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परिशिष्ट १ (ख)
रात ज करहा न उछरे, दोहा न तारा होई ।
......, वर क्युवीरा होई ॥ ४६ सोनी हंदा दीकरा, अवसर न लो...... उपर चरु चढावीयो, धड दाबीयो पयाल ॥ ४७ सीर अमार अमो झर, पगमे ........ पयाल । सोनो लेसुलोडीयो, अब कहा करेलो राव ॥ ४८ नारू तोषा लोयणां, उर चंगी नैणांह । धरा तुट धरती गई, कोइ नर चढोया नैाह ।। ४६ रोसालु रोसालुवा, ...."मरीयां बहु चित। तुं राजारो बुटीयो, जोइ हम [क]रो मीत ॥ ५० सरवर पाय पषा[लता]"पाइल कोस झाई । जीण पुरषरी गोरडी, जीण क्युं रेण विहाय ॥ ५१
... ......, मो तो किसो ज तोल । हुँ जिण पुरषरी गोरडो, ..."राषौ पाइ मुल बे ।। ५२ पाइ मुका.. .. ... ... । जीगरा मुहडा प्रागै, तो सरी... .... || ५३ ...
......"तो प्रातम लोई। मो सरीषा दोय... ......
॥५४ सराहीये टुक दंती, षड.. ......... ई॥ ५५ कांई योवन मैंमतीयां, कांई जोव... "। ... ... .....", ......चड़कातां बाइ ।। ५६ नां जोवन मैंमतीयों, ... ... ... । .... ... ......, .....", करतां बांह ।। ५७ प्रवे प्रांबा उवे प्रा", ... "नव मोर । उहां वीच कर डंडडो, पंथी उवे हो चोर ।। ५८ जल ही उढ ..."हरण, जल सोहै बीर बे। जो तुं हुवै रोसालुवा, पंथी प्रांब पधार ब॥ ५६ फूलमती हठीय धरी, धारू धरी सोनार । संबलदे सत राषीयो, राजा भोज विचार ।। मेगलसी महता प्राव घरे, देउ गला रो हार ॥६०
॥ इति श्रीचंदकुंधर रीसालुरा दूहा संपूर्ण ॥
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