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बात रीसालूरी . २४. [वारता-त? कुंवरजी हीरणने हालतो देषीनै आपनै ठीक हुई। तठे कुमरजी हीरणनै वोलाय नै केह छैदुहा- सुरणीय मृगजी बाजरी, रयणी गई रे सबे ।
अंग-फूरक ठीक पीण, ए सूकनै दुषल सबै ॥ ६६ सौ तुम प्राज इहा रवै, कालै करज्यो काम बै। प्राज अजाडी उपजै, तोरणसू रहौ ईहा धाम बै ॥ ६७
हिरणवायक्यसूरणीय रीसालूराय को, चरीया वीरण मुझ प्रारण बे। रहता नही साहिब इहा, प्रभु करसी सौ प्रमाण बे॥६८ चालता ठी(छी)क छटकीया, सौ वहिलो प्रावस बे। ईम कही हीरण उतावलो, चाल्यौ मारग देस बे ॥ ६६ घघरीयांरा सौरसं, भागो जावे एरण वे ।
तुरत वाग में प्रावीयो, हठमल ज्यांण्यो नेण बे ॥ १००] __A २५. वार्ता-तठे पातसाह गुघरीयांरा झमकसं धरतीरा धमकारसं तीरकवांण सावचेत करनें रूषांरा पोटामें जोवै छै । छांनो-मांनो चाल छै नै मनमै जाण छ-आज मारा वाग विगाडनवालानं मारसं । ईसौ चितव्यौ थको रूषारी बिडमै अावै छै । तठै हठमलरी छाया डीलरी हीरणमै पडी। तठे होरण उचौ देषीयौ। तठे तीर सांधियां थकी पातसाहन देषीयौ। तठे हीरण पाल सांधने वागरी भींत कुदीयो। तठ पातसाह लारै भागौ। सो हिरण सताबीसू प्रापरे
वारता-तद पातसाह हठमले वागवानकुं सीष बीधी।
ग. घ. ऐस्यो पातस्याह] वागवानकै ताई कह्यौ---भला पातस्याह ! सलामत, आप दोन प्राथमतां ऐकला पधारज्यो। तदि पातस्याजि दोन प्राथमते ऐकला पधारया। वागवान वागमै एकलो बैठो छ। आधी रात्र गई छै। अतरायकमै वागवान घुघरा वाजता सांभलने पातस्याहजीसं कहो-माहाराज मान सोष दिजै, थारो चोर आयो छ, अब पापरी प्राप जांणो । वागवान पातस्यानै कांई कहै...
दूहा- सुणो पातस्या२ हठोमल, पायो थारों चोर थे।
मांने तो घर सीष द्यौ, करज्यो साहीब चोर वे ॥ अथ वारता-तदी पातस्याहजी कह्यौ तुं घरजा।
१. घ. में यह गद्य नहीं है। २. घ. पातसाह । ३. घ. हठमलां । ४. घ. थांहरो। ५. घ. कोज्यौ ।
[--] ख. ग. घ. प्रतियों में कुंवरजी एवं हिरणका गद्य-पद्यात्मक संवाद अनुपलब्ध है। ___A-A. ख. ग. घ. प्रतियों में २५, २६ एवं २७वीं वार्ताओं की वाक्य-रचना इस प्रकार है
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