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________________ बात रीसालूरी तरा मन षूसी हुवै । तीणसू थे अाग्या देवै तो रोहिमे चरवा जावा । तठे कुवरजी बोलीया-हीरजी ! आ वात तो थे सा कही । पिण थान बंध षोलनै सीष देवा नै पाछा प्रावो नही तो पछै थानै कठै जोवता फिरा। त? हीरण बोलीयोश्रीमाहाराजकुवार ! आप सरीषा हेतु माणस छोड ने जाता रहु, सो पा वात कदेही जाणज्यो मती। दूहा- जो सूरज प्राथूणमै, उगै दिनमै हजार थे। प्रागन जो सीतल परण करे, तो पिरण हुँ नही बार बे॥८४ उत्तम जननी प्रीतड़ी, कोरणही क वेला होय बे। ते छोडीनै वीसरे, ते जग मरष होय बे ॥ ८५ कुवरजी छाया माहेरी, काया नानो मित बे। राज सला राजी हुवो, तो मूझ सोष द्यौ हित्य बे ॥ ८६ घरणा दीनारी प्रीतडी, कोम मुझ छांडी जाय बै। रूडा राजिद परषज्यौ, जीवू ज्यां लग काय बे॥ ८७ कुंवर कहै अहो हीरणजी, थां म्हां ईधक सनेह बे। जावो चरवा रोहीया, वहिलां प्राज्यौ तेह बे ।। ८८] ___ २२ *वारता- इण भांतसूकूवरजी होरणने सीष दीवी। हिवे सदाई रोहिमै चर-पी पावै । एकदा समाजोगन द्वारकासू सात कोस उपर जलालपटन नगर छ । तठे हठमल पातसाह राज करै छ । उण राकसरा भयसू घणा पीरान पूजतां ने राकसने मारीयो सूणीयौ ने नगर वसावांनी नाम सूणीयौ । तरे पातसा घणो राजी हवौ । घणी सीरणी-वधाइ वेटी। तिको हठमल पातसा आपरा नगरसू कोस दोय उपर द्वारका सहमी नदी मीठा पाणोरी हती, तीण माथै वाग लगावांनी सला थी, सू राकसरा भयसू हुवो नही। ने(ते) भय मिट्यो जांण ने नदी उपरै वाग लगायौ छै । माहौवला फूल हुवै छै। घणी वेलां, घणी वेलडीया, गी(नी)लोतरी ची भडा, परबूजा, नीला गोह, साल, दाल घणी नीपजै छै । इसडो वाग छै ।* [-]. ग. घ. में कोष्ठकगत पाठ अप्राप्त है तथा ख. प्रति में केवल इतना ही अंश प्राप्त है-तदी रांणी मृग, सूंबटा, मेनारी जाबता करे। व्याल, वीनोद, हास्य रांमण करे । इसी तरेसु दीन गुदार करे। *-* चिह्नगत पाठ ग. घ. प्रति में अप्राप्त है तथा ख. प्रति का पाठ निम्न प्रकार है-पाषतो एक सहीर छ। तठे पातसाह हठमल राज करे छ। तीणरे नवलषो वाग छ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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