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________________ राजस्थानी गद्य की प्राचीनता प्राचीन राजस्थानी साहित्य गद्य एवं पद्य दोनों ही दृष्टियों से समृद्ध है । राजस्थानी पद्य की विपुलता एवं उसकी विशेषता सर्वत्र ज्ञात है । परन्तु राजस्थानी गद्य की अपनी विशेषता और उसकी प्राचीनता के सम्बन्ध में बहुत कम जानकारी अभी प्रकाश में आ पाई है। राजस्थान की विभिन्न साहित्यिक संस्थानों के संग्रह तथा अधुनातन शोध कार्य के आधार पर यह कहा जा सकता है कि राजस्थानी भाषा में जो प्राचीनतम गद्य मिलता है वह 'असमिया' श्रादि एक दो भारतीय भाषाओं को छोड़ कर अन्य भाषात्रों में नहीं मिलता । राजस्थानी गद्य के प्राचीनतम उदाहरण स्फुट रूप में ही प्राप्त होते हैं परन्तु उनसे गद्य की बनावट और भाषा के रूप का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है । इस प्रकार के स्फुट उदाहरण शिलालेखों व ताम्रपत्रों में देखे जा सकते हैं । राजस्थानी गद्य का प्राचीनतम उदाहरण बीकानेर के नाथूसर गाँव के एक शिलालेख में अंकित है जिसका समय सं० १२८० दिया गया है । अतः १३वीं शताब्दी में राजस्थानी पद्य के साथ-साथ गद्य का निर्माण भी प्रारंभ हो गया था, यद्यपि उस पर अपभ्रंश की छाप विद्यमान है । भूमिका १३वीं शताब्दी के पश्चात गद्य का निरन्तर विकास होता रहा है । संग्रामसिंह द्वारा रचित बालशिक्षा व्याकरण में प्राप्य राजस्थानी गद्य के उदाहरणों को देख कर यह कहा जा सकता है कि आचार्यों का ध्यान भी राजस्थानी गद्य की ओर १४वीं शताब्दी में आकृष्ट होने लग गया था । प्राचीन गद्य के निर्माण में जैनविद्वानों का विशेष योग हमें निःसंकोच भाव से स्वीकार करना होगा, क्योंकि १ २ • वरदा, वर्ष ४, अंक ३, पृ० ३ । इस ग्रंथ का रचनाकाल १३३६ है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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