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बात बगसीरामजी मोहित होरांकी
मथ हीरां आभूषण प्रारंभते घोहा- आभूषण प्रारंभयो, केसर मंजण कीन ।
प्रोहित मलबा पेमसुं, अातुर होत अधीन ॥ १७३ मंजण नीर गुलाब मिल, केस पास मुकरात । . बैणी फूल सुगंध बर, लेषत मन लोभात ॥ १७४ तिलक तेल तंबोल मिल, द्रग अंजन ऊदार । ललित मुकत पाटी अलष, मिल सुगंध सुकमार ॥ १७५ मगत मंग सिंदूर मिल, कनक फूल छिब कीन । मंज तिलक छबि चंदमणि, पंकज बदन प्रबीण ॥ १७६ करण फूल मोती कनक, जगमग नगमणि जोत । लटकत मुकट लिलाट लै, उडगन छबि उद्योत ।। १७७ 'म्रगमद कुंकम चंद मिल, द्रग अंजन छबि दीन । नकबेसर झमकत किनक, नाग पनि मुष लीन ॥ १७८ कंज कंठ त्रैवट किनक, परस लील मणि वोत । मुकता माल बिद्र म बिमल, उजल हीर ऊदोत ।। १७९ सपत लडी कंचन सुभग, हांस हार सुहेल । नवसर कण नव रंगके, चोसर फूल चमेल ।। १८० चंद्रहार ऊपर चमक, कंचु[क] जरकस कीन । दमकत कूदण धुगधुगी, नग प्रतिबिंब नवीन ।। १८१ कामल भुज अणवट किनक, वाजुबंध बिचार । कीय चुड नग जुत किनक, कर कंकण झणकार ॥ १८२ पहुची नग बिध बिधि प्रगट, पांन फूल परकास । लालरंग महदी ललत, अदभुत नख ऊजास ।। १८३ किनक मुद्रिका बज्रकरण, दुत सोभा दमकंत । हाव भाव पोसाष हित, चपलासी चमकत ॥ १८४ ललवत किनक सहेलड़ी, विमल करत बिहार । नील जरी अंबर लुकी, करत बिबध झंकार ।। १८५ छद्र घंटका अधक छव, कटि प्रदेस दुत पुंज । पग नपुर पायेल प्रगट, गत मुराल धूनि गुंज ॥ १८६ विमल किनकके बिछये जावक पग थल जोप । लाल नषन मैंदी ललत, अरध चंद छबि वोप ॥ १८७
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