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बात बगसीरांमजी प्रोहित हीरांकी
चातुर बोल्यो मुष बचन, आतुर हीरां प्राप । तिरषातुर मेटो त्रया, तनु मदनातुर ताप ॥ २०७ प्यारी वो प्रजंक पर, हाव भाव कर हेत । दंपत रत रमस्यां मदन, मन बच ऊमग समेत ।। २०८
छप्पे - सुणत गवर संक्रमी झणण, ग्राभूषण झमकत,
हाव भाव मन हरत दरस तानगो ( पो ) र भ्रमंकत । मधुर मधुर मुलकंत अधर पुलकंत अरण प्रति, ललत विलोकत ललत चहत हित मंत्र अधिक चित ॥ हीरां ऊमगत मन ऊलस, कसमसर स ऊर कांमकै, ऊभी सनमुष कै, रसिया बगसीरांमकै ।। २०६ दोहा - ऊभी सनमुष प्रयेकै, हीरां मन हुलसंत । देष देष आनंद प्रति, मंद मंद मुसकंत ।। २१० प्रोहित रसक प्रजंक पर, ललित अंक भर लीन । चूबत अधर निसंक चित, डंक रदनको दीन ॥ २११ हीरां व्याकुल थरहरत, चमकत डरत चकीन । बंद करत रित मदन छिब, देष बदन हस दीन ।। २१२ दंपत दरस प्रजंक पर, संपत करत हुलास ।
हीरां बगसीरांम हित, कद्रप मुदत प्रकास ॥ २१३
प्यारी पीव प्रजंक पर, ऊलही उर अवलूब 1
मानुं चंदन बृच्छ मिल, झुको के नागणि भूब ।। २१४
२१. बात- - यूं रंगमै राति बितीत भई । हीरांकी अबलाषा पूरण भई ।
रंगमहलको समाज बणायो, प्राणपियारीनै रतिविलासको सुवाद प्रायो ।
बगसीरामजीको बचन
बगसीरामजी कहै छै - प्राणपीयारी व डेरानै हुकम दीज्ये, प्रभातिको आगमण छँ जेजे न कीज्ये ।
हीरा बचन
दोहा - अरज करत हीरां अधिक, बायेक प्रेम बषान ।
मो सुगणीने माणज्ये, रंग तणी छे रात ।। २१५ प्यारा पलकां ऊपरै, राषालां चित रीत | रात घणी छै राजवी, प्रीतम अधिकी प्रीत ॥ २१६
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