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बात रीसालूरी
छीपायौ तबेला ठारगमै, बाहर पूठे जोर बे ।
जाणू महिलरी वाडीयां, बाहर होसी को र बे ।। १०७ तिन प्रायो थां कनै, इतरे उगौ भोर बे ।
थांसू मोलवा आवीयौ, वोती मूझमै जोर बे ॥ १०८
२७. वार्ता - रांगी हिरण-वातां सांभलने मैलां चढी, पूठली वाडीयां सांमो देषं छै । त हठमल पातसाह पिरण सूतौ जागीयो । सौ दाढीरा केसाने फरकाव छै, श्रालस मोडै छं । तठ रांणी जांणीयौ - हिरणरी वाहर दीसँ छै । पिण वरस सोलै अठारै रहतांने हूवा, सो कुंवरजीरा तप-तेजस कोई श्रापणं नैडो फुरक्यौ नही, ने ओ परी आदमी वाडीमो श्रायने सूरंतो छौ नै परभात हुं वां जाग्यो । निरभय थकौ उभौ तिकौ तौ कोई तरेदार दिसं छै ? इसी रांगी वीचार न वतलावण कीधी - A
दहा - वाडी मेहलां श्रादमी, साह श्रछे किनू चोर बँ ।
रूषां छीपायौ क्यूं रह्यौ, ढीलो हुवी जू ढौर बै ॥ १०६ पर घर पर धरती तरणा, भय नही मानौ छौ मन बे। भौम वडारणी होयसी, घररणी भौमनौ तन बे ॥। काची कली मत लूबीय, पाका लागेगा हाथ बे । जीवत जावेगा मानवी, नहि कौ बिजा साथ बे ॥
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पातस्याह पीण आवे छे। श्रागे मृग हाफतो-कांपतो राणी नर्ष आयो; राणी आगे प्राय ऊभौ रह्यो । रीसालू सीकार गयो छे । तदि राणी वीचारचौ - श्राज मृगने डर क्युं छे ? तदी राणी नवखंडे मैहल चढी देण्यौ । देषं तो एक आदमी बाणसुं झाड हेरै छ- जाणे मृग भाड छप्यौ छै । तदि हठीमल पातस्याने कांई कहै ।
घ. तदी पातसाहा बागमै श्राया । प्रतरं घुघरा वाजता सुणीया । तदी पातसाह बौल्यो- -घणा दीना रो जातो थौ पण प्राज ठीक पडसी । मृग सांभलि पाछौ नाठौ । पातसाह पार्छ आवे छे। मृग रांणी कनै श्रायौ । जदी राणी जांण्यौ श्राज मृगने डर घणौ छै । जदी गोषर्ड श्राये नै देषं तो एक आदमी कबांण-तीर लेने श्रावे छे। मृग डरको मारचौ छोप्यो छै। जदी राणी कांई कहै
१. ख. ग. घ. का पाठान्तर निम्नलिखित है
रांणी वाक्यं
दुहा- वागां 'महिला' मानवी, साहुकार 'के' चोर बे ।
[ ह
'दरबत हो' छोपतो फोरे, ढांढो 'गमायो के' ढोर बे ॥ २४
''ग. घ. माहीला । के । वागां माहि । हेरें के ।
२. ३. दोनों दूहे ख ग घ प्रतियों में श्रप्राप्त हैं ।
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