________________
55 ]
बात सालूरी
२६. वार्ता - इसौ विचारने कुंवरजी रांणीने प्रायनै कहीयौ - आज हिरण यो नही, तिणरी बबर करणे जावं छ; थे जाबताई करज्यो । हिरण आवे तो जातो कीज्यौ । इतरौ कही ने घोडे चढी नै हथीयारां कसीयौ थकौ रोहीरो मारग सोधतो जाय छै । इतरै सूरज उगी जाणनै हिरण उठ नै च्यारे हो कांनी जोवती, हलवे हलवै हालतो थकी महिलां श्रायौ । आगे कुवरजीने नही दीठा । तठे रांणीने पूछे छे
दूहा - किहां गया कुंवरजी प्रभातका, किरण ठामै किरण ठोर बे । रांगी है रे हिरणला, ताहरी बाहर जोय बे ।। १०२ रात नायौ तु हिरणीया, तिरगसू षबरने काज बे । कहां तु तौ हिरणला, कहै तु कारण श्राज बे ॥ १०३ कुंवरजी सोच घरो कीयो, तारे काररण रात बै 1 तु इहां कुंवरजी रोहीया, ताहरी कहि तु वात बे ॥ १०४ हिरणवाक्यं
हिरण कहै रांरगी रातरी, वात नही कही जाय बे । मैं जीवत मिलीया तिको, लहज्यौ अचंभो माय बे ।। १०५
वागां नीलडा चरणनूं, पूहता बाहर षी ( धी) ठ बे । लागी हूं आगे चल्यो, इंहा हुं प्रायौ नोठ बे ॥ १०६
वीचारीयो- - आज मृगने डर घणो छै, सो कांइ क तो कारण दीसे छे ? तदी रांणी नवपंडे महीले चढी । उप[र]ली भोम चढने देषे तो एक नर रूपवंत, कबांण कसीया वाग मांहे झाडांरा गोठ जोवे छं । इसो देषने रांणी हठमलनु कहे
ग. प्रतरायकमै घुधरा वाजता थका वागमै डाके पडयौ । अतरायकमै हठीमल पातस्या बोल्या - घणा दिनरो जातो थो, पीण श्राज ठीक पडसी । प्रतरो सांभले म्रग पाछोही ज दोड्यो । तदी हठीमल पीण पाछे हुवो। म्रग मन थकी जांण्यो - श्राज मोनै छोडें नही । पातस्याहजी कहै - घणा दीनरो जातो थो पिण आज ठिक पडसी । म्रग पाछो नाल नै जिभ काढतो दोड्यो । तदि म्रग रातकै सबै डरको मारयौ दसा भुल गयो । तदि म्लां प्रागलि नीकल गयो । ते पातस्या मृगनै कांई कहै
हा - जाण्या रीष्या विवताल है, साहूकार के चोर बे ।
भाग भाग काहा जाता है, क्यूं न करै तु सोर बे ॥ १८
मृग कांई हैदुहा - होणहार बुध उपजै, भवतव्या कणीहार बे ।
Jain Education International
---
तेरा नाम छं हठीमला, प्रायो कर मुज साथ बे ॥ १६
-
अथ बात - ऐस्यो मृग कह्यो — कहे नै म्रग दोड्यो । प्रागे जातां मारगे सोच्यौ - हुं तो दसा भुले गयो, महल तो पाछै रह्यो । तदि मृग पाछो फिरयो । मैहलांमें श्रायो । पाछे
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org