प्रतियों का पाठान्तर इस प्रकार है ख. जठे मृग जाय पातसाह हठमलरे वागमे हमेस चरने प्रावे छे । इम करतां घणा दीन वतीत हुआ। एक दीन पातसाह तोरे वागवांन फल-फुल ले गयो । पातसाह हठमल फल-फुल कांणा-कोचरा दीठा । वागवानने पुछयों-क्यु बे वागवान ! बहुत दीनंसे एसा फल-फुल क्यु लाया, सो कारण कांइ छ ? तदी वागवान कही-हजरत, सलामत कवलेयांन, अधरातकु बागमे हमेस क्या वलाय प्रावती हे, सो वाग वीगाडे छ । पातसाह वाक्यं दुहो- क्यारी' केसर द्वाषकी२, फल्या केल अनार बे। कंण चंटे इण वागमे, पुछु उणको सार बे॥ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रोसालूरी [ ५ [ईसौ सून नै माली बागमै प्राय ने छानी जायगा आछी कर राषी। फूलारी बिछायत पाछी कीवी छ । ईतरै संझया पडो। त, हठमल पातसाह आपरा तन-मनरा दोय चाकर ले में कबान, तीर, आवध लेने वाग पधारीया । माली या(आ)यनै हारज (हाजर) हुवौ; मूजरौ कर नै जागा बताई। तठे पातसाह तिण जायगा बेठ नै मालीनै कहैदुहा- क्यारा केसर नीलडा, फूली केल अनार वे । इरण कोट इण वागमै, पासी ते लहसी सार वे ।। ६१ माली कहै पातसाहजी, मुझक्सीष दिराय वे । भोजनकी वीरीया हुई, सौ जांऊ बार वे ॥ ९२ सूरण सूरण साहिब हठमला, आवेगा तेडा चोर वे। हमकु दीजे सोषडी, बहलो पाउं इण ठोर वे ।। ६३ पातसाह अग्या तेहन, दोधी माली जाय वे । हिव ते होरणजी हालीया, चारो चरवा पाय वै ।। ६४ संझ्यास घडी च्यारडी, रात गई तिहां हिरण वै । धीमे पग ठवतो वहै, देषी न(च)दनी कीरण वै ।। ६५] ग. घ. अन (घ. में नहीं है) कसतुरचो (घ. कसतूरीयौ) मृग हठिमल पातसाहरी वाडी चर चर घर आवै छै नीत प्रत (घ. चरं चर आवै) ईम करतां घणा दिन (घ. दन घणा) हवा । ऐक दिनकै समै वागवान फल-फूल लेई पातसाहजी हजुर गयो (घ. फल-फूल ले पायौ, पातसाहरी नीजरै फल-फूल कीधा)। कोई प्राधो, कोई प्राषो (घ. कोईक कांणो) ईस्या (घ. ईसा) फल-फुल (घ. फुल-फल) देष्या। अतरायकमै (घ. तदी) पातसाहजी बोल्या--- (घ. पातसाह बौल्या) क्युं बे बागवान ! 'ईतरा दिनमै ईस्या फल-फूल क्यु ल्यायो' ('-' घ. में नहीं है) । तदि (घ. तद) वागवान कह्यौ-माहाराज ! 'कोई प्राधी रात्रै प्रावै छ, कोई बलाय छ, सो वाग वीगाडी जाय छ, नीत प्रतै आव छै' । ('-' घ. कोईक अधरात रो वागमै प्राव छ, वाग वीगाउ जाय छ) । तदी हठीमल पातस्याहने वागवान काई कहै छ (घ. तदी पातसाह बौल्यो-आप प्राथमतारा वेगा पदारज्यो। वागवान काई कहै)- । वागवान वाक्यं । १. ग. घ. क्यारा। २. ग. घ. दाष का। ३. ग. घ. ईण कोट । ४. ग. घ. पुंछु श्रणंकी। [-. ख. ग. ध प्रतियों में निम्न पाठ मिलता है ख. वारता-पातसाह सांझरे समीए घोडे असवार होय वागमे पधारया। पातसाह घोडो बांध, कबांण कसने बेठो छ । वागवान पीण कने बेठो छ । एहवे रात्र पोहर तीन गई । तरे वागवांन पातसाहनु कहे-हजरत, आपरे चउ (रु)मा प्राया हे। तेरे मरजी होवे सो करणा । पीण हमकं तो घरा दीसा सीष देणा। वागवान वाक्यं सुण सुण साहीब हठमला, प्राया तुमारा चोर बे। हमकं तो घर सीष द्यो, करयजे राजीव जोर बे॥ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६] बात रीसालूरी . २४. [वारता-त? कुंवरजी हीरणने हालतो देषीनै आपनै ठीक हुई। तठे कुमरजी हीरणनै वोलाय नै केह छैदुहा- सुरणीय मृगजी बाजरी, रयणी गई रे सबे । अंग-फूरक ठीक पीण, ए सूकनै दुषल सबै ॥ ६६ सौ तुम प्राज इहा रवै, कालै करज्यो काम बै। प्राज अजाडी उपजै, तोरणसू रहौ ईहा धाम बै ॥ ६७ हिरणवायक्यसूरणीय रीसालूराय को, चरीया वीरण मुझ प्रारण बे। रहता नही साहिब इहा, प्रभु करसी सौ प्रमाण बे॥६८ चालता ठी(छी)क छटकीया, सौ वहिलो प्रावस बे। ईम कही हीरण उतावलो, चाल्यौ मारग देस बे ॥ ६६ घघरीयांरा सौरसं, भागो जावे एरण वे । तुरत वाग में प्रावीयो, हठमल ज्यांण्यो नेण बे ॥ १००] __A २५. वार्ता-तठे पातसाह गुघरीयांरा झमकसं धरतीरा धमकारसं तीरकवांण सावचेत करनें रूषांरा पोटामें जोवै छै । छांनो-मांनो चाल छै नै मनमै जाण छ-आज मारा वाग विगाडनवालानं मारसं । ईसौ चितव्यौ थको रूषारी बिडमै अावै छै । तठै हठमलरी छाया डीलरी हीरणमै पडी। तठे होरण उचौ देषीयौ। तठे तीर सांधियां थकी पातसाहन देषीयौ। तठे हीरण पाल सांधने वागरी भींत कुदीयो। तठ पातसाह लारै भागौ। सो हिरण सताबीसू प्रापरे वारता-तद पातसाह हठमले वागवानकुं सीष बीधी। ग. घ. ऐस्यो पातस्याह] वागवानकै ताई कह्यौ---भला पातस्याह ! सलामत, आप दोन प्राथमतां ऐकला पधारज्यो। तदि पातस्याजि दोन प्राथमते ऐकला पधारया। वागवान वागमै एकलो बैठो छ। आधी रात्र गई छै। अतरायकमै वागवान घुघरा वाजता सांभलने पातस्याहजीसं कहो-माहाराज मान सोष दिजै, थारो चोर आयो छ, अब पापरी प्राप जांणो । वागवान पातस्यानै कांई कहै... दूहा- सुणो पातस्या२ हठोमल, पायो थारों चोर थे। मांने तो घर सीष द्यौ, करज्यो साहीब चोर वे ॥ अथ वारता-तदी पातस्याहजी कह्यौ तुं घरजा। १. घ. में यह गद्य नहीं है। २. घ. पातसाह । ३. घ. हठमलां । ४. घ. थांहरो। ५. घ. कोज्यौ । [--] ख. ग. घ. प्रतियों में कुंवरजी एवं हिरणका गद्य-पद्यात्मक संवाद अनुपलब्ध है। ___A-A. ख. ग. घ. प्रतियों में २५, २६ एवं २७वीं वार्ताओं की वाक्य-रचना इस प्रकार है Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी [८७ ठीकाणे पायौ; नै पातसाह षोज जोवतो चंद्रमारे चांदणासू लार पावै छै । रात आधीरा पातसाह षिण सतभोमीया हेठो आयौ । हिरण पातसाने देषने छोप बेठौ नै पातसाह जोवे छै । तितर पंषारो जावताईरो मांहे कुवरजी कीयौ। त? पातसाह षषारो सूणने वीचारीयो-प्रो हिरण रीसालूरौ छै ने रीसालू जागै छै; कदाचित षबर पडजावै तौ पराबी हुवै; तौ अवार तौ कठैई छांनौ रहणौ जोग छै नै परभाते हिरणनै सौधन सीकार करस्यां । ईसौ वीचारनै महीलारे पूठवाडे जावण लागौ । त, महिलारै पूठे पागली वाडी फल-फूलारी हुती नै रीसालूरा परतापसू घणी फली-फूली छ । तिका बाडी पातसाह देष नै मांहें जाय सूतौ । तठे रिसालूनै हिरण याद अायो-रषे अाज छोंक हुई छ, हिरण कुशल पावै तो भलो । यू सोच रीसाल करै छ। तरै पौहर एक हुई । त, कुंवरजी हिरणरै षटै आया। हिरणनै देष्यौ नही नै हिरण पातसाहरा डरसू अलगौ ढुढामै छीपीयो। नै कुमरजी सौच करै छ । दूहा- रे फूटरमल हिरणला, रयरणी गई सहु साथ वै। प्रायो नही रे हिरणला, हुवौ वैरी हाथ बे ॥ १०१ ख. एहवे मग घुघरा वाजतां वागरो कोट डाक माहे परयो। हठमल कहे-सुण बे, घणा दोन का जाता हता, अब कांहा जाएगो । इसो मृग सुणके पाछो भागो। तद पीछे हमल घोडे असवार होय मृग पुठे दोडीयो। मग जाणे-पाज मने मारसी। मेले नही (नई) पाछो जोवतो, जीभ काढतो, डरतो पाछो जाए छ। वांसे हठमल होयके यु कहे-अब तेरी ठोक ल्यु । तदी मग फोरतो फोरतो रात्ररो मारग भुलो, दीसा चुक हुउ, रसालुरा महीलां नीचे होय प्रागे नीसरयो । तद हठमलवाक्यं दुहा- जष्य राष्यस वेताल है, साहुकार के चोर बे। भागा भागा कहां जात है, क्यु न करे फोर सोर बे ॥ २२ मृग वाक्यं होणहार सो बुध उपजे, भवीतव्य कोणही न हाथ थे। तेरा नाम हे हठमला, प्रावो कर मुझ साथ बे ॥ २३ वारता- मृग इसो हठमलनु कह्यो। रसालुरा महीला दीसा मृग पाछो फोरयो। हठमल पोण पाछा फीर मृग दीसा दोड्यो । मृग नासने नवषंडे महीले चढयो। हठमल वीचारे- क्यां जांणां, कांइ जीनावर छ ? कठे ई बेस रह्यो होसी । मोर दोना मग चरने । पाछो आवतो जद रसालु सीकार जाता । जीण दीन मृग पाया पेली सीकार चढीया । वांसाथी मग रांणी तीरे धुजतो, डरतो, नासतो, भागतो, जीभ काढतो, प्रायो। राणी Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 55 ] बात सालूरी २६. वार्ता - इसौ विचारने कुंवरजी रांणीने प्रायनै कहीयौ - आज हिरण यो नही, तिणरी बबर करणे जावं छ; थे जाबताई करज्यो । हिरण आवे तो जातो कीज्यौ । इतरौ कही ने घोडे चढी नै हथीयारां कसीयौ थकौ रोहीरो मारग सोधतो जाय छै । इतरै सूरज उगी जाणनै हिरण उठ नै च्यारे हो कांनी जोवती, हलवे हलवै हालतो थकी महिलां श्रायौ । आगे कुवरजीने नही दीठा । तठे रांणीने पूछे छे दूहा - किहां गया कुंवरजी प्रभातका, किरण ठामै किरण ठोर बे । रांगी है रे हिरणला, ताहरी बाहर जोय बे ।। १०२ रात नायौ तु हिरणीया, तिरगसू षबरने काज बे । कहां तु तौ हिरणला, कहै तु कारण श्राज बे ॥ १०३ कुंवरजी सोच घरो कीयो, तारे काररण रात बै 1 तु इहां कुंवरजी रोहीया, ताहरी कहि तु वात बे ॥ १०४ हिरणवाक्यं हिरण कहै रांरगी रातरी, वात नही कही जाय बे । मैं जीवत मिलीया तिको, लहज्यौ अचंभो माय बे ।। १०५ वागां नीलडा चरणनूं, पूहता बाहर षी ( धी) ठ बे । लागी हूं आगे चल्यो, इंहा हुं प्रायौ नोठ बे ॥ १०६ वीचारीयो- - आज मृगने डर घणो छै, सो कांइ क तो कारण दीसे छे ? तदी रांणी नवपंडे महीले चढी । उप[र]ली भोम चढने देषे तो एक नर रूपवंत, कबांण कसीया वाग मांहे झाडांरा गोठ जोवे छं । इसो देषने रांणी हठमलनु कहे ग. प्रतरायकमै घुधरा वाजता थका वागमै डाके पडयौ । अतरायकमै हठीमल पातस्या बोल्या - घणा दिनरो जातो थो, पीण श्राज ठीक पडसी । प्रतरो सांभले म्रग पाछोही ज दोड्यो । तदी हठीमल पीण पाछे हुवो। म्रग मन थकी जांण्यो - श्राज मोनै छोडें नही । पातस्याहजी कहै - घणा दीनरो जातो थो पिण आज ठिक पडसी । म्रग पाछो नाल नै जिभ काढतो दोड्यो । तदि म्रग रातकै सबै डरको मारयौ दसा भुल गयो । तदि म्लां प्रागलि नीकल गयो । ते पातस्या मृगनै कांई कहै हा - जाण्या रीष्या विवताल है, साहूकार के चोर बे । भाग भाग काहा जाता है, क्यूं न करै तु सोर बे ॥ १८ मृग कांई हैदुहा - होणहार बुध उपजै, भवतव्या कणीहार बे । --- तेरा नाम छं हठीमला, प्रायो कर मुज साथ बे ॥ १६ - अथ बात - ऐस्यो मृग कह्यो — कहे नै म्रग दोड्यो । प्रागे जातां मारगे सोच्यौ - हुं तो दसा भुले गयो, महल तो पाछै रह्यो । तदि मृग पाछो फिरयो । मैहलांमें श्रायो । पाछे Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी छीपायौ तबेला ठारगमै, बाहर पूठे जोर बे । जाणू महिलरी वाडीयां, बाहर होसी को र बे ।। १०७ तिन प्रायो थां कनै, इतरे उगौ भोर बे । थांसू मोलवा आवीयौ, वोती मूझमै जोर बे ॥ १०८ २७. वार्ता - रांगी हिरण-वातां सांभलने मैलां चढी, पूठली वाडीयां सांमो देषं छै । त हठमल पातसाह पिरण सूतौ जागीयो । सौ दाढीरा केसाने फरकाव छै, श्रालस मोडै छं । तठ रांणी जांणीयौ - हिरणरी वाहर दीसँ छै । पिण वरस सोलै अठारै रहतांने हूवा, सो कुंवरजीरा तप-तेजस कोई श्रापणं नैडो फुरक्यौ नही, ने ओ परी आदमी वाडीमो श्रायने सूरंतो छौ नै परभात हुं वां जाग्यो । निरभय थकौ उभौ तिकौ तौ कोई तरेदार दिसं छै ? इसी रांगी वीचार न वतलावण कीधी - A दहा - वाडी मेहलां श्रादमी, साह श्रछे किनू चोर बँ । रूषां छीपायौ क्यूं रह्यौ, ढीलो हुवी जू ढौर बै ॥ १०६ पर घर पर धरती तरणा, भय नही मानौ छौ मन बे। भौम वडारणी होयसी, घररणी भौमनौ तन बे ॥। काची कली मत लूबीय, पाका लागेगा हाथ बे । जीवत जावेगा मानवी, नहि कौ बिजा साथ बे ॥ ११० 3 १११ पातस्याह पीण आवे छे। श्रागे मृग हाफतो-कांपतो राणी नर्ष आयो; राणी आगे प्राय ऊभौ रह्यो । रीसालू सीकार गयो छे । तदि राणी वीचारचौ - श्राज मृगने डर क्युं छे ? तदी राणी नवखंडे मैहल चढी देण्यौ । देषं तो एक आदमी बाणसुं झाड हेरै छ- जाणे मृग भाड छप्यौ छै । तदि हठीमल पातस्याने कांई कहै । घ. तदी पातसाहा बागमै श्राया । प्रतरं घुघरा वाजता सुणीया । तदी पातसाह बौल्यो- -घणा दीना रो जातो थौ पण प्राज ठीक पडसी । मृग सांभलि पाछौ नाठौ । पातसाह पार्छ आवे छे। मृग रांणी कनै श्रायौ । जदी राणी जांण्यौ श्राज मृगने डर घणौ छै । जदी गोषर्ड श्राये नै देषं तो एक आदमी कबांण-तीर लेने श्रावे छे। मृग डरको मारचौ छोप्यो छै। जदी राणी कांई कहै १. ख. ग. घ. का पाठान्तर निम्नलिखित है रांणी वाक्यं दुहा- वागां 'महिला' मानवी, साहुकार 'के' चोर बे । [ ह 'दरबत हो' छोपतो फोरे, ढांढो 'गमायो के' ढोर बे ॥ २४ ''ग. घ. माहीला । के । वागां माहि । हेरें के । २. ३. दोनों दूहे ख ग घ प्रतियों में श्रप्राप्त हैं । Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ê0 ] बात सालूरी पातसाह वाक्यं ' freet 2 प्रां श्रावली, कीसका बं दाष श्रनार बैr । किरण पूरष हंदी गोरडी, कीसका बै दरबार बं* ॥। ११२ राणीवाक्यं * सालू हंदी गोरडी, उनका हं [दा] दरबार बै । तुं कारणं क्यूं पूछ बै, तांहरै पष वार बै ॥ ईहां तु उभो किम रह्यौ, कैसौ तुं हुसीयार बै ँ । [ २८. वारता -- ईसी बात कही । तठे हठमल पांतसाह वाडी वाहरै प्रायौ । तठे रांणी पातसाहरी रूप देषतै मूस्ताग हुई । नैण-बांण आमा सामा छुटा । तठै पातसाह मनमै जांणीयौ -जै आ तौ मुस्ताक हुई तौ फतै हुई, सारी ही वात सभ । ईसौ वीचारने हठमल बोलीयौ -अरी रांगी ! मारो घोडौ तीसायौ छ, थोरोसौ पांनी पावौ तौ भलो कांम करौ । तठे रांणो कहै - दूहा - तोरा नाम हठमला, हठिया छै मेरा भी नाम बै । farst बेलो जौ चरें, तो ईरण प्रदर ग्राम बै ।। ११४ विष बलीका ईहा षरा, वाग ई चतुर संजांरण बे । श्रासी चरवा घौडलो, तौ हु करिस प्रमाण बे ।। ११५ १. ख. हठमलवाक्यं । ग. तदी हठमल पातस्याह कांई कहै । कोई कहै | ११३ २. ख. कीसका रे । ग. घ. कीण हंदा । ३ ख. ग. श्रांबली । ध. आंबली बे राणी । ४. ख. कीसका रे दारम द्वाष बे। ग. घ. कीण 'हंदी तुं' ('-' घ. हंदा ) अनार बे । ५. ख. ग. घ. कोण हंदी तुं गोरडी, कोण हंदा दरबार ( ख. दुरबार) बे । ६. ग. रांणी हठीमल पातस्याने कांई कहै घ. श्रप्राप्त है । ७. ख. ग. घ. प्रतियों में ११३वें पद्य एवं श्रद्धली की जगह निम्न दूहा प्राप्त है रसालु हंदा प्रांबा प्रांबली, रसालु हंदा दारम द्राष बे (घ. रसालु सीच्या अनार बे ) । रसालु हंदी हूँ गोरडी, उण हंदा दुरबार बे ॥ २६ घ. तदी पातस्याह [-] ख ग घ प्रतियों में २८, २६ तथा ३०वीं वार्ताओं एवं पद्यों का पाठभेद श्रधोलिखित रूप में मिलता है ख. वारता - रांणी हठमल प्रते इसो जाब दीघो । तद हठमल कहे- मांरो घोडो तरस्यो छे, सो पांणी पावो । जदी रांणी डरवा लागी । तद हठमलवाक्यं - Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी [ ६१ पातसाहवाक्या मे हठीया छं हठमला, हठ पातसाह मैरा नाम बे । अमृत-वेली में चरू, जो सोर जावै तौ जाय वै ।। ११६ रांणीवाक्य अमृतवेली जो चरौ, तौ धरस्यौ ईहा सीस बे।। तब प्रावौ इरण मेहलमे, जीवन विस्वा वीस बै ॥ ११७ सुंण हो साहीब हठमला, सूरी हंदा काम वे । कायर षडग न बावसी, रकरण दैसी दाम बे ॥ ११८ सूरा पूरा सौ हुसौ, पासी तै मैहल मझार बे। साई सोसने दोय नै, पावो मेहल अटार बे॥ ११९ हठमल मन काठौ करो, मौह्यौ रूप सनेह बे। चंढवा लागौ चूंपसू, पर त्रिय जोडव नि(ने)ह ब ।। १२० एक षंड चढ दूसरे, तीजै षंडै जाय ब । सातमै चढनै बोलीयौ, थोडासा पाणी पाय वै ॥ १२१ म्हे परदेसी दोसावरा, प्राया ताली जाय बे । नानासी नाजक गोरडी, थोडासा पाणी पाय वै ॥ १२२ रांरगी झारी भर लेई, सीतल पाछी नीर वै। प्रबल सूगंधा सांमूडी, उभी प्राय नै तीर बं ॥ १२३ झारी हठमल हाथ ले, पारणी पीवन हाथ ब । झूकीयो सूगरणीरकां चूवै(भ्र वै), जाणै गहलौ वाथ वै ।। १२४ रांणीवाक्य कर ढीला घट सांघूडां, नीर दुलो ढल जाय बं । पंथोडौ तिरस्यौ नही, नेयरणां रहीयौ लभाय बै॥ १२५ हु हठालु हठमला, हठीया हमारा नाम बे। मेरी पाग बत्रीस वड, उपर छोगा च्यार बे ॥ २७ रांणीवाक्यं तुं हठालु हठमन्ना, हठीया तुमारा नाम बे। वीषको वेलडी जो चरे, तो सोर धरी इहां प्राव बे ॥ २८ हठमलवाक्यं हुं हठालु हठमलो, हठीया हमारा नमां बे। ए अमृतवेलडी मे चर, जो सीर जावे तो नांष बे ॥ २६ इसो कहे हठमल महीले चढ्यो। Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी हठमलवाक्यं हम परदेसी पंथीया, पाया तीरस्या आज बे। जों सूगरणी मन रंजी के, प्रापौ तौ सोझै काज ब ।। १२६ परीय उ(दु)हेलि छातीयां, बांधी नैरणां-बांरण ब । ताको त्रीस लागी षरी, रांणी करीय पिछारण ब ॥ १२७ रांणी सूरण मोहित हूई, कोधी घरण महार बे। रीसालू हंदी गौरडी, चोरडी करवा त्यार बौ ॥ १२८ माणस ते नही ढोरडा, पर त्रीय राणे नेह ब। नारी पत छोडो तुरत, पर पूरषांसू नेह बै ॥ १२६ ते नारी गढसूरडी, होवै जगमै हरांम वै। त्यू ए रोसालूरी गोरडी, हठमलसू हित काम बं ॥ १३० २६. वारता-इण भांतसूं जाब-साल करने हठमल नै रांणी बिछायत बैठा । माहो सनेहरी वातां करतां, चौपड रमतां पातसाह सारी ही वीध रीसालरी पूछ लीवी, मनरी वात सारो ही लीवी । चतुराईरी कलासूरांणीनै मोहत कीवी। हठमलवाक्यं एक पंड चढी दुसरे, तीसरे षंडे प्राय बे।। मे परदेसी पंथीया, थोडासा पाणी पाव बे ॥ ३० धारता- हठमल इसो कहीयो । तरे रांणी कुंजो भर पाणी पावा गई । हठमल पाणी पीवा लागो। रांणीवाक्यं दुहो- कर चीदा दारु घणो, नीर ढुले दुल जाय बे। पंथी नही तुं तरसीयो, नेणा रह्यो लोभाय बे ॥ ३१ वारता-जद हठमल पातसाह राजी हुऊ। रांणी पीण षुसी हुई। दोनुं नव षंडे महीले चढया। चोपड घेल्या। हठमल वाक्यं दुहो- चोपड घेले चतुर नर, दस दस मोहर लीगाव बे। नटण न पावे सुदरी, द्यो धुर अष्यर दाव बै ॥ ३२ रांणीवाक्यं नाहर सेती अधीक बल, साहीब चतुर सुजाण बे। हस हस वातां करत सुं, बगां (डा)सु कीसो गुमान बे ॥ ३३ वारता-इम प्रामा साहमा दुहा-गाहा कहीया, रम्या-घेल्या, भोग-धीलास कीया। हठमल रसालुको षबर पुछी-सीकार कोण वेला जाए छे, कोण वेलां पाछा पावे छे तोका कहो । तव रांणी कहे-पोहर १ दोन चढतां जावे छे, पोहर १ दोन पाछलो रहे, तरे प्रावे छ । इसो सुण ने हठमल असवार होयने घरे गयो । तठा पछे महीलारे बारणे मेना हती. सो बोली-भला भाभीजी ! सषरा हुआ, थाने छ मीनारा पाली मोटा कोया था, सो आज प्राछी कीनी; पीण रसालु भाइने प्रावणद्यो। Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी [ १३ दूहा- जे पर पूरषां कामनी, हील-मील लणहार बे। ते पतिनै काकर-समो, गिरणे नित की नार बे॥ १३१ ३०. वार्ता-इसो पातसाह मनमै वीचारी नै राणीनै कहों-'तरे ताई पातसाहकी मूदी करू, तैरा हाल हुकम, तैरा हुकम सारी पातसाहीमै करूंगा। तेरी आण-दांण कोई लोपन पावै नही । धनकी धनीयानी करूगां । हस वातकै वीचे जौ कछु कूड है तो षूदा मैरै ताइ सझा देवेगा। या वातमै कसीर न जाणोयौ । तुमांरा हीताकी कबूलायत इस तरफ रहैगी। अरी मेरा नगर नेहडा है। अब तुमारा मनकी तुम करो।' त? रांणी बोली-पांतसाह ! सीलामत, अबी ले चालौ तो ठीक है; नही तो रीसालू आवैगा तो वेत वनगा नहीं। तपातसाह रांणीनै लैनें उठीयो। त, सूवो नै मेंणां पीजरमै बेठो थी। तरै मेंना केहवा लागोदुहा- दस मास हंदी परणीया, कुंवर रीसालू तौय बे। सेवतां सोलह वरसमै, कीधी तो मनमै जोय बे ॥ १३२ रीसालू कुंवरने छोडनें, क्यू जावै घर ओर वे । पर पूरषांसू नेहडौ, किम कोज निज जौर वे ॥ १३३ ग. ऐस्यो हठमल पातस्याहन कह्यौ । तदी पातस्याहजी कांई कहै-थोडो सो पांणी पायो, तीरस लागी छ। तदी रांणी नीची उतरवा लागी। तद रांणी पातस्याहरो नाम पछ्यौ । तदी पातस्याह राणीने कांई कहै दूहा-- मेरा नाम छ हठोमला, नवहथा हठी होय बे । मेरी पाघ वतीस वड, उपर छोगा च्यार बे ॥ २३ रांणी पातस्यान काई कहै-रांणीवाक्यं दूहा----तु हठीमल तुहीमला, हठीया तेरा नाम बे । _रषी वेली जो चरे, सीर धरीयां प्राव बे ॥ २४ तदि हठीमल रांणीने कांई कहै दुहा- हुं हठवा हठीमला, हठीया मेरा नाम बे । __रषी वेली जे चरै, सीर जाएं तो जान बे ॥ २५ तदि म्हैल चढया। रांणीवाक्यं___ दुहा-ऐक षंड दुजे षंड, तीजे षंड प्राय बे। मे परदेसी पांथीया, थोडो सो पांणी पाव बे ॥ २६ वात-रांणी पांणीको कुंजो भर लाई । पाणी पीवा लागा। रांणी कांई कहै---- दूहा--कर छीदो क्युं कर पीवै, नीर ठुल ठुल जाय बे । ___ पंथी नही तीसाईयो, नयणां रह्यो लोभाय बे ॥ २७ Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४] बात रीसालूरी ३१. वार्ता-A. इसा दूहां मेंणा रांणीनै कह्या । त? रांणी पीजरो षोल नै मेणाने काढीनै पाषा षोस नाषी ने कुरो लेवाने उठी। त, सूवै विचारीयोरांडडी मेनैन मारसी तो अबै डाव काढणौ। दूसो विचारने पीजरा मांहैथी सूवी नीकल नै मैनाने चांचमे पकडै नै उडीयौ । सू सेहर बारे दिषणा दिसै कांनी माहादेवरो देहरो छौ, तिणरै वारण एक मोटो प्रांबी छ, तिणरे पेडरै षोषाल छ, तिणमै मेनानै वैसाण नै कहै छैदूहा- कामरण होयडा कोरणी, जीवत रही तुं प्राज वे । हिव सारी सीध होयसी, नेह विलूधी नाज वे ॥ १३४ ३२. वार्ता-हिवै नाम्रकण रांड कनातूं जीवती छुटी छ । सो हमै पाषां-परा वेगी ही आवसी । षोण पीणोरा जतन करबौ करतूं। कीण ही वार्तमे कसर बात-तदी पातस्याह रजाबंध हुवा । नव षंडे म्हैल चढ्या, चोपड घेल्या । तदी रीसालूको वेई पुछचो-कदी सीकार जाऐ छ, कदी प्राव छ ? तदि रांणी कह्यो-पोहर दिन सकार चढ़ता जाए छ, पोहर पाछलो रहतां प्रावै छै । तदि हठीमल पातस्याह नै रांणीरो चीत-मन एक-मेक हुवो । जांणे-अस्त्री रंभा छ, ईणसुभोग भोग, ऐसी तो देवतारै घर नही। तदि हठीमल भोग-वीलास करी नर-भवनो लाहो लीधो, ऐक-मेक हुंवा। पोहर दोय रहे नै सीष मांगी। तदि रांणी कहो-तुम्हें नीत-प्रत ईण वेला प्रावजो, ईम कहने सीष दीधी। आप घरे गया। ईतर मैणां बोली-भलां, भाभी ! थे ऐसा हूवा । थांन महीनाका पाल्या था । सो थारा तो ऐसा लषण छ । पिण रीसालु भाईनै प्रावाद्यो । घ.-वारता--तदी पातसाह बोल्यो-थोडौ सो पाणी पावो । तदी राणी पावण लागी। दूहा--कर छोदौ पाणी पीव, नीर ढुली दुली जाय बे । __पंथी नही तोसाइयो, नणां रह्यो लुभाय बे ॥ १७ तदी राणी पातसाहारो नाम पुछयौ दूहा-मेरा नाम हठ भला, नवहठ हठीया होय बे। मेरी पाघ वती पुड, उपर लुगा च्यार बे॥ १८ वारता-तदो रांणी कह्यौ-उंचा पदारो। पछै नव षंडे चढ्यौ । रसालु वेई पुछचौकदीयक सकार जाय छै ? पोहर दीन रहतां प्रावै छै । पछ पातसाहा रांणी माहो-माहे हस, रम छ । मानव-भवरो लाहो ले नै सीष मांगी। तदी राणी कह्यौ-थे सदाई आवज्यौ । पातसाह परो गयो । पछै मैणां बोली-भाभीजी ! थे पण पाछा हवा ! भाई रसालुन पावादौ । . A-A. चिह्नभित पाठ ख. ग. घ. प्रतियों में इस प्रकार प्राप्त है-- ख. इतरो कहीयो। तरे रांणीनु रीस चढी। सो पंजरा माहेथी मेनाने काढने मार नांषी । तदी सुबटे जांणीयो-मोनु पीण मार नांषसी । तद लल-पल कर मीठे वचने कहीयोबाईजी ! मोनु गरमी घणी होवे छे, सो बारे काढो। तद रांणीई पीजरा माहेथी सुवाने बारे काढीयो । तद सुवटो उडने प्रांबे जाय बेठो । Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी [६५ कोई पडण देउं नही। न लारै रांणी नै पातसाह सोच कीयो । पातसाह कही-बेटे सूवटै घणी कीवो । अबै तो काम तरेदार छ । दूसो विचारै छै । तिण वेला सूवौ उडने सतर्भूमीया मेहला उपर प्राय बेठौ रांणी नै पातसाहनै हो केह छ A[दूहा- है सूगरणी म्हे पंषीया, किरणरे प्रांवा हाथ बे। पिरण छल कर म्हे छै तरया, बलि मांहरो नही नाथ वे ॥ १३५ पिण थै जावो गोरडी, पातसाहरे साथ वै । मांहरो धरणी जब आवसी, तद म्हे हौस्यां सूनाथ वे ।। १३६ साइद भरस्यां गोरडी, चौरडी कीधी चोर बै । सांहां घर पूहती गोरडी, करि करि बहु मनवार वे ॥ १३७ पिरण को दाय-उपायथी, लासां थाने इण ठोर वे । रीसालूरी तुं गोरडी, म्है मैतै कोधी जोर वे ॥ १३८ भला तुम्हे सुषीया हुवौ, म्हे दुषीयारो देह वे । साहिब करसी सौ भला, पंषी पंषी सा लेह वे ।। १३६ पाजूनौ दिन अति भलो, जीवत रहोया म्हेह वे।। हिव सारा ही थौकडा, करस्यां सारा जेह वे ।। १४० ३३. वार्ता-तटै पातसाह नै रांणी सूवारा दूहा सूण्या । तर मनमै जाणीयो-जे सूवटो काम षराब करे तो अाज तो प्रो काम न करणौ, सूवारै कोइ वतां करस्या। इसौ पातसाह विचारने रांणीनै कहै-है राणी ! आज तो थे अठे ही ज रही, साथै ले जाऊ तो सूवी छटैपग छ, सौ उडनै कुंवरजीन कहै । कुवर घोडौ दपटायने आंपांने पोच ने दोन्हांहोनै मार नाष । तिणसू आज माने सीष हुवै छै नै सूवारे येक पवनवेग घौडो छै सो ल्यावं छ । तिण माथे थाने चढाय नै एक घोडी में लेज्यावस्यां । ] ग. ईतरो कह्यो। ती वारे रांणीने रीस चढी। तदी मैणांको गलो पकड्यौ, पीजरा माही थी काढीने मारी । तदि सुंवटो डरप्यो; जांण्यौ-मोनै पीण मारसी। तदो सुवै चकोर थकै दाव कीधो । मोनै गरम घणी होवे छ। सुवान पीजराम्हैथी परो काढयो । तदी सुयो मैणांने मारी तदी सुवो ऊचो जाय बैठो। घ. तदी राणीने रीस पाई। तदी मैणारौ गलो काटयौ । तदी सुवौ डरप्यौ । सुवौ कहवा लागौ-मोने गरमाई घणी हवै छै। पीजरा माहीथी परो काढीयो। सुवो उडे नै नवषंडा महल उपर जाये बैठौ । [ - jख. ग. घ. में कोष्ठगत दोहे एवं गद्यांश अप्राप्त हैं । Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ ] बात रीसालूरी A तठे रांणी सूजने बोली - पातसाह ! सिलांमत, प्राप कयां सू प्रमाण है । तिण षोज रमायां सारा हि थोक होसी । प्राप दिन पांच सात तौ घोडै चढिने इण ही वेला पधारबो करो; विलास करे नै पधारबो करो । दिन पांच-सात पर्छ दाव लागसी, सो ही करस्यां । धिरां कांम सिध हूवै । दूहा - उतावल कीया अलूकीय, सनै सने सहु हौय वे । माली सींच सो घडा, रीत आया फल होय वे ।। १४१ ain विचारीने कहो, रहसी तिणारी लाज वे । ऊठ कहो उतावला, तो विरसाडै काज वे ।। १४२ षिजमत - ब धी रावली, जांणो चित्त मकार वे । १४४ सालू ने छोडस्यू, कोइ क डाव अटार वे ।। १४३ सूष करस्यू सारी वातरी, पंषीडारी पुकार बे I लागवा नही द्यू एक ही, करस्यूँ हुय हुसीयार बे ॥ श्राप षूसी पीउं पधारीयै, दुष म करो कोई श्राज ब े । साहिब सारा ही हुसी, श्रपणा चित्या काज ब ।। १४५ ३४. वार्ता- इसा समाचार पातसाहनै कहीया । तठे हठमल सेंणासूं सीष करनें घरां दीसा हालीयो सो घरे पूहता । नें रांरणी दीलगीर हुयने सूती । सूबो सतभौमीया मेहलां चढीयो थको कुवरजीरी वात जो है । A B इतरै सागी वीरीया हुई । तठै कुंवर घोडौ पिलावतां प्राया । ग्रागे सुवान मेहीलरे इंडारे वेठो दीठौ । तठे सूवाने कुवरजी पूछे दूहा - आज उजाडा देसम, फरहरीयां पंषाल वै । चिह्न दिसी जावो चमकतों, नैणा करीय विसाल वे ।। १४६ पींजरीयारा पोढणा, सौ इहा किम तुमे प्राज वे 1 क्या विधवीत क दाषीय, कैसा हूवा श्राज काज बो ॥ १४७ B A-A. चिह्नति पाठ ख. ग. घ. प्रतियों में नहीं है । B-B. ख. ग. घ. प्रतियों में गद्यांश एवं पद्यों के स्थान में निम्नांश ही प्राप्त है ख. एहवे रसालु श्राया । तदी सुवटो रसालु प्रते कांई कहे छे ग. प्रतरायकर्म रीसालु जी पीण श्राव्या । श्रनै सुवो बोल्यो । सुवो रीसालुन कांई कहैघ. तर रसालु श्रायौ । सुवो कांई क है - । Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालरी [१७ सूवावाक्यं' पंच पंषेरू सात सूवटा, नव तीतर दस मोर बे। राजा रीसालूरा मेहलमै , चोरी कर गयां चोर बे ॥ १४८ रीसालूवाक्य चोर इहां कुंण प्रावीयो, एहवो इंहां कुण सूर बे। साच कहै रे सूवटा, मत बोलेजे कूर बे ॥ १४६१० सूवावाक्यं १ अंहो अंहो कुंवरजी रीसालूवा, मे नही वोलां झूठ बे। म्है पिंजरारा वासिया, सो किम मंदिर पूठ बै ।। १५०१२ [३५. वार्ता-त, कुंवरजी मनमै वीचारीयो-सूवी-मेंणा पिंजरमै हुता; सो सूवौ महिला उपरे बेठो; तिणरो कारण काईक तो छै? इसी विचारनै कुंवर मेहलो चढिया। तठे सारा हि चरित्र दीठा । सेझ रूदोली, विछाता सल दीठा, पांनारां पिक ठांमर दीठा । तठे रांणीने जगायनै कुंवरजी पूछ छदूहा- प्राज मेहिल पाछौं वरणो, पर हथ लीधो लूट बै। साचौ कहै बै सूचटौ, रांणी कहो पर पूठ बे ॥ १५१ स्यू कोधो रांगी एहवो, चारित्र सलुगा नैरण बे।। लट काली नारी कहौ, साच कहो मोरी सैरण बै ॥ १५२ ३६. वार्ता-है राणी! सूवै वात कही, सौ साची के कुडी ? तठे राणी विचारीयों-इण सूवौ हरांमषोर मारा चरित्र कुमरजी- कहिया दिसै छै; पिण माहरा चरित्र आगै कुवरजी कठै पूगसी, कठा ताई साच कढावसी ? इसो विचारनै कुवरजीने रांणो कहै छै-] १ ख. सुकवाक्यं दुहो। ग. घ. दुहो। २. ख. पांच । ३. ४. ग. घ. उड गया। ५. ग. घ. दस । ६. ग. ल. दोय। ७. ख. राजा रसालुरे मालीये । ग. घ. रीसालु हंदा धवलहर। ८. ग. घ. कोई चोरी। ६. १०.११. १२. ख. ग. घ. में अनुपलब्ध हैं । [-]. ख. ग. घ. प्रतियों में केवल निम्न वाक्य ही प्राप्त हैं ख. वारता-रसालु सुवटारा इसा वचन सुण ने रांणीने कहे-जुउं रांणी ! सुबटो काई कहे छे ? रांणी कहै ग. वारता-ऐस्यो त्रीभाव सुंण ने रीसालुं रांणीने काई कहे-रांणी ! सुवो काई कहै छ ? तदी कह्यौ घ. वारता - तवी रसालु कहै-रांणी ! सुवौ काई कहै. छ ? तदी रांणी कहै Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६] बात रीसालूरी दूहा- कूडौ बोले छ सूवटौ, मेंना गई अवनास बे।। तिणसू चूंका बोलडा, राज सूण्याया तास बे ॥ १५३A हम की लोयरण लोइया, हमथी तोरचा हार बे । हम ही सेझ ही रूदली, हम ही न्हीष्या तंबोल बे ॥ १५४B [कंमरजीवाक्यं पिलंग छपीयां छाटीयां, ढीली भई यबंदांरण बे। तीर भया वीष हौ रीया, किम कर चढीय कबारण बे ।। १५५ रांणीवाक्यं ऊं एकलडी महीलमै, तोरणथी कीधी चोल बे। साच न वौल्यौ सूवटौ, गलां हंदी रोल बे ॥ १५६] A. इस दूहेके स्थानमें ख. ग. घ. में केवल निम्न वाक्य ही प्राप्त हैंख. सुबटो जुठ बोले छ । ग. जुठो बोले छ। घ. सुवो धूल षायै छै । B. ख. ग. घ. में निम्न दो दूहे प्राप्त हैं रसालुवाक्यं दुहो- कोण ए लोयण लोइया, कोण ए तोडया हार थे। कीण ए सेजां मुगदली, कीण राल्या तंबोल बे ॥ ३५ रांणीवाक्यं हम ही लोयण लोइया, हम ही तोड्या हार बे। हम ही सेझां मुगदली, हम राल्या तंबोल बे॥ ३६ ग. तदी रीसालु रांणी नै काई कहै छदूहा- कोण ही लोयण लोईया बेरांणी, कोणही५ तोड्या हार बे। कोणही' सेजां रूंदली, कोण ही नांष्या तंबोल बे॥ २६ राणीवाक्यं मे ही लोयण लोईया बे कंवर, मे ही तोडचा हार बे। मे ही सेजां संदली, मे ही नाष्या तंबोल बे॥ ३० घ. १. तदी रसालु कहै-1 २. घ. कण हो। ३. घ. लुईया। ४. घ. में नहीं है। ५. घ. कोण। ६. घ. कोणी । ७. घ. राल्या। ८. घ. लुहीया। ६. घ. में नहीं है। १०. घ. राल्या। [-]. कोष्ठगत संदर्भ एवं १५५ तथा १५६वा दूहा ग. घ. में अप्राप्त है तथा ख. प्रति में एक ही वहा प्राप्त है जो इस प्रकार है रीसालुवाक्यं पलंग छीपाए छांटीये, ढीली भई अबदांण बे। तीर भाथा हम ले चले, कीम कर चाढी कबांण बे ॥ ३७ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी [ ६९ A ३७. वार्ता-इसो संण नै कुवरजी उचा जोवा लागा। तठे छातरै पीक नीजर प्रायों । तठे कुवरजी वोलीया-रांणीजी साहिब ! ओर काम तो थे कीया, पिण छातरे पिक किरण लगायों ? ओ पीकरो तो जोधार हवै नै सवा मण लोह डील उपर राषै; तिण विना इतरो उचो न लागे । तर रांणी वोलीमाहाराज कुवार ! ओ पीक तो में लगायो छै । ढोलीय चीती सूती थी तरे मै छातनै वाह्यो । तठे कुंवर बोलीया-दूरस कही छै; पिण कांना सूरणीयां तो न पतिज्यूं, प्रांष्यां दीठा पतिज्यू । सौ प्रो ढोलीयो छ, तिण माथै सूय ने पीक बाहा । त? रांणी ढोलीया चित्ती सय ने पिक नाष्यो । सौ पीक पूठौ माथा उपर आय पड्यौ । इम दोय-तिन वार घणो मेहनत कीवी, पिण पीक पूछो पाय पडे। तठे कुवरजी बोलीया-राणीजी! घणी मेहनत कीवी, थांहरा गुण निजर आया। ____Bइतरै सूवी पिण महिलरा इंडांसू उडनै कुवररो हाथरो अंगुठा उपरे बेठौ । संवासं कुंवरजी सारी हकीगत केह दीवी। मनमै जांणीयौ-जे कोई पूरष बलवंत जोरावर छ, पिण दांणा-पांणी छै तो सारो हि जाबतो कर लेस्यां । इसो विचार ने कुंवरजी सूंवाने पूछीयो-सूवाजी ! मेना कठै गई ? तरै सूत्रों मनमै जांणीयो-जै अवै सागै वात कहुं तो रांणीरो नाम हूवों, तरै सूर्व कह्यौमाहाराज कूवार ! मनै छोडनै जाती रही । तरै कुंवरजो बोलीया-सूवाजी ! अस्त्ररी कीणही री नही छै ।B Cयं वांतां करतां कुवरजीरो बोल होरण सणीयौ । त, हीरण कुंवरजीसं मीलवा आयो। वीती, तीका बात अहमी-सांमी पूछी। तठे-कुंवरजी जांणीयोंनिश्चौ हठीयो पातसाह कहीजे, तीकोइ ज दिसै छै। इसी विचार न हीरणनै वरज ने कुवरजी सोय रह्या । A-A. चिन्हगत पाठभेद ख. ग. घ. प्रतियों में निम्नोल्लिखित है ख. वारता- रसालु कहे-देषा, थे मां देषतां नवषंडाके छाजे तंबोल नांषो। तदी रांणीई पान-बीडी चावने छाजा सारु तंबोल नांष्यो । सो रांगोरे पाछो माथा उपर प्राय पडयो। जद रसालु कहीयो-थारा गुण जांण्या; थे वेसे रहो। ___ग. वारता- तदि रीसालु कह्यो-म्हां देषतां नांषो। तंबोल नवपंडै छाजै नाष देषालो तो थे साचा । तदि पनि चाव्या । तंबोल नांष्यो । माथा ऊपरै पाछो भावी पडयो। तदी रीसालं कह्यौ–अब बैसो । म्हे जाण्या यां(थां)ने । घ. तदी रसालू कहै-मांह देषतां पान तमाषु षावौ, नवपंड्याकै छाजे तांबोल नांषो । तदी रांणी पीक नांष्यो, सो पाछो माथा उपरै प्रावी पड्यौ । रसालु कह्यौ-थे ठकांण बैसो, थहरौ जांणौ। B-B. यह अंश ख. ग. घ. प्रतियों में अनुपलब्ध है। C-C. ख. ग. घ. प्रतियों में चिह्नित अप्राप्त है। Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० ] बात सालूरी Aपरभातरो पूहर हुवौ । तठे घोडै सवार हुई यनै सूवाने ले सोकार दिया। रांणीने जाबता दिवी । तठे सूबो ने कुंवर सहिर बारे जायनै घोडौ छान जायगामे राषीयो नै सूवो ने कुंवरजी छांनेसे उपरवार्ड होय ने मेहलरी distri आयने बेठा । B सवा पहर दिन चढीयो । तठे हठमल पातसाह नवल घोडै चढी नै णी मेहलां प्रायो । ठँ सूवाने कुंवरजी कहीयो - जावो, थे षबर ल्यावो । देषां रांणी एकली छै के दौकली छै ? तठे सूवोजी छांनेसे महिलां देषने पाछौ कुंवरजी पास आयो । आय नें दूही कहो - B [ दूही- करसू कर मेलावीया, सेझां लेत सवाद बै । डर किरो नही कुंवरजी, अब मत करी थै वाद बे ।। १५७ ३८. वार्ता - तठे कुंवरजी हथीयांरां सझिने पातसाहरो मारग जाय रूधीयो छ । पांणीपथौ घोडी पीलावै छै । तठे सुवानें कुवरजी कहीयौ - जा, तु बर देव । तठे सूवी उडनै मैहिलां उपर ग्राय बेठी । टहुका दिया नै समस्यांबंध दूही केह छै - --- दूहा - श्राइयो लेष बालाहका, दूष-सूषका विरतंत बे । श्रावेगी यारो मोतडी, पर बंधी कुलवंत वै ॥ १५८ ३६. वार्त्ताइसौ दूही केहने किलोल कर बेठो छे । पांषां फरफराट करे छै । रोम रोम चांचसूं समारे छे । इरण भांतसूं घडी येक चरित्र करनें पातसाहनें सूनाय नै बोलीयो A- A. ख. ग. घ. में निम्न पाठ है ख. इम करतां तीको दीवस बतीत हुउं । बीजे दीन रसालु सीकार चढीया । सुबटानुं साथै लीयो । महीला नीचे छांना जाय बैठ रह्या । ग. तदी रीसालुं दुजै दीन सीकार जातां सुवाने लारे ले गया । श्राप सोकाररो मीस करेने महलां ऐकत जाए बैठा । 1 घ. वूजे दोन सकारको मस करेनै गयो । सुवा ने हीरणने ले गयो । सो श्राघोसो जाये नीचली भुममं छानोसो बैठौ । B-B. ख. ग. घ. का पाठ इस प्रकार है ख. इतरे हठमल फेर आयो । उंचो महीले चढ्यो । रसालु चढण दीघो । ग. अतरायकमै पातस्याजी श्राया । हठीमल उच्चा चढया । रोसालुये चढवा दोघो । घ. तर दोनेरकै वर्षात हठमल पातीसाह मैहल ऊपरं चढ्यौ । रसालु जावा दीधो । [ - ]. ख. ग. घ. प्रतियों में कोष्ठगत गद्यपद्यात्मक अंश प्राप्त है । Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी [१०१ दूहा- आईयो कुंवरजी प्रावीया, सेहर कनै पाश्रांम बै। रमो रे पंथीडा समझिने, उड जावो निज धाम बे १५६ इम टहुक्का सरला दीया, सतभौमीन धाम बै। रांगो-हठमल तिहा सूण्यौ, उठीया छोडी काम बै ।। १६०] * ४०. वार्ता-इसा समाचार सूणनै पातसाह सावचेत हूयनें, हथीयार पडिहार लेइने, आपरै घोडै आय नै पागडे पग दीधो । त, रांणी घणी वीरहमे मत्त हूई । तपातसाह राजा-मारी चाल पकडने केह छैदूहा- रयणी दुषकी राश भी, भरसी गुण संताब बे। ढोली सहु ढीली पडी, जावो कलेजा काप बे ॥ १६१ में विरहरणी विरहा तरणी, फीट सूवटा तुझ फोट बे। सूपरी घडीय छुटाय दी, जीवत वीधी चोट बै॥ १६२ हठमल हठ कर चालीयौ, निज मारग मन रंग बे । आगे रीसालू देषीयो, तुरंग कुदाले अभंग बे ।। १६३* [४१. वार्ता-पातसाहजी आपरा मारगमै चालतां आगे रोसालू कुवरने घोडौ कुदावतौ दीठौ । तठ पातसाह जाग्यौ--आज चोट हसी। इम चालतां प्रांमा-साहमा मिल्यां, वतलावण हुई। तठ कुवरजी कहै--रे हठमला वावला ! माहरा महिला मांहि चोरी कीधी, तिरणरो जाब दिरावो । तठ पातसाह बोलीयोतेरा मेहिलका चोर मे हूँ'; तेरे करणा हुवै, सं ते करलै । त? कुंवर बोलीयोतु सूरबीर छै तो पेहली हथीयांरां हाथ करो। तठे पातसाह बोलीयौ-हुँ हाथ करस्यूतरै थे कीतरीक वार रेहस्यौ ? यू मनवार करतां कुवर-पातसाह मंछां वट घाल्यो । तरै रोसा करने पातसाह सवा मरणरो भालौ कांधे हुतो, सो कुवर साहमौ वाह्यो। तठ कुवरजी कलासू टालोयो। सो भालो दूर जातो षत्यो । त रीसाल आपरो भालो लेने पाछो वाह्यौ। तिण पातसाहरे छातीमे धूतो बाहिर पार निकल गयो । तरे हठमलजी घोडासू हेठा पडीया । तठे कुंवर हेठो उतर ने पातसाह कनै प्रायने कहै छदुहा- नार पराई विलसतां, कांटा पूर तूटाय बे । सीस साई जव दीजीये, मीच पडै सूचि काय बे॥ १६४ *-* ४०वीं वार्ता का गद्य-पद्यांश ख. ग. घ. प्रतियों में नहीं है। [-]. कोष्ठकान्तर्वर्ती ४१वीं वार्ता के गद्य-पद्यात्मक अंश की वाक्यरचना ख. ग. घ. प्रतियों में इस प्रकार वर्णित है Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ ] बात रीसालूरी सूरण रे हठीया पातसा, ताहरो बल हिव फोर बे। हठमल धरती लोटातो, चोरी पडी सीर चोर बे॥ १६५ हिव रोसालूं सीस कू, वाह्या अपणा षग्ग बे। हठमलका सीस कपोया, ते मारगने वगाव बे।। १६६] ४२. वार्ता-तठ पातसाहनी कालजो काढ, नै घोडारा तोबरामै घाल, नैं माथारो लोही छांगलामै लेने सेहरमै कुंवरजी आया। प्रागै कीणही री हाटम चरी लेइ, ने तेलरा घडा भरीया था सूनी हाट मांहै, तिण चरीमे तेल लेने लोही भेला कीया, नै प्रापरे घोडै असवार हय, ने नवलषो घोडो हाथे षांचने आपरा मेहलांरी वाडीमै बांध दीयौ; नै आपरो घोडो सदाई जागा बांधीयो, ने सूवाने कहीयो-पातसाहनै मारीयो छौ। इतरो केहने तोबरो, चरी जे (ले)ने मेहलां कुंवरजी आया । प्रायने रांणीने कहीयौ-जे आज सीकार आछी कीवी छ । बडा सीरदारांरा साथ भेला हुवा छा सो मेह तो आरोगीयासा ने ताहरै वास्तै लायां छां, सो संभाल लीज्यौ । इतरों कहीने हेठा उतरीया ने हीरण कने गया। अबे थै निसंक थका तिण वागमै हगाम करि पावो। इसो केहनें सूवाने कहीयौ-जावौ, थे रांणीनै जितावणी कर देवज्यो। त? रांणी मांस तोबरासू लेने रांध्यो ने तेलरो दीवो कीयो छै। हिवै मांसने रांधने षाधौ। तठे सुवो थांभै वेसने राणीनै सूणावै छै-A ख. हास-वीलास कर पाछो उतरतां रसालुए वाट बांधी हती, तीण माहे पाय पडयो। रसालु बोलीयो-हठमल ! तुघणा दीनारो जातो हतो पीण अाज हुसीयार हुज्यों; हुं मारीया टाल मेलु नहीं । तद हठमल कहे-हु ताहरो चोर छु; तीण वास्ते पेलो लोह तुं कर। तद रसालु कह्यो-पेली लोह तुं कर। जदी हठमल कहे--माहरा हाथरी लागा तुं कोणने मारसी ? तो ही पीण रसालु पेली लोह न कोधो। तरे हठमल नवहथो जोध-घोडे चढने सवा मणरो भलको साधने रसालुने भलको वाह्यो। तद रसालुए प्रसपार थके टालीयो। पर रसालुए भलको सांध हमलनु वाह्यो । जद माथो प्राय प्रागे पडीयो। ग. तीहां जाए भोग-वीलास कीधो। पोहर एक ताई रहे नै पाछो ऊतरयौ। तदि रीसालु बोल्यो, कह्यो-हठीमल ! घणा दीनरो जातो थो, प्राज ठीक पडसी; अबै तुं समाव । तदी पातस्याह कहो-हू तो थांहरो चोर छु, पहली तो तुं दै। तदी रीसालूं कहौहू तो पैहली लोह न करूं । तदी हठीमल कह्यौ-मेरा हाथकी व्याकर पीछे कीसकै दैगा ? तदि हठीमल पातसाह नवहथ घोडे चढयौ छ। तदि सवा मणको भलको सांध्यो। रीसालु टाल्यो । रीसालु हठीमल सांभो भलको संध्यो, हठीमलर दीधी । माथौ अलगो जान पड्यौ । घ. पातसाह रमे-घेले नै नीचे उतरचौ। तद रसालु कह्यौ--- घणा दीनरो जातो थौ पण अाज ठोक पडसी । रसालु भलको सांधै नै हठमाल पातसाहरै दोधी। पातसाह हेठो पड्यौ। माथो वाडीयो। A. ४२वीं वार्ता की वाक्य-रचना ख. ग. घ. प्रतियोंमें निम्न रूप में लिखित हैख. जद रसालुऐ हठमलरो कालजो काढ लोधो। चरवी की तेल काढीयो। पछे घरे Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात सालूरी दूहा' - पीउ कचोले पीउ वाटके, पीउ बीवलैरी धार बे । नार" बे ।। १६७६ पीउ तो पेटमे संचरचौ श्रजे न धापी हाथ पोउ 'मूष' ' परजले २, छिनभर जीवतड़ां ' 'जंग मांणीयो", मूंबा पीछे १७ १६ थे दीनां में जो जांगत 3 १४ २ रांणीवाक्यं २ २५ जीमीया ४ मृगला " हंदा " रह्यौ "छिपाय " बे । रांणी २१ षाय बे ।। १६८ साहब २७ बे । G 30 पीउ मारीयौ, तो करती कटारी घाव बे ।। १६६३१ ४३. वार्ता - इसी बात संवेजी रांणीने कही । कुँवरजी छांना थका बातां सूणी । तर मनमै वीचारीयो - श्रा अस्त्ररी मांरे कांमरी नही । ७२ श्राया । कालजी ने तेल रांणीनु दीधा । रांणी जांण्यो- मृगरो कालजो दीसे छे । सो कालजो रांधी षाधो । संध्याए तेल दीवे सोचीयो । तदी सुबटो रांणी प्रते कांइ कहे छे १०३ ग. तदि रीसालु हठीमलरो कालिजो काढि रांणी नषे ले गनो। रांणीऐ रांध्यो, बाधो,, दीवलं बाल्यो । तदि वो बोल्यो घ. पातसाहरों कालजो रांणी नर्ष प्रांण्यौ । रांणी तीरासुं रांधायो, दीवाने घाल्यौ । तदी सुवो बोलीयो घ. प्रति में यह दूहा नहीं है । ही प्राप्त हैं मं जांण्यो मृग मारीश्र सुवा, मुझ देषणरी चाह बे । जो हठीयो मुनौ जांणतो, तो करतो कटारयां घाव बे ॥ ३२ । । घ. सैण । १७. घ. जीवतां । १. ख. सुकवाक्यं । २. ३. ४. ख. प्रीउ । ५. ख. दीवलाकी । ६. ख. में ७. ख. प्रायो । ८. ख. सार । ६. यह दूहा ग. घ. में नहीं है । १०. ख. प्रीउ ११. ग. मुष । घ. मुषं । १२ ग. पीउ । घ. सैण । १३. ख. षीण । ग. पीउ १४. १५. ग. दिवलो । घ. दीवले । १६. ख. छोपाय । ग. घ. जलाम । १८. ग. मांणीयो रांणी । १६. ख. मुना । ग. घ. मुवां । २०. ख. २१. ग. पीन । घ. में नहीं है । २२. ग. रांणी सुंवाने कांई कहै । २३. ख. दीधो मे । २४. ख. जीमीयो । २५.२६. ख. कांह २८. ख. जांणु । २६. ख. में नहीं है । ३०. ख. कटारीयां । इस प्रकार है- पछे । ग. केडे । घ. में प्राप्राप्त है । I मृग हंदो । २७. ख. साव । ३१. ग. प्रति में यह वहा ख. वारसा तरे रसालु जांणीयो-श्रा श्रस्त्री मां जोग नही । ग. वात- सदी रीसालु जांण्यो-श्रा यसत्री मां जोगी नही । घ. वारता - रसालु मंनमे जांण्यो- प्रसत्री मांह जोगी न्ही । नहीं है । घ. संण । ३२. ख. ग. घ. में ४३वीं वार्ता के निम्न वाक्य Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ ] . बात रीसालूरी दूहा- देषो हुती दस मासनी, पाली किरण विध पोष बे। हिव पर घर मंडप करी, अस्त्रीजातरी प्रोष बे॥ १७० केहनी अस्त्री न जांगज्यौ, कुडो नेह रचंत बे।। पूठ पराई नारीयां, न धरे एक ही कंत बे ॥ १७१२ सासरीया पीहर तरणा, कुलन करती षराब बे। परपूरूषां मनडो रंजे, सकल गमावे आब बे ॥ १७२३ ४४ वार्ता-इण भांतसू कुवरजी चितवना करे छे। इतरे रात गई देषने, सारी जाबता करने, रांगोने मेहलांमै जडनै दूजै मेहलांमे सूता। हिरण चरवा गयो । सूत्रो मेंणा पास गयो । जतन-जाबता साराहीरी हुई। हिवे परभात हुवो। त? कोई क जोगो, अस्त्रीरो विजोग हुवो, नगर देषने पुकारवा आयो। आगे नगर कठेई क सूनो, कठेई क वस्ती देषने कोणही कने पूछीयोरे भइया ! इ नगरका राव कहां है ? तठे आदमी बोलीयो-अहो जोगीजी माहाराज ! म्हे तो राजारा मेहलांसू घरणा पागलै रहां छां। ए साहमा सतभोमीया आवास सोनेरा कलस चिलकै, तिके रावरी जायगा छ। म्हे तो रावजीने कदेई देषीया न छै । थाहरें काम छै तो थे जावौ। तठे अतीत रावजी जायगा पायं । सारी ही सूनी दीठी। दूहा- नहीं घोडा रथ उंटीयां, हाथी ने सूषपाल बे। चाकर-बाबर को नही, ए नृप केहा हवाल बे ।। १७३५ इम चितवता प्रावीयो, रीसालू मेहला हेठ बे। घोडो देष्यौ हिरणेने, वसती जारणी नेट बे। १७४६ ४५. वार्ता-तठे मेहलां है, अतीत उभो रेहनै पूकार कीवी-अरे बाबा । मेरा धणी कोउं नांहि है, तेरे पास आया हं; सो मेरो वाहर करीयौ माहाराज ! मेरी अस्त्रीके तांई मांटी पणें एक जोगी लेगया; सो मेरी दिराय देवो। ज्यू मेरा जीव मोरो हुवै; तेरे तांइ वडा पूंन्य हुवेगा। इसी पूकार कीवी। त, रीसालसूणने हेठो उतरीयो; जोगी पास आय हकीकत पूछी। तठे जोगी रोयवा लागो । तरे रीसाल कहै--. १.२. ३. तीनों दूहे ख. ग. घ. प्रतियों में नहीं हैं। ४. ४४वीं वार्ता का अंश ख. ग. घ. में निम्न वाक्यों में ही लिखित हैख. इतरे प्रभात हुओ। एक अतीत मेहलां नीचे प्राय उभो रह्यो। ग. तवी सवार हुवो। एक अतीत म्हला नीचे पाये ऊभो रह्यो। घ. में यह अंश बिलकुल ही नहीं है। ५. ६. दोनों दूहे ख. ग. घ. में नहीं हैं। ७. ४५वीं वार्ता के स्थान में निम्न वाक्य ही ख. ग. प्रतियों में उपलब्ध है-ख. वीलाप करतो रोवे छे । तरे रसालु पुछयो-क्यु रोवे Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात सालूरी भर भर नयंरण , सीम जांगो आापरी, घर तुंमारा जोगी बाक्यं दूहा- जोगीडा रसभोगीया' राजा मेरी वालही, मो प्यारी मन मांह बे । बलै न मूक एहवो मिलै, सूंदर रूप सरांह बे ॥। १७६१° मे स्त्री विन सूनडा, जीवडा जात है दोड बे । मांडाई जोगी ले गयो, मांहरां जीवरी मोर बे ॥ १७७११ मत रोय बे । जोय बे ॥ १७५ में मरहूं त्रिस कारणे, करीये मांहरी सार बे । तेरे श्रागे पूकारीया, सूरणीय मांहरी पूकार बे ।। १७८१२ ४६. वार्ता - तठे कुंवरजी मनमै वीचारीयौ जे रांणीने इण जोगीने परी देउं तो पाप कटै । इस मनमे विचार करने जोगिने कहै छै 93 हा १४- प्राय सजोगी ध्यानमै रहोये" जटा वनाय माहरी परणी प्रेमकी, चाढी ताहरै पाय२० बे ।। १७६ ४७. वार्ता - इसो सूण, जोगी राजी हुयनै केह छै- तेरा परमेश्वर भला करीयो; मेरा जीव घूस कोया । तुंमारी रांणी पाउं जहां मेरे किस वातकी कुमी है । तठे कुंवरजी ले ने पांणीरी [झा] रीसूं संकलप कीधी, नै रांणीने मैहलांसू काढ नै जोगीने परी दीवी ने कहै छै २५. 15 १०५ ६ बे । छे ? तरे जोगी कहे - माहरी स्त्री मने मोकसे हुनो जांणी मने छोड नोर जोगी लारे गई। ती वास्छु । रसालुवाक्यं - ग. गोरष जगायो । तदि रोसालू कांई कहैघ. प्रति में इस वार्ता का कुछ भी अंश लिखित नहीं है । १. ख. रसभोगीडा । २. ख. नेण । ३. ख. म. । ४, ५. ६. ख. श्रीया न होवे । ७. ख हमारा । ८. ग. और घ. प्रति में यह हा नहीं है । ६ १० ११ १२ सन्दर्भ एवं ब्रूहे ख. ग. घ. में १३. ४६वीं वार्ताका श्रंश ग घ प्रतियों में प्रप्राप्त है लिखित है प्राप्त हैं । तथा ख. प्रतिमें इस प्रकार वारता - रसालु जोगीनु रोवतो देषी मनमा बीचारीयो - श्रा प्रस्त्री इण जोगीने द्य तो भली । रसालुवाक्यं । १४. ख. दुहो । १५. ख. रहो २ । ग. रहि । १६. ख. बनाव । १७. ख. माहरी स्त्री परणी जीके । ग. मांहरी अस्त्री परणी । १८. ग. चोहडी । १६. ख. ग. तुमारे। २०. घ. यह ही नहीं है । २१. ४७वीं वार्ता घ. प्रतिमें नहीं है किन्तु ख. ग. प्रतियों में इसका रूपान्तर इस प्रकार हैस्व. वारता - रसालु एसो कहि योगीने स्त्री-दांन दीधो । हाथ पांणी घालीयो; श्रीकृष्णा पुन्य कीधो । जोगी बहुत राजी हुश्रो । ग. वारता - तदि रोसालू श्रसत्री दीधी । तदि जोगी हुयो । जोगीरा हाथ में पांणी क्यो; रांणीनं परं बीधी । -- Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ ] बात रीसालूरी दहा- जावो रांणी विडांणोया, जोगी लार जगत बे। थे मंदा सोर गयो हिवै, पर वणीयां गत चित्त बे ॥ १८०' ४८. वार्ता- इसो कहिन जोगीने सीष दीवी। अबे मृगला ने सूवा ने मेनां न सर्वने साथ लेने कुंवरजी असवार हवा सेहर बारे अाया। त? संवे विचारीयोंकुंवरजी सह तो आज नगर छोडीयौ ने कठेइ क अाघा जावसी । तठे सूवो केह छैदूहा- अहो रीसालू कुंवरजी, क्यूं छोड्या रूडा घांम बे। किण दिस मजल करावस्यौ, किण पूर केहने गांम बै ।। १८१' कुंवरजीवाक्यं सूवा किण देशे चलां, सूरां किसा विदेस बे । जिहां अपणां अन्न-पाणीया, जिहां करस्यां पर सेव(वेस)बे ॥ १८२५ ४६. वार्ता- तठे सूवेजी बोलीयो-माहाराजा कुंवर ! आप घडी एक पंग थंभजो, सो मेंनांने लेने पाउं । तठे कुंवरजी बोलीया-मेंनां तो जाती रही थी, सो अबे थे कठासू ल्यावज्यो ? तरे वासली हकीकत सूवै सारी कही। त? कुंवरजी जांणीयो-जे सूवो वडो पर उपगारी छ । राणीने जीवती राषो; नही तो हु आ वात सुंणतो तो रांणीने मार नांषतो । पिण स्यावास इंण पंषोरी बुद्ध में । दूहा- उत्तम जीव हुवे जिके, जिण तिणसूं उपगार थे। करतां न जाणे हांण बे, राषे सूष पर कार बे ॥ १८३० ५०. वार्ता- इसो विचारने कंवरजी बोलीया-जे सवाजी मेंनांने किण तरे ल्यावस्यौ; हुं साथे हि चालू ; पीजरामें लेने पाघा चालस्यां। इसो कहीने कुंवरजीने सूवो माहादेवजीरे देहरे ले गयो। आगे कुंवरजी माहादेवजीरो दरसण कीयौ, पूजा कीवी, अरक पूफ घणा चढाया, दुपद कीया, सूत कीवी। पछे मेंनां में सूवाने पीजरामे घालने कुंवर आघा चालीया ।' १. यह दूहा ख. ग. घ. प्रतियों में नहीं है। २. ४८वीं वार्ता के स्थान पर ख. ग. घ, प्रतियोंमें निम्न वाक्यांश ही उपलब्ध हैं ख. रसालु घोडे असवार होय आगे चाल्या । मृग, सुबटो साथै छ। राजा मानरी देस सारु षडीया। ग. पर्छ रीसालु प्रसवार होय नै मृगने साथ लेई परो गयो। घ. सवेरै छोडे परी रसाल परा चाल्या । ३. ४. ५. ६. ७. ८. गद्य-पद्यात्मक अंश ख. ग. घ. में नहीं है। Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १०७ बात रीसालूरी [हिवै राणी सामीजी कने ऊभी थकी विचारीयो-प्रो काम षोटो हवो;सांमीरा लारे किसी तरे जाउं; पिण दाणा-पांणीरी वात इसीहीज हुई; हूंणहारने कोई पूग सके नहीं। दुहा- दईवांधीन लिष्या जिके, अंकण भिसलें सीस बे। जेसा दुष-सूष सीरजीया, जेसा लहै नर दोस बे ।। १८४ रांमसरीसा भोगव्या, वारै वरस वनवास बे। तो हुँ गीण (ती) केतली, दईव लिष्या ते पास बे ॥ १८५] ५१. वार्ता- इसो मनमें रांणी पीछतावो कोयो ने मनमें वीचारीयो-जे दांणा-पांणी छै तो सारा ही थोक करस्यं । इसो विचारने रांणी जोगीनै कहैसांमोजी माहाराज ! अठे तो सून्याड छै ने अठासूं सात कोस उपर जलालपूर पाटण छ, तठै हठमल पातसाह जा (राज) कर छ, तठे हालो, जाय वस्या; प्रांपणौ गुंदरांण करस्यां। तठे सांमीजी राणीनै साथे लेने चालीयो । सेहर बारे जायने जलालपूर पटनरो मारग लेने चालोयो । प्रागै हालतां थकां मारग मांहे पातसाह मूवो पडीयो छै। तठे रांणी देष ने मनमें विचार छै-देषो, पातसाहसू रंग-विलास करतां, तिके आज माष्यां भिण-भिणाट करै छै ने कागला सीस कुंचूरे छै ।* दूहा- हठीया' रावत वाकडां', तो विण रेन' विहाय बे। तेज' पराक्रम ताहरो', 'सो हिव'1° कागा11 षायबे ॥ १८६ [-]. कोष्ठगत गद्यपद्यांश ख. ग. घ. प्रतियों में अप्राप्त हैं। *. ५१वीं वार्ताके चिह्नित अंश का पाठ-भेद ख. ग. घ. ङ, प्रतियों में इस प्रकार है ख. 'पुठायो" रांणी 'महीलांसु'२ 'नीची उतरी'3 'प्रतीतनु कहे'४- 'मो साथै प्रावो'५ 'जदी जोगी साथे हुयो' 'रांणी चाली चाली' 'हठमल मुग्रो पडयो हतो, तठे प्राई । 'रांगी वाक्यं'- । '-'. १. ग. पछे । घ. पाछासु । ङ. हिवै वांसाथी । २. ड. महीलां थी। ग में नहीं है। ३. घ. में नहीं है. ४. घ. जोगी तोर पाई । ङ. जोगीने कयो। ५. घ. में नहीं है। इ. मौ सांथे हुवौ । ६. घ. ङ. में नहीं है। ७. घ जोगी, राणी। ८. ग. हटीमल पातस्याह मवो पड्यौ छ, जठे प्रावी नै त्रीभाव देष्यो । घ. हठमल मुवौ पड्यो, जठे पाई ऊभी। ङ. हठमल पातसा मारीयो हुतौ जठे प्राइ । ६. ग. रांणीवाक्यं झुरणा। घ. कांई कहै । ङ. राणी वायक । ___ 1. ग. घ. हठीमा। 2. ख. सामत । ग. घ. सांवत । ङ. सांमी। 3. ख. घ. छ. बंकडा। 4. ग. गेण । घ. वन । 5. ख. रयणी न । ग. रयण । घ. रह्यो न । छ रेण। 6 ख वीहाय । घ. जाय। 7. ग. काले । घ. काले। 8. ग. मुंडके । घ. मुषे । ङ प्रताप। 9. ग. घ. कागले (लै)। 10. ख. ऊ. अब । ग. ऊड ऊड । घ. उर उर। II. ख. काग ने कुता। ग. पडै । घ. परे । ङ. काग कुत्ता। 12. ग. विजाय । घ, रोजाय। Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८] बात रीसालूरी हरिया' हुयजो वालमा', ज्यू वाडीके सिंग बे। मो नगुणीकै कारण, करक' वेसांण्या काग बे ।। १८७१० [रावत भिडियां वांकडा, ताहरा हाथ सलूर बे। मो निगुणीक कारणे, काया कोधी दूर बे।। १८८ हरीयां वागारां राजवी, फूला हंदा हार बे। तोतो छेती बहु पडी, कूडै इण संसार बे ॥ १८९ बालापणरी प्रीतडी, पूरण कीधी पीर बे। लागा हाथ छयलका, हिव तोसूं हुवो सीर बे ।। १६० कारीगर किरतारका, छयल किया तसू हाथे बे। जीहां पीउं थांरी छांहडी, तीहां पीउं माहरो साथ बे ।। १६१ मो सरषी निगरणी तणे, कारण काया छोड ये। हाभागणी जीवती, रहीय करडका मोर बै ।। १६२ फिट फिट कुबधी सज्जनां, कोनो नहो मूझ साथ बे। षबर न का मूझनै पडी, तो मीलती भर बाथ बे ॥ १९३ रस रमतां मैहलां विपे(षे) चोपड पासा सार बे। ते छोडी धर पाथरथा, सीस धड जूवा वारे बे॥ १६४ प्रेम-गहिली हथइ, मांहरा पीउरे संग बे। यूं नहीं जांण्यौ हठमला, तो करती रंगमे भंग बे ।। १६५ जांण न पाई हठमला, नवि पूगो मूझ डाव बे। जे हुं मारयो जांगती, तो करती कटारयां धाव बे ।। १६६ रूडा राजिद जांणज्यौ, मूझने चूक न कोय बे । जे हु जाणती मारीयौ, तौ हुँ करती दोय बे ॥ १६७ १. ख. हठीया। ग. हरीना। घ. ऊ. हरीया। २. ख. कु. होज्यो। ग. होऐ। घ. होयो। ३. ख. ग. घ. ङ. बलहा। ४. ख. ज्यु । ग. घ. ङ. ज्यु। ५. ख. वाडीकेरा। ग. घ. वाडीको। ङ. वाडीकै । ६. ख. साग । ग, घ संग। ङ. वाग। ७. ख. ग. नोगुणीक । घ. मगणक । ङ. निगणीके । ८. ख. क्रमे । ग. करंक । घ. करांक । ङ. करके। ६. ख. बेसारया। ग. वसाया। घ. बैठा । ऊ बेसारचौ। १०. इस दूल्हे के पहले एक और निम्न दूहा ख. प्रति में मिलता है काला मुहके कागले, उड उड परहो जाय बे। माहरा प्रीउको पासली, हम देषत मत षायबे ॥ ४४ [-]. कोष्ठान्तर्गत दूहे ख. ग. घ. हु. प्रतियों में अनुपलब्ध हैं। Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी [ १०६ व्याप्यारी ज्यू वटाउडा, वालद ज्यूविणजार बे। लदीयां लोथ पड़ी रही, कागा कुचरे षार बे ॥ १९८ पांना फलां महिला, सीस रषंगा सोड बे। के नाराज्य साजनां, लहु मूझ होयडै जोड बे ॥ १६६ अब बेगा मिलज्यौ हठमला, भाज्यूं मांहरा देह बे। ज्यां हठमल ज्यां हु षरी, साचो जांणज्यौ नेह बे ।। २००] ५२. वार्ता-इसा विरहरा दूहा कह्या । मनरा मनमे समझ कीया। पिण केहणकी वात नही बणै। इसो विचारने रांणो सामीजीने कहो - सांमीजी माहाराज ! पर उपगार रो काम छै । हिव हका धर्म छै- प्रो मडो पडीयो छ, तिणनै अगन भलो करणो जोग छ। तसांमीजी वात मानी। वात मानणे रोहिमे लकडा भेला कीया । चारे षाई दे नै वहरवी माहे पातसाहरी बूथ मेली। तठे सामीजी कहै - आ तो हींदु तो नहि दीसै छै; ए तो तुरक दिसै छै । त? रांणी दुहो कहै छ ।' दहा- मांणस देह विडांणीया, क्यां हींद मशलमांन बे। प्राग जलाया कायने, हींदु-धर्म निदान बे।। २०१२ [५३. वार्ता-तठे चहमे बूथ मेले ने उपरे चेजो करने कंसघससू आग लगाई । झालो-झाल हुई। तठे सांमीजीने वाणी कहै - माहाराज ! इण तलावसू पांणी री तुंबी भर ल्यावो; ज्यं मडाने भीटीया छ, सो छाटो लेवा ने अाघा चालां । तठे सांमीजी तुंबी लेने तलाव कांनी गया ने लारे रांणी कहै १. ५२वीं वार्ता निम्न प्रतियों में निम्न रूप में है ख. वारता-इसो कहे रांणी घणी झुरणा कीधा। पछे प्रतीतनु केहे-वनषंड माहेसु लकडा ल्याव्यो, ज्युं प्रापे इणनु दागद्यां । जदी जोगी वनमे फीरने लकडा ल्यायो।। ग. ऐसो रांणी कह्यो । घणा झुरणा कीधा । पछै अतीतने कह्यौ–लाकडा लावो. जौ प्रापे प्रणीनै दागदां । तदि अतीत लाकडा ल्यायो । घ. में उक्त अंश ही नहीं है। ङ इसो राणी कहै न झूरणा घणा झूरीया छ । पर्छ प्रतीतनै कयो--सूका लाकडा वनमाहिथी ल्यायौ। २. ख. ग. घ. ङ. प्रतियों में यह दूहा नहीं है। [-]. ख. ग. घ. ङ. प्रतियों में ५३, ५४ तथा ५५वीं वार्तामों के गद्य-पद्यांशों के स्थान पर केवल यही गद्यांश उपलब्ध है ख. चेह चुणने रांणी माहे बेठी। Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० । बात रीसालूरी दहा- हठमल मोलज्यो साहिबा, बहला म रहज्यौ दूर बे। पाई अगन प्रजालने, लहज्यौ हित भरपूर बे ।। २०२ प्रगन सरण ताहरो करू', माहरो पीउ मोलाय बे । साहिब साषी मांहरो, साथ दीज्यौ संभाय बे ।। २०३ ५४. वार्ता-इसा दुहा कहिने परमेसररो नाम ले ने 'हो हठमल ! थांरो साथ बेगा हुयज्यौ, इसो कहीने चहीमे पडी, राम सरण हुई। तठे सांमीजी सीनांन कर ने तुंबी भरने पाछा आया । तठे राणीनै चेहमे बलती दीठी। तठे सांमीजी कहै-- दूहा- रंडी राजी ना हुई, कुंमर थकी कर कूड बे। मे विदनामी रच गई, नार देई तुझ धूड बे ।। २०४ सत कीधो ने साह बण, हिंदु-तुरक समांन बे। जस षाटी जालमतरणौ, जलण धरचौ ए प्रांण बे ।। २०५ रंडी भंडी ते करी, मांण मूकायो मोह बे । षार दीयौ मूझ छातीयां, भली करी मुझ दोह बे।। २०६ तो सरसी नार तणा, षेलतरणा मन खेल बे। प्राणतणा पासा ढल्या, में मत कोधा मेल बे ॥ २०७ कांमण कारीगरतणी, कामरण केथ पडेह बे। सात कीयो सासें गई, भलो दिषायो नैह बे ॥ २०६ साली मो मन माहरी, भंडी रांड भडारण बे। तो सरसी वाली वरस, देषी लोह थडांह बै ॥ २०६ ५५ वार्ता--इसा दुहा सांमीजी रांणोने वलतीने सूणाया; पिण ज्यां राज्यांस मन वेधीया तेके दूजी तथ न जाण । हिव रांणी हठमल लारे सत की धो] सो बल भस्म हुई । सामीजीने दो वडा साल हुवा । सो घणो वोषास करवा लागा, पिण गरज काई सरे नहि । अगन लगाई । राणीइ हठमल पुठे सत कोधो। प्रतीत रोवतो पाछो गयो-जा रंडी, तेरा बुरा हुइंगा . ग, आग ल्यायौ । लाकडा सलगाया नै राणी माहे बेठी। लाकडा लगाया, हठीमल साथै सत कोधो। घ. तदी रांणी छाती-माया कुट नै हठमल वांस सत कीधौ। इ. पछै चेहै चुगी में रांणी चेहै माहै बैठो हठमल पातसाह साथै बली, सत कीधो । Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी [ १११ दूहा- एक गई दूजी गई, हिव तीजी की मेल बे। नारी नही का प्रापरी, कुंडी जगमैं केल ब ।। २१० विधना तुं तो वावली किसका ले किसके देस(य) बे। रोतो सांमी चालीयो, पाटण मारग लेय बे ॥ २११ . नारी न जाण्यौ प्रापरी, जगनें न संणी कोय बे। मूणस मरावे हाथ सू, पाछैतूं सती होय बे ।। २१२] A५६. वार्ता-इसो सांमीजी सोच करता पाटण गया। कांइ क मंढोकी वसती लेने गज करवा लागा। हिवै रीसालं कुंवरजी मारग चालीया जाय छै । कठेइ क वस्तीमे रहै छै; कठेइ क रोहीमे रहै छै । साहसीकपणे रेहै छैश्लोक:-उद्यमं साहसं धीर्य बलं बूधी पराक्रमं । षडेते जस्य विद्यते तस्य देवोपि संकते ॥ २१३ ५७ वार्ता-तठे कवरजीने हालतांन मास क हवो छ। तठे राजा मानरो नगर आणंदपूर नांमे, तिण नगररे सरोवर आयो। सेहरसू नेडा छै; वडो पिणघट छै । वांसली पोहर रातरासू पीणघट सरू हुव छै; सो दोय घडी रात जावै, जठा ताई वाहबो कर छै । इसी पोठ पीणघट री छ। बले सरोवर दोला वाग छ। भली हरीयाल वाडोयांरी चांरू फेंर छ । वडी आडारा कडषां उपर भला नीला रुष-दरषत सोभे छै। दूहा- सरवर निरमल नीरडै भरीयो हंसा केल बे । वागां फली सूगीधीयां, वास वलै वहु मेल बे ।। २१४ सोभा मानसरोवरां, जिम वण रहोयो तलाव बे।। घोडो प्रांब अटकावीयो, पाणी पोवरण प्राव बे ॥ २१५ ५८ वार्ता-इण भातसू कुंवरजो पांणी पीवै छै । तठ पोणहारियां साथे राजा मानरो बेटो सोनारो घडो ने जाडावरो इंढोणी लीयां थकां तिण सरोवर चाली पाबै । त, रीसालूजी आपरा बागांरी चाल उपर लेह लागी देषन तिण पांणीसू धोवण लागा छ । इतरे पणिहारी तलावम आई । सारा ही कुंवरजी ___A-A. चिन्हान्तर्गत ५६, ५७, ५८वीं वार्तामों के गद्य-पद्यात्मक अंश का पाठान्तर ख. ग. घ. ऊ. में निम्नगद्यांश के रूप में प्राप्त है___ ख. होवे रसालु कोतरेके दोने राजा मानरे प्राहुरणा गया। तलाव उपर गया। घोडो चंपारे गोढे बांधीयो । कपडा धोया। स्नान संपाडा कीधा । कुवरजी पाग बांधे छ । इतरे राजा मानरी कुवरी सहेलियां साथे पाणी भरवा पाई । सो रसालुने देषने पांणीरो घडी नषसु भरवा बेठी, रसालु सामो जोवती रहे, पीण रसालु जोवे नहीं । तद कुमरीवाक्यं । Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२. बात रीसालूरी कांनी जोवै छै नै राजा मानरी बेटीन जोवै छै। रसदती नारीतणा नैण-षतांग वह रहा छ । त? राजा मानरी बेटो एक आंगलो प्रांगठासू कलस भरेने उंचाय में बाहिर ल्याउं 1A दूहा- सरवर कपड' धोइया , सूथरण' सल' सिर पाव' बे। षेह उतारे लेगको, तो हि न समझे दाव बे ॥ २१६ नष अंगूठे अंगूली, भरीयौ कलस अभ्र ग बे । अजे यस मारू साहिबो, बोले नही पो ग बे ॥२१७७ रीसालूवाक्यं देस वीडांणो' भय'१ पारकी१२, त राजाको धीय बे । तुझकारण हु१४माररपू१५, कुण ६ छोडावण हार१८ बे।।२१८५६ ग. अवै रीसालं कतरायक दीनांमै राजा मानरै पाहणा गया। तलावै बैठा, कपडा धोव्या। ईतर राजा मानरी बेटी छोरचा साथै पांणी प्राई ; पणीहारियां साथ तलाव प्राई । रसालु कपडा धोपा पाग बांधवा लागा। नर्कसं घडो भरयो, रसालु सांमी देषती जाये; पिण रोसालं देष नही । तदि रोसालुजीने रांणी कांई कहै-। घ. तदी रसालु चाल्यौ चाल्यौ राजा मानरै जमाइ पायो । तलाबरी पाल कपड़ा धोया। अतर राजा मानरी बेटी पाणी भरवा सरू प्राई नषसु घाडो भरयौ। रसाल देष नहीं । तदी रांणी कांई कहै--। - कु. अवै रीसालु कितरेक दिन राजा मानर पावणा हुवा। तलाव कपडा धोया नै पाग वाधै छै । इतरै राजा मानरी बैटी परणीयारीयां साथै सोनारो घडो, जडाबरी इढोणी पाणी भरवा बैठी। कुमर रोसालून देष ने सगली जोवा लागी छ; पिण रीसाल सामौ जोव नही छ। कुमरिवाक्यं -- । १. ख. ग. घ. ङ. कपड़ा। २. व. धोवीया। ग. धोईया बे । घ. धोईया बे कुंवरां। ३. ग. घ. बांधी। ४. स्व. अंगी। ग. घ. पाघ । ङ. प्रांगी। ५. पाघ । ग. घ. अजब । ङ, पाग। ६. ख. ङ. नषसुघडलो मे भरचो, अजे अन (ङ अजे न) बोल्यो बग बे। ग. घ. नषल्यांसुघडलो (घ. चुकल्यौ) भरयो, अजु न चोग्यो बग (घ. बुग) बे। ७ यह दूहा ख ग. ङ. प्रतियों में अप्राप्त है । घ. प्रति में इसका रूपान्तर इस प्रकार मिलता है झगो धोयो फेंटो धोयो, धोई सुथरण पाग वे। नषल्यासु चुकल्यौ भरचौ, तो हो न देख्यौ ठग बे ॥ २६ .. ध. में नहीं है । ६. ग. घ. भोम । १०. ख. वीडाणा। ग. घ. पराई। ११. ख. भुइ । ग घ. पर । ङ भूइ। १२. ग. घ. मंडली। १३. ग. घ. तुज । १४. ख. मुझ । ग. घ. मुज । १५. ख. ग. मारोजे । १६. स्व. ग. तो कुरण। घ. तो मुत्रां । १७. ख. ग. छोडावे । घ. न मलै । १८. ख. ग. जीव । घ. अग । १९. ङ प्रति में इस पद्य के अंतिम दोनों चरण अप्राप्त हैं। Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी कंबरीवाक्यं १ 3 चरहमे जालू" अंग बे । 1 ११ मारज्यौ', तो' ' दोनू " वसा स्वर्ग १२ चंदन कटाउ मो कारण तुमै ५६. वार्त्ता - इसा दुहा मांहो केहने सेहरमे गई। तठे कुंवरजी सेहर मे आया । राजारी मालणरो घर पूछ नै मालिणरे घरे आया। पूरजी ( जा ) में सू मोहर से (ए) क मालनने दीधी ने मालनने कहै — जावो, थे राजाजीसूं मीलीयावौ ने कहज्यौ - श्री माहाराजाधिराज ! आपरो जमाई मांहरे घरे उतरीयो छे । इसो सूणने मालिण मांन राजा कनें जाय ने सारी हकीकत कही । तठै राजा मांन आपरो कुंवरने मेलने रीसालूने मेलां दाषल कीया । तठे राजा मांन कुंदरजी मीलीयो ने कहै - कुंवरजी ! एकला क्यूं पधारीया ? तठे सारी देसवटारी वात कही । तठे राजा घणी धीरज दीवी । हिवं कुंवरजी महिलांमै घणी षूसालीसूं बेठा है । तठे रात्र पूहर एक गई । तठे कुंवरी सीणगार करने मेहला आई । ग्रागै कुंवरजी महीला किमाडने [ जडीने ] कपटी निद्रामे सूता छे । हिव रांगो घणा जबाब समस्या कीवी; पिण बोलीया नही ।* ११३ १. ख. ङ. कुमरी वाक्यं । ग. घ. राजकुवरी वा० । २. ख. ग. ङ. चंपारण | ३. ख. कटाव चेह रचुं । ग. काटसलो रचुं । ङ. कटावु संहरसूं । ४. ख. चेहर च । ग. सलो रचु । ङ. चमे । ५. ख. ङ. जालु । ग. बालु | ६. ग. ङ. श्राग । ७. ख. ग. मुझ । ङ. मुज । ८. ख. ग. तुझ । ङ. तु । ६. ख. ग. ङ. मारीजं । १०. ख. घ. में नहीं है । ङ. तौ । ११. ख. तुम हम । ग. दोनुं । १२. ख. ङ. खरंग । ग. सुरंग । १३. घ. हा निम्न प्रकार है अगर चंदणराज (ल) कडा, देवाऊं जंगी ढोल बे 1 कागा रोल कर मरु, तो पंथोकी गेल वे ॥ २८ बे ।। २१६१३ * ५६वीं वार्ताकी वाक्यावली ख ग घ ड़. प्रतियोंमें इस प्रकार है- ख. इम कही कुमरी घरे गई । रसालु पीरण घोडे प्रसवार होय सहोरमे गया । सघले लोके को-- -- राजा मांनरे जमाई प्राया छ । समस्त राजारो पुत्र रसालु कुमर नांम छे । यु करतां रसालु दुरबार गया; साराई साथसुं मील्या । रसालु थाल श्रारोगीया । घोडारे दांणारी, सारी बात जानता हुई । रात्र घडी २ जातां रसालु महीलां दाषल हुआ । रसालु पोढीया छे । कमाइ जड्या छै; पोहरायत बेठा छे । इतरे पोहर १ रात जातां रांणी प्राई । ज ( क ) माड जया देषने रांणी समस्याबंध दुहासुं हेला दीये छे । ग. ईतरौ कही घरां गई। रीसालू श्राया गाममं तदि नगरमं षबर हूई -- राजा मांनरें जमाई श्राव्या । रीसालुकुंवर राजा समस्तरो बेटो मील्यां, जा ( रा ) झा जुहार माहो- माहे हूवा डेरा दिवाड्या सगलो जाबतो कीधो । रात पडी रोसालुजी महलां में पोढा छ । पीलसोत बल छे । रांणी श्रावी । कमाड जडे दीधा छै । तदी रांणी हेलो पाड्यौ । कमाड पोल्या नही । ऐस्यो त्रीभाव वण रह्यौ छे । 1 Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ बात रीसालूरी रांणीवाक्यं' दूहा- कडकड नायूं' काकरा , वाजेला किमाड' बे । के थे मां के मारीया, के झांकोया प्रमार'' बे॥ २२० साहिबडा'१ तुमै २ सांभलो, 'रयरणं सारी य3 विहाय'४ बे । सवा कोडरो'५ मूंदडो, भांज्यौ' वज्र' कोमाड बे ॥ २२१२० रीमालूवाक्यं१ ना२२ म्हेमवा२४नवि२५मारीया२६ , ना२म्हे२जफ्या२६अमारबे । सूरवर३१ बोल्या वोलडा२, वोही33 वेण३४ संभाल बे ॥ २२२ घ. अतरा दूहा कहैन घरे गई। रसालु गांममै प्रायो। राजा मानरं धरे गयौ। राज मांन जाबता कोधी। रात पडी रसालु सुतो छ । प्रतर रांणी प्राई कीवाडक दीधी। रसालु बोल्यौ नहीं। ___ रु. इतरौ कहिन घर गई। रोसाल गाव माहै पायौ । तद सघले लोके कयौ-राजा मांनर जमाइ प्रायो । तिणर नाम रीसालू छ; राजा समस्तरो बैटो छै । तद महिला माहै डेरा दिराया; जाबता कोधी । रात पडी तद रोसाल महिला पोढीया छै; कपट नीद कर सुतो छ । राणी प्रावी समस्या कोधी । पिण उघार्ड नहीं १. घ. रांणी कोई कहै। २. ख. नांष । ङ. नाषु। ३. ख. काकडा। ४. ख. वाजे लोह। ङ. बाजै लाल । ५. ख. कमाइ । ङ. किवाड । ६. ख. ऊ. मुग्रा। ७.८. ङ. के। ६. ख. जंप्या। ङ. झंपीया। १०. ख. तुझ नाग । ११. ख. साहीबजी। १२. ऊ. थे। १३. ख. सारी रयण । ङ. सारी रेण। १४. ख. गवी हाय । ङ गइ विहाय । १५. ख. कोडरी। ङ. कोडकौ। १६. ख. मुदडीं। ऊ. मुंदडो। १७. ख. भांजी । १८ ङ. बजर। १६. ख. कमाड। 3. किवाड । २० ख. प्रतिमें यह दूहा २२१ वें से पहले है तथा इन दोनों दूहोके स्थान पर ग. घ. प्रतियों में निम्न एक ही दूहा प्राप्त है-- - के मुंपा के मारीना'बे कुंवर, के झंफो प्राई नार बे'। सवा कोडको मुंदडो, 'भांज्यो' बजर 'कमाड' बे ॥३६ '-'. घ. के भंफ्या प्रवार बे। पाठो। कीवांड। २१. ख. रसालुवाक्यं । ग. रीसालुंवाक्यं-दूहा । घ. में नहीं है। २२. ख न । ग. नै। घ. नां। २३. ख. ग. घ. में नहीं है। ङ. मैं। २४. ख. घ. मुत्रा। ग. मुंपा। ऊ. मया । २५. ख. नह । ग. नै । घ. न । ङ. ना। २६. ग. मारीमा बे रांणी। २७. ख. न । ग. नै । घ. नहीं। ड. नां । २८. ख. ग. घ. ङ. में नहीं है। २६. ख. जंप्या। ग. झंफीया। घ. झंफ्या। ङ. ज्यापो। ३०. ख. अहीराव । घ. प्रवार । ड. कालो नाग । ३१. ख. सरोवर। ग. घ. छ. सरवर । ३२. ड. बोल्याडा। ३३ ख. वेही । ग. घ. वेई। ङ. उवांका। ३४. ख. वयण । ग. घ. वोल। ड. वैण । ३५. ख. चीतार । ग. घ. चीतार । Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी [ ११५ [६०. वार्ता-इसो कुंवरजी कहीयो । तरे कुवरी चूंप करने महिलरे वारणे बेठो, ने रूपी वडारण छ, तिणनै कने वेसांणने कहे छैदूहा- मृगलो सूवो मेनडी, एकरण रे वहे (रेहवे) लार बे। सो तो हंस रिसावी सो, सरवर वात संभार बे ॥ २२३ भूलै चूंके भोलडी, वयण वटाउं जाण बे। कहिया साहिव किम कीजीय, रीसवि मती य सूजांण बे ।। २२४ हे वांदी या (था) हरा हाथरो, आसरो आज अपार बे। रातडीयांरी वातडी, निसा समें यार बे ॥ २२५ ६१ वार्ता-इण भांतसूं वडारणसू दूहा कहीया । तठ रीसालू जोइयो जे रातरी वात सासरीयामें गई; तो इण लूगाईरी तो पारष लेणी, पछै वात करणी। इसो विचारने कपट-निडा (द्रा)में सूता छै। इतरा माहे वरषाकालरो मास छ । श्रावणरो महिनो छै । तठे उत्तराधरा पमी(गी, गा)री चाली थकी घटा पाई छ । मोर, पपीया, कोइलां कहुका कीया छै। डंडरिया डरूडरू कर रह्या छ । धरती हरीयों कांचू पहरणरी पास धरी छै ।] राग मल्हार दूहा- वरषा रीत पावस करे, नदीयां प(ष)लके नीर । तिण विरीयां संकलीणीयां, धणीयांस्यू धरयौ सीर ।। २२६ परवाई झीणी फरे, रीछी परवत जाय । तिण विरीयां संकलीणीयां, रहती पीव-गल लाय ॥ २२७ [-]. कोष्ठगत ६० एवं ६१वीं वार्तामोंकी वाक्यरचना ख. ग. घ. ङ. में इस प्रकार ख. वारता--इसो कहीयो । तरे राणी इसो सांभली पाछी फीरी। तरे रसालु वीचारियो प्रा प्रस्त्री पतीव्रता होसी तो राजलोकमे जासी; नही तर अोर ठीकाणे जासी । इसे समोए थोडो जरमर-जरमर मेह वरसे छ। ___ ग. वात-ऐस्यो रांणी कही परी गई। तदि रोसालु कह्यौ--प्रा यसत्री कसी क छ ? पतीव्रता होसी तो रावलाम जासी; नही तर ओर जायगा जासी। झीरमर-झीरमर मेह वरसै छै । ऐसो त्रीभाव वीण रह्यो छै । घ. प्रतिमें इस प्रकारका कुछ भी प्रांश नहीं है। ङ. वारता- राणी इसो कहिन फेर पाछी गइ। तद रीसालु वीचारीयो-जो प्रा प्रसतरी प्रतीवरता होसी तो राजलोक मांहै जासी; नही तर पोर ठिकाणे जावसी। तिण समै योड़ो-थोड़ो मेह वरसे छ । Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ ] बात रीसालूरी पालो पाणी पातसाह, चढी उत्तराधि कोर । तोरण वीरीयां धणीयांयति, मोरडोयां ज्यूं झिगोर ।। २२८ प्राभे अडंबर बादली, वीज चमको होय । तिरण वीरीयां कचं कसै, पीवनै राषे नोय ॥ २२६ कोरण उतराधिकरण, धोरंग ची(चो)ली कुवाल । धरणीयां धण साल धणी, वरणीयो इम वरसाल ॥ २३०' ६२. वार्ता-इण भांतरी वरषा रीत वणी छ। तिण समीये छोटी-छोटी बंद पड छै। विजलीयांरो झबको हुवै छै । तकुवरीरो जीव सेणस् विलंधो छै ने कुवरजी कपट-नीद्रांमै सूसाडा करै छ । तठे राणी वडारणने दूहो कहै छ ।२ दूहा- आज सलूणी रातडी, मोही अलूणी होय बे। एकौ कामण सीझीयो, वांदी विधुता जोय बे ।। २३१ रामन रातडीयां तणी, पूरो हौवै पास बे।। तुं मूझ बालापणा तणी, पूरावै मन पास बे ॥ २३२ दासीवाक्यं नीदडीयारो नेहडो, लागो कुंवर सूजांण बे।। अब ठठो (उठो)सै चालो भली रे, रेण अंधारी प्रांरण बे ॥ २३३ चालो मोलीय सेणसू, रावत सूता सू छोड बे। एक घडीमै प्रापरणौ, काज करेस्यां कोड बे ॥ २३४* A६३. वार्ता-इण विध छानेसे वातां करने उठी, सो मेहीलांस उत्तरी। तठे कुंमरजी साहसीक होयने ढाल-तलवारसू कस्या, सो लारे चालीया; लगबग हालीया छै। दुहा सोरठ-ए पाजणी रात, षबर पडैसी मुझ परी। वैरण हंदी वात, षरी मथा ज्यौ षेलरणा ॥ २३५ १. २. २२६ से २३० तकके दूहे तथा ६२वीं वार्ताका गद्यांश ख. ग. घ. उ. प्रतियों में अप्राप्त है। *. २३१वें पद्यसे २३४वें तकके पद्य (दूहा) स्व. ग. घ. ङ. प्रतियोंमें अप्राप्त हैं। A-A. चिन्हान्तर्गत ६३, ६४, एवं ६५वीं वार्तामोंके गद्यपद्यात्मक अंशोंके वाक्यभेद ख. ग. घ. ङ. प्रतियों में इस प्रकार मिलते हैं-- ख. रांणी सोनाररा घर दीसा चाली। रसालु पिण ढाल-तलवार लेने रांणी वांसे चाल्यो। रांणी सोनाररे घरे जाय कमाड कुटीयो । रांणी सोनार प्रते काइ कहे छै-- Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी [११७ ६४. वार्ता- इण भांतसू कुंवरजीरो अस्त्री चितवती, प्रापरो सेण 'जात सूनार रीणधवलनांमै' तीत (ण)री हवेली जाय नै सवा लाषरो मुंदरो हाथरा अंगूठामांहिसं काढनै फैकीयौ; सो चोक विचालै जाय पडीयौ। तिणरा गुघरा वाज्या । तसै सूनाररों बाप जागीयो । त, बेटानै जागावा जाय ने ही कहै छैहा- उठीयौ कंवर वीवालवा, भीजै राजकंवार बे। राजा रूठेगो गांव लै, नही तर घोडी त्यार बे ।। २३६ ६५. वार्ता- इसौ कहतां प्रांणनाथ सनाररो बेटो जागीयो ने कीवाड षोलने कंवरीरे लातरी दीवी ने बोलीयौ--कुंतरी रांड ! वरषा रीतरी रात माहै मोडी आई; सो वले किसां मांटियांने रीझावणने गई थी। तठे कुवरी हाथ जोडनै बोली-साहिबजादा ! इतरो कोप मती करो, कांई करू ? आज मांहरो षांवंद पायौ, तिणस्प रवस पडी थी। उण दईमारया नीद आई देष ने वेगी आई छ । मारो जोर लागौ हतो, वेगी पावती; पिण इण बातसूअटकी रही। तठे सूनार कंवरीने माहे लीवी। हा- झिरमीर झिरमीर वरसीयो, मेह भलो तिण रात बे। भीना कपडा नीचोइ सों, करवा बेठा वात बे।। २३७ ६६. वार्ता- ही सूनार ने कुवरी रंग विलासमे मंगन हुवा छै; ने कुंवरजी किवाडरी इंदलो षांग(प)दैनें (स)नाररा महीलरे पसवासै जाय विराजीया छै; सारा ही चरीत्र देष छै; मनमै जाणे छै-देषो, लूगाया चरित्र, जीव ठीकानै कदे ही रहै नहो IA रांणीवाक्यं दुहो- उठो उठो कुवर सोनारका, कांइ भोजे राजकुमार बे। राजा रुठो तो गांम ल्ये, उठो घोडा च्यार बे ।। ५२ वारता-रांणी इसो कहीयो । तरे सोनाररे बेटे उठने कमाड षोल्यो। रांणी माहे गई। पागे सोनार सुतो हतो । सो उठने रांणीरा माथामे पावडीरी दीधी ने फेर कहीयो-इतरी मोडी क्यु प्राई ? तरे सोनारनु कहे-प्राज प्रापणा सहीरमे राजारो जमाइ प्रायो छ। सो तिणनु सुवाड ने पाई छु; तीण वास्ते ढोल हुई। रसालु बारे उभो सारी वात सुणी । होवे रसालु छांने बेठा छ । राणीइं सोनार साथे सुष-वीलास करतां रात्र सुषे गुदारी। ___ग, रोसालु ढाल-तरवार संभाये नै पुठे हुप्रो । रांणी सोनारकै घर गई छै; कमाउक दिधी। राजकुंवरी सुनाररा बेटाने कांई कहै दुहा- उठो कुवर सुनारका, भोज राजकुवार बे। राजा रूस तो गाम लै, नही तो घोडांरो माल बे ॥ ४१ Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ ] बात रोसालूरी [दूहा- मांटी सूतौ छौडन, जावे षेलरण नार बे। पर-रसभीनी कामणी, ते हई जगमे षराब बे ।। २३८ मौ सरसौ पीउडौ मील्यौ, छोड नै हेत सूनार बे । प्राधीनी सषावस झरै, तो ही रण डरपी लीगार बे ॥ २३६ नारी नहीं का प्रापरी, पूठ पराई थाय बे। जो हित तन-मन दीजता, पिण न पतिजै जाय बे ।। २४० पूरष भला गहिला थई, राषै भरौसौ नार थे । कदेही अपणी नहीं हुई, नारी जग निरधार बे।। २४१ सो कोसां सजन वस, दस कौसां हुवै नार बे। तो नारी तेहने झूरे, पीउरी न जांण पूकार बे ॥ २४२ प्रासू लूधी सेरगरी, धरणीयण पास लिगार बे। गौठ पराई राचवै, जीवत छंडे लार बे ।। २४३ धणी सासती नारी नही, सेणा सहिल अपार बे। प्रेम गहैली रणनै, पापै तन घ (ध)नसार बे ।। २४४ ६७. वार्ता-इसा दुहा कुंवरजी मनमे कह्या ने चरीत्र जोवै छ । तीतरा मांहै सूनार बोलीयौ-आज अभागने थाहरै धणी कठासू आयौ ? प्रांपरा सनेहमे अंतरास घाली । त? कुंवरी बोलो-पोउड़ा, उण वेईमानने याद मत करो न आवार रंगरी वीरीयांमे याद करणौ नही। पिण आप जमैं षातर राषौ, दायउपाय करनें आपरो मजरो मोडो-वेगो साझ जासं । त, कुंवरजी सूणनै प्र(घ)णा षूसी हूवा । स्याबास है, इसी अस्त्रीयां हुवै तद मांझ हाथे प्रावै ।] ध. तदी रांणी सुनारकै घरे गई। पाछासु रसालु गयो । थोडोसो मेह वरसै छै । राणी सनारनै हेलो पाड्यौ; सुनारको कोवाड छोलेयौ । रांणी माहै गई । सुनार उठे ने पावडीकी दीधी । राणी कह्यौ-राजार जमाई प्रायौ थी, तीणनै सुवाणन प्राई छु । तद राणी-सुनार माहौ-माहै हस-रमै छै; संसारसु लाहौनो लीधौ । ____ . रीसालु पिण हाथाहै ढाल-काण लेने राणी पूठे चालीया जावै छै। राणी तो सोनारकै घरै गइ; किवाड कुटोयो । तद सोनार वैटाने काइ कहै छै सोनारवाक्यंदूहा- उठो कुमार सोनारका, भीजै राजकुमार वै । राजा रुसै तौ गांव लै, नही तर घोडा च्यार वै। ४७ वारता-तिवारे किवाड पोल्यो। माहै गइ । सोनार सूतौ थो, सो ऊठन पगरी दोधी नै कयो-इतरी मोडी क्यु प्राइ? रीसालूरी वात सांभली । तद कुमरी कयो-प्राज राजार जमाइ प्रायो, तिणने सूवाडा नै प्राइ छु । च्यार पोहर सूती रही; परभात होण लागौ तद रीसालून ऊघ पाई, तिवारे ह ाइ छु । [-] कोष्ठगत पाठ ख. ग. घ. इ. प्रतियोंमें अनुपलब्ध है। Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी [ ११९ [दूहा- एक छोडी दूजी छोडस्यां, तोजी करस्यां त्यार बे। ___काई क नारी सूगणली, परष लहैस्यां सार बे ॥ २४५ ६८. वार्ता-इसो मनसोवो कुंवरजी कीयो । ने सूनार नै कुवरो घणा रंगमै वेठा छ। दूहा- पीउ प्यारी पीउ प्यारडी, मच रही मांझल रात । सेणा सेण चपेलीया, कसबी करीयां वात ।। २४६ कंच कस्यौ दिल हथ कीयो, मीलीयो तन सोनार । जांरण केलना पान पर, कपूर ढुल्यौ नीरधार ॥ २४७ वंका लोइण लोइसा, कटि कबाण कसि षंम(ग)। सेझ समद पर नाव ज्यू, तीरता चले तुरंग ॥ २४८ आडा कसीया कामनी, नैरण-सरासर देत । घा(धा)वा मचोया घोलीया, सैण सवादि लेत ॥ २४६ विसरा-वसरी चोसरा, अमला करडी तारण । सेझा रंग पलांणीयां, अमलां किया पिछांण ॥ २५० नारी ना-ना मूष रटै, बिमरणो वधै सनेह ! आरणे चंदन रूषडै, नाग[ण] लपटी देह ।। २५१] A६९. वार्ता-इसा रंग-विलास मच रह्या छ । हाको-हाक लाग रही छै । सूरंमतो पोहर पक्की हुई । तठे कुकडारा सा(ना)द हूवा । दूहा- कूकड कुंकू कहुकीया, झल्लरो ठाकुर द्वार बे । साद सूंण्या चेतन हूई, झागी कुंवरी सार बे ।। २५२ अहो अहौ रैणी वीगती, पूह पेहली हुई एह वे। किण विध जांसू मूझ घरे, नवला टुटने नेह वे ॥ २५३A [-] कोष्ठान्तर्वर्ती अंश ख. ग. घ. ङ. प्रतियोंमें अप्राप्त है। A-A चिन्हगत अंश के स्थानमें ख. ग. घ. ङ. प्रतियों में केवल निम्नांश ही प्राप्त हैख. प्रभातरो समो हुनो । तर रांणी सोनार प्रते काई कहे छ। रांणीवाक्यं दुहो। ग. सुनारकाने राणी कांई कहै । दुहा-। घ. अतरै प्रभात हूवौ । राणी कह्यौ-परभात स्वौ । ङ. हम फैर कुमरी काइ कहै छै । कुमरवाक्यं । वहा- । । Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० ] बात रीसालूरी दूहा- उठो' नीबूध्यका प्रागरू3 , कांई क बूध्य' उपाय बे। 'गलियांरा नर कि(फि)र रह्या,' 'हिव किण विध घर' जाय बे ।।२५४ सोनारवाक्यं पेहरज्यो' 'मांहरी' 'पावडी'२, षांधे' धरो'"तरवार बे । 'मांथै पाग बांधी करी, कांवली अोढ(ठ)ण प्राधार बे१५ ॥ २५५ लांबी लांबी भीषडी, भर भर मारग चाल बे। पंषारा षांसी करी, चौघेटांको चाल बे ॥ २५६१६ कोई न लेषैया लषै, वले तुं अकल प्राचार बे। इण विध कुण तुझ अोलणे, कुण कहै तुझने नार बे ॥ २५७१७ ७०. वार्ता-इसी वात रीसालू सूणनै वेई दोषलां पगर्ने महिलसू हेठो उतरनै मारग वांधी बेठो । इतरे कवरी सिरपाव करने कांधै तरवार तोलती पावै छै । तठे कुंवरजी बोलीया--१८ । दूहा- पावरीयां पटकालीयां२०, कडीया२१ रूलंता२२ केस बै । हम ३ हंदी तुं गोरडी, 'किण सिषलाया वेस बै२४ ।। २५८ १. ऊ. उठौ। २. ख. ग. घ. ङ. बुधका । ३. ख. ग. घ. ङ. प्रागला। ४. ख. ग. घ. कोई क । ङ. काइक । ५. ख. ग. घ. ङ. बध। ६. ख. ङ. बताय । ग. घ. वताव । ७. ख. गलीयारे फीर नवी सकुं। ग. घ. गलीग्रांरा मानवी फोर (घ. फरै)। . गलियार नारी नर फोरे। ८. ख. हु किसे मीस घर । ग. हं कणी मीस घर। घ, हूं कणीर मस । ङ. किण मिस हु धर । ६. ङ. त्रीवाक्यं । १०. ख. पहीर । ग. घ. पैर । ङ. पहिरण । ११. ख. ग. घ. ङ. हमारी। १२. ग. पावडी बे। घ. पावडी बे कुंवरी। १३. ख. ङ. षांधे। १४. ख. ग. घ. धर। ङ. धरी। १५. ख. लांबी लांबी डाक भर, कुण कहे तोने नार बे। ग. घ. लांबी लांबी भीष भर, कुण कहैगा नार बे। ङ. लांबी बोष भरी कुण, कहै राजकुमार बै। १६. १७. ये दोनों दूहे ख. ग. घ. ङ. प्रतियों में अप्राप्त हैं। १८. ग. घ. में.... वार्ताका अंश अप्राप्त है तथा ख. ङ. में प्राप्त अंश इस प्रकार है-- ख. वारता-हिवे राणी पावडी पहीर, मरदी सीर-पाव कर ढाल-तरबार लीयां चाली रसालुरी चोकीमें प्राय पडी । तद रसालुवाक्यं दूहो- । ङ. वारता-पावडी पहर ने तरवार लेने चाली। तरे रोसालकि चोकी माहै प्राय पडी । रीसालूवाक्यं दूहा- । १६. ख. ङ. पावडीयां। ग. घ. ड़. पावडलो। २०. ख. चटकालीया । ग. चटकावमी (सी)। घ. चटकावली। २१. ख. कडीये। ग. घ. कड्यां। २२. ग. रूलांता। घ. रलांता । २३. घ. कोण । २४. ख. तुने कोण सीषाया वेस बे। ग. कोण सीषाया भेस बे । घ. कुणी कराया भेष बे। ङ. तोन कि.ण सीषाय वै । Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी [ १२१ रांणीवावयं 'भोले म भूल रे भाइया'', नेणकै उणिहार बे। राते करहा' उछरे, 'ताकी हु'६ , चारणहार बै ॥ २५६° रीसालूवाक्यं राते करहा उछरे'", दोहां १ उतारा होय बे । मारू13 मध१४ कटारीयां'५ वर क्यू वीरडा' होय बे।। २६० ७१. वार्ता-इसो दूहो रीसालू कहने चांटी दीवी, सो एक पलकमे मेहलमै प्राय सूतो घरराटा करे छै । इतरै पीण कुवरी मनमै संकती थकी, डरती थकी रोलबोल मेहलामें गइ । प्रागै वेस उतार ने प्रापरो सागी वेस करनै तुरत कुवरजीकने मैहलमै पाई । आगै देषै तौ कुंवरजी पोढोया छ, कपट नींदडलीमै मगनानींद हुवा छै । तठे कुवरी देषने मनमे वीचारीयौ-ौ कांई जांणीजै, मोने भरम तो कुवरजीरो पडीयो थौ ने कुंवरजो तो सूता छै, ने मोंने इसडा जाबरो कारणहार कूण छो ? इसी चीतामे हुई थकी बीरीया चसू (च)कती जांण ने कुंवरजीरी पगातीया बैसने दुडबडी देवा लागी। त? कुंवरजी कपनिंद्रासू पालस मोडवा लागा, उछासी लेवा लागा । तठे कुवरोजो कहे१. ख. भुलम भुलो रे भाइडा। ग. भोले तो भुलो रे भाईडा। घ. भोललो भुलो तुं भायला। ङ. भोले मां भूले भायडा २. ख. नेणांके । ग. ङ. नेणारे । घ. नृणंकै। ३. ख. ङ. अणुहार। ग. घ. ऊणीहार। ४. ख. रात ज । ग. रात नै। ५. ग. करसा। ६. ख. तीहारी। ग. जांकी । ७. इस दूहा के दोनों अन्तिम पाद ङ प्रति में अप्राप्त हैं तथा घ. प्रतिमें इस प्रकार मिलते हैं -मारा बापरा करहला, मैर चरावणहार बे । ८. ख ग. घ. रसालु वाक्यं । ६. ख. घ. न करहा । ग. ज करसा । ङ. करहा नां । १०. ख. उचरं । ङ. ऊछरे। ११. ख. दीहे। ड. दिहां। १२. ख. घ. ङ. न तारा। ग. ज तारा । १३. ख. मारु। १४. ख. मुह । ग. घ. बुंद । १५. ग. घ. कटारडयां । १६. ख. वीरा कीम । ग. घ. ङ. क्युं वीरा। १७. ७१वीं वार्ता का अंश ख. ग. घ. ङ. में निम्न प्रकार है--- ख. वारता—इसो रसालु कहीयो । तरे रांणी वीचारचो-रसालु होसी तो गाढी भुडी होसी । इसो वीचार करता राणी राजलोकमे गई। रसालु पीण राणी पहीला महीला माहे पाइं । कुवरजीनु सुता देषने रांणी वीचारयो जे रसालु इसा नही, प्रजेस भोला छ । रसालु प्राय सुता, तीणरी रांणीनु षबर नही । पछे राणी पग दाबवा लागी। ग. ऐसा वचन रोसालुं माहो-माहे कह्या । तदि राणी सोची-रखे रीसालुं न छ । तदि कुंवरजी म्हैलां गया। रीसालुं राणी पहली जायनै सुता छै। रांणी जाण्यो-पोर कोई होसी। देष तो भर नींदमै सुता छ । रीसालु ईस्या नोदमै छ । तद पग दाबवा लागी। घ. वारता-तदी रांणी जाण्यौ-रसालु कुंवरको वचन छ । राणी मनमै डर षाधौ । राणी सताब घरे गई । राणी पहला रसालु जाय सुतो छ । रांणी जाय पग दाबवा लागी। Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ ] बात रीसालूरी दूहा- उठ विडाणा देसरा, कांमण जागी जोर बै। रेण गई उगा सूरज, अब तो माने निहो(हा)र बे ॥ २६१' साहिब तो सूता भला, करडी वांगां तांण बे। धण नही लोवी नींदडी, ढीला हुवा संधाण बे ॥ २६२२ साई साजन प्रेमका, धण दीधा छोटकाय बे। वरषा रुतरी रातडी, दुषम दई विताय बे ॥ २६३३ सोल वरसरी वीजोगणी, निठ मील्यौ भरतार बे। हस्या न बोल्या हे सषी, प्राइयो लेष अपार बे ॥ २६४४ आज रूपाली रातडी, झिरमिर बरस्या मेह बे। पीउ मन षांची पोढीयो, नवली नार ने नेह बे ॥ २६५५ कोड छडाया कागला, पीउडा कारण पाय बे । विधना हंदि वातडी, प्राजब करी मुझ माय ॥ २६६६ पिण हिव सता रिसालंवा, पिण पूह फाटी प्रेम बे। जागो नही निंदांलूवा, उठो सूरज पेम बे ॥ २६७० [७२. वार्ता-इसडा दूहा कुमरजी सूण्या तद मनमे जांण्यौ-देषो, सचवादी हुवे छै । इसो विचारने कुवरजी वले आलस मोड नै प्रांष्यां मसल ने लाल करने सेझस उठ्यां । जाणे सारी रातरो नीदालूवो उठे, तिसो रोतरो सहिनांण दिषायो । तठे एहवो सरूप देषने राजी हुई ने जांणीयो-जे मोने मारगमें जाब दीयो छो, सूदईमारचौ कोई इसडा कांमारो करणहार हुसी; सेहरमे लूड-भूड कोई घणा छ तो वे झष मारो, उणा(मवा)रो डर नही । कुवरजीरो डर राषीती, तीनरो अब भरूसो आयो। इसो चित्तवने रांणी बोली-। ___G. वारता--इसो रीसालू कयो । तद रांणो वीचारीयो-रोषे रीसालू हवै। तिवारे महिलां माहै सताव गइ । रीसालू रांणी पहिला गयो। राणी प्रायने देखे तो कुमर सूतो छ। तिवारे पग दाबवा लागी छ। १. २. ३. ४. ५. ६. ७. ये दूहे ख. ग. घ. ङ. प्रतियोंमें अनुपलब्ध हैं। [-] कोष्ठकान्तर्गत गद्यपद्यांश के स्थान पर ख. ग. घ. ङ. में केवल निम्न गद्यांश ही प्राप्त हैं ख. रसालु जाग्या । जदो राजी हुआ । जदी रांणी लाष रुपीयारा गहीणारी रोझ हुई। इतरे प्रभात हुप्रो। ग. रोसालु जाग्यो, राजी हूवो । घडी दोय दोन चढयो छ । घ. रसालु जागे ने रजाबंध हवा । सवेर हो। ङ. तरे रीसाल जाग्यो, राजी हुवो । घडी एक दिन चढीयो । Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालरी [ १२३ दुहा- आज कुंवरजी रीसालूवा, मूझ पर सारी रेंण बे। नींद ण(न) लीधी धण घडी, जागी न जांणी सेंण बे ॥ २६८ सेयण रीसालू हुय रही, धन विलपी सारी रेंण बे । चूक किसो सो मूझ कहो, माहरा पीउ सूषदैन बे ॥ २६६ कुंवरजीवाक्यं म्हे क्यं रोसाल थाह थकी, कुरण कह्यो एह विचार बे। राज सरीषो पदमणी, कदेय न भूलू चितार बे ॥ २७० परभूमी षडवा थकी, थांकां कुंवर सूजाण बे।। जिस नीदडी धांपीया, मत हो नारि अजांण बे ॥ २७१ थांह सरसी मांहरे, भाग तरणें परमाण बे।। ते भूले सो ई ढोर बे, लहज्यो साच पिछांग बे ॥ २७२ ] ७३. वार्ता-कुवरजी इसा दूहा कहीया। तठे कुवरीने कुंवरजीरो पतीयो । तरे रांणी उठने मारी, पालो, दांतण लेने कने आई । तठ कुंवरजी बोलीया-इतरा वेगा ही करां, सो कांइ कारण ? रांणी कहै-माहाराजा कुवार ! वासी मूहडै राजसू वात करां, सो जोग नही । तठे कुवरजी दांतनकुरला कीया; आमल-पांणी कीयां, यांकां-वांगा, हाका-डाका हूवा । तठे कुवरजी वडारणनें कहे-जायै ‘रामजोग' रिण धवल सोनारना बेटाने बुलाय ल्यावौ, ज्यं काई क टुम करावां । प्रागे ही चालपरणे टम हाथे प्राई थी, तिकी आज तांई रही, तीणसू नवि घडावस्यां । तरे वडारण सूनारने जोयने कहीयो-अहो कारीगरजी ! थांन कुवरजी बूलावै छै, वेगो प्राव । तठ सूनार बोलीयो-जवाईजी कठे विराजीया छ ? तठ वडारण कहीयो-जे राजलोकमै छ। तठ सूनार राजी हूवो–जे गेहणौ घडावसी। इसो विचारने सूनार मेहलां प्रायो; कुवरजीसू मूजरो करने बेठो । तठे कवरजी प्रापरी कटारी उपर सोनो चढावणरे वास्तै सोनारने कहै छै । तिण सम रांगीरी नीज र सोनार मांहे पडि । कुवरजी दोढि लाबहु देषने दुहो कहै छ-' १. ७३वीं वार्ता का पाठान्तर ख. ग. घ. कु. प्रतियों में इस प्रकार है ख. तरे कुवरजी दातण कर अमल प्रारोग्या। तरे रांणी कहीयो-माहाराज कुमार ! हेमकुट सोनार प्रायो छे, सो घाट भला घडे छ । तरे कुवरजी कहीयो---उणने ज तेडावो । तदी सोनारने सहेलीया बोलावण गई। रसालु बेठा स्नान करे छ। राणी सोनारी भारी लीयां पांणी नामे छे । इतरे सोनार प्रायो । तरे रांणीरी पर सोनाररी नीजर एक हुई। तदी राणी पाणी नांमती हती, सो घार चुक गई, धार धरती जाय पडी। तवी रसालु रांणी प्रते कांइ कहे छे-1 Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ । बात रीसालूरी रीसाल्वाक्यं-- दूहा-२ तास तोषां लोयणा , प्रोस' चंगों वेणाह' में। धार विछटी' धर११ गई१२, नर' चढियो' नेणांह'बे ॥२७३ रांणीवाक्यं रहो रहो केथ६ प्रणभावना, प्रगतो 'कहि ताहि१८ बे । हीवडै हार अलूझियो२०, सो 'सूलझायो २ नेणाह२३ बे ।। २७४ ७४. वार्ता-इसो कहि तब प्राणनाथ कुंवरजी भारी लेने सोनारने कहै-मांडि रे ! हाथ, मांरी अस्त्री तोने दीनी; श्रीकृष्णारघून्य छै । तठे सोनार ग. तब दातण कीधो । अमल-पाणी करेन रजपुतांने कह्यो-जावो, सोनार गली माहिलानै तेडे ल्यावो। तद रजपुत दोड्या गली माहिला सोनारने तेड ल्याया। सोनार मनमै जाण्योजमाई प्रायो छ, गैणों घडावता होसी । सुनार प्रायो। रोसालु सांपडे छ । रांणी पाणीरी झारी लेयन एक धारा कुलै छ । राणीको सोनारको नीजर ऐक हुई । तदि रोसालु काई कहै-। घ. अमल-पांणी करे संपाडो करवा लागा, रजपुतांने कह्यौ-जायनै बामणारी सेरीयामै सुनार रहै छ, तणीने बुलाय ल्यावौ । सुनार जाण्यौ-राजाजीरै जमा[६] पायो छ, सो गैहणौ घडावता होसी, राछ पीछे ले पायौ। रसालु बैठो संपाडो करै छै । रांणी झारो भरने कुरै छ। सोनारको नीजर, रांणोकी नोजर, एकठो हुई । धार छूटी धरती पडी । तदी रसाल कहै-। ङ. तद दांतण करी अमल आरोगनै दरीषाने प्राय बैठा। रजपूतान कयौ--जावो, सोनारनै बुलाय लावो । तद रजपूत गलीयामै सोनारको घर है, तिहां जाय बुलाय लायौ। सोनार जाण्यो-जमाई गेणौ घड़ावसी । इसो जांणी सोनार राजी होयनै आयो । तरे रांणी सोनारसूं लागी नीज-नीजर मिली दीठी नै तारौ-तार मिली। १. ख. तदि रसालु राणी प्रते कांइ कहे छ-रसालुवाक्यं । ग. तदि रोसालु काई कहै-। घ. तदी रसालु कहै-- । २. ख. दुहा । ३. ख. तारा। ग. तारां। घ. तारूं । ङ. तीषा। ४. ख. ग. घ. तोषा। अ. राताः ५. ग. लोअयणां। ६. ख. पर। ग. उर । ङ. ऊच । ७. ङ. संगी। ८. ख. वयणांह। ग. नयणांह । घ. नैणांह । ङ. वैणांह। ६. ग. घ. धारा । १०. ख. वीछुटी । ग. घ. तुटी । ङ. विछुघटी। ११. ग. घ. धरती। १२. ग. घ. पडी। १३. ख. कोइ नर । ग. घ. में नहीं है। ङ. को नर । १४. ख. देष्यो। ग. घ. निरष्यो। ङ. चढीयो । १५. ख. नयणांय । ग. दोय नयणांह । घ. दोय नैणांह । ङ. नणांह । १६. ख, ग. घ. रु. कंत । १७. ख. प्रभावणा। ग. घ. प्रभामणा । इ.प्राभा. वणा। १८. ख. कही वाय । ग. घ. कहणांह । ङ. कहौ नांह । १६. ख. ग. होयडै । २०. ख. ऊ. अलुजीयौ । घ. उलझोयो। २१. ग. घ. ङ. में नहीं है। २२. ख. ग. सलुझायो। घ. सुलजायो। ङ. सलजायो। २३. ख. नयणाय । ग. नयणांह । घ. नणां । ङ. नणांह। Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी [ १२५ हाथ मांडीयो । कुंवरजी रांगोने परी दीवी । सोनार ले घरे गयो। त, राजा ने रांणीनै षबर हुई । तरे जवाईने अलाधा बूलायने अोलंभो दीयो। तठे रीसालूं कहैदूहा-२ रतन कचोलो रूवडो', 'सो लगो पाथर फूट बे । 'जिण जिण आगल ढोईयो , केसर बोटी काग बे ॥ २७५ सासूवाक्यं-८ 'तलगुं दल निलज उपरे', 'नीर निरमल होय बें।० 'टुक पीव हो रीसालूवा,११ नोरमल'२ नीर न' होय१४ बे ॥ २७६ रीसालूवाक्यं-१५ सांप१६ छोडी' कांचली, देवा छोड्या देव बे। रीसाल २१ छोडी२२ गोरडी२३, मन भावे२४ सो लेव२५ बे ।। २७७ १. ७४वीं वार्ताका पाठ ख. ग. घ. उ. प्रतियों में इस प्रकार है___ ख. वारता-रांणीरा इसो वचन सुणीने रसालु सोनारने कहीयो- हाथ मांड, प्रा अस्त्री तोनु दीधी; मां जोगी नहीं । तरे सोनार हाथ मांडीयो । रसालुए हाथ पाणी घाल्यो; श्रीकृष्णारपुन्य कीधो; अस्त्री सोनारने दीधी। सोनार राजी हो प्रस्त्रीने घरे ले गयो। ती वार पछी राजलोकमे सांभल्यो । तदो सासु ने राजलोक, राजमानप्रमुष सर्व जणे अोलंभो दीधो । तरे रसालुवाक्यं । ग. वात--तदि सूनारनै रीसालुं कांई कहै-हाथ मांड । सुनार हाथ मांड्यो, जदि पाणी कुढयो नै असत्री परी दीधी । अम जोगी नही। असत्री सुनारनै दीधी तवी राजा, रांणी वात सुंगी । तदि रीसालुनै अोलुभौ दोधो । तदि रीसालुं कांई कहै छै~~। ___ ङ. वारता—रीसाखू सोनरने कयौ-जा रे, हाथ मांड, तोने या प्रस्तरी छ । प्रा अस्तरी मा लायक नहीं । तरे सौनारने दीधी राजाय जाण्यौ, रीसालुनै अोलभो दिनौ । रीसालवाक्यं। २. ख. दुहा । ३. ख. रुग्रडो । ग. रावरो। ङ. रूयडो। ४. ख. ग. फुटो पथर लाग बे। ङ. सा लगो पथर फूट बे। ५. ख. ग. जीण जीण। ६. ग. जीण कह्यो। ङ. ढाइयो । ७. ख. बोटयो । ८. ख. सासुंवाक्यं । ग. रांगी राजानं काई कहै-। ङ. वारता-तदी रांणी रोसालून देषने काइ कहै छै--सासुंवाक्यं । ६. ख. तलगुंदल जल नोल पर। ग. तिलगुंदल ऊपर ऊजल । ङ. तली गुदल नील उपर। १०. ख. ग. नीर उस्या ही होय व । ङ. पिण नीरमल नारी नां होय बे। ११. ख. ढुक ढुक पीयो रसालुना। ग टुकरे पीवो रसालुवा । ङ. टुक एक पीये हो रीसालूया। १२. ऊ. पिण निरमल । १३. ख, नार न । ग. नारी। ङ. नारी नां। १४. ख. कोय। १५. ख. रसालुवाक्यं । ग. तदि रीसालुं काई है। १६. ख. सापे। ग. सांप ज । ङ. सापा। १७. ग, छांडी। १८. ख. देवल । ग. भीत्यां। ङ. देहरे । १६. ग. छाड्यो। २८. ग. लेव। २१. ख. रसालु । २२. ग. छांडी। २३. ग. असत्री। २४. ख. ग. ङ. मांन । २५. ख. लेय। . लेह । Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ ] बात रीसालूरी सासूवाक्यं रीसाल्या 'रीस कसाइयां'२ , 'यां रोसडी जल जाव' बे। घरणी अस्त्री ने छोडीये'', 'लाष लोक' 'कहि जाब"दे।। २७८१२ रीसालूवाक्यं १३ दूहा- म्हे' समसतरायक' पूतडा, रीसालू''मेरा नाम बे। परणो हीडे पर घk१६, तो क्यूं २१ राषे सांम२२ बे ॥ २७६२३ [७५. वार्ता--इसी वातां करनें रोसाल ससरा कनांस उठ ने नीचे तबले में प्राय ने घोडे असवार हुय, ने हीरण ने सूवा ने मेणा ने पिंजरो लेने, धारा नगररो मारग पूछनें मारगेमे चालीया जाय छ । तठ लारें साहणोया राजां मानने कहियौ-माहाराजा, आपरो जवांइ तो चढ गया छ । त? राजा दोय-च्यार सिरदार साथे ले ने आप घोडे चढिनें कंवरजीने जाय पूंहता। तठे राजा कहै दूहा- कुंवरजी हव इम कित करी, तोडयो माहरां प्रीत ब । जगमे भूडा लागसी, थे तो हवा नचां (ची)त बे ।। २८० म्हारे पुत्री इक बले, छोटी छै परण्यौ ति(ते)ह बे। राजवी थांरा एहवा, छांणा न हुवे ए नेह बे ।। २८१ रीसाल वाक्यं श्रीमाहाराजा जांणज्यौ, सूरां एह संताप बे। सिर उपर रूठा फिरे, त्यांने केहा पाप बे ।। २८२ आप कही सो म्हे पररणीया, पूठा पधारो राज बे। वले य न आवै रीसालूवो, कोटि पडैज्यौ काज बे ।। २८३ १. ख. रसाल । २. ख. रीस कसायला। ङ. अस कसांइ सांइया । ३. ख. थांरी रीसडली। ङ. रीसालूमारी। ४. ङ. जड। ५. ख. ङ. जाय। ६. ख. ऊ. परणी। ७. स्व. ङ. असत्री। ८. ख. कीम छंडीये। ङ. छोडि ने । ६. ऊ. लोषु लोका । १०. स्व. कहीवाय । ङ. को जाय । ११. स्व. ङ. बे। १२. यह दूहा ग. में नहीं है। १३. ख. रसालुवाक्यं । ग. में नहीं है। ङ. रीसालुवाक्यं । १४. ख. में नहीं है। ङ. मै। १५. ख. अ. समस्त । १६. स्व. राजाको। ङ. रायका। १७. ख. पुगडो। ङ. पुंगरा। १८ ख. रसालु । १६. घरे। २०. ख. सो। २१. क्य । २२. ख. पास । २३. यह दूहा ग. प्रतिमें अनुपलब्ध है एवं इस दूहे के अन्तिम तीन पाद ऊ. प्रति में अप्राप्त हैं । [-] कोष्ठगत ७५ एवं ७६वीं वार्ता के गद्यपद्यांश का रूपान्तर ख. ग. इ. प्रतियोंमें गद्य के रूप में इस प्रकार है Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी [ १२७ ७६. वार्ता-तठे राजा मांन घणाई निवारा किया पिण कुवरजी न मांनी । राजा घरे आयो ने रीसाल उज्जेणीने चलीया ।] A तठे देवीर (रे) देहरा माहै जाय उतरीया। नै राजा भोजरो बेटीरे चित्रांमरो आंबो थो, तिणरै सात कैरोयांरी झूबषां नीचे पडोयों दीठो । त? रांणी जाणीयो- 'जै म्हां आयासू झूबषो पडसी; सो कुंवरजी नही आया ने झवषो पडीयो तो अबे कंवरजीस मे कोल कीयो छो-पाप नै पाया तो हु काठ चडसू, तो आज तो वले वाट जोवनी; तै परभाते काठां चडसू।' इसो विचारतां परभांत हुवो । तठे आपरा माता-पितासू मील ने सीष मांग में कौलरो जाब कर नै चहिने नदी उपरे रचाईने ढोलडा घडकीया। दूहा- ढोल धडकै तन दडे (है), विरहीणी सतीया होय । ___ पोउ मोलानो तो मोलै, तो किम दुषीयो कोय ।। २८४ ७७. वात-हिवं कुवरी चह नेडी वासदेव सिलगायो छै; धूवा-धौर लाग रह्या । तठे कुवरजी देहरासू उठेने तिरण वेला तठे प्रावतां धूवौ देषने कुंवरजी कहै-A ख. वारता-इतरो कहे रसालु घोडे असवार हुआ। जद राजा मान कहीयो-दुजी बेटी परणी । तरे रसालु कह्यो-उवा पीण उण सरीषी होसी तीरण वास्ते नही परणां । सोष करी तोहाथी चाल्या। ग. यात-अतरौ कह्यौ पर रोसालु प्रसवार होयनै चाल्या। अतरै राजा मान कह्मामारी दुजी बेटी परणो। जदी रीसालुं कह्यो–उही ज उसी ज होसी। रीसालु चाल्यो उजेणी नगरी राजा भोजरै चाल्यौ। ___. रीसालु असवार हुवा चालवा लागा । जद राजाजी कयौ-मारी वैटी दुजि परणाउ। तद रीसालु कहै-वा पिरण उसी ज हुसी, तिरण वासते ना परणां । तिहाथी चाल्यो रीसालु उजैणी नगरी प्रायो, तिहां राजा भोज राज करे छ। A-A. चिन्हगत अंश का पाठ भेद ख. ग. ऊ. प्रतियों में इस प्रकार प्राप्त है ख. होवे उजेणी नगरीई राजा भोजरी वेटी रसालु परण्या छ, तीका कुवरी रसालुजीरी वाट जोवे छ । गांम। प्रांबा साषे हा छ । कुवरी घणी चीता करे कुवरजी गया नहीं। तरे रांणी काठ चडवाने त्यार हुई छे; तलावरी पाल गई छ। चेह चुणीजे छ। लुगाया सतरा गीत गावे छ । तीण समीए काठरो ढोल वाजे छ। इतरे रसालुजी जाय पहुता । हीवे रसालु सहीररा लोकांने कांई कहे छ ग. प्रागै राजा भोजरी बेटी काठां चढ छ-रीसालु प्रायो मही। प्रतर रीसालु चाल्या प्रावै छ । वाट लोक रीसालुन मोल्या। रसालुं लोकांने पुछ काई कहै-। ङ, मागे राजा भोजरी वेटी काठे चढे छ तरे रीसालू लोकांने पूछ-। Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ ] बात रीसालूरी दुहा'- सेहर उज्जेणोके गोरमे , 'क्यां ए'५ धूवा-धोर' बे। कागारोलो' 'मच रयो', 'ज्यूं वाजगो' ढोल बे ।। २८५ वचन हतो सो पूगीयो, तिण कारण चढे काठ बे । रोसालू-वचन षोटो थयो, तिण कारण ए घाट वे ॥ २८६१० ७८. वा.-इसो सूणत प्रांण रीसालं घोडो दपटाय नै तलावरी पाल षषारो कर ने उभो रहियो नै लोकांनूं कुका करताने वरजने रीसालू हो कहै छै–११ १. ख. ग. रसालुवाक्यं दुहा। २. ख. सहर । ग. सैहर। ३. ख. उजेरणीरे । ग. उजेणीकै । ऊ. उजैरणीके । ४. ग. गोरमै। कु. गोरवे। ५. ख. क्यु मांडी। ग. क्यू मांडयो। ङ. क्या मंडी। ६. ख. धुपा-धषरोल । ग. ऊ. धु (अ. धू.) प्रा-धकरोल। ७. ग. कागारोल्यो। ऊ. कागारोला। ८. ख. मच रह्यो । ग. क्युं मच्यो। ङ. मचीया । ९. ख. वाजे क्यू जंगी। ग. वयं वाजे जंगी। उ. वाजे सिगो। १०. ख. ग. ङ. प्रतियों में यह दूहा इस प्रकार मिलता है सहीररा लोकवाक्यं राजारे भोजरी कुवरी, रसालुमा घर नार बे। नाया कुवर रसालुपा, काठ चढवेको त्यार बे ॥ ६६ ग. तदि लोक रीसालून कांई कहै-- दुहा- राजा भोजरी डीकरी, रसालुं बंधी नार बे। प्रायो नही कुंवर रीसालवी, काठां बैठ कुंवार बे ।। ५३ नगरलोकवाक्यं राजा भोजरी डीकरी, रोसालंपा नर नार बै। प्रायो नही रीसालूंनो, काठे चढे कुमार बै ॥ ६१ ११. ख. ग. ऊ. प्रतियों का पाठ इस प्रकार है ख. वारता- इसो सांभलने रसालु घोडो दोडायो । तलावरी पाल गयो । देषे तो सर्व लोक-लुगाइ मील्या छ । अबे रसालु जाय रांणी प्रते काइ कहे छ । ग. वात- ऐस्यो रीसालु सांभल्यो; घोडो दोडायो; तलावरी पालै प्राध्यौ । लोक मील्या छ । रीसालु रांणी नषै प्राव्यो; राणीको मन जोवा लागो-या पिरण लालचरणी छ के नही ? देषां ईणन कहू । तदि रोसालु कांई कहै___. वारता- इसौ रीसालू लौका पासै सांभली ने घोडो दोडाय तलावरी पाल प्राय उभो रयो ने कहै छै Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सात रीसासूरी [ १२६ दूहौ'- रूपासू' धोलो' करूं, सोनारी' चकडोल बे। रीसालू नामने छोड दै , जोरू हमारी होय'° बे ॥ २८७ ___ कंवरीवाक्य १ अंबर१२ तारा१३ डिग प.१४, धरण१५ अपूठी होय बे । साहिब' वीसारू.१६ प्रापणो, 'तो कलि उथल'२° होय बे ।। २८८ [७६. वार्ता-इसो दुहौ केहने रीसालू रजाबंद हवो । मनमे वीचारीयोअजे संसारमे सत छै; विना थंभा आकास षडो छै । इसो मनमै चितविनै चहथी नेडो गयो; लोकांरा विचला भिडावमे उभो रहिनै दूहो कहै छैदूहा- सूगणी तुं चिरं जीवज्यौ, जगमै नाम कढाय बे । राजा भोजरी डीकरी, वंस उजालण भाय बे ।। २८९ ८०. वार्ता-इसो दुहौ कुंवरी सूणने चहने छोड ने प्रांबारा पेड तले जाय उभी रही; गंघट पाट दीये । तठे सारा हि उम्रांवा, प्रधानां आवि वहार देषनें जाणीयो-महे, रोसालं कमरजी प्राप छै; पिण पूरो पारष लीजै। इसौ सारा उम्रांवां चितवने बोलीया-श्रीमाहाराजा कुवार ! आप भला पधारया; श्राप म्हांनै मोटा कीया; पिण एक म्हारा मनमाहै छ, तिका कर देषावो तो राज तो पूरो पतिजो प्राय जावै। तकुवरजी कहै-भलां उम्रावा, थे के दिषालौ; मांसू १. ख. रसालुवाक्यं । ग. रसालुवाक्यं दूहा। २. ख. रुपासु । ङ. रूपाकोसु । ३. ख. धवली। ङ. पालि । ४. ख. सोनासुं करु । ग. सोने कराउ। ङ. सोनाकी करू। ५. ख. वीलोय । ग. लोन। ६. ख. रसालु हंदा । ग. रोसालु हंदा। ७. ख. ग. ङ. नांम। ८. ग. ङ. छोडदै । ६. अ. पर जोरु । १०. ग. होन। ङ. होय । ११. ख. रांणीवाक्यं । ग. कुवरीवाक्यं दुहा । ङ. रांगीवाक्यं दूहा । १२. ऊ. जो अंबर । १३. ख. तार । ग. तारो। ङ. ता[रा] । १४. ख. ध्र डीगे। ग. धु डग । १५. ख. ग. ङ. धरणी । १६. ख. अपुठी। ग. प्रफुटी। १७. ग. हो। १८. ख. सांइ न। ग. सायब । ङ. सायत । १६. ख. वीसारु । ङ. विचारू। २०. ख. जो थल उथल । ग. ज्यो कुल दुजो। ङ जो कली दुजा। [-] कोष्ठगत ७६, ८०, ८१, ८२, ८३ एवं ८४ वीं वार्ताओंकी शब्दावलियां ख. ग. ङ. प्रतियों में निम्न रूप में लिखित है ख. वारता-रसालु रांणीरा वचन सुणी घुसी हुना । प्रा अस्त्री सुकुलीणी दीसे छ। तदी रसालु कहीयो-हुं समस्त राजारो पुत्र छु । माहरो नाम रसालु छ । ती वारे राणी कहे-सात केरीरो जुबको एकण चोटसु लोकां देषतां पाडो तो रसालु षरा, नही तर थें रसालु नही। जदी रसालु सात केरोरो जुबको एक चोटसुं उडायो । तदी रांणी घुघट-पट षांचीयो । सर्व लोक राजी हुआ । राजा भोजने हलकारे जाय कह्यो-वधाइ दीजे, रसालुजो Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० ] बात सारी हुसी तो कर देषामसां । तठे उम्रांवां बोलीया - श्रीमाहाराज कुंवार ! श्रमारी बाई सासरा पीहर ल्याया छा जठे आपरी साथेलीयासू मोली; तरे राजारी वडीसी फते कीवी छो; तिण प्रापरी साथैलीयांने माहूरी कुंवरी कहौ छोम्हारो षावंद इसडो तीर वाहवठां (णां ) छा सो रूपरा सात-आठ फल एक तीरसूं बषौ नाष देव छै; इसी जाब म्हे पिण सांभलीयौ छौ, तिरणसूं आपनै तसती हुसी; पण ग्रो प्रापरे मूंहडा ग्रागे प्रांबारो रूष छै तिरै ऐ सात भूंबषारी डाली छे, तिका डाली रह जावे नै भूबषो प्राय पडे । तठे कुंवरजी मनमै विचारीयो देषो दइवां राष्या इरणां उम्रांवां आव बात कही नै कदाचित स नही तो हेल हुसी ! ] 7 दूहा- वीरह विडांणा मेहलथी, साथीडां सीरदार बे । दोरो हुवो दुहेलडी, मिलीयौ इण भरतार बे ॥ २६० सांई बाजी राष बे, तो सूधौ सहु काज बे । पंच पतीजा पां बै, बलि रहै सगली लाज बे ॥ २६१ ८१. वार्त्ता - इसो विचार परमेसरनें समरनें कबाण चढाय ने तीर भू बषा नै बांह्यौ, सौ सात केरीयां जूई-जूई प्राय पडी । बषौ सारा ही उम्रावां पडियौ दिठौ । दूहा - तीर सपल्लल चांपीयो, लागा प्राबा डाल बे । पवारां सूंधोनिक्स, भूंबषो पड्यौ पराल बे ॥ २६२ उमावां साषीधरा, दीठां कैरी भू ब बे I जांण्यो कुंवरी छै सही, कूड नही तिल वात बे ॥ २६३ - ८२. वार्ता - हिवै पंचा सारा ही साषीधर हूवा । सारा ही षमा-षमा केह ने कहे — श्रीमाहाराजकुवार ! श्राप तसती घणी फूरमाई, गुणौ बगसाविजै, दरबार पधारीजै । इतरौ कहीयौ तठे कुंवरजी उम्रांवांरे साथे घोडै असवार हूवा ने कुंवरी चकडोलमे वेसनें दरबाररे महिलां गई । वासैसूं वधाईदार राजा भोजने जाय वधाई दिवी । पधारचा । इसो सुणी राजा बुसी हुआ, परधांनने को-सांमेलारी ताकीदी करो । तदी परधान सारो सहीर, बाजार सोणगारीयो; हाथी, घोडा, कोतल सोणगारचा; नगारा नीसांण फररा सर्व त्यार कीधा । राजा भोज सांमेलो करी कलश वंदावे कुंवरजीनु मांहे लीधा । तदि कह्यो – हूँ तीरसू पाडो तो कुंबाण ले तीर ग. वारता - रांणी कह्यो । रीसालु कहै - श्रा श्रसत्री सुकलीणी छे । राजा समस्तरो बेटो छु । तदि [रांणी] कह्यौ -सात कैरीको कुंबको एक हूं जांणू तो थे रीसालु बरा । तदि सारा लोक देषवा लागा । तदी रोसालु Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरो [ १३१ दूहा- श्री माहाराजा भोजजी, तांहरो जमाई अबार बे। आयो जीवतदांनमें, दीधो कुंवरी उतार बे ॥ २६४ राजन रूडा होयज्यो, सीषा सारा काज बे। बाजी परमेसर षरी, राषि दोन्यारी लाज बे ।। २६५ ८३. वार्ता-इसा समाचार श्रीमाहाराजा भोजजी सांभलने पूसी हवा; घणी वधाईयां वाटी । इतरै उम्रावासं मोलीया थका श्रीमाहाराजारे सभामे पाया, मजरो को यो । राजा भोज घणी मनवार कुंवरजीने दीनी । भली भांत सं बांहा पसाव कीया । ग्राछी विछात विराजीया । कुशल-कुशल पूछीया । कुवरजी प्रापरी वीती वात सारी देसोटा धूरा-धूरा कही । राजा भोज घणी धीरप देवी नै दूहो कहै छैदूहा- पूत्र पितारा हुकममे, जे रहे जगमै जोय बे। ते सारोसो जग इणै, वले न वीजो कोय बे ॥ २६६ पाछो बोलो वोलडा, वाद कर रीसाय बे। ते सूता पितुं अलषामणो, होय सदा दुषदाय बे ।। २६७ जेसा पूत्र ज्यू वाल्हा, जेसा अवर न कोय बे।। पिण जग मावीता तणौ, सूषमे दुष को जोय बे॥ २६८ भली वूरी माइत तनी, नवि कीजै देषे पूत्र बे। पूठत मावीतथी, ते सफू जाणे सूत्र बे ॥ २६६ पूत्र ईसा जगमें हुवै, माइत तरणा मंजूर बे। रहै सदा मूष पागल, नही अलगा नही दुर बे ॥ ३०० प्रेम विडांणा पारषा, जगके मोह अकथ बे। कर जोडि पितुं पागले, रहैं सदाई साथ बे ॥ ३०१ ज्यू पितुं जपे तुं षरो, कालो गोरो कथ बे। तेहबो हुकम चढाईये, सीस सदा समरथ बे ॥ ३०२ मेल्यो, सात कैरी को झुबको पाइयो । सारा रजाबंध हवा राजा भोजरै जमाई रीसालु प्राध्या। ___ ङ. वारता-रीसालं इसो रांणी। मुषथी साभलीने घणा रजाबंध हवा, प्रा असत्री सूषलोणी छ, घणु जोग्य छ । तद कुमरी कयो । सात केरीरो झूबको एकण कवांणीयासू पाडो तो षरा । तरे सर्व लोक देषतां सर नांष्यो। तरे सात केरीरो झूबषो पागणे पाय पडौ। राजा प्रजा सर्व राजी हुवा । राजा भोज सांभल्यो, जमाइ प्रायो। Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ ] बात रीसालूरी ८४. वार्ता-इसा दूहा राजा भोजजी कहीया। कुंवरजी [रो घणो मन द्रढ हवो, स्याली हुई। राजा भोज नवा सिरपाव कराया । भलाकडा मोती निजर-निछरावला कीवी।। दूहा- लोक करत बधामरणा, घर घर मंगल माल बे। नगर गली घर नोबती, बाजै ठोर बे बाल बे ।। ३०३१ हर्ष तणी गत होय रहि, नगर लोक ले पेस बे। पूरमे रलीयायत घरणी, सकल नमावत सीस बे ॥ ३०४२ वंदी जम छोडावीया, के पंषी मग माल बे । नर-नारि पासीस दे, जीवो कोडीक काल बे।। ३०५३ भलाई पधारयां कमरजी, भलो हवो दिन आज बे । प्रास्यां बंधी कामनी, ताका सूधरया काज बे ॥ ३०६४ प्राज सूरज भल उगीयो, हुवै बूठा मेह बे।। नीजीवत हुवा जीवता, भवला बंधीया नेह बे ।। ३०७५ भलाई पीयारो नेहडो, नोहचो फलीयो नार बे। कोड वरस राजस करो, सूष विलस्यो प्रण पार बे ॥ ३०८६ *८५. वार्ता-हिवै नगररा लोकां प्रासीसां सूथरो दीवी। साराहीसू कुवरजी मांन कर-करनै मोल्या । नगरमे पडोहे वाजीयौ। हर्षरा वधावा-गीत १. २. ३. ४. ५. ६. ख. ग. ङ. प्रतियोंमें इन छहों दूहोंके स्थान पर निम्न दूहे ही प्राप्त हैंख. दुहा- लोक करे वधांमणा, घर घर मंगलच्यार थे । नगर सह को यु कहे, भले पाया कुंवर रसालु बे ॥ ६० नगर चोहटे नोसरया, सहु को नमावे सीस बे।। नर नारी प्रासीस द्य, जीवो कोर वरीस बे ॥ ७० साहूकारवाक्यं दूहा- लोक करै वधांम[णा], घर घर मंगलचार बे । सहू मील लोक ईयु कहै, आयो कुंवर रोसालु बे ॥ ५६ सेठवाक्यं दूहा- नगर चोहट नोसरचौ, सहु नमावै सीस बे। नर नारी प्रासीस दे, जीवो कोड वरीस बे।। ५७ दूहा- लोक करै वधांमणां, घर घर मंगलाच्यार बै। ___ बंधी जन छोडि दीया, के पंषी मग माल बै। नर नारी प्रासीस दे, जीवो कौडी बरोस बै ॥ ६४ *-*. चिह्नान्तर्वर्ती ८५, ८६, ८७ एवं ८८वीं वार्तामोंके गद्य-पद्यांशका वाक्यविन्यास ख. ग. ङ. प्रतियोंमें इस प्रकार मिलता है ङ.. Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रोसालूरी [१३३ गवीज रह्या छै । इतरै रात्र पूहर सवा गई । त, कुंवरजी मेहलां दाषल हुवा। इतरे कुवरी सिणगार कीया कुवरजो पासै पाई। दूहा- काली कांठल भलकीया, बीजलीयां गयरणेय बे। चमकती मन मोहीयो, कच छाको देय बे ।। ३०६ पिंडस पतल कटि करल, केल नमावे अंग बे । लोयण तीषां ठग भर, प्राई मेहल पंतंग बे।। ३१० जाणे मांन सरोवरे, मोलप्यो हंस विसाल बे। सेझां पाई सुंदरी, छुटो गज छंछाल बे ॥ ३११ पूरो पूनम जेहवो, मष विच चूंपे जडाव बे । कालो वादल कोर पर, वोज षोवे जिझेकाव बे ॥ ३१२ ८६. वार्ता-इण भात सू कूवरी सीणगार सझनें कुवरजी पासै प्राय ने सरदो कर ने हाथ जोडने ऊभी रही । तठे रांणीरो रूप, मटक-चटक देषने मनमे कुवरजी घणा राजी हुवा। दूहा- जि नर रूपे रूवडा, ते नर निगुण न हुवंत बे। जी मण भोज कुमारका, मोह्यौ मन तन कंत बे ॥ ३१३ ८७. वार्ता-इसो कुवरजी वीचारने रांणीने घणी राजी कीवी । घणा कवित्त, दूहा, गाहा करीने माहे-मांहि चरचा कीवी । तठे कुवरजी रांणीनै कहैसाबास, थांहरो कोल भलो उजलो दिषायो; म्हे तो मांरा मनमे जांणता थालगायांरो समाधाका पालम कहीजे, तिके लूगाया छ । ख. वारता--रसालुजीए इण तरेसु महीलां दाखल हुा । सघला साथसु मील्या । नोजर-नीछरावला हुई । इम करतां च्यार पोहर दोन वतीत हुो । संध्याई रंगमहीलमे जाए पोढीया। रांणी पोण स्नान, मजन कर भला कपडा पेहरोया। सर्व प्राभुषण पहीर वाल-वाल मोती सार, घणा अंतर-फुलेल ढोलीया । कपडा सघला इकगरकाव (इक रंग का) कीया। इण भांत घणा उछाहसुसुरापानरी सुराही लोयां रात्र घडी दोय गया, महीलां पाई । रसालु जीम लीया । घणा उछाह कीया। वात वीगत मन-तनरी कीधी, सुष-वीलास कीया, लयलीन हुआ । तीण समीए रसालुजी रांणी प्रते काइ कहे छे रसालुवाक्यं दूहा- सर वर पाय पषालतां, तेरी पायडली षस जाय बे। हु थने पुछु गोरडी, थने क्यु कर रयण वोहाय बे।। ७१ रांणीवाक्यं सर वर पाय पषालतां, मोरी पायलडी षस जाय बे । अंबर तारा गीणतां थकां, यु मोकु रयण वीहाय बे ।। ७२ Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ । बात रीसालूरी दूहा- कुड कपटनी कोथली, रमती पर पूरषांह । लजा संकण जा(ता) नही, प्रीतम मन पिछतांह ।। ३१४ जगमे नारि रूवडि, वसत करी जगनाथ बे। पिण साचे मन चाल बे, तो पिउं थाय सनाथ बे ।। ३१५ मंगल जारी मागरण, चीला छोड कुचीन बे।। चाले मन पिउ नहि गिरणे, ज्यू मद मानो(तो)फील बे ।। ३१६ पिण तो सरषो बालही, जो नवि मिलती मोह बे। तो हु प्रतीत न जाणतो, नारि तणो अंदोह बे ॥ ३१७ वारता- इसो सुणि रसालुजी राजी हुआ। रांणीरे घणा ग्रहणा, वेस-वाया कराया। होवे रात दीन सुषे भोगवे छ । दुहो- मो मन लागो साहोबा, तो मन मो मन लग । ज्यु लुण घोलुधो पांणीयां, ज्यु पाणी लुण बोलग ॥ ७३ वारता- इसी रीतसुसुष-वीलास करतां मास पंच वतीत हुआ। तदी रसालुइं राजा भोज पासे मीष मांगी। ग. वात- रसालुन म्हैलांमै डेरा दीवाड्या । तदी रीसालु म्हैलोमै सुता छ। राणी प्राई । राणीने कांई कहै रीसालुवाक्यं दूहा- सरवर पाव पषालतां, तेरी पायल क्यु सही जाय बे । हूँ तो पुछु गोरडी, तु क्यु रयण विहाय बे ॥ ५८ तदी रांणी काई कहै वूहा- सरवर पाव पषालतां, मेरी पायल क्यु कसी जाय बे । अंबर तारा जोबसां, ज्यो मो रण वोहाय बे ॥ ५६ वात- तदी रीसालु राजी हूवो । तदी रांणीने ग्रहणो दीधौ। जडावरो सीसफुल, जडावरा प्रांकोटा बीदी सहेत दोधी । सोनारी धड, रतनां रो हार, नवसरो वरहार, चंद्रसो उजलो चंद्रहार, माला सोनारी, दोय हाथ रा वाजुबंध, हाथरी बीटी, जडावजडी, नगजड्यां हीराकणीरी वीटी, जडावरी जेहड, दोई पायल, दोय पग पान मय मेषला, हजार पांचसैरा दीधा । ऐस्यो पंच फुल्यो गहणो कुंवर रोसालुजीरी राणीने दोधो । गैहणा-गांठा घडाव्या। राजाजी राजी हवा, वधाई वांटी । घणा भोग-वीलास दन पनरै रह्या। एक दिनकै सम्य राजा राणीसू कह्यौ-माने सोष देवाडो। . वारता- रोसालुनै महोला माहै डेरो दोरायो । रोसालू महिला माहै सुता छ। तद रांणी प्राय रीसालून कांइ कहै छै दहा- सरब याय पषांलतां, तेरी पायल षीस जाय बै। हुं तोने पूछू गोरडी, तौन क्यू कर रेण विहाव वै ॥ ६६ Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी [१३५ रांणीवाक्यं सूकुलीणी नारि तिका, पति संग रहै अछेह बे। जीवतडां नहि वीसरे, न वलगाई नेह बे ॥ ३१८ ८८. वार्ता-इण भातसू माहौ-माहिं दुहा कहिनै राजि हुवा। नवा नेह लागा, विरह-विछोहा भागा। पेहरी केसरीयां वागां, मिट गया दुषना दागा, चोवा-चंदन लागा। इण भातसू माहौ-मांहै संसाररा सूष विलासतां घणा मास हुवा । हिवै एक दिनरे समै कुंवरजी राजाजी कनै सीष मांगी । तठे राजा भोजजी घणा दुषो हुवा ।* दूहा- राज सरीषा प्राहुणा, वले न पावै कोय बे। मिलीया दुष गलीया सहू, जूगत थई सहु जोह बे ॥ ३१६१ अंग उमाहो कुवरजो, कोयौ कोसी वीस आज बे।। राज सला धारी धरण, सो कहि जंबो काज बे ॥ ३२०२ कुवरजीवाक्यं बारै वरस वनवास रा, भोगवीया माहाराज बे। अब घर जइये वचनथी, सोल वरस धर साझ बे ॥ ३२१३ ___ A८६. वार्ता-इसा समाचार सूणनें भोजजी टीको अोझणी सारो ही कीयो, दत दायजो घणा दीया, घणा मनवारांसू दीया, घणा मनवारांसू लीना । हि रांणी पिण छांनो माल प्रापरो बेटीने दीयो, घणी राजी कीवी। दूहा- सहस दाय हैवर दोया, इकवीस गैवर दीध बे। सहस धोरी दूरणा करला, जगमग झूला लोध बे ॥ ३२२ चाकर पंचसय चेरीयां, वलि हथियार विशारन बे। चतुरंगणी लछमी दई, टलीया प्राल पंपाल बे॥ ३२३ ९०. वार्ता-इसा द्रव्य देनै कुवरजीनै सीष दीवी, घणा पासू पाया। माता-पिता घणा रूदन कीना IA - ---------- - - रांणीवाक्यं दुहा- सरवर पाय पषालता, मैरी पायलडी षीस जाय । अंवर तारा गिणता थकाय, मौरी रेण विहाय वै ॥ ६७ वारता- रीसालु राजी हुवो राणीरे घेहेणौ घडावै । राजा राजी हुवो वधाई पाटी। घणा दिन रया । रीसाल् राजा तीरे सीष मांगी। १. २. ३. ये दूहे ख. ग. घ. में नहीं हैं। A-A. चिन्हान्तर्गत गद्य-पद्यांश का वाक्यभेव ख. ग. ङ. में गद्यरूपमें इस प्रकार मिलता है Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसासूरी दूहा- धन धन मातारो नेहडो, धन धन पाले जेह बे। धन धन पोउं धन प्यारीयां, धन धन कंवर सनेह बे ॥ ३२४' माय बाप लीया तिहां, विरह घूराया निसांण बे। एहवा पाहुणा डा (ई) सदा, भल प्राज्यौ भगवान बे ॥ ३२५२ ६१. वार्ता-इसा विलास, विरह, मिलाप साराहीसू करने कुंवरजी नगारो देनै चढिया सो धारावती नगरी अाया। प्रायने बरस पांच तांई रह्या । वलै वसती घणी वसाई। तठे माहादेवजीरो सेवावजीनूं कहीयौश्रीमाहाराज जोगेसराज ! प्रो रीसालू कुंवर प्रापरी घणी भगत कीवी छ सो इणन कांइ क देवो । त? श्रीमाहादेवजी वोलीया-रे कुंवर ! संतुष्टमान हवा; मांगै सौ हि ज देवां । तठे कंबरजी बोलीयो-श्रीमाहादेवजी माहाराज ! आप तूठा छो तौ प्रा नगरी सारी ही वस जावै; अागली हुती, तिणसू सवाई हुई जावै नै म्हारै सवा लाष फौजरो वाधैपो हुवै; इतरी वीध मोनै दिरावौ। तठै श्रीमाहादेवजी बोलीया-तु चावै सौ सारी ही विध हुय जासी । इतरो हुकम लैन कुवरजी घरे प्राया। हिवै कितरा इक दिननै प्रातरै रांणीरै गर्भ रहो । नव महीना पूरण हूवाथी पूत्र हुवौ। तिरणरो नाम रतनसीह दीयौ । दूहा- सूरज किरण ज्यू तन झिमै, सूदर फूल गुलाब बे। रतनसिंह नामै षरौ, दीधौ नाम सूलाब.ब ॥ ३२६४ ख. वारता- तरे भोज राजा प्राछो मोहरत जोय बेटीन सीष दोधी । घणो दतू-डायचो, घोडा, हाथीदल, कटक देइ प्रोझणो पोहचाया। ग. तदि राजा भोज बेटीरो चलाववारो महरत पुछयौ । तदि राजाने पांडतां भलो मोहूरथ दोधो । तदि राजारी बेटी चलाई । घोडा, हाथी, रथ, पायक देने चलाई भली भांतसु पोहचाया। ___ ङ. तद राजा भोज मौरत पूछौ । बेटी साथै घणा कटकदल देने डाइचो दे चलाया नै भली तरसू पोहचाया। १. २. दोनों दूहे ख, ग, ङ. प्रतियों में नहीं हैं। . ३. ९१वीं वार्ताके स्थान पर निम्न गद्यांश ही ख. ग. ङ. प्रतियों में प्राप्त है ख. रसालुजी घोडे असवार होय सघलाइसौं मोल श्रीपुरनगर सारु वीदा हुआ। ग. तदि [रोसालु] चाल्या चाल्या धोरावास नगर पाया । उठे जाऐ वरस पांच रह्या । उठ नगर वसायो । उणी रांणोरे बेटो हूवो छ। रतनसाह नाम दोधो। 3. चाल्या चाल्या धारावती नगरी गया । उठे बरस पांच रया नै नगर वसायो। रांणीर बेटौ हुवौ । तिणरो रतनसिंघ नाम दोधौ । ४. यह दूहा ख. ग. ऊ. में नहीं है। Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रोसालूरी [ १३७ ६२. वार्ता-इण भात रहतां थकां श्रीमाहादेवजीरा प्रतापसू घणा दास दासी वधीयो । चारू ही कानीरा भौमीया, ग्रासीया प्रांणनै चाकर रह्या । नगरी सारी ही आगासू सवाय वसती हुई । घणा विनज-व्यापारसू डांण-जगात धणी प्रावै छै । तिणसू कुवररे षजांनी क्रौडा रूपीयारो हुवौ। कुंमे किनी वातरी नही ।B Cतठे इण विध रहतां थकां वरस पांच वलै हुवा। तठै रातरा पौहरा कुवरजी सूता छ । सूतां मनमै वीचारीयौ जे वनवास ही भोगवीयौ, राज ही भोगवीयौ, पिण घरै गयां विनां विभ्रारी षबर किसी पड़े; तो अवै माईतांसू मीलनौ ने धरतीमै नांम करणौ । इसौ विचारनै आपरा उम्रांवाने प्रभातै सभामै बुलाया; मनसोबा कीया। तठ मोटो माहाजन अकलबादर, तीणनै दीवाणपद देईनै द्वा(धा)रावती नगरी सूपी; भला समसेरबादर रजपूत मूंहडा आगै राषी घणी जाबताई दीधी। हिवै पाप नगारो दिरायनै सवा लाष घोडौ साथै लीयो। __दूहा- दल वादल भेला हुवा, देता नगारां ठोर बे। जांरण भाद्रव गाजीयौ, चढीया वहतां सजोर बे॥ ३२७ ६३. वार्ता-इंण भातसू बहता थकां आपरी नगरीसू कोस एक उपरै प्रांणनै प्राचाचूकडा डेरा कीया । प्रभात राजा समस्तजीनै षबर पडी। मनमै भयभ्रांत हुवा-जे कीणरी फोज है । त, नीजरबाजांने मेलीया । तिकै जायनै षबर पाडी-कैठ जावसी, क्यू पाई छै ? तिका हकीकत कहौ । तठे कोई क उम्रावा बोलीयौ-अरे राईकां ! थाहारा राजानै केहनै इण नगरोरी जाबताने भाई छ । फोज उमीर-सीरदारारी छै। इसा राइके समाचार सूणनै राजाजी। B. यह अंश ख. ग. ङ. में नहीं है। C.-C. चिन्हान्तर्गत गद्य-पद्यांश के स्थान पर ख. ग. ङ. प्रतियों में निम्न गद्यांश ही प्राप्त है ख. कित्तरेके दीने चाल्या थका श्रीपुरनगर नेडा गया। राजा समस्त जाण्यो-कोइ वेरीदल धरती लेवा प्रायो दीसे छे । इसो वीचार राजाए उंबरावानु साहमा मेल्या-पा कोणरी फोज छ, कठे जासी ? इतरामे हलकारा पाया राजा समस्तने अरज कीधीमाहाराज ! रसालु कुमर परणेने प्रावे छे। इसो सुणीने राजा समस्त राजी हुआ। हीवे राजा समस्त सांमेलारी सझ कराय रसालु वर सांमा प्राया। मोती थाल भर वधायो । नरनारी मील मंगल गाया । घणा उछव महोछव हुमा। सर्व लोकांनै मन भाया। यु करतां रसालु राजलोकमे पाया । माता सु मील्या पछे महीला वाषल हुआ । होवे रसालु सुषे रहे छ । तठा पछी पांच रांणी फेर परणीया। रांणीयां संघाते मनवंछीत सुष भोगवे छ । इम करता एकदा राजा समस्त देवलोके पहुता । तरे रसालु घणो धर्म पुन्य करी चंदण अग Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ ] बात रोसालूरी कहोयौ-श्रीमाहाराजा ! फोजरी तो चौकस कोई नही, पीण बूरै मतै छै, आप जाबताई करीजै । त? राजाजो घणी जावता करवा लागा; घणा नाल-गौला बरंजा उपर कसीया। रावत, सूरवीर घणा दल भेला हुवा। पिण रीसालूरी फोज चुप-चापसूबेठी रहै छै। किणहीरो तिणामात्र उजाडै न छै।। __ यू करतां छ महीना हुवा । त? राजा समसतजी आपरा प्रधांनने कहीयौथै फौजरा नायकसू मीलौ; देषां, कांई रंग-ढंग छै ? षबर जीसी हुवै तीसी ल्यावज्यो। त, प्रधान असवारी करनें हजार पांच असवारांसू फोजां सांमो नीसरयौ । आगाउ सांढोयो मेलीयौ। प्रधान मीलवान पावै छै, इसौ कहाय दीयो। तठे सांढि (ठि) यै हकीकत कही। त? सारा ही सांवधांन हुवा छ । प्रधानजी आवै छै। दूहा- दल दिषणादी देषीया, झांझा फरहर झंग बे। बाजै नोबत बंबली, रीसालू फौजा रंग बे ॥ ३२८ ६४. वार्ता-इसा दल देषतो प्रधान रीसालरी फोजमै आयौ। प्रायन माहौ-माहै मीलीया, बांह पसाव कीया । प्रधान कुंवरजीन घणा वरसस् उलष्या नही । कुशल-कुशल पूछीया, विछायत बेठा, अमल-पाणी कोया । तरै कुंवरजी प्रछीयौ-जै प्रधानजी साहिबा ! आप क्यू पधारीया छो? तठे प्रधान कहैश्रीमाहाराजाजी मेलीया छै पाप कनै । सौ पाप कीरण काम पधारीया छो । आप कजीयो पिण म करौ, प्राघा पिण न जावौ, तिणरौ कांई विचार छ ? आपरा मनमै हुवै सू कुवरजी साहैब ! आप कहौ; प्रापरा मनमै हुवै सू मने कहौ, ज्यू माहाराजसू मालिम करूं। काठसु दाग देरायो। बारे दीवसे प्रेतकार्य कीधो। पछे पाछे मोहतें शुभलग्ने शुभवेलाए रसालु पाठ बेठा । प्रोहीत तीलक कीधो। सघले सोरदारे, मसुधीए प्राय मुजरो कीधो। भोमीया, कांठलीया सर्व प्राय पाय नमण हुआ। रसालुए अदल राज पाल्यो । घणा दोन सुष भोगव्यो। ग. उठासु चाल्यो अापक श्रीपुर नगरै प्रादया। राजा समस्त जाण्यो-प्रो दल-बादल कीणीरो छ । अतरायकमै राजा समस्तजी हुकम कीधो-स[२]दारने उरो बोलावो । चाकर कह्यौ-माण । चाकरां जायनै प्रधाननै उरो तेड्यो । पाप हजुर प्रायो। तदि आप हुकम कीधो-प्रो कटक कोणीरो छ ? तुजान षबर ल्याव । प्रो घोडो चढे सांमो गयो। जायने पुछचौ--प्रो कटक कणी राजारो छ ? मांने कहौ । माहरे राजाजी पुंछायो छ। अतरायकमै माहाराज कुंवरजीसुअापरे फोजदार जाए मालक कीधी-माहाराज ! अणी संहररो राजा, तणीरो फौजदार षबर करवाने प्राव्यो छै । तदी पाप हूकम कीधो-उरो बुलावो । तदि हजुर आयो । मुजरो कीधो। आप कहो- प्राघो प्रावो। पाप पुछयौ-क्युपाया छो ? जदी उणी ही हाथ जोडने कह्यौ-माहाराजा प्रापरी षबर करवाने मोकल्या छ।। Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी [ १३६ तठे रीसालूजी बोलीया-म्है थाहरा राजानो कागल बीड देवां छां सौ हाथी-हाथ देज्यौ । थाहरौ राजा वांचनै मानै सीष देसी तौ परा जावस्यां, कजीयौ करसी तौ कजीयौ करस्यां; ओ जाब छ । तठे प्रधान बोलीयौ-दुरस फूरमाई, आप कागल लीष दीरावी । तठे रीसालू कागल लिङ्ग छैदूहा- सीध श्री सकल गुणनिधांण, तपतेज प्रमाण, प्रबल राजपरताप, तपतेज कायम, जगत दुष चूरण, गरीबके सरण, छोरूकै पाल, माहारसाल, परम सूषकारी, राजकृपाथी सूत सूष भारी श्री श्री श्री १०८ श्री १०००००० श्री श्री माहाराजाधीराज माहाराजाजी श्री श्री श्री समस्तजी चरण कुमलायनूं -- दहा- श्री सिध श्री श्रीहजूरन, लिषतं सूत कल्याण । तन मन जीवन सूष करन, पूरण परम निघांन ॥ ३२६ सकल प्रोपमा जोग्य है, पितु-माता मनूं रंग । सूतको मूजरौ मानज्यौ, दिन दिन अधिको रंग ॥ ३३० सूष बहु तुम परसादथी, तन धन श्री माहाराज । सदा रांवलो जांणज्यौ, चाकर साधत काज । ३३१ तुम फूरमायो जा परो, सो काहां जावै भाम । पूत्र तुमारो रीसालूंवो, आयो मीलवा काज बे ॥ ३३२ जो मिलवो मूष देषवी, जो कोई मूहुरत होय । प्रोहितजीने पूछ कर, आछौ दिन ल्यौ जोय ॥ ३३३ पिता हकम वनवासकौ, सौ लह्यौ सीस जढाय । वरस बहुत बारे भम्यौ, अब आयौ तुम पास ॥ ३३४ श्रीमाहाराजा हुकम द्यौ, तो हुआउं राज । चरण तुमारा भेटवं, ज्यूं मूज सूधरे काज ।। ३३५ सल्ला होय सौ कीजीयौ, पूठौ दीज्यौ जाब । जै कहौस्यौ सौ मनिस्यूं, करस्यूं काम सताब ।। ३३६ गुनेहगार हु रावलो, साहिब चरणां दास । छोरू कुछोरू हुवे, पिण तात न छोरत पास ॥ ३३७ तदि प्राप हूम कीधो-मे थांरा राजाजीरा बेटा छयां; वरस बारमं पाया छां, सगले साथ राजाजीर कुसल-म छै ? माहरी भाजीरो डील प्राछो छै ? मे तो वरस घणांसु पाया छो, सो ठीक नहीं । जदी उणी कह्यौ--माहाराज ! घणो सुंष छ, चैन छै, वले प्राप पधारयांथी वसेष चैन छै । जदि कुंवरजी कह्यो-थे जावो, राजाजीसुं मालम करो। उणी कह्यो-प्रमाण । उ घणा उछाहसुं दरबार प्राव्यो, राजाजीसुं कह्यो- माहाराज ! कुवर Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० ] बात सा छोरू प्रास करै घरणी, षिउंसू मोलवा कोड । सांचौ जाब दिरावज्यौ, ज्यू ं पूगै मूझ होड ॥ ३३८ कागद वाचने भेजीयौ, आप तो कोई दास । मूकैज्यौ ज्यू ग्रावस्यूं तात चरणकै पास ।। ३३६ , सालुजी श्राव्या छ । जदि श्राप घणा कुस्याल हूवा । रावलामे रांणी कवानो । राजाजि हुकम कीधो - कोटवालने तेडाव्यो । कोटवाल हजुर श्राव्यो । हुकम कीधो-तुं सारो चोक, गली भटकावो, धुलो सगलो बाहीर नषावो । कोटवालवाक्यं हा - संहर सगलो भटकावीयो, चोहटा कीधा स्थाक बे । क्या आग्या देत हो, पुरो मनांकी श्रास बे ॥ ६० राजावाक्यं हा - कुंवर भलै घर श्रावियो, हूई बहूत जगीस बे । रोध बहूली ल्याईयो, ल्यायो कुंवर एह बे ॥ ६१ प्रथ वात राजाजी सांमेलोती श्रार कराव्यो । हाथी, घोडा, रथ, पायक, ढोल, नगारा, ताल मृदंग, पषावज, मजीरा, फररा पांच सबद बाजा लेने राजाजी सांमा चाल्या । सालुजी राजाजीने देषी नीचा उतरचा, सात सलाम करेनं श्राय पगे लागा । राजा जि सुषपालथी नीचा उतरचा, बेटाने उरगथी गाढो भोरचौ, कुसल षेम बुझ्यो । तदि रीसालु हाथ जोडेने की— श्रीजीर पगे लागतां गाढो चैन हूवो । पाछा असवार होयनै सेहर दिसा चाल्या । साहूकारवाक्यं वूहा- धन रे नांम रीसालुंवा, धन अस नगरीका भाग 1 बहू रोध ले प्रथीयो, अब क्या पुंछौ तोही बे ॥ ६२ वात - चोहटामै सवारी नीकलै छै । मांणक चोकमै श्रावीया । तिहां नगर सेठांरा घर छं । सेठरी बेटी गौष बैठी छे । प्रतरायकर्म कुवरजीने दिठा । कुंवरजीवाक्यं दूहा- देषो सहेली श्रायके, एह राजाको रूप बे । ईस धरणी श्री राजवी, उपम धुंन प्रांब क्याह छे (बे) ॥ ६३ वात- श्रबै चाल्या चाल्या दरबार श्राव्या । दोढ्यांथी नोचा उतरचा, लछमी नारायणजीरं पगे लागा। राजलोक सगला गोषं बैठा देषं छै । तठे रीसालुजीरी बेन देषे छे । बेन भाईनं दीठां कांई कहै । 1 राजारी कंवरीवाक्यं दूहा - बंधव भलै घर श्रावीयो, दुधं बुंठा मेह बे । मोतीडे वधावस्यां मिलस्यां बांह पसाव बे ॥ ६४ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालरी [ १४१ वात-- आप रावलारै मुढे जाय उभा रहा । उमरावनि सीष दीधी--प्राप डेरा करो, कमर बोलो, उतारो करो। उमराव मुंजरो करेने पाप-प्रापणे ठीकाण गया। रसालुजी मैहलां माहे गया, माताजीर पग लागा । पाप बैनसु मील्या । बेहनै उवारणा लोधा । माउ कहवा लागा-बेटा ! अतरा दीनां माहे कोई कागद-समाचार अतरां वरसांमै कोई मेल्या नहीं। माउवाक्यं दूहा- बेटा तु सुलषणो, ज्यां सरवर तु देष बे। तुम विना हूं हरी बंधवा, जल विनां ज्यु मछी बे ॥ ६५ बेटावाक्यं दूहा- मातामै मोलवा तणो, घणो ज कोधो चंत बे। अब तुम चरणे लागस्यां, सफल फल्या वंछत बे ।। ६६ बैनीवाक्यं दूहा- बीरा तु सुलषणो, गयो कुंण प्रत देस बे। ल्याया सौ कहो मुने, मे छां ताहरी बैन बे ॥ ६७ कुंवरजीवाक्यं दूहा- सुण बाई वीरो कहै, मै गमा समुद्रं पार बे। घणा तमासा देषीया, देष्या त्रीमा चीरत बे॥६८ बैनवाक दूहा- सुण बीरा बैनी कहै, कुलवंती ते होय बे । त्रीया चीरत्र जाण नही, जो आवै सूर ईद्र बे ॥ ६६ वारता-माउ, बैन कवा लागी-वीरा ! थे कोणी कोणी देस गया, (कुण कुण देस गया) कुण कुण तमासा देष्या, कतुहल देष्या, देष्यो होवै सो मां प्रागै सगला कहो। जदि रोसालु केहवा लागा–बाई ! मे समुद्र परै राजा अंगजीत छ, तीणरी बेटी परण्यो, सौ मेलने उरा प्राव्या। पछै राजा भोजरी बेटी परण्या। पछै राजा मानरी बेटी परण्यां, ते मेले प्राया। प्रा कन्या परणे ल्याया सो पतीव्रता छ। उणीरा तो लषण पातला, मां जुगती नहीं, तणीथी परी मेली। तद बाई केहण लागी-वीरा ! उणीमै कांई अवगुण दोठो। तदि प्राप कहै-हू परणेने पाछौ फीरयौ जदि ऐक सैहरमै उजड दीठो । तिणीम मे मेलि थी, जणीम मे रहा। सवेरै हूं सीकार जातो। तदि हठीमल पातसाह मृगर वांस ऊ पाव्यो। राणी म्हैलांमै थी, देष्यो। तदी मै जांण्यौ । उणने में परो मारयो। ईतर एक सीन्यासी मारा मेहलां नीचे गौरष जगायो। जदि मे उणीने षांणो दीयो । हूं गोषमै बैठो थो। जत्र जोगीऐ माथामथी मांदलीयो काढयौ । तणीमथी लुगाई काढी । तणीने षांणो दीधो । दोई जणा रमे, षेले नै जोगी सुता, लुगाई बैठी थी। तणी साथलम्हैथी बतीस वरसको जुवान काढयो तणीने षांणो दीधो। तणीसु भोग-वीलास गाढो कियो। करे ने पाछौ साथलभ मेल्यो । जदि जोगी जांण्यो (ग्यो) । प्रतरो तमासो रोसालुजी दीठो । देषन प्राय नीचो Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ ] बात रीसालूरी उतरयौ । देषे तो पाप जोगी सूतो छ । तदी रीसालुजी कह्यो-बाबाजी ! नमो नारायण । कह्यो-बाबाजी माधो प्राव । रोसालु वाक्यं दहा- रे बाबा तुं जोगीमा, दीसो बोहोत सुंग्यांन दे। तुम हो कीधा व्याल दो (हो) सो दिषाडो मुझ बे ॥ ७० जोगीवाक्यं दूहा- थे छो राजा बहुगुणा, क्या त्यो मेरा अंत बे। देसां देसां भमता फीरो, कीधा ऐता सरब बे ॥ ७१ वात- तदि कुंवरजी कह्यो-थे तमासो कोधो सो मोने दीपावो। तदी जोगी जॉण्योप्रो राजा चकोर छै, कला माहरी दीठी छै। जदी जोगीऐ मादल्यो माथामांथी काढयौ, माहथी लोगाई काढी। तदी लोगाईनै राजा कहै-तु जणीथी राजी होवै तीणने काढ, में तोने उपगार करस्यां । तदी लुगाई साथल माहेथी जुवानने काढ्यो। जदी रीसालु कह्योप्रणथी राजी है। जदी उण कह्यो--आप कहो जिम । जदी जोगीनै रीसालु कह्यौ--प्रा असत्री थां जोगी नहीं। जदो को-माहाराज । जदी लुगाई नवाने दीधी। जोगीने प्रापरी असत्री दोधी । हाथ पांणी कुढचौँ । वले घणा त्रीना-चरीत्र दोठा । __ हजार सातरो माल पगे मेल्यो। माताने गैहणो जडावरो दीधी। बैननै सरपाव ईकतीस दोधा। सगलांने संतोष्या, पोष्या, राजी कीधा । महलांमै जायने पोढया । असत्री संघात काम, भोग, संजोग घणा कीधा। सवेरै नणद भोजाई मोल्या । नणद भोजाईन नोद प्रावती देषनै कह्यौ - नणदवाक्यं दूहा- नयण थारा भुभला, दोसै छै बहू नीद बे। ___ रजनी सहू वह गईं, तो ही न धाप्या तेह बे ॥ ७२ भोजाईवाक्यं दूहा- थारो वीरो बहुबली, तीम अरूजण बांण बे। रयणी वात बहू गई, ईण वोध राता नैण बे ॥७३ वारता- तदी नणद कहवा लागी--पुरषरो ऐहवो जोवन होवै छ, थे प्राजी ज जांणो छो। पिण एक दोन दादोजी सकार गया था। सो मग उछेरयो। ईतरै समदै घोडे चढ्या था। सो घोडो पाछै दोधो तीतरै मृग अलोप हूवो। अतरायकमै पटा झरतो, मद छकतो, मेहनी पर गाजतो, घटानी पर कालो, ईस्यो हाथी भाई सामो प्रायो। तदी भाई मनमै वीचारयो-पाछो फरूं तो अमरावांम हासी होसी। तदि हसतीरै दंतुसले जायनै हाथ घाल्यो। दंतुसल काढेने उरा लीधा। माथा माहे झाटको । हाथी मुवो। उमराम वषाण कीधोमाहाराज ! भाईरो बल ईसो छ। अतर वसंत रीत प्राइं । वनासपती, सगली फलवान लागी। वड, पीपल, प्रांबा, प्रांबली, दाडाम, सहतुत, बोलसरी, प्रासापालव, केवड़ा, केतकी, पाडल, चंपो, मोगरो, जाय सदा Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात रीसालूरी [ १४३ भेटे चरण सूषी थवं, करू वधावा कोड। [चरणाम] ? करू वधामणा, एक हुंबेकर जोड ॥ ३४० ६५. वार्ता-इसी चोठी लीषनै प्रधानरै हाथे दीधी। प्रधान चीठी लेने माहाराजने दीधी, सारी हकीकत कही । तराजाजी चीठी बिड षोलने वाची। साराहीने अचंभी नै घुस्याली हुई। हिवै राजा समस्तजी सहर सीणगारीयो । कुंवररै वास्तै वधांमणा कीया । घणा षूसी थका राजाजीतूं पूत्र मील्या । घणा वधायनै माहै लीया । माता-पितासं मील्या । सारा ही सहरमै हर्ष, मंगलाचार हुवा । मातारो बोलीयो कुंवर कायम कीयो IC Dदुहा- राज पाट सह विलसतौ, लिषमीकै भंडार बै। रांणी पांच भली परणीयौ, रंभारे अवतार बे ॥ ३४१ वसंत, वदाम, बीजोरा असी भातरा अनेक भातरा रूप पालव्या छ। तणी समै राजाजी नषेसु सीष मांगें ने नवलषा वागमै सघला राजलोकमै पधारया। रिसालुजी तठे तंबु षडा कीधा। रावल्या तंबु षडा कीधा । वसंत रीत प्रावी । कुंवरजीवाक्यं दूहा- अब वसन्त ही प्रावही, फल्या प्रांब अनार बे।। तसके कारण कुंवरजी, चाल्या सहैरकै बार बे ॥ ७४ दूहा- ज्यांह नवलषा या (वा) ग है, भांत भांतका रूष बे। तीहां है बगला नवनवा, चोबाराकी मोज बे ॥ ७५ दूहा- तीहां के बचा अती भला, नल छुटे भरपुर बे। केसरको चोकी कीयां, रमै तीयांक संग बे॥७६ दूहा- रांणी सहू साथ लोयां, षेले आप वसंत बे। __ मुठी हाथ गुलाबकी, नांर्ष माहोमाह बे॥७७ दूहा- रात दीवस तोहां (ही) रहे, नही जाण ससी-सुर बे। सुरगलोक म्रतलोगम, जांण सहै ज मुज (सुर) बे॥७८ ___ वात- वागमै रमे, षेले नै घणा बीन तांई रहेने पाछा सैहरमै पाया। कुंवरजीरे दोय बेटा हूवा । घणा दीन ताई कुंवर पदवी भोगवी । पछै पाटै बैठा। सगल देसै प्राण-दांण चलाई। दुसमण सघला प्राय मील्या । कंवर पधारया। अमरावांन घणा बधारचा; उणांने मोटा कीधा। तीणांने सीरपाव दीधा, घोडा हाथीनी पट दीधा, उमराव कीधा । प्रतापीक राजा हूवो, साहसीक हूंघो परनारी सहोदर, प्रदूषरो कातरो। दूहा- भागवान अरू साहसी, रावां हंदा राव बे। मन वांछ [त] सहू फल्या, फल्या मन जगोस बे ।। ७६ वारता-सुबै राज पाले छै । देवतांनी परै सुंष भोगवै छै । ईद्रनी परै रोध दीसै छै । न्यायवंत राजा वीक्रमादीतनी पर माहान्याअवंत हूवो । अकल, रूंपना धणी । असी तरै राजा न्याअवंत राज पालै छ । सहू लोक धन धन करै छै । घणा षटदरसणरो प्रतीपाल हूवो। Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ ] बात रीसालरी गुणवंती नारि तणा, विलस भोग-विलास बे। जाचक जय जय नित कहै, पूरै पूरजन पास बे ॥ ३४२ रीसालं हंदी वातडी, कडी कथी नही कौय बै। गावै चारण नरबदौ, हस्ती आपो मोज बै ।। ३४३ वात रीसाल रायको, हती प्रागै जेह बे। मांहै कवि भेल्या अछ, दूहा वात सनेह बे ।। ३४४ छोटीने मोटी करी, कविता मन कर हुस बै । आनंद मंगल होयज्यौ, जय जय करज्यो वेश बै ।। ३४५ कवियां मन जय पांमवा, हुयसी वाचणहार बे । चतुर भंवर सूगणी नरां, चा (वा)चौ कर मनवार बे ।। ३४६ ६६. वार्ता-इतरी वात रोसालूरी कहो । सारि विध पून्यरो छ । वातरो वणाव खूब कीयौ छै । चतुर पूरषांने रीझरै वास्तै, मीठी लागनरे वास्तै कीवी छ । मूरष पूरषांनै दांतकथा ज्यू छै । ग्यांनी पूरषांनै सील, गुण, ग्यांन छ । दूहा- मनरंजण अतिसूषकरण, राग रंग रस रीत। वात रीसालू रायकी, वांचे ते पालै प्रीत ।। ३४७D रीसालूरी बात संपूर्ण : संबत १८७८ रा वृष मिति माहा वद ७ गुरवासरे लिषतं धूवरां नागोर नगरमध्ये ॥श्रीः।।' . उठासु चाल्या श्रीपुर नगरे प्राया । तरे राजा प्रोठीनं साहमौ मेल्यौ ने कहबाडीयौथे कठाथी पाया, ने कठे जास्यौ ? तिवारे रीसाल सघली वात पायारी कही। तरे मां-बाप राजी हुवा । उछरंग करी सांमा प्राया। मोतीया थाल भर वधाया। नर-नारी मील मंगल गाया । हाट, वजार सब उछव छाया । सरब लोक मन भाया । राणी पंच मिली परणीया । ढोल, दधामा, नोपत बजाया । घणा उछवसू पधारीया। राणी बहु सुष पाया । D-D. चिन्हगत अंश के स्थान पर ख. ङ. प्रतियों में निम्न एक दूहा ही प्राप्त है-- ख. दुहा- राजा रसालरी वातडी, भलो कथी कर बोज बे। गावे चारण नरबदो, हस्ती पावे मोझ बे ॥ ७४ रु. दूहा- राजा रीसालू हंदी वातडी, कूडी कथा न कोय बै। गावै चारण नरबदा, हसती पायो मोज बै ॥ ६८ ग. प्रति में उक्त अंश के स्थान पर कुछ भी लिखित नहीं है। १. ख. इती श्रीरसालुकमररी वात संपूर्ण : ली। पं० अनोपवीजयः ग। संवत १८७५ रा प्रासाद सुद ३ दने । ___ ग. ईती श्रीरसालुंकुंवररी वारता संपूर्ण समापता सुंभं भवतुं । संमत् १८१० वर्षे मती बैसाष वदि ५ दिने वार आदित्यदीने लि० क्री० रामचंद ग्राम कागंणीमध्ये ।। श्री॥ अ. श्री इति श्रीरीसालू कुमररी वात : दूहा : ढाल वंध संपूर्ण सं० १८६२ रा मिती चत सुद ७ अर्कवासरेः ।। मेडतानगर ॥ श्री Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वात नागजी-नागवन्तीरी अथ श्रीनागजी नै नागवन्तीरी बात लिख्यते १. चवदै चाल कछरो धणी जाखड़ी अहीर तिणरी नगरी में दुकाळ पड़ीयौ। तरै जाखड़े अहीर कामदारानु कहीयौ--सांभळो छो, चवदै चाळ कछरो लोक माळवै जांण पावै नहीं। आपण कोठारस सब लोकांन' चाहीजै सु धान रुपीया वैगेरा' देवो। तर कामदारां कह्यौ-साहबजी, दुरस्त छ । तारै सारां उमरोवांन, लोकांनै धान कोठारसु दीयो। सारै ही लोक सुखसु रह्यौ ८ ने बारा मासां काळ काढीयो, ऊपरै पाऊगाळ आयो। तरै रईत लोक अोर ही सब लोक हरखवान हुवा' । अबै तो जमानो हुसी११ । पिण दूज वरस वळे काळ पड़ीयो । दुहा- मन चितै बहुतेरीयां, किरता करै सु होय । __उलटी करणी देवरी१२, मतो ३ पतीजो कोय ॥१ २. वात ४-तरे१५ कामदारां अरज कीवी-महाराजा ! एक तो काळ काढ़ीयो नै वळे अो दूसरो काळ पडीयो। अबै आपरो हुकम हुवै सु करां । तारे जाखड़ेजी कह्यौ-सुणो छो, जठां तांई आपण कोठार मांहे अन धन छै६ तठां तांईं सब लोकांनै देवो । किण ही नै वीषरण देवो मत । आपणो सुखदुख रईत भेळो काढणो छ । जे रईत सुख पावसी तो वळे कोठार, भंडार घणाई भरस्यां । तिणसु जठां तांई कोठारमै छ तठा ताई किणहीन ना कहो मती नै कोठार फूटीयाँ पछै जिकुं होवणहार छै तिकु हुसी। दुहा- लाख सयाणप कोड़ बुध, कर देषो सब२० कोय । ___ अणहुणी हुणी नहीं, होणी हुवै सु होय ॥ २ १. ख. कामदारांनं। २. ख. धणी लोक । ३. ख. सर्वलोकन। ४. ख दिरावो। ५. ख. वगरे। ६. ख. तरां। ७. ख. दुरस। ८. ख. सुखसु खुसीसुं रह्यो । ६. ख. पाऊकाळ । १०. ख. लोक बडो राजी हुवो उ घणो हर्ष हुउ । ११. ख. अबै तो परमेस्वर जमांनो करसी। १२. ख. देवकी। १३. ख. मतां । १४. ख. वार्ता । १५. ख. यतरै । १६. ख. प्रापणे कोठार भांडार छ । १७. ख. सर्व । १८. ख. पासी । १६. ख. निठीयां । २०. ख. सहु । Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ ] बात नागजी - नागवन्तीरी * ५ ૨ ३. बात' - तारै कामदारां नगरमैं, मुलकमैं, पटैमैं, सारै कहाड़ीयोबाबा, थारै जोईजे सु कोठारसु लेवो । अब जिणरे धांन न हुवै तिको कोठारसुं धान वै । खरची न हुवै तिनै रोकड़ देवें । यूं देतो- दैतां दूजो काळ वळे काढ़ीयो, पिण करमरे जोगसु वळे तीजो काळ पड़ीयौ ने कोठार भंडार पिण खाली हुवा | तारां कामदारां राजासू कह्यौ - महाराज ! सिलामत, खजानो श्रीदरबाररो मांहे थो सु तौ सब षायौ', रईतर काम आयौ ँ, हम तो लोक निभै कोई नहीं । तिणसु अबै तो बिषौ कीजै तो भलो छैन । तरै जाखड़े कही- च्यारे ही तरफ सांढीया मेलो, सु जठे घास पांणी मोकळा देखो ठे चालो । तर ओढी " मेलीया सु तीन प्रोढी " तो पाछा आया ने एक ओढी बागड़रै मुलक धोळबाळो राज करै छै, तठै गयौ । सु उठे घास पांणी मोकळा दीठा । तरे जायने धोलबाळानु कह्यौ --जाखड़े अहीर राम राम कहयी ३ छै । कह्यौ छै- मांहरे मुळक में तीन काळ पड़ीया सु" कहो तो थांहरै देस ग्रांवां मेह हुवां परा जावसां" । तरै धोलबाळं कह्यो १६ - भलाई पधारो; प्रो मुळ थांहरो हीज छै । तरै प्रोढी पाछो चाल्यौ ७ । सु जाय नै जाखड़ानू कहीयो--हूँ जायगां देख आयो छु । सारा समाचार कह्या । तरै जाखड़ो चवदै चालकछनुं लेने बागड़रै मुलक आयो । तरं धोळबाळो सांमो जायनै ल्यायो मैं कांमदारां कह्यौ – गामरै माहे लोक - रैतनुं १६ वसाय देवो नै राजलोक छै, सु तलहटीर महलां राखो, कांमदारांनै साथै २० ले जावो । तरै सारांनुं ठिकांणै- ठिकांण" उतारा दीया । हमें धोळबाळंरे बेटो नागजी नांमें छे अने जाखड़ बेटी नागवंती नांमे छै । सु रंहतां घणा दिन हुवा । १३ ܬ ܕܪ 3 एक दिन बागड़ मुळक भटी दोड़ीया । तर लोकां आयनै कह्यौ ३ – दोयदोय राजा बैठा छै नै भाटी मुळक विगाड़े छे । तरै धोलबाळ दरबार करने asthan | सो बीड़ो किण ही झालीयो " नहीं । तरै२५ नागजी राजलोक १. ख. वार्ता । २. ख. गांवरा लोकांने । ३. ख. दरावे । ४. ख. करमे । ५. ख. राजाने । ६. ख. सर्व परो दीयो । ७. ख. प्रति में नहीं है । ८. ख. तिणसुं कठैई जाई तो भलां छै । ९. ख. घणों हुवे । १०. ख. उठी । ११. ख. उठी । १२. ख. उठी । १३. ख. कहीयो । १४. ख. तीणसुं । १५. ख. जास्यां । १६. ख. कहीयो । १७. ख. हालीयो । १८. ख. कहोयो कामदारांने थे साहमां जायनै ल्यावो । तरे सामां जायने घर्ण हम लाया तर कामदारानुं कह्यो । १६. ख. लोकडानुं । २.० ख. थे । २१. ख. forint माफक सगळांइ नै । २२. ख. नागवती । २३. ख. प्रांण कहीयो । फाळियो । २५. व. तिसै । २४. ख. Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात नागजी-नावन्तीरी [ १४७ मांहिसु प्रायनै सिलांम करी बीड़ो उठाय लीयो। तरै रजपूत सब बोलीयाकुवरजी साहिब ! बीड़ो खावणरो न छै, मरणरो छ', तरै नागजी कह्यौहूं भाटीयां ऊपर जासुं। तरै राजाजी कहियौ-तू टाबर छै, कदे ही राड़ देखी न छै। पिण नागजी कह्यौ मांन नही । तरै लोकां कह्यौ-महाराजा ! रजपूतांरा बेटांरो काहू छोटो, सिंघरो बचो नानो हीज थको हाथीयांरी गजघंटा भांजै छ। दहा- छोटी केहर बोहत्त गण, मिलै गयंदा मांण । ___ लोहड़ बडाइ नां करै, नरां नखत्त प्रमाण ॥ ३॥ ४. तिणसु आप कोई फिकर करो मति नै कुंवरजीनै मेलो। ताहरे राजा कह्यौ-भलां, जावो । तरै नागजी प्रापरा दाईदार हजार पांच असवार लेनै चढीयो, नै भला घोड़ा लीया, नै पोसाख तथा डेरा तथा घोडारी सझाई इकरंग केसरीया करनै चढीया, सु जायनै भटीयांसु कजीयो कीयो । भटी भाज गया । जिकै थम्या तिणांनै मार लीया। फतैनांवा करनैं पाछो वलीयो । सु सैहरसु कोस एक ऊपर मानसरोबर तळाव छ, तेथ' प्राय डेरा किया। आसोजरो महीनो थो। सुतळावरै कनै जाखड़ारी घर-घराउ खेती थी। सु रखवाळी न थो। खेतरो रखवालो कोई हूतो नहीं। नै नागजीरै एक बड़ी भोजाई परमलदे इस नामे छै । सु नागजीनु जीमायनै जीमै । सु महीना दोय एक तो हवा देख तळाव उपरै हीज रह्या । सु भोजाई जायनै जीमाय पावै । पछ एक दिन कह्यौ-नागजी माहाराजकुवार ! थे गढ़ दाखल हुय जो; मोने फोड़ा पडै छ । तरै नागजी कह्यौ-भाभीजी ! ओ तळाव ऊपर खेत किणरो छै? अठ खेतरो रुखवाळो कोई नहीं, तिणस म्हें खेतरी रुखवाळी करां छां, इसो कह्यौ। तरै परमलदे पाछी आई। आपरै २ धोलबाळानु कह्यौ-तळाव ऊपर खेती किणरी छै' ३, सु रखवालो कोई नहीं१४ ? जो कोई रुखवालो म्हेलो तो नागजी गढ़ पधारै । तरै धोलबाळ चाकरांनुपूछीयो। तरै चाकरां कह्यौ-खेती तो जाखड़ाजीरै हुयी छै । तरै धोलबाळ जाखड़ानु कह्यौतळाव ऊपर खेती राजरै बुई छै तो रखवाळो मेलो, ज्यु नागजी घरै प्रावै; टाबर छ, सु वाद चढ़ौ छै । तरै जाखड़ो तलहटी गयो। जायनै लुगायांनु १. ख. उ वीड़ो मरणरो छ। २. ख. उपरां। ३. ख. न छ। ४. ख काइ । ५. ख. गजघटा। ६. ख. प्रतिमें यह दूहा नहीं है। ७. ख. संभ्या। ८. ख. तठे। ६. ख. खेतरै रखवाळो। १०. ख. प्रतिमें नहीं है। ११. ख. पाई। १२. ख. तरै। १३. ख. हुई छ । १४. ख. प्रतिमें नहीं है। Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ ] बात नागजी - नागवन्तीरी किने कह्यौ । तद' कह्यौ - चाकर तो बीजार खेत रुखवाळ छे; मेलां ? तरै लुगायां कह्यौ जे परमलदेजी नागजीनै जीमावण नित जावे छै ओर ऊ खेत ही उठे हीज छै तो च्यार दिन नागवतीने परमलदेजी सागै मेलसां । सु दिन दिन तो खेत में रहसी ने रात पडीयां घरै उरी आवसी । नागजी जाणसी-खेतरो रुखवाळो आयो तरै नागजी उरा पधारसी । तर घोळबाळे कह्यो ठीक छै । तरै परमलदेजीने कहायो – सुवारे नागजीनूं जीमावण जावो तरै तळहटीरै महलांसु नागवंतीनै साथे लीयां जाज्यो । तरै परमलदेजी कह्यौ भली बात छै । तरं परभाते परमलदेजी जाती थकी नागवंतीने पिण पालखी मैं बैसांण लीनी । सु मारगमै जातां परमलदेजी नागवंतीने कहै छे - नागवंतीजी ! मांहरै नागजी रे हालतांरै कुंकुंरा पग मंडै ७ छै । तरै नागवन्ती बोली- परमलदेजी ! इसो झूठ क्यु' बोलो छौ, मिनखां रं कदे कुंकुंरा पग मंडै छै ? तरं परमलदेजी होड़ मारी, को-जे नागजीरै कुंकुंरा पग पड़े तो थांने नागजीनूं" परणाय देवां; जे नागजीरें पग न पड़े तो थारी दावे तिणनुं मोनै परणाय दीज्यो । इसो कवल १ करने खेत गई । तर परमलदेजी तो नागजी कनै गई । अर नागवन्ती जठै खेतमें मालो छै, तठ गई । अब परमलदेजी नागजीने पूछे छै- सोरठा - संपाडे १२ बैठाह, साहला नै, सरबतड़ी १४ 1 जे दहेल मुकाक, कागद मंडा १५ नागजी ॥ ४ * नागजीवाक्यं ७ भावज संपा बैठा ६, साह हला नै सरवतड़ी । चढ़ चोकी ऊभाह, जद" साखी च्यार" सिंदूरका ।। ५ ० ५. वार्ता - तरैं परमलदेजी बोली - नागजी ! जाखड़ा अहीररी बेटी नागवंती, तिणसु मैं होड़ मारी छे । नागजी रे कुंकुमरा पग पड़े छै । तरै नागवंती म्हांरी कही वात मांनी नहीं । तरै म्हे कह्यौ जे नागजीरै कुंकुंरा पग पड़े तो म्हें थाने नागजीने परणाय देस्यां " अर जे न पड़े तो थे मोने परणाय देज्यौ २२ ; इसी होड़ मारी छ । तरै नागजी कह्यो - भाभीजी ! जाखड़ौ ने १ १. ख. तरं लुगायां । २. ख. सगळी । ३. ख. परमलदेजी खेत जावै छै । ४. ख. प्रतिमें नहीं है । ५. साथै । ६. ख. बेठांण । ७. ख. उपड़े । ८. ख. मनुध्यारे । ६. ख. उपड़या था । १०. ख. नागजीसूं । ११. ख. कोल । १२. ख. सांप । १३. ख. साळाने । १४. ख. सरबनड़ी । १५. ख. मझा । १६. ख. सांपडे बैठा साह । १६. ख. सालाने सरबनडी । १७. ख. जद ऊभे । १८. ख. सापारचा । १६. ख. उपडे । २१. ख. देवां । २२. ख. परा दीज्यो । Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात नागजी-नागवन्तीरी [ १४६ धोळबाळो माहोमांहि पाघड़ीबदल भाई छै । सु नागवंती म्हारै कांसु लागे । तारै परमलदेजी काई वात मांनै नहीं नै दूजै दिन नागवंतीनै साथै लेने नागजी कनै पाई नै चौपड़रो खेल मांडीयौ। सु नागजी नै नागवंती एकै भीर हवा अर परमलदेजी नै बडारण एकै भीर हुवा । सु रमतां नागवंतीरो पलो उघड़ गयो, सु पसवाड़ो, पेट, छाती उघाड़ा हो गया । तरै नागजी देखत समां मुरछागत होय पड़ीया । सु कितीक वारनै वले सावचेत हुवा । तरै भोजाईन कह्यौ-माहनूं नागवंती परणावो । तरै भोजाई बोली-कुंवरजी ! यु तो विवाह हुवै कोई नहीं, नै छान वींवाह हुसी। सो रजपूतांरा बेटांनै सीख देवो । तरै नागजी दरबार मांड नैं सारा रजपूतांयनै सिरपाव बगसीस करनै सीख दीवी ने कह्यौ-होळी ऊपर वेगा आवजो। सु सारा सिरदार विदा हुवा। पछै भूजाई. कह्यौ-तयारी करो। तरै परमलदेजी नागवंतीनु पूछीयो--कांई खबर छ ? बोल पाऊं। तरै नागवंती कह्यौ--दुरस छ । खेतमें जवार मोटी थी सु डोका ल्यायनै पांणीरी मटकीयां थी, स् मंगायनै वेह रची वीवाहरी तैयारी कीवी । तरै नागवन्ती कह्यौ-परमलदेजी ! छांनै वीवाह करज्यो। प्रागै म्हारी सगाई हाकड़ा पढीयारसु कीवी छ । तरै नागवन्तीनु परमलदेजी कह्यौ-भली वात। हमै ब्राह्मण'' वीना तो वीवाह हुवै नहीं। तिणस् एक ब्राह्मण बाहरलां गांवांरो सहरमैं कण-विरत करणनै आयो थो, बसती माहे जातो थो। तिणनुपरमलदेजी बोलायनै कह्यौ १२- तूं वीवाह कराय जांण छ ? तरै बिरामण कह्यौ-हूं सब जांणूं छू । ताहरै परमलदेजी दूहो कहै छै-- दूहा- हूं जाणतू जाण, निर' तोजो जारी नहीं । नागजी तणो पुरांण, तोनु लिखु देवजी' ॥ ६ ६. बात-इसो ब्राह्मणनैं कह्यौ'५ । नागजी नागवंतीनू परणीया। पर्छ दूजै दिन प्रांवतां नागवंती नैं परमलदेजी दोनु१६ तंबोळीरै पान लैवण गया, तंबोलीनै हेलो दीयो। तरै तंबोली बाहर आयौ । इणांरै मुख सामो देख मसत हुवो'८, देखतो हीज रह्यो । तद दूहो कहै छै-- १. ख. होय गया। २. ख. उघाड़ा देखने । ३. ख. गया। ४. ख. खिणेकने । ५. ख. करने । ६. ख. प्रतिमें नहीं है । ७. ख. प्रतिमें नहीं है। ८. ख. मांहरै विवाहरी त्यारी करो। ६. ख. प्रतिमें नहीं है । १०. ख. विरामण। ११. ख. जातो। १२. ख. कहीयो । १३. ख. नर । १४. ख. तोनै लेखु देवता। १५. ख. प्रतिमें नहीं है । १६. ख. दोन्युं । १७. ख. प्रायन । १८. ख. इणारे मुंहडा सांहमो जोवण लागो। १६. ख. प्रतिमें नहीं है। Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० ] बात नागजी-नागवन्तोरी दूहा सोरठा- तम्बोली आपो पान, दोय बीड़ा बाँधे करी। ___ गई तमीणी स्यांन, काईरे मुख साहमों भरणे ॥ ७ तम्बोळो कहैसोरठा- प्रांख्या प्रांकस बांण, तांख करे ने तांणीया। न डरै तेण दीवांण, सो माढु नैणा ही मांणीया ॥ ८ ७. वारता-तंबोळीरैस' पान ले तलाव गया। सु हमै रात दिन नागवंती नै नागजी खेतमैं ऊंचो मालो छै. जठे बैठा रहै छ, रंगरळीरी वातां करबो करै छै । यु करतां माहरो महोनो आयो । सु खेतरो धान तो धणी ले गया। तरै परमलदेजी कह्यौ-नागजी महाराजकवार ! हमै गढ़ दाखल हुयजो नहीं तो लोक भरम धरसी नै प्रा वात छांनी न रहसी। प्रा वात छांनैरी छ, गुपत राखणनु ज्यु छ । तरै नागजी कह्यौ--सुहारे गढ जांवसी । हमें नागजी गढ़ चढ़े छै नै नागवंती कमर बंधावै छै नै दुहो कहै छैदूहा- कमर बंधावत कुवरकु, विरह उलट गयो मोहि । सजन बीछड़ण कब मिलण, काहा जाणे कब होय ॥६ हे विधना तोसुकहूं, एक अरज सुरण लेत । वीछड़ण अंक'ज मेट कर, मिलबैको लिख देत" ।। १० नागजीवाक्यंदुहा- गोरी हीयो हेठ कर,६ कर मन धीर करार । सांई हाथ संदेसहो, तो मिलसा सो सो वार ॥ ११ ८. वारता--नागजी कमर बांध हालीयो । तरै नागवंती गळ मैं बांह घाल नै नागजीनु छातीसु भीड़नै गल-गली होवण लागी । तरै परमलदेजी कह्यौ - दुहा- गोरी बांह छातीयां, नागकुवर न झुराय। जाणे चंदनं रूखड़े, बेल कलुवी खाय ।। १२ गोरी दागल हाथड़ा, नाग कुवर कर सेल । जाणे चंदनं रूखड़े, अधर विलंवी वेल ।। १३ ६. वारता-परमलदेजी कहै छै-नागवंती अब तु हंसने सीख दे ज्यु नागजी गढ़ पधारै । तारै नागवंती कहै छै-- १. ख. हिव । २. ख. प्रतिमें नहीं है। ३. ख. जावसां । ४. ख. लेह । ५. ख. देह ६. ख. हथ करि । ७. ख. कहै छ । ८. ख. नठाय । ६. ख. कलुबा । Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात नागजी - नागवन्तीरी १ दूहा- जावोजीमा ( भां)' ना कहू, वधो सवाई वट । ऊगड़सी थां श्रावीयाँ, हतां रथां को हट* ॥ १४ सिधावो ने सिध करो, पूरो मनरी आस । तुम जीवकी' जांणं, नहीं, मो जीव छै तुम पास ।। १५ ( इसो कहै ) - वेदल थकी सीख दीवी । सु घोड़े प्रसवार हुवो । तारै नागवंती १०. वारता - परमलदेजी कहै " नागजी प्रांबा हे घोड़ो बांधो थो", हो कहै छै - दूहा - सजन दुरजन हुय चले, सयरगा सीख करेह | धरण विलपती युं कहै, प्रांबा साख भरेह ॥ १६ ११. वारता - नागजी नागवंतीने कहै छै - तू वारोवार " वेदल हुय मती । धीरज" देने नागजी हमें नागजीरी चेसटा निरालो नहीं । तरै जे परमेसरजी कीयो तो वैगाही मिलसां । युं नागवंतीने तो गढ दाखल हुवा नै नागवंती तलहटी दाखल हुई। धोलबाळ दीठी । तर मनमै जांणी १२ प्रबै कूंवर नागजीनुं एक खिण बारणं नीकळण न देवे १४ राजा परै कनै राखे; नै १५ नागवंतीर विरह कर दिन-दिन गळतो जावै छै, ने नागवंती नागजीर विरह कर गळती जाय छै । सु नागवंती प्रापरा महलां ' १६ चढे नै झरोखामै प्रायन भांख नै हो है 73 1 ू सोरठा - नागजी नगर गयांह, मन-मेल मिलीया १७ नहीं । मिलीया प्रवर धरणांह, ज्यांसुं" मन मिलीया 18 नहीं ॥। १७ १२. वारता—- इण तरै सदा झरोखे प्रावै तरै प्रो हो कहै । हि नागजी दिन-दिन डीलमै गळतो जावै । सु सारां मुलकांरा वैद बुलाया, पिण नागजी चाकन हुवै। तरै राजा सहरमै पाडो फेरो -- नागजीन ताजो करे, तिनै लाखपसाव देवां । सु वेदांने तो वेदन लाधी नहीं । १ ० दूहा - राजा वेद २२ बुलायकै, कुंवर देखाई बांह । [ १५१ वैदवेदन काल ही, करक कलेजां मांहि ॥ १८ १. ख. जीभ्यां । २. ख. ऊघरसी । ३. ख. आयह । ४. हे तीरथांरा हट । ५. ख. मनांरी । ६. ख. जीयकी । ७. ख. प्रतिमें नहीं है । ८. ख. बँधायो । ६. ख. विणयंती । १०. ख. बारंबार । ११. ख. धीरप । १२. ख. घोलवाल मनमें जाणीयो । १३. स्व. खिण मात्र पिण । १४. ख. देव नहीं । १५. नागजी तो । १६ ख. महिलां उपर । १७. ख. मिलीयो । १८. ख. त्यांसु । १६. ख. मिलियो । २०. ख. सदाई । २१ ख. पाडहो । २२. ख. बैद्य । Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ ] बात नागजी-नागवन्तीरी करक कलेजा मांहि, उकस पिण निकस नही । गल गया हाड'र मात, नेह नवल नागजी ॥ १६' १३. वारता-इण तरह सदा झरोखै अावै तरै ओ दुही कहै । तिसे एक मुसाफर वैद प्राय नीकल्यो। सुं नागवंतीरै मोहल नीचे झरोखैरी छाया ऊभौ छै । तिकै नागवंती झरोखे प्राय दूहो कह्यो सुं इण वेद सांभळीयो । तरै वैद विचारीयो जे दीसै छै--इणरै नै कुंवररै प्रीत छ पिण मिलाप न छै। [तरै वैद विचारयो जे दीसै छै-इणरै नेहसुं नागजो]६ गळतो जावै छै तो अब जायनै हं इलाज करू। इसो विचारने नागवंतीरै महल नीचे डेरो कीयो नै ते [ने] जा रोपीयो । दोढी जाय" मालम कराई -नागजीन हूँ चाक करसुं। तरै राजा वैदनै माहै बुलायो; नागजीनु देखायौ १० । वैद नागजीनु देख दूहो कह्यौ १दूहा- सिसक-सिसक मर-मर जीवै, ऊठत कराह-कराह । नयरण-बांण घायल कीया, प्रोषद' २ मूल न थाय ॥ २० वले कहै छै१४प्रीत लगी प्यारी हुती, बाला थई विछेह । नोज किणहीनै लागज्यो, कामरण हंदो नेह ।। २१ चख सिर खत अदभुत जतन, बधक धैद निज हत्थ । उर उरोज भुज अधर रस, सेक पिंड पद पत्थ५ ॥ २२ १४. वारता -'इसो वैद विचारयौ'१६ । तरै नागजी वैदनै१७ कयौ-या वात उतांवली कहो मती। नै सवा किरोडरी मुंदडी हाथमैं थी सू वैदनै दीवी। तरै वैद राजानं कह्यौ-कुंवरजीरो मांचो अलायदो एकांत घालौ१८। तरै मांचो अलायदो घाल नै वैद पाछो प्रायनै वले तेजारो काढे छै । इतरै नागवंती झरोखै आयनै दुहो कहै छैसोरठा-नागजी ! तमीणा नेह, रात-दिवस साल हीये। किणनै कहीये तेह, नित-नित सालै नागजी ॥ २३ नागजी समो न कोय, नगर सारो ही निरखीयो । नयण गुमाया रोय, नेह तुमीण नागजी ! ॥ २४ १. यह सोरठा 'ख' प्रतिमें नहीं है। २. ख. प्रतिमें नहीं है । ३. ख. जितरै। ४. ख. मिलापण। ५. ख. न हुवो छ । ६. [-] ख. प्रतिमें नहीं है । ७. स्व. जायन। ८. ख. करायो । ६. ख. करस्यूं। १०. ख. दिखायो। ११. ख. कहै छै । १२. ख. नैणां। १३. ख. प्रोषध । १४. ख. थाह । १५. ख. प्रतिमें नहीं है । १६. ख. प्रतिमें यह वहा नहीं है। १७. '_' ख. प्रति में नहीं है। १८. ख. बैद । Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात नागजी-नागवन्तीरी [ १५३ सोरठा- नागजी तणे सरीर, क्या जाणवेदन किसी। ____ इसो न कोई वीर, जिणनै पूछ नागजी ॥ २५ तरै वैद दूहा कह्या, सुणने कहै छै दूहा- कुच कर पोखद भुजपटी, अहैरपती दे ताव । उन नयनके घावकू, अोखद एह लगाव ॥ २६ १५. वारता- वैद बोलीयो-हे नागवंती ! अाज ढोलीयो हूं एकांयंत अलायदो घलाय आयो छु, सुं थे नागजी कनै जाज्यो; [थांहरो मनोरथ सरसी] । तद नागवंतीरै गलै मांहे सवा कोड़रो हार थौ, सु काढनै उपरांसुं नांखीयो । सु वैदरा खोला मांहे पाय पड़ीयो । सु वैद तो चढनै वहीर हूवो। हमै होळीयांरा दिन था। सु गढमैं गेहर वाजै छै, 'गेहरीया रमै छै'। सू उठासुं नागजी हाथमै सेल लेने ओ ताक अाय ऊभा छै । तिसै नागवन्ती आपरी मांने कह्यौ-थे कहो तो गढमैं गेहर वाजै छ, सु जायन देख आऊ । तरै माता कह्यो-जावो। तरै नागवन्ती सातवीसी सहेल्यांसं गढ़में आई। प्रागै धोलबाळो नै जाखड़ो दरबार मांडीयां बैठा छ। बड़ा बड़ा उमराव मुसदी बैठा छै; मोटीयार डांडीयां रमै छै ; गेहर अवल वाजै छै । सु नागवन्ती तो नागजी रै वासतै पाई, सु सारी गेहरमैं फिरी । पिण नागजीनै दीठा नहीं। तरै दुहो कहै छै दुहा- ढोल दड़ के तन दहै, गेहरीया नांचंत । चालो सखी सहेलड़ा, कठे न दीसै कंत ॥ २७ १६. वार्ता- तरै एक वडारण जांणीयो—ा' नागजीरै वास्ते आई छ । ईसो जाणनै वडारण फिरती फिरती नागजीने देख आई नै नागवंतीनै हो कहै छैदुहा- सेल भळ का२ कर रह्यो, माठू (द)ड़ा घूमंत । आवो सखी सहेलड़ा, आज मिलांऊ कंत ॥ २८ १७. वारता- तरै वडारणरै माथैमै नागवन्ती देने 3 छानैसै पचास रुपीया दीया, तिवारे वडारण कह्यौ-एक वले ही देवो पिण हालो। तरै नागवन्ती १. ख. प्रोषध । २. ख. इलायधो। ३. [-] ख. प्रतिमें नहीं है। ४. -' ख. प्रतिमें नहीं है। ५. ख. कीयां । ६. ख. मुतसदी । ७. ख. गर । ८. ख. रम रह्या छ। ६. ख. घडूकै । १०. ख. सहेलड़ी। ११. ख. प्रति में नहीं । १२. ख. भलूक्का । १३. ख. दीनी। Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ ] बात नागजी-नागवन्तीरी चाली सु नागजी कनै गई; जायनै मुजरो करनै हो कहै छैसोरठा- साजनीयांसू प्यार, कठे वसो दोसौ नहीं। मिलता सो सो वार, नैणां ही सांसो पड्यौ' ॥ २६ वले कहे छै सांमा मिलीया सैण, सेरीमै सांमा भला। उवे तुमीणा वैण, नहचै निरवाया नहीं ॥ ३० नागजीवाक्यम्अमीणों तुम पास, तुमहीणो जारण नहीं। विवरो होसी वास, वास' न विवरो साजनां ॥ ३१ १८. वारता- नागजी नै नागवंती दोन भेळा मिल महले प्रायन सेझ ऊपर भेळा सोह्य रह्या, नींद आय गई। ईतरां मांहे जाखडै धोलवाळे तु कह्यौ-हालो तो नागजीरी खबर ल्यांवां; कांई ठीक छ ? तद दोनु सिरदार' नागजीरै महल आया सो घोलबाळ दोन जणानै सूता दीठा। तरै तरवार काढ वाहण लागो । तरै जाखड़े पकड़लीयो नै दुहो कह्यौसोरठा- धवला बाल न वाढ, नागरवेल न चढीयै ।। 'चंपै वली चाढ, फल विलंब्यो भंवरलो ॥ ३२ १६ वारता- अब धोळबाळौ नै जाखड़ो पाछा आया। जितरै नागवंती जागी। नागजीसु सीख कर तलहटी आई नै नागजी सूता छ । अबै परभाते नागजी जागीयो । सु नागवंतीरै विजोगसु वेचाक थो। सु नागवंतीरो तो मिलाप हुवो तद चाक हुवो। अबै नागजी उठ दरबार आयो । आगै धोलबाळो नै जाखड़ो बैठा छ, तठे पाय मुजरो कीयो। सु इणरो तो नीचो हुवण हुवो नै धोलवाळ कनै सेलथो, सु नागजी ऊपर वाह्यौ। सु नागजीरै ऊपर कर नीकळ गयो 'सु सेल धरती पड़यौ ।' तरै नागजी विचारचौ-करूं कांई, बाप छै, नहींतर तो मार नाखु । तरै कामदारानु धोलबाळ कह्यौ-नागजीनु देसोटो देवो । अनै जाखड़ानु कह्यौ-म्हे नागजीनु देसोटो देवां छां । थे प्राछो दिन लगन साहो देखनै नागवंतीनु परणाय देवो । तरै जाखड़े कह्यौ हाकडै पढीयारसु सगाई कीवी छ । तारै ब्राह्मणनु१२ बोलायनै सांढीयो मेल्यौ नै १. ख. सांसा पड्या। २. स्व. तुमीणो। ३. स्व. सांस । ४. ख. सोय । ५. ख. पति में नहीं । ६. ख. दोऊ। । ७. ख. वढीयै । ८. '-' ख. वेली न चाढ । ६. ख. प्रभात। १०. ख. सेलड़ो। ११. '_' ख. प्रति में नहीं है । १२. 'बिरामण कनै साहो सुझायो सु दिन तीन रो साहो ठहरायो' इतना पाठ 'ख' में अधिक है। Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात नागजी - नागवन्तीरी [ १५५ लिखीयो - जे दिन तीन मांहे आया तो वीहा' थांहरो छे । अनं अठै नागजी नै देसोटो देवै छै । नं नागवंतीरो वीहा मंडीयो छै । प्रबै नागजी जातो थको भोजाई महलां नीचे कर नीकळं छै । नीकळतो दूहो कहै छै - सोरठा - भावज भरण, जुहार, सयणांनु संदेसडा । वै तुमीणा वोहार, जीव्या जितेही मांणीया ॥ ३३ तर भोजाई हो कहै छै - सोरठा- कुंकुं वरणी देह, टीकी काजलोयां थई । एह तुमीणा नेह, 'सू नित मेलो" नागजी ॥ ३६ २०. वारता - भोजाई कौ देवरजी ! दिन तीन तो वागमैं रहज्यो; नागवंतीने हूं थांस्यु मिलावस्युं । तरै नागजी कह्यो दिन तीन तो थांहरै कहै वाट जोऊं लु, पछै परो हालस्युं । इसो कहने नागजी वागनुं चालीयो । तिसै नागवंतीने खबर हुई - प्रस" नागजीनु रातरौ देसोटो हुवो, सु परभातै चढ गयौ । तर नागवंती हो कहै छै" । सोरठा - नागा खायजो नाग, काळा करड़े मांहलो । वो न मिलज्यो प्राग, जांवतड़ जगाई नहीं ॥ ३५ * २१ वारता - अबै नागवंतीरं वींहारी " तयारी छै । तिणसु नागवन्ती चिन्ता करें छै । 'मनमें कहे छे" हू तो एक वार परण चुकी, वले १२ परणावै छै । इतरं तांईं जाय हाकड़ाने खबर दीवी । परभातरो वखत थो । जागने महल उतरतो थो । तिसै राईकै जाय खबर दीवी | कागळ वांचने तुरत घोड़े चढ़ चालीयो नै उमरावांने चाकरांने कह्यौ मांहरी जांन वणायने वागड़रै देस१४ आय मोसु मिलज्यो १५ । यु' कहनें चढीयो सु आयो सु आगे वीहारी तयारी करै छै । तरै नागवंती आपरी माने कह्यो- मैं परमलदेजीन कौथो जे माहरो वीहा हूसी तारे थांनै नैतीहार बोलायसां १७; तिणसु परमलदेजीनै बुलावो । तरै माता वडारणनै काौ - तूं जायनें कहे-थांनु बोलावे [छै तरै बडारण जाय परमलदेजी नुं कह्यौ ] २० तर परमलदेजी कह्योसंपाड़ौ कर`` आवस्यां । एम कहने मनमें विचारीयो - जे नागजीनुं लीयां जाऊं १६ १८ 48 .२५ २ १. ख. वीवाह । २. ख. कीकी (?) ३. ख. तमींणों । ४. - ख नित नित नवेलो । ५. ख. ताई । ६. ख. चालीया । ७. ख. जे । ८. ख. नागवतीवाक्यम् । ६. ख. किरंड्या | १० ख. बिबाहरी । ११. ख. - प्रति में नहीं है । १२. ख. ने वलै दुसरी बेला । १३. ख. कागद । १४. ख. मुलक । १५. ख. सामल होज्यो । १६. ख. न्यूंतार ! १७. ख. बुलावस्यां । १८. ख. मेली । १६. ख. सु । २०. ख. [-] प्रति में नहीं है । २१ ख. करने । २२. ख. इम । Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ ] बात नागजी-नागवन्तीरी तो भली वात' छ । तिस नागजीरो खवास उभो थो, तिणनु परमलदेजी कह्यौ-तूं वागमैं जायनै नागजीनु बोलाय ल्याव२ । तरै खवास जाय बोलाय' ल्यायो । तरै नागजीनै असत्रीरो रूप करायनै साथे लोयो । तिसें धोळवाळ जाखड़ानें कह्यौ-जिणरो नांव नागजी छै, सु विनां प्रायोरहसी नहीं, अनै मेह अंधारी रात छ । तिणसुं सहर बाहरली चौकी हूं देऊ छुनै सहर मांहली चौकी थे देज्यो नै सात पोळ छै, जठे चौकी राखज्यो नै मांहली पोळ एक अांधो पोलीयो छै तिणनै बैसाल्यो । उणरो हीयो देखतांसुं सवाय छै । इण तरै सरब जाबतो करनै धोलवालो तो चोकी देवण सारू चढीयो नै परमलदेजी सातवीसी सहेल्यांने लेने चाली। नै मोहरा पचास कनै राखी सु सहरनै जातो'१ जाखड़ो मिलीयो । तरै जाखड़े पूछीयोथे कुण छो नै कठे जावो छो ? तरै सहेली१२ कह्यौ-परमलदेजी नागवंतीरै वीहा'3 जाय छै । तरै जाखड़े कह्यौ--दुरस छै पिण जावतो राखज्यो, नागजी प्रावण पावै नहीं। अब इसी तरै छव प्रोल १४ तो गया नैं सातड़ी१५ प्रोल गया तरै आंधे कह्यौ-बायां ! थां मांहे मरदरो पग वाजै छ, हूं जांवण देसुं नहीं। तरै बडारण बोली-अठै मरद कठै छै । तरै प्रोलीयै कह्यौ-भलां, मांहरै हाथ ऊपर हाथ दे जावो । तरै [वडारण दूहो कहै छै]१६ - दूहा- पापी बैठो प्रोलीयौ', कूडा इलम१८ लगायः । निलाडारी फुट गई, पिण हिवड़ारी वी जाय ॥ ३६ २२. वारता-तरै प्रोलीय कह्यौ -हरगज जांवणं देऊं नहीं, हाथां मैं ताळी देनै जावो। जद सगळीयां हाथ दीयो नैं नागजी हाथ ताळी दीवी । ज,२हाथ पकड़ीयो२५ । तरै परमलदेजी पाछी फिरनै कह्यौ-स्याबास छै तोने पोळीया । इसो कहनै मोहर पचास पकड़ाय दीवी। तरै प्रोलीय कह्यौ-पांच वले ही ले जावो। अबै परमलदेजी मांहे गया। प्रागै देखे तो नागवंती चंवरी मांहे हथलेवो जोडीयां बैठा छै। तिसे परमलदेजीरे मुंहडा सांमो देखै नै कहै छै १. ख. भला । २. ख. लाव । ३. ख. प्रति में नहीं। ४. ख, बुलाय । ५. ख. वेस। ६. ख. प्रायां । ७. ख. देवो। ८. ख. तठे। ६. ख. राखो। १०. ख. बैसाणो। ११. ख. जातां । १२. ख. सहेलीयां । १३. ख. विवाह । १४. ख. पोळ। १५. ख. सातमी । १६. ख. परमलदेजीवाक्यम् । १७. ख. पोळिया। १८. ख. कलंक । १६. ख. म लाय । २०. ख. तठे। २१. ख. पकडलीयो। Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात नागजी-नागवन्तीरी [ १५७ सोरठो- नागड़ा निरखु देस, एरंड थाणों थपीयो। हंसा गया विदेस, बुगलहिोसु बोलणों॥ ३७ परमलदेजीवाक्यम्'भामरण भूल न बोल, भंवरो केतकीयां रमैं । जांण मजीठां चोल, रंग न छोड़े राजीयो ॥ ३८ २३. वारता- अबै परमलदेजी कहै छै–नागजी ! थे मोह' कनै उभा रहयौ नैं जे नागवंती कनै जावो तो या डावड़ी लूण उतारै छै, तठे जायनै थे थाळी उरी लेने लूण उतारण लागज्यो । तर नागजी जायनै थाळ उरो लीयो नै नागवंती ऊपर लूण उतारण लागो । नै अांख्या प्रांसुवे भरांणी में आंसु पड़ीयो सु नागवंती रै खवै लागो । तरै नागवंती ऊंचो जोयो, सं देखे तो नागजी छै। तरै नागवंती कह्यौ-राज ! वागमें रहज्यौ; हूँ हथळे वो छुड़ायनै तुरत आq छु । नागवंतीवाक्यं सोरठा- टिपा टिप'° टपीयांह, विण वादल बुछ टीयां'। आंख्यां प्राभ थयांह, नेह तुमीण नागजी ! ॥ ३६ __तर सहेल्यां कह्यौं १२ --- सोरठा- वण्यो त्रिया को 3 वेस, आवत दीठो कुवरजी। जातो दुनीया देख, नाटक कर गयो नागजी ।। ४० २४. वारता- हमै नागजी तो वाग मांहे४ गयो। उठे हीज खेत मैं वाग छै, तिणमैं मालो थो, तिण ऊपर नागजी जाय बैठो नै लारै नागवंती चवरी मांहे १५ सुं ऊठी नै मानै कह्यौ-मांहरो तो माथो दूखै छै सुहतो रंगसालमैं १६ जाय सोऊं छु, मोनै कोई वतलाज्यो मती। इसों कहनै१७ पोसाक पैहरियां थकां ईज बागनु चाली सु आधी रातरै समें एकली'८ जावै छै । सु एक [गुणवंत बुधवंत'६] माहातमारी पोसाल छ, तिणरै आगै हुय नीकळी । [तारै चेलौ गुरुजी नुं कहै छै]२० १. स्व. प्रति में नहीं। २. ख. म। ३. ख. भमै। ४. ख. मजीठो। ५. ख. मो। ६. ख. रहो। ७. ख. उ वा। ८. ख. लाग जाज्यो। ६. ख. प्रतिमें नहीं। १०. ख. टप । ११. ख. विछुटीयां । १२. ख. इतरी वात करने नागजी वाग जावण लागो तरै वले सहेली कहयौ । १३. ख. के। १४. ख. में। १५. ख. बैठी थी। १६. ख. रंग महल । १७. ख. कहीन । १८. ख. इकेली चाली । १६. [-] ख. प्रतिमें नहीं है । २०. [-] ख. प्रतिमें नहीं है। Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ ] बात नागजी-नागवन्तीरी द्रहा- रिम झिम' पायल घुघरा, मोती मांग सवार । प्राधै समैइये रैणकै, गुरजी कहां चली उवा नार ॥ ४१ तर गुरुजी दूहो कहै छै ६-- दूहा- कान धडयां वले सोवना, नक सोनारी नाथ। . प्यारी प्रीतमपै चली, रमण सेझ रंग रात ।। ४२ बेलड़ी, तिलड़ी, पंचलड़ी, ज्यां सिर वेणी म्हेल'। चेले दोठी गोरड़ी, सु दीधा पुसकत१ मेल ॥ ४३ गुरुजी कहैदूहा- चेला पुसतक झल करी१२, कहा पूछत है वात। इण नगरीकी डगर मैं, एक आवत एक जात ॥ ४४ चेलो दूहो कहै छैरहो रहो गुरजी मढ४ कर, कहा सिखावत मोय । सत'५ सूते इण नगर के, जागत विरला कोय ॥ ४५ २५. वारता- नागवंती सहर सुबारै नीकळी७ मेंह अंधारी रात छै स हाथ नै हाथ सूझै न छै१८ । तिण समै नगर बारै ड्रमांरो घर थो, तठे आई तरै दूहो कहै छै सोरठा- साली सूनो ढोर'६ बाली मैं वरजु घणी। ___ अठ अमीणो चोर, जुगमें जारणी तल थयो । ४६ २६. वारता- उठांसु आघी हाली । सू एक बिरांमणरो घर थो जठै आय नीकळी । बिरामण जाणो-डाकण छै, के देवी छ, सउठ नै भागो । तरै नागवंती कहै छैसोरठा- ना भरड़ो नां भूत, म्हे दुखी माणस हुय प्रावीया । अठै प्रमाणो कंत, नारी-कुजर नागजी ॥ ४७ डाकण नहीं गिवार, सिंहारी हुती नहीं । गलती मांझल रात, खरी सिंहारी हुय रही ॥ ४८ १. ख. रिमझिमीयां । २. ख. पाय । ३. ख. मांगमें । ४. ख. सार। ५. ख. प्रतिमें नहीं है । ६. ख. प्रतिमें नहीं है । ७. ख. सोवन्यां । ८. ख. नथ । ६. ख. रत । १०. ख. वणी हमेल । ११. ख. पुसतक । १२. ख. मेल कर। १३. स्व. इक । १४, ख. मुठ । १५. ख. सब । १६. ख. सेर । १७. ख. निसरी। १८. ख. कोई नहीं। १६. ख. बेस । २० . ख. सूत । Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात नागजी - नागवन्तोरी तर बिरामण दूहो कहै छ १ २ सोरठा - सूतो सुख भर नींद, सूतैनै सुपनो थयो । ऐ रख नागो वींद, सुखरो मल थो खेत मैं ॥ ४६ २७. वारता- हमै उठासु अघी हाली, सू रात इसी मिली सु लिगार मात्र सू कोई नहीं । तर वीजळीरे भाबकासूं प्राघी जाय छै । तिसै मेह गाजीयो । [ तरं दूहो कहै छै ] * ७ दूहा - ऊंडो गाजे ऊतरा, ऊंची वीज खिवेह | संभलु, त्युं त्युं कंपे देह ॥ ५० ज्युं ज्युं सरवणे २८. वारता - उठासुं ग्राघी हाली सुं तलाव आई । तलावरो पांणी हिलोळा खाय रह्यौ छै । पीपळरा पांन बाजै छै । तरै नागवंती कहै छै - दूहा - पीपल पांन' ज रुणझर, नीर हिलोला लेह । ज्यु ज्यु श्रवणे संभलु, त्युं त्युं कंपै देह ॥ ५१ O २६. वारता - [ उठांसु ग्राघी हाली । सु तळाव आइ आगे जाय ] इसो कहनै हेला मारीया - हो नागजी महाराजकुंवार ! कठैई नैड़ा हुवै तो बोज्यो; मै हू । इसो कहि प्राघी हाली सुरूं प्रांबां नीचे प्राई | [ तरै हो कहै छे ] ११ दूहा - सजन प्रांबा मोरीया, थाई प्रास करेह | ज्यु ज्यु श्रवणे संभलं, त्युं त्युं कंप देह ॥ ५२ [ १५६ सु देख वागमै आई । तर दूहो कहै छै - दूहा - प्रांबो, मरवा, केवड़ी, केतकीयां श्रर १२ जाय । सदा सुरंगो चंपलो, प्राज विरंगो काय ।। ५३ [ वल कहै छै ] १३ सजन चंदन बांवन, रू कूका रेह । ज्यु ज्यु श्रवणे संभलू, त्युं त्युं कंपे देह ॥ ५४ ३०. वारता - इसो कहिने वले हेलो मारीयो । हो नागजी ! हमै तो बोलो । हूं घणी १. ख. प्रतिमें नहीं है । २. ख. सूतांने । ३. ख. नें । ४. ख. झबतकार । ५. [-] ख. में नहीं है । ६. ख. उतराध । ७.ख. ऊंची ऊंची । ८. ख. श्रवणे । ६. [-] ख प्रतिमें नहीं है । १०. ख. हेलो दीयो । ११. [-] ख प्रतिमें नहीं है । १२. ख. श्ररु । १३. [-] ख. प्रतिमें नहीं है । १४. व. प्रतिमें नहीं है । Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० ] बात नागजी-नागवन्तीरी सोरठा- सेवा सेहतडांह', मानव काय मांनै नहीं। पाथर पूजतडांह, निरफल थई हो नागजी ॥ ५५ सूतौ सवड घरेह, विव' पिछोड़े पिंडरा। सादो साद न देह, 'प्रावि वले प्रो' नागजी ! ॥ ५६ ३१. वारता- अबै नागवंती घणा खाला-वाहला उलांघती जावै छ। पाहड़ांमै सीह गाज रह्या छै; ४ बादळा झुक र ह्या छै; बीजां झबक रह्या छै; मोर कुहका करै छै; रात महाभयंकर वण रही छै; मेह छोटी बूंदां पड रह्यो छ, पवन पिण बाजै छै; तिण समै नागवंती सनेहरी बांधी थकी घणां दुखांसू माला तांई आय पोहती नै प्रागै नागजी माल जाय बैठो थो सु नागवंतीरी घणी बाट जोई, पिण आई नहीं तरै विरहरै मारीयै कलेजारी कटारी मार सुय रह्यो । तिसं नागवंती आई । मालै चढी देखै तो नागजी सूतो छ, तरै कनै जाय बैठी नै हो कहै छैदूहा- नागड़ा नींद निवार, हूँ पाई हेजालुई। ऊठो राजकंवार, नींद निवारो नागजी ॥ ५७ नागड़ा सूतो खूटी तांण, बतलायां बोल नहीं। कदेक पड़सी काम, नोहरा करस्यो नागजो ॥ ५८५ ३२. वारता- इसो कहिन पछेवडो उपरासू परो कीयो, देखे तो कटारी कालिजै थिरक रही छै सु देखनै नागवंती कहै छैसोरठा- कटारी कुनार, लोहाली लाजी नहीं । प्राजूणी अधरात, नागण गिल बैठी नागजी ॥ ५६ दूहा- जा जोबन अर जीव जा, जा पारणेचा नेण । नागो सयण गमाय कर, रही किसा सुख लैरण ।। ६० १. ख. सेवतडांह। २. ख. पीब । ३. '_' ख. अाज निहेजो। ४. ख. प्रतिमें इतना विशेष है। - 'पाणीरा खंडताल पड़ रह्या छ, निस अंधारी रात छ, दादुर सोर कर रह्या छ बीजळियारा भबतकार होय रह्या छ, मोर भिंगोर कर रह्मा छ ।' ५. ख. यह सोरठा 'ख' प्रतिमें नहीं है । ६. ख. हूं निगलज । ७. ख. प्रतिमें निम्न सोरठा विशेष है कटारी कुनारि, लोहारी लाजी नहीं । नागतणे घट मांहि, बाढा नींब ही भली ।। बाला बिलबिलताह, ऊतर को प्रायो नहीं। कदे काम पडीयांह, निहुरा करस्यो नागजी ।। Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात नागजी - नागवन्तीरी दूहा - कुच जा भुज जा अहर जा, तन धन जोवन जाह । नागो संयण गमाइयो, अब ' रहि र करसी काह ॥ ६१ सोरठा- जाय' जसी जुग छेह, पाछा श्राय जासी नहीं । नाला विच बैसेह", वले न वातां कीजसी ॥ ६२ दूहा- जान' मांगी रतड़ी, ते न लाई वार । 3 म छोकीयो तो करज्यो भरतार ॥ ६३ सोरठा - नागड़ा नवलो नेह, जिण तिणसुं कीजें नहीं । लीजै परायो छेह, प्रापणो दोर्ज नहीं ॥ ६४ नागड़ा नवलो नेह, नोज किणहीसु लागजो । जलै सुरंगी देह, धुखै न धुंवो नोसरे ॥ ६५ नागा नागरवेल, गूढ स गूढी उषणी । क्युं हीक मोनु रांख, वरतण जोगी बालहा ॥ ६६ डूंगर केरा बादळा, " छां तरणे सनेह | वहता व उतावला, भटक देखावे छेह ॥ ६७ सोरठा - तूं ही रावल हीर, मोट सूता मिलसी घणा । १० तूं पाटण पट चीर, नारी कुंजर नागजी ॥ ६८ इम कहीया बहु वैण, नैण भरे प्रांसु घणा । तो सिरखा" मो सैंरंग, वले न मिलसी नागजी ॥ ६६ ३३. वार्ता - इसी तरे बैठी विलाप करें छै । तिसै घोळबाळो चोकी फिरतो आय नीकळयो । नागवंतीरो बोल सांभलीयो तरै नैड़ो आयो, माले ऊपर चढीयो । देखे तो नागजी मूवो पड़ीयो छै नै नागवंती कनै बैठी विलापात करै छ । तरं धोलबालै कह्यो - नागवन्ती नींचे ऊतरो । [ तर नागवंती कहै छै ] १२ सोरठा - चढती चड बड तार १३, उतरतां श्रांटा पड़े । 3 [ १६१ [श्रा जूणी अध रात] १४, हूं निगल बैठी नागजी ॥ ७० सुसराजी सो वार, सयण धरणांई संपजै । पिर न मिलै दूजी वार, नाग सरीखो नाहलो ॥ ७१ १. ख. हिव । २. ख. इठे । ३. ख. बाला । ४. ख. बिब । ५. ख. जानीं । ६. ख. लगाई। ७. ख. किरतार | ८. ख. परनों । ६. ख. प्रापणपो । १०. ख. बाहला । ११. ख. सरीखा । १२. ख. प्रतिमें नहीं है। १३. ख. बार । १४. ख. वहै तमोणो बाल । Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ ] बात नागजी - नागवन्तीरी ३४. वारता - इसौ कह्यो तरं धोळबाळो लजखांणो पड़ीयो नै नीचो उतरीयो । मनमैं विचारीयो जे रात तो थोड़ी ग्राय रही छै नै आ ऊतरे नहीं । परभात होय जासी तो वात आछी लागसी नहीं । तरै सहर में ओठी मेलने जाखड़ा बुलायो | नै सारी हकीकत कही । तरै जाखड़े कह्यौ -नीची उतर । तर नीची ऊतरी । तरै दूहो कहै छै - ---- सोरठा - श्राईयो श्राढा लाह, गाज्यो न धड़ क्यो नहीं । बूढो वाढा लाह, निगुणी भुय पर नागजी ॥ ७२' ३५ वारता- जितरं नागवन्ती घरांनै चाली । अठै नागजीरै चलावारी तयारी करै छै । काठ भेळो करे छै । नै घोलवालो दुहो कहै छै - --- सोरठा - नागड़ा नव खंडेह, सगपण घणांई तेडीयै ' । भुय ऊपर भुंवतांह, मिलतां हो मरजै नहीं || ७३ ३६. वारता - नागवंती पीहरसु हाली, सु नागजीरी आरोगी कनै आय नीसरी । सु धोळबाळो दूहो कहै छै - ७ सोरठा - ऊंडे पड़वे पैस, पिवसुं पंजां मारती । सु मांगसीया एह, घूंघै लागा धोलउत ॥ ७४ नागवंती सुण ने कहै छै - सोरठा - ऊपरवाड़ अहीर, रह रह चावा डांभतो । सालै माँय सरीर, सुनित नवेला नागजी ॥ ७५ चुड़लो चोरां एह, मोल महंगे प्रांणीयो । नाखूनों भाडेह, भव पैलासु पाइयौ ।। ७६ कलमैंको कुंभार, माटोरो मेलो करै । ७ चाक चढावरणहार, कोई नवो निपावै नागजी ।। ७७ 'कुलमैं दोय कुंभार', वांसोलो ने वींभरणी । जे हुं हुंती सुथार, नवो 'घड़ लेवत'' नागजी ॥ ७८ १. ख. प्रतिमें- 'अईयो प्रासादाह, गाजीने धडूकियो । बूढो बाढालाह, निगुणी भूई सिर नागजी ॥ २. स्व. घणां हा तोडिये । ३. ख. भव । ४. ख. भमतांह । ५. ख. चम्बा । ६. ख. पाछव्या । ७ ख प्रतिमें एक सोरठा विशेष है 'कळ मैं को कुंभार, माटीरी मेळो करें । हूं हंती कुंमार, तो चाक उतारूं नागजी |! '_' ख. घडेलूं । '' ख. कळमें दोय श्राधार । द Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात नागजी-नागवन्तीरी [ १६३ ३७. वारता- नागजीरी आरोगी चिणे छै, लांपो देवणरी तयारी छ । जितरै [नागवंतीरो रथ बराबर कनै अोरोगीरै आय]' नीसरीयो । तरै देखनै रथरै खडेतीनै पूछीयो, जुहारीरा नाळेर कितरायक आया छ ? तरै खडेती नारेल देखाया तिण माहेसुनालेर एक ले नै रथस् नीची ऊतरने प्रारोगी कनै पाई। नागजीनु खोळे मैं ले बैठी। तरै सारा देखता रह्या नै कह्यौ, नागवंती अो काई । तरै नागवंती कह्यौ, म्हारै ठेठरो प्रो भरतार छै । तरै लोकां घणी ही समझाई । पिण आ माने नहीं । तरै जान तो परी गई। अनै जाखड़ो अहीर धोलबाळौ सारो साथ लेने सहरमें गया। नागवंती प्रापरी रथीर आग लगाय माहे जाय बैठी। जितरै श्रीमहादेवजी नै पारबतीजी प्राय नीसरया । तारै पारबती कह्यौ, महाराज ओ कांसू वलै छ। तरै महादेवजी कह्यौ-या नागवंती नागजीरै लारै वळं छै । तरै पारबती कह्यौ--- महाराज नागवंती तो पापांरी घणी चाकरी सेवा करी छ, सो इणरो सुहाग अखी राखो। तरै महादेवजी ततकाल अगन 'बुझाव दीवी' ८ नै नागवन्तीनु कह्यौ-तुं बळ मती, इणन म्हे जीवतो करस्यां। इसो कहनै अमीरो छांटो घालीयो। तरै नागजी उठ बैठा हुवा । नागवन्ती, नागजी महादेवजीरै पाए लागा। पारबती प्रासीस दीवी-थांहरो सहाग अखी रहो। अबै नागवंती नै नागजी सहरमैं आया। दूहा- मूवा मुसांण गयाह, नागवंती नै नागजी । कलमैं अखी कयाह, महादेव अर पारबती ।। ७६ प्रीत निवाहण अवतरचा, कलमें अखी थयाह। सिव उमया प्रप्ताद कर, चिरंजीव रहियाह ॥ ८०१० जो याकौं गावै सुरणे, विरहै टळ ततकाल । नितप्रतरो आनंद रहै, कदे न होत जंजाल ।। ८१११ इति श्रीनागजी-नागवंतीरी वात सम्पूर्ण१२ । १. [-] ख. प्रतिमें नहीं है। २. ख. नीसरी । ३. ख. सामड़दी। ४. ख. सागदड़ी। ५. ख. अगन । ६. ख. सेवा। ७. ख. तिणसू। ८. ख. बुझाई। ९. ख. पगे। १०-११ ख. प्रतिमें ये दोनों दूहे अप्राप्त है। १२. ख. इति श्रीनागवंती नै नागजीरी वात सम्पूर्णम् । ___ संवत् १८५२ वर्षे मिति प्रासाढ वदि ७ भोमवारे लपिकृतं पं० केसरविजेन विकंपुरमध्ये कोचर मुनि छुमणजी पठनार्थे ॥ श्रीरस्तु कल्याणमस्तु ॥१॥ Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * श्रीः * बात दरजी मयारामकी [अथ श्रीमयाराम दरजीरी वात लिख्यते] बरवै- बंदू नंद गवरिया, गुनपत देव । दोजै भेद अछरिया, करहू सेव ॥ १ दोहा- पास डाबीरी अग, वारठ आसै बात। जग जांणी जोडी जकां, पढे अजे लग पात ॥ २ कवीयरण नै सिधांणने, जोडै कहै परत । अमर करै औ प्रांषरा, कवि कथ अमर करत ॥ ३ नीसांणी- ऊकतां डं(ऊ)डी ऊमदा जुगतां हु जाणां । उकतां जुगतां प्राणीयां, विरला सम जाणां ।। पाषर सूधा ऊमदा ग्रहणा सोनाणा । कंठ कथीरा काठका दन थोडा जांणां ॥ पहसर पाषर पाघरा वापार पडांणां । पाधरसला दुहडा के दीहर हाणां ॥ बैठा कीकर सो बुधा कव उदम करांगां । मांणीगर म्यारांमकी घर वात घरांणां ॥ मालम होसी मेदनी राणां सुरतांणां। पाडा पडसी दोहडा जद केहा जांणां ॥ ४ दोहा- पाबूगिर अछ (च)लेसरी, सिध दोय करता सेव । चेला नांमै चतुर रिष, गुरको नाम गंगेव ॥ ५ सत त्रेता द्वापुर समै, कोधी तपस्या कोड। इंद्रायण नै अपच स] रां, जितै रही कर जोड ॥६ १. वारता- आबू मांथै दोय रषेस्वर तपस्या करै । सो गुरको तौ नांम गंगेव रिष, चेलाको नाम चतुर रिष । सतजुग, द्वापरजुग नै त्रेताजुग, तीन ही जुग रषेसर तपस्या करबो कीधा । जतै एक तौ इंद्रायणी नै आठ अपच (छ)रा Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात दरजी मयारामरी [ १६५ वैकुंठसू प्राय नै रषांने जीमाड नै ग्यांनचरचा सुणनै दहुं वषत वैकुंठ जाती। हमै कलजग आयौ नै कलजुगरौ पवन लागेवा इकौ । जद रषां ईद्रांणीनै अर पाठ ही अपछरांने कह्यौ-हमै मे देहां दूजी धारसां; कलजुगमै अण देहां नहीं रहसां । सो इंद्रायण ! थै नै पाठ ही अपचरां मारी विदगी घणी कीधी; सो थे वर मांगौ सौ थाने मे वर दे नै गुर-चेलौ अलोप होस । रिषां वायकदुहौ- कलजुगरो मानै कहर, विजनस लागै वाव । रिषां कह्यौ अण देहरौ, परत करां पलटाव ॥ ७ नर-पुरमै रहसां नहीं, वससां सुर-पुरवास । मांग इद्रायण ! वर मुषां, अब तो पूरां प्रास ॥८ इंद्रायण मुष आषीयौ, प्रौ वर मांगां प्राज। नर-पुर माहे नेहसू, मो परणौ माहाराज !॥e आया वचनांमै अबै, चेलौ गुर कर चाव । पालण वचन पधारसी, वले करेवा व्याव ॥ १० एक इंद्रायण रिष उभ, आलूं अपछरां प्राण ।। मांणण सुख मृतलोकमै, जनम लिया घण जाण ॥ ११ चेलो हो ज सूवटौ, गुर दरजी म्यारांम । चेलो काम सुधारणौ, रामबगस उण नाम ॥ १२ भांड्यावस जाहर भुवरण, गहर रसीलो गांम । दुलहै घर अण देसर, जनम लियो म्यारांम ॥ १३ अलवल (र) माहे ऊपनी, जसां इंद्रायण जाय । ज्य लीधौ म्यारै जनम, मुरधररी धर मांय ॥ १४ पाठू अपछर पागलै, भेली रहती भव । जसीयारे हाजर जकै, आळू दासी अब ॥ १५ कसतूरी चंपककली, लवगां नै लाली है। चंदू चमनू चोषली, मझनायक माली ह ॥ १६ कोडसी (धी)स सवलालकै, धजा फरक धाम । जणंकै घर जाइ जसां, नव-पंड राषरण नाम ॥ १७ म्यारोजी मोटा हुआ, दुलही मुरधर देस । पनरां वरसां पदमणी, वनो वनी यकवेस ॥ १८ २. वारता- वरसां पनरांमै जसा हुइ, सिवलाल का (य) थकै घरै। जदी रामबगस सूवौ कीरां पकडनै सिवलालनै दीधौ। सौ चार ही वेद बकै (भषे ?) Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ बात दरजी मयारामरी ज़द सौ मोहरां दे नै सिवलाल रामबगसनै लीधो । सो जसां कनै रहे, जसांन पढावै | जद जसां वर-प्रापतीक हुई । सबलाल जसांकौ रूप देषनै मनमै उदास हुप्रो - जसरी जोडरौ प्रादमी हीदुसथान में एक ही नजर न आवै । सिवलालकै दलीकी उकीलायत, त ( अ ) ने बावन कलांरौ कांम, कोड रुपियांकी ध (घ) रे नगद मालीत । जणरै पुत्री एक जसां । जदपी रांमबगस सूर्वे कह्यौ - कायथजी ! आप सोच मत करौ । या तो जसां इंद्रायणी छै, आपको घर प्रवीत करणनै जनम लीयो छे । ज्यूं हेमाछ (च) लर्के घर पारबती, ज्यूं जनकराजाके सीता, भीषमकै घरे रुषमणी जनम लीधो, ज्यूं आपके घरे जसां जनमी छे । श्रा एकली नहीं आई है । म्रत- लोकमै यणरी जोडीरौ पुरस हुं हेरनै परणाय देसूं । श्राप सोच मत करो | जद सवलाल रामबगसने कह्यौ - रामबगस ! यूं तो काळ-दरसी छै नै यूं मारै तौ वडो पुत्र छै। यूं भी रांमबगस अवतार छै; सो थांसूं तो काइ बात छांनी नहीं छै । आा लाष रुपीयांकी मालीत छै, सो यण पुत्रीकै नमंत छे । श्राछो जसरी जोडीरी वर, घर [ सं ] भाल नै व्याव कर देजे । हुं तो रावजीकै किलकता - दसाको कांम छै, सो चढूं छू । सवलालवायक जोवन-मद श्राई जसां व्याव करीजै वेग । लागौ औ सवलालकै, दिलमैं वडो उदेग ।। १६ ३. वारता - सवलाल तो कलकतांने चढीयो नै लारसू जसां रामवगसकै छी (ची) ठी बांधने समाचार लषीयो - 'सिध श्री भांडीयावास वाली वाट मुहगी दसै, प्रातमका आधार मयारांमजी वसै, लवल (र) थी लषावतुं जसांको मुझरौ अवधारसी । रामबगस राज नर्षं प्रायो छै, जीकौ कुरब वधारसी । ठा लायक काम बिंदगी लषावसी । अठी दसाकी आप गाढी षुसीयां रषावसी । षांनपांनको, पंडांको जाबतौ रषावसी । जाबतो तो बलदेवजी करसी पण ताबा - दार तो लषावसी । भरोसादार भला मनंष जीव-जोग साथे लीजो | इंद्र राजाकी कावीद राजा [ हो ] वीजो। आपकी वाट भालां छां । औदवस कदीयां ऊगे, जसीको भाग जागे, अलवल (र) आप प्राय पूगै । दुहौ - प्रलवल (र) हुंता ऊडीयौ, चेलौ कर मन चाव । गुर-कदमां भेटण गहर, वह आयौ भांड्याव || २० कागद माहे कांमणी, जसीयल लषीया जाब । म्याराजी ! दरसण मनै श्रातुर दीजो श्राव ॥ २१ ४. वारता - रामबगस भांडीयावास आयौ । गुर-चेलौ मिलीया । बारै वरसांसू भेला हुआ। रांमबगसके गले कागद पाचौ (छौ) मयारांम लषीयौ । Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात दरजी मयारामरी दुहा- म्यारे कागद मेलीयौ, जसीयलने जग जीत । भूलूं नह तो भांमरणी, छन-छन श्रावै चीत ॥ २२ ५. वात- मयारामका हाथको कागद ने हाथकी मूंदडी लेने रांभबगस जसां नषै आयौ । जसां कागद वाचीया, घणी पुसी वरती । हमें मयारांम जांनरी ताकीद लगाई । दुहा - पूठे सहसां पांचर, हैवर पांच हजार । म्यारे मोल मंगाडीया, वंगैसू उण वार ॥ २३ हेमो लाधो नैहरो, गिर गांमौ संघराज | महि जतनां मयामरा, साथ यता स काज ॥ २४ घोडांरा वषांण दुहा- रानां पर तांना करें, विध विध नाचे वाज । नाच करता निरषने, अछरां लाजै श्राज ॥ २५ रेवत समजै रानमैं, किस बागरौ कांम । कर पलवी प्रासक करें, वध जण समजै वांम ॥ २६ रेवंत समजै रानमै, किसौ बागरौ कांम | वलै पवन जर दस वलै, जेम धजा ग्रठ जांम ॥ २७ विडगांरा बाषांरग, दोडतणां की दाषजे । बेडा तारा बांण, जाण न पावे जे लीयां ॥ २८ ६. द्वाद्वैत - पवनका परवाह, गुलाबकी मूठ; सधराजकौ गोटकौ, तारेकी तूट । प्रातसकौ भभकौ, चक्रीकी चाल; चपलाको चमकौ, चातीका ढाल । सींचाणैकी झडप, हींडेकी लूंब; षगराजका वचा, पेतुमैं षूब । ऐहडा -ऐहडा पांच हजार घोडा सोनेरी सांकतां सज कीधा | दुहा- जाषौडा कसीया जरी, तूंणां करी तैयार | मुरधर हुता म्यारजी, चढीया राजकुमार ॥ २६ [ १६७ अतलस थरमा ऊमदा, तास वादळा त्यार । जसा कसीया जांनीया, कसीयौ राजकुमार ॥ ३० मोती हीरा मूंगीया, पना पीरोजा पूर । बाजूबंध बांधाविनै, नवल वनै बह नूर ॥ ३१ कडां, जनेऊ, कंठीया, वीटां, पुणच्यां, वेस । ग्रहणां मढीयो गजब, प्रीत चढावरण पेस ॥ ३२ Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ बात दरजी मयारामरी मिजलां-मिजलां म्यारजी, अलवल पुंहचा प्राय । समाचार वरतै सरब, जसां कनै नत जाय ॥ ३३ दौय अगाऊ दोडीया, दियण वधाइदार । जसा वाट जोती जकौ, सज प्रायौ सिरदार ॥ ३४ ७. वारता- वधाइदारनै पांचसै मोहरां वधाईमें दीधी नै मालकीन कह्यौथू सांमी जाय । भादरवाकी घटा पण प्रायन लूबी छ । मुधरी-मुधरी बूदां पडै छ। राव वषतावरसींग असवारी कीधी छ। सो पैतीस हजार नरुपोता सोनेरी साकतां गज गाहांमैं गरक कीया थका बाजारमैं घोडा उछकावै छै । महोलां-महीलां हजारां सहेलीया ऊभी गावै छै । जकण वषतमै जानरौ कैतूल कीधा सरीषा घोडा, सिरदार लीधा, मयारामजी पण पाया छ । रंग-राग उमेदवाराम (मै) छाया छै । सो जसां कहै --मालकी ! यूं सांमी जा। जद मालकी कहै-या तो मेह अंधारी रात छै नै जणमै रावरी असवारीरौ लोक गलीयांमै नहीं छै । मयारामजीकी कसी षबर पडै ? जद जसां कहै-सूरज बादलांमै ढकीयौ कदी रहै ? अण ऐहलांणा मयारामजीन औलष लीजे। दोहा- तुररै छौगै चांकीया, झलंब रहै अठ जांम । भीनै रंग अलीयौ भमर, मांणोगर म्यारांम ॥ ३५ फब सेली किलंगी फबी, दुपटै पेचां दूण । प्यारै (म्यारै) जणनै ईषनै, लषां सहेली लूण ॥ ३६ अलगी वे(व्हे) जोहे अलो, जोवण दीजो जांन । मांणीगर म्यारांमको, वेषण दोजौ वांन ।। ३७ ८. वारता- अणतरैका मयारांम छ । थू अोळष लीजे। जद मालकी सारा सरदार नजरां वार वती थकी मयारामने अोलष नै मुजरौ कर नै मयारांमका हाथकी मूदडी रामवगस लायो, सो निजर की। ___ दुहा-- मालू मेले मांझली, तारव छैल तमाम । जसां कहती जैहडौ, मिलीयो यक म्यारांम ॥ ३८ मुजरौ करनै मालकी, प्रागै ऊभी प्राय । म्यारै कररी मूदडी, दोधी तुरंत देषाय ।। ३६ ६. वात- जद मयारांमनै मालकी तोरण लावे छै । सात ही वडारणां दुजोडी साथे छै। पांचसै भगतणां, पातरां, ढोलणांरा गरट माहे वींद राजा घोडा षडे छै । ईंद्र की असवारी अोला-भोला पडै छ । मयारांमजी वैहता महेलीयां सांमौ भाले छ, कामदेवरा बांणासू जालै छै। जद मालकी मयारांमनै कहै छै-राज ! सूधो नजरां कु न वहै छै ? Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात दरजी मयारामरी [ १६९ मालकीवायक दुहा- जसां सरीषी जगतमै, महिल नहीं म्यारांम ! । पंचौलण है पदमणों, हालौ पूरण हाम ।। ४० जसकी हंदी जोडरा, यसको म्यार ! अमीर । घालौ बथ जणरै गलै, हालो हेल हमीर ॥ ४१ प्रांगलीयां जरगरी यसी, मूंग तंणी फलीयांह। म्यारा जसकीसं मिले, कोजो रंगरलीयांह ॥ ४२ म्यारामजी ! थे मांणजौ, जसीयांहुत जरूर । पंषौ ग्रहै पवनरौ, पूगू बिदंगी पूर ॥ ४३ प्रीत पहेला पेरनै, करौ जहेला काज। हमै वहेला हालज, राज गहेला राज! ॥ ४४ छिन-छिनमै पग चांपसू, छिन-छिन करसूचाव । पांतर सो तो ही परा, राजद ! वैडा राव ॥ ४५ मयारामवायक मुषसं दाणे म्यारजी, हसनै असन हवेह । मे तौ तोनै मालकी, भूलां नहीं भवेह ॥ ४६ मालकीवायक दहौ'-ऊणां' सहेल्यां प्रागला, म्यारा ! हुं तिल-मात । महिल ऊणीमै मुझसी, सहेल्यां रहिसी सात ॥ ४७ १०. वारता- यु मयारांमनै माल तो रणरै मुहडै लाई । सात-बीस सहेलीयां नरेंषणनै ग्राई । पडदारी जालोयांमै मयारामनै देष छै। सारी सहेल्यां हुई चष एकैठे भाल-भालने यूंथका नांपै छै । मयारांम पर मोती पांर्ष छ । दनांका नादान, कामकी मूरत, जसडाही ग्रैहणा नै जसडी ही सूरत । श्रीभगवान आपरां१० हाथांसू वणायौ'१; इसडौ २ मयारांम'3 तोरणरै मुहडै पायौ । जांनरौ, घोडांरौ, ग्रहणांरौ वरणाव, गीत सुपंषरौ पाधरौ भाव । गीत प्रोपे लपेटो अपार सोस वागौ घो [धो ] रादार१५ अंगां । कुलै ताज पेठां जोत१६ नगारी करूर । १. ख. में नहीं है। २. ख. ऊणां । ३. ख. हु । ४. ख. बारता। ५. ख. जालिगम ६. ख. मायारामने । ७. ख. दइ। ८. ख. पै। ६. ख. खाखे। १०. ख. प्रापारां। ११. ख. बणायौ। १२ इसडौ। १३. ख. मायाराम। १४. ख. गीत सुपंखरौ । १५. ख. घोरदार । १६. ख. जाते । १७. ख. नगारी । Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० ] बात दरजो मयारामरी पावलां दलामैं' म्यारा' प्रकासीयौ रीत एही , सांवलां वादलां माहे नकासीयौ' सूर ।। १ चोगां तोडां पवत्रां किलंगी सेली पाग छाई , बाजूबधां चोकी जोत जगाइ वसेक । मोतीयां मूंदडां कडां जनेऊ जडाव मालां , - प्रोपै बीद राजा यसी पोसाकां अनेक ॥२ साथीयां सजोडां घोडां जाषौडां साकतां साजी , लडालू बहुमा देषे राजी लाषां लोक । बधाई बधाई वाजी जसां ऊभी माल वांट , अमीराइ भाइ भाइ गाइ अोका-प्रोक ॥ ३ झलंबां झलस साज सहेल्यांरौ साथ जोवै , बांदी बीजी हुइ रूप देषे हाक - बाक । कुरबां१ वधारे लाडी जसांनै सुनाथ कीजै , ____ चैल'२ (छैल) बना लीजै दोय दूंबार की चाक ॥ ४ दोहा- देष ऊभी दासीयां' 3, सरब जसारौ साथ । मुजरौ करनै मालकी, प्यालौ लोधौ हाथ ॥ ४८ ११. वारता-१४ अण तरैका बींद राजा मयारांमाला-नीला बांस रोपनै परणीया ६ नै पाचसे पांचस मोहरां वामणांनै १७ भुरसीरी दीधी। दुजै दन जसां मयारांमरै तंबूत्रांनै हाली। नीसांणी-लांबक झूबक लाडली, अंग टेर अपारां'८ । जण १६ पुलमै हाली जसां, सजीयां२० सिणगारां ।। सांस जकरगरौ सोभीयो, नालेर नैहारां । अलकां सिरसू ऊतरी, टक एडी तारां ।। जाणे२१ नागण होडलै, षभां सोनारां । प्रौपन२२ लाडी ऊमदा, तषतांण२ तैयारां ।। १. ख. दलांमैं । २. ख. मयाराम । ३. ख. सावलां। ४. ख. नकासियो । ५. ख. पवनां । ६. ख. मोतियां । ७. ख. बदि। ८. ख. साथियां । ६. ख. अभीराई। १०. ख. गाह। ११. ख. कुरबा। १२. ख. छल । १३. ख. दासियां। १४. ख. बारता । १५. ख. मायाराम । १६. ख. परणिया। १७. ख. वांभणांने । १८. ख. पापारां । १६. ख. जरणा । २०. ख. सजियां। २१. ख. जांणो। २२. ख. प्रोपैन। २३. ख. तखतांणा । Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात दरजी मयारामरी [ १७१ भ्रूवल बेहं भडी, भमरांण' गुंजारां। भोयरण (लोयण ?) कीजै भामणे, कोयरण कुरगांरा' ।। वदनां नाक विराजीयौ, च(छ)ब कीर-चचारां । अहरां दीजै प्रोपमा, परवाल प्रकारां ॥ दांत बतीसू दीपीया', दाडम-बोजारां । कंठां जाणे कोयली, बोली तण वारां ॥ गरदन जसको गांगडी, तक कुरज तरारां । नसमै बाधा तेवटा, झल मोती ऊ प (1)रां ।। हार टकावल हीडले, ऊरणमोल अपारां । होया सनेहा हेतका, अमीयांरण १ ठयारां१२ ॥ उर - थल थोडा ऊफीया, नींबूण चैयारां । पीपल पना पेटका, ग्रभ केल चीरारां ॥ कडीयां लंघा केहरी, गजराज चलारां । नितबां दीजे अोपमा, वीणार१४ वैहारां'५ ॥ एडी पेडी ऊमदा, तक एण'६ तरारां। जांण करती झूबकौ, तग मगीयौ तारां ॥ जांणे१८ हंस मलपीयौ, सर मान मझारां । हाथी जांण कहालीयौ, मद पीध बजारां ॥ पदमण जाणेपोषता, ऐहडां२° आचारां । इद्रायण के ऊतरी, मतलोक मझारां ॥ जसकै पलटण जाबतै, हल बीस हजारां। ढालां बडफर२१ ढाबीयां२२, वांकी तरवारां ॥ होदा नांगल हाथीयां, जाषोड जैयारां। सोनै साकत साकुरा, झलको 'तल तारा'२३ ॥ नरषै ऊभी नारीयां, अण पार अटारां । गावै मोठा गीतड़ा, थह मोर थटारां२४ ॥ १. ख. भमरांणा । २. ख. लोपण। ३. स्व. कुरंगारा। ४. ख. बनीसं। ५. ख. दीपिया। ६. ख. जांणों। ७. ख. तारारां । ८. ख तस । ६. ख. झपरां। १०. ख. हिया। ११. ख अमीयांणा । १२. ख. ठपारा। १३. ख. चरिरां। १४. ख. बीणार । १५. ख. बैहारां । १६. ख. एणा। १७. १८. १६. ख. जाणो। २०. ख. अहैडां । २१. ख. बड कर । २२, ख. ढाबियां । २३. ख. तलवारां। २४. ख. ठारां । २५. ख. ठारां। Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ ] बात दरजी मयारामरी तीन पुरवाली त्रीयां, दल माणद टारां । पाया जोवरण आदमी, दरीयाव तटारां ॥ ज्यां सामौ जोवै जसां कर घाव कटारां । मुरचा (छा) गत वे मानवी, पड जाय पटारां ॥ जसीयल जो ऊचौ जीए', असमान फटारां । जतीयां सतीयां जोगीयां, बक फाड ब(बै)ठारां ॥ चलीया चीत रषेसरां, मुंन जोग मटारां । अमरां चीत अलझीया, जोवण कज जारारां ॥ इंद्र इंद्रासण ऊतरे, ताकी धण' तारां' । रषीयो इंदर रांणीए, पकड नठारां ॥ झगमगीया मन देवता, सरगापुर सारां । लाष पचासां लूझीयां , हल दो वडहारां ॥ झली मुसाला जोतस, अधरात दोफारां । भगतण पातर कंचणी, ढोलण ढुलारां ॥ गावै वहती गायणी, मह राग मलारां। दाम हजारां दोजीय, मोहताद मझारां ॥ बंध जलेला बेवडो, लूझी लष लारा । वाजै जेहड वाजणी, घुघर घमकारां ॥ मुहडै प्रागै मालकी, कहती षमकारां। घण वरण आवै ढोलीय , लग थगथी लारां ॥ मद-चकीया' म्यांरामजी, तुम होय तैयारां११ ॥ ४६ १२. वात (द्वावत)- यण तरै जसां मयारांमरै २ डेरै आई । जाजम, गदरा वचा (छा)यता कराई । सहेलीयां प्राय गदरां विराजी। म्यारांमजीरी बिंदगी साजी । दुहा, गाहा, पहेलीयां कही जतरै रात आधी गइ र आधी रही। मालू कहैदुहौ- रातां हव थोडी रही, वातां बह विसतार। सातां ऊठ सहेलीया, लुकौ कनातां लार ॥ ५० १. ख. जोप्रो । २. ख. कज जारां। ३. ख. घणा । ४. ख. नारां। ५. ख. रांणीये । ६. ख. निठारां। ७. ख. लूडीया। ८. ख. दोकारां । ६. ख. दलियौ १०. ख. छकीया। ११. ख. तयारां । १२. ख. मायारांमरै। Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात दरजी मयारामरी दुहौ - सारी ऊठ सहेलियां गई प्रापरी धाम । धरनै' लोधी ढोलीयै, मांणीगर म्यारांम ॥ ५१ काय । १३. वारता ( द्वावेत ) - म्यारांमका र जसांका मेला हुआ; चकवी र चकवौ भेला हुआ । घणा दिनांको विरह भागौ, घणा श्राणंदको धौरौ लागौ । दुहा - हीडे लागी होडबा, कामण जांणे ' जसीयां हीडे जोमसूं, म्यारारै अंग माय ॥ ५२ वादल काल वीजली, षवै मली कर षांत ४ । म्याराजीर अंग मिली, झलक जसा श्रण भांत ॥ ५३ लपटी 'तर लता', सांवण मास सवाय । जर वध लपटांणी जसां, मांणीगर अंग माय ॥ ५४ जसा रोती सुन मालकी कहै— किसतरी अरजी करें, राज ! म कीजो रीस । मां थांरै म्यारजी, श्रांचे (छ) वाजे ईस ॥ ५५ मयारांमवायक पागे चोटौ पाक छ, लागे ठेह लगीस । मांजणसू मालकी, ग्रांचे वाजे ईस ॥ ६६ मालूवायक अलल वचेरां ऊपरं, भूल न चढीया म्यार ! ! टु रहोया थांहरै, टैगण घोडा तरार ॥ ५७* मया रामवायक मे तो टैगण मालकी, जसीयलने जांणाह । अलल वचेरा' ऊबटा', 'त्यार हुआ ताणांह' १२ अलल वचेरा ऊमदा, फेरवीया प्रणफेर । मत दुष माने मालकी, दोरम प्रणचत देर ॥ ५६ [ १७३ ॥ ५८ १४. वात- हमै मयारांम ने जसां रंग-राग मांणै छै । जकांने इंद्र भी वषणै छै । रंग-रागरो धोरौ लागौ छै । विरह भौलौ भागौ छै । । १. ख. घणाने । २. ख. मेल । ३. ख. जाणो । ४. ख. मालिक र खांत । ५. ख. झलक । ६. ख. मांत ७. ख. - ख. तर झूलता । ८. खमांचे ६. ख. श्राछे । *५७, ५८ तथा ५ दृहोंके विषयमें पुस्तकमें निम्न लेख उद्धत है— 'ते दूहा सरब गूढा छै । यदुदुहावात वंगरी छे । 'टैगण' कैहतां हसतणी असत्री जाणणो । 'ल' घोडा कैहतां पदमणी, चत्रणी श्रसत्री जांणणी । १०. ख. बछेरा । ११. ख. ऊमदा । १२. - ख. प्रतिमें यह श्रंश नहीं है । Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ ] बात दरजी मयारामरी दुहौ- के भगतरण के कंचणी, पातर ढौलण पूर। गावै नटवा गायणी, हुसी' म्यार हजूर ॥ ६० १५. वात (द्वावैत)- किसतूरी, चंपकली, लवगां, लाली, चंदू, चमनू, चोकली, मालू ऐ आठ ही अपच (छ) रां गावै बजावै छै; म्यारामजीनै रीझावै छै । महीना बार होय गया छै; म्यारांमजी मैलांमै रत होय रहा छ । पाचौ (छौ) आसाढ मास आयौ छै; अाभौ वादलां चा (छा) यौ छै जद ब्रामण लाधै दुहौ लष मेलीयौ छै; म्यारांमजी हाथ झेलीयौ छ । - दुहौ- जल वूठा थल रेलीया, वसधा नील वेस। मांगौ सीषां म्यारजी, देषां मुरधर देस ॥ ६१ १६. वारता- म्यारामजी मारवाड प्रावणरौ मतौ कीधौ; तंबू गुड़दावणरौ हुकम दीधौ। भार वरदारी आगै चलाइ छै; घोडां पर साकतां झलाई छ। बेलीये कमरां बांधी छै; पाचा (छा) पधारणकी सुरत सांधी छै । म्यारांम ऊठणकी धारी सै; जसांक मरणकी त्यारी छ । कुवरजी राषीया नही रहै। छै; जद मालूडी दोय दुहा कहै छदुहां- म्याराजी ! थे मुरधरा, वालम जाय वसाह । आप वहोगी एक दन, जोवै नहीं जसाह ।। ६२ जसांवायक | दासी कूण जीवै दिवस, घडी न जीव एक । पल-पल जीवां म्यारजी, दिल सुध थांनै देक ॥ ६३ __ मालवायकम्यारा ! पासी मोहकी, आची नांषी पाय । पहला हु होज पांतरी, लाई महल बुलाय ॥ ६४ म्यारा! जासो मुरधरा, चो(छो) ड र जसांनै चै(छ)ल । लाडा थां वण लागसी, मानै बारां मैल ॥ ६५ अलवल (र) रहणौ प्राप, थेटु वचना थापीयो । मुरधर जांणी माप, मन सुध करजै म्यारजी ! ॥ ६६ ___मयारांमवायकमुरधर जोवण मालकी,त्रा (प्रा) सां ची ( छी)णी जासांह। श्रावण' तीजां ऊपरै, आसां तो पासांह ॥ ६७ १. ख. हंसी। २. ख. बूठा। ३. ख. तरदारी। ४. ख. सूरत । ५. ख. छै । ६. ख. रही। ७. ख. प्राछी। ८. ख. हुडीज। ६. ख. प्रावण । Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात दरजी मयारामरी [ १७५ दुहां- मालू आर्ष म्यारनै, गल-गल अरजी गैर' । आप षरीदो ऊंठ चौ२ (छौ), जसा षरीदै जैर ।। ६८ जसांबायक मै तो बरजी मालकी!, सरजी प्रोत' समात । अरजी नह मान अब, ज्यारी दरजी जात ॥ ६६ मयारांम वायकसंग माल ! थांरी जसां, बोल बोल कुबोल । अण बौलारै ऊपर, जासां अलबल षौल ॥ ७० मालूवायकम्याराजी लौही मूग्रा, जीभारा घण" जाण । जरण कारण थांने जसां, बोल वांण कुवांण ।। ७१ घना घना समजावीया, चना चना कर चाव । वना न मानौ वीनती, आप-मना ऊमराव ॥ ७२ जसांवायकम्याराजी ! विरचौ मती, प्याराजी'' कर प्रीत । न्यारा जी रहतां नमंष, मो वैराजी चीत ॥ ७३ म्याराजी थे मुरधरा, पांतरीयाको १२ पोव।। चालौ थे पा चो(छो) डनै, जसीयां जीवन जीव ।। ७४ अरज करां अलवेलीया, पला झेलीया पाण। म्याराजी मत मेलीयाँ (या), पमगां सीस पलाण ॥ ७५ १७. वात (द्वावैत)- गावणौ-बजावणौ वध हुनौ; म्यारांम रीसमै अंधकंध हो । जरां मालकी बोली; हीयैरी बात षोली। आप सारू दारूकी भटी कढाइ छै; लाष रुपीयांकी टीप चढाइ छै; लाष-लाषका लागा छ मुसाला; जीका तो अरोग१४ दोय प्याला । आप सारू भटी कढाइ छै; आपकै तो मारवाडकी चढाइ छ । जण दारूका दोय पयाला लीजै; जसांनै सुनाथन'५ कीजै। दुहौ- ऐक भटोरै ऊपर, लागै रुपीया लाष । जकण भटीरो म्यारजी!, छैल दुबारौ चाष ॥ ७६ १..ख. गैल । २. ख. ऊठवौ। ३. ख. प्रति । ४. ख. नहीं। ५. ख. मायाराम । ६. ख अणबैणौ । ७. ख. घणा । ८. ख. करण । ६. ख. विरछौ । १०. ख. थारा जो। ११. ख. प्रतिमें नहीं है। १२. ख. पांतरियाको। १३. ख. अलबेलियां। १४. ख. प्रारोगे । १५. ख. सुनाथ । Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ ] बात दरजी मयारामरी मयारांमवायकमो लंकाने मंदडी, अबल बतावै प्राण । ऐक भटीरे ऊपरै, कोड करु कुरबारण ॥ ७७ १८. वारता (द्वावैत)- जिण दारूको मालू प्यालो झालीयौ; ऐवौ ऐराक चाक' प्यालामै घालीयौ । प्यालौ भर म्यारांमजी नषै आई; मुजरांकी सडासड लगाई। दुहौ- ऐक पयालो ऊमदा, प्रत चौषौ ऐराक । मालूरी मनुप्राररी, छैल अरोगै छाक ॥ ७८ १९. वात- एक मनुहार मालू कीधी; अब सीसो दारूकी जसां हाथ लीधी। दुही- जोडै कर आर्ष जसां, प्रलंब सजे पोसाक । म्याराजी ! मनुहारकी, छैल अरोगै छाक ।। ७६ २०. वात (द्वावंत)- अब सातु ही सहेलीयां ऊठी; रंग-राग रूपकी बूटी । मां'सू मालकी काइ८ सवाई; मे बी आप प्रागै गाई-वजाई । सातु ही सहेलीयां सात प्याला भरीया; जीसू म्यारामजी होय गया हरीया। दुहौ- सातु मिल' सहेलीयां, माडां कर मनुहार । मद पायौ म्यारांमनै, ऊगायौ अणपार ।। ८० २१. वात- बेलीयां कमर बाधी छै; भार वरदार लादी छै। घोडा, ऊंठ भीजै छै; मदवो जी मैलांमै रीजै११ छ । दूहौ- कैफ मही चकीयो'२ कुंवर, मांणीगर म्यारांम । बेली भीजै बाहिरा, भीजै साज तमाम ॥ ८१ सेठौ कोधो साय धण' ३, म्यारौ मैहला'४ माय । लछ (ज)काणी पडीयौ लधौ, कारी लगी न काय ॥८२ म्याराजी ! थे मुरधरा, जाता किसै जरूर । लुचो चगावै१५ लाधीयौ, दोढी कर दो दूर ।। ८३ २२. वात- मालू दोढी प्रायनै कह्यौ-म्यांरामजी फुरमावै छै-हतां ज्यां डेरा कर दो; घोडा, ऊंठ पाचा (छा) ठाणारा ठाणा बांध दो। १. ख. छाक । २. ख. छालियौ। ३. ख. ऐयक । ४. ख. पलंब । ५. ख. प्रारोगे । ६. ख. सहेल्यां। ७. ख. बूठी। ८. ख. कोई। ६. ख. सहेल्यां। १०. ख. मिली। ११. ख. रीझे। १२. ख. छकियो । १३. ख. घण। १४. ख. मैलां । १५. ख. लगावै । Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात दरजी मयारामरी [ १७७ . गीत जेले तुरंगां रेसमी डोरां बनातां जडाव झीण' , ___फबे' फीण हांतु माग सांकरे फेराव । पना मारू गाहांणी - जलाला म्यारो चले ओढा , राग रहे षोलो दोढा षडो मारू राव ।। १ जोवे जुल सहेली हवेली सीस चढे जोषी , तारीफे अनेकां गोषां बेठी रूप तांम । देषे साथ जसांरो ज (झ) रोष माली जा(झा)लो दोय, मारे डेरे हालो वींद रसीला म्यारांम ॥ २ आसां जडी(झडो) लगासां दुबारै सूंघ भीन प्रासां , राजलोकां रमासां हुलासां सुंने राट। मीठा बोलो देती थगा सांरंग भेला भारी , ___ बींद राजा हालोनी प्रो जोऐ थारी वाट ॥ ३ करे कोडजाडा (दा) दोढी पंचाणा कनांटां कार , रमासा हुलासां माडा भारी रेण' राज । मारू गाढा ही चो' लुलुहीयारो हार जेम , मारू जस-म्यारा प्रबार थीग देसां पधारो लाडा प्राज ॥४ २३. वात (द्वावत)- जद बेली डेरांने वलीया'२; जसांका मनोरथ फलीयां हेमराजको घोडौ कूदै छै; दुसमण प्रांषीयां मदै छै । पांच पांच बरछी ठेकै 3 छै, अलवल (र) की सहेलीयां१४ देषै छै । दहा- केइ नरषै५ कामणी, आडे गंघट प्राय। हैवर कुदै हेमरौ, पायक नट ज्यू पाय ॥ ८४ डेरां दिस वलिया दुझल, अलवलीया' असवार। हेम कूदावै हैवरौ १७, अलवल (र) ₹१८ बाजार ॥ ८५ २४. वात (द्वावैत)-पाचा(छा) डेरा हता ज्यां हुआ छै; पकवांनाका थाल डेरांनै वा१६ छ । पाचा" रंग-राग वरतांणा; मालूका हुया मनका १ जांणां । १. ख. जीण । २. ख. फले । ३. ख. फरोव। ४. ख. जाला । ५. ख. वोढा । ६. ख. जाली। ७. ख. मोरे । ८. ख. राह । ६. ख. दोडी। १०. ख. रेया। ११. ख. छो । १२. ख. बलीया। १३. ख. टेकै । १४. ख. सहेल्यां । १५. ख. नरेखे । १६. ख. अलवलिया। १७. ख. हैबरो। १८. ख. अलबलर। १६. न. हुमा। २०. ख. पाछा । २१. ख. मन । Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ ] बात दरजी मयारामरी दारूको झड लगायो छै; जसां भी पीधो छै, म्यारांनै पीयो छै । दारूका प्याला लेवै छै; मालकी अोलभा देवै छै । श्रो वरसात अायो छै; चै (छ)लां मनचायौ' छै । आ रात नहीं छै जावण की; पा रात छै घरां प्रावण की। प्रो वैरी वरसालौ आयो; पाप जावरणको फुरमायो। जसांवायक... दुहा- वरसालौ वैरी वू(हू) ओ, वैरण दूजी बीज । माथै आई म्यारजी, तीजी वैरण तीज ॥ ८६ वैरी चोथा बादला, घण' पांचमो घुरांत । थटी अंधारी थाग विरण, छटी वैरण रात ॥ ८७ सारंग वैरी सातमां, मीठा गावै मौर। ऊवां बरसै बादली, लूंबां-झूबा लौर ॥ ८८ नवमी आ वैरण नदी, जदी जलां ऊझेल ।। दसमौ वैरी दोबलो, तण सीचोज तेल || ८६ मद वैरी अगीयारमौ, जण वण केम जीऊ । बोले वैरी बारमा, पपीया पीऊ पीऊ ॥६० तैहडो वैरी तेरमो, जोवन चढीयो जोर।। चंदो वैरी चवदमौ, कामरणीयां चहु कोर ॥ ६१ पाका वैरी पनरमा, वलीया फूलां वाग।। साचौ वैरी सोलमौ, रस बरसावै राग ॥ ६२ वरसालोमै मत प्रौ, वादल वादल वोज । मांन थां विण म्यारजी, कुण षेलासी तीज ॥ ६३ होडै सहीयां होडसी, वादलहीमै वीज । मझ दोऊ होडां म्यारजी, तुरी खेलाजो तीज ॥ ६४ पोसाकां कीजो प्रबल, लीजो दारू लार । मुहगौ (डौ) कोजो म्यारजी, तीज तणौ तहवार ॥ ६५ साथै लीजो साथीयां, प्याला भर पाजो'ह । महिल जसांनै म्यारजी, हीडा हीडाजो ह ॥ ६६ दूजी मारी देषसी, सारी साथणीया है। म्याराजी मछकावतां, हीडारी तरणीयां ह॥६७ दूजी मारी देषसी, साथणीयांरो साथ। प्याला थांने पावसां, घाल गलामै बाथ ।। ६८ १. ख. छायौ । २. ख. घणा । ३. ख. घुरंत । ४. ख. ऊंबां । ५. ख. सी छीजै। Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात दरजी मयारामरी [ १७९ दूजी मारी देषसी, साथणीयांरो संग । हीडां थे मे हीडसां, अंगां भीजे अंग ॥६६ कूजा' दारू ले'र कर, सहीयां घेर सुजाण ।। फेर पयाला पावसां, दे'र गलारी आण ।। १०० होडारी लीजो हलक, राजद कीजो रीज । देषीजो ऊभा दुला, तीजणीयां नै२ तीज ॥ १०१ हीडा रेसम हेमरा, लटकै होरां लूब । तीजडीयां हीडै तठे, जण लुबां विच झूब ॥ १०२ तरह-तरहरा तायफा, सजे कहरवा सांग । ऐ वै हीडां आवसी, मोजां लेसी मांग ॥ १०३ कल-हल' करसी केकीयां, वल-वल षवसी वीज । म्यारा अलवल माझली, तण पुल रमसा तीज ॥ १०४ वादल गल-गल बरससी, थल-थल नीर थटाव । तिण पुल जोजो तीजरौ, अलवल(र) रो औचा (छा)व ॥ १०५ पाणी षल-हल परबतां, तल-गल सभर तलाव । काली मिल-मल कांठलां, अलवल झुकसी प्राव ॥ १०६ साकल पल-हलसी घरा, वल-वल हल-वल वाज । भल-हल साबल भलकतां, रमजौ अलवल (र) राज ॥ १०७ होडा जासां हीडवा, पैगां षेलासांह । वाजां तासां वाजतां, आवासां० प्रासांह ॥ १०८ होडा जासां हीडवा, आसां पूरासांह । प्रासां दारू ऊमदा, पीसां पर पासांह ॥ १०६ मारी थारी म्यारजी, जोवणजोगी जोड । अलवल (र) जसीयां ऐकली, चे(छ)लम जावौ चौ (छौ)ड ॥११० मारू मां मनुप्रारको १ पोवो दारू पूर । माफ कराडौ (प्रो) म्यारजी, मुरधररौ मछकूर ॥ १११ वजसी थाढौ वायरौ, गजसी मधुरौ गाज । धरण जद तजसी ढोलीयौ, सजसी जोग समाज ।। ११२ १. ख. कजा । २. ख. प्रतिमें नहीं है । ३. ख. संग। ४. ख. जे । ५. ख. कलहक ६. ख. अलबल. ७. ख. प्रौ चाव । ८. ख. खळ-खळ । ६. ख. धरा । १०. ख. पावसां । ११. ख. मनुहारको। Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० ] बात दरजी मयारामरी पास ॥ ११३ ईज । तीज ॥ ११४ चहु दिस उमंघीयो' झड-चवण, मचीयौ घरण चत्रमास 1 कीवें कसीयो ढोलीयो, पीय रसीयौ नह संगरां भीजै साथीयां, अंगरा कपडां मांणो रंगरां मालीयां, तरां अंगरां श्रामण मास सुहामणो, घणौ मेह घण गाज | तण रतमै जावण तरणो, मुखौ मती माहराज ।। ११५ नदीयां नाला नोकररण, पांणी वाला पूर । बरसालारा बादला, काला वर करूर ॥ ११६ रोज । लष ग्रहणां वप लपटजो, राज प्रपटजो दारू प्रसौ दपटजौ, तुरं झपटजौ तीज ॥ ११७ भमरां थाने भालसां, चमरां दुलतां चै ( छे) ल । श्राजौ डमरां त रररां", गुमरां घरीयां गेल ॥ ११८ काली वरसे कांठलां', सैहरां वा (पा) ली सोभ । मतवाली रत नर-मना, ले हरीयाली लोभ ॥ ११६ साथे लाज्यो सूषडां, रैण दिराज्यो रोज । प्राज्यौ साजां ऊमदा, तरण रमाज्यौ महिना (छा ) इमामोलीयां, बादल चा (छा ) यौ वोम ! वेलां चढ चाया चां", जसीयल चा ( छा ) ई जोम ।। १२१ वरचा (छ) चढसी वेलडी, नदीयां चढसी नीर । नजरां चढजौ माणजौ, बादल जम कूंजा बहै, मदरौ झड़ तीज ॥ १२० १२ जसां सरीर ॥ १२२ जेम १३ ० साहिब कांठल म्यारांमरै, ईन्द्र झडरूपी २५. वारता ( द्वावंत ) - म्यारांमजीने दारू पायो छै; ग्रफरौ उगायो छै । म्यारामजी प्रांषां मींचे छे; कांमका थांणा सींचे छै । जसान भी दारू प्रायो छै; कामको मुसालो पायौ छै । जसां मालून जगावे छै; मांगे ज्यों" मंगावं छै । म्यारांमजी कँफमै घोरांणा; मालूनै ग्रहणां थोरांणा । म्यारामजीने जगावै मालू; तो थांकौ जनमको दालद पालू । १५ कुराज । श्राज ॥ १२३ १. ख. उंमधीयो । २. ख. चतमास । ३. ख. पिय । ४. ख. न । ५. ख. सगरो । ६. ख. वैर । ७. ख. तणां । ८. ख. धरीयां । ६. ख. काठलां । १०. ख. छाया । ११. ख. ब्रछां । १२. ख. बरछां । १३. ख. केम । १४. ख. ज्यां । १५. ख. ग्रहण | Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात दरजी मयारामरी . [ ११ मालवायकअण दारूरै ऊपरै, वैरण पडजो वोज । जसडी थं दीसै' जसां, आज रहेली ईज ॥ १२४ कैफमही च (छ) कीयौ कवर, नैणी फरगी नींद । जागै नह मांसं जसां, वैरण थारो वींद ॥ १२५ जसांवायकअण दारूसू हे अली !, मारू भी दुष पात ।। सो दारू किण विध सहै, ज्यांरी कारू जात ॥ १२६ मयारांमवायकलाली यक कावल लली, साली मौ उर सूल। अरण काली घणनै अबै, माली ! कर माकूल ॥ १२७ मालवायककंण थाने कारू कहै, मांक थे मारू । दारूकी पी धल [धण] दर्ष, छैकी अरण सारू ॥ १२८ जसीयां मद पीवौ जदयां, राजद मतरी वौह । औ दीवौ घर प्रापर, जिण दीठां जीवौह ॥ १२६ अतरौ अवगुण प्रापमै, मोटो यक म्यारांम।। आप न जागै प्रापरी, कामण जागी काम ॥ १३० जसां अपछर जनमको, जसा आभ की झाल । जसा हंस थाकै जसी, भोगौ नी भूपाल ॥ १३१ घम-घम वाजै घूघरा, वाजै चम-चम वीच (छ) । तम-तम यम मालू तवै, म्यार (म) चसम म मीच ॥ १३२ पहला दारू पायने, कालै वचन अकाज । म्यारौ आर्ष मालकी, अलवल रहां न आज ॥ १३३ २६. वात (द्वावैत)- अलवल (र)ऊभा रहां नहीं; थांका वायक सहां नहीं । मे आया वचनांका बाधा; जसांका माजना लाधा। पूरबली प्रीत पालता ता(था); अतरा दन रीस टालता ता (था) । ढूंढाडमै नीपज सो ढांढी; मे तो जसां आजसू चां(छां)डी। थांकी जसां सरीषी उगै (8) लाषां परणां; मांकी सोभा मे कांई वरणां; मांनै तो अनेकां न्यौरा करै छै; मारै यण विना कांई नहीं सरै छै ? १. ख. दीजै। २. ख. न । ३. ख. जी । ४. ख. सालौ । ५. ख. घल । Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ ] बात दरजी मयारामरी मालूवायकदुहौ- जसा सरीषी जगतमै, महल नहीं म्यारांम। अण कह्यौ म ऊथपो, करौ कहै सो काम ॥ १३४ २७. वारता (द्वावत)- जसीया कसीयक छै; आपने भी उधारे जसीयक छ । पतीयासीको कमल, गंगासी विमल । भूभलीया नैणांकी, अमरतसा वैणांकी। मेहको ममौलो, वादलाकी बीज; होलीकी' झाल, सामणकी तीज । केलको गरभ, सोनेझो षंभ; सीलकी सती, रूपकी रंभ । ताठौ मरग, मगराकी मौर; पाबासरको हंस, मनकी मीत, मनकी चौर । जीवकी जडी, हीयाको हार; अमीको ठाहौ, रूपको अवतार । कांजांलीकी सांठी, गूंजालीको भलको; गैलाकी कबांण, हीडाको हलको । मुगलरो मीमचौ', वषायतरो भालौ; सधरौ गोटको प्रेमरौ प्यालौ। सोलमौ सोनो, राजहंसरो वचौ; बावनौ चंदण, रेसमरौ गचौ । करतीयांरौ झू बकौ, मोतीयांरी लूब; हीरोरो' लछौ, सरगरी झूब । सनेहरी पालषी, हेतरौ थांणी; नणारौ नरषणौ, प्रेमरो कमठाणौ। सरदरी पूनमरो चंद, पासाढरो भांण ; जसीयांकी तारीफ, बुधैका वाषांण । मदवीको मछौलौ, हाथकी हाल; तीजणीयांकौ तुररौ, रूपकी मुसाल । कांषको लाडू, मोतीयांको गजरो; जलालीयाको धको, जसीयांको मुजरौ । 'कलपत्रच (छ) री डाल'८, पारसरौ टोल'; मेहरी महर', दरीयावरी छौल'' । तावडैरी छांहि१५, अंधारैरो'३ दीयो; सीयालारो ताप, जका जसा घणा जग जीवौ । हरषरौ हीडी, उदेगरी मेट; जीवरो जतन, इन्द्ररी भेट । किस्तूरीरो माफौ, केसररी क्यारी; रूपरौ रूषडो१४, रच (स)ना होनारी। भमरांरो भणणांट, डीलारी१५ दोली १६; दीपमालारा दौर, भाषररी होली । गुलाल सही गढौ ७, प्रांषांरौ पाणी; हीरांरो हार१८ । ग्रहणांको भललाटो तेजको अंबार; जसीयांको जोवणो वा संसारको सार । 'दांतारो पाणी'१६, कडीयांरो केहरी, हालरो हंस; भूयारी भमर, कुरजरी नस । अलकारी नागण, पलकारी कुरंग; कंठारी' कोयल, सोनेरी अंग। अणीयाला नैणांमै काजलकी रेषां; अमरतरा ठांसा चंदामै पेषौ । सींदूरकी १. ख. होलीको। २. ख. होडाको। ३. ख. ममिचौ । ४. ख. गेटको। ५. ख. प्रेमको। ६. ख. हीरांरो। ७. ख. सणरी। ८. ख. -' ख प्रतिमें दरीयावरी छोलके बाद यह गद्यांश है । ६. ख. टोट । १०. ख. मेहर । ११. ख. ढरीयावरी छैल। १२. ख. छोहि । १३ ख. अंधारौरो। १४. ख. रखडा। १५. ख. डोलारो। १५. ख. ढोली। १७. ख गूढौ । १८. ख. हारौ, पोतारौ पाणी। १६. ख. -' ख. प्रतिमें नहीं है। २०. ख. कंठरी। २१. ख. पेखां । Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात दरजी मयारामरी [१८३ बींदो भालूमै भलक, कालीसी कांठलमै चंदोकन चलकै । असोभतां ऊतारे; सोभतां धारे। वाल वाल मोताहल पोया; जांणे नवलाष नषत्र एकठा होया । बाजणां जांझर पैरीया, घूघरांका सुर गैरीया। अण भांतकी जसीयां; जकाकूचो (छो) डो चौ' (छौ) रसीया। मांणोनी म्यारांमजी, थांनै दीनी छै रांमजी । लो नी लाडीका लावा, पीचे (छ) करसौ पच(छ)तावा । जावणकी वातां जांणां छां, मतवाली कू नहीं माणां छां । वरसालाका वादल ज्यू, ढालका जल ज्यू; भाषरका पांणी ज्यू, वाटका दांणी ज्यूं; चे (छे)ह मती चा (छा)डौ, थोडौ सो मन करौ गाडौ । झाली वागां षडौ, थोड़ा रहौ झलीया। पिण थांमै किसो दोस, थां के संगी पलीया ! दुहौ- पलीवालरी पोत ज्यू, ऊठी झाटक अंग। मांणौ रंग म्यारांमजी !, प्रांणौ अंग उमंग ॥ १३५ २८. वारता (द्वावैत)-वरसायत प्रावणकी धारी छै; आपकै जावणकी त्यारा छ । जमी नीला सिणगार धारसी, जसां सिंणगार उतारसी। मोरीया महकसी, डेडरा डहकसी; झिलीगन झणकसी, भमरा भणकसी। सीतल पवन वाजसी', मधरौ मेह गांजसी । भाषरैरी छीयां लागसी, 'ग्रीषम रित भागसी । वीजलीयां भलकसी'५; भाषरांस वाला पलकसी; पावसकी पोटां पडसी, इद्रकी असवारी चडसी । हरीयालीयां चूटसी, नदीयांका बंध फूटसी; जण रतमै आप कमरां बांधां (धौ) छौ; आपकै कोइ मांसू पला भवको बांधौ छौ । बरसायतकी आ रीत सुणौ चो (छौ)टौ सांणौर गीत रहीया ढक गिरंदरी छीयां रसीया, वसीया बुगला पावस वास । जण पुल मांय तजे धण जसीया, बालम क्यूं कसीया वर हास' ॥१ गीत- दादुर मोर पपीया नस-दन, सोर११ करै घण'३ घोर सन्ताप । बादल लोर षवै बह बीजां, मेहा घोर करै अमाप ॥ २ बरसै सघरण षलल वजवाला, वसधा जल थल एक ना। अलबलहू तज कण पुल अलीया, हलवल कर क्यू त्यार हुआ। ॥ ३ १. ख. छोड छ। २. ख. करस्यौ। ३. ख. वे । ४. ख. वागसी। ५. ख. '-' यह पदावली ख. प्रतिमें अप्राप्त है। ६. ख. छटसी। ७. ख. को ह। ८. ख. शांणोर । ६. ख. बालक। १०. ख. सात । ११. ख. सारे । १२. ख. घणा । Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ ] बात दरजी मयारामरी सरवर कह रस भर जल सिलता, तरवर षपसर ऊत रलतत्यार । मुरधर कमर कस म्यारा, हर घर मत कर कंत हमार ॥ ४ पग-पग कीछ प्रथग लग पाणी, मग मग डग डग पथग मरै । जगभरा नगां सुरंग अंग जसीयां, धरण लग पग अग करग धरै ॥ ५ चरंजी रहौ रहौ च (छौ) नौजी, वरजी करजी जोडे वाम । भौगी दरजी दिन भांनौजी, मांनौजी अरजी म्यांराम ॥ ६ दुहा- म्यारा ! थारा मुलकमै, चंगी कासू वार वार मुरधर वहौ, राज किसै गुंरंग मालू ! मांरा मुलकमै, चंगी वसतां नर नारी श्री ठान बंग, तोषा वै मालू ! थांरा मुलक, कासू भला नर नागा नारी नलज, रोजे केम म्यारा ! मांरा मुलकरा, वागांरा प्रालीजां सुणजो अबे, श्रवणां कथन सुजाण ॥ १३६ वागांरा वाषाण- छन्द पधरी वाषाण । वन सघन लसत मनु घन वसाल, संचरे नाहि रवि रसमरास । जग ताप हरत प्रतिसुषद छांहि, लष लिलत छटा मुनगन लुभाय ॥ केली कदंब करुना सोक, सहकार बकुल लष मिटत सोक | जातीफल जाबू नालकेर, वट पीपर महि व्हें" हरत हेर || पाडर पुन रायन तरु तमार, तहाँ सरु बकायन सरस तार । चंदन अगर तोया कुन्द चारु, सीताफल चंपक श्ररु अनारु ॥ कचनार नागलितका लवंग, थल कोल मल्लिका मिलत संग । चीज । रोज ।। १३६ च्यार | तोषार ।। १३७ कहौ । रहौं ॥ १३८ वेलराय । केतकी जुही केतक रु जाय, चंबेल माधवी केसर मनौग क्यारी जु कोन, रितराज वसै नित चिब नवीन ॥ प्रफूलत हिम गुलम ज नव प्रकार, थल सकल हरित सुष करत सार । मकरंद मंजुरी स्ववत पुंज, अलिमाला भूमत गुंज-गुंज ॥ उहहत कुसम पूरत पराग, पल्लव दल मिल जेव जाग । रखमुषी दावदी पुन पलास, नाकुरमा परगस पास पास ॥ सोभत मन्द सीतल समीर, कोकला कुहक क्रत सोर कीर । वांनी अनेक कुजत वैहंग, नाचत मयूर आनंद अंग ॥ १. ख. कवर। २. ख. कोच । ३. ख. चो । ४. ख. महि है । ५. ख. लिया। ६. ख. छिब । ७. ख. स्वतत । ८ फल । ६. ख. मंत । Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात दरजी मयारामरी [ १८५ गव धनुष ससक चित्रिग वराह, मग महष सुरभ पावरत चाह । आनंद मइ' जहि अवन प्राज, राजत है मानहुं रामराज ॥ १४० नभ चुवत संग गिर कलस ऊंध', उपमा जहि सोधत सुकव बुध । २६. बात (द्वावत)- यसा तो मांका वाग छै; इसोई संजीवन राग छ । मारवाडको भूषौ, देस जठै अनको न रत्तौ लेस । जकण मुलकका जाया, मानै पजावण आया। दुहा- कोड गुना कामरण कीया, माफ कीया महाराज । म्याराजी चोडौ मती, बांहि-ग्रहां की लाज ॥ १४१ मे तो पणतूं मालको !, पाली प्राची प्रोत । अतरा दन रहीया अठ, बांहि-ग्रहांकी रीत ॥ १४२ जहर-जसा माने जसां, वकीया पारा वैण । जकण जसांसू मालकी ! नमंष मिलै नह नैण ॥ १४३ ___ जसांवायक रीसां बलती राजनै, वकीया बारा वैरण । मारा थानै म्यारजी !, नरष न धापै नैण ॥ १४४ मयारांमवायक पग पग ऊपर पदमरणी, कोना नोहरा कोड । कामण जसीयां कारणे, चलीया ज्यांने चोड ॥ १४५ मालकीवायक अण सूरत अण प्रकलन, करै न नोहरा कोय । मोलौ लोहो मालकी, ज्यो गर चाढ मरोय ॥ १४६ जसांवायक अगले भव वाली अब, पालू माली प्रीत । मन भाव ज्यूं म्यारजी!, चाडौ 'रीस नचीत ॥ १४७ नयण लगाडे'• नेहरा, वयरण दिराडे ११ वल। मांडी अब क्यु'म्यारजी!, चालणकी हलचल ॥ १४८ वात दरजी मयारामरी समाप्त । १. ख. मई । २. ख. अंध । ३. ख. जाहि । ४. स. छोडौ। ५. स्व. प्राछी। ६.ख. छोड । ७. ख. लोहा । ८. ख. छाडौ। ९. '-' ख. री मन चीत। १०. स. लगाहे । ११. ख. दिराहे । १२ ब. क्यूं। १३. ख. चलणकी । Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा चंद-प्रेमलालछीरी वात' ॥६०॥ कथा ॥ - अभा नगरी चंदो राजा, गिर नगरी, प्रेमलालछी। सौ जोगे' विवाह हुसी; अब मलगौ देवरे " हाथ ॥ १ वारत्ता-राजपुर गांव, तठे रजपुत एक घररो धणी वसै । तिणरौ नाम रुद्रदेव। तिण देवरे संजौगै दोय अस्ती परणीयौ; सुषमै रहै । पिण सोकांरो' वेध' तिणसं राति दि]नि बढती'३ रहै। कदे क मेलि' ४ पीण होय ५ जाय । तरै१६ रुद्रदेव आपरा सुष होणनै दोन ही बैरांने घर जुदा जुदा वणाय दोधा। वडी बहरै बैटौ ८ हवै१६ न छै । सो कांमधेन ले दीधी। तीका दु: । पिण लुगाई बैह २२ जणी विद्या सोषी थी। तिका बालकपणे अतीत मीलियौ २ ३ थौ, तिणसुं वीद्या ४ पाई।५ । पीण ६ भरतार जाणे २७ नही । दोहु१८ जणी रैहर छ । ___ एक दीन ऊ जणी पाणी भरणने चाली। तरै धरणीन3 ° कह्यौ। लहुडी कह्यो-म्हारौ डावडौ पालणे १ माहे सुंतो २ छै; देषज्यौ, जागे तो 3 रोवण मत देज्यौ । वडी वह ४ कह्यौ-चोपा३५ प्रांवरगरी ६ वेला हुई छ । गाइ आवै तौ टोघडानै ३७ चुघण मत देज्यौ ८ । ईसि भांत भला इ बेहु जणी पांणीनै गई । तिस डावडौ जागीयौ ने रौयो३६ । तरै४० रुद्रदेव बालकनै पालणा मांहेसू४१ उरौ४२ लिनो। तिसै गाइ पीण पाई।४३ तरै४४ टौघडौ४५ चंघण लागौ। तरै बालकनै ६ पालणा माहे सुंवांण्यौ । आप टोघडान ७ जुदौ४८ बांधीयौ। गायन ६ बांधे तीसै५० दोन जणी जल ले आई५१ । १. २. ख. में नहीं है । ३. ख. अंभो। ४. ख. सो। ५. ख. जोगे। ६. ख. मेलो। ७. ख. देवर। ८. ख. दौय । ६. ख. अस्त्री। १०. ख. सोकारो। ११. ख. रहौ । १२. ख. रात दीन । १३. ख. विती । १४. ख. मैलि । १५. ख. होय । १६. ख. तरे। १७. ख. दोनुं । १८. ख. बेटौ। १६. ख. हुवै। २०. ख. दु:। २१. ख. लुगायां । २२. ख. बेहूं। २३. ख. मीलीयो । २४. ख. विद्या । २५. ख. पाइ। २६. ख. पिण। २७. ख. जांणे । २८. ख. दौहु । २९. ख. देह । ३०. ख. तरे धरणीने । ३१. ख. पालणा ३२. ख. सुतौ। ३३. ख. तौ। ३४. ख. वहू। ३५. ख. चौपा। ३६. ख. प्रावणरी। ३७. ख. टोघडान । ३८. ख. देज्यौ मती। ३६. ख. रोयो। ४०. ख. तरे । ४१. ख. माहिसं । ४२. ख. उरो। ४३. ख. प्राइ। ४४. ख. तरे। ४५. ख. टोघडी । ४६. ख. तरे बालकने । ४७. ख. टोघडाने । ४८. ख. जुदो। ४६. स्व. गायने। ५०. ख. बांध तीस तितरे । ५१. ख. प्राइ । Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा चंद-प्रेमलालछोरी वात [ १८७ इतरै' लौडो वहू दे ---गायन' बांधे छै नै बालक तौ रौवै छ । तरै लहडी जांणीयौ-धणी म्हारौ' नही; बडारी गायरौ जाबतो कीयौ दुधरौ; नैं "बैटां' १ जिसी'मोरात, तिण रो जाबतौ नही कीधो ३ तो१४ इणनै१५ परौ ६ मारणौ१७ । भलो नही पापन१८, तिकौ१६ दीजै काला सापन२० । औ उठासुं औषांणा' चाल्यौ छै । तरै लहुडीरै माथै २ ईढीणी२३ थी, तिणरौ २४ मंत्रसुं साप कालंदार कीयौ नै२५ रजपुत सांम्हौ षांणनै२६ दौड्यौ । तिस२८ वडी दोठी-इण म्हारौ२६ मछर करि धणीनै °मारणौ मांड्यौ । तरै वडोरा हाथ महै ३३ लोटी३४ थी, तिणरौ नोलीयौ वरणायौ मत्रसुं । तिको नोलीयौ सांपर्दे विढवा लागौ। तिण सांपने न्यौल्यै २५ मारीयौ। रजपुत दोन्यांरा चरित्र देषने धूज्यौ ने मन माहे विचारीयो- इसी बैरां आगे कदे'क 'ऐली साट मरीजमी'34 तौ ईयांने छोडीजै तो भलौ; पिण इयारी सीष विना परदेसनै चालुं तौ ऐ पोंचनै मोनें मारै; तिणसुं ईयांरा मुढासु हसने सोष दैव तौ दस कौस अदीठ३७ हुइजै नै उठे पइसो कमाय, काईक सुधी रजपुतांणी आंगनै घर मांडूं । इसौ विचार कह्यौ (रयौ)। दिन दस प्राडा देनै दौन्यु भेली बैठो छ, तरै रुद्रदेव बौल्यौ- ऐस साष तौ पतली हुई नैं घर माहे ऊडौ ८ तेह नही. नै षाधौ-पहिरयौ जोईजै; जो थे हसने सीष द्यौ तौ च्यार मास कठै एक जाय नै, किण हेकरी-चाकरी करिनै च्यार टका ल्याव। तरे बैरां कह्यौ-घरै बैठा जाडी जीमता, पतली जीमस्यां; चोपड़ी जीमता, लूंषी जीमस्यां; परदेस कुरण जाय। परदेसरो मामलौ छै, कि जांणी, जै कदेई मिलणौ हूवै ? करम माहै लिषीयौ छ, तिको अठे हीज मिलसी । तरै रुद्रदेव अबोल्यौ रह्यो। ___ मास १ वीतां वलै रजपूत परदेस दिसावले कह्यौ । तरै दौन्यु सोकां वात कीवी-प्रांपा सांप-नौल कीधौ तिणही'ज रातिसं इणरो मन घरस लागे नही छै तौ को इयु रहे नहीं । इणनैं गधेडौ करां तो दीहां दीहां फुस, कचरौ, फूहडौ ल्याव में रात पडीयां आपणी दाय आवसी त्य करिस्यां। इसी सोच विचारनै दौनु जण्यां मतो कीधौ। रावतजी ! थे परदेस कमावणनै पधारौ नै १. ख. इतरे। २. ख. देष । ३. ख. गायने। ४. ख. बांध। ५. ख. ने। ६. ख. तरे। ७. ख. म्हारो। ८. ख. गायरी। ९. ख. दुधरो। १०. ख. ने। ११. ख. बेटां। १२. ख. सरीसी। १३. ख. कोधौ। १४. ख. तौ। १५. स्व. इणने । १६. ख. परो। १७. ख. मारणो। १८.ख. प्रापन । १६. ख. तिको। २० ख. सापने। २१. ख. औषां। २२. ख. माथे । २३. ख. इढौणी। २४. ख. तिरणरो। २५. स्व. ने। २६. स्व. पाणने । २७. ख. दोड्यो । २८. ख. तिसे । २६. ख. म्हारो। ३०. ख. धणीने । ३१. ख. मारणो ३२. ख. तरे। ३३. ख, हाथ माहे । ३४. ख. लौटी। ३५. ख. ल्यौल्ये । ३६. ख. '-' ख. ऐळी साजसी । ३७. ख. अठी-उठी अदीस । ३८. ख. हउडौ। ३६. ख. दोनुं ही। ४०. ख. कोइ। Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८ ] राजा चंद-प्रेमलालछोरी वात वेगा श्रावणरी मनसा करज्यौ । म्हांनै थां विना घडी १ आवडे नहीं छ। तरे रजपूत राजी हवौ । तर जाण्यौ-भली बात, म्हारौ दिन पाधरौ दीसै छ । इणां मौन सीष दीधी। इण रजपुतांणीयांस घणो हेत-प्यार दीधौ। तरै दौन जिण्या भाता सारू चूरमौ कीधौ ने लाडू ४ बांधीया । तिके मंत्रनै कौथली माहे घाति बांध मेल्या । जिको ऐं लाडू षायै तिको गधेडो हुवै ने भूकतौ भूकतौ पाधगै घरै आवै । इसो भातो कर राषीयौ । राते रजपूत सूतौ, पिण नीद आवै नहीं। मन माहे जण इण वावर माहिस्वेगो नोसरू । इयु जांण प्राधी रातिरौ जाग्यौ नै कह्यौ-हिवै तौ पाछीली राति छ। तरे ऊठि कमर बांधी, हथीयार बांधि' सीष करै । तरै दौन ही बैरै लाडू भाता सारू कौथळी हाथ माहे दीधी। ___ रजपूत लाडू लेने ऊतावली चाल्यौ। तिको रातोराति माहे कोस १२३ ऊपरा श्रीसूर्यजी दरसण दीधौ । दिन घड़ी १ चढतां चालता-चालता प्रागै १ जलसं भरीयौ तलाव आयौ । तरे रुद्रदेव जांणीयौ-अठ भातौ षायनै कोस २० सुधौ आज गयौ रहूं। युजारिग, जलरी तीर हथीयार छोडि सारां-फेर गयो। दातण करि हाथ पग ऊजला कीधा, अमल कीधा नैं आप श्रीपरमेश्वरजीरा नांम लैणनै बैठौ । नाम ल्यै छ तिसडै १ ढोली प्राय नीसरीयौ । तिरण रुद्रदेवन ऊजलायत मोटौ प्रादमी देषनै सुभराज दीधौ नै कह्यौ-मा-बाप ! अमलदार छु; अमल पाई गांवस च्याल्यौ थौ। तिको कालज अमल लागौ छै, क साथे सीरांवरगी हुइ तो रावला जाचकने पसाव करी । इसो सुरण रुद्रदेव जाण्यौधरम आडो आवसी नै एक लाडू इणनै धु; वांस तीन रहसी घणा ही छै। यु जांण एक लाडू ढोलीनै दीयो। ढोली चूरमौ-चूटीयो० देषि, जलरी तीर जाइ', उतांवलो उतावलो उतावलो'२ लाडू षाधौ । तिसै ढोली गधेडो हुवो, रबाब गला माहे लीयां भुकतो जीण दीसी षोज रजपूतरा था, तिण षोजां दोडौ, घड़ो एक माहे घरां गयो। रजपूताणीयां-जाण्यौ पधारोया तो षरा, रबाब कीणरो लाधा। इसो तमासो [देखनै] पाषा मंत्र बांटिया, तिसै गधारो ढोली हुवी ने कह्यो-कुल-गोत सुहासणीरो भलो करो, चूडो अवचल रहो। आज म्हारा'3 प्रभागनै रजपूत एक मिल्यौ; तिण लाड़ षांणने दिधौ। तिण षात समांण'४ ऐ फोड़ा पड़ीया । तरै दोनही जांण्यौ-लाडू तो तिण न षाधा हुसी। ढोलीरो १. ख. बांध। २. ख. बेरां । ३, ख. १०१२। ४. ख. प्रतिमें नहीं है। ५. ख. कांह। ६. ख. सोरांमणी। ७. ख. हुवे । ८. ख. इ तो। ९. ख. बगसावो । १०. ख. उठी पो। ११. ख. जाइ। १२. ख. प्रतिमें द्विरुक्त शब्द नहीं है। १३. ख. म्हारा । १४. ख. षांत समांन । Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा चंद-प्रेमलालछोरी वात [ १८६ तमासो दीठो तो प्रांपां री दाढां मांहसु' जासी तो पाछो नहीं पावसी, इण ढोलीनै क्यु दै वेगी वाहर करो । युजाण ५ अथा ७ धांन घालि ढोलोनै सीष दोधी। ऐ दौनु जणी घोडीरो रूप कीयो, लारे दौड़ी। तिसे रजपूत ढोलीरो चिरत देष चमक्यौ । तरै लाडू तो पांणी मांहे नांष दीधा । उतावलौ, डरतो हाथमे जुती लै नाठो, पाछो जोवतो-जोवतो जायै । प्रागै कोस एक ऊपरा देवगढ आयौ । तिणरै फोलसै सास भरीयौ पैष । जिसै रजपुतांण्यां घौड़ीरे रूप-पासरण कीधां, पूंछ माथै लीधां प्रावती दीठी । तरै रुद्रदेव एक अहीरणो घर ‘फीलसारै माथै छ, तिणमै पैठो । अहीरणी जवांन छै, अकेली चौक मांहे५ ऊभी छ। तिण कह्यौ-देषे छ, तु मांहरा घरमै च्याल्यो प्रावै छ । प्रांषां फुटी छ ? तु निसर जा ! तरै रजपूत कह्यौ-हूँ मारीजतो' थारै सरणे आयो छु। उण कह्यो-कुण मारै ? तर रजपूत उतांवली वात सगली कही । अहीरणी वात सुणि बोली-जो तु म्हारो धणी होइनै रहै तौ वाहर पाल । रुद्रदेव प्रमाण की। जैरै अहीरणी मंत्रांरै पांण नाहरी हुई नै घोडां सांमी दोडी । तर उवै दौनु जणी पाछी डरती नाठी । तरै कोस ५ ६ ७ सधी हसाई पाछी आई। रजपूत दीठौ-कोसि बलाइ लागी ? घरसुं तो इण मंत्रांरा भौसु न्हाठी थो नै अठै तौ पा उठांस इधकी ! पिण रात रहौ । जरै अहीरणीनै रतिश्रान्त हुई निद्रा व्यापी, आधी रातिरो रजपूत छोडि निसरीयौ । तिको प्रभो'' नगरी जठै चंद'१ राजा राज करै छै, तठ प्रायो। ___ प्रागै राजारै कवरी वड कवार छै। तिणरा सवारै-संवरा मंडप मंड्यो छै । देस-देसरा राजा आया छ । त्यां१२ मांहे रुद्रदेव पिण तमासो देषणनै गयो छ, ऊभो छ । तिसे कवरी 'माला फूलरी१३ हाथमै छ, लीयां घणी दासी सहेल्यांरै झलरै पाई । तिको पेलंतररै लैष, वडा वडा गढ़पति छोडिनै १४ रुद्रदेवरै गला माहै वरमाला घाली । जरै सगलां कह्यौ-कवरी चुकी-चुकी। जरै वलै बीजि वेला फिर वर माल्यो । जरै चांदी राजा कह्यो-इणरा करम माहै१५ लिषीयो थौ, तिको मिलीयौ। जरै रुद्रदेवनै जात-पांत पुछि कवरी परणाई । गांव दोया, महिल' ६ दीयो । गेहणो, पोसाष, माल, दासी सरब दोयौ । सुषमै रहै पिण पाछलो डर भागो नही। १. ख. मांहिसु। २. ख. तमासौ। ३. ख. पर्छ । ४. ख. '' ख. प्रतिमें चिह्नित अंश नहीं है। ५. ख. मे । ६. ख. म्हारीजतौ। ७. ख . अहेरणी। ८. ख. घोड्यो । १. ख. नाहरी दोड। १०. ख. अंभो। ११. ख. चंदो। १२. ख. त्यांहीं । १३. ' ' ख. फुलरी माल । १४. ख. छोड। १५. ख में। १६. ख. महेल। १७. ख. दीयां । Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० ] राजा चंद-प्रेमलालछोरी वात तिसै पाछली रजपूतांणी सांवली दोइ हुइनै उडती' । तिके अंभो नगरीमै सूष विलसतो रुद्रदेवनै दीठौ । तरै दोनों ही विचारीयौ-ईणरी प्रांष्यांकाढि ल जावां तौ अांधो तिको जीवतो ही मुवा बरोबर छै, यु जाणि । रुद्रदेव झरोषे बैठो नगररो ष्याल-तमासो देषे छै । तिसे आकास उपर सांवलि दोइ भमै छ। तरै जांणीयौ-सही, बैहु रजपूतांणीयां छे । ऊ देषे इतरै उचो सांमो देष, तिस प्रांष्यां लेणनै तुटी। रुद्रदेव झरोषासू महिल माहै पीण डौल्यौ पड्यौ छै, जीकण उपर ढह पड्यौ । कवरी षमा-षमा कर पुछी यौ-पाज झरोषासु क्यु महलमै पड्या ? तरै रुद्रदेव अंधालि पाई । तरै कवरी हठ घणो करि पूछियौ तरै रुद्रदेव वांछली वात धुरा-मुलसु कही । जरै कवरी आपरा पगरा नेवर उतार मत्रिया। 'तिके सीकरो होइ उभो रह्यौ'५ । सीकरो तुटो तिको सांवलि दोन्युनै मार पाछौ आयो। तरै कवरी नेवररा नेवर कीया। रुद्रदेव देष सोच्यौ जठे जाउ जठे एक-एकणसु 'चढति चढति मिल'८ तरै आधि रातरो इणनै ही छोड नाठो । तिसै पाछली रातरी कवरी जागि देषै तो सेज षाली। जरै सहैल्यांनै कह्यौ-अठी-उठी, माहे-बारै सगलै सोध कीनी पिण बारणारा पोलिरा किवाड १० उघाडा लोधा। जरै जांण्यौ-रावतजी तो परदेस विगर सीष च्याल्या । तरै कवरीरे चंदो राजा पिता छ, तिणनै कह्यौथांहरो जमाई आज प्राधि रातरौ निसर गयौ, षबर करावौ । ईसो सांभल १२ राजा मारग चारै दिसां असवार दोडाया । जठे लाभ तठासु लाज्यौ'3ने थाहरो'४ बलायो'५ नाव तो मानै षबर देज्यौ; म्है पाइनै मनाय लासां१६ । य समझाय असवार दोड्या । एक मारग रुद्रदेवजी मीलिया। कह्यौ-अपुठा पधारौ । रुद्रदेव नावै जदि ऐक असवार पाछो मेलियौ । जायन कह्यौ-मांरो'७ तो बुलायो प्रायौ नही । जरै राजा गयौ। जायने मिलीया। वात पुछि—थे मांहसुविना सीष रीसाय क्यु निसरीया; तिका किसो तकसीर दिठी ? पाछा पधारो। जरै'८ रुद्रदेव झूठी-साची ऐक-दोइ१६ वात कही। तरै राजा कह्यौसांच दाषवौ जद मन मांनै । जरै रुद्रदेव धरा-मुलस वात मांडनै कहि-जठे इसी मंत्रवादण असत्रि छ, जठै जिवणकी पास कीसी ? काएक सुधी, भोलि लगाईस घर मांडीयां चन होइ२° । जरै राजा२१ हसि कह्यौ-रावतजी ! १. ख. उठती। २. ख. में नहीं है । ३. ख. नेण। ४. ख. अंधाली। ५. ख. ' ' तिको सीकरो होय उभी रही। ६. ख. में नहीं है । ७. ख. जठे जठ। ८. ख. चढति से। ६. ख. बारेणारा। १०. ख. कीवाड। ११. ख. कवरी। १२. ख. सांभले। १३. ख. लावज्यो। १४. ख. थाहरा । १५. ख. बुलाया। १६. ख. लासुं । १७. ख. मारा। १८. ख. में नहीं है । १६. ख. दौयइ । २०. ख. होय। २१. ख. में नहीं है। Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा चंद-प्रेमलालछोरी वात [१९१ म्हारी वात सांभलो पारवल जितरै काई षीषां नहीं; तिको आपरो दिन पाधरो जोइजै । तरै चंदो राजा आप वीती वात कहै छै - इण अंभो नगरी माहै राज करूं। तिको माहरी मावु छै। मारी पटरांणी परभावती तिका मांहरै जीवरी जडी; पिण स्त्रीजाति तरैदार छै। गिरनगरीरो राजा, तिणसुदइवरै जौग म्हारी माता नै परभावती रांणी, ऐ दोन्युरो जीव लागो। तिको सातवीसी कोसरो अांतरो छ। तठे नितरा नितरा'१ जावै । राति पडीयां दोन्यु जाय । मौनै सूता ऊपर आषा मंत्रनै छांट, तिको अघोर निद्रा प्रावै । दोन्युजणी पुठी आवै तिको प्राषा छांटै तरै जागु । यु मास दो' विता । ऐके दिन मै मनमै सोचीयौ- कदे ही रातिरो सुष जांण नही तिको कासु छ ? यु जांणि पोढिणनै सुतौ नही । तरै ढोलीया उपर घासरो पूलो मेलियो, ऊपरा सोड अोढाय दोनी नै हु अंधारी जाइगा माहै बठो । तिस पटरांणि आइ पाषा मंत्र, सेज ऊपरा छांटया नै पाछी फिरी । तरै मै दीठो-देषां, प्रा अबै कासु करसी ? तरे दोन्यु सासु-बहू पोसाष करि गढ बारै नीकली । हू पीण लारै नीसरीयौ। तिसै बहु जणी सहर बारै एक वड थौ, तिण उपरा जाइ बैठी । हु पिण वडरी षोषाल थो, तिणमै जाय बैठौ चिरत देषणनै । तिसै दौनां ही मंत्र जप्यौ तरे वड चाल्यौ । तिको घडी दो माहै गिर नगरी बैह जणी नगर बारै वड ऊभौ रह्यौ, जरै दोन्यु ही उतरी नगरमै चालि । रात पोहर दोढ वीती छै । जरै हु पिण अलगौ थको लारै च्याल्यौ। हु पिण वातां सुण छु । __राजा कह्यौ-आजि मोडा क्यु प्राया ? रांण्यां कह्यौ-चंद राजा मोडो सुतो । जरै राजा कह्यौ-एक वात सुणो—मारै प्रेमलालछि(छी) पुत्री छै तिणरो व्याह आजसु इकवीसमै दीन अमको तिथ गरवाररा फेरा छै; तिण ऊपरा रात पोहर जातां पहिली दौन्यु पधारिज्यो। जरै दोन्यु ही प्रमाण कीयौ । उठी रही, हसी-रमी । अब पाछिली राति थोडी रही, जरै सीष मांगी तिके चाली। हु पिण ऊणारै लारै चाल्यौ । बारै प्राय वड ऊ[प]रै बैठी। हुम्हारी जायगा जाय बैठौ । सबद जप्यौ तरै वड चाल्यौ ठिकाणे पायौ। राण्यां ऊत्तरि नगरमें चोली नैं हु तिणां पहिली ऊपरिवाडै हौयनै सेझ ऊपरा प्राय पोढयौ । तिसै रांणी पाय आषा छांटीया तरै राजा जागीयो । तर मैं दिन ऊगां कागद माहे मीति तिथ लिष राषी । ऊण दिन तौ हुं जास्यु, देषां, इणारौ किसी एक आदर छ ? नै व्याहरौ ष्याल-तमासौ पिण देषस्यु । यु करतां औ दिन प्रायौ । जरै मैं जाणते ही दिन प्राथमतै समैं मातासु कह्यौ-प्राज म्हारा नेत्र घुलै छै, १. .-' ख. नितरा । २. ख, २७३ । ३. ख. घिरी। ४. ख. नीसरी। ५. ख. जा। ६. ख. पाषल । ७ ख, बेहू । ८. ख: चाली। ६. ख. पाछि। Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२ ] राजा चंद-प्रेमलालछोरी वात नींद धकावै छै । माता कह्यौ-जा', ऊ मालीय पधारिनै सुष करौ। तर हु मालीय आय ढोलीया ऊपरि घासरो पुलो मेल नैं ऊपरा सोड ऊढायनें छिप बैठौ । उवां दोन्यां ही रा चीतोया हुवा । राति घडी ३७४ जातां माहै राणी ऊपरि पाई, ढोलीयाने आषा छांटीया नै नीची ऊतरी । तरै हं पिण उणांरै लारै ऊत्तरीयौ । ऊवे वड माहे बैंठी । हूं पिण छांनी जाय छिपनें बैठौ । सासू-बहू सिणगार करि अरगजा पहिरसुधा लगाय नै फूलांरी माला पहिरनै गिर नगरीनै नीसरी नै वड चलायौ' तके घडी २(दो) माहै पोती। तिकै तौ ऊतरी गढ मांहै गई । मैं सोचीयौ-य्यां दोन्यारो आदर-व्यवहार कुंकरि देषणो होसी ? जर मैं जाण्यौ-जांन आई छै, तिण साथे गयां कोई सुल वणै । जरै मै पोसाष करि आभ्रण पहिर जान कनै परदेसी थको ऊभौ रह्यो । त? जान माहें वींद रांटो-टंटी, कांणौ, कालौ, रूपहीण छै । तबींदरा बाप प्रमष जान्यांने सोच ऊपनौ-राजारी बेटी तौ रंभा पदमणीरौ अवतार बतावै छै नै आपण तो वींद इसौ छै, इण वींदनै देष तौ राजा परणावै नहीं नैं कवारी जान पाछ जाय तौ भलौ दीसे नही तो काई अकल करि कोईक फूटरो वीद हेरां; फेरा लि रायनै विदणी कवरनं सुप देस्यां, पछै झष मारिनै अादरसी। यु सोचतां माहे मोनै दोठौ । हूँ वणीयौ-वणायौ 'वींद दीसु१° । जरै मो कनै आय पुछीयौ-थाहरी पाघ, बोली अठारी [दीसै नहो, थारो वास कठै छै ? जरै म्है कह्यौ-म्हे तो व्यापारी छां7१, पाभो१२ नगरी रहां छां । अवार थांरी जांन आई तरै देषणनै आया छां । जरै वींदरै बाप कह्यौ-एक वात ऊपगाररी छै । थां जिसा पुरष ऊपगारनैं देह धारी छ । तरै राजा कह्यौ--तिका कीसी वात ? तरै राजा विवरा सुधी सर्व वात कही । तरै म्हे दीठो-फैरा लेसी तिणरी बैर होसी नै त्यांरो पिण तमासौ देषणी आवसी। जरै हुकारो भण्यौ। जद सरब षुस्याल होइ 'वींदरी पोसाष कराइ'१४ कांकण-डोग, काजल, महिदी दीधी। प्राभरण पहीर १५, हाथी चढाय'६, 'मोडि बांधाय'१७ चवर ढलतां मुसालारै चांदणे यु करतां तोरण वांद्यौ । सासु भारती, तिलक कीयौ। राजा देष राजी हवौ। जिसी कवरी बेटो छ तिसोहीज वीद पायौ ८ । घोडासु उतर ६ माहे दोढी गया तरै दासी, सहेल्यां दिठौ । तिसै चवरीमै जाय हथलेवो दीयो। जरै रांणी प्रभावती १. ख. मा। २. ख. मनरा चोतीया। ३. ख. सणगार । ४. ख. चालीयौ। ५. ख. प्राभरण। ६. ख. करने । ७. ख. रांदो। ८. ख. में नहीं है । ६. ख. जाय। १०. ख. '_' वींवसु । ११. ख. [-] ख. प्रतिमें चिह्नित अंश अप्राप्त है। १२. ख. अंभो । १३, ख.बेर । १४. '-' ख. वींदरो सरपाव करायो। १५, ख. पहराया। १६. ख. चढाया। १७. -' ख मोड बांध । १८. ख. छ। १६ ख. ऊतरी । Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा चंद-प्रेमलालछोरी वात [ १९३ दीठो । लुगायां दोइ सौ' मांहे उभी सो हला-बधावा गावै छै। त्यांमै उवां' जांण्यौ-चंद राजा जिसो दीसै । लष्यण, रंग, चहिन, निलाड, आष्यां, सरिसो विभनो पडीयो। चंद राजा पिण वडो वहून देषै छै । तिस रांणी सासुनै कह्यौ ! जो सासुजी, वीद तो थाहरौ बैटो दोसै छै । सासु कह्यौ-अबोली रहै, सरीसां देस भरीयो छ । प्रांगलीस ना कहै । तिको हू देषु छु। तिसै फैरा लेतां पहिली मैं जाण्यो-इणनै तौ दगौ हसी, माहरी षबर किसी पडसी ? चुनडी ऊपर तंबोलस्कोर ऊपरा दोहो' लिष्यो अभी नगरी चंद६ राजा, गिर नगरी प्रेमलालछी। 'संजोग-संजोग' परणीया, मेलो दईवर हाथ ॥१ पछे फेरा लेनै जांनीवासै मझन्यौ 'गावतां पाया । कवरी पाछी गई। तिस चांचलै तेडण आदमी आयो । तरै मै कह्यौ-जांनोयानै कहो, मांको साथ चाल जासी, मोनै सीष द्यो। तरै जांनीया [राजी हवा। जरै पारणेतरो सिरपाव वणाव कीयां] ६ वड जाय बैठौ । तिसै सासु-वहु उतांवली सांस भरी वड ऊपरा आइ बैठी नै सबदांसु वड चलायो। अभो नगरी पाय थंभ्यौ । सासु-बहू ऊतांवलि नगरनै चाली। हुं त्यां पहिली उपरवाडै होइ सेज जु रो ज्यु आइ पौढ़यौ । तिस रांणी प्रागै पाइ दे तो राजा सुतो छ, पिण वोद वणीयो दिसे ज्यु रो ज्यु छ ! तरै राणि दौडि सासुनै कयौ-वहुजी ! थे न मांनै था, पिण थांहरो बेटो वींद थो त्युं रो त्यू वैस', कांकण-डोरडा'', मेंधो छै। अब प्रांपांनै दोहरौ छ । तरै माता ऊठी मो कनै आई । तरै मोसु लाल-पाल कर कंठी बांधणनै हाथ घाले । तिसै हु अजाण्यां गलै डोरो बांध्यौ । जरै हुं सुवौ होइ गयो तरै मोने पीजरामै घालि पाला माहै १३ राष्यो। प्राडो तालो दोधौ । कुची बहरै हाथ दोनो । राति पडियां राजा करै, दीहां सुवो करि राषै। अबै वांसिली वात सुणो जांनि मिल विदनै केसरोयो वागो, पाघ, गेहणौ पहरीया' ; मोड बांध्यो। साथे रजपूत दे पोढ़णनै चांचलै गयौ। तरै षोजां सहेल्यां वरज्यौ पिण मोड सुधो ऊंचो मालीयै गयौ । प्रागै कवरी देषि पूछ्यौ-तु प्रेतरूप कुण ? विद १. ख. सो-दोइसौ। २. ख. त्यां माहे । ३ ख. उणां । ४. ख. जी। ५. ख. दूहो। ६. ख. चंदो। ७. ख. देव संजोग । ८. '-' ख. गवावतां प्रायौ। ८. ख. [-] ख. प्रतिमें कोष्ठगत अंश नहीं है । १०. ख. वेस । ११. ख. डोरा। १२. ख. बांधीयौ। १३. ख. मै । १४. ख. पहैरिया। Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ ] राजा चंद-प्रेमलालछोरी वात कह्यो-हं थारो वर छू। कवरी कह्यो-मोनै परण्यौ तिको कठै ? इण कहीयो-मजूर, चाकर राजां प्रागै काम सदा करै'; राजांरै हुकमसु तो कु वस्तुरो धणी हुइ जाय ? तरै कवरी राता नैणं करि सहेल्यां कनासु चांदणीमै पोटली ज्यु बंधायनै पगथीयांसु गडाय दीधो। तिको गुडतो-गुडतो हेठो आय पडोयो। रजपुत ऊभा त्यां जाण्या-क्यु माल री गांठ पाई। जोवे तो वीद राजा छ । तरै रजपूतां पूछीयौ वीद हुई ज्यु कही। तरे अबोल्या छांना जीव ले न्हाठा। तिके जांनमै आया ने सारी विगतवार बात कही। तरै [नगारो दोयां विना डरता जान चढी आपर। नगर गई। कवरी वात राजा-राणीसु कही। इचरज हूवौ । अबै प्रेमलाल कवरी सचीती सुपना वाली वात जाण । वरस १ वीतो, त? तीज आई । तरै सहेल्यां कह्यौ-बाईजी ! आज तो आप पोसाष वणावो, घुस्याली राषौ । श्री परमैसरजी सहु भला करसी। तरै पारतरौ सिरपाव मंगायौ जब दांनी षोली । प्रागै कोर'ज ऊपरा तंबोलरा आषर छ, तिकै कवरी वांच्या प्रभो नगरी चंद राजा, गिर नगरी प्रेमलालछि । ___संजोगे-संजोग व्याह हवौ, पिण मेलो दईवर हाथ ॥ प्रो दूहो वचायौ, हरष पायौ। जांण्यो—म्हारो परण्यो चंद राजा छ । तरै राजा सुबुलाइ कह्यौ, दूहो वचायो । तरै राजा कह्यौ-पुत्री ! इणरो इलाज कासु करां ? कवरी कह्यौ-हजार १० ऽथ १५ असवार साथे द्यो, परची दीरावो । हु तीरथरो नाम ले, अंभो नगरी जाइ चंद राजासु मिलु। पिण पवर ही नही छै, जीवै छै के नही ? युं कहे राजा हजार पांच-सात सेन्या दीधी । अठासु चाली तिका केईक दीनां अंभो नगरी मुकाम कीयो नै कह्यौ-बाई प्रेमलालछि भरतार-विहूंगी वैरागणि छ । तिका के दिनां अंभो नगरी तिरथा करणनै जायै छै। अंभो नगरीमै सासू, वह रांणी छ। त्यांनै दास्यां मेलि पासीस कहाई । तरै दास्यां गई थी। घणो मनुहार कीधी नै जीमणरो कहीयौ जरै पाछौ कहीयौ-चालस्यां जद थांहरै रौटी जोमस्यां; जरै दिन दस अठ रहिस्यां; सांमोसुत करणौ छै । इयु कहि दासीयांन गढ माहै जांवती 'आ वाती'६ कीधी। गांवरा लोकानें राजाजीरा सर्व समाचार पुछीया। 'जरै लोकां'१° कह्यौ-वरस १ (एक) हुवौ, १. ख. करि । २. ख. वस्तरो। ३. ख. प्रायने । ५. ख. विगत वात। ६. ख. कोष्ठगत पाठ ख. प्रतिमें अप्राप्त है। ६. ख. भलौ। ७. ख. बुलाय। ८, ख. कहायो। - ख. '-' ख. में नहीं है। १०. ख. में अप्राप्त है। Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा चंद-प्रेमलालछीरी वात [ १६५ चंद राजारौ' दरसण कीधांन। सासू, वह राज चलावै छै न कहै छैश्रीमहाराजाजी तौ गौसलषांने विराजीया छ। इसी वात सुणनै ऊमराव वेदल थका रहै छ। अब दासी दोय निजरबाज चतुर थी, त्यांने कह्यौ-राज जीवता-मुवारी षबर राषौ । इसो भांति कहिने षबर करावै। तठे १ महिल राजाजीरो पोढणरौ, तिणरै तालौ जडोयो रहै छै । सांझ पड्यां रांणी जायनै तालौ षोले छ । एक दिन कवरीरी दासोयां सहेल्यारै झूलरा साथे गई महिल माहै । और दासीयां तौ ऊरी पाई । ऐं दौय जणी अलादो छीपनैं रही । रांणी मांहे गई। आलौ षोल, नै पीजरो काढि नै राजानै सुवौ कीनौ छ, तिको डोरो षोलने राजा प्रगट कीनौ । दासोयां किवाड माहे सारा ही चिरत दीठा । तरै राजी हुईराजा जीवतो तौ दोठी छ । तिसै रात पाछिली घडी २ रहो तरै रांणी पाछौ सुवौ करि, पीजरा माहै घालि, पाछौ पाला माहै घालि, तालौ देनै नीचो ऊतरी। तरै तिरण पहिलो दासीया उतर नै 'प्रांगणे आ'यनै कह्यौ-म्हे सुवार कुच करस्यां; तिरणसु थे रीसावस्यो सो आज रोटी म्हे थारै जीमस्यां । इतरौ सुणनै सासू, वह राजी हुई नै तयारी रसोई री करणी मांडी। दासीयां 'हसतो हसती' ६ कवरीनै प्रायनें कह्यौ दीठी हकीकत सगली मालुम कोन्ही नै म्है जीमण ठहिरायन पाई छा; आज श्री परमेसरजो मनौरथ सफलौ करसी। तिसै सुवो १ पीजरा माहे घालि, डोरो गलै बांधि सहेली कनै छांनी राषीयौ । तिस जीमणनै दास्यां तेडा पाई। तरै कवरी दासो पचास अथवा साठ साथे ले, सुषपाल बैसि गढमै पाई, मिली। भोजन अरोगी जरै दासी कह्यौ-बाईजी साहिब ! वार-बार अंभो नगरी आपरो पधारणो न होइ नै महिल वीठा नहि, तिणसू महिल देषीजै। जीमणसु देषणो भलो छै। कवरी कह्यौ-कासु महिल देषस्यां ? जरै रांणी कह्यौ-दासो साच कहै छे; महिल देष्या चाहोजे । तरै रांणी साथै होय कवरीनै महिल दिषावै छ। पहिली चतुराईसुपीजरामै सुवौ दासी कनै राषीयो छै। महिल देषतां-देषतां दासी बोली-महारांणो ! रावलो' सुहौर बाईजीनै दिषावो । देषां, किसी एक जलस छ । तरै कवरी दासीन रीस कीना-सुहगररौ कासु देषसी ? ऐ महिल देषै न छै । तर रांणी भोली होइ महिलांरौ तालौ षोल्यौ, मांहे गया । देष तो महल मोटो छै । जालि, गोष घणा छ । रांणी, कवरी तो पालासु निजर टाल, महल १. ख. राजा चंदरौ। २. ख. करावौ। ३. ख. में नहीं है। ४. ख. उतरी। ५. '-' ख. में नहीं है। ६. '-' ख. हसी-हसी । ७. ख. स्यांषपाल । ८. ख. रांवालो। Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९६ ] राजा चंद-प्रेमलालछोरी वात पग ठांभ-ठांभ, वात पुछि-पूछि देष छै । तितरै दासी आलारो तालो पोल पीजरो उरो लीधो, अोर पीजरो घालि दीधो, तालो दीधो । दासी पीजरो ले डेरे गई । लारली दासी बोली -बाईजो ! कचरी ताकीद छै। अठै घणी वार लागो नै पाप फुरमायौ थो, तिको कामरी षसाली' पाइ छ । कवरी कह्यौ-बापजीरी ताकीदसु कासीद अायो दीसै छ। कवरी डेरे भाई, पोसाष करि पीजरा मांहिसु सुवौ काढयौ, डोरो षोल्यौ । चंद राजा हवो । कवरी उठ मुजरो कीयो। चंद राजा बोल्यौ-थे कुण ? इण कह्यौ-हु गिर नगरीमै प्रेमलालछी परणी, तिका छु । थाने पोजराम सुवा कर राष्या था, मैं अकल कर काढया। वांस त्यां रात पडी रांणी पीजरो काढि डोरो षोल तो सुवा तो सुवो छ । रांणी डरती कालजै ऊकती सासुनै जाय कह्यौ—वहूजी ! प्रेमलालछी राजाने ले गई; प्रांपांरो मरण आयौ, वेगी वाहर करो। जरै दिन घडी दोय चढत समो दोन्यु सांवली होय डेरां ऊपर राजारी प्रांष्यां फोडणनै आई। तर दोन्ही नै राजा तीरसु मारी। सुष हुवो। प्रेमलालछी मुदायत रांगी हूई।। राजा चंद रुद्रदेव जमाईनै कहै छै–तिण प्रेमलालछोरी पुत्री थांनै परणाई छै। स्त्रीरा चीरतरो पार नहीं। नेट भरतार रो बुरो चाहे नही; वुरो चाहे तो भलो हुवै नही । मरजासी (णाथी) थे डरो मती, चैनमै रहौ । समझाय राजी कर पाछा ल्याया नै राष्या। इति श्री राजा चंदरी प्रमलालछि-रुद्रदेवरी वार्ता संपूर्ण । +y ++ + + + १. ख. पुस्याली। २. ख. रो। ३. ख. ऊकलती। ४. ख. तरे त्यां। ५. ख. प्रेमलालछी। ६. ख. इति श्री राजा चंदरी प्रेमलालछी-रुद्रदेवरी वात संपूर्णः । संवत् १८३६ रा मती चेत्र वदि १४ चंद्रवासरेः ॥ पंडीतचक्रचुडामणी वा० ॥ श्री श्री श्री ७ श्री कुशलरत्नजी तत् शिष्य पं० श्री श्री अनोपरत्नजी तत् शिष्य मुनि पुस्यालचंद लिपीकृतः ।। श्री गंदवच नगरमध्ये ।। सेवा गिरधरीरी पोथी माहेसु लषीः ।। Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11 परिशिष्ट १ ( क ) ||६० ।। अथ रोसालू कुमारनी वार्ता लिष्यते || : 11 चोप- प्रथमं प्रणमूं श्रीगणेश, विद्यातणो श्राप उपदेश । सालिवाहनपुत्र रोसालू होय, संत-तपते ग्रहीया सोय ॥ १ वहा- बेटा जाया सालिवाहन, धरिया रीसालू नांम । बांभट भट्टनें पूछिया, नवखंड राषे नांम ॥ २ दोनू राजा जुगतिका, दोनू राजा सोज । हरषें दोय सगा हूश्रा, सालिवाहन ने छाजें बेठी मावडी, ग्रासूडां मत पुत्र हुआ सो चलि गया, ऊभी हंसानें सरवर घणा, पुहप घरणा सुमांणसनें मित्र घरणा, कस्तूरीरा गुरण केता, केता नदियांरा वलरणा केता, केता भोज ॥ ३ पेर । मंदिर घेर ॥ ४ श्राप - तरणे राजाना लोक कहे है अत्र महादेव मिल्या परिष्या करे छे । महादेव यो रूपें छै नरां । भूप्रां ॥ ७ हरि हरणां थल करहलां, नउ मय तो air विस मोहा थीयां, ए वीसर से दुरबलके बल रांम है, वाड घेत पाय । जननी सुतकू विष दीए, तो सरण कुणपें जाय ॥ ८ भमरेह । गुरणेह ॥ ५ चित्र | मित्र ॥ ६ कागद में सुगुणारा पालो, जगसूं रहो उदासी । दया रषो धरम अपना तन ओरका एक ज घडी आधी घडी, भी प्राधी को श्रद्ध । जांणे, तो मिले अविनासी ॥ & हर-जन संग मेला वडो, सुकृत होय तो लद्ध ॥ १० चातुरकू चातुर मिले, ललि ललि लागो पाय । rea को प्रोच्चरे, तो मांणिक मेलो जाय ॥ ११ Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८ ] परिशिष्ट १ इहां भोज राजानो बेटी सांमलदे परणी में मेली, चाली नीकल्यो। पछे आगे आगे धारा नगरें मांन कछवाहानी दीकरो धारा परणी, मेली ने चाली नीकल्यो । कुण राजारो लाडलो, के मनरी वात । के घररो वैरागीयो, के दूहन्यो तात ।। १२ नहीं घररो वेरागोमो, नहीं दूहव्यो तात। पेंडो पूछां मुगतिरो, जंपां दीने रात ॥ १३ एक नर दो नारसू, कब ही न चूके काम । सतके पेंडे चालीयें, ए ही मुगतिका ठांम ।। १४ एक नारी ब्रह्मचारी, एक आहारो सदा पुपारी । एक छोड दूसरे जाय, ते नर निश्चें दुषीया थाय । १५ डाकिण-मंत्र अफीण-रस, तसकर ने जूना। काछ उद्राही कामनी, जाए पंच मूत्रा ॥ १६ जांन बिराजी गोहरें, डेला दीया असमान ।। रीसालू सामल वरे, मोटा दोजें दांन ॥ १७ वार्ता- तिहाथी रीसाल चाली वैराट नगरे प्राव्यो । तिहां जवटे रमवा बेठा। रीसालू जीत्यो । वैराटनो राजा हारयो । दहा-हारयो सघलो गांमडो, हारयो घर घर वाद । हारयो माथो रावलो, कीयो रीसालू वाद ॥ १८ वार्ता- इहां रीसालू वराट राजाने जूवटे जीती ने छ महीनानी राजानी बेटी परणी, ते लेइने चाल्यो। हा- छोड्यो सगलो गांमडो, भलो फूलवती वेस। बार वरसरे साहिबे, छोड्यो सघलो देस ॥ १६ वाता- तिहांथो चाली सींधडोइं आव्यो । सींधडो वसे, पण वसतो नहों । एक दाडमनामा दैत्ये सारा राजा-प्रजा षाधा । एक डोकरी राषी। ते राक्षस परदेसी माणस ल्यावे । ते डोकरी तेलमें तली ने माणसने प्रापे, त्यारे ते राक्षस षाय । रीसालू चाली डोकरी पासें श्राव्यो। रीसालुईं डोकरीनें पूछय-ए सेहर ऊजड केम छ ? त्यारे डोकरी कहे-ताहरू पण माथू फिर, जे तूं इहां आव्यो, हवे राक्षस तुनें षाइ जास्ये। त्यारें रीसालूइं कह्य-डोकरी ! ज्यारें माणस नहीं मिले त्यारे तुने नहीं पाई। डोकरो कहे-वोरा ! मुने षास्ये तो स्यूं करूं ? रीसालू कहे-तूं कहे तो मारू । त्यारे डोकरोने छल-भेदें करीने राक्षसने मारचो। Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट १ [ १६६ दूहा- राक्षस रूडां मारीयो, दुष देतो दुनीयांय ! सींधडीई सालिवाहननो, रह्यो रीसालूराय ॥ २० वार्ता- हवे रीसालूई छ महीनानी फूलवती उछेरवाने वास्ते अनेक वन वाव्या । राजा मनवेगें घोडे चडी में जंगलमाथी रोझडीनूं दूध लावो ने पावे। इम करतां बार वरसनी थई। तिण समें हठीयो वणझारो जातिनो रजपूत, वणझारो कसब करतां भाइइं वारयो-तूं क्षित्रीवट करे तो इहां रहे अनें व्यापार करे तो इहाथी नोंकलि । त्यारे हठोयो नोकली ने सोरठ नवलबूं गांम वासो ने तिहां रह्यो। दूहा- सहस प्रांबा सहस प्रांबलो, केइ डोलरीयो जाय । हठीये सेहर वासीयो, नीकी जिहां वनराय ।। २१ वार्ता- तिण समें एक दिन रीसालूई मनमाहिथी नांहनूं मृगनूं बचूं फूलवतीने प्रांणी दी● । राणी साथको गुदरांण करो। त्यारे मृगसूं रांणोने गुदरांण करतां मग मोटो थयो। त्यारें तिहाथी नीकलोने मगलो हठीयानो वाडोना फूल, फल पाइ जाए छे पिण पकडातो नथी । दूहा- माली रावें संचरयो, सांभल हठीया वात । __कोइ गाटेरो मुग्गलो, वाडी चरि चरि जात ।। २२ काला मृग ऊजाडका, फिर फिर पवन भषेय । वाडी हमारी भेलतो, भलकडीयू झालेय ॥ २३ वार्ता- मृगलो हठीयानें कहे छे--मनें स्याने अर्थे घाव करे छ । दूहा- प्रो दीसे प्रांबा अांबली, ओ दीसे दाडिम जाय । बा जायो बेटडो, जो मांणी घर जाय ।। २४ वार्ता- ति वारें हठीओ घोडे चडी तिहां ग्राव्यो । देषे तो वन विचें मेडोयें फूलवतो एकलो बेठी छे । त्यारे हठीयो बोल्यो । दोहा- के तू देवल पूतली, के तू घडी सुनार । किण राजारी कंपरी, किण राजारी नार ।। २५ फूलवतीवाक्यं केड कटारा वंकडा, अंबोडे नव नाग। तिण पुरषांरी गोरडी, पंथीडा मारग लाग ॥ २६ हठीयावाक्यं लागणहारा लागस्ये, दीठडली म दीठ । हइडे टेकण होइ रही, ज्यू कापड चोल मजीठ ॥ २७ Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० ) परिशिष्ट १ फूलवतीवाक्यं हइडू न हलावीइं, नयणां भरी म जोय । इण नयणे जे मूआ, फिरी न पावे कोय ॥ २८ हठीयावाक्यं सज्जण दुज्जण सुध करण, प्रथम लगाडी प्रीत । सुष देय । संसारमें, ए नयनू की रीत ॥ २६ फूलवतीवाक्यं नेन की प्रारत बुरी, पर-मुष लग्ग न जाय । भाग लेवे ओरको, अपनो अंग जलाय ॥ ३० हठीयावाक्यं जीव हमारा तें लोया, पंजर भी तू लेय । तो पर तन्न उवारके, षेर फकीरां देय ॥ ३१ फूलवतीवाक्यं मारेगो रे बप्पडा, मृगां हंडे घाव । सैज हमारी पास करे, तो सिर बाहिर धराव ॥ ३२ हठीयावाक्यं मेरा नाम हे हट्ठीया, मेरे हट्ट सुहाय । तुझस्यू पाल करतडां, सिर जाय तो मर जाय ॥ ३३ फूलवतीवाक्यं सिर जातां जोव जायसे, मुझमां किस्यो लुभाय । हो परदेशी पंथीया, घर कुशले क्युं न जाय ॥ ३४ हठीयावाक्यं एज्युं रीसालू रीसालूप्रो, हु हठोसो लाल चउहांण । राषिल वेला जे चरे, मुडसां एह प्रमाण ॥ ३५ ___फूलवतीवाक्यं नेन से सांन ज करी, हाथ बिछाई सेज । हैं रांणी तू राजवी, दोन राणे रेज ॥ ३६ Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट १ हठी हठीला हट्टीया, कडि बांधी पक्का प्रांबा वोंणये, काचा तें हि तरवार । निवार ।। ३७ वार्ता - हठियो भोग भोगवीनें कहे छे-जो श्रमने सीष द्यो तो ठिकांणे जावां । त्या फूलवती कहे छे [ २०१ दूहा- जावत जीभें क्यूं कहां, रहो तो सांई वाट | नावें तूं ही उघडस्ये, श्रहे ता रथरा हाट ॥। ३८ हावाक्यं जाकी जासूं लगन है, ता ताके मन रांम | रोम-रोमसें रचि रहें, नही काहुसें कांम ॥ ३६ फूलवतीवाक्यं सेज ऊजरी फूलूं जई, इसी ऊजरी रात | एक ऊजरे पीउ विण, सबी जरी होय जात ॥ ४० हठीयो गयो, ति वा पूंठें रीसालू आव्यो । दूहा - पग दीठा पवंगरा, रोसालू दरबार । कोइ वटाऊ वहि गयो, कोइ रीसायो घर नार ॥। ४१ वार्ता - इम कही ग्राघो रीसालू गयो । त्यानें पालेल पंषी हूं ता, ते बोल्या - दूहा - आठ पंषेरू छ बग, नव तीतर दस मोर । रीसालूरा राजमां चोरी कर गयो चोर ॥ ४२ वार्ता - त्यारें रांगो प्रावी ऊभी रही। रांणी देषोनें रोसालू बोल्योदूहा - किणें प्रांबा भेडीया, किणें छांटया बूंबार । किणें कंचना मांणीया, किणें सेज दीनां भार ॥ ४३ पलंगपट्टी ढालीनां, किण ही दीनां भार । रीसालूरा बागमां, कोण फिरया प्रसवार ।। ४४ फूलवतीवाक्यं में मेरा कंचना मांगीया, में सेजें दीन्हा भार । में प्रांबा झाडीया, में यूंक्या बूंबार ॥। ४५ वार्ता - त्यारें रीसालू फूलवतीनें कहे छे - हवे ए पांन चावीनें नाषो । त्यारें षाटलाना पाइया आगें बलषो पड्यो । त्यारें फूलवती बोली -- Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ ] परिशिष्ट १ दूहा- रोसालू रीसालुपा, रोसडीयां मर जाय। प्रांबा पक्का रस चुए, कोइ षुणसें न पाय ।। ४६ रीसालूवाक्यं रीस अमारा लाइ बाप, रीस अमारा नाउं । सपर पक्का अंबला, रजक होय तो षांउं ॥ ४७ वार्ता- त्यारें फूलवती कह-रूठा केम बेठा छो। रीसालू कहे छे--- दूहा- अमृतवेलो वावीओ, मृग्गो चरि चरि जाय । ____ो मृगो मारि सोला करू', दिलरी दाझ मिटाय । ४८ वार्ता- त्यारें रीसालू हठीयानो पग लेई पछवाडे चाली नोकल्यो। ति वारे हठोयो सामो चाल्यो आवे छे ! रीसाल पूछे तूं कुण छ रे ? त्यारे हठीयो कहे-तूं कुण छे ? ओ कहे-हू रोसालू । अो कहेहूं हठीओ छ। रीसालू कहे-क्यां जावे छे ? हठीअो कहे -ताहरे घरे जावू छ् । रोसालू कहे-भंडा, इम नथी जाणतो-जे कोई धणी प्रावस्ये ? त्यारे हठीयो कहे दूहा- रेढा सरवर किम रहे, रेढा रहे न राज। __रेढा त्रीया किम रहे, रेढां विणसे काज ॥ ४६ - वार्ता- रोसालू कहे-तूं छे कोण ? हठीयो कहे-हूं गढ गांगलनो रजपूत रोसालवाक्यं दुहा- गढ गांगलरा राजीया, क्यं चल्यो नहीं राय। रीसालूरी गोरीयां, क्युं मांणी घर जाय ॥ ५० रीसालू कहे–मांटी थाजे। दहा- रीसाल बांरण सनाहीयो, करे रीस करार । छेक मंडी छंडीया, निकस्या प्रारो-पार ॥ ५१ वार्ता- हठीयाने मारी मांसनो पावरो भरी घरे ल्याव्यो, राणी करो स्याकमृग मारी लाव्यो छ । त्यारे ओ मांस रांधी, ऊपरथी घो काढी दोवो कीधो, स्याक कोधो। रांणी कहे-राजा, जिमो। राजा कहे-रांणी पहिला तुमें जिमो। त्यारे राणी पहिला षावा बेठी । षातां राजा कहे छ– दूहा- हाय पोउ मुषमें पोऊ, दीवडा बले पीयाय । जीवतडां रस मांगीयो, मूनां न लोधो साय ॥ ५२ Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट १ । २०३ फूलवतीवाक्यं तें प्राण्यो में भषीयो, मृगां हंदा माय । क्रपी मोरो पिउ मारीयो, मरू कटारी षाय ॥ ५३ वार्ता- त्यारे रीसालू बेठी मेलीने चाली नीसरयो । त्यारे फूलवती कहे-- मुझने मारीने जाय। दूहा- साद करी करी हूँ थकी, चल चल थक्का पाव । रीसालू ऊभो न रहे, वेरी वाल्यो दाव ॥ ५४ वार्ता- रीसालू तो चाली नीसरयो। फूलवती प्रावी ठिकाणे बेठी । हवे रीसालो आगे चाल्यो जाए छ । एतले एक जोगी प्रागें मिल्यो। जोगीने देषी रीसालू झाड ऊपरें चडी बेठो-देणूं, जोगी क्या जावे छे ? त्यारे योगीइं तलाव ऊपरें नाही साथलमेंथी एक जोगणी काढी। ते देषी रीसाल अपना मनमें कहे। दहा- योगी योगी योगीया, प्रायसडा सधीर । ऊंची योगरण पातली, काढो साथल चीर ॥ ५५ , वार्ता- एहवू रीसालूइं अपना मनमें जांणी तमासो देष छ । ओ जोगणीइं जोगीना कह्याथी षावू को● । षावू जमी जोगी सूतो। त्यारे जोगणीइं प्रापणी झांघ माहेथी एक जोगी बालक जंगनाथ नांमें काढयो। पछे भोग भोगवी प्रो पुरुषनें पाछो साथल में घाली में अपना मोटा जोगीने जगाड्यो । ऊठो स्वामी ! हवे सारी पठे जमो। जोगी कहे-जोगणी ! तो सरषी कोइ सती नहीं । बाजो संकेली हाली नीसरयो। त्यारे रीसालू जइ प्राडो फिरयो । चालो सामीजी ! आज बाबानो भंडारो छ । योगोनें तेडी फूलवतीने पासें लाव्यो। रीसालू फूलवतीनें कहे-लाडूया करो। सांमीनें जमाडीइं फूलवतीइं लाडूया करया। थाल भरी सांमी पासें लाडू लाव्यो । सांमी कहे-बाबा ! एता लाड क्या करूं । में तो अकेला छ; में पण लाडू षाऊं, तमे पण लाडू षायो। रीसालू कहे-तमे षानो अनें तमारा बे जीव भूषे मरे, ते पण अमने धरम नहीं। योगी कहे-में तो एकला ह । रीसालू कहे-जोगणी काढो, नही तर मायूं वाढतूं । त्यारें मरणभये जोगणी काढी। वली जोगणोपासें भयें करी बीजो बालो जोगी कढाव्यो। योगी बीजा जोगीने देषी तमासो पाम्यो। बेइ जोगी माहो-मांहें लड्या। यो कहे, जोगण माहरो, प्रो कहे माहरो । त्यारें रीसालू कहे-लडो मां । रीसालू जोगणीनें कहे -तुने कुंण प्यारो छे ? जोगणो कहे-नाहनो जोगी प्यारो। तेहनें जोगणी देइ सीष दीधी । बूढो जोगी कहवा लागो-तें तो भंडो काम करचो, हवे Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ ] परिशिष्ट १ माहरी चाकरी कुण करस्ये ? त्यारे रीसालूइं फूलवतीनें जोगीने दोधी । फूलवती कहे-हठीयाने सेवीने हवे जोगी कोइ सेवू नहीं। त्यारे फूलवती गोष थकी पडी, श्रापघात करी मूई । त्यारे जोगी महादेव थइ भो रह्यो। योगी कहेरीसाल, तूं क्या जाणता हे ? योगी कहे-हमारे घरमें पण ए ल हे तो आदमीका क्या आसरा ? योगी कहे छे--- दहा- पाणी जग सघलो पीए, किहां इक निरमल नीर । सर देषी सारस भमे, तू कां प्राणे अधीर ॥ ५६ वार्ता- त्यारें रीसालू जोगीनें कहे-में नाहना थकां पाली हती-रोवालागो। रोई में रीसालू कहे छदूहा- सज्जन गया गुण रह्या, गुण बी चल्लणहार। सूकण लग्गी बेलडी, गया ते सींचणहार ॥ ५७ वीजलीयां चमकीयां, वादलीयां घनघोर । हठीलो परदेसी उठि चले, ज्यू वटाऊ ढो(ठो)र ॥ ५८ वार्ता- जोगी कहे--तूं कहे तो जीवती करूं। रीसालू कहे-हवे न षपे । त्यारे जोगी कहे-हवे इहांथी जा, बीजी स्त्रीनी षबर कर । त्यारे रीसालू बीजी स्त्रीनी षबर लेवाने चाल्यो। क्यां गयो-जिहां धारानगर छ, तिहां सरोवरें ऊभो रह्यो। धारावाक्यं दूहा- सरोवर धोयां धोतीयां, आडण सुंथण पग्ग। नख कर भरयो घडलीयो, तो हि न बोल्यो ठग्ग ॥ ५६ ते तलावनें विर्षे रोसालूनी स्त्री छे । ते पाणी भरवा अावी छ। रीसालूनें रूपवंत देषी, देषवा मोही। धारा नामें स्त्री रीसालूइं अोलषी-ए माहरी स्त्री, पण धाराई अोलष्यो नहीं। त्यारे ए दुहो कह्यो। मोरे लष्यो ते हो सांभली रीसालू बोल्योदुहा- पाल पीयारी जल नवो, हीडां ज झीलेवा। पण तां गन लभो पांणीयां, बी आंसु बुझ्झेवा ॥ ६० धारावाक्यं प्राछो कापड चोल रंग, मांहिसु चंगो डील । विरण फूटे षीषे नहीं, तूं झलहलयोतो झील ॥ ६१ रीसालूवाक्यं . भूमि पीयारी भोगणो, तूं को राजाहंदी धीव । तुझ कारण मुझ मारस्ये, कुण छोडावे जीव ।। ६२ Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट १ [ २०५ देसडला परदेसडा, नहीं झीलणरो जोष । तुझ कारण मुझ मारस्ये, तो मूग्रां न पांमूं मोष ।। ६३ धारावाक्यं अगर चंदन करी एकठा, चोहटे षडकावू चे (बे) । मुझ कारण तुझ मारस्ये, बलसूं प्रापण बे ॥ ६४ वार्ता- रीसालू कहे-तूं कोण छे ? कन्या कहे-हूं राजा मांन कच्छवाहानी दीकरी छ । रीसालू कहे...तूं किहां परणी छे ? कन्या कहे-सालिवाहननो दीकरो रोसाल छे, तेहनें परणावी छ । रीसालू कहे—ताहरो धणो मुझ सरिषो छ ? त्यारें कन्या कहे-रीसालू तो गहिलो सरिषो छ, बाहिर फिरतो फिरे छ, तमे तो महारूपवंत छो, लक्षणवंत छो । त्यारे रीसाल कहेदूहा- अवगुणगारी गोरडी, तिको अवगुण भाषत । आप पुरु[ष] नंद्या करे, पर पुरुषां वादंत ।। ६५ वार्ता- रीसालू कहे तुमें जानो, सांहमी वाडीमें जई बेसो, अमे तिहां प्रावीई छई । ते धारा कंन्या तो वाडीइं जइ बेठी अनें रीसालू तिहांथी राजाने जइ मिल्यो । राजा घुस्याल थयो। दरबारमें षबर पडी-जमाइ अाव्या। हवे धारा कंन्याने ढूंढवा मांडी। कन्या किहांइ दीसे नहीं । रीसालू कहे-स्यूं जोरो छो ? चाकर कहे-कन्या जोईई छोइं । त्यारे रीसालू कहे-में वाडीमें दीठी छ। तिहांथी सषी तेडी प्रावी। राति पडी त्यारे सिणगार सजावी, सषो लेई रीसालना मोहलमें गई। तिहां कंन्याने मेली सषी जाती रहो । रीसालई जोयंए स्त्री केहवीक छ ? त्यारे ओरडानी सांकल देई मांहे सूतो । स्त्री बाहिर ऊभी रही । त्यारें धारा बोलीदुहा- के मनो के मारीयो, के झंडीयो एं मार । हंजा हंदी गोरडी, ऊभी अंगण बार ।। ६६ रीसालवाक्यं नवि मयो नवि मारीयो, नवी झडीओ ऐं मार । हंजा हंदी गोरडी, गई बग्गां घरि बार ।। ६७ धारावाक्यं रेढा सरवर न छोडीइं, रेढां जावे राज । रेढी त्रिया किम रहे, रेढां विरणसे काज ।। ६८ Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ ] परिशिष्ट १ हंज सरोवर हज पीए, बगा छीलर पीयंत । बग्गां केतो पासरो, हंजा सरता कंत ॥ ६६ वार्ता- रीसालू बोल्यो नहीं। त्यारे धारा स्त्री तिहाथी चाली । मेडी थकी ऊतरता झांझर वाग्गे । त्यारे रीसालूइं जांण्य-देषू किहां जाए छे ? कन्या चाली थकी कुमतीया सोनारने घरें गई । कुमतीयो सोनार घरमें सूतो छ । तिहां सोनारनो बाप सुतो छे। तिहां जई धारा स्यू कहे छदूहा- तू बी चूइ टबूकडे, भींजे नवसर हार । चीर पटो(ढो)ला ढह पडे, मूरषरे दरबार ।। ७० सोनीनो बाप कहे छदूहा- राजा रूठो स्यू करे, लीये लाष बे चार । ऊठो पुत्र सुलष्षणा, माणिक भोंजे बार ॥ ७१ वार्ता- इम कही स्त्रीने मांहिं लीधी । भोगवतां निद्रामें प्रभात होइ गयो । दूहा- प्रह फूटो प्रगडो भयो, धूप्रो चलो रें। ऊठ कुमतीया अनुमति, घे जिम जाबू घरें ।। ७२ सोनार कहे छेपाय पहिरी चापडी, ले बेंडो तरवार ।। हो राजारो अोलगू, चलो जा दरदार ॥ ७३ वार्ता- वेस करी चाली त्यारें रोसाल बोल्योदुहा- पावडीयां चटकालीयां, क. रलक्या केस । रीसालूरी गोरीयां, किणे फिराव्या वेस ।। ७४ कन्यावाक्यं वीरां कांइ वरांसीयो, साव सारी पांमू प्रां । उंट विछटा रावला, अमें नासेटु हूनां ॥ ७५ रीसालूवाक्यं रातें करहा न छू टोइं, दोहें तारा न होय । फिठ गमार तुं गोरडी, वर किम वीरा होय ॥ ७६ कन्यावाक्यं काठो तोडातां जरणे, झोरां च्यारे दंत। हूं राजारो अोलगू, तू किणांरो कंत ॥ ७७ Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट १ [ २०७ रोसालूवाक्यं नासा सोहे मोतीयां, झाल्यां कान झबकंत । नहीं राजारो ओलगू, तूं मोरी अरधंग ॥ ७८ वार्ता- त्यारे रोसालूई माथानी पाघडी ऊतारी । त्यारें रांड चावी थई । रोसालू कहे—साचूं बोल, रातें किहां हती ? कन्या कहे दूहा- पाघडीयां पंचा सकल, कटारें बहु चित्र। जे तू राजा षांतस्यों, देष हमारो मित्र ॥ ७६ वार्ता- पछे रीसालूइं मेली दोधी, तिहांथी ऊठी चाल्यो। . दूहा- रीसालू रीसावीग्रो, चडी चलीमो राव । राजा प्राडो प्रावीयो, खून ज पलें लाव ॥८० वार्ता- त्यारें रीसालनो सुसरो कहे-स्या माटे जानो छो ? रीसाल कहेस्त्री धीज दीए तो रहां । त्यारे सुसरो कहे-तुमें कहो ते धोज दीयां। रीसालू कहे-बे घड़ी ध्यांने बेसं अने स्त्री माथाथी पांणी नांमे, नाके सुद्ध रेलो ऊतरे ह वर अनें ए स्त्री । त्यारे सुसरे वात मांनी धीज करवा बेठा । दूहा- पासण वाली बेठो रहूं, पांणी नेणा धार । ___ इस्त्रीनां एतो गुनो, बोजे पुन अपार ॥८१ कन्या प्रावी सोवन झारी हाथ करि, धाराई करी धार । तां सोनारो आवीयो, षनी कीयो बूषार ॥ ८२ नेण चकी निजर फेरवी, पाणी पूंठां धार । रीसालू बांणे दई, सिर काटयो सोनार ॥ ८३ ऊठी ने ऊभो थयो, मांने केहो दोस। पापी पा जायसे, माया लीजें षोस ॥ ८४ मोटाथी मोटा थीइं, मोटा घोटा न होय । नांढा मोटाने अडे, हाल तिणारा होय ॥८५ धारवंती ढली करी, चंचल चडीयो राय। सांमलदेरो साहिबो, उमंगीयो घरि जाय ॥८६ वार्ता- तिहाथी चाली भोज राजारे गांम आव्यो। तलाव ऊपरें देषे तो सांमलदे पोतानी स्त्री नाहे छ । तिहां पांच सात सषी पाडी थई ऊभी छे । तिहां Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ ] परिशिष्ट १ रीसालू पूछे-जे ए कुण छे ? दासी कहे-राजा भोजनी बेटो छे। त्यारे रीसालूइं पावरा मांहिथी चारों तरफ सोना मोहरू नांषी। दासीउं लेवा गइ । रीसाल घोडो लेइ जइ सांमलदेने माथें राष्यो। सांमलदे लाजनी मारी पाणी मांहें बेसी रही । दासी रीसालूनें कहे रे भाइ ! दूरो रहे, ए राजानी बेटी छे; राजा जांणस्ये तो तुंने मारस्य । दूहा- बांहडीये जल सजल, कलियल केस वलाय । दुवल थास्यो गोरडी, ऊंची करतां बांय ।। ८७ वार्ता-ति वारें सांमलदेइं हाथ ऊंचो कीधो त्यारे रीसाल माई पांणीमां पड्यो । त्यारे सांमलदे बाहिर प्रावी, लूगडां पहरी अनें दासीनें कहे--दासी, यूं पुरुषने बाहिर काढो, मरी जास्ये । त्यारे दासीइं काढयो । राजा सचेत थयो । त्यारे परिक्षा हेते राणीनें कहे दुहा- सरवर पाव पषालती, पावलीया घस जाम । जिण राजारे (न)ही गोरडी, तिणने रेण किम विहाय ॥ ८८ कन्यावाक्यं पाणी पी ने वाटथी, तुं मुंकइ सम तुल्य । जिण राजारी गोरडी, तिणरी पेंनी केरो मूल ॥ ८६ वार्ता- त्यारे रीसालू कहे--एक बार मुझस्यूं सुष भोगवो। त्यारें कन्या कहे- मारयो जाइस । रोसालू कहे-माहरू माy फिरे छ, मुनें तो कांइ दोसतूं नथी । त्यारे कंन्या कहे दूहा- माथू फिर तो मारग थी प्रो, नहीं ऊभेरो जोग। जिण पुरुषनें में वरी, तिरणने भरस्यां भोग ॥ ६० रीसालूवाक्यं यो दीसे प्रांबा प्रांबली, प्रो दोसे दाडिम द्राष । ए सूडातणां सटू [क] डा, एकेला विचे वाट ॥ ६१ सांमलदेवाक्यं ए नहीं प्रांबा प्रांबली, नहीं दाडिम नहिं द्वाष । नहीं सूडातणा सटूकडा, तारा माथा विचे वाट ॥ ६२ रीसालूवाक्यं ऊभा थाए तो अमी झरे, धरती न झल्ले भार। Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट १ सांमदेवाक्यं तु परदेसी पंथीया, मरतां न लागे वार ॥ ६३ रीसालुवाक्यं साप ज बाधे सह मरे, वींछी चटपट होय । स्त्री दीठे पुरुष ज मरे, तो कुलमां न जीवे कोय ॥ ६४ वार्ता - त्या कन्या मार्ग लेइ सषी साथें चाली ने घरें श्रावी । त्यारें सालूई कन्याने दृढ जांणी, राजा पासें ग्राव्यो । राजाइ जमाइ ग्राव्यो जांण मेडीई ऊतारयो । सांमलदे धणी पासें गई । रीसालू कमाड देइ बेठो । कंन्या कहे - ए स्यूं छे ? रीसालू कहे - तुमें एहवां रूपालां एतला दिन किम रह्या हस्यो ? ति वास्ते काचूं माटीनूं कोडीयूं पांणी मांहें चारे तरफ वाट करी, पोतानी मेलें दीवो थाए तो तूं सती । त्यारें सांमलदे कहे – हूं धूं धीज नहीं करूं, राजांननी सभा मांहें धीज करसूं । त्यारें प्रभाते राजाननी सभामां प्रावी तिम ज कीधूं । सांमलदे कहे - माहरे ए धणी होय तो दीवो थाजो | त्यारें दीपक थयो । हवे रांणी कहे- तूं समषा, तूं साचो तो प्रापणें प्रीत, नहीं तो आज थी [टू]को छे । त्यारें राजा [नी, ती] पेलाई तो दीवो न थयो । त्यारें सभा हसीजेरीसालू षोटो छे । रीसालू कहे छे - हू किहांई चूको तो नथी पण एतलो थयो छे दूहा - रोसालू षोटो थयो, दीवे ज्योति न होय । राणी रूप नीहालीयो, कलंक ज लगो मोय ॥ ६५ वार्ता - इम कहतां दीवो थयो । सत्यवादी पणाथो वली रीसालू कहे छेदूहा - फूलवती हठीयो ग्रह्यो, धारा ग्रह्यो सोनार । सील सांगलदे पालीयो, राजा भोज जुहार ॥ ९६ वार्ता - ति वारें रातें सजाई भेलां थयां । दूहा - पावल ऊपल घूघरा, हीयडा ऊपर हार । गोरी ऊपर साहिबो, दो कलियनको भार ॥ ६७ [ २०६ वार्ता - तिहां रीसालू छ महिना रही पछें आप सेहर आवे छे। सेहर जेतले कोस दस रह्यो तेतलें रातें तिहां रह्या । रातें वारा फिरतां, चोकींइं चोकी करतां रांणीनें साप डस्यो । रांणी मूई । सवारे पांणीनी भारी भरी रीसालू रांणीनें जगावे तो रांणी मूई दीठी । त्यारें रीसालूई पेट नांषवा मांडी । हवे महादेवने पार्वती कहे छे Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० ] परिशिष्ट १ दूहा- रोसाल रुदन करे, प्रांसूहारो धार । वेगो जाइ महेस तूं मरस्ये राय - कुमार ॥ ६८ वार्ता-तिहां महादेव पाव्या । दूहा- अमी छडक्का नांष कर, कंब झडक्का लाय । सांमलदे सजीव कर, रीसालुं रि जाय ॥ ६६ वार्ता- हवे तिहांथी चाली ने आपण नगरें प्राव्यो। बापने वधाई देई । सालिवाहन बेटाने दुबै रोइ अांधलो थयो हतो, ते हरषी ने ऊठयो, बार सां मायूँ फूढूं, लोही नीकल्यूं । सालिवाहन देषतो थयो। दूहा- माथो लागो बार सांषस्यू, चष बिहू हुआ सुचंग। रीसालू सालिवाहन मिल्यो, दीप्रोग्यायो दडंग ॥१०० इति श्रीरीसालूकुमरनो वार्ता संपूर्ण ॥ संवत १८६० ना कात्तिक विद ८ बुद्ध संपूर्ण ॥ लिखितं मुनी गुलालकुसल ॥ श्रीमानकूए ॥ Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट १ (ख) ।। भ्रष रीसालूरा दूहा लिषते ॥ धिय बे ॥ २ जागंत बे । सालवाहन नलवाहणरा, श्रीपुर नगररा राव बे। पुतां काज ज सेवीया, साधां हंदा पाव बे ॥ १ पींडत पुछणहं चली, थाल भरे नल चावलां । लीयो कटोरो घीव बे, मारे पुत्रके केसर कहै कस्तुरीयां, सुती के सोनां हांदी थालीयां भीत्र वजी के बाहिर बे ।। ३ हड हड दे मुडी हसी, नाई मेरे दाइ बे । एक साल प्रावीयो, जासी सोस कटाय बे ।। ४ हड हड दे मुडी हसी, नाई मेरे दाई बे । एक रोसालु श्रावीयौ, जासी सउ जलाय बे ।। ५ काला हरण उजाडरा, सरवर पांन भड़ंत बे । 1 1 ॥ ६ हठीया पतसा हठ म कर, हठ हठ रमो सिकार । ... -areas जे देषं तुं रूंबडा, तास तथा फल जाय बे । बापे ज 93. है है लछवं... " ... ॥ ६ फेरा फीरे फीरंदड, साह फिरं के चोर बें । के तुं है मैहल [ल ] छवंती गोरीयां, तम कीस हांदी नार । .. - पाव बे ॥ १० " है हैं लछवंती गोरीयां, तेरा कु 1 ... ॥ ७ ... 'बे ॥ ८ 1 .., एक प्रेम चषाय बे ।। ११ 1 "सोर, भुलां मारग बताय बे ॥ १२ ... """ ***, ...विच कर डंडडी, पंथी एथ बैसंत बे ।। १३ Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ ] परिशिष्ट १ (ख) मारचौ मारचौ रे बा" 800 मे हवा में, किरण ऐ " राजा हंदी गौरीयां, किस हं ...ल साव बे ।। १४ *** *** ...सुपने श्राव बे ॥ १५ 1 "सार जायै तौ जाय वे ।। १६ 1 ॥ १७ ...वा घर जाइ बै । तो केल करांतडा, सिर जाय तो जाय बे ॥ १८ ......, मे ई सींच्या प्रजोर रूष बे । सालू हांदी गौरडी, रीसालुरा दर [ बार ] बे ।। १६ मेरा मला भांगीया, कीरण भंगीया ए बार I रीसालुरा वागमे, रीसालु असवार बे ॥। २० मैं तेरा माला भंगीया, मैं बुंदीया ए बार बे । रीसालुरा वागमै रीसालु असवार बे ।। २१ सड सड सुडया चषिया, मारचा मोर चकोर बे । रोसालु हंदे गौषडे, चोरी करी गया चोर बे ॥ २२ दस सुवा दस सुवटा, नव तीतर दोइ मोर बे । रोसालु हंदे गौषडे, चोर करी गया चोर बे ॥ २३ कीरण मेरा माला भंगीया, कोण धुंदीया नबार बे । सालरा मैहलमै, कीरण छांटीया षंषार बे ॥ २४ हाथ प्रीउ मुष प्रीउ, प्रिउ दीवलै जलाई बे जीवतडां जुग मांणीयौ,' 'न लाभ साव बे ।। २५ थे दीघा म्है भष्यौ, हरणों के साव बे । जणुं हवा मारीया, मरू कटारयां घाव बे ।। २६ हरीयो होजे वालमा, होज्यौ दाडम दाष बें । मोनोगुणीरे कारणे, ( थांरे) डंक बसाया काग बे ॥ २७ काला मुहरा कागला, उठ परे रोजाई बे । मेरा प्रीउरी पांसली, (मेरा) मुह प्रागै म बाइ बे ||२८ ....... जोगी जोगीणा, श्राव षडो वडं तीर । डीघी जोगण बतली, (ते) काढी साथल चीर बे ॥ २६ Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट १ (ख) [ २१३ जोगीया पर-भोगीया, ध्रिग जमारौ तोय वे। ऐंठा परबत सेझमै, मैं दोठा सामोई बे ॥ ३० रोसालु रीसालुवा, रीसडीयां मर जाय बे। मैं ई पडु इस गौषसु, मेरी देह जलाइ बे।। ३१ पंथी ए सुघड धोइया, झगो पछेवड पग बे। नषस्युं घुडल्यौ मै भरचौ, प्रेम न बोल्या वुग बे ।। ३२ भुम पराई भोगणे, (तं) राजा हांदी धीय बे। तो कारण मो मारज, कुंण उगारे जीय बे॥ ३३ भुम पराई नै परमंडली, नही बोलणका संग बे। तो कारण मो मारिज, मुयां न पाऊ आग बे ।। ३४ चंदरण-काटे चह रच करू ज अमर नांव बे। मो कारण तो मारिजै, (तो) बलु पंथी गल लग बे ।। ३५ कड कड वाहुं काकरा, लागई लाल किंवाड बे। के मुया के मारीया, के चंपीया पाहार बे ॥ ३६ रोसालु हंदी गोरडी, उभी भीजं बार बे। न मुया न मारोया, न चंपीया आहार बे।। ३७ तुं राजा हंदी गौरडी, (क्युं उभी) वागां हंदै बार बे। (न मुया न मारीया, न चंपीया प्राहार बे) लंबा पतला कुंण सा, (तेरै) गया गिलोला मार बे।। ३८ पटुवा महता गांवरा, न कर हमारी तात बे। ले जाउली राउलै, षुटसो मारे हाथ बे॥ ३६ रूपा सोनानी रूप रंज, मोती अधिक वरणाव । उठो सोनी पातला, उपर मेरो मेह ।। ४० एक दीयां तौ दोय दोयां, दोय देस्यां तो च्यार बे॥ ४१ पोह फाटो पगडो हुवौ, धुवो धवलहरांह । उठ कमतीया मत दे, (प्रब) क्युक जांह घरांह ।। ४२ पैहर हमारा लुघडा, पांचे डाब प्र हथियार ।। चोहटै नोसर मचकती, कुंण कहेसी घर नारी ।। ४३ चांषडीयां चटका घणा, कड्यां रूलांता केस । मां मरदांरी गोरडी, (थन) किणे कराय वेस ॥ ४४ भोले भुलौ रे वालंभा, नैरण तणे उरणीहार । रात ज करहा [उछरे, ज्यांरा म्हे ऐ वालंभ ।। ४५ Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४] परिशिष्ट १ (ख) रात ज करहा न उछरे, दोहा न तारा होई । ......, वर क्युवीरा होई ॥ ४६ सोनी हंदा दीकरा, अवसर न लो...... उपर चरु चढावीयो, धड दाबीयो पयाल ॥ ४७ सीर अमार अमो झर, पगमे ........ पयाल । सोनो लेसुलोडीयो, अब कहा करेलो राव ॥ ४८ नारू तोषा लोयणां, उर चंगी नैणांह । धरा तुट धरती गई, कोइ नर चढोया नैाह ।। ४६ रोसालु रोसालुवा, ...."मरीयां बहु चित। तुं राजारो बुटीयो, जोइ हम [क]रो मीत ॥ ५० सरवर पाय पषा[लता]"पाइल कोस झाई । जीण पुरषरी गोरडी, जीण क्युं रेण विहाय ॥ ५१ ... ......, मो तो किसो ज तोल । हुँ जिण पुरषरी गोरडो, ..."राषौ पाइ मुल बे ।। ५२ पाइ मुका.. .. ... ... । जीगरा मुहडा प्रागै, तो सरी... .... || ५३ ... ......"तो प्रातम लोई। मो सरीषा दोय... ...... ॥५४ सराहीये टुक दंती, षड.. ......... ई॥ ५५ कांई योवन मैंमतीयां, कांई जोव... "। ... ... .....", ......चड़कातां बाइ ।। ५६ नां जोवन मैंमतीयों, ... ... ... । .... ... ......, .....", करतां बांह ।। ५७ प्रवे प्रांबा उवे प्रा", ... "नव मोर । उहां वीच कर डंडडो, पंथी उवे हो चोर ।। ५८ जल ही उढ ..."हरण, जल सोहै बीर बे। जो तुं हुवै रोसालुवा, पंथी प्रांब पधार ब॥ ५६ फूलमती हठीय धरी, धारू धरी सोनार । संबलदे सत राषीयो, राजा भोज विचार ।। मेगलसी महता प्राव घरे, देउ गला रो हार ॥६० ॥ इति श्रीचंदकुंधर रीसालुरा दूहा संपूर्ण ॥ Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७-५५ परिशिष्ट २ (क) "बात बगसीरांमजी प्रोहित हीरांकी" पद्यानुक्रमणिका दोहा--अनुक्रम क्रमाङ्क पृष्ठाङ्क पद्याङ्क ! क्र० पृ० ५० २६ प्राभूषण भमकत ऊठी, ४-२६ १ अठ निवाई उपरें, २७ प्रारंभ उछव गवर, १६-१३२ २ प्रतबल चंचल सबल अति, १७-१३६ २८ पालोजो छिब अंगमैं, १६-१५४ ३ अतरें अदभुत प्राबियो, ६-७१ ४ अपछरमैं और न यसी, ४२-२६५ ५ अब झरोष ऊतरयौ, २७-२२७ २६ इण विध सूरज प्राथयो, २१-१७० ६ अभैरांम होरां प्रवर, ४३-३११ ७ अभैरांम हीरां अवर, ४४-३१६ ८ अरज करत हीरां अधिक, २५-२१५ ३० उण गिरवर 4 प्रायके, ८.६२ ९ अरज करूं चालो अबै, २३-१६१ ३१ उण पुल कन्या अवतरी, २-१३ १० अरज करूं छू प्रापसु, ४६-३४४ ३२ उदयापुर निकसी गवर, १५-१२५ ११ अरज लिषी छै बालिमां, ३४-२५३ ३३ उदयापुर पति ईदसो, १२-६२ १२ प्ररथ निसा पाई अली, २३-१६० १३ प्रवर त्रिया मिल येकठो, ४२-३०२ १४ असबारी छब अधिक, १७-१३८ ३४ ऊठ चाल्यौ घर प्रांगण, ४७-३५८ १५ असवारी हद वोपियो २४.१६५ ३५ ऊडधन अंबर छबि अधिक, ४-२३ ३६ ऊतर पायौ प्रांगणे, ४५-३४१ ३७ अदयापुर चढियो अवस, १०-१२ १६ प्राज भलाई प्राबिया, २४-२०५ ३८ ऊदयापुर राजें ईसो, २-१० १७ आप जोड देष्यो अब, १६-१५३ ३९ ऊदयपुर निकसी गवर, ३५-२५६ १८ पाप तणी प्राधीनता, ४६-३६६ ४० ऊभी सनमुष प्रायक, २५-२१० १६ अाप नहीं जो प्रावस्यौ, २०-१६६ २० पाप नहीं जो प्रावस्यौ, २०-१६५ २१ प्राप पधारीज अब, ४४-३२६ ४१ ऐक ऐकतै पागली, १०-७६ २२ पाप बडा छौ ईसर, ४८-३७७ ४२ ऐ धुलो छिब सय प्रत, १६-१५२ २३ श्राप बिना होये न असी, ४०-२७६ २४ प्राभूषण प्रारंभयो, २२-१७३ २५ प्राभूषण करस्यां अवस, १३-६४ ! ४३ अंक छोड़ प्रोहित उठ्यो, २६-२१९ पा Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ ] परिशिष्ट २ क्र० क्रमाङ्क पृष्ठाङ्क पद्याङ्क । पृ० प० ७४ कामल भुज प्रणवट किनक,२२-१८२ ७५ कामातुर होरां कहै, ६-४१ ४४ प्रांनन सषियांको अवर, १५-१२४ ७६ किनक मुद्रिका बज्रकण, २२-१८४ ४५ प्रांबा पोहो रत छबि अधिक,४२-२६९ ७७ कुच ऊपजे काची कली, ३-१६ ७८ केसर अग्न कपूरको, ४३.३१० क ७६ केसर होद भराय कर, ४३-३०३ ८० केहर बतलायो कना, ६-६८ ४६ क्रोध कर राणौ कह्यौ, ३१-२३८ ८१ केहर येक कराल, ९.६६ ४७ कए बडारण केसरी, ४४-३२० ८२ कोमल तन पर जोर कर, ४६-३४६ ४० कटंक बिकट घण थट कियां,३२-२४५ ८३ कोयल सुर मिल नायका, १५-१२६ ८४ कंज कंठ वट किनक, २२.१७६ ४६ कमर कटारी असी हथा, २४-१६६ ५० कर गमण तब केसरी, ४५-३३५ ५५ कंज प्रफुलत सोभ कर, ४२-२६८ ५१ कर जोड्या राधाकृष्ण, २०-१५७ ५२ कर जोडी सुभटां कह्यौ, ३१-२४३ ५३ कर जोडी हीरां कहैत, २६-२२१ ८६ गड गड बडी गुलाबको, ४५-३३१ ५४ कर जोडे येकण कह्यौ, १०-७३ ८७ गहर प्रजंक सुगंध प्रति, २४-२०६ ५५ करणफूल मोती कनक, २२-१७७ ८८ मैदा छटक गुलाबका, ४६-३५१ ५६ कर पकडी इम कहत है, ४६-३४२ ८६ गोटत गेंद गुलाबको, ४५-३३२ ५७ कर फैटो तजि कमरको, ४७-३६६ ५८ कर हीरा डोली करग, ४३-३०५ ५६ कर हुंता पार्छ करे, १८-१४० ६० करि गमरण अब केसरी, १८-१४५ ९० घणहर जल बरषत घुरत, ६-४६ ६१ करो षमो हीरा कहै, ४८-३७४ ६१ घणे परकार हीरां अठ, ७-५३ ६२ कला प्रकासत दीपकी, . ४६-३८२ ६३ कह्यो प्रापको धायकू, ६४ को बडारण केसरी, ४५-३४० ६५ कह दीजे तु केसरी, २०-१६७ ६२ चकोर चाहे चंद, २३-१६२ ६६ कहियो हीरां इम कथन, ४५.३३६ ६३ चत्र मास नीला चिरत, ४१-२८६ ६७ कहु ता दीनो कुरब, ४६-३८३ ६४ चमकण लागी चंद्रिका, ६-५१ ६८ कहूँ छंद चंद्रायेणा, ४६-३६२ ६५ चमकत बीज अचाणचक, ६-४७ ६६ कहैत बडारण केसरी, १६-१५६ ९६ चले प्रोहत नाव चढ़ि, ३१-२४० ७० कहै दीज्ये तु केसरी, ४५-३३४ ६७ चववह बरस अधिक चित, ४-२१ ७१ कहै बडारण केसरी, ४५-३३६ १८ चहुँ तरफां डगर प्रचल, १०-७७ ७२ कहै बडारण केसरी, ४६-३५२ ___EE चहवांण चढे चापड़े, ४०.२८१ ७३ काई नाव क जातिय्या, १८-१४६ । १०० चातुर बोल्यो मुष बचन २५-२०७ Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र० प परिशिष्ट २ (क) [ २१७ क्रमाङ्क पृष्ठाङ्क पद्याङ्क पृ० प० १०१ चाल विलंबी इधक चित ४८-३७१ १२८ देषत धुंघट पोट दे ४४-३१५ १०२ चाली घाट चीरवै ४०-२८२ १२६ दंपत वरस प्रजंक पर २५-२१३ १०३ चाले नाव-जिहाज चढ़ ३०-२३६ १३० दंपति विलसो सुष मदन ४८-३७८ १०४ चाहत चातुर अधिक चित १-३ १०५ चाहत जोबन अधिक चित ५-३६ १०६ चाहत बेगी इधक चित ४४-३२३ १३१ धजा फरकत दल सधर १५-१२८ १०७ चाहत हीरां छैल चित ७-५४ १३२ धन जोबनका थे धणी ३४-२५२ १०८ चैत मास पष चांदणे २-१२ १०६ चैन बुझाकड़ मुष बचनै १०-८० ११० चंद्रहार ऊपर चमक २२.१८१ १३३ नर नारी सोभत निपट १५-१२७ १११ चंदमुषी नगलोचनी ४३-३०६ १३४ नरषौ मो पर शुभ नजरि ४६.३४३ ११२ चांदस्यंघ बोल्यो बचन १०-११ १३५ निरमलगढ़ बूंदी नगर ८-६० १३६ नील बिडंग कुद्यो लहर २४-२०३ ११३ छकी होरा मदन छकि ५-१० ११४ छुटत दड़ी गुलाब छिब ४४-३१४ १३७ प्यारा पलकां ऊपर २५-२१६ ११५ छुद्रघंटका अधक छव २२-१८६ १३८ प्यारी थायो प्रजंक पर २५-२०८ १३६ प्यारी कर गह प्रेमसुं २७-२२६ ११६ जगमग प्राभूषण जड़े १०-७५ १४० प्यारी चाहत महल पर ४४-३२२ ११७ जगमंदर जगनीवांसमै २८-२३० १४१ प्यारी छ अत प्राणकी ४६-३८६ १४२ प्यारी पीतम हेत पर ४८-३७६ १४३ प्यारी पीव प्रजंक पर २५-२१४ ११८ डसरण एक सुंडाल १-१ १४४ प्यारी फाग बसंत पर ४३-३०७ ११६ डोली झपटी डाव कर ४५-३३३ १४५ प्यारो राज पधारज्यो ४४-३२१ १४६ प्यारी सागर प्रेमका ४६-३४५ १२० तरवर पत चंदणत ४२-२६४ १४७ प्रगट महल जल तीर पर १०-७८ १२१ तिलक तेल तंबोल मिल २२-१७५ १४८ प्रीतम प्यारी पेम पर (अर्द्धाली) ४६-३८७ १४६ प्रोहित प्रब चाल्यौ प्रगट ३०-२३५ १२२ दरगहै राणाको दरस ३०-२३७ १५० प्रोहित पायो पेमसुं १६-१५१ १२३ दरवाज प्रोहित दूगम २४-२०० १५१ प्रोहित ईण बिधि पूछियौ १०-७४ १२४ दाब कर बांही दड़ी ४६-३५० १५२ प्रोहित कहियो पदमणी ४८-३७६ १२५ दाबत प्रतबल कूदियो २४-२०१ १५३ प्रोहित कीनो जग प्रगट ६-७० १२६ दिल कपटी मैं देषिया ४६-३४८ १५४ प्रोहित प्यारोने कह्यौ २६-२१७ १२७ दुलही बनड़ो वेषतां ४-२६ १५५ प्रोहित प्यारी षेल पर ४३-३०४ ज द Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ ] परिशिष्ट २ (क) क्रमाङ्क पृष्ठाङ्क पद्याङ्क क्र० पृ० प. १५६ प्रोहित बोल्यो दिल प्रघल ३१-२३८ १५७ प्रोहित ममत पछाणियो ३४-२५४ १५८ प्रोहित रसक प्रजंक पर २५-२११ १५६ प्रोहित रांण प्रचंडका ३१-२४२ १६० प्रोहित सुरभै पेमसं (अर्द्धाली) २०-१६१ १६१ प्रोहित होरा कर पकड़ ४८-३७५ १६२ प्रोहित हीरां पेषीयो ३५-२६० १६३ पर घर करां न प्रीतड़ी २०-१६० १६४ पहुंची नग विविधि। प्रगट २२-१८३ १६५ पाव पोस मोती प्रगट २३-१८८ १६६ पित्रकारी कत जोर पर ४५-३३० १६७ पिचकारी झटकत प्रगट ४५-३२८ १६८ पिचकारी धारां प्रगट ४५-३२९ १६६ पिचकारी मो ऊपर ४५-३२७ १७० पिचकारी लगि पीवकै ४५-३३८ १७१ पीछोले प्राई प्रगट १५-१२३ १७२ पीतम कारण पदमणी ४७-३५६ १७३ पीतमक उर सेझ पर ४६-३८७ . १७४ पीतम प्यारो भेझ पर ४६-३८५ १७५ पुरुष प्रीत हीरां तलफ ६-४४ १७६ पंकजमुष पर लीलपट ४-२७ १८५ बनडाको देष्यो बदन ४-२८ १८६ बले येम कहियों बचन ४४-३२५ १८७ बहत अगाडी बीरबर २४-१९८ १८८ बाटो तोने जीभडी ४७-३६१ १८६ बालक लीला बालपण ३-२० १६० बिध-बिध कहियो बयण ४४-३२४ १६१ बिलकुल बोल्यो मुष वचन २६-२२५ १९२ बिहद लोह बंजाययो ४०.२७७ १६३ बोल्यौ प्रोहित बागमैं १६-१३० १९४ बोल्यौ प्रोहित बेलिया १६-१३१ १६५ बोल्यौ प्रोहित बेलिया १०-७६ १६६ बोल सुणत तब केसरी २०-१६१ १६७ बंक भुकट बोली बयण ४६-३४६ १९८ बंध पकड़ ल्याय बिहव ४०-२७५ १६६ भली बात प्रोहित भणे ३१-२४४ २०० भाभी इम कहियो बयण ४-२५ २०१ भाभी डोलत बहत भर ४३-३१३ २०२ भामण प्यारी अंक भर ४६-३८६ १७७ फोकै मन फेरा लीया ५-३२ १८ फुल अपार प्रजंक फब ४६-३८० २०३ म्रगमद कुंकुम चन्द मिल २२-१७८ २०४ मदनातुर मेरो मरण ६-४८ २०५ मधुर बचन छवि चंद मुष ४-२२ २०६ मिणधारी छिबतै उछर १८.१३६ २०७ मिले कसुंबा माजमा ४६-३८४ २०८ मीठा बोलो वचन मुष ४८-३७२ २०९ मुगत मंग सिंदूर मिल २२-१७६ २१० मै तो कागद मेलयौ ४०.२७८ २११ मैनु घणी विमुढ मंन ४७.३६० २१२ मोद न हीरा कुंद मन ५-३३. २१३ मो पणवृत राषो मुदे ४०-२७६ २१४ मो मन मलियो बालमा २६-२२४ १७६ बकि चितवन तन बदन ४३.३०८ १८० बचन अफटा बहै गया ४७-३५४ १८१ बणियाणी चातुर घणी २०-१५९ १५२ बणी सहेली बाडियां २७-२२८ १८३ बतलास्यां म्हे बालमा ४७-३६७ १८४ बन उपवन फूलत विषम ४२-२६७ । Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमाङ्क २१५ मो मनमै रसियो भवर २१६ मोर सबद लागे विषम पृष्ठाङ्क पञ्चाङ्क १८-१४४ ७-५२ २१७ मंजण नीर गुलाब मिल २२-१७४ २१८ मांणत पदमणि महलमे ८-६३ ४२-३०० ४७-३६२ ४७-३६३ २१६ मांनत फूल सुगंध मिल २२० मांने तागो बालिमा २२१ मानोजी रसिया भमर परिशिष्ठ २ (क) य २२२ यण प्रकार प्रोहित श्रठे ४२.२६२ २२३ यण प्रकार सोहत महल २१-१७२ २२४ यम फंद फसिया प्रगट २०- १६२ र 3 २२५ रची गोठ यम रावनं ४०-२८४ २२६ रची बाहादर रावनं ४०-२८३ २२७ रछ्यक प्राये गवरकै १५-१२६ २२८ रतनांवत दिल रोसमैं ३१-२३६ २२६ रमत फाग बीत्यो रिसक ४४-३१७ २३० रमस्यां सेजां रंगरली २३१ रसक बृतीकी सीत रुत २३२ रहस्यां बूंदी सासरे २३३ रहै जतै उ राजवी २३४ राचत कहूं सिंगार रस २३५ राज कीयो छं रुसणौ १६-१४६ ५०- ३६३ ४८-३६८ ४२ - २६६ ४५-३३७ ४०-२८० ३२-२४६ २३६ राजत ईधक वसंत रुत २३७ राज तणी वा रायधण २३८ राव कहै जीती किधूं २३६ राव बाहाद्र सुभट रंग २४० राषीजं षांवंद सरस २४१ रूप गरबकी राज वणि ४७०३५५ २४२ रंग भरत प्रोहित रसक ४३-३०६ २४३ रंग रात बीती श्रसक २६-२१८ २४४ रंग व्यालरा व्याप गत ४४-३१८ ४८-३७० २४- २०४ ४२-२६३ ४७-३५७ ल २४५ ललवत किनक सहेलड़ी २२-१८५ 1 २१६ पृ० प० २४६ ललित बंक छवि लोयणा ४-२४ २४७ लारे मोने लेवज्यौ २६-२२२ २४८ लाल दरोगो बोलियो १६-१४७ २४६ ला बात चालू नही ४६-३५३ २५० लाषां बातां लाडला ४७-३६५ २५१ लिमीचंद किरति लीयें २-११ २५२ लोभी देषौ लोयेणा ४७-३६४ क्र० व २५३ वण सहेली वाडियां १०-८३ २५४ वर्णं सहेली वाडियां १२-६१ २५५ वरषत घणहर वीषरचौ ६-५० २५६ वात सही यण विधि बणी ४६ - ३६१ २५७ विमल किनके बिछये २२-१८७ २५८ वुदयापुर राजं यधक २७-२२६ २५६ वृछ सरोवर छवि विमल १६-१४८ २६० वेग तुरंगम प्रति विहद २४- २०२ २६१ वैले मिलीज बालिमां २६-२२३ ष २६२ बल षायक रण-षेत मैं स २६३ सगता चांडा संग सुभट २६-२३१ २६४ सपतलडी कंचन सुभग २२-१८० २६५ सब सोलं सणगार है १३-६५ २६६ सरस पियाला साथमैं २६७ सरस लुटत रत- रंगको २६८ सषी बचन पणि विध सुन्यौ २६६ सहर कोट आयो सिधर २७० सात बरसां को समय २७१ सामां भेटण सासरं २७२ सावण घणौं सिरावियो २७३ सिर वारूं साहिबा २७४ सुरत बडारण केसरी १२-८६ १६-१३३ ४६-३८८ ५-३७ २४- १६६ ३-१५ ४७-३५६ ६-७२ २०-१६३ १६-१५० Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० ] क्रमांङ्क २७५ सुण बडारण केसरी २७६ सुण बडारण केसरी २७७ सुभटां जसा समाज मैं २७८ सुभट थट सनमुष मले २७६ सुष सज्या तंडव सुणी २८० सुष सज्या समक्षं नहीं २८१ सुष सज्या संख्या समय २८२ सूती सहै सहैलिया २८३ सोहै जहा जेहा सुभट परिशिष्ट २ (क) पृष्ठाङ्क पद्याङ्क १८-१४३ ४८-३७३ ११-६८ ३३-२५० ८-६४ ५-३४ ४४ - ३१६ ६-४६ १२-६० ह ३३-२४७ २८४ कमल हल हुकले २८५ हय चढियो पर घय हुकम २३-१९४ २८६ हलकारा मालुम करी ३३-२४६ २८७ हसज्यौ कसज्यौ बेलज्यो २०-१६४ २८८ हसत लसत निरषत हरष ४६-३८१ २८६ हिया पीतम परहरत २६० हीरांके प्रायो हरष २९१ हीरां चाहै छैल चित २६-२२० १२-६३ ६-४३ २६२ होरां चिता परहरी ३-१६ २६३ हीरां चिंता परहरो ३-१८ ५-३५ ५-३८ २६४ होरा चिता परहरो २६५ हीरां जोवत मन हरष २६६ हीरां तणी सहेलिया २६७ हीरा बगसीरांम हित ५-३६ ५०-३६४ २६८ हीरां मद श्रातुर भई ६-४२ २६६ हीरां मदन बिलासहित २४-१६७ १६-१५५ ४२-३०१ ४-३० ४-३१ ३०० होरां मनमें प्रति हरष ३०१ होरां मनमें प्रति हरष ३०२ हीरो मन व्याकुल भई ३०३ हीरां मन वाकुल भई ३०४ हीरां यम लषियो हरष ३०५ हीरो व्याकुल थरहरत ३०६ हीरांसु कहो केसरी ३०७ हीरा सुणज्य हेतकी ४६-३४७ २०-१५८ २५-२१२ २१-१६८ क्र० ३०८ ही सूती महल में ३०९ हू तो चाकर हू कमकी ३१० होद नीर चादर वहत छप्पय अनुक्रम अ १ श्रब निवाई ऊपर, हीरां दिल प्रोहित २ अब बरषा रत घुमत घुमंड घनहर घूमत ३ अब सूरज्य प्राथम गहर, सुनो बति गजिये ४ श्रले बेलियां प्रसवार धरण बिध देषण प्राई उ पृ० प० ६-४५ ३४-२५१ २६-२३२ ऊ ६ ऊट चढे श्राकलो यम राईको प्रायो ४१-२८५ ४१-२८७ २१-१६९ ५ उदयापुर त्रिय प्रवर बिबध मंन राग बणावत १८-१४१ ७ ऊसन धरण श्राकास, उसन चल पवन असंभव १५-१२२ ३६-२६२ ४२-२६१ क ८कर रावण केसरी चलत मंन बात हरष चित ३४-२५७ ग ६ गिगन मलत घन घोर चपला चंमकारुत ४१-२८८ घ १० घोडा भड घमसान पाषरा बगतर पूरा १८-१४२ Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमांक च ११ चढे रीस चष चोल मुंछ मिल भ्रगट भ्रमांवत १२ चोपदार सुण बचन प्रोहित ऊसस पृष्ठांक पद्यांक ज १३ जगमंदर इंम जोप राण भीमेण विराजत ध १४ धमकत पग घुघरा तडत दमकंत १५ धरण फोड धडे धडे गहिर गडे त्रमागल प १६ प्यारी महल प्रजंक पर ससेज फूल पर १७ प्रोहित पण प्रकार साधने बात सुनाई १६ प्रोहित लषियो प्रगट श्राज तीजां श्राडंबर ब १६ बा बात करता यतै पणि प्रोहित प्राय भ २० भीमरांण सांभले कहर प्रजले कोप कर म र २२ रचे बाहादर रावं गवणत्र व ट गरज्ये परिशिष्ट २ (क) ३१-२४१ ३०-२३४ २६-२३३ ४३-३१२ ३६-२६५ ४१-२८६ २३-१६३ ३४-२५६ २१ मरत नीर बिन मीन आप बिन मो दुष ऐसी ३६-२६३ ३६-२६१ ३४-२५५ ३३-२४८ क्र० २३ रण केते नर रहे जिते भड सनमुष जुंढे २४ रति बिलास अनुराग करत निस-वन कैतूहल स २५ सoियां तणें समाज ललित गहणां नीलंबर २६ सीतल जल थल सरस पवन सीतल ऊतर पर २७ सुरात गवर संक्रमी झणण श्राभूषण भमकत ह २८ हणण मांच हैमरांग गणण घोषा रखे डूंगर २९ होरा मनमैं प्रति हरष बिवध पोसाष बनाई कुण्डलिया अनुक्रम उ १ उण गदीक ऊपरें राजत बगसीराम २ उदिय्यापुरकी छब अधिक संपति नगर समाज च ३ चहुँ तरफां बणि चौहटो, घटा तंग अखंड त ४ तीज तणें उछ्व तर्ट, बांचौं घण बषाण द ५ दरवाजा बणिया दुगम, कीना लोकपाट [ २२१ पृ० प० ३८-३६६ ५०-३६० १४- १२१ ४१-२० २०.२०६ ३६-२६४ ३४-२५८ ११-८६ १-४ २-७ ७-५६ १-५ Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ ] परिशिष्ट २ (क) क्रमाङ्क पृष्ठाङ्क पद्याङ्क क्र० पृ० प० ६ प्रोहित बूंदी पररिणयो, रसियो बगसीराम ७ पीछोलाको पेषबो, मान सरोवर मोज ६ जरीतारपट्टबिराजै जहूरं १४-११५ ७ जु हारं मिणी पुंचिका हाथ जोपै। ७-५८ १४-१११ २-८ ८ बणी बिछायत बाडियां, ___ जाजमैं गिलम जुहार ११-८५ ६ बाग अनेक बावडी, अदभुत फूल अपार २-६ ८ दुतै लोचनं काजल रीष दोने १३.१०२ ६ दुतं दंतको दाडिमी हीर दाणं १३-१०४ १० घरे बात निरधार छडीदार ध्यायौ २८-२३० १० राजत बंगसीरांमक, अभंग सुभट थर येम ११-८७ ११ वजे चमक धौसर बज, नौबति सबद निराट ११ पटं बैठ हीरां सनानं प्रसंगं १३-६६ १२ पदं कोमलं लाल एडी प्रकास १४-११६ १३ पुणे मांगको अोर सोभा प्रकार १३-६८ १४ पुनीतं नषं रंग मैदी प्रकास १४-११२ १२ साथ समाजत घरण सुभट, अनाजत प्राथांण भुजंगप्रयात-अनुक्रम १५ फब बांहै बाजू मिणी जोति फूल १४-११० उ १ उवारं विशालं वर्ण भाल अगं १३-६६ २ कर हाव-भावं कटाछ किलोलं १४-११६ ३ किये फूल सप्पेद बेणीक रंगे १३-६७ ४ कुचं कंचुकी रेसमी तारकंद १४-१०६ १६ बणी कंठसोभा बिसालं वसेषा १३-१०७ १७ बणे नैण भूहार भालं विचत्रं १३-१०० १८ वल कंठको सोभनां कीण भासं १३-१०८ १६ बिचं नासिका अग्र मोती बिराने २० बिणे मोचडी हीर मोती बिचित्रं ५ चढ ऊतरं वासना अंग चोजं १४-१२० Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . क्रमांक क्र. परिशिष्ट २ (क) [ २२३ पृष्ठाङ्क पद्याङ्क पृ० ५० कारत सेल प्रभाग लियूं ३७-२६६ २१ मिणी माणकं हेम ताटक मंडै १३-१०५ २ तीन प्राक्रम येक तुरंगम यूं, भण २२ मुषं मंडलं जोति सोभा बिमोहं नाम स नीलबिडंगम यूं १६-१३५ १३-१०६ छन्द उधोर-अनुक्रम ल २३ लस लोचनं षंजनं मीनलीला १३-१०१ १ प्रति मीठा बोलत्त मोर, सुभ करत्त कोयेल सोर २ अदभुत सुभट अपार, उतंग अमल १६-१३४ उदार २४ विभूषे सरीरं पटं नीलबंदं १४-११८ भ २५ सुरंगं दुती नाभि गंभीर सोहै १४-११४ ३ भणिया किम बिडंग, अदभुत प्राक्रम अंग १७-१३७ गीत-अनुक्रम २६ हिये फूलमालं कोये होरहारं १४.११३ . छन्द झमाल-अनुक्रम १ प्रोहित बगसीरांम भमर छ कीतको ७-५६ गाथा चोसर-अनुक्रम १ ऊजाल म छुठे जग क्रोधबांन मह बोला वीर जंग ३६-२७१ घ २ घरे घण कटक चीख घोटे चढि झाला चहूंचांग ४०-२७४ ३ घुरे त्रमाला मचायो जंग मेवाड़ चौरवो घाट वुयो जिण ३६-२७० १ उसण येक गजमुंष लंबोदर १-२ चंद्रायणो-अनुक्रम ४ चंद्रहासांक षागां प्रचंडा झुंड बोर ३६-२७२ चाल १ ऊदयापुरमै पायक प्रोहित येरसों १०.८४ त्रोटक-अनुक्रम ५ बागी घमचाल कटक दो हुऐ वेल कढि किरमाल कराली ३७-२६७ ६ षरे गोषालानु मार मंडे फूलधारा बैत धरैगो ३९.२७३ १ अब राव बाहादर कोप कियं, लल- Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ ] परिशिष्ट २ (ख) क्रमाङ्क पृष्ठाङ्क पद्याङ्क । कृ० पृ० प. छन्द पधरी-अनुक्रम ४ बतलायो ईम केहरि बडाल, कोप्यो १ उपजी कोडी धज घरि प्राय, लषमी क प्राय जमजाल काल -६६ चंद मन उछव लगाय २-१४ २ उपत जगमंदर जगनिवास, पर दोहन- ५ भयो प्रातकाल परकास भान, बन को शोभा प्रकास २६-२३१ पंषोजन बोलत्त बांण ६-६५ क ३ कोप्यो क अब प्रोहित कराल, जग्यो ६ वणि महल सपतषंड गगनवाट, कण क सोर ढिग अगन ज्वाल ३७-२६८ __ हेम जटत चंदण कपाट - २१-१७१ भ परिशिष्ट २ (ख) वात रीसालूरी दहा-अनुक्रम १ अगन सरण ताहरो करू ११०-२०३ २ अगर चंदणरा ज(ल) कड़ा (टि.) ११३-२८ ३ अगर चदन करी एकठा (प.) २०५-६४ ४ अपुत्रस्य गतं नास्ती (टि.) ५२-२ ५ अपुत्रस्य गृहं सुन्यं (टि.) ५२-१ ६ अब बेगा मिलज्यौ हठमला १०६-२०० ७ अब वसन्त ही प्रावही (टि ) १४३-७४ ८ प्रमी छडक्का नांष कर (प.) २१०-६६ ९ अमृतवेली जो चरौ ६१-११७ १० अमृत वेलो वावीसो (प.) २०२-४८ ११ अवगुणगारी गोरडी (प.) २०५-६५ १२ अवे प्रांबो उवे प्रा' (प.) २१५-५८ १३ अहौ-ग्रहौं रैणी वीगती ११६-२५३ १४ अहो रीसाल कुंवरजी १०६-१८१ १५ प्राइयो लेष पालाहका १००-१५८ १६ पाईयो कुंवरजी प्रावीया १०१-१५६ १७ माछो कापड चोल रंग (प.) २०४-६१ १८ आज उजाडा देसमै ६६-१४६ १६ आज कुंवरजी रीसालूवा १२३-२६८ २० प्राज मेहिल पाछौं वणौ ९७-१५१ २१ प्राज रूपाली रातडी १२२-२६५ २२ प्राज सलूणी रातडी ११६-२३१ २३ अाज सूरज भल उगीयो १३२-३०७ न प्रति भलो १५-१४० Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट २ (ख) [ २२५ क्रमाङ्क पृष्ठाङ्क पद्याङ्क ५० उद्यमं साहसं धैर्य ५१ उम्रावां साषीधरा ५२ उमरावा वरज्या घणा पृ० प० १११-२१३ १३०-२६३ ६८-५१ २५ पाठ पंषेरू छ बग (प.) २०१-४२ २६ प्राडा कसीया कांमनो ११६-२४६ २७ प्राप कही सो म्हे परणीया १२६-२८३ २८ प्राप धूसो पोउं पधारीयै ६६-१४५ २६ प्राभे अडंबर बादली ११६-२२६ ३० प्राय सजोगी ध्यानमै १०५-१७६ ३१ पासण वाली बेठो रहूं (प.) २०७-८१ ३२ पासू लूधी सेणरी ११८-२४३ ५३ ऊ एकलडी महीलम १८-१५६ ५४ ऊठी में ऊभो थयो (प.) २०७०८४ ५५ ऊभा थाए तो अमी झरे (प.) २०६-६३ ३३ इण कारण हसीया अमे ७२-६३ ३४ इण देस तु प्रावीयौ ७२-६२ ३५ इम चितवता प्रावीयो १०४-१७४ ३६ इम टहुक्का सरला दीया १०१.१६० ३७ ईम केहतां प्रांसू ढल्या ६९-५६ ५६ ए आजूंणी रात १९६-२३५ ५७ एक गई दूजी गई १११-२१० ५८ एक छोडी दूजी छोडस्यां ११६-२४५ ५६ एक ज घडी प्राधी घडी (प.) १९७-१० ६० एक दीयां तो दोय दीयां (प.) . २१३.४१ ६१ एक नर दो नारसू (प.) १९८-१४ ६२ एक नारी ब्रह्मचारी (प.) १९८-१५ ६३ एक पंड चढ दूसरै ६१-१२१ ६४ एक षंड चढी दुसरे (टि.) ६२-३० ६५ ए ज्यं रीसालू रीसालूप्रो (प.) २००.३५ ६६ ए नहीं प्रांबा प्रांवली (प.) २०८-६२ ६७ एवंडी रीस न कोजीये ६७-४७ ६८ एहनो काइ पटतरो ६२-३४ ६६ एहवो माता-पिता तणौ ६५-४३ ३८ उंचा महिल प्रावास है (टि.) ७५-० ३६ उची मोदर मालीया ७५-६६ ४० उजेणीपूर प्रावीया ६१-२३ ४१ उठ वीडाणा देसरा १२२-२६१ ४२ उठीयो कुंवर वीवालूपा ११७-२३६ ४३ उठो-उठो कुंवर सोनारका (टि.) ११७-५२ ४४ उठो कुमार सोनारका (टि.) ११८-४७ ४५ उठो कुंवर सुनारका (टि.) ७० ऐक षंड बुजे षंड़ (टि.) . .९३.२६ ११७४१ ४६ उठो नीबूध्यका प्रागरूं १२०-२५४ . ४७ उत्तम जननी प्रीतड़ी ८३-८५ ७१ श्री दीसे प्रांबा प्रांबली. १९९-२४ ४८ उत्तम जीव हुवे जिके १०६-१८३ ७२ , ,, , (प.) २०८-६१ ४६ उतावल कीया अलूझीय ६६-१४१ । '७३ अंग उमाहो कुंवरजी १३५-३२० Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ ] परिशिष्ट २ (ख) कृमाङ्क पृष्ठाङ्क पद्याङ्क ७४ अंबर तारा डिग पडै १२६-२८८ ७५ अंही अंहो कुंवरजी रीसालूवा ६७-१५० ७६ क्यारा केसर नीलडा ८५-६१ ७७ क्यारी केसर द्राषकी (टि.) ८४-० ७८ क्युं चाल्यो रे मानवी (टि.) ७२-१२ ७६ कडकड नांखू काकरा ११४-२२० ८० कडकड बाहुं काकरा (प.) २१३-३६ ८१ कथा रसिक कविरायको ५१-४ ८२ कर चोदा दारु घणो (टि.) ६२-३१ ८३ कर छीदो क्युं कर पीवै (टि.) ६३.२७ ८४ कर छीदो पाणी पीवं (टि.) ९४-१७ ८५ कर ढीला घट सांघूड़ा ६१-१२५ ८६ करतूं कर मेलाविया १००-१५७ ८७ कवर नई को कारण ६१-२५ ८८ कवियां मन जय पांमवा १४४-३४६ ८६ कस्तूरीरा गुण केता (प) १६७-६ ६. काई यौवनमै मतीयां (प.) २१४-५६ ६१ कागद वाचन भेजीयो १४०-३३९ १२ काची कली मत लूबिय ८६-१११ ६३ काठो तोडातां जणे (प.) २०६-७७ ६४ कामण कारीगरतणी ११०-२०८ ६५ कामण होयडा कोरणी ६४-१३४ ६६ काम विचारीने कहो ६६-१४२ ६७ कारीगर किरतारका १०८-१६१ ६८ काला मुहकै कागले (टि.) १०८-४४ ६६ काला मुहरा कागला (प.) २१२-२८ १०० काला मृग उजाडका (टि ) ७०-५ १०१ , , , (टि.) ७१-४ १०२ काला मृग ऊजाडका (प.) १६६-२३ १०३ काला रे मृग उजाडका (टि.) ७०-६ कृ० पृ० प० १०४ काला हरण उजाडरा (प.) २११-६ १०५ काली कांठल भलकीया १३३-३०९ १०६ काहां चाल्या वे राजवी (टि.) ७३-० १०७ काहा चालो रे राज (टि.) ७२-८ १०८ किण ऐ(प.) २१२-१७ १०६ किणस्यूं राजा थे रम्या ७५.६८ ११० किणे प्रांबा झंझेडीया (प.) २०१-४३ १११ किसका वै प्रांबा प्रावली ६०-११२ ११२ किहां गया कुंवरजी प्रभातका ८८.१०२ ११३ कोण ए लोयण लोइया (टि.) ६८.३५ ११४ कोण मेरा माला भंगीया (प) २१२-२४ ११५ कोण ही लोयण लोईया (टि.) ९८.२६ ११६ कुण छै बाल वडी ६२.३३१ ११७ कुण तु इहा प्रायौ अठ ७२-६१ ११८ कुण राजा रौ लाडली (प.) १९८-१२ ११६ कुमर कहैजी गोरीया ६३-३७ १२० कुमर चाल्यौ सामो जवे ८१-८१ १२१ कुमर सूणने चीतवै ६२-३३ १२२ कुलवटनी कामणि तणी ६४-४१ १२३ कुवर कहै अहो हीरणजी ८३-८८ १२४ कुवरजी छाया माहरी ८३.८६ १२५ कुवरजी सोच घणो कीयो ८८-१०४ १२६ कुवरजी हव इम कित करी १२६-२८० __१२७ कुवर भलै घर प्रावियो (टि.)। १४०-६१ Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र० परिशिष्ट २ (ख) [ २२७ पृष्ठाङ्क पद्याङ्क पृ० प० १२८ कूकड कुंकू कहु कीया ११६-२५२ १५४ चाकर पंचसय चेरीयां १३५-३२३ १२६ कूड कपटनी कोथली १३४-३१४ १५५ चातुरळू चातुर मिले (प.) १३० कूडौ बोल छ सूवटौ १८-१५३ १९७-११ १३१ केड कटारा वंकडा (प.) १६६-२६ १५६ चाल्यौ प्रांबां पागले (अ.) १३२ के तू देवल पूतली (प.) १६६-२५ ५६.११ १३३ के मूमो के मारीयो (प.) २०५-६६ १५७ चालता ठीक छटकीया ८६-६६ १३४ केसर कहै कस्तुरीयां (प.) २११-३ १५८ चालो पीलीय सेणसूं ११६-२३४ १३५ केहनी अस्त्री न जाणज्यों १५६ चाषडीयां चटका घणा (प.) १०४-१७१ २१३-४४ १३६ के मुपा के मारीमा बे ११४.३६ १६० चोपड़ ले चतुर नर (टि.) १३७ कोई न लेबैमा लषै १२०-२५७ ६२-३२ १३८ कोड छडाया कागला १२२-२६६ १६१ चोर इहां कुण प्रावीयो ६७-१४६ १३६ कोरण उतराधिकरण ११६-२३० १६२ चंदन कटाउ.. ११३०२१६ १४० कंचू कस्यो दिल हय कोयौ १६३ चंदण-काटे चह रचुं (प.) ११६-२४७ २१३-३५ १६४ छाजे बेठी मावडी (प.) १९७-४ १६५ छीपायौ तबेला ठाणमै ८९-१०७ १६६ छोटीने मोटी करी १४४-३४५ १६७ छोड्यो सगलो गामडो (प.) । १९८-१६ १६८ छोरू पास करै घणी १४०-३३८ १४१ गढ गांगलरा राजीया (प.) २०२-५० १४२ गणपतदव मनाय की ५१-१ १४३ गाव(वे) मंगल नारीयां ६१-२८ १४४ गुणवंती नारि तणा १४४-३४२ १४५ गुनेहगार हुं रावलो १३६-३३७ १४६ गोरषनाथजी नै ध्याईयो ८१ ७६ १४७ गोरषनाथजीरी सेवा करी ६९-५८ १४८ गोरषनाथजी सेवा करी (टि.) ७०-११ १४६ गोरषनाथजीरी सेवा कीधी (टि.) ७१-६ १५० गोरषनाथजीरी सेवा कीधी (टि.) ७१-७ १६६ ज्यांह नवलषा बाग है (टि.) १४३-७५ १७० ज्यूं पितुं जपे तुं षरो १३१-३०२ १७१ जगमे नारि रूवडि १३४-३१५ १७२ जतन करै च्यारूं जीवतणां ८०-७५ १७३ जलज्यो पासो षेलणां ७८-७२ १७४ जल ही उढ''हरण (प.) २१५-५६ १७५ जष्य राज्यस वेताल है (टि.) ८७-२२ १७६ जाकी जासू लगन हे (प.) . २०१-३६ १५१ घणा दीनारी प्रीतडी ८३-८७ १५२ घूघरीयारा सौरतूं ८६-१०० च १५३ चढीया सहु जानीया घणा ६१-२२ । Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ परिशिष्ट २ (ख) क्रमाङ्क - पृष्ठाङ्क पद्याङ्क पृ० प. १७७ जाचक जै-जै बोलीया ६१-२४ १७८ जाचक बहुधन पोषीया ६१-२६ २०१ तब राकस रूप रवी ८१-८२. १७६ जांण न पाई हठमला १०८-१६६ २०२ तल गुंदल निलज उपरे १२५-२७६ १८० जाणे मान सरोवरे १३३-३११ २०३ तास तोषां लोयणा १२४-२७३ १८१ जांन बिराजी गोहरें (प.) १६८-१७ २०४ तिनसं पायो थां कनं ८९-१०८ १८२ जावत जी. क्युं कहां (प.) २०५ तीर सपल्लल चांपीयो १३०-२६२ २०१-३८ २०६ तीहां छै बचा प्रती भला (टि.) १५३ जावो रांणी विडांणीयो १०६-१८० १४३-७६ १८४ जाण्या रोष्या विवताल है (टि.) २०७ तीहाथी मान नृपततणी ६१-२७ ८८-१८ २०८ तु कारण क्यूपूछ बै ६०-११३ १८५ जि नर रूपे रूवडा १३३-३१३ २०६ तुम फूरमायो जा परौ १३६-३३२ १८६ जीव हमारा तें लीया (प.) २१० तुरत मोहर लेई करी ८०-७४ २००-३१ २११ तुं राजा हंदी गौरड़ी (प.) १८७ जे देष तं रूंषडा (प.) २११-८ २१३-३८ १८८ जे परपुरषां कामनी ६३-१३१ २१२ तुं हठालु हठमला (टि.) ६१-२८ १८६ जेसा पूत्र ज्यूं वाल्हा १३१-२६८ २१३ तुं हठीमल तुं हठीमला (टि.) १६० ..जोगी जोगीणा (प.) २१२.२६ ९३-२४ १९१ जोगीड़ा रस भोगीया १०५-१७५ २१४ तूबी चूइ टबूकडे (प.) २०६-७० १९२ जोगीया पर भोगीया (प.) २१५ ते प्राण्यो में भषीयो (प.) ... २१३-३० २०३-५३ १६३ जो तुमै रोसवता हूवा ६७-४८ २१६ ते नारी गढ सूरडी १२-१३० १६४ जो मिलवो मूष देषवौ १३६-३३३ २१७ .. तो प्रातम लोई (प.) २१४-५४ १९५ जो सूरज प्राथूणमै ८३-८४ २१८ तो इहां बंध में सरचा ६५-४६ २१६ तोरा नाम हठमला ६०.११४ २२० तो सरसी नार तणा ११०-२०७ १९६ झगो धोयौ फॅटो धोयो (टि.) २२१ तोसु केल करांतड़ा (प.) ११२-२६ २१२-१८ १९७ झारी हठमल हाथ ले ६१-१२४ १९८ झिरमीर झिरमीर वरसीयो २२२ थारो वीरो बहुबली (दि.) ११७-२३७ १४२-७३ २२३ थाल भरी दाल-चांवला ५७-१२ २२४ था बीना सारी बातडी ८१-७७ १६९ डाकिणमंत्र प्रफीण रस १९८-१६ २२५ थांह सरसी माहरे १२३-२७२ २२६ यांह सरीषा म्हारा वांहरू ८४-६० २०० ढोल धडक तन बडे (है) १२७-२८४ । २२७ यांसू कटती रातड़ी ६९-५५ Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ठ २(ख) [ २२६ क्र० - पृ० ५० क्रमाङ्क पृष्ठाङ्क पद्याङ्क २२८ थे छो राजा बहुगुणां (टि.) १४२-७१ २२६ थे दीधौ म्है भष्यो (प.) २१२-२६ २३० थे दीनां में जीमीया १०३-१६६ २३१ दइवाधीन लिख्या जिके १०७-१८४ २३२ दया रषो धरमकू (प.) १६७-६ २३३ दल दिषणादी देषीया १३८-३२८ २३४ दल वादल भेला हुवा, १३७-३२७ २३५ दस मास हंदी परणीया ६३-१३२ २३६ वस सुवा बस सुवटा (प.) २१२-२३ २३७ दुरवल के बल राम हे (प.) १९७-८ २३८ देसडला परदेसड़ा (प.) २०५-६३ २३६ देस वोडांणो भूय पारको । ११२-२२८ २४० देषौ छोरू मुष सदा ६५-४२ २४१ देषौ सहेली प्रायक (टि.) १४०-६३ २४२ देषो सूषम दुष हुवी (प्र.) ६६-५७ २४३ देषो हुंती दस मासनी १०४-१७० २४४ दोन राजा जुगतिका (प.) १६७-३ २४५ वंत कटका कुदतो ८१.८० २५२ नयण थारा भुंभला (टि.) . १४२-७२ २५३ नवल सनेह पीहर तणों ६४-४० २५४ नवि मूनो नवि मारीनो (प.) २०५-६७ २५५ नष अंगूठे अंगूली ११२-२१५ २५६ नहीं घररो वेरागोप्रो (प.) १९८-१३ २५७ नही घोडा रथ उंटीयां १०४-१७३ २५८ ना जोवन, मतीया (प.) २१४-५७ २५६ नाटिक छंद गुण गाजीया ५७-१५ २६० ना म्हे मूवा नवि मारीया ११४-२२२ २६१ नार पराई विलसतां १०१-१६४ २६२ नारी न जाण्यौ प्रापरी १११-२१२ २६३ नारी नहीं का प्रापरी ११८-२४० २६४ नारी ना-ना मूख रट ११९-२५१ २६५ नारू तीखा लोयणां (प.) २१४-४६ २६६ नासा सोहे मोतीयां (प.)२०७-७८ २६७ नाहर सेती अधीक बल (टि )8:-३३ २६८ नीदडीयारो नेहडो ११६-२३३ २६६ नेण चूकी निजर फेरवी २०७-८३ २७० नेनूकी प्रारत बुरी (प.) २००-३० २७१ नेसै सांन ज करी (प.) २००-३६ २४६ धणी सासती नारी नही ११८२४४ २४७ धन-धन मातारो नेहडो १३६-३२४ २४८ धन रे नाम रीसालुवा (टि.) १४०-६२ २४६ धारवंती ढली करी (प.) २०७-८६ २५० नगर चोहटे नीसरचा (टि.) १३२-७० २५१ नगर चोहटै नोसरचौ (टि.) १३२-५७ । २७२ प्रथमें प्रण श्रीगणेश (प.) १९७-१ २७३ प्रह फूटी प्रगडो भयो (प.) २०६-७२ २७४ प्रेम गहिली हुं थई १०८-१९५ २७५ प्रेम विडांणा पारषो १३१-३०१ २७६ पग दोठा पवंगरा (प) २०१-४१ २७७ पटुवा महता गांवरा (प.) २१:३६ २७८ पर घर पर धरती तणा ८९-११० २७६ पर भूमी षडवा थकी १२३-२७१ Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० ] परिशिष्ट २ (ख) क्र० पृ०प० । क्रमाङ्क पृष्ठाङ्क पद्याङ्क २८० परवाई झीणी फरे ११५-२२७ २८१ पलंग छीपाए छांटीये (टि.) ८७-३७ २८२ पलिंग पठ्ठी ढालीज्यों (प.) २०१. ४ २८३ पाई मुका'' (प.) २१४-५३ २८४ पाघडीयां पंचा सकल (प.) २०७-७६ २८५ पाछो बोलो बोलड़ो १३१-२६७ २८६ पांणी जग सघलो पीए (प.) २०४-५६ २८७ पाणी पीने वाटथी (प.) २०८-८६ २८८ पातसाह अग्या तेहनै ८५.६४ २८६ पाना फूलां माहिला १०६-१६६ २९० पाय पहिरी चाषडी (प.) २०६-७३ २९१ पाल पीयारी जल नवो (प.) ३०५ पीउ रे दुध रसालुमा (टि.) ७०-७ ३०६ पीजरीयारा पोढणा६६-१४७ ३०७ पीडत पुछणहं चली (प.) २११-२ ३०८ पीया दुध फली करो (टि.) ७०-३ ३०६ पीया दुधा थली करौ (टि.) ७१-० ३१० पुरष भला गहिलाथई ११८-२४१ ३११ पूरो पूनम जेहवो १३३-३१२ ३१२ पूत्र ईसा जगमै हुवै १३१-३०० ३१३ पूत्रतणी वांछा घणी ६५.४५ ३१४ पूत्र नहीं ईक मांहरै ५२-८ ३१५ पूत्र पितारा हुकममे १३१-२६६ ३१६ पेहरज्यौं मांहरी पावडी १२०-२५५ ३१७ पैहर हमारा लुघडा (प.) २१३-४३ ३१८ पोह फाटी पगडो हुवौ (प.) २१३-४२ ३१६ पंच पंरूं सात सूव सूवटा ६६-१४८ ३२० पंथी ए सुघड धोइया (प.) २१३-३२ २०४-६० २९२ पालो पांणी पातसाह ११६-२२८ २६३ पावडीयां चटकालीयां (प.) २०६-७४ २९४ पावरीयां पटकालीयां १२०-२५८ २६५ पावल ऊपर घूधरा (प.) २०६-६७ २९६ पिंडस पतल कटि करल १३३-३१० २६७ पिण को दाय उपायथी ६५-१३८ २९८ पिण तो सरषो बालही १३४-३१७ २६९ पिण थे जावो गोरडी ६५-१३६ ३३० पिण हिव सूता रिसालूंवा ३२१ फिट फिट कुवधी सज्जनां १०८-१६३ ३२२ फुलमती हठीय धरी (प.) २१४-६० ३२३ फूलवती हठीयो ग्रहो (प.) २०६-६६ ३२४ फेरा फीरे फोरंदड़ा (प.) २११-० १२२-२६७ ३०१ पिता हूकम वनवासको १३६-३३४ ३०२ पिलंग छपीयां छाटीयां १८-१५५ ३०३ पीउ कचोले पोउ वाटके १०३-१६७ १०४ पीउ प्यारी पीउ प्यारडी ११६-२४६ । ३२५ बार वरस वनवासरा १३५-३२१ ३२६ बालापणरी प्रोतडी १०८-१६० ३२७ बांहडीयें जल सजल (प.) २०६-८७ ३२८ बेटा जाया सालिवाहन (प.) १९७-२ ३२६ बेटा तुं सुलषणो (टि.) १४१-६५ Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र० परिशिष्ट २ (ख) [ २३१ क्रमाङ्क पृष्ठाङ्क पद्याङ्क पृ० प० ३३० बंधव भलै घर प्रावीयो (टि.) ३५४ मारणस देह विडाणीया १०६-२०१ १४०-६४ ३५५ माता मै मोलवा तणौ (टि.) १४१-६६ ३५६ माथू फिर तो मारगथी प्रो (प.) ३३१ भलाई पधारयां कुंमरजी २००-६० १३२-३०६ ३३२ भला ई पीयारो नेहडो १३२-३०८ ३५७ माथो लागो बार सांषस्यूं (प.) ३३३ भला तुम्हे सुषोया हुवौ ६५-१३६ २१०-१०० ३३४ भलो इततनी १३१-२६६ ३५८ माय बाप लियां तिहां १३६-३२५ ३३५ भागवान अरु साहसी (टि.) ३५६ माय वडारण बाप वड (टि.) ७१-३ १४३-७६ ३६० माय वीडांणी पीता पारका (टि.) ७०-८ ३३६ भुम पराई ने पर मंडली (प.) २१३-३४ ३६१ माय पीडाणी बाप वड (टि.) ७०.४ ३३७ भुम पराई भोगणे (प.) २१३-३३ ३३८ भूमि पीयारी भोगणो (प.) ३६२ मारयो मारयो रे बा (प.) २०४-६२ २१२-१५ ३३६ भूल चूके भोलडी ११५-२२४ ३६३ मारी नै माथो ल्यावसू ८१-७८ ३४० भेटे चरण सूखी थव १४३-३४० ३६४ मारेगो रे बप्पड़ा (प.) २००-३२ ३४१ भोले भुलौ रे वालंभा (प.) ३६५ माली कहै पोतसाहजी ८५-६२ २१३-४५ ३६६ माली रावें संचरयो (प.) १६६-२२ ३४२ भोले म भूल रे भाइया १२१-२५६ ३४३ भीम पराई विगाडीया ८४-८६ ३६७ माहाराज धणी हूकमी ६०.२० ३६८ मृगलो सूवो मेनड़ी ११५-२२३ ३६६ मे अस्त्री विन सूना १०५-१७७ ३४४ म्हारे पुत्री इक बले १२६-२८१ ३७० मे मरहुं त्रिस कारण १०५-१७८ ३४५ म्हे क्यूं रीसाठू थाह थकी ३७१ मे मेरा कंचुना मांणीया (प.) १२३-२७० २०१-४५ ३४६ म्हे परदेसी दीसावरा ६१-१२२ ३७२ मेरा नाम छै हठीमला (टि.) ३४७ म्हे मारचा किरण रांमरा ७३-६५ ६३-२३ ३४८ म्हे समसत रायक पूतड़ा ३७३ मेरा नाम हठ भला (टि.) ९४-१८ १२६-२७६ ३७४ मेरा नाम हे हट्ठीया (प.) ३४६ म्है राजा राजवी ७३-६४ २००-३३ ३५० मनरंजण अतिसूषकरण १४४-६४७ ३७५ मेरा मला भांगीया (प.) २१२-२० ३५१ मांगणहारा ममता ५७-१६ ३७६ मे विरहणी विरहातणी १०१-१६२ ३५२ मांटी सूतौ छोडने ११८-२३८ ३७७ मे हठीया छ हठमला ६१-११६ ३५३ माणस ते नहीं ढोरड़ा ६२-१२६ ३७८ मे हठुवा मे (प.) २१२-१६ Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ ] परिशिष्ट २ (ख) क्र० पृ० ५० क्रमांक पृष्ठाङ्क पद्याङ्क ३७६ में ही लोयण लोईया (टि.) ९८-३० ३८० मे जाण्यो मृग मारोत्रो (टि.) १०३.३२ ३८१ मै तेरा माला भंगीया (प.) २१२-२१ ३८२ मोटी थी मोटाथोई (प.) २०७.८५ ३८३ मो सरषी निगुणी तणे १०८-१६२ ३८४ मौ सरसौ पीउडौ मील्यो ११८-२३६ मंगल जारी मागरण १३४-३१६ ३८६ योगी योगी योगीया (प.) २०३-५५ ४०२ राजा भोजरी मांनरी ६३-३८ ४०३ राजा मिल नाम थापीयो ५७-१४ ४०४ राजा मेरी वालही १०५-१७६ ४०५ राजा रसालुरी वातडी (दि.) १४४-७४ ४०६ राजा रीसालू हंदी वातडी (टि.) १४४-६८ ४०७ राजा रूठो स्यूं करे (प.) २०६-७१ ४०८ राजा सूपनै बोलीयो ६७-५० ४०६ राणी कहै सूण राजवी ७६-७१ ४१० रांणी झारी भर लेई ९१-१२३ ४११ रांणी सह साथै लीयां (टि.) १४३-७७ ४१२ रांणी सूण पीवत भणे ६२-३५ ४१३ राणी सूण मोहित हूई १२-१२८ ११४ रात ज करहा न उछरे (प.) २१४.४६ ४१५ रात दीवस तीहां हो रहे (टि.) १४३-७८ ४१६ राते करहा उछरै १२१-२६० ४१७ राते करहा न छूटीइ (प.) २०६-७६ ४१८ रात नायौ तु हिरणीया ८८-१०३ ४१६ रोमन रातडीयां तणी ११६-२३२ ४२० रांम सरीसा भोगव्या १०७-१८५ ४२१ रावत भिडियां बांकडा १०८-१८८ ४२२ राक्षस रूडां मारीयो (प.) ३८७ रतन कचोलो रूवडो १२५-२७५ ३८८ रयणी दुषकी राश भी १०१-१६१ ३८६ रस रमतां मैहला विषे १०८-१९४ ३६० रसालुहंदा प्रांबा प्रांबली (टि.) ६०.२६ ३९१ रहो रहो केथ प्रण भावना १२४.२७४ ३६२ राकस धूतारो पर्छ ८१-७६ ३६३ राग-रंग-रसकी कथा ५१-५ ३९४ राजन रूडा होयज्यो १३१-२६५ ३६५ राजपाट सहु विलसतौ १४३-३४१ ३९६ राज विना दिन जावसी ६६-५४ ३९७ राज सरीषा पाहुणा १३५-३१६ ३६८ राजा तणो षडग परणने ६२-३२ ३६६ राजा भोजजी (अ.) ६१-२५ ४०० राजारे भोजरी कुवरी (टि.) १२५-६६ ४०१ राजा भोजरी डोकरी (टि.) १२८-५३, ६१ १९६-२० ४३३ रीस अमारा माइ बाप (प.) २०२-४७ ४२४ रीसालु रीसालुवा (प.) २१४-५० ४२५ रीसाल कुंवरने छोडने १३-१३३ ४२६ रीसालू बांण सनाहीयो (प.) २०२-५१ Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २३३ ] ४२७ रीसालूया रोस कसाइया १२६-२७८ ४२८ रीसालू रीसालुप्रा (प.) २०२-४६ ४५४ व्यापारी ज्यूं बटाउडा १०६-१९८ ४२६ रोसालु रीसाल्वा (प.) २१३-३१ ४५५ वचन हतो सो पूगीयो १२८-२८६ ४३० रोसालू रीसावीसो (प.) २०७-८० ४५६ वरषा रीत पावस करे ११५-२६ ४३१ रीसालू रुवन करे (प.) २१०.६८ ४५७ बस राजरो राषणी ६७.४६ ४३२ रीसालू हंदी गोरडी (म.) ४५८ धागां नोलडा चरण ८८-१०६ ४५६ धागां मांहेला मानवी (टि०) ४१३ रीसालू हंदी गौरडी (प.) २१३-३७ ८६.२४ ४३४ , , , , २१२-१६ ४६. बाजा छत्रीस बाजीया ५७-१३ ४३५ रीसालू हंदी वातडी १४४-३४३ ४६१ धाडी मेहला प्रादमी ८६.१०६ ४३६ सालू षोटो थयो (प.) २०९-६५ ४६२ वात रोसालूराय की १४४-३४४ ४३७ रूडा राजिद जाणज्यो १०८-१९७ ४६३ विच कर डंडडी (प.) ४३८ रूपांसू घोली करूं १२६-२८७ २११-१३ ४३६ रूपा सोनानी रूप रंज (प.) ४६४ विधना तूं तो वावली १११-२११ २१३-४० ४६५ विष-वेलीका ईहा षरा ६०-११५ ४४० रेढा सरवर किम रहे (प.) ४६६ विसरा-वसरी चोसरा ११९-२५० २०२-४६ ४६७ वीजलीयां चमकीयां (प.) ४४१ रेढा सरवर न छोडीई (प.) २०५-६८ ४६० वीरह विडाणां मेहलयो ४४२ रे फूटरमल हिरणला ८७-१०१ १३०-२६० ४४३ रे बाबा तुं जोगीमा (टि.) ४६६ वीरां कांइ वरांसोयो (प.) १४२-७० २०६-७५ ४४४ रे सूथारजीरा डीकरा ७६-७३ ४७० वीरा तुं सुलषणो (टि०) ४४५ रंडो भूडी ते करी ११०-२०६ १४१-६७ ४४६ रंडी राजी ना हुई ११०-२०४ ४७१ वेधालं मन धीधयो ५१- ३ ४७२ वेलारा साजन भणी ६३-३९ ४७३ वंका लोइण लोइसा ११९-२४८ ४४७ लगन लेइन जोईयो ५७-१८ ४७४ वंदो जम छोडावीया १३२-३०५ ४४८ लागणहारा लागस्ये (प.) १९९-२७ ४४६ लांबी लांबी भोषडी १२०-२५६ ४७५ श्रीगोरषनाथजीरे ध्यानसू ४५० लेष विधाता जि लीष्या ५१-२ ८१-८३ ४५१ लोक करत बधामणा १३२-३०३ ४७६ श्रीमाहाराजा जाणज्यो १२६-२८२ ४५२ लोक करे बधांमणा (टि०) ४७७ श्रीमाहाराजा भोजजी १३१.२९४ १३२-५६ ४७८ श्रीमाहाराजा हुकम यो ४५३ लोक कर वधामणा (टि०) १३ -६०, ६४ । ४७६ श्री सिष श्री श्रीहजूरने १३६-३२६ २०४-५८ Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स [ २३४ ] ५०३ सहस दाय हैवर दोया १३५-३२२ ४८० षट्रीतभोगी भमर ज्यूं ५२-६ ५०४ साइब भरस्यां गोरडी ६५-१३७ ४८१ परीय उहेलि छातीयां ६२-१२७ ५०५ साई बाजी राषबे १३०-२६१ ४८२ विजमतबंधी रावली १६-१४३ ५०६ साई साजन प्रेम का १२२-२६३ ५०७ साथ घिस्यौ पूठो होवे ६६.५७ ५०८ साद करी करी हूं यकी (५०) ४८३ स्यं कोषो राणी एहयो १७.१५२ २०३-५४ ४६४ सकल प्रोपमा जोग्य है १३६-३३० ५०६ सांप छोडी कांचली १२५.२७७ ४८५ सज्जण दुज्जण सुष करण (4) ५१० साप ज षाधे सहु मरे (प.) २००-२६ २०६.६४ ४८६ सज्जन गया गुण रह्या (प.) ५११ सारा विडाणा हिव हूषा २०४-५७ ७५.६७ ४८७ सड सड सुड्या चषिया (प.) २१२-२२ ५१२ सालधहण नृप राधका ५६-११ ४८८ सत कोधो ने साहबण ११०-२०५ ५१३ सालवाहन नलवाहणरा (प.) ४८६ समस्तपुर पुत्र जनमीयो (टि०) २११-१ ५१४ साली मो मन माहरी ११०.२०६ ४६० समस्तसूत रीसालूबो ७६-७० ५१५ सासरीया पीहर तणा १०४-१७२ ४९१ समूद्र घोडं चालीयो ७२-५६ ५१६ साहिबडा तुमै सांभलो ११४.२२१ ४६२ सरवर कापड धोइया ११२-२१६ ५१७ साहिब तो सूता भला १२२-२६२ ४६३ सरवर निरमल नीर ५१८ सिंगालो भरि बोलणी ५२.७ १११-२१४ ५१६ सिर जातां जीष जायस्ये (प.) ४६४ सरवर पाय पषालता (प.) २००-३४ २१४-५१ ५२० सीधावी सीध करी ६९-५३ ४६५ सरवर पाय पषालतां (दि.) ५२१ सोर प्रमार अमी झर (प.) . १३३.७१-७२ २१४.४८ ४६६ , , , , १३५-६७ ५२२ सोह तणा जेधा बाछडा ६५-४४ ४६७ सरवर पाय पषाला (टि.) ५२३ सुंण बाई वीरो कहै (दि.) १३४-५८. ५६.६६ १४१-६८ ४६८ सरधर पाव पषालती (प.) ५२४ सुंण बीरा बैनी कहै (टि०) २०८-८ १४१-६९ ४९९ सराहीये टुक दंती (प.) २१४-५५ ५०० सरोवर धोर्या धोतीयां (प.) ५२५ सुण सुण साहीव हठमला (टि०) २०४-५६ ८५-६३ ५२६ सुण हो साहीव हठमला ६१-११० ५०१ सल्ला होय सो कोनीयों १३६-३३६ ५२७ सुणीर्य मगजी प्राजरी ८६-६६ ५०२ सहस प्रांबा सहस प्रांबली (प.) ५२८ सुरणो पातस्या हठीमल (टि०) १९९-२१ Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२६ स्कुलीणी नारि तिका १३५-३१८ ५३० सुगणी तुं चिरं जीवज्यो १२६-२६६ ५३१ सूरण रे हठीया पातसा १०२ - १६५ ५३२ सुन सूण साहिब हठमला ८५-६३ ५३३ सूणोयै रोसालूरायको ५३४ सूरज-किरण ज्यूं तन मि ८६-६८ १३६-३२६ १-११६ १०६-१८२ ५३५ सूरा पूरा सो हुमो ५३६ वा किण देशे चलां ५३७ सूष करस्यूं सारी बातरी १६-१४४ ५३८ सूष बहु तुम परसादथी १३६-३३१ ५३६ सेज ऊजरी फूलूं जई ( प. ) २०१-४० ५४० सेयण रोसालं हुय रहो १२३-२६६ ५४१ सेहर उज्जेणी के गोरमे १२८-२८५ ५४२ सैहर सगलो भटकावोयो (टि० ) ५४३ सो कोसां सजन वसे ५४४ सोनी हंदा दीकरा (१०) ५४५ सोभा मान सरोवरां ५४६ सोल धरसरी वीजोगणी ह ५५१ हइडूं न हलाबोई ( प. ) [ २३५ ] १४०-६० ११८-२४२ २१४-४७ १११-२१५ ५४७ सोवन झारी हाथ करि ( प. ) ५४८ सौ तुम श्राज इहा र ५४६ संग सुहेलो पीउ तणो ५५० संझचा सूं घडी च्यारडी १२२-२६४ २०७-८२ ८६-६७ ६३-३६ ८५-६५ २००-२८ ५५२ हठमल मन काठो करो ६१-१२० ५५३ हठमल मीलज्यों साहिबा ११०-२०२ ५५४ हठमल हठ कर चालीयो ५५५ हठीया पतसा हठ न कर १०१-१६३ २११-७ ५५६ हठीया रावत वाकड १०७-१८६ ५५७ हठी हठीला हट्टीया (प.) ५५८ हडवड प्राग हीसता ५५६ हड हड दे मुडी हसी ( प. ) २०१-३७ ५३-१० ५६० हथीयांश पाषल जूडे ( प्र ० ) २११-४, ५ ५६१ हमकी लोंयण लोइया ५६२ हम परदेसी पंथीया ५६३ हम ही लोयण लोइया (टि० ) ५७२ हाथ प्रीउ मुष ५३-६ ६८-१५४ ६८-३६ ६१-२१ ५६४ हय गरथ सोणगारीया ५६५ हर्षतणी गत होय रहि १३२-३०४ ५६६ हरण्या भला कैहरी भला (टि०) ६२-१२६ ७१ - ५ ५६७ हरष बधाइ नं श्रावीया ६२-३० ५६८ हरिया हुयजो वालमा १०८ - १८७ ५६६ हरि हरणां थल करहला ( प. ) १६७-७ ५७० हरीया बागारां राजवी १०८.१८६ ५७१ हरीयो होजे बालमा ( प. ) २१२-२७ प्रीउ ( प. ) २१२-२५ २०२-५२ ५७३ हाथ पीउ मुषमें पीउ ५७४ हाथ पीउ मूष पर जलं १०३-१६८ ५७५ हारचो सघलो गांमडो ( प. ) १६८-१८ ५७६ हिरण कहै रांणी रासरी ८८-१०५ ५७७ हिव रोसालू सोसकूं १०२-१६६ ५७८ हिबे कुवरजी हालोया ७२-६० Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २३६ ] ५७६ हरण भला केहर भला (टि०) ७०-१० ५८० हीरण भला कहर भला (टि० ) ७०-२६ ५८१ होव चवरी मंडप तणे ६०-१६ ५८२ ही घरे जोतसी तेडीया ५८३ हुकम भलो माहाराजरी ५८४ हुं जिण पुरुषरी गोरड़ी ( प. ) २१४-५२ ५८५ हुं हठालु हमला (टि०) ६१-२७ ५८६ हुं हठवा हठीमला (टि०) ६३-२५ ५८७ हु हठाल हठमलो (टि०) ६१-२६ ८८ हे बांदी यांहरा हाथरो ११५-२२५ ५८६ है म्हैल छवंती गोरीयां (प.) २११-११ ६१-२६ ५७-१७ ५९० है म्हैल छवंती (प.) २११-१२ ५६१ है मेहल [ल ]छवंती गोरीयां (प.) २११-१० ५- १३५ ५९२ है सुगणी म्हे पंषीया ५६३ होणहार बुध उपजं (टि० ) ८८-१६ ५९४ होनहार सो बुध उपजे (टि०) ५६५ होणहार सो नही मिटै ५६६ होणहार सो ही ज हूवो ५६७ हंज सरोवर हंज पीए (प.) ८७-२३ ७५.६६ ६६-५२ ५६८ हंसा ने सरवर घणा (प.) २०६-६६ १८७-५ Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट २ (ग) नागजी ने नागवंतीरो वात दूहा-अनुक्रम १ प्रांबो मरवो केवडो १५६-५३ १८ ढोल दडूकै तन बहे १५३-२७ प १६ प्रीत निवाहण अवतरया १६३-८० २० प्रीत लगी प्यारी हुँती १५२-२१ २१ पापी बैठो प्रोलीय १५६-३६ २२ पीपल पान ज रुण-झणे १५६-५१ २ अंडो गाजे ऊतरा १५६-५० क ३ कमर बंधावत कुंधरकुं १५०-६ ४ कान-घड्यां चले सोवना १५८-४२ ५ कुच कर पोखद भुज-पटी २३ बेलड़ी तिलड़ी पंचलड़ी १५८-४३ म ६ कुछ मा भुज जा महर जा २४ मन चिते बहुतेरियां १४५- १ ७ गोरोदा गल हायडा .८ मोरी बांह छातीयां ६ गोरी होयो हेठ कर १५०-१३ १५०-१२ १५०-११ २५ रहो रहो गुरजी मूत कर १५८-४५ २६ राजा वेब बुलायक १५१-१८ २७ रिमझिम पायल घूघ। १५८.४१ १० चख सिर खत अदभुत जतन १५२-२२ ११ चेला पुसतक झल करी १५८-४४ २८ लाख सपाणप कोड बुध १४५-२ १२ छोटो केहर बोहत्त गुण १४७- ३ १३ जा जोबन पर जीव जा १६०-६० १४ जान मांणो रतडी १६१-६३ १५ जावो जीभा ना कहूं १५१.१४ १६ जो याकौं गावे सुणे १६३-८१ २६ सजन आंबा मोरीया १५६-५२ ३० सजन चंदन बांधने १५६.५४ ३१ सजन दुरजन हुय चले १५१-१६ ३२ सिपावो ने सिध करो १५१-१५ ३३ सिसक सिसक मर मर जीधे १५२-२० ३४ सेल भलूका कर रह्यो १५३-२८ १७ डूंगर केरा बाहला १६१-६७ ३५ हे विधना तोसुं कहूं १५०-१० Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २३८ ] सोरठा-अनुक्रम १ प्रमीणों तुम पास २ पाईयो प्राढालाह ३ प्रख्या प्रांकस बांग १५४.३१ १६२-७२ १५०-८ २१ नागजी तुमीणा नेह १५२-२३ २२ नागजी नगर गोह १५१-१७ २३ नागजी समो न कोय १५२-२४ २४ नागड़ा नव खंडेह १६२-७३ २५ नागडा नवलो नेह १६१.६४,६५ २६ नागडा निरखं देस १५७-३७ २७ नागडा नींद निधार १६०.५७ २८ नागडा सूतो खूटी ताण १६०-५८ २६ नागा खायजो नाग १५५-३५ ३० नागा नागरवेल १६१-६६ ३१ नां भरतो ना भूत १५८-४७ ४ इम कहीया बहु वेण १६१-६६ ५ऊंडे पडव पंस ६ ऊपर पाडे महीर १६२-७४ १६२-७५ १५७-३८ ७ कटारी कुनार ८ करक कलेजा मांहि ६ कलमेंको कुंभार १० कुलमें वोय कुंभार ११ कुंकु बरणी देह १६०-५६ १५२-१६ १६२-७७ १६२-७८ १५५.३४ ३२ भामण भूल न बोल ३३ भावज भणुं जुहार ३४ भावज संपाडे बैठाह १४८- ५ ३५ मूवा मुसांण गयाह १६३-७४ १२ चढ़ती चड बड तार १३ चुडलो चीरा एह १६१-७० १६२-७६ ३६ बण्यो त्रियाको बेस १५७-४० स १४. जाय जसी जुग छेह १५ टिपाटिप टपीयांह १६ डाकण नहीं गिवार १५८.४८ ३७ साजनीयांसू प्यार ३८ सामा मिलीया सैण ३६ साली सूनो ढोर ४० ससराजी सो वार ४१ सूतो सवड घरेह ४२ सूतो सुख भर नींद ४३ सेवा सेह तडांह ४४ संपाडे बंठाह १५४-२६ १५४-३० १५८-४६ १६१-७१ १६०-५६ १५६-४६ १६०-५५ १४८. ४ १७ तम्बोली प्रापो पान १८ तूं होरावल होर १५०-७ १६१.६८ १९ घचला बाल न वाढ १५४-३२ २० मागजी तणे सरीर १५३-२५ । ४५ हूं जांणू तूं जांग १४६.६ Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट २ (घ) वात - दरजी मयारामरी दूहा - अनुक्रम vacraman १ अगलं भववाली प्रब १८५-१४७ २ प्रण दारूर ऊपर १८१-१२४ ३ अण दासू हे अली १८१-१२६ ४ अण सरत प्रण प्रकलने १८५-१४६ ५ प्रतरी अवगुण प्रापमै १८१.१३० ६ प्रतलस थरमा ऊमदा १६७-३० ७ अरज करां अलवेलीया १७५-७५ ८ अलगी वे जोहे अली १६८-३७ ६ प्रलल बचेरां ऊपर १७३-५७ १० प्रलल बचेरा ऊमदा १७३-५६ ११ प्रलल माहे ऊपनी १६५-१४ १२ प्रलबल (र)रहणौ पाए १७४-६६ १३ प्रलबल हुँता ऊडीयो १६६-२० १४ प्रांगलीयां जगरी यसी १६९-४२ १५ पाठू अपछर प्रागली १६५-१५ १६ पाबूगिर प्रछ (च) लेसरी १६४- ५ १७ प्राया वचनांमै अब १६५-१० १८ पास डाबीरी प्रग १६४- २ २४ कडां जनेऊ कंठीया १६७-३२ २५ कलजुगरो माने कहर १६५- ७ २६ कलहल करसी केकीयां १७९-१०४ २७ कवीयणन सिधांणनं १६४- ३ २८ कसतूरी चंपककली १६५-१६ २६ कागद माहे कामणी १६६-२१ ३० काली बरसै कांठला १८०-११६ ३१ किसतूरी परजी करै १७३-५५ ३२ कुंग थाने कारू कहै १८१-१२८ ३३ कूजां दारू लेर कर १७९-१०० ३४ केइ नरर्ष कांमणी १७७.८४ ३५ केफ मही धकीयो कवर १८१-१२५ ३६ , , , , १७६-८१ ३७ के भगतण के कंचणी १७४.६० ३८ कोड गुना कामण कीया १८५-१४१ ३६ कोड सीस सवलालके १६५.१७ १६ इन्द्रायण मुष भाषीयौ १६५- ६ ४० घना-घना समजावीया १७५-७२ ४१ घम-धम बाजे घूघरा १८१-१३२ ४२ चहु दिस उमंघीयो झड चषण १८०.११३ २० ऊणां सहेल्यां प्रागला १६६.४७ ४३ चेलो हुनौ ज सूवटौ १६५-१२ २१ एक इन्द्रायण रिष उभे २२ ऐक पयालो ऊमदा २३ ऐक भटोरे ऊपर १६५-११ १७६-७८ १७५-७६ ४४ छिन छिनम पग चांपसू. १६९-४५ Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २४० ] ७६ फब सेली किलंगी फनी १६८.३६ ७७ बादल जम कुंजा बहै १८०-१२३ ७८ बंदू नंद गवरिया (बरवै)। ४५ जल वूठा पल रेलीया १७४-६१ ४६ जसको हंदी जोडरा १६९-४१ ४७ जसा अपछर जनमको १८१-१३१ ४८ जसा सरीषी जगतमै १६६-४० ४६ , , , १८२-१३४ ५० असीयां मद पीवो जदयां १८१.१२६ ५१ जहर जसा माने जसां १८५-१४३ ५२ जाषोडा कसीया जरी १६७-२६ ५३ जोडे कर पास जसा १७६-७६ ५४ जोधन मद पाई जसा १६६-१६ ७६ भमरा थाने भालसा १८०-११८ ८० भांच्याबस जाहर भुबण १६५-१३ ५५ डेरा दिस वलिया दुझल १७७-८५ ५६ तरह-तरहरा तायफा ५७ तुरर छोग चांकीया ५८ तहडो वरी तेरमो १७९-१०३ १६८-३५ १७८-६१ ५६ दासी कुंण जीव विवस १७४-६३ ६० दूजी मारी देषसी १७८.६७.६८ ६१ , , , १७६.६६ ६२ देष ऊभी दासीयां १७०-४८ ६३ दौय अगाऊ दोडीया १६८.३४ ८१ म्यारा जासो मुरधरा १७४-६५ ८२ म्याराजी थे मुरधरा १७४-६२ ८३ , , , १७५-७४ ८४ , ॥ ॥ १७६.८३ ८५ म्याराजी लोही मूमा १७५-७१ ८६ म्याराजी विरची मती १७५-७३ ८७ म्यारा थारा मुलकमे १८४-१३६ ८८ म्यारा पासी मोहको १७४-६४ ८६ म्यारामजी थे मांणजी १६६.४३ ६० म्यारा मारा मुलकरा १८४-१३६ ६१ म्यारै कागद मेलीय १६७-२२ ६२ म्यारोजी मोटा हुमा १६५-१८ ६३ मद वैरी अगीयारमौ १७८-६० ६४ महि चा(छा) इ मामोलीयां १८०-१२१ ६५ मारी थारी म्यारजी १७९-११० ६६ मारू मां मनुप्रारको १७६-१११ ६७ माल भाष म्यारने १७५.६८ ९८ मालू थांरा मुलकमै १८४-१३८ ६६ माल मारा मुलकमै १८४.१३७ १०० मालू मेले मांझली १६८-३८ १०१ मिजलां-मिजला म्यारजी १६८-३३ १०२ मुजरो करने मालकी १६८-३६ १०३ मुरधर जोवण मालकी १७४-६७ १०४ भुषसूदाय म्यारजी १६६.४६ १०५ मे तो पणसूमालको १८५-१४२ ६४ नदीयां नाला नीझरण १८०-११६ ६५ नरपुर में रहसा नहीं १६५- ८ ६६ नबमी पा वैरण नदी १७८-८६ ६७ प्रीत पहेला पेरने १६९-४४ ६८ पग-पग ऊपर पदमणी १८५-१४५ ६६ पलीवालरी पोत ज्यू १८३-१३५ ७० पाका वैरी पनरमा १७८.६२ ७१ पाग चोटो पाक छै १७३-१५६ ७२ पांणी पल-हल परबतां १७९-१०६ ७३ पूठ सहसां पांचरं १६७-२३ ७४ पहला दारू पायने १८१-१३३ ७५ पोसाका कोजो प्रबल १७८-९५ Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट २ (घ) [ २४१ १०६ मे तो टंगण मालकी १७३-५८ । १३५ सैठो कीधो सायधण १७६.८२ १०७ मै तो बरजी मालको १७५-६६ १३६ संगरा भीजै साथीयां १८०.११४ १०८ मोतो हीरा मूंगीया १६७-३१ १०६ मो लंकाने मूदडी १७६-७७ १३७ हीडां वासां हीडबा १७६-१०८, १३८ , , , १७६-१०६ ११० रातां हष थोडी रही १७२-५० १३६ होडारी लीजो हलक १७६-१०१ १११ रानां पर ताना करै १६७-२५ १४० हीडा रेसम हेमरा १७६-१०२ ११२ रीसा बलती राजनै १८५-१४४ १४१ हो. लागी हीडवा १७३-५२ ११३ रेवत समजै रानमै १६७-२६ १४२ हीड सहीयां हीडसी १७८-६४ ११४ रेवंत समज रानमै १६७-२७ १४३ हेमो लाधो नै हरो १६७-२४ गीतादि-अनुक्रम ११५ लपटोजे तरसूलता १७३-५४ ११६ लष ग्रहणां वप लपटजौ १८८-११७ १४४ प्रासां जडी लगासां दुबारे ११७ लाली यक कावल लुली १८१.१२७ सूंघ भीन प्रासाँ १७७- ३ १४५ ऊकतां ऊंडी ऊमदा जुगता हु जांणां १६४.४ १४६ प्रोप लपेटो अपार धागो १७०.१ ११८ व जसी थाढी वायरी १७९-११२ ११६ वरचा(छां) चढसी वेलडी १८०.१२२ १२० वरसालो मैमत वो १७८-६३ १२१ वरसालौ वैरी वूमो १७७-८६ १२२ वादल कालै वीजली १७३-५३ १२३ वादल गलगल बरससी १७९-१०५ १२४ विडगांरा बाषाण १६७.२८ १२५ वैरीचोथा बादला १७७-८७ क १४७ करें कोडजाडा दोढी पंचाणा कनाटो कार १७७. ४ १२६ श्रामण मास सुहामणो १८०-११५ १४८ वरंजी रहो रही चां नोजी १८४-६ १४६ चोगां तोडा पवत्रा किलंगी सेली पाग छाई १७०-२ १२७ सत त्रेता द्वापुर समै १६४-६ १२८ साकल पल हलसी घरा १७६-१०७ १२६ सातु मिल सहेलीयां १७६-८० १३७ साथ लाग्यो सूषडां १८०-१२० १३१ साथ लीजो साथीयां १७८-६६ १३२ सारंग वैरी सातमा १७७-८० १३३ सारी ऊठ सहेलियां १७३-५१ १३४ सुग मालू थारी जसा १७५-७० १५० जेले तुरंगा रेसमी डोरी वनातां जडाव झोण १७७- १ १५१ जोवे जुल सहेली हवेली सीस चढे जोषी १७७- २ १५२ मलंबा झलूस साज सहेल्यारौ साथ जो १७०- ४ Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ ] परिशिष्ट २ (घ) १५३ दादुर मोर पपीया नस-दन १८३.२ १५७ लांबक झूबक लाडली अंग ___टेर अपारा (नीसाणी) १७०-४६ प १५४ पग-पग कोछ अथग लग पाणी १८४.५ १५८ बन सघन लसत मनु घन वसाल (पद्धरी) १८४-१४० १५५ बरसै सघण षळ ळ बजवाळा र १५६ सरवर कह रस भर जल सिलता १८४. ४ १६० साथीयां सजोडा घोडा जाषोडां साकतां साजी १७०- ३ १५६ रहीया ढक गिरिवरी छीयां रसीयां १८३.१ Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ३ बार्तागत सूक्तियाँ •ocoom अंबर तारा डिग पड, धरण अपूठी होय । साहिब घीसालं आपणों, तो कलि उथल होय ॥-१२६-२८९ प्रहयो प्रासाढाह, गाजी नै घडकीयो। बूढो बाढालाह, निगुणी भूई सिर नागजी ।। -१६२-७२, अण कह्यो म ऊधपो।। -१८२-१३४ प्रण काली पणनं प्रब, माली कर माकूल । -१८१-१२५ प्रत चोषो ऐराक -१७६-७८ अपछर मैं और न पक्षी, रंभा छवि सारीष। षट रुत मैं नही पेषजे, रति वसंत सारीष ॥-४२-२६५ अमर कर प्रो पाषरां, कवि कथ अमर करत। -१६४-३ अमीणों तुम पास, तुमहीणो जाणुं नहीं। विवरो होसी वास, धास न विवरो साजनां ।। -१५४-३१ प्ररज कर अलवेलीयो, पला झेलीया पांण । म्याराजी मत मेलीयां पमगां सोस पलाण ॥-१७५.७५ पाइयो लेष पालाहाका, दूष-सूष का विरतंत बै। पावेगी यारो मोतडी, पर बंधी कुलवंत बै॥ -१००-१५८ प्रांगलीयां जगरी यसो, मूंग तणी फलीयाह । -१६६.४२ प्रांख्या किस बाण, तांख करे ने तांणीया। न डरै तेण दीवाण, सो माढु नैणा ही मांणीया।। -१५०-६ माज रूपाली रातडी, झिरमिर बरस्या मेह। पोउ मन षांची पोढीयो, नवली नारने नेह ॥-१२२-२६५ प्राज सलूणी रातडी, मोही प्रलूणी होय। एको कामण सीझीयो, वांदी विधुता जोप ।। -११६-२३१ पाजूनी दिन प्रति भलो, जीवत रहीया म्हेह वे। हिव सारा ही पौकड़ा, करस्यां सारा जेह वे।। -६५-१४० Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ ] परिशिष्ट ३ माजी उमरी अतरररा -१८०-११८ प्राडा कसोया कामनी, नण-सरासर देत । धावा मचीया धो (ढो)लीया, संण सवादी लेत ।। -११६-२४६ प्राडा पडसी दोहडा, जद केहा जणां। -१६४-४ प्रांबो मरवो केवडो, केतकीयां भर जाय। सदा सुरंगो चंपलो, प्राज विरंगो काय ॥-१५६-५३ प्राभे अडंबर बादली, बीज चमको होय । तिण बोरीयां कचू कसं, पोवन राषे नोय ॥ -११६-२२६ प्राधला दलामैं म्यारा, प्रकासीयो रीत एही। सांवळा वादलां माहे, नकासीयो सूर ॥ -१७०-१ प्रासू लूधी सेणरी, धणीयण पास लिगार बे। पोठ पराई राचव, जोधत छंडे लार बे। -११८-२४३ उठियो कुंबर वीवालूबा, भीजे राजकुंवार । राजा रुठेगो गांव ले, नही तर घोडी त्यार ।। -११७-२३६ उत्तम जननी प्रीतड़ी, कोणहीक वेला होय थे । ते छोडी नै धोसर, ते जग मूरष होय बे॥ -८३-८५ उत्तम जीव हवे जिके, जिण तिण सं उपगार । करतां न जाणं हांण बे, राषे सूष परकार बे।। -१०-१८३ उतावल कीया अलूझीये, सन सनै सहु होय बे। माली सींचे सो घड़ा, रीत पाया फल होय बै॥-६६-१४१ उमरावां बरज्या घणां, राज न मान्यो कोय बे। बोधना लेख हुवै तिक, उ टले टलीया टलाय बे।। -६०-५१ उर-थल थोडा ऊफीया नींबूण चैयारां । --१७१ नो० ऊंडे पड़वे पैस, पिवसुं पंजां मारती। सुंमाणसीया एह, चूंघे लागा धोलउत ।। -१६२-७४ ऊँडो गाजे ऊतरा, ऊंची वीज खिवेह । ज्यं ज्यं सरवणे संभलु, त्युं त्युं कपै देह ।। -१५६-५० ऊणां सहेल्यां प्रागला, म्यारा हुं तिल-मात ॥ -१६६.४७ कवां बरस बादली, लूंबा-झूबा लोर ।। -१७८-८८ ए प्राणी रात, षबर पडसी मूझ परी। वैरण हंदी वात, परी म याज्यो पेलणा ।। -११६-२३५ Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ३ एक गई दूजी गई, हिव तीजी को नारी नही का प्रापरी, कुंडी जगमं श्रो मेल । केल ।। - १११-२१० श्रो जोऐ थांरी वाट । - १७७-३. गी० श्रो दोवो घर ग्रापरं, जिण दीठां जीवोह । - १६१-१२६ क कंचू कस्यो दिल हथ कोयो, मोलोयो तन सोनार । जाण केलना पांन पर, कपूर ढुल्यो कंठ कथोरा काठका, दन थोडा कटारी कुनार, लोहाली लाजी श्राजूणी प्रध रात, नागण गिल बैठी कटारी कुनारि लोहारी लाजी नाग तणे घट मांहि, बाढा नींबू ही कनक थाल में छेद करि, मारी लोहां कमर बँधावत कुंवरकु, विरह उलट गयो सजन वीछडण कब मिलण, काहां जांणें कब कर ढीला घट सांघुड़ा, नीर हुली बुल जाय बै पंथोडी तिरस्यो नही, नेयणाँ रहीयो लुभाय बे । ६१-१२५ कलमै को कुंभार, माटी रो भेलो करें | मोहि । होय ।। - १५०-६ नीरधार ।। - ११६-२४७ जाणा । १६४-४ नहीं । नागजी ॥ - नहीं । भली ॥ - १६०-५६ - १६०, टि० मेष । --- ४- ३० चाक चढावणहार, कोई नवो निपावे नागजी ।। - १६२-७७ कल मैं को कुंभार, माटी रो भेलो करे । जे हूं हुंती कुंभार, तो चाक उतारूं नागजी ।। - १६२ - टि० कला प्रकासत दीपको, दूणा भासत दीप | समीप ॥ - ४६- ३८२ रंभा दिषा छैबि रूपकी, स्पामा षडी कांमण कारीगर तणी, कांमण केथ सात कीयो साँसे गई, भलो दिखायो नेह ।। २१० २०८ पडेह् । काम विचारी ने कहो, रहसी तिणरी लाज बे । ऊठ कहो ऊतावला, तो विणसाडे काज बे ॥ ६६-१४२ कामण होयडा कोरणी, जीवत रही तुं प्राज बे । हिव सारी सिध होयसी देह विलूषी कामातुर होरां कहै, रबि राह चाहत चातुर अधिक चित, धातुर होत काची कली मत लूबीयँ, पाका लागेगा हाथ बै । जीवत जावेगा मानवी, नही को बोजा साथ बे ॥ ६६-१११ नाज बे ।। - ९४ - १३४ बिहरंत । अनंत ।। - ६-४१ [ २४५ Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ ] परिशिष्ट ३ - १०८-१९१ भोज । - ३-१७ कारीगर फिरतार का, छयल किया तसू हाथ । जीहा पीउ थांरी छांहडी, तीहां पोउं मांहरो साथ ॥ काल हुते काची कली, भई सुपारी काली कांठल भलकीया, बीजलीयां चमकती मन मोहीयो, कंचू छाकी कुंकुंवरणी देह, टीकी काजलीयां एह तुमीणा नेह, सू नित मेलो कुच कर श्रीखव भुज पटी, अहेर पती उन नयननके घाव कूं, श्रोखद कुच जा भुज जा प्रहर जा, तन धन नागो सयण गमाइयो, अब रहि र कूड कपटनी कोथली, रमती पर लजां संकण जान ही, प्रीतम मन कुल मैं दोय कुंभार, वांसोलो ने ने हुं हुंती सुथार, नवो घड लेवत कुलवटनी कामणि तण, सासरीयों इश्वर गत जाणे घरी, श्रादर पुं ( कुं) जी इ नरषे कांमणी, प्राडे गुंघट केहनी अस्त्री न जांणज्यो, कुड़ो नेह पूत्र पराई नारीयां न धरे एक ही कंत बे ।। - १०४ १७१ कोड छडाया कागला, पीउडा कारण पाय | विधना हंदी वातड़ी, जब करो मूझ माय ॥ - १२२-२६६ कोरण उत्तराधिकरण, घोरण ची (चो) ली कुवाल | रचंत बे । घणीयां घण साले धणी, वणीयो इम वरसाल ॥ - ११६-२३० ग गयय | देय ॥ थई । नागजी ।। - १५५-३४ दे ताव | एह लगाव ।। १५३-२६ जाह । काह ।। - १६१-६१ जोबन करसी पुरुषांह | पिछांह | बींझली । - १३३-३०६ नागजी ।। - १६२-७२ सीरदार । नार ॥ - १३४-३१४ झुराय । खाय ॥ प्राय । - १७७-८४ गरदन जसकी गांगडी, तक कुरज तरारां । -- १७१ - नीं० गुनेहगार हुं रावलो, साहिब चरणां दास । छोरूं कुछोरूं हुवं, तात न छोडत श्रास ॥ गोरीदा गळ- हाथड़ा, नागकुंवर कर सेल । எரிஞ் चंदन षडं, अवर विलंबी वेल ॥ - १५०-१३ - ६४-४१ गोरी बांह छातीयां, नागकुंवर न जांणे चंदन खडे, बेल कलुंबी गोरी हीयो हेठ कर, कर मन सांई हाथ संबेसडो, तो मिलसां सो-सो घार ।। - १५०-११ धीर करार । -१३६-३३७ - १५०-१२ Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ३ [ २४७ घणा दोनारी प्रीतडी, कोम मुझ छांडी जाय बे। रूडा राजिद परषज्यो, जीवू ज्यां लग काय बे॥-८३-८७ घणी सासती नारी नहीं, सेणा सहिल अपार । प्रेम गहैली सेंगने, प्रापं तन-धन सार ।। -११८-२४४ चकोर चाहे चंदकू, मोर चहै घण मंड। -२३-१९२ चख सिर खत अदभुत जतन, बधक वैद निज हत्थ । उर उरोज भुज प्रधर रस, सेक पिंड पर पत्थ ॥ -१५२-२२ चसम म मीच -१८१-१३२ चाल[क] हीरां चंदसी, केत राहा सो कंथ । -४.३१ चाल विलूबी इधक चित, वेल तरोवत चांण । लपटावो गल लाइलो, रसिया प्रोहित रांण ॥ -४८-३७१ चुडलो चोरा (चीरा) एह, मोल मुहंगे प्राणीयो। नाखूनी झाडेह, भव पैला सुं पाइयो ।। --१६२-७६ चेला पुसतक झलकरी, कहा पूछत है वात । इण नगरी की डगर मैं, एक प्राक्त एक जात ॥ - १५८-४४ छटी (ठी) वैरण रात -१७८-८७ छोटो केहर बोहत्त गुण, मिल गयंदा माण। लोहड बडाइ नां कर, नरा नखत्त प्रमाण ।। -१४७.३ जगमें नारी रूवडि, वसत करी जगनाथ । पिण साचे मन चालबे, तो पिउ थाय सूं नाथ ॥ -~१३४-३१५ जतीयां सतीयां जोगीयां, बक-फाड ब (ब)ठारां। -१७२-नी. जलज्यो पासा पेलणा, जलज्यो पेलणहार । दस मासरी डोकरी, ले गयो कुवर रसार (ल)।-७८-७२ जल बूठा थल रेलीया, घसषा नीले वेस । १७४-६१ जाग नह मांसू जसां, वरण थारो वौद । १८१-१२५ जाचक जै जै बोलीया, मेह प्रागम जिम मोर वे। यानं करि राजी किया, तोरण बांध्या तोर बे।। -६१-२४ जा जोबन पर जीवजा, जा पांणेचा नेण। नागो सयण गमाय कर, रही किसा सुख लेग । -१६०-६० Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८ ] परिशिष्ट ३ जांण न पाई हठमला, नवि पूगो मूझ डाव | जे हुं मारची जांणतो, तो करती कटाऱ्यां घाव । - १०८-१९६ सोनारा । - १७० - नीं० विसाल । जांणे नागण होडले, पंभां जांणे मान सरोवरे, मीलप्यो हंस सेझां श्राई सुंदरी, छुटो गज जांणे हंस मलपीयों, सर मांन जांन मांणी रतड़ी, ते न लाई वार । छंछाल ।। - १३३-३११ महारां । - १७१ नी० श्रम विछोहोतं कीयो, तो करज्यो भरतार ॥ - १६१-६३ जाय जसो जुग छेह, पाछा प्राय जासी नहीं । नाला विच बॅसेह, चले न वातां कीजसी ॥ - १६१-६२ जावो जीभां ना कहूं, वधो सवाई थ ऊगडसी यां प्रावीयां हता रथां को हट ।। - १५१-१४ जे नर रूपे रूपड़ा, ते नर निगुण न हुवंत । जीमण भोजकुंमार का, मोह्यौ मन तन कंत || जे पर पूरषां कामनी, होलमील बेलणहार । ते पति ने काकर समो, गिणे नित की नार ॥ ९३ १३१ जैसा सूत्र ज्यूं बाल्हा (लहा ), जेसा प्रवर न कोय | विण जग मावीता तणौ, सूखमें दुष को जोय ।। जोगीडा रसभोगीया, भर-भर नयण मत रोय बे । श्रासी (स्त्री) मजांणो प्रापरी, घर तुंमारा जोय बे ।। जोवण जोगी जोड | - १३२-२६८. - १०५-१७५ - १७६-११० जोवन चढीयो जोर ---१७८-६१ जो सूरज प्राथूण में, उगे दिन में हजार बे । नाग न जो सीतलपण करे, तो पिणहूं नहीं बार वे ॥ ---८३-८४ ज्यू पितुं जपे तुं बरो, कालो गोरो कथ । तेहबो हुकम चढाईये, सीस सदा झड पडत घावरत मनुं तुच्छ नीर झ कोच तड़फड़त ट ड -१३३-३१३ समरथ ॥ - १३१-३०२ टिपटिप टपोयांह, विण बादल बुछुटीयां । प्रांख्यां श्राभ थयांह, नेह तुमीण नागजी ।। - - १५७-३९ भोन । मीन ॥ --- ३८-२६८ डाकण नहीं गिवार, सिहारी हूंती नहीं । सलती मांझल रात, खरी सिहारी हुय रही । - १५८-४८ Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ३ [ २४९ डूंगर केरा. बावला, अोछा तणे सनेह । वहता है उतावला, झटक देखावै चेह | -१६१-६७ ढोल दडूक तन वहै, गेहरीया नाचत । चालो सखी सहेलड़ा, कठे न दोसे कंत ॥ -१५३-२७ ढोल धडक तन दहै, विरहीणी सतीया होय । पीउ मोलामो तो मील, तो किम दुषीयो कोय ।। -१२७-२८४ तण पुल रमसा तीज, १७९-१०४ तल गुंदल निलज उपरे, नीर निरमल होय । टुक पोवहो रीमालूवा, नोरमल नोर न होय ॥ --१२५.२७६ तास तीषा लोयणा, प्रोस (पर) चंगी वेणाह (नणांह)। धार विछटी घर गई, नर चढियो नैणांह ॥ -१२४.२७३ तीजी वरण तीज, १७८-८६ तुररे छोगे चांकीया, झलंब रहै प्रठ जाम । भीनं रंग अलीयो भमर, मारपीगर म्याराम ॥ -१६८-३५ तू होरावल होर, मोट सूता मिलसी घणा । तू पाटण पटचीर, नारी - कुंजर नागजी ।। -१६१-६८ ते नारी गढ - सूरड़ी, होवै जगमै हरांम बे। स्यूं ए रीसालूरी गोरडी, हठमलसू हित काम बे। -६२-१३० तेहगे वैरी तेरमो, जोवन चढीयो जोर ॥ -१७८.६१ तो सरसी नारी तणा, वेल तणा मन खेल। प्राण तणा पासा ढल्या, मेंमत कीषा मेल ॥ -११०-२०७ थारो पीरो बहुबली, तीम प्रजण-बांण । रयणी वात बहू गई, ईण बोध राता रेण ॥ -१४२-७३ दईवाधीन लिष्या जके, अंकण भिसले सीस बे। जेसा दुष-सूष सीरजीया, जेसा-जेसा लहै नर वीस वे ॥-१०७-१८४ दल चावल भेला हुवा, देतां नगारां ठोर । जाण भाद्रव गाजीयो, चढीया यहां सजोर ।। -१३७-३२७ वसमौ वैरी दीबलो, १७८-८६ दारूको पी धल (धण)वर्ष, छकी प्रण सारू । -१८१-१२८ दुलही बनड़ो वेषतां, ऊलही उर बिच प्राग। संगम वेषो साहिबों, कोनों हंसर काग ।। -४.२६ Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० ] परिशिष्ट ३ देषत घुघट प्रोट दे, बंको द्रगनि बिसाल । लोन बसंत गुलालमैं, लसत अंग छवि लाल ॥ --४४-३१५ देषो हुंती दस मासनी, पाली किण विध पोष बे। हिष परघर मंडप करी, अस्त्री जातरी प्रोष बे।। १०४-१७० बोढी कर दो दूर, १७६-७३ धण वण प्राव ढोलीय लगथगथी लारां ॥ -१७२-४६ नों० धवळा बाल न वाढ, नागरवेल न चढीये । चंप पली चाढ, फूल बिलंब्यो भंवरलो ।। -१५४-३२ नष अंगूठे अंगूली, भरीयो कलस अभ्रूग । प्रजेयस मारू साहिबो, बोले नहीं प्रो वूग ।। -११२.२१७ नर-नारी पौठा नषंग, तीषा वं तोषार । -१८४-१३७ नवमी प्रा वैरण नदी, १७८-८६ नवल सनेह पीहर तणों, पीण सासरीयों परधान । सासरीयो जुग-जुग तणो, सूष पीहर उनमान बैं॥-६४-४० नही घोडा रथ उंटीयां, हाथी ने सूषपाल । चाकर-बाबर को नही, ए नृप केहा हपाल ।। १०४-१७३ नागजी नगर गयांह, मन-मेळू मिलीया नहीं। मिलीया प्रवर घणांह, ज्यांसुं मन मिलीया नहीं ॥ --१५१-५७ नागड़ा नवखंडेह, सगपण घणांई तेडोये। भुय ऊपर मुँचताह, मिलतां ही मरजै नहीं ॥ १६२-७३ नागड़ा नवलो नेह, नोज किण ही सु लागजो। जल सुरंगी देह, धुखै न धुंवो नीसरे ॥ -१६१-६५ नागड़ा नवलो नेह, जिण-तिणसू कीजे नहीं। लीजे परायो छेह, प्रापणो दीजे नहीं ॥ --१६१.६४ नागड़ा निरख देस, एरंड पाणों थपीयो। हंसा गया विदेस, बुगला होसु बोलणो॥-१५७-३१७ नागा खायजो नाग, काला करई महिलो। मुंवो न मिलज्यो माग, जांवतडे जगाई नहीं।। -१५५-३५ नार पराई विलसतां, कांटा पूर तूटाय थे। सीस साई जब बीजिये, मीच पडे सूचि काय बे॥ --१०१.१६४ नारी न जाण्यो मापरी, जगमें न र॑णी कोय । मूगस मरावं हाथसू, पाछसू सतो होय ॥-१११-२१२ नारी नहीं का प्रापरी, पूठ पराई थाय। जो हित तन-मन वीजता, पिण न पतिज जाय ॥ ११८-२४० Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ३ नारी ना-ना मूष रर्ट, बिमणो बंधे जांणे चंदन रूपडे, नागण लपटी नितवां दीजे श्रोपमा वीणा रखे हारां ॥ १७१- नीं० प पर घर करां न प्रीतड़ी, प्रोहित बचन दाषां म्है छां काच दिढ, रमां न धिय परवाई कीणी फूरे, रीछी परवत तिण विरीयां सूकलीणीयां, रहती पीध पलीवालरी पोत ज्यू, ऊठ्यो झाटक फूलां पनरमा, वलीयां बोलड़ा, वाद कर पाका वैरी पाछे बोलो रीसाय | अलबामणो, होय सदा दुषदाय ।। - १३१-२६७ लगाय । ते सूता पितुं पापी बैठी प्रोलीयो, कूडा इलम निलाडांरी फुट गई, पिण हिवड़ारी वी जाय ।। -- १५६-३६ पालो पांणी पाससाह, वढी उत्तराधि कोर । तोरा बोरीयां धणियांयति, मोरडीयां ज्यू भिगोर ॥ - ११६-२८८ सोड । जोड ।। - १०६ - १६६ अंग । पांना फूलां मांहिला. सीस रहूंगी होयडे नमावे मेहल के नाराज्यू साजना, लहुं मूझ पिंडस पतल कटि करल, केल लोयण तोषा डग भर, प्राई पीतमके उर सेझ पर, चंदमुषी मांनु भादवे मोसकी, लता पीपलपना पेटका प्रभ पीपल पान'ज रुणझणं, नीर ज्यु ज्यु श्रवणे संभलु, त्युं पुरुष प्रीत हीरां तलर्फ, दुषद ऐसें बुंद प्रकास मैं, चानग भुष पुत्र ईसा जगमें हुवं, माइत तणा रहे सदा मूष भागल, नहीं अलगा नही पुत्र पितारा हुकममें, जे रहे जगमं हिलोला त्युं कंपे होयो चीजो भरोसौ ते सारीसो जग हर्ण, वले न पूरब भला गहिला थई, राधे कदे ही प्रापणी नही हुई, नारी पूरो पूनम जेहवो, मूष विच कालो बादल कोर पर, बीज व्र छ सनेह । देह ।। - ११६-२५१ जाय । गल लाय ।। ११५ – २२७ श्रंग ॥ - १८३०१३५ केल प्रकास । रत रास ।। २० - १६० जग याग ।। - १६८-६२ पतंग ॥ - १३३-३१० चिपटंत । लपटंत ॥ - ४६-३८७ चीरारां । १७१ नीं० लेह । देह ॥ - १५६-५१ बाहंत । चाहंत ॥ - ६-४४ मंजूर । दूर ।। - १३१-३०० जोय । कोय ॥ नार । - १३१-२६५ निरधार ॥ - ११८-२४१ जडाव | चूंपे षीवे जिकेकाव ।। १३३-३१२ [ २५१ Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ ] परिशिष्ट ३ प्यारा पलकां ऊपर, राषालां चित रीत। रातै घणी छ राजधी, प्रीतम अधिकी प्रीत ॥ -२५.२१६ प्यारी पोष प्रजंक पर, ऊलही उर अवलूब । मांनु चंदन वृच्छ मिल, झुकी 'क नागणि झूब ।। -२५-२१४ त लगी प्यारी हुती, बाला थई बिछेह ।। नोज किणही नै लागज्यो, कांमण हंदो नेह ।। -१५२-२१ प्रेम गहिली हुं थइ, माहरा पीउरे संग। यूं नहीं जाग्यो हठमला, तो करती रंगमें भंग ।।-१०८-१६५ प्रेम विडाणा पारषा, जगके मोह अकथ । कर जोडि पितु पागलं, रहै सवाई साथ ।। --१३१-३०१ प्रोहित होरा पेषोयो, तीष नोष छिव तोर । बूषी तिषातुर देषिया, मान घणहर मोर ।।--३५-२६० फिट-फिट कुबधी सज्जना, कोनो नहीं मूझ साथ । षबर न का मूझनै पड़ी, तो मीलती भर बाथ ।। --१०८-१६३ फीक मन फेरा लीया, अंतर भई उदास । प्रांष मीच रोगी अधस, पीवत नीम प्रकास ॥ --५-३२ फेर पयाला पावसां, देर गलारी प्राण ॥ --१७९-१०० बाटो तोने जीभड़ी, कुटल बचन कहाय । .. रोस निवारो राजधी, मो पर करो मयाह ।। --४७.३६१ बालापणरी प्रीतड़ी, पूरण कीधी पीर। . लागा हाथ छयलका, हिव तोसू हुंवो सीर ।। --१०८-१६० बाला बिल-बिलताह, ऊतर को पायो नहीं। कदे काम पडीयांह, निहुरा करस्यौ नागजी ॥ -१६० टि. बांदी बोजी हुइ रूप देषे हाक-बाक ॥ --१७०-४ बाहि ग्रहां की लाज । -१८५-१४१ बोल वरी बारमा, पपीया पोऊ-पीऊ। -१७८.६० भला तुम्हे सुषीया हुवो, म्हे दुषीयारो देह । साहिब करसी सौ भला, पंषी पंषी सालेह ॥--६५-१३६ सला पधारघा कुमरजी, भलो हुवो दिन माज । प्रास्यां-बंधी कामनी, ताका सुघरचा काज || -१३२-३०६ भली बूरी माइत तनी, नषि कीजै देषे पूत्र । पठत मावीतथी, ते सफू जाणे सूत्र ।। -१३१-२६६ भावज भणु बुहार, सपणा संदेसग। Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ३ [ २५३ वै तुमौणा चोहार, जीव्या नितंही मांणीया ।। -१५५-३३ मामण प्यारी अंक पर, पीतम परस प्रजंक। बंक सरीर बिलांसमै, लसत कबूतर लंक ।। -४९-३८६ भीमण भूल न बोल, भंवरो केतकीयां रमै। जाण ममीठ चोल, रंग न छोडे राजीयो ॥ --१५७-३८ मद वेरी अगोयारमो। -१७८.६. मन चित बहुतेरीया, किरता करे सु होय । उलटी करणी देवरी, मती पतीजो कोय ।। -१४५-१ मंगल जारी मागरण, चोला छोड कुचीन । चाले मन पिउ नहि गिण, ज्यू मदमातो फोल ।। -१३४-३१६ माणस ते नही ढोरडा, पर-त्रीय राषं नेह बे।। नारी पत छोडो तुरत, पर-पूरुषासू नेह वै ॥ -६२-१२६ माय बीडांणी पिता पारकां, हम ही बिडाणां जाय बे। षेवटीयाकी नाव ज्य, कोइक संजोग मीलाय बे।। -७०-८ मालू ! थारी मुलकम, कासू भला कहो। नर नागा नारी नलज, रोजे केम रहौं। -१८४-१३० मांटी सूती छोडने, जावे पेलण नार। पर रस भीनी कॉमणी, ते हूई जगमे षराब ।। -११८-२३८ माणस देह विडाणीया, क्या हौंदु मूशलमान । आग जलाया कायने, हींदु धर्म निदान ।। -१०६.२०१ मेहा घोर कर प्रणमाप । - १५३-२ गीत मो मन मलियो बालमां, कहक प्यारा कंत । बीसत यक-सम दूधमैं, मानु नोर मिलंत ॥-२६-२२४ मो मन लागो साहीबा, तो मन मो मन लग। ज्यु लुण धोलुधो पांगीयां, न्युपाणी लुण धोलग ।। -१३४-७३ मोलो लोहो -१८५-१४६ मो लंकाने मूदड़ी, अबल बताव माण । -१७६-७७ मो सरषी निगुणी तणे, कारण काया छोड । हुँ प्रभागणी जीवती. रहीय करडका मोड ।। -१०८-१६२ म्यारा! मारा मुलकरा, वागांरा पाषाण । पालीजां सुणजो प्रबे, श्रवषां कथन सुजाण ॥ -१८४.१३९ यण प्रकार सोहत महल, दमकत छवि उद्योत । दीपग लय प्रतिबिंब दुत, हिलमिल बगमग होत ।। -१२१-१७२ Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ ] परिशिष्ट ३ रतन कचोलो रूवडो, सो लागो पाथर फूट बे। जिण जिण प्रागल ढोईयो, केसर बोटी काग बे।। -१२५.२७५ रतनावत दिल रोसमै, प्रोहित चले प्रयाण । बचन बचन बांधो बिथा, जग्यो अग्नि घ्रत जाण ।। -३१-२३९ रयणी दुषको राश भी, भरसी गुण संताप। ढोली सहु ढीली पडी, जावो कलेजा कांप ॥ -१०१-१६१ रषीयो इंदर रांगीए पकड नठारां। -१७२-नी० रस रमतां मैहलां विषे, चोपड पासा सार। ते छोडी घर पाथरचा, सीस घड जूषा वार ॥ - १०८-१६४ रहो रहो केथ प्रणभावना, प्रणहुंती कहिताह। हीवर्ड हार अलूझियो, सो सूलझायो नेणाह ।। -१२४-२७४ रहो रहो गुरजी मूढ कर, कहा सिखावत मोय । सत(ब) पृते इण नगरमें, जागत विरला कोय ।। – १५८-४५ राषीज षांवंद सरस, नाजक धण रा नेम।। प्रांग दुषी प्यारी तणो, कोज अप्ति हठ केम ।। -४८-३७० राज कीयो छै रुसणो, ऊर मो दहत कदोत । पाप न मानो मो प्ररज, मरूं कटारी मोत ।। ---४८-३६८ राज सरीषा प्राहुणा, चले न मावे कोय । मिलीया दुष गलीया सहु, जूगत थई सहु जोह ॥ -१३५-३१६ राजा बंद बुलायक, कुवर देषाई बांह। वंदां वेदन का लही, करक कलेजा माहि ।। -१५१-१८ राते करहा उछरे, दीहां उतारा होय।। मारू मूध कटारीयां, घर क्यू धोरडा होय ॥-१२१-२६० रावत भिडियां वांकडा, ताहरा हाथ सलूर ।। मो निगुणीकै कारणे, काया कोधी दूर ।।-१०८-१८८ राम सरीसा भोगव्या, वार घरस धनवास । तो हुँ गीणती केतली, दईव लिष्या ते पास ।। -१०७.१८५ रीसालू कुंवरने छोडने, क्यू जाये घर और बे। पर पूरषां सू नेहडो, किम कीजै निज जोर बे॥-६३-१३३ रूडा राजिव जांणज्यौ, मंझने चूक न कोय । ने हूं जांणती मारीयो, तो हुं करतो वोय ॥ -१०-१९७ रंग ज्यालरा व्यापगत, रात वख्यात ऊमंत । चंद गिगन ऊडन चमक, संजोगण हुलसंत ।। ---४४.३१० रंडी भंडी ते करी, मांण मूकायो मोह । षार दीयो मूझ छातीयां, भली करी मूझ दोह ॥ -११६-२०६ Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ३ रंडी राजो मां हुई, कुंमर थकी कर मे दिनांमी र राई, नार देई तुझ ल (ज) hint astut लक्षी, कारी लगी न लाष बात चालू नहीं, टालूं नह मन तापसी बालक और नूप, त्रिया हठ है छै लाष समाणप कोड बुध, कर देषो सब प्रणहंणी हुंणी नहीं, होणी हुवे सु लाषां बातां लाडला, मांणो महिल हिवडे नवसर हार भ्यू, लेस्यां लाडा थां वण लागसी, मानं बारां लांबक-बक लाडली कंठ लुलुहीयारो हार | बांबा लोर । व कूड । धूड ॥ - ११०-२०४ मारग को काय ।। - १७२ ८२ टेक । येक ।। – ४६-३५३ कोय | पार्थ होय ।। - १४५ - २ मनाय । भुगते सोय । जोय ।। - ५१-२ लेष विधाता जि लोया, तोमहीज सुगण नरां मन जाणज्यो, वात तणो रस लोभी देषौ लोयेणा, ऐमी नज़र भरि ऐम । मुष बांणी बोले मधुर, प्रीतम करि हित प्रेम ।। - ४७-३६४ लगाय ।। – ४७ - ३६५ मेल ॥ - १७४-६५ - १७० नी० - १७७-४ गीत दीठो कुंवरजी 1 कीया पारा वंण । aout त्रियाको वेस, श्रावत जातो दुनीया देख, नाटक कर गयो नागजी ।। - १५७-४० aari नाक विराजीयो च (छ) व कीर चचारां । - १७१ - नो० चरवा शेत पावस करे, नदीयां पलके नीर | तिण विरीयां सूंकलीणीयां, धणीया स्यूं धर्यो सीर ।। - ११५-२२६ बीज ।। - १७८०८६ चोर बे 1 दोर बे ॥ ६६-२४ वरसालों बेरी वू ( हू ) श्रो, वैरण दूजी atri महिला मानवी साहूकार के वरत ही छीपतो फोरे, ढांढो गमायो के वाडी मेहलां प्रादमी. साह अछे किनू चोर बे । रूष छोपाय पयूं रह्यों, ढोलो हूवो जू हौर बे ॥ - ८६ १०६ वादल काले बीजली, पर्व भली विधना तुं तो घावली, किसका ले रोतो सामी चालीयो, पाटण विडगांरा पाषाण, दोडतणां बेडातारा बांण, जाण न कर षांत ॥-१७३-५३ किसकूं देय बे । लेय ।। - १११-२११ दोषजे । जेलीयां ॥ - -१७८-८६ - १८५-१४३ - १६७-२८ [ २५५ Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ ] परिशिष्ट ३ विसरा-वसरी चोसरा, अमला करडी ताण । सेझा रंग पलांणीयां, अमला किया पिछांण ॥-११६-२५० वेषालू मन वीषयो, मूरष हासो होय।। नाणे सोई सूजाण नर, अवर न जाणे कोय ।। -५१-३ वंका लोहण लोइसा, कटि कबांण कसि षंग।। सेझ समूद पर नाव ज्यू, तीरता चले तुरंग ॥ -११६-२४८ ध्यापारी ज्यू वटाउडा, बालव ज्यू बिणजार ।। लवीया लोथ पड़ी रही, कागा कुचरे पार॥-१०६-१९८ वरी चौथा बावला। -१७८-७ श्रीमहाराजा जाणज्यो, सूरां एह संताप। सिर उपर रूठा फिर, त्यांन केहा पाप ॥ -१२६-२८२ संग सहेलो पीउ तणो, दुहिलो विछडवार थे। पोउ'र प्रक्षर जीभथी, नहीं छूटसी नार बे॥ -६३-३६ सजन प्रांबा मोरीया, आई पास करेह । न्यु ज्यु अषणे संभलं, त्यु त्यु कंपै वेह ।। -१५६-५२ सजन चंदन बावन, ऐलं कूकारेह ।। न्यु ज्यु श्रवणे संभलु, त्यु त्यु कंपै देह ॥ -१५६-५४ सजन दुरजन हुय चले, सयणा सीख करेह । घण विलपंती यु कहै, मांबा साख भरेह ।। -१५१-१६ सत कोषो ने साहबण, हिंदु तुरक समान । जस षाटी जालम तणो, जलण पर्यो ए प्राण ॥ -११०.२०५ सरवर निरमल नीरज, भरीयो हंसा केल। पागा फूली सूगीधीयां, पास बले बहु मेल || -१११-२१४ सरवर पाय पषालतां, तेरी पायडली षस जाय। हुं थने पुछु गोरड़ी, थने क्युं कर रयण धीहाय ।।–१३३-७१ सरवर पाय पषालतां, मोरी पायलड़ी षस जाय। अंबर तारा गीणतां थका, यु मोकुं रयण वोहाय ।। -१३३-७२ साची वैरी सोलमो, रस बरसाये राग ! -१७८-६२ साजनीयां सं प्यार, कठे वसा दोसौ नहीं। मिलता सो-सो वार, नैणां ही सांसो पड्यौ ॥ -१५४-२६ सारंग वैरी सातमां, मीठा गावै मोर। -१७८-८८ साली मो मन माहरी, मँडी रांड भडाण। तो सरसी धाली बरस, देषी लोह पडाह ।। -११०-२०६ Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ... W H परिशिष्ट ३ [ २५० सासरीया पीहर तणा, कुलनं करती षराब बे। पर पुरुषो मनडो रंजे, सकल गांवे प्राब बे।। -१०४.१७२ साहिब तो सूता भला, करडी वांगी तांण। षण नही लीधी नीवड़ी, ढीला हुवा संधाण | -१२२.२६२ सांई बाजी राष, तो सूधौ सहु काज । पंच पतीजो पांमै बे, बलि रहे सगली लाज ।। -१३०-२६१ साई साजन प्रेमका, धण दीधा छोटकाय । परषा रुतरी रातडी, दुष म दई बिताय ।। -१२२-२६३ साप छोडी कांचली, भीत्यां छोड्यो लेव ।। रोसालू छोडी गोरडी, मन भावं सो लेव। -१२५.२७७ सिधावो नै सिष करो, पूरो मनरी पास। तुम जीवको जाj नही, मो जीव छ तुम पास ।। -१५१.१५ . सिसक सिसक मर-मर जीवे, ऊठत कराह कराह ।। नयण बांण घायल कोया, प्रोषद मूल न थाय ।। -१५२-२० . सिंगालो भरि पोलणी, जिण कुल एक न थाय । तास पूरांणी पाड ज्यू, दिन-दिन माथे पाय ।। --५२-७ सीह तणा जेवा वाछडा, किम बंधीया रहै बंध बे। होणहार सो होयसी, विधना कामना अंध बे॥ -६५.४४ सुण बडारण केसरी, कथन पुराण कहत । लछण बाद लुगाईयां, प्रकलि पछ ऊपजंत ।। -४८-३७३ सुंग बोरा बैनी कहै, कुलवंती ते होय । त्रीया - चरित्र नांण नही, जो प्रावै सूर-ईद्र ।। -१४१-६६ सुण हो साहिब हठमला, सूरी हंदा काम बे। कायर षडग न बायसी, रंकण दैसी दाम बे।। ---६१-११८ सूकूलीणी नारी तिका, पति संग रहे अछेह । जीवतडां नहि बोसरे, न वलगाई नेह ।। -१३५-३१० सूती सहै सहेलिया, गहरी नीद गरद । दरद नही छै दूसरा, दुई जिका दरद ।। -६-४६ (नागड़ा) सूतो खूटी तांण, बतलायां बोल नहीं । कक पडसी काम, नोहरा करस्यो नागजी ! ॥ -१६०-५८ सूतो सवड घरेह, विव पिछोडो पिंडरा। सादो साद न देह, प्रावि पले पो नागजी ! -१६०-५६ सूवा किण देसे चला, सूरां किसा विदेस । जिहां अपणो अंन्नपाणीया, जिहां करस्यां परवेस ।। -१०६-१८० सेल भलूका कर रह्यो, माठू(स्)डा घूमंत । मावो सखी सहेलड़ा, प्राज मिलाऊं कंत ।। -१५३.२८ Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० ] কবির। सेवा सेहतड़ाह, मांना काम माने नहीं। पाथर पूजतडाह, निरफल गई हो नागनी । १६०-५५ सो कोसां सजन सै, बस कोसा हुवे भार। तो नारी तेहन भूर, पोउरी न जाणे पूकार ।। -१९८-२४२ सो वारू किण विष सहै, ज्वारी कारबात। -११-१२६ सोल परसरी बीजोगणी, निठ मोल्यो भरतार। हस्या न बोल्या हे मखी, माइयो लेष पार ।। --१२२-२६४ हठीया रावत धाकड़ा, तो विण रन विहाय । तेज पराकम ताहरी, सो हिव कागा षाय ॥-१०७-१८६ हरिया हुयजो बालमा, ज्यू पाडी के सिंग (साग)। मो नगुणीके कारणे, करक वेसांच्या काय ॥-१०९-१८७ हरीया बागांरा राणवी, फूला हंवा हार। तो तो छेती बहु पड़ी, फूडे इण संसार ॥ १०८-१८६ हीरण भला के हर भला, सुकन भला के साम । उठोर अरजुन बांगल्यो, सीष करे श्रीराम बे।। -७०.१० हीरां चाहै छैल चित, जोबन हंदो जोर। किरणालो चाहं कमल, चाहे चंद चकोर ॥-६-४३ हीरां मद प्रातर हुई, चित प्रीतम की चाह ।। विषधर ज्युं चंदन बिमां, दिल को मिट न वाह ।। -६-४२ हे विधनां तो सु कहूं, एक परज सुण लेत। धोछडण अंक'ज मेट कर, मिलबैको लिख देत ॥ -१५०-१० होणहार सो बुध उपजे, भवोतब्य किण ही न हाप । तेरा नाम है हठमला, पाम्रो कर मूझ साय बे॥ -८७-२३ होणहार सो नही मिट, लेष लिष्या छठी रात थे। भलो बूरो सहूं माहरो, करसी विधाता मात बे॥ -७५-६६ होणहार सो हो'ज हवी, स्याणपथी क्या होय बे। राजा कोपे भी भरयो, परजण सको कोम बे॥ -६८-५२ Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर द्वारा राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला में प्रकाशित राजस्था राजस्थानी-हिन्दी-ग्रन्थ .. १. कान्हड़वे प्रबन्ध, (प्र. ११), महाकवि पद्मनाभ विरचित; सम्पादक - प्रो. के. बी. ध्यास । मू. १२.२५ २. क्यामखो रासा, (प्र. १३), कवि जान कृत; सम्पादक - डॉ. दशरण शर्मा मौर अगरचन्द भंवरलाल नाहटा । म.४.७५ ३. लाषा रासा, (प्र. १४) अपर नाम कूर्मवंशयशप्रकाश, गोपालदान कविया कृत; सम्पादक - श्रीमहताबचन्द खारेड़ । ४. बाँकीवास री ख्यात, (प्र.२१), बाँकीदास कृत; सम्पादक - श्रीनरोत्तमदास स्वामी । मू. २.०० ५. राजस्थानी साहित्य संग्रह भाग १, (प्र. २७); सम्पादक - श्रीनरोत्तमदास स्वामी। मू. २.२५ ६. राजस्थानी साहित्य संग्रह भाग २, (प्र. ५२) तीन ऐतिहासिक वार्ताएं-बगड़ावत, प्रतापसिंह महोकमसिंह और वीरमदे सोनगिरा; सम्पादक - पुरुषोत्तमलाल मेनारिया। मू. २.७५ ७. कवीन्द्र-कल्पलता, (ग्र. ३४), कवीन्द्राचार्य सरस्वती कृत; सम्पादिका - रानी लक्ष्मी कुमारी चूण्डावत। ८, जुगलविलास, (ग्र. ३२), कुशलगढ़ के महाराजा पृथ्वीसिंहजी अपरनाम कवि पीथल कृत ; सम्पादिका - रानी लक्ष्मीकुमारी चूण्डावत । मू. १.७५ ६. भगतमाळ, (४३), चारण ब्रह्मदास दादूपंथी कृत; सम्पादक • श्रीउदयराज उज्ज्वल। मू. १.७५ १०. राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर के हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची भाग १, (न. ४२), ई. स. १९५६ तक संगृहीत ४००० ग्रंथों का वर्गीकृत सूचीपत्र ; सम्पादक - मुनि जिनविजय, पुरातत्त्वाचार्य। मू.७.५० ११. राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान के हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची, भाग २, (प्र. ५१), ७८५५ तक के ग्रन्थों का सूची-पत्र ; सम्पादक - श्रीगोपालनारायण बहरा। मू. १२.०० १२. राजस्थानी हस्तलिखित-प्रन्थसूची भाग १, (प्र. ४४), मार्च १९५८ तक के ग्रंथों का विवरण ; सम्पादक - मुनि जिनविजय, पुरातत्त्वाचार्य । मू. ४.५० १३. राजस्थानी हस्तलिखित प्रन्थसूची भाग २, (प्र. ५८), १९५८-५९ के संग्रहीत ग्रंथों का विवरण ; सम्पादक - पुरुषोत्तमलाल मेनारिया । मू. २.७५ १४. स्व. पुरोहित हरिनारायणजी विद्याभूषण-ग्रंथ-संग्रह, (ग्र. ५५), सम्पादक • श्री गोपालनारायण बहुरा और श्रीलक्ष्मीनारायण गोस्वामी । मू. ६.२५ १५. मुंहता नणसी री ख्यात भाग १, (प्र.४८), मुंहता नैणसी कृत; सम्पादक - प्रा. श्रीबदरीप्रसाद साकरिया। मू. १.५० Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २ ] १६. मुं० न० री ख्यात भाग २, (प्र. ४६), संपा० प्रा०श्रीबदरीप्रसाद सावरिया । मू. ६.५० १७. मु.न. री ख्यात भाग ३. ((प्र. ७२), मू. ८.०० १८. सूरजप्रकास भाग १, (प्र. ५६); चारण. करणीदान कविया कृत; सम्पादक- श्रीसीताराम लाळस । मू. ६.०० १९. सूरजप्रकास भाग २, (प्र. ५७); सम्पादक - श्रीसीताराम लाळस। मू. ६.५० २०.. भाग ३, (प्र.५८); , , , मू. ६.७१ २१. नेहतरंग, (प्र. ६३), बूंदी नरेश राव बुधसिंह हाड़ा कृत ; सम्पादक • श्री रामप्रसाद दाधीच । २२. मत्स्य-प्रदेश को हिन्दी-साहित्य को देन, (प्र. ६६), लेखक डॉ. मोतीलाल गुप्त ; २३. राजस्थान में संस्कृत साहित्य की खोज, (प्र.३१), अनु० श्रीब्रह्मदत्त त्रिवेदी, प्रोफेसर एस.पार. भाण्डारकर द्वारा हस्तलिखित संस्कृत-ग्रंथों की खोज में मध्यप्रदेश व राजस्थान में (१९०५-६ ई०) में की गई खोज की रिपोर्ट का हिन्दी अनुवाद । मू. ३.०० २४. समदर्शी प्राचार्य हरिभद्र, (प्र. ६८), लेखक-40 सुखलालजी, हिन्दी अनुवादक-शान्ति लाल म. जैन । २५. वीरवाण, (ग्र. ३३), ढाढी बादर कृत; सम्पादिका-रानी लक्ष्मीकुमारी चूंडावत । मू. ४.५० २६. बसन्स-विलास फागु, (प्र. ३६), सम्पादक • एम. सी. मोदी। २७. रुषमणीहरण, (प्र.७४), महाकवि सांयाजी झूला कृत; सम्पादक-पुरुषोत्तमलाल मेनारिया। मू. ३.५० २८. बुद्धि-विलास, (प्र.७३), बखतराम साह कृत; सम्पादक-श्री पद्मधर पाठक । म.३.७५ २९. रघुवरजसप्रकास, (प्र. ५०), चारण कवि किसनाजी पाढ़ा कृत; सम्पादक-श्री सीताराम लाळस । मू. ८.२५ ३०. संस्कृत व प्राकृत ग्रन्थों का सूचीपत्र भाग १ (प्र. ७१), राजस्थान प्राच्यविद्या प्रति ष्ठान, जोधपुर संग्रह का स्वरित रोमन-लिपि में ४००० का सूचीपत्र, अंत में विशिष्ट ग्रन्थों के उद्धरण; सम्पादक-पद्मश्री मुनि जिनविजय पुरातत्त्वाचार्य । मू. ३७.५० ३१. संस्कृत व प्राकृत ग्रन्थों का सूचीपत्र भाग २ अ. (प्र..७७), सम्पादक-पद्मश्री मुनि जिन विजय पुरातत्त्वाचार्य । ३२. सन्त कवि रज्जब-सम्प्रदाय और साहित्य (ग्र. ७६), लेखक-डॉ. व्रजलाल वर्मा । मू. ७.२५ ३३. प्रतापरासो, (ग्र. ७५), जाचिक जीवण कृत, सम्पादक-डॉ. मोतीलाल गुप्त । मू. ६.७५ ३४. भक्तमाल, राघोदास कृत, चतुरदास कृत टीका; सम्पादक-श्री अगरचन्द नाहटा। म. ६.७५ ३५. पश्चिमी भारत की यात्रा, (प्र. ८०) कर्नल जेम्स टॉड कृत, अनु० श्री गोपालनारायण बहुरा, एम.ए. मू. २१.०० Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Intemational For Private & Personal use only.