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परिशिष्ट १ (ख)
[ २१३ जोगीया पर-भोगीया, ध्रिग जमारौ तोय वे। ऐंठा परबत सेझमै, मैं दोठा सामोई बे ॥ ३० रोसालु रीसालुवा, रीसडीयां मर जाय बे। मैं ई पडु इस गौषसु, मेरी देह जलाइ बे।। ३१ पंथी ए सुघड धोइया, झगो पछेवड पग बे। नषस्युं घुडल्यौ मै भरचौ, प्रेम न बोल्या वुग बे ।। ३२ भुम पराई भोगणे, (तं) राजा हांदी धीय बे। तो कारण मो मारज, कुंण उगारे जीय बे॥ ३३ भुम पराई नै परमंडली, नही बोलणका संग बे। तो कारण मो मारिज, मुयां न पाऊ आग बे ।। ३४ चंदरण-काटे चह रच करू ज अमर नांव बे। मो कारण तो मारिजै, (तो) बलु पंथी गल लग बे ।। ३५ कड कड वाहुं काकरा, लागई लाल किंवाड बे। के मुया के मारीया, के चंपीया पाहार बे ॥ ३६ रोसालु हंदी गोरडी, उभी भीजं बार बे। न मुया न मारोया, न चंपीया आहार बे।। ३७ तुं राजा हंदी गौरडी, (क्युं उभी) वागां हंदै बार बे। (न मुया न मारीया, न चंपीया प्राहार बे) लंबा पतला कुंण सा, (तेरै) गया गिलोला मार बे।। ३८ पटुवा महता गांवरा, न कर हमारी तात बे। ले जाउली राउलै, षुटसो मारे हाथ बे॥ ३६ रूपा सोनानी रूप रंज, मोती अधिक वरणाव । उठो सोनी पातला, उपर मेरो मेह ।। ४० एक दीयां तौ दोय दोयां, दोय देस्यां तो च्यार बे॥ ४१ पोह फाटो पगडो हुवौ, धुवो धवलहरांह । उठ कमतीया मत दे, (प्रब) क्युक जांह घरांह ।। ४२ पैहर हमारा लुघडा, पांचे डाब प्र हथियार ।। चोहटै नोसर मचकती, कुंण कहेसी घर नारी ।। ४३ चांषडीयां चटका घणा, कड्यां रूलांता केस । मां मरदांरी गोरडी, (थन) किणे कराय वेस ॥ ४४ भोले भुलौ रे वालंभा, नैरण तणे उरणीहार । रात ज करहा [उछरे, ज्यांरा म्हे ऐ वालंभ ।। ४५
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