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________________ १०२ ] बात रीसालूरी सूरण रे हठीया पातसा, ताहरो बल हिव फोर बे। हठमल धरती लोटातो, चोरी पडी सीर चोर बे॥ १६५ हिव रोसालूं सीस कू, वाह्या अपणा षग्ग बे। हठमलका सीस कपोया, ते मारगने वगाव बे।। १६६] ४२. वार्ता-तठ पातसाहनी कालजो काढ, नै घोडारा तोबरामै घाल, नैं माथारो लोही छांगलामै लेने सेहरमै कुंवरजी आया। प्रागै कीणही री हाटम चरी लेइ, ने तेलरा घडा भरीया था सूनी हाट मांहै, तिण चरीमे तेल लेने लोही भेला कीया, नै प्रापरे घोडै असवार हय, ने नवलषो घोडो हाथे षांचने आपरा मेहलांरी वाडीमै बांध दीयौ; नै आपरो घोडो सदाई जागा बांधीयो, ने सूवाने कहीयो-पातसाहनै मारीयो छौ। इतरो केहने तोबरो, चरी जे (ले)ने मेहलां कुंवरजी आया । प्रायने रांणीने कहीयौ-जे आज सीकार आछी कीवी छ । बडा सीरदारांरा साथ भेला हुवा छा सो मेह तो आरोगीयासा ने ताहरै वास्तै लायां छां, सो संभाल लीज्यौ । इतरों कहीने हेठा उतरीया ने हीरण कने गया। अबे थै निसंक थका तिण वागमै हगाम करि पावो। इसो केहनें सूवाने कहीयौ-जावौ, थे रांणीनै जितावणी कर देवज्यो। त? रांणी मांस तोबरासू लेने रांध्यो ने तेलरो दीवो कीयो छै। हिवै मांसने रांधने षाधौ। तठे सुवो थांभै वेसने राणीनै सूणावै छै-A ख. हास-वीलास कर पाछो उतरतां रसालुए वाट बांधी हती, तीण माहे पाय पडयो। रसालु बोलीयो-हठमल ! तुघणा दीनारो जातो हतो पीण अाज हुसीयार हुज्यों; हुं मारीया टाल मेलु नहीं । तद हठमल कहे-हु ताहरो चोर छु; तीण वास्ते पेलो लोह तुं कर। तद रसालु कह्यो-पेली लोह तुं कर। जदी हठमल कहे--माहरा हाथरी लागा तुं कोणने मारसी ? तो ही पीण रसालु पेली लोह न कोधो। तरे हठमल नवहथो जोध-घोडे चढने सवा मणरो भलको साधने रसालुने भलको वाह्यो। तद रसालुए प्रसपार थके टालीयो। पर रसालुए भलको सांध हमलनु वाह्यो । जद माथो प्राय प्रागे पडीयो। ग. तीहां जाए भोग-वीलास कीधो। पोहर एक ताई रहे नै पाछो ऊतरयौ। तदि रीसालु बोल्यो, कह्यो-हठीमल ! घणा दीनरो जातो थो, प्राज ठीक पडसी; अबै तुं समाव । तदी पातस्याह कहो-हू तो थांहरो चोर छु, पहली तो तुं दै। तदी रीसालूं कहौहू तो पैहली लोह न करूं । तदी हठीमल कह्यौ-मेरा हाथकी व्याकर पीछे कीसकै दैगा ? तदि हठीमल पातसाह नवहथ घोडे चढयौ छ। तदि सवा मणको भलको सांध्यो। रीसालु टाल्यो । रीसालु हठीमल सांभो भलको संध्यो, हठीमलर दीधी । माथौ अलगो जान पड्यौ । घ. पातसाह रमे-घेले नै नीचे उतरचौ। तद रसालु कह्यौ--- घणा दीनरो जातो थौ पण अाज ठोक पडसी । रसालु भलको सांधै नै हठमाल पातसाहरै दोधी। पातसाह हेठो पड्यौ। माथो वाडीयो। A. ४२वीं वार्ता की वाक्य-रचना ख. ग. घ. प्रतियोंमें निम्न रूप में लिखित हैख. जद रसालुऐ हठमलरो कालजो काढ लोधो। चरवी की तेल काढीयो। पछे घरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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