SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बात बगसीरांमजी प्रोहित हीरांकी पावपोस मोती प्रगट, गणवत मनुं गयंद | हीरां प्रोहित मिलन हित, ऊर ऊपजंत अणंद ॥ १८८ छंद पधरी - प्रभुषण तन झमकत असेष, वण अंग संग सोभा विसेष । बिबध रंग रंग पोसाक बंद, अंतर फुलेल चिरचत प्रनंद ॥ केसर कसरी मिल कपूर, निरमल तन चंदन बिरचत नूर । परमल अनेक मंजन प्रसंग, रंभादिक सोभा रूप रंग ॥ परंग सपी केसरी प्राय, दीपक जोति दरपण दिषाय । हीरां मनप्रति कीनूं हुलास, प्रोहित प्रचंड मिलवो प्रकास || मदनातुर हीरां मन मलाप, बर प्रोहितकी संगम वयाप । ललिता ज भई बस कांमलीन, केसरी बडारणन बदा कीन || Narsi hai कर बिहार, प्रोहित मिलबो मन मोद प्यार । अब कह बचन रस बस अनेक, हीरां मिलाप हित हेक हेक ॥। १८६ दोहा - अरध निसा आई अली, प्रोहित प्रेम प्रकास । हीरां मिलबा हेतकी, वातां कहत बिलास ॥ १६० het बचन प्रोहितजीसूं अरज करू चालो अब, आपतणी प्राधीन | कामातुर हीरा कहर, दुष पावै छै दीन ॥ १९१ चकोर चाहे चंदकूं, मोर चहै घण मंड | हो चाहे आपकूं, प्रोहितराये प्रचंड ॥ १६२ १८. बात - साहिब जेज न कीजै, रसिया भवर बेग पधारीजै । कोडे महोरकी राति जावै छै, हीरां पणे महलम येकली दुष पावै छै । प्रोहित बचन साथकासुं छप्पे - प्रोहित यण प्रकार साथ बात सुणाई, हीरां मिलबा हेत अरध निस दूती आई । हरषण मिलण हुलास चाहै अब अवसर चुकत, मुरछैत नारी महल मदनजुर प्रारण स मुकत || दिलको न कोई जाणे दरद, मुव्रत नहीं नारी मरद, फिर बव (च) न पाछो फरक, युं नहचे कर भुगते नरक ॥। १६३ अथ प्रोहित हीरांको महल गमण श्रारंभते दोहा - हय चढियो परघय हुकम, चाकर लियो सु चंग । मांणीगर रसियो भवर, रंग प्रोहित रंग ॥ १६४ Jain Education International [ २३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy