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बात बगसीरांमजी प्रोहित होरांकी कुच (चं) कंचुकी रेसमी तारकंद, गहीरं मनो कुंभ ढाक्यौ गयंदं । बरं कोमलं सोभ बाहू बिराजै, छबीले मनूं कंजके नाल छाजै ।। १०६ फबै बांहैं (ह) बाजु(जू) मिण (णी) जोति फूल, झुक्यौ चंदनी साषपै नाग झूलै। . विराजै नगं सोवनी चु(चू)डबंध, फबै मोहणी प्रांणकै काम फंदं ॥ ११० जु (जु)हारं मिणी पुंचिका हाथ जोपै, अघ(घ)पंकजं मंडलं भ्रग वोपैं। कली चंपकी आगली सोभ कीन, नषं उज्जलं चंद सोभा नवीन ॥ १११ पुनीतं नषं रंग मैंदी प्रकास, विभूषंत मानू कणं लाल भासै । किय (ये) हाथफूलं शरणंकार कीने, लै(ल)सै कामकी नोबतं जीत लीनै ।।११२ हो (हि)ये फूलमालं कीये हीरहारं, दुतं चंदनी मालसी कामद्वारं। . सुभं त्रि(त्री)वली ऊहुकै रोम संगं, तिरै नागनी अंबुधी संतरंगं ।। ११३ सुरंगं दुती नाभि गंभीर सोहै, मनू छैलको भ्रग रूपी बिमोहै । कटी कंकनी हेम झंकार कीने, लसै केहरी लंकपै बांधी लीनैं ।। ११४ जरी तार पट्ट बिराजै ज हरं, किये कोमलं जक (लज्जेकं) लंक पूरं । ... ... ... ललीतं पदं नूपुरै घोष कीनै ।। ११५ पदं कोमलं लाल य(ए)डी प्रकास, कील मोगरा अंगुली साबि कासै। सुचंगी नषाकी जगाजोत सोभा, लसै अष्टमी चंदसे प्रांण लोभा ।। ११६ विणे मोचड़ी हीर मोती बिचित्रं, पदं मोह लीनै कि● हंस-पुत्रं ।। म(ग)ती जोबनाकी चल मंद मंद, गहीरं चल्यो जोम छाक्यौ गयंदं ॥ ११७ विभषै सरीरं पढं (टं) नील बदं, घणं बादलं मेह ढाक्यो गिरंदं । प्रभा चीर सोभा जगाजोति मंडै, चमं(क)कै घटामैं क बोजू प्रचंडै ।। ११८ करै हावभावं कटाछं किलोलं, बिराजै पिकं यंम्रतं मंज बोलं। मुषं चंद्रहासं हरै प्राण मोहं, छिबं देष डोले मुनी छंद छोहं ।। ११६ चढे अत्तरं बासना अंग चोजं, मिलया(य्या)गरं चंदनं गंध मोज ।
किये काज हाथं चतै रूप काजं, मन(नो) मोद मांनै सहेली समाजं ॥१२० छप्प- सषियां तणे समाज ललित गहणा नीलंबर ।
किसतूरी केवडा डहक परमल घण डंबर । ग्यातजोबनां गहर मदन छक लहर समाजत, बणि हीरां द्रग बिकस रसक रंभादिक राजत । कुंकमकी बैंदी लिलाट कर, चंद बदन छिब अधक चित, आनंदत देषण गवर, गवणी उठ गयंद गति ।। १२१
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