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________________ २६ ] बात बगसीरामजी प्रोहित हीरांकी प्रोहित बचन प्रोहित प्यारीने को, प्रितष हुवो प्रभात । पुजारी मंदर प्रगट, झालर घंट बजात ।। २१७ २२. बात - बगसीरांम कहै छै- परभात हूवो, मंदर झालर घंटा बजायो । हीरां कहै छै - बालम, परभात नहीं, बधाई बाजै छै । प्रऊत घर पुत्र जायो । प्रोहित कहै छै - प्यारी, प्रभात हुई, मुरगी बोल रही । हीरां कहै छै - कुकड़ा मिलाप नहीं छै । प्रोहित कहै छै - प्यारी, प्रभात हुवो, चडिय्यां बोलै छै । हीरां कहै छै - बालिम, प्रभाति नहीं, यांका आलांमै सरप डोलै छै । प्रोहित क छै - प्यारी, प्रभात हूवो, चकई चुपकी रही छे । हीरां कहै छै - बालम, बोल बाकी भई छै । प्रोहित कहै छै - दीपगकी जोति मंदी भई छै । हीरां कहै छै - तेल को पूर नहीं छै । बगसीरांम कहै छै - सहरको लोग जाग्यो छै । हीरां कहै छै - कोईक सहरमै चोर लाग्यो छे । प्यारो कहे छै - प्यारी, हठ न कीज्ये, अब बहूत कर डेरानै हुकम दीज्ये । दोहा - रंग रात बीती प्रसक, ग्ररुणोदय प्राभास | बन पंछी बोलत विमल, पंकज फूल प्रकास ।। २१८ अंक छोड प्रोहित उठ्यो, प्यारी रही प्रजंक । हीरां मुछित पर रही, इसी भुजंगम डंक ।। २१६ हिया पीतम परहरत, स्वातग भई सुभाय । भीर तबै कर अंक भर, प्रोहित ऊर लपटाय ॥ २२० हीरां बचन कर जोडी हीरां कहैत, अब कद मलस्यौ प्राप । एक घडी नै आवडे, तनकी मर्दै न ताप ॥ २२१ लार मोने लेवज्यौ, प्रापतणी प्राधीन । आप बना मरस्यू अवस, मरत नीर बिन मीन ॥ २२२ वैले मिलीजै बालिमां, प्यारा तन मन प्रांण । हिवडे राखूं हेतसुं, रसिया प्रोहित रांण ॥ २२३ मो मन मलियो बालमां, कहुक प्यारा कंत । दीसत यक सम दूध मैं, मानुं नीर मिलंत ॥ २२४ प्रोहित बचनं दोहरा - बिलकुल बोल्यो मुष वचन, रसियो बगसीराम | प्यारी साथ पधारस्यां, जुदी नही यक जांम ॥ २२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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