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बात रोसालूरी
[ ५ [ईसौ सून नै माली बागमै प्राय ने छानी जायगा आछी कर राषी। फूलारी बिछायत पाछी कीवी छ । ईतरै संझया पडो। त, हठमल पातसाह आपरा तन-मनरा दोय चाकर ले में कबान, तीर, आवध लेने वाग पधारीया । माली या(आ)यनै हारज (हाजर) हुवौ; मूजरौ कर नै जागा बताई। तठे पातसाह तिण जायगा बेठ नै मालीनै कहैदुहा- क्यारा केसर नीलडा, फूली केल अनार वे ।
इरण कोट इण वागमै, पासी ते लहसी सार वे ।। ६१ माली कहै पातसाहजी, मुझक्सीष दिराय वे । भोजनकी वीरीया हुई, सौ जांऊ बार वे ॥ ९२ सूरण सूरण साहिब हठमला, आवेगा तेडा चोर वे। हमकु दीजे सोषडी, बहलो पाउं इण ठोर वे ।। ६३ पातसाह अग्या तेहन, दोधी माली जाय वे । हिव ते होरणजी हालीया, चारो चरवा पाय वै ।। ६४ संझ्यास घडी च्यारडी, रात गई तिहां हिरण वै ।
धीमे पग ठवतो वहै, देषी न(च)दनी कीरण वै ।। ६५] ग. घ. अन (घ. में नहीं है) कसतुरचो (घ. कसतूरीयौ) मृग हठिमल पातसाहरी वाडी चर चर घर आवै छै नीत प्रत (घ. चरं चर आवै) ईम करतां घणा दिन (घ. दन घणा) हवा । ऐक दिनकै समै वागवान फल-फूल लेई पातसाहजी हजुर गयो (घ. फल-फूल ले पायौ, पातसाहरी नीजरै फल-फूल कीधा)। कोई प्राधो, कोई प्राषो (घ. कोईक कांणो) ईस्या (घ. ईसा) फल-फुल (घ. फुल-फल) देष्या। अतरायकमै (घ. तदी) पातसाहजी बोल्या--- (घ. पातसाह बौल्या) क्युं बे बागवान ! 'ईतरा दिनमै ईस्या फल-फूल क्यु ल्यायो' ('-' घ. में नहीं है) । तदि (घ. तद) वागवान कह्यौ-माहाराज ! 'कोई प्राधी रात्रै प्रावै छ, कोई बलाय छ, सो वाग वीगाडी जाय छ, नीत प्रतै आव छै' । ('-' घ. कोईक अधरात रो वागमै प्राव छ, वाग वीगाउ जाय छ) । तदी हठीमल पातस्याहने वागवान काई कहै छ (घ. तदी पातसाह बौल्यो-आप प्राथमतारा वेगा पदारज्यो। वागवान काई कहै)- । वागवान वाक्यं । १. ग. घ. क्यारा। २. ग. घ. दाष का। ३. ग. घ. ईण कोट । ४. ग. घ. पुंछु श्रणंकी।
[-. ख. ग. ध प्रतियों में निम्न पाठ मिलता है
ख. वारता-पातसाह सांझरे समीए घोडे असवार होय वागमे पधारया। पातसाह घोडो बांध, कबांण कसने बेठो छ । वागवान पीण कने बेठो छ । एहवे रात्र पोहर तीन गई । तरे वागवांन पातसाहनु कहे-हजरत, आपरे चउ (रु)मा प्राया हे। तेरे मरजी होवे सो करणा । पीण हमकं तो घरा दीसा सीष देणा। वागवान वाक्यं
सुण सुण साहीब हठमला, प्राया तुमारा चोर बे। हमकं तो घर सीष द्यो, करयजे राजीव जोर बे॥
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