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बात सालूरी
पातसाह वाक्यं '
freet 2 प्रां श्रावली, कीसका बं दाष श्रनार बैr । किरण पूरष हंदी गोरडी, कीसका बै दरबार बं* ॥। ११२ राणीवाक्यं *
सालू हंदी गोरडी, उनका हं [दा] दरबार बै । तुं कारणं क्यूं पूछ बै, तांहरै पष वार बै ॥ ईहां तु उभो किम रह्यौ, कैसौ तुं हुसीयार बै ँ ।
[ २८. वारता -- ईसी बात कही । तठे हठमल पांतसाह वाडी वाहरै प्रायौ । तठे रांणी पातसाहरी रूप देषतै मूस्ताग हुई । नैण-बांण आमा सामा छुटा । तठै पातसाह मनमै जांणीयौ -जै आ तौ मुस्ताक हुई तौ फतै हुई, सारी ही वात सभ । ईसौ वीचारने हठमल बोलीयौ -अरी रांगी ! मारो घोडौ तीसायौ छ, थोरोसौ पांनी पावौ तौ भलो कांम करौ । तठे रांणो कहै -
दूहा - तोरा नाम हठमला, हठिया छै मेरा भी नाम बै ।
farst बेलो जौ चरें, तो ईरण प्रदर ग्राम बै ।। ११४ विष बलीका ईहा षरा, वाग ई चतुर संजांरण बे । श्रासी चरवा घौडलो, तौ हु करिस प्रमाण बे ।। ११५
१. ख. हठमलवाक्यं । ग. तदी हठमल पातस्याह कांई कहै । कोई कहै |
११३
२. ख. कीसका रे । ग. घ. कीण हंदा । ३ ख. ग. श्रांबली । ध. आंबली बे राणी । ४. ख. कीसका रे दारम द्वाष बे। ग. घ. कीण 'हंदी तुं' ('-' घ. हंदा ) अनार बे ।
५. ख. ग. घ. कोण हंदी तुं गोरडी, कोण हंदा दरबार ( ख. दुरबार) बे ।
६. ग. रांणी हठीमल पातस्याने कांई कहै घ. श्रप्राप्त है ।
७. ख. ग. घ. प्रतियों में ११३वें पद्य एवं श्रद्धली की जगह निम्न दूहा प्राप्त है
रसालु हंदा प्रांबा प्रांबली, रसालु हंदा दारम द्राष बे (घ. रसालु सीच्या अनार बे ) । रसालु हंदी हूँ गोरडी, उण हंदा दुरबार बे ॥ २६
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घ. तदी पातस्याह
[-] ख ग घ प्रतियों में २८, २६ तथा ३०वीं वार्ताओं एवं पद्यों का पाठभेद श्रधोलिखित रूप में मिलता है
ख. वारता - रांणी हठमल प्रते इसो जाब दीघो । तद हठमल कहे- मांरो घोडो तरस्यो छे, सो पांणी पावो । जदी रांणी डरवा लागी । तद हठमलवाक्यं -
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