SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बात रीसालरी [ १२३ दुहा- आज कुंवरजी रीसालूवा, मूझ पर सारी रेंण बे। नींद ण(न) लीधी धण घडी, जागी न जांणी सेंण बे ॥ २६८ सेयण रीसालू हुय रही, धन विलपी सारी रेंण बे । चूक किसो सो मूझ कहो, माहरा पीउ सूषदैन बे ॥ २६६ कुंवरजीवाक्यं म्हे क्यं रोसाल थाह थकी, कुरण कह्यो एह विचार बे। राज सरीषो पदमणी, कदेय न भूलू चितार बे ॥ २७० परभूमी षडवा थकी, थांकां कुंवर सूजाण बे।। जिस नीदडी धांपीया, मत हो नारि अजांण बे ॥ २७१ थांह सरसी मांहरे, भाग तरणें परमाण बे।। ते भूले सो ई ढोर बे, लहज्यो साच पिछांग बे ॥ २७२ ] ७३. वार्ता-कुवरजी इसा दूहा कहीया। तठे कुवरीने कुंवरजीरो पतीयो । तरे रांणी उठने मारी, पालो, दांतण लेने कने आई । तठ कुंवरजी बोलीया-इतरा वेगा ही करां, सो कांइ कारण ? रांणी कहै-माहाराजा कुवार ! वासी मूहडै राजसू वात करां, सो जोग नही । तठे कुवरजी दांतनकुरला कीया; आमल-पांणी कीयां, यांकां-वांगा, हाका-डाका हूवा । तठे कुवरजी वडारणनें कहे-जायै ‘रामजोग' रिण धवल सोनारना बेटाने बुलाय ल्यावौ, ज्यं काई क टुम करावां । प्रागे ही चालपरणे टम हाथे प्राई थी, तिकी आज तांई रही, तीणसू नवि घडावस्यां । तरे वडारण सूनारने जोयने कहीयो-अहो कारीगरजी ! थांन कुवरजी बूलावै छै, वेगो प्राव । तठ सूनार बोलीयो-जवाईजी कठे विराजीया छ ? तठ वडारण कहीयो-जे राजलोकमै छ। तठ सूनार राजी हूवो–जे गेहणौ घडावसी। इसो विचारने सूनार मेहलां प्रायो; कुवरजीसू मूजरो करने बेठो । तठे कवरजी प्रापरी कटारी उपर सोनो चढावणरे वास्तै सोनारने कहै छै । तिण सम रांगीरी नीज र सोनार मांहे पडि । कुवरजी दोढि लाबहु देषने दुहो कहै छ-' १. ७३वीं वार्ता का पाठान्तर ख. ग. घ. कु. प्रतियों में इस प्रकार है ख. तरे कुवरजी दातण कर अमल प्रारोग्या। तरे रांणी कहीयो-माहाराज कुमार ! हेमकुट सोनार प्रायो छे, सो घाट भला घडे छ । तरे कुवरजी कहीयो---उणने ज तेडावो । तदी सोनारने सहेलीया बोलावण गई। रसालु बेठा स्नान करे छ। राणी सोनारी भारी लीयां पांणी नामे छे । इतरे सोनार प्रायो । तरे रांणीरी पर सोनाररी नीजर एक हुई। तदी राणी पाणी नांमती हती, सो घार चुक गई, धार धरती जाय पडी। तवी रसालु रांणी प्रते कांइ कहे छे-1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy