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________________ बात रीसालूरी [सौ येकदा समाजोगमे ही रणजी मजलसां करतां कोस पांच तांई जाय निसरया । तठे आगै वाग आयौ । देषनै माहै ऐठा मल फल-फूल षाया; पिण वागमै जाबतो घणो दीठो । त? तौ पिण हीरण वीचारीयो- जौ आ जागा भली छ, मांरो चारौ पिण मौकलौ छ, पिण दिनरा तो वेत लागे नही, अवै रातरो चरवानै आवस्यां। इसौ विचारन हीरण पाछो वल्यौ । सू कमरजीने प्रायन कह्यौ । तठे कुवरजी बोलीया-पाज तो हीरणजी मोडा कु प्रावीया ? तठे हीरणजी सारी हकीकत कही। त? कुवरजी सूणनै हीरणीने कहै--- दूहा- भौम पराई विगाडीया, वांगां हंदा फूल वे। रषयमा जडीमै पडौ, तौ हुयसी सहु धूल बै ।। ८९ हिरणवाक्यां थांह सरीषा म्हारा वांहरू, सो क्यू डरपां जाय वे । षांसा म्है फल-फूलडा, नीलडा मांहरे दाय वे ॥ ६०] - २३. Aवारता-ईसौ सूणत प्रांण कुवरजी मूछा हाथ घालनै राजी हुयनै कहीयो-हिरणजो ! हिबै हु थांहरै पूठीरषौ छ । प्राप नित्य सदाई हंगाम करौ । ही हीरण संझयां पडीया जावै सौ प्राधि रातरौ पाछौ• पावै। यू करतां घणा दीन हुवा । अब तिण वागवाला रषवाला माली पातसाहरौ निजरांनै फल-फूल लागा दीसै । ईण भांतसू दातरां सेहनांण देषनें पातसाह बोलीयोअरै वनमालो ! अाज काल फल-फूल ईसा सेहनाण सहोत ने थोडा पावै; सो कांई जांणीजै ? त, माली बोलीयौ-माहाराज ! आज काल कोई क जानवर हील्यौ छ । सौ दीनरां जावतां घणी करां छां, पीण रातरा वीगाड कर जावै छ। तपातसाह रीस करनै बोलीयो-'अब गुलाम काफर, ईतनै रौज हमकु षबर क्यु कही नही ? मरदुद अपना माल षराब हुवौ छै, सो तु(ह)मारे ताई सोच नही छ, पीरण आज तोने गुण माफ कीया । पिण आज वागमै हम प्रावगें; बीच अछी जगा बनवाय रषणी हम आवंगौ, उस जनावर की सीकार करेगे 1A [-]. कोष्ठगत गद्य एवं पद्य ख. ग. घ. प्रतियों में अनुपलब्ध हैं। A-A. ख. ग. घ. प्रतियों का पाठान्तर इस प्रकार है ख. जठे मृग जाय पातसाह हठमलरे वागमे हमेस चरने प्रावे छे । इम करतां घणा दीन वतीत हुआ। एक दीन पातसाह तोरे वागवांन फल-फुल ले गयो । पातसाह हठमल फल-फुल कांणा-कोचरा दीठा । वागवानने पुछयों-क्यु बे वागवान ! बहुत दीनंसे एसा फल-फुल क्यु लाया, सो कारण कांइ छ ? तदी वागवान कही-हजरत, सलामत कवलेयांन, अधरातकु बागमे हमेस क्या वलाय प्रावती हे, सो वाग वीगाडे छ । पातसाह वाक्यं दुहो- क्यारी' केसर द्वाषकी२, फल्या केल अनार बे। कंण चंटे इण वागमे, पुछु उणको सार बे॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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