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________________ २४ ] बात बगसीरांमजी प्रोहित हीरांकी असवारी हद वोपियो, बणियो नीलबिडंग । अधूल्यौ छबि इंद सो, रंग प्रोहित रंग ॥ १६५ कमर कटारी असी हथा, आयुध बिबंध अभंग । चकाधूत कैफां चढयौ, रंग प्रोहित रंग ॥ ६६ हीरां मदन बिलास हित, अति मनमैं ऊछरंग । बचनको बाँध्यो बहै, रंग प्रोहित रंग ॥ १६७ बहत अगाडी बीर बर, सेवो चाकर संग ।। दारण चाल्यौ चित निडर, रंग पिरोहित रंग ॥ ९८ सहर कोट आयो सिधर, ऊतंगत ऊनाड ।। दरवाजा मंगल दुगम, किलफां जडी कवाड ॥ १६६ दरवाजै प्रोहित दूगम, ऊभौ जोम अनंत । चाकर सेवो केसरी, नासकमैं निकसंत ।। २०० १६. वात- प्रोहित मनमैं बिचार करै छै। कवाड टुटै न घोडो कुदावाको दावा रै छै । प्रोहितका मनमैं दाव आयो, नीलबिडंग घोडानै कोटको सफील कुदायो । दोहा- दाबत अतबल कूदियो, तूरत सफील तुरंग । ऐल नहीं असवारजें, कुद्यो जाण कूरंग ।। २०१ वेग तुरंगम अति विहद, प्राक्रम तर भरपूर । गढ सफील झंप्यौ गिगन, लंफ्यौ जांण लगूर ॥ २०२ नीलबिडंग कुद्यौ लहर, प्रोहित मन हलसंत । कर जोडी यम केसरी, 'षमा षमा' प्रापंत ।। २०३ २०. बात- प्रोहित इण प्रकार घोडो डकायौ, हीरांका महलके झरोषै नीचे आयो । सेवै चाकर घोडाकी बाग पकड़ लीनी, केसरी बडारणि हीरांनै बधाई दीनी। हीरां केसरीनै बधाईमैं नवसर हार दीनो । केसरी मुजरो कर लीनो। रेसमका रसां प्रोहित चढि आयौ, हीरां गवर पूजबाको फल पायौ । हीरां बार बार मुंजरो कर हरष धरै छै, मोती मोहोर मुंगियासं निछरावल करैछै । हीरां बचन दोहा- रमस्यां सेजां रंग, रली, [करस्यां] पूरण काम। प्राजि भला घर आबिया, जोडीतणा जलाल २०४ आजि भलाई आबिया, रति पूरण अनुराग । दरस तमीणो देषियो, भलो अमीणो भाग ।। २०५ गहर प्रजंक सुगंध अति, प्रोहित मदन प्रकास । पोहत चितवत सदनमैं, हीरां बदन हुलास ॥ २०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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