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बात रीसालूरी
[१०१ दूहा- आईयो कुंवरजी प्रावीया, सेहर कनै पाश्रांम बै।
रमो रे पंथीडा समझिने, उड जावो निज धाम बे १५६ इम टहुक्का सरला दीया, सतभौमीन धाम बै।
रांगो-हठमल तिहा सूण्यौ, उठीया छोडी काम बै ।। १६०] * ४०. वार्ता-इसा समाचार सूणनै पातसाह सावचेत हूयनें, हथीयार पडिहार लेइने, आपरै घोडै आय नै पागडे पग दीधो । त, रांणी घणी वीरहमे मत्त हूई । तपातसाह राजा-मारी चाल पकडने केह छैदूहा- रयणी दुषकी राश भी, भरसी गुण संताब बे।
ढोली सहु ढीली पडी, जावो कलेजा काप बे ॥ १६१ में विरहरणी विरहा तरणी, फीट सूवटा तुझ फोट बे। सूपरी घडीय छुटाय दी, जीवत वीधी चोट बै॥ १६२ हठमल हठ कर चालीयौ, निज मारग मन रंग बे ।
आगे रीसालू देषीयो, तुरंग कुदाले अभंग बे ।। १६३* [४१. वार्ता-पातसाहजी आपरा मारगमै चालतां आगे रोसालू कुवरने घोडौ कुदावतौ दीठौ । तठ पातसाह जाग्यौ--आज चोट हसी। इम चालतां प्रांमा-साहमा मिल्यां, वतलावण हुई। तठ कुवरजी कहै--रे हठमला वावला ! माहरा महिला मांहि चोरी कीधी, तिरणरो जाब दिरावो । तठ पातसाह बोलीयोतेरा मेहिलका चोर मे हूँ'; तेरे करणा हुवै, सं ते करलै । त? कुंवर बोलीयोतु सूरबीर छै तो पेहली हथीयांरां हाथ करो। तठे पातसाह बोलीयौ-हुँ हाथ करस्यूतरै थे कीतरीक वार रेहस्यौ ? यू मनवार करतां कुवर-पातसाह मंछां वट घाल्यो । तरै रोसा करने पातसाह सवा मरणरो भालौ कांधे हुतो, सो कुवर साहमौ वाह्यो। तठ कुवरजी कलासू टालोयो। सो भालो दूर जातो षत्यो । त रीसाल आपरो भालो लेने पाछो वाह्यौ। तिण पातसाहरे छातीमे धूतो बाहिर पार निकल गयो । तरे हठमलजी घोडासू हेठा पडीया । तठे कुंवर हेठो उतर ने पातसाह कनै प्रायने कहै छदुहा- नार पराई विलसतां, कांटा पूर तूटाय बे ।
सीस साई जव दीजीये, मीच पडै सूचि काय बे॥ १६४
*-* ४०वीं वार्ता का गद्य-पद्यांश ख. ग. घ. प्रतियों में नहीं है।
[-]. कोष्ठकान्तर्वर्ती ४१वीं वार्ता के गद्य-पद्यात्मक अंश की वाक्यरचना ख. ग. घ. प्रतियों में इस प्रकार वर्णित है
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