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बात नागजी - नागवन्तीरी
३४. वारता - इसौ कह्यो तरं धोळबाळो लजखांणो पड़ीयो नै नीचो उतरीयो । मनमैं विचारीयो जे रात तो थोड़ी ग्राय रही छै नै आ ऊतरे नहीं । परभात होय जासी तो वात आछी लागसी नहीं । तरै सहर में ओठी मेलने जाखड़ा बुलायो | नै सारी हकीकत कही । तरै जाखड़े कह्यौ -नीची उतर । तर नीची ऊतरी । तरै दूहो कहै छै -
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सोरठा - श्राईयो श्राढा लाह, गाज्यो न धड़ क्यो नहीं ।
बूढो वाढा लाह, निगुणी भुय पर नागजी ॥ ७२'
३५ वारता- जितरं नागवन्ती घरांनै चाली । अठै नागजीरै चलावारी तयारी करै छै । काठ भेळो करे छै । नै घोलवालो दुहो कहै छै -
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सोरठा - नागड़ा नव खंडेह, सगपण घणांई तेडीयै ' ।
भुय ऊपर भुंवतांह, मिलतां हो मरजै नहीं || ७३ ३६. वारता - नागवंती पीहरसु हाली, सु नागजीरी आरोगी कनै आय नीसरी । सु धोळबाळो दूहो कहै छै -
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सोरठा - ऊंडे पड़वे पैस, पिवसुं पंजां मारती । सु मांगसीया एह, घूंघै लागा धोलउत ॥ ७४ नागवंती सुण ने कहै छै -
सोरठा - ऊपरवाड़ अहीर, रह रह चावा डांभतो । सालै माँय सरीर, सुनित नवेला नागजी ॥ ७५ चुड़लो चोरां एह, मोल महंगे प्रांणीयो । नाखूनों भाडेह, भव पैलासु पाइयौ ।। ७६ कलमैंको कुंभार, माटोरो मेलो करै । ७ चाक चढावरणहार, कोई नवो निपावै नागजी ।। ७७ 'कुलमैं दोय कुंभार', वांसोलो ने वींभरणी । जे हुं हुंती सुथार, नवो 'घड़ लेवत'' नागजी ॥ ७८
१. ख. प्रतिमें- 'अईयो प्रासादाह, गाजीने धडूकियो । बूढो बाढालाह, निगुणी भूई सिर नागजी ॥
२. स्व. घणां हा तोडिये । ३. ख. भव । ४. ख. भमतांह । ५. ख. चम्बा । ६. ख. पाछव्या । ७ ख प्रतिमें एक सोरठा विशेष है
'कळ मैं को कुंभार, माटीरी मेळो करें । हूं हंती कुंमार, तो चाक उतारूं नागजी |! '_' ख. घडेलूं ।
'' ख. कळमें दोय श्राधार । द
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