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बात रीसालूरी
ख. दुहा-पीउ रे दुध रसालु पा, रुडा रे सुकन मनाय बे। रसालु चाल्या परणवा, वेग परणी घर प्राय बे ॥ ७
रसालुवाक्यं माय वीडांणी पीता पारकां, हम ही वीडांणा जाय बे। षेवटीयाकी नाव ज्यु, कोइक संजोग मोलाय बे ॥८
तद माता मृग प्रते कांई कहे छकाला रे मृग उजाड का, रसालु पाछा फेर बे। सोवन सोग मढावसु, गले रुपारी डोर बे॥६
रसालुवाक्यं हीरण भला केहर भला, सुकन भला के सोम बे।
उठो र अरजुन बाण ल्यो, सीध करे श्रीराम बे ॥ १० वारता-इतरो कहे रसालु पाघा चाल्या । वनषंड सार षडीया । प्रागे धनगहनमे जातां संध्या समीए जुगर उपर प्राग बळती दोषी । तरे रसालु घोडो तले ही बांधी, डुगर उपर पालो चढीयो । उचो चढने श्रीगोरषनाथजीनु भेट्या । तद श्री गोरषनाथजी तुष्टमांन हुआ, कहीयो-पाव बचा ! मांग मांग, हु तुठो। तदी रसालु कहे-माहाराजा साहीब ! आपरी दीधी सारी दोलत छ, पीण समुद्ररे पेले कांठे राजा अंगजीत राज करे छे, तीण अंगजीतरी बेटी परणु, सो घर द्यो। तद श्रीगोरषनाथजी अनलपंषोरी नलीरा पासा दोधा; जा बचा ! तु इण हमारा पासासु चोपड पेलजे; तु जोपसी । रसालुए तीन सलाम कर पासा उरालीधा।
दुहा--गोरषनाथजी सेवा करी, लोधा पासा हाथ बे।
जाज्यो कुवर रसलामा, वेगा परणी घर प्राव बे॥ ११ ग. दुहा-पीया दुध फली करो, (रोसालुवा)रूडा सुकन मनाय थे।
रीसालुं चाल्यौ परणवा, वेग परण घरी प्राव बे ॥ ३
रीसालु माताने फेर पांछो कांइ कहैदूहा--माथ षोडाणी बाप बड, हम ही मांझ वडा। षेवटीयाकी नावजूं, कोईक संजोग मीलाव बे।। ४
मातावायकदूहा-काला मृग उजाडका, रीसालुं पाछा फेर बे। सोवन सीगी मढावसु, रूपाकी गल डोर बे ॥ ५
तदी रोसालुं मगनै काइ कहैदूहा-हीरण भला कैहर भला, सुकन भला कै स्याम बे।
उठो उरजण बाण ल्यो, सारैगा सब काम बे।। ६ अथ बात- ईतरी वात अतरो कहै रीसालुं आघो चाल्यो । आगे दे तो रीसालुं डुगरी उपर माग बल छ । बलती दोठी तदी डुगरी चढयौ । पल मेल्यां थका गोरषनाथजी बैठा छ । पगे लागा। गोरषनाथजी कह्यो-रे बच्चा ! मांग, मांग, तुष्टमान हुवा। तदी
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