________________
बात रीसालूरी
[८७
ठीकाणे पायौ; नै पातसाह षोज जोवतो चंद्रमारे चांदणासू लार पावै छै । रात आधीरा पातसाह षिण सतभोमीया हेठो आयौ । हिरण पातसाने देषने छोप बेठौ नै पातसाह जोवे छै । तितर पंषारो जावताईरो मांहे कुवरजी कीयौ। त? पातसाह षषारो सूणने वीचारीयो-प्रो हिरण रीसालूरौ छै ने रीसालू जागै छै; कदाचित षबर पडजावै तौ पराबी हुवै; तौ अवार तौ कठैई छांनौ रहणौ जोग छै नै परभाते हिरणनै सौधन सीकार करस्यां । ईसौ वीचारनै महीलारे पूठवाडे जावण लागौ । त, महिलारै पूठे पागली वाडी फल-फूलारी हुती नै रीसालूरा परतापसू घणी फली-फूली छ । तिका बाडी पातसाह देष नै मांहें जाय सूतौ ।
तठे रिसालूनै हिरण याद अायो-रषे अाज छोंक हुई छ, हिरण कुशल पावै तो भलो । यू सोच रीसाल करै छ। तरै पौहर एक हुई । त, कुंवरजी हिरणरै षटै आया। हिरणनै देष्यौ नही नै हिरण पातसाहरा डरसू अलगौ ढुढामै छीपीयो। नै कुमरजी सौच करै छ । दूहा- रे फूटरमल हिरणला, रयरणी गई सहु साथ वै।
प्रायो नही रे हिरणला, हुवौ वैरी हाथ बे ॥ १०१
ख. एहवे मग घुघरा वाजतां वागरो कोट डाक माहे परयो। हठमल कहे-सुण बे, घणा दोन का जाता हता, अब कांहा जाएगो । इसो मृग सुणके पाछो भागो। तद पीछे हमल घोडे असवार होय मृग पुठे दोडीयो। मग जाणे-पाज मने मारसी। मेले नही (नई) पाछो जोवतो, जीभ काढतो, डरतो पाछो जाए छ। वांसे हठमल होयके यु कहे-अब तेरी ठोक ल्यु । तदी मग फोरतो फोरतो रात्ररो मारग भुलो, दीसा चुक हुउ, रसालुरा महीलां नीचे होय प्रागे नीसरयो । तद हठमलवाक्यं
दुहा- जष्य राष्यस वेताल है, साहुकार के चोर बे। भागा भागा कहां जात है, क्यु न करे फोर सोर बे ॥ २२
मृग वाक्यं होणहार सो बुध उपजे, भवीतव्य कोणही न हाथ थे।
तेरा नाम हे हठमला, प्रावो कर मुझ साथ बे ॥ २३ वारता- मृग इसो हठमलनु कह्यो। रसालुरा महीला दीसा मृग पाछो फोरयो। हठमल पोण पाछा फीर मृग दीसा दोड्यो । मृग नासने नवषंडे महीले चढयो। हठमल वीचारे- क्यां जांणां, कांइ जीनावर छ ? कठे ई बेस रह्यो होसी । मोर दोना मग चरने । पाछो आवतो जद रसालु सीकार जाता । जीण दीन मृग पाया पेली सीकार चढीया । वांसाथी मग रांणी तीरे धुजतो, डरतो, नासतो, भागतो, जीभ काढतो, प्रायो। राणी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org